गुरुवार, 25 अक्तूबर 2012

दुष्कर्म को जोड़ा गया विवाह की उम्र से


हरियाणा में हो रहे दुष्कर्म की घटनाएं रूकने का नाम नहीं ले रही है। बीते दिनों जिस प्रकार से घटनाएं बढ़ी हैं, उसने कई सवालों को जन्म दिया है। सिलसिला लगातार जारी है, लेकिन सरकार और पुलिस, दोनों ही खामोश हैं। नागरिकों की सुरक्षा की अंतिम जिम्मेदारी जिस राज्य सरकार की है, उससे •ाी कोई सवाल पूछने वाला नहीं है। सूबे में कांग्रेस की सरकार है और कांग्रेस अध्यक्षा प्रदेश में आकर कह जाती हैं कि यह सच है कि बलात्कार की घटनाएं बढ़ी हैं, लेकिन ऐसा सिर्फ हरियाणा में नहीं, देश के स•ाी राज्यों में हैं। दूसरी ओर प्रदेश में बढ़ रहे महिला विरोधी अपराध के लिए खाप पंचायतें शादी की उम्र को बड़ा कारण मान रही हैं। खाप पंचायतों ने गत दिनों इस सिलसिले में यह सुझाव दिया कि लड़कों के विवाह की उम्र 20 वर्ष से घटा कर 18 और लड़कियों के विवाह की उम्र 18 से घटाकर 15 वर्ष कर देनी चाहिए। खाप का कहना है कि यदि विवाह की उम्र घटाई जाए, तो दुष्कर्म की घटनाओं पर विराम लग सकता है। खाप के एक प्रतिनिधि सूबे सिंह ने कहा था कि लड़के और लड़कियों की शादी 16 साल की उम्र में हो जानी चाहिए, ताकि वे ‘पथ•ा्रष्ट’ नहीं हो सकें। इससे बलात्कार की घटनाओं में कमी आएगी। खाप के एक अन्य सदस्य ने यह •ाी कहा था कि बच्चों के बडेÞ होते ही उनमें यौन आकांक्षाएं आने लगती हैं, लेकिन जब वे पूरी नहीं होती हैं, तो वे पथ•ा्रष्ट हो जाते हैं। इस वजह से शादी के लिए कोई न्यूनतम उम्र सीमा नहीं होनी चाहिए। खाप के समर्थन में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला •ाी आ गए हैं, जाहिरतौर पर इस मुद्दे पर राजनीति तेज हो गई है। समाज से जुड़ा हर तबका •ाी अपनी-अपनी अलग-अलग राय दे रहा है। सामाजिक संगठनों की राय पर ही बाल-विवाह रोकने के लिए बनाए कानून में बदलाव करने से सरकार और शिक्षित वर्ग साफ इंकार कर रहा है। हरियाणा की कई खाप पंचायतें दुष्कर्म और अपहरण की घटनाएं बढ़ने का मूल कारण लड़के और लड़की की शादी की उम्र 18-21 वर्ष होने को मान रहे हैं। सामाजिक संगठनों से जुड़े लोग लड़कियों की शादी की उम्र कम करने को गलत ठहरा रहे हैं, तो खाप पंचायत उम्र घटाए जाने की जिद पर अड़ी हैं। आपसी सहमति नहीं है खापों की वहीं, कुछ खाप पंचायतें इस बात से इत्तेफाक नहीं रखती हैं। दादरी क्षेत्र की सांगवान खाप के प्रधान कर्नल रिसाल सिंह के मुताबिक, लड़कियों की शादी की उम्र घटाने से दुष्कर्म की घटनाएं नहीं रुकेंगी। इसके लिए तो समाज की मानसिकता बदलने, सामाजिक चेतना उत्पन्न करने की जरूरत है। अगर छोटी उम्र में किसी लड़की का विवाह कर दिया जाता है, तो उसके साथ संबंधों को एक प्रकार का दुष्कर्म ही कहा जाएगा। फौगाट खाप के कार्यकारी प्रधान बोबी फौगाट के अनुसार, कुछ खापों का बलात्कार की घटनाओं को रोकने के लिए लड़कियों के विवाह की उम्र कम करने का फार्मूला किसी •ाी सूरत में ठीक नहीं कहा जा सकता है। बड़ी मुश्किल से समाज सुधारकों ने बाल विवाह पर रोक लगवाई थी। लड़कियों की विवाह की आयु कम से कम 20 वर्ष की जानी चाहिए। दुष्कर्म की घटनाओं को रोकने के लिए कन्या विवाह की उम्र घटाने की मांग, सुझाव पूरी तरह अव्यवहारिक है। श्योराण खाप 25 के प्रधान बिजेन्द्र सिंह बेरला और खाप के कानूनी सलाहकार एडवोकेट रतन सिंह डाडमा के अनुसार, हिंदू मैरिज एक्ट में लड़कियों की शादी की आयु घटाने पर अ•ाी किसी खाप ने अ•ाी खुलकर फैसला नहीं लिया है। अ•ाी स•ाी अपने-अपने तर्क पेश कर रहे हैं। इस विषय के कई पक्ष हैं तथा इस पर व्यापक बहस की जरूरत है। जाट महास•ाा प्रदेशाध्यक्ष ओमप्रकाश मान और ााकियू अध्यक्ष धर्मपाल बाढड़ा •ाी कहते हैं कि लड़कियों के विवाह की आयु घटाने के बारे में अंतिम फैसला नवंबर में होने वाली महापंचायत में लिया जाएगा। कई खापों के लोगों की राय है कि हरियाणा के खानपान के कारण कई अशिक्षित लड़किया समय से पहले शादी के लायक हो जाती हैं, इसीलिए आॅनर किलिंग, दुष्कर्म, घर से •ाागने जैसी घटनाओं को रोकने के लिए विवाह की आयु इसका एक उपाय है। हालांकि यह एक तरफा तर्क है। इसके अन्य पहलुओं पर •ाी विचार किया जाना जरूरी है। शुरू हुई राजनीति जहां सच्चाखेड़ा के पीड़ित परिवार से सहानु•ाूति जताने आई कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने खाप के सुझाव अस्वीकार कर दिया, वहीं हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला ने खापों के फामूर्ले को सही ठहराया है। चौटाला ने यह •ाी कहा कि मुगल शासनकाल में •ाी लड़कियों को तत्कालीन शासकों की बुरी नजर से बचाने के लिए कम उम्र में उनकी शादी कर दी जाती थी और अब हरियाणा में •ाी इस समय यही स्थिति पैदा हो रही है। सरकार इस समस्या से निपटने में नपुंसक साबित हो रही है। चौटाला के अनुसार, दुष्कर्म की घटनाएं रोकने के लिए यदि राज्य सरकार ने समय रहते कारगर कदम उठाए होते तो आज यह हालत न होती। •ााजपा-हजकां गठबंधन के महिला विंग ने •ाी प्रदेश सरकार को हर मोर्चे पर असफल करार देते हुए राज्यपाल जगन्नाथ पहाड़िया से सरकार की बर्खास्तगी की मांग कर डाली। हुड्डा के पक्ष में उतरी कांग्रेस दुष्कर्म की बेरोक-टोक हो रही घटनाओं से घिरे हरियाणा के मुख्यमंत्री •ाूपेंद्र सिंह हुड्डा के बचाव में कांग्रेस •ाी उतर आई। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बयान के बाद पार्टी प्रवक्ता रेणुका चौधरी ने •ाी कहा कि महिलाओं के खिलाफ अपराध पूरे देश में ही बढ़ रहे हैं और हुड्डा कोई हाथ बांधकर नहीं बैठे हैं। यह सही नहीं है कि ऐसे मामलों में अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा रही है। आंकड़ें हैं •ायावह सच तो यह •ाी है कि 1.2 अरब की जनसंख्या वाले इस देश में दुष्कर्म सबसे तेजी से बढ़ने वाले अपराधों की श्रेणी में शामिल है। कानूनी रूप से बेशक मृत्युदंड जैसी कड़ी सजा पर कई बार विचार और बहस की गई है, लेकिन व्यावहारिक स्तर पर ऐसा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है, जिससे इस पर अंकुश लगाया जा सके। स्थिति यह है कि एक •ाारतीय महिला के साथ दुष्कर्म होने की आशंका पिछले दो दशक में दोगुनी हो गई है, जबकि अपराधी को दंडित किए जाने और न्याय मिलने की दर नीचे गिर गई है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े इस बात की तसदीक •ाी करते हैं। स्थिति इतनी गं•ाीर है कि हर 20 मिनट में •ाारत में किसी न किसी महिला के साथ दुष्कर्म किया जाता है। इन पीड़ितों में से हर तीसरी पीड़ित कोई बच्ची होती है। ये आंकड़े वर्ष 2011 में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट पर आधारित हैं। दुष्कर्म के मामलों में मध्य प्रदेश का पहला नंबर है। पिछले वर्ष वहां दुष्कर्म के सबसे ज्यादा मामले रिपोर्ट किए गए। हरियाणा की स्थिति •ाी बेहद बुरी है, जहां बीते एक महीने के अंदर दर्जन •ार से अधिक दुष्कर्म की रिपोर्ट दर्ज की गई है। पुराना विवाद है उम्र का विवाह की उम्र को लेकर एक लंबे अरसे से विवाद चलता आ रहा है। इसे बहुत से लोगों ने अपने-अपने तरीकों से परि•ााषित •ाी किया है। 5 जून को दिए दिल्ली हाईकोर्ट के ऐतिहासिक फैसले ने 15 वर्ष की उम्र में हुए एक मुस्लिम लड़की के विवाह को जायज ठहराया, हालांकि •ाारतीय संविधान के हिंदू मैरेज एक्ट के अनुसार, विवाह की मानित उम्र लड़कियों के लिए 18 और लड़कों के लिए 21 तय की गई है। इसमें मुस्लिम, पारसी, ईसाई और जेविश धर्म का जिक्र नहीं किया गया है। इस्लामिक कानून के मुताबिक, कोई •ाी मुस्लिम लड़की बिना अपने माता-पिता की इजाजत के शादी कर सकती है, बशर्ते उसने प्यूबर्टी हासिल कर ली हो। अगर उसकी उम्र 18 साल से कम •ाी है, तो उसे अपने पति के साथ रहने का हक है। उस समय कई लोगों ने कहा था कि इसका सीधा अर्थ यह है कि अदालत इस स्वीकार करती है कि अगर पंद्रह साल की लड़की हिंदू है, तो उसकी शादी अवैध है और पंद्रह साल की लड़की मुसलमान है, तो उसकी शादी वैध है। कहा गया कि राजनीतिकों के लिए मुस्लिम समाज से जुड़ा हर सवाल वोटों की गिनती का सवाल बन जाता है। लिहाजा, इस सवाल पर किसी की कोई खास प्रतिक्रिया नहीं आई। आॅल इंडिया मुसलिम परसनल लॉ बोर्ड ने दिल्ली अदालत के इस फैसले का सबसे आगे बढ़ कर स्वागत किया था। दूसरे देशों की बात करें, तो मुस्लिम देशों को छोड़कर अधिकतर पश्चिमी देशों में विवाह की उम्र लड़कों के लिए 18 और लड़कियों के लिए 16 है। हालांकि एशिया महाद्वीप में अधिकतर जगह लड़कों के साथ-साथ लड़कियों की •ाी उचित उम्र 18 ही है। ईरान में लड़कियों की न्यूनतम आयु 9 साल निर्धारित की गई है और ब्रुनेई में तो इससे जुड़ा कोई नियम ही नहीं है, यानी वहां बाल विवाह आज •ाी जायज है। गौर करने योग्य यह •ाी है कि करीब डेढ़ साल पहले कर्नाटक हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में सुनाया था कि बिना माता-पिता की अनुमति की कोई •ाी लड़की 21 साल से कम की उम्र में विवाह नहीं कर सकती। सोच में आया है बदलाव यौन विशेषज्ञों के अनुसार, लड़कियों का शरीर 12-13 साल की उम्र में ही यौन संबंध स्थापित करने के लायक हो जाता है, लेकिन उस समय उसका शरीर गर्•ाधारण के लायक नहीं होता। 17-18 साल की उम्र के बाद उसका शरीर गर्•ाधारण के लिए तैयार हो जाता है। इसलिए 18 साल की उम्र के बाद ही उनकी शादी होनी चाहिए। इसलिए कानूनी तौर पर लड़कियों के शादी की उम्र 18 वर्ष कर दी गयी और 18 साल से कम उम्र में लड़कियों की शादी को गैर कानूनी करार दिया गया। आज स्थिति बदल चुकी है। अब लड़कियों के शादी की औसत उम्र 25-26 साल हो गई है, बल्कि पढा़ई में संलग्न और अपने कैरियर बनाने के प्रति सचेत लड़कियां तो अब 30 साल की उम्र से पहले शादी के बारे में सोचती ही नहीं हैं। उनके माता-पिता •ाी अपनी लड़कियों की शादी को लेकर परेशान नहीं रहते हैं, बल्कि उनकी •ाी यही इच्छा होती है कि पहले लड़की का कैरियर बन जाए उसके बाद शादी करना उचित रहेगा। इंटरनेशनल प्लान्ड पैरेन्टहुड फेडरेशन के अनुसार, विश्व में प्रत्येक साल कम से कम 20 लाख युवतियां गैरकानूनी गर्•ापात कराती हैं। मनोचिकित्सकों के अनुसार अवैध शारीरिक संबंध स्थापित करने वाली लड़कियों को हर समय उनकी चोरी पकड़े जाने का डर रहता है इसलिए वे हर समय अपराध बोध से ग्रस्त रहती हैं और कई तरह के मानसिक रोगों का •ाी शिकार हो जाती हैं। ऐसी लड़कियां शादी के बाद अपने पति के साथ यौन संबंध स्थापित करने से डरती हैं या वे यौन संबंध स्थापित ही नहीं कर पातीं। इस कारण वे वैवाहिक जीवन का आनंद नहीं उठा पातीं। इसलिए लड़कियों का विवाह 18-20 वर्ष की उम्र में ही कर देना चाहिए। •ाारत तालिका में सबसे ऊपर 20 से 40 साल उम्र समूह में, 27 प्रतिशत •ाारतीय महिलाओं की 18 वर्ष की उम्र तक शादी हो चुकी होती है। टाइम्स आॅफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, ये आंकड़ा दक्षिण मध्य एशिया और अफ्रिका दोनों की औसत से अधिक है। ये आंकड़े वॉशिंगटन सहित पॉपुलेशन रेफ्रेरेंस ब्यूरो द्वारा उत्पादित 2011 के डाटा पत्रक ‘द वर्ल्ड्स वूमेन एंड गर्ल्स’ से लिए गए हैं। बांग्लादेश में तो बाल-विवाह की दर •ाारत से •ाी अधिक है। पाकिस्तान, जहां 18 वर्ष से पूर्व विवाह की दर •ाारत की दर से करीब आधी है, क्षेत्रीय औसत दर को कम कर देता है। युनीसेफ के आंकड़ों के मुताबिक, बाकी देशों की तरह ही •ाारत में बाल विवाह की दर पिछले 20 वर्षों में करीब 7 प्रतिशत नीचे गिरी है। •ाारतीय कानून में विवाह-योग्य उम्र महिलाओं के लिए 18 और पुरुषों के लिए 21 है, लेकिन इस नियम का उल्लंघन बहुत व्यापक पैमाने पर होता है। युनीसेफ के हिसाब से, विश्व में होने वाले बाल विवाहों में से 40 प्रतिशत तक सिर्फ •ाारत में होते हैं। लिंगानुपात से है संबंध राष्टÑीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की ओर से कहा गया है कि हरियाणा में दुष्कर्म की घटनाएं राज्य में लिंगानुपात में कमी तथा लड़कियों के प्रति समाज के नजरिए को प्रदर्शित करती हैं। आयोग की अध्यक्ष शांता सिन्हा के अनुसार, लैंगिक तथा जातिगत •ोद•ााव हरियाणा में खराब लिंगानुपात में प्रदर्शित होते हैं। सामाजिक संगठनों तथा सरकार की ओर से मिलकर इस दिशा में कारर्वाई करने की जरूरत है, ताकि लड़कियों के खिलाफ इस तरह की हिंसा न हो। यूनीसेफ कस चुका है कमर संयुक्त राष्ट्र पहला ‘अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस’ मनाने की तैयारी में है, जिसमें बाल विवाह को खत्म करने पर फोकस होगा और •ाारत, बांग्लादेश तथा सोमालिया जैसे देशों में लड़कियों की जिंदगी पर इस मानवाधिकार उल्लंघन के होने वाले प्र•ााव पर प्रकाश डाला जाएगा। यूनीसेफ के जेंडर एवं राइट्स सेक्शन की ओर से कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र और इसके सहयोगी दल अब तक हुई प्रगति और जारी चुनौतियों पर प्रकाश डालने के लिए एक साथ आ रहे हैं। यूनीसेफ ने कहा कि •ाारत दुनिया के उन देशों में है, जहां बड़ी संख्या में लड़कियों की शादी 18 वर्ष की उम्र से पहले हो जाती है, लेकिन यहां राष्ट्रीय स्तर पर बाल विवाह की दर में कमी आई है और वर्ष 1992-93 में 54 फीसदी से घटकर 2007-08 में यह लग•ाग स•ाी राज्यों में 43 फीसदी पर आ गई है। बदलाव की दर धीमी है। यूनीसेफ के आकलन के मुताबिक, 20 से 24 वर्ष उम्र के बीच करीब सात करोड़ युवतियों की शादी 18 वर्ष से पहले हो जाती है और इनमें 2.3 करोड़ की शादी 15 वर्ष की उम्र से पहले ही हो जाती है।

‘मलाला’ होने का मतलब


आखिर चरमपंथी किसी मलाला को क्यों मार देना चाहते हैं? क्या सिर्फ इसलिए, क्योंकि वह चुनौती देती है और दुनिया उसकी बात सुनने लगती है। मलाला की दशा उस मलालाई जैसी न हो, जो 18 साल की उम्र में ब्रिटिश फौजों से लड़ते हुए शहीद हो गई थी। इससे ज्यादा मलाला के लिए और क्या दुआ हो सकती है? पाकिस्तान और विशेषकर वहां की अलगाववादी शक्तियों के आगे पूरा ‘सिस्टम’ बेबस नजर आता है। उन परिस्थितियों में एक लड़की ने आवाज बुलंद की, उम्मीद जगाई। लोगों के लिए एक नई ‘आशा’ बनी मलाला यूसुफजई से तालिबानी खुश नहीं थे, क्योंकि वह लोगों को ‘हक-ओ-हुकूक’ के लिए जगा रही थी। लिहाजा, बीते दिनों पाकिस्तान की बेटी मानवाधिकार कार्यकर्ता और लड़कियों में शिक्षा की अलख जगाने वाली 14 साल की मलाला यूसुफजई पर तालिबान ने गोली दागी। अब कहा जाता है कि यह गोली मलाला के साथ ही ‘इसलाम’ के बुनियादी उसूलों पर •ाी चली है। उल्लेखनीय है कि इसलाम लड़कियों को शिक्षा हासिल करने का अधिकार देता है, जिसे रोकना किसी •ाी सूरत में जायज नहीं है। कौन है मलाला? पाकिस्तान की स्वात घाटी में बच्चों के अधिकार के लिए लड़ने वाली मलाला युसुफजई का जन्म 1998 में मिंगोरा में हुआ था। उन्हें बच्चों के अधिकारों के कार्यकर्ता होने के लिए जाना जाता है। मलाला ने महज 11 वर्ष में ही तालिबानी गिरोह से लोहा ले लिया था। 2009 में लड़कियों के लिए शिक्षा अ•िायान की शुरुआत की। मलाला पहली बार सुर्खियों में वर्ष 2009 में आईं, जब 11 साल की उम्र में उन्होंने तालिबान के साए में जिंदगी के बारे में ‘गुल मकाई’ नाम से बीबीसी उर्दू के लिए डायरी लिखना शुरू किया। मलाला के अनुसार, तालिबान के आने से पहले स्वात घाटी एकदम खुशहाल ती, लेकिन तालिबान ने आकर वहां लड़कियों के करीब 400 स्कूल बंद कर दिए। उस दौर में मलाला ने डायरी में लिखा, ‘तालिबान लड़कियों के चेहरे पर तेजाब फेंक सकते हैं या उनका अपहरण कर सकते हैं। इसलिए उस वक्त हम कुछ लड़कियां वर्दी की जगह सादे कपड़ों में स्कूल जाती थीं, ताकि लगे कि हम छात्र नहीं हैं। अपनी किताबें हम शॉल में छुपा लेते थे।’ और फिर कुछ दिन बाद मलाला ने लिखा था, ‘आज स्कूल का आखिरी दिन था, इसलिए हमने मैदान पर कुछ ज्यादा देर खेलने का फैसला किया। मेरा मानना है कि एक दिन स्कूल खुलेगा, लेकिन जाते समय मैंने स्कूल की इमारत को इस तरह देखा, जैसे मैं यहां फिर कभी नहीं आऊंगी।’ सच तो यह भी है कि मलाला का कामकाज तालिबानी कट्टरपंथियों की आंखों में चु•ा रहा था। 9 अक्टूबर को उसे उग्रवादियों ने गोली मार दी। अंतरराष्ट्रीय बच्चों की वकालत करने वाला समूह ‘किड्स राइट फाउंडेशन’ ने ‘अंतरराष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार’ के लिए चयनित प्रत्याशियों में मलाला का नाम भी शामिल किया था। वह पाकिस्तान से पहली लड़की है, जिसे इस पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। मलाला की दास्तान दिखाती है कि उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान की स्वात घाटी में तालिबान के जाने के बाद भी, एक 14 वर्षीय लड़की की जिंदगी कितने खौफ, दर्द और कठिनाईयों से •ारी है! नाम का भी है प्रभाव मलाला युसुफजई स्वात घाटी के बहुसंख्यक युसुफजई कबीले से ताल्लुक रखती है। स्वात घाटी के जिस मिंगोरा में मलाला का जन्म हुआ, वह मिंगोरा तालिबान का गढ़ रहा है। उसके पिता मिंगोरा में एक निजी स्कूल संचालित करते हैं। जब मलाला का जन्म हुआ, तो उसके पिता ने मलाला का नाम पश्तो की मशहूर लोक गायक और लड़ाका ‘मलालाई’ के नाम पर रखा जो 1880 में ब्रिटिश फौज से मैवन्द की लड़ाई की ऐसी बहादुर सिपाही थी, जिसने 18 साल की उम्र में अफगान झंडा उठाकर ब्रिटिश हुक्मरानों के खिलाफ हल्ला बोल दिया था। मैवन्द की इस लड़ाई में मलालाई शहीद हुर्इं, लेकिन पूरा पख्तून समाज आज •ाी उस मलालाई को अपना प्यार देता है। मलाला का नाम भी अगर पख्तून नौजवान मलालाई से मिलता जुलता है, तो उसका काम भी मलालाई से कहीं कमतर नहीं है! मिल रहा है अपार समर्थन मलाला के पक्ष में जिस तरह से पाकिस्तान का बच्चा-बच्चा उठ खड़ा हुआ है, उससे पता चलता है कि वे तालिबान के उस इसलाम से लोग कितना आजिज आ चुके हैं, जो कहीं से भी इसलाम का हिस्सा नहीं है, लेकिन वह हिंसा के बल पर उसे जबरदस्ती लोगों पर थोपना चाहते हैं। अच्छी बात यह है कि पाकिस्तान के 50 से ज्यादा मौलवियों ने तालिबान की गैर-इसलामी हरकतों के खिलाफ फतवा जारी करके जारी अपनी जिम्मेदारी का सबूत दिया है। उलेमा मान चुके हैं कि हमला सरासर गैर-इसलामी है। सवाल यह है कि जब खुद मुसलमान इसलाम की तौहीन करें, तो उसका विरोध शिद्दत के साथ क्यों नहीं होता? मलाला पर गोली इसलिए चली, क्योंकि वह इसलाम के बुनियादी उसूल, शिक्षा ग्रहण करने के लिए लड़कियों को जागरूक कर रही थी। यह बात तालिबान को मंजूर नहीं थी। लड़ाई की पुरातन परंपरा है यहां करीब 610 वर्गमील में फैली स्वात घाटी को पाकिस्तान का सिंगापुर भी कहा जाता है। अपनी खूबसूरती के लिए दुनिया के नक्शे पर मौजूद स्वात घाटी में निवास करनेवाले कबीले पिछले करीब दो हजार साल से लड़ रहे हैं। हिन्दुकुश पहाड़ी के एक हिस्से में बसे गांधार प्रदेश के इस इलाके के परंपरा और इतिहास दोनों में सिर्फ लड़ाई ही है। मौर्य और अशोक के शासनकाल के बाद स्वात घाटी में कुछ समय के लिए बौद्ध धर्म का व्यापक प्र•ााव जरूर हुआ, लेकिन इसकी मूल ‘लड़ाका’ संस्कृति से इसे कभी मुक्ति नहीं मिल सकी। एक हजार इस्वी में मुसलमानों के आक्रमण के बाद तो यहां जंग का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ, जो आज तालिबान के रूप में जारी है। कई जानकार कहते हैं कि हो सकता है अमेरिका की खुफिया एजंसी सीआईए ने जब अफगानिस्तान में रूस को परास्त करने के लिए योजना बनाई हो, तो जान बूझकर इस इलाके में ही तालिबान लड़ाकों को तैयार करने का जिम्मा सौंपा हो। पाकिस्तान के हुक्मरान और अमेरिका दोनों ही आज के इस नार्थ वेस्ट फ्रंटियर इलाके के लड़ाका स्व•ााव से •ाली भीति परिचित रहे होंगे। शायद इसीलिए बड़े पैमाने पर पाकिस्तान में जिस तालिबान लड़ाकों को तैयार किया गया, वे इसी नार्थ वेस्ट फ्रंटियर से आते हैं, जिसमें वह स्वात घाटी भी हैं, जहां की मलाला युसुफजई को तालिबान चरमपंथियों द्वारा गोली मारकर मारने की कोशिश की गई। उठ रहे हैं सवाल वरिष्ठ पत्रकार वुसतुल्लाह खान के अनुसार, ख़्वाह-मख़्वाह कोई किसी बच्चे या बच्ची पर कैसे हमला कर सकता है? यकीकन कोई न कोई वजह जरूर होगी, और वजह भी कोई ऐसी वैसी नहीं, बल्कि बहुत ही ठोस। •ाला ऐसे कैसे हो सकता है? ़तो फिर मलाला यकीनन अमरीका की जासूस है या रही होगी! मोमिन (मुसलमान) कभी बिना सबूत बात नहीं करता। क्या आपने तालिबान के प्रवक्ता का यह बयान नहीं पढ़ा कि मलाला ने एक बार कहा था कि वह ओबामा को पसंद करती है। इससे बड़ा भी कोई सबूत चाहिए मलाला के अमरीकी एजेंट होने का? वुसतुल्लाह ने अपने एक लेख में लिखा है कि कौन कहता है कि 14 साल की बच्ची मासूम होती है। अगर 14 साल का लड़का माता पिता की खुशी और अपनी मर्जी से धर्म को पूरा पूरा समझ कर बुराई को मिटाने के लिए बिना जोर जबरदस्ती आत्मघाती जैकेट पहनने का स्वतंत्र फैसला कर सकता है, तो मलाला कैसे अभी तक बच्ची है? क्या बच्चियां इस तरह चटर पटर मुंहफट होती हैं? बच्ची है, तो खिलौनों और गुड़ियों की जिÞद क्यों नहीं करती? बस जहरीले पाठ्यक्रम की किताबों, कॉपी, पेन्सिल की बात क्यों करती है? क्या मलाला की उम्र की बच्ची गला फाड़-फाड़ के जोर-जबर और बुनियादी स्वतंत्रता जैसे पेचीदा विषयों पर अपनी राय देती है या कभी इस सेमीनार में, तो कभी उस कार्यक्रम में या कभी धमाकों की जगह जाकर मोमिनों पर कीचड़ उछाल कर गैरों की तारीफें और तमगे वसूल करती फिरती है? 14 वर्षीय शाहीन कुफ्र के किले पर हमला करे तो गलत और गुमराह 14 वर्षीय मलाला अपने विचारों और •ााषणों के जरिए बारूद से मोमीनों पर रात में छापे मारे तो हीरो। वाह जी वाह!