मनों पॉलीथिन लील जाती हैं हजारों गायें, जिससे उन्हें कई प्रकार की व्याधियां अपने चपेट में ले लेती हैं और आखिरकार गाय की जीवनलीला समाप्त हो जाती है। मरने वाली गायों के पेट से 40 किलो से लेकर 65 किलो तक पालीथिन पाई गई
भारतीय जनमानस में गाय का विशेष महत्व है और इसके संरक्षण आदि को लेकर विभिन्न हिंदू संगठनों आए दिन आंदोलन चलाते रहते हैं। विशेष रूप से यह आंदोलन 'गोहत्याÓ रोकने के लिए चलाया जाता है। मगर उत्तरप्रदेश के कुछ इलाकों में हालात इस कदर हैं कि गायों को परोक्ष रूप से मौत का इंतजाम खुद-ब-खुद हो जाता है। दरअसल, इन दिनों शादी-विवाहों को मौसम है और विवाह आदि आयोजन के दौरान भारी संख्या में विनाशकारी पॉलीथिन का उपयोग किया जा रहा है । इस पॉलीथिन को उपयोग के बाद कचरे के ढेरों में फेंक दिया जाता है, जिसे बाद में भारी मात्रा में पशुओं द्वारा भोजन व स्वाद की चाह में लील लिया जाता है । जिसमें गायों तथा अन्य चौपायों की संख्या काफी अधिक है ।
उल्लेखनीय है कि चम्बल क्षेत्र भगवान श्री कृष्ण की लीला स्थली एवं पाण्डवों की ननसार रही है, अत: चम्बल में गौ पालन व संरक्षण का विशेष महत्व है । इसके अलावा लगभग 70 प्रतिशत गायें यहॉं या तो महज सेवा करने के लिये पाली जातीं हैं या वैसे ही आवारा ढील दी जातीं हैं । जो यत्र-तत्र-सर्वत्र यूं ही मुक्त विचरण करतीं रहतीं हैं और भोजन-पानी तलाशती फिरती हैं । आश्चर्य तो यह है कि मथुरा-वृंदावन में , जहां गायों को सीधे तौर पर भगवान श्रीकृष्ण से जोड़कर देखा जाता है और उनकी पूजा-अराधना की जाती है, वहां भी गायों के रख-रखाव की उचित व्यवस्था नहीं है। भूख और प्यास से व्याकुल गायों को इन दिनों शहर और गॉंवों में होने वाले विवाह समारोहों के पश्चात फेंकी जाने वाली झूठन और कचरे से काफी भोजन प्राप्त हो जाता है जिससे गायों व अन्य चौपायों की मौज हो जाती है । लेकिन आधुनिक विवाहों में भारी मात्रा में पॉलीथिन जैसी विषैली और विनाशकारी उपयोग की जातीं हैं जिन्हें भोजन की झूठन के साथ ही मिश्रित रूप में फेंक दिया जाता है, कई बार तो भोजन की झूठन ही इन पॉलीथिनों में कैद रहती है । इसके अलावा पॉलीथिन चबाने में नरम होने से पशुओं को चबाने में सुखद अनुभूति कराती है । सो, लालच व भूख में गाय तथा दूसरे चौपाये इन्हें निगल जाते हैं ।
प्रतिवर्ष अकेले चम्बल में पिछलें सात साल के दौरान पॉलीथिन के लीलने से औसतन 700 गायों और दूसरे चौपायों सहित 1900 पशु अनजाने व अकाल मारे गये । इसमें वे आंकड़े भी शामिल हैं जिनमें पशुओ की मृत्यु पीने का पानी न मिलने से प्यास से भी मरे हैं । जब कई मरी हुई गायों को ढो-ढो कर पशु चिकित्सकों ने उनका पोस्टमार्टम किया तो 93 फीसदी के अंदर पॉलीथिन के भण्डार मिले । जिसमें गायों की मौत के आंकड़े और भी भयावह हैं, मरने वाली गायों के पेट से 40 किलो से लेकर 65 किलो तक पालीथिन पाई गई। पॉलीथिन धरती को बंजर कर रही है, इसका परिणाम भुगतने में तो हमें अभी दस पन्द्रह साल लगेंगे लेकिन पशुओं को अकाल मौत के घाट तो पिछले पन्द्रह साल से उतार रही है, इससे हम वाकिफ होकर या तो मौन हैं या नावाकिफ । मथुरा निवासी रामकिशन सिंघल कहते हैं, 'गायों को मातृतुल्य मानकर पूजा करना अच्छी बात है। यह हमारी धर्म-संस्कृति से जुड़ा है। लेकिन सही मायनों में गायों की असमय मौत को टालना है तो लोगों को खुद पॉलीथीन का प्रयोग नहीं करना होगा। बेशक, सरकार की ओर से संबंधित कानून बनाए जाएं लेकिन जब तक लोगों में जागरूकता नहीं आएगी, हल नहीं निकलेगा।
शुक्रवार, 10 जुलाई 2009
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1 टिप्पणी:
MAN GAHARE DUKH ME PAHUCH GAYA ......
JAANKARI SAHI PAR PADHA NAHI JA RAHA THA .........SACH AISA HI HOTA HAI ......AABHAAR
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