रविवार, 26 दिसंबर 2010

लाहौर छूटा अब दिल्ली न छूटे!

- सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक


अमृता रेडियो धीमा कर, कैसे-कैसे गीत लगा देते हैं आकाशवाणी वाले।Ó कोई नब्बे बरस की कौशल्या, झुकी कमर, हाथ में लाठी लिए, धरती पर लाठी की खट-खट-खट की ध्वनि गीत में ताल-सी बज उठती है, जैसे कोई रेडियो को थपथपा रहा है।
'क्या कहा दादी मां? ये गाने रेडियो में नहीं दूरदर्शन पर आ रहे हैं। दादी मां! टीवी पर।Ó करीब चालीस बरस की पोती, अमृता ने अपनी दादी को बताया।
'हां, मर जानी! जैसा नाम तैसा काम। मुझे समझ में नहीं आता तुम्हारा दूरदर्शन।Ó मुंहफट कौशल्या ने पीढिय़ों के बीच के अंतर को समझाने के लिए प्रतिक्रिया व्यक्तकी।
'दादी मां! अब पुराना जमाना नहीं रहा। रेडियो के साथ अब टीवी देखने का प्रचलन है। आधुनिक युग है दादी मां, माडर्न टाइम।Ó अमृता ने दादी को छेड़ते हुए कहा।
'हां-हां, मालूम है। मैं भी बहुत माडर्न थी अपने जमाने में। चुनरी वाले लाहौरी ल_े की सलवार-कुर्ता पहनती थी। जो मेरे अंदर दिखता था, वही बाहर दिखता था। तेरे दिल्ली वाले तो दिल की बात जुबां पर ला ही नहीं पाते। पतलून पहले खिसक जाती है। शउर ही नहीं है। हुंह!Ó तुनककर दादी सोफे पर लुढ़क जाती है।
गाने खत्म होते ही टीवी पर खबरें आनी शुरू हो गईं। 'लाहौर के अनारकली बाजार में बम फटने से सत्रह लोगों की जान गई। इस धमाके के पीछे आतंकवादियों का हाथ था। लाहौर में कफ्र्यू लगा दिया गया है। एक आतंकी पकड़ा गया है।Ó दादी के मन में मानो आग लग गई। अपना शहर जलता देख किसे दुख नहीं होता। दादी ने कहा, 'साडे लाहौर विच बम। हाय राम! यह क्या हो रहा है? क्या होगा इस दुनिया का, जिधर देखो उधर बम? बम न हुए पटाखे हो गए। ये कलमुंहे आतंकी चाहते क्या हैं?Ó गहरी सांस भरकर कौशल्या ने कहा।
'जानती हो अमृता! मेरे बाऊजी की अनारकली बाजार में कपड़ों की बहुत बड़ी दुकान थी। हम लोग तांगे से लाहौरी गेट से अनारकली बाजार में प्रवेश करते थे। पान बाजार, कपडों का बाजार, किताबों की दुकानें, फूलों की दुकानें, किराने की दुकानें। न जाने क्या-क्या मिलता था वहां। चल टीवी की आवाज तेज कर जरा।Ó
कौशल्या आंखें बंद करके गौर से सुनते हुए ध्यानमग्न हो गई। कौशल्या लाहौर की गलियों में पली और बड़ी हुई थी। लाहौर में वह अपनी सखियों के साथ सावन के झूले झूलती, लोहड़ी और बैसाखी मनाती, गिद्दा डालती, ऐश करती। उसे चांद, सुल्ताना, शबनम, रज्जो, फूलन और सितारा के संग गुड्डे-गुडिय़ों काब्याह रचाना याद है और वही शहर बेहाल हो रहा है।
देश का बटवारा क्या हुआ, कौशल्या का परिवार ही बट गया। उसके दो बेटे रतन और नरेश लाहौर में ही रह गए थे। वह छोटे बेटे केवल को लेकर जैसे-तैसे दिल्ली पहुंची थी, उसी की बेटी है अमृता। कौशल्या की हालत उस नारी जैसी थी, जिसके दोनों पांव जल चुके हों। बटवारे की आग का अलाव अभी भी सीमाओं पर जल रहा है। लाहौर में उसकी स्थिति जंगल के पशु-सी थी, जिसमें भीषण आग लगी हो और जान बचाना मुश्किल था। दादी-पोती टीवी पर नजर गड़ाए थीं, तभी दरवाजे की घंटी बजी। अमृता ने दरवाजा खोला। पड़ोस की कमला ने आते ही कहा, 'लाहौर में आतंक की आग लगी है।Ó
'हां, मौसी जी, बड़ी बुरी बात है।Ó अमृता ने हामी भरी। 'इसमें क्या बुरी बात है? लाहौर में आग लगी है, कोई दिल्ली में तो नहीं लगी है।Ó कमला ने आक्रोश जताया।
अमृता संयमित होकर बोली,'मौसी जी, तुसीं जो कह रहे हो, वो तो हुई इक गल्ल, पर तुसीं सोचो, जे इक पड़ोसी के यहां आग लगेगी, तो दूसरे को तो दु:ख होगा ही। फिर आग, पानी और आतंक का क्या भरोसा?Ó अमृता ने कमला को बैठने के लिए स्टूल आगे बढ़ाते हुए कहा।
'सीमा पार तो हमारे दुश्मन हैं, फिर तुम्हारी हमदर्दी मुझे समझ नहीं आ रही।Ó कमला का गुस्सा अभी ठंडा नहीं हुआ था।
'मौसी जी, तुसीं ध्यान से सुनो। आज जो समस्या सीमा पार की है, वह हमारी भी समस्या है। आज स्थानीय समस्या वैश्विक समस्या भी है। आज ग्लोबलाइजेशन का दौर है मौसी जी।Ó अमृता ने प्रभाव डालने की पूरी कोशिश की। ग्लोबलाइजेशन तो सभी समझते हैं।
'वह तो ठीक है, पर दस्सो असीं की करिए?Ó मानो कमला ने अमृता के तर्क के आगे हथियार डाल दिए हों। कमला ने टीवी पर नजर डालते हुए कहा, 'देख, यही आतंकी पकड़ा गया है। आवाज तो तेज कर।Ó
अमृता ने आवाज तेज की। सभी ध्यान से टीवी देखने लगे। समाचार आ रहे थे 'आतंकी ने बताया कि उसे आतंकवादी शिविर में बताया गया था कि यदि वह हमले करेगा, तो उसे जन्नत में जगह नसीब होगी और वहां कई कुंआरी लड़कियों से ब्याह होगा। हमले के लिए उसके परिजनों को पांच हजार डॉलर दिए जाएंगे।Ó
टीवी सुनकर कौशल्या बोली, 'साला, अपनी मां को अनाथ और विधवा करके स्वर्ग जाएगा। मुझे मिल जाए, तो पहले मैं सोटी से उसका इलाज करूंगी। घुमाकर ऐसे मारूंगी कि वह कुछ नहीं कर पाएगा। मुझसे पूछो कैसे सारा जीवन अपने दो बेटों के बिना बिताया। न जाने कैसे होंगे वे? बड़ा आया बंदूक और बम चलाने वाला। मेहनत-मजूरी करके, हल चलाकर कुछ पैदा करके इज्जत की जिंदगी जिए, तब मैं जानूं। ऐसे ही आबादी ज्यादा और साधन कम हैं। आम आदमी के लिए गुजारा करना मुश्किल है। ये अधर्मी कैसे फुसलाते हैं भोले-भाले बच्चों को। ये धर्मी हैं या पाखंडी? आदमी की शक्ल में चांडाल। राम! राम!Ó कौशल्या न जाने क्या बोलती रही।
'दादी, काहे को अपना पारा हाई करती हो। आपका ब्लड प्रेशर बढ़ेगा, हम सब परेशान होंगे।Ó अमृता ने कहा।
'अमृता! तू नहीं जानती। इन युवा आवारों, कामचोरों को कभी फुसलाकर और कभी जबर्दस्ती, धर्म और न जाने कैसे-कैसे सब्जबाग दिखाकर आम जनता का खून चूसने छोड़ देते हैं। और ये अपने भाई-बहनों का कत्ल करने से भी नहीं हिचकते।Ó कौशल्या के सीने में आज भी आग है।
'दादी! जानती हो, सीमाओं पर सेना की हलचल होने लगी है। हे भगवान! कहीं युद्ध न छिड़ जाए।Ó अमृता ने टीवी पर चल रहे समाचार की ओर संकेत किया। 'फिर हमारे मुल्क हथियार खरीदेंगे। आधी जनता तो पहले से ही बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य की चिंता में खप रही है। ऊपर से हथियार खरीदने में जनता का वह पैसा लगेगा, जो शिक्षा और स्वास्थ्य पर लग सकता था।Ó कौशल्या बुद्धिजीवी की तरह बातें कर रही थी।
'दादी मां! तुम्हें नेता होना चाहिए।Ó अमृता ने व्यंग्य में कहा।
'बस चुपकर। सभी नेता बन जाएंगे, तो घर कौन संभालेगा। साडा लाहौर वाला घर छूट गया। बड़ी मुश्किल से दिल्ली में घरौंदा बनाया है।Ó कौशल्या अमृता के सिर पर हाथ रखते हुए बोली।
अब कमला बोली, 'छोड़ो भी कौशल्या लाहौर की बातें। हमारी दिल्ली...चांदनी चौक सबसे अच्छे हैं। हम मरते दम तक यहां रहेंगे। क्या कमी है हमारी दिल्ली में? फिर मिलेंगे, अब मैं चलती हूं। दूध लाना है।Ó कहकर वह चलने को हुई।
कमला की बातों से सहमति जताते हुए कौशल्या बोली, 'कमला, लाहौर जरूर छूट गया, पर दिल्ली नहीं छोड़ूंगी, चाहे मेरी जान ही क्यों न चली जाए।Ó
अमृता बोली, 'ऐसा नहीं कहते दादी मां...Ó
'मौसी, जरा रुको सरसों का साग बना है। बस मक्की की रोटी सेंकनी है। जानती हो, दादी ने बनाया है अपने लाहौरी हाथों से।Ó
कमला ने जवाब दिया, 'नहीं-नहीं, अब मैं चलूंगी। सुनो तुम अपना बर्तन भी दे दो। मैं दूध लेने जा रही हूं।
'हां मौसी! क्यों नहीं, पर मक्की की रोटी मत भूलना मौसी जी...Ó ॥॥॥



सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोकÓ पिछले 20 बरसों से नार्वे से हिंदी-नार्वेजीय भाषा की पत्रिका स्पाइल दर्पण का संपादन कर रहे हैं। वह हिंदी के सुपरिचित कथाकार है। प्रवासी लेखकों में अग्रणी 'शरद आलोकÓ ने 'नंगे पांवों का सुखÓ और 'नीड़ में फंसे पंखÓ (कविता संग्रह) और 'अर्धरात्रि का सूरजÓ और 'प्रतिनिधि प्रवासी कहानियांÓ (कहानी संग्रह) हिंदी साहित्य को दिए हैं। दो नार्वेजीय काव्य संग्रहों की रचना करने के अलावा हेनरिक इबसेन के नाटकों और स्कैंडिनेवियाई साहित्य का हिंदी में अनुवाद भी आपने किया है।

शनिवार, 25 दिसंबर 2010

दूसरी आजादी के नाम पर दूसरी बरबादी आ रही है

:- कमेलश्वर


पुस्तकों की दुनिया की कुछ मजेदार खबरें इधर मिली हैं। दूसरी आजादी के दौरान देशभर की सभी भाषाओं में कुल 19659 किताबें छपी हंैै। यह संपूर्ण क्रांति न सही, संपूर्ण आजादी के दौरान हमने हासिल किया हैै। तब जबकि विचारों पर अंकुश था, सेंसर लागू था और घोषित आपातकाल चल रहा था, उस समय देशभर में, सभी भाषाओं में, 21,922 पुस्तकें छपी थी । यानि 2,263 किताबें ज्यादा छपी थीं। लगता है कि यह आजादी आते ही हमारी मानसिक भूख एकाएक बहुत कम हो गयी, या वैचारिक आजादी पाते ही देश ने लिखना और सोचना कम कर दिया है।

दूसरी आजादी के दौरान (सनï्ï 77-78 में) हिन्दी की 2,382 पुस्तकें छपी हैं और अंग्रेजी की 9,922। इस देश में जिसमें 14-15 करोड़ उर्दू भाषी हैं, उनके लिए कुल 154 किताबें छपी हैं। बिहार - जहां से लोकनायक की संपूर्ण क्रांति मार्च सन्ï 77 में चली थी, वह पता नहीं आरा, बलिया या जौनपुर में कहां अटक गई ? उस संपूर्ण क्रांतिकारी बिहार में सन्ï 77-78 में कुल 378 किताबें छपी हैैं जबकि उसके मुकाबले केरल जैसे छोटे प्रदेश ने 870 किताबें छापी हैं और पंजाब में 516 ।

वह प्रदेश जहां संपूर्ण क्रांति की शीत लहर इस समय लहरा रही है, यानि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और हिमाचल - इन सब प्रदेशों ने मिलकर कुल 4,270 किताबें छापी हैैं। पुस्तकों - यानि विचारों की दुनिया का यह हाल हमारी जनता सरकार के दौरान रहा है। इसी सरकार के दौरान अंग्रेजी में जो 9,922 पुस्तकें छपी हैं , वे ज्यादातर आपातकाल के बारे में लिखीा और लिखवायी गयी हैैं। आपातकाल के बारे में जितनी पुस्तकें अंग्रेजी में आई हैं, वे सब मुनाफे की दृष्टि से प्रकाशकों ने नहीं छापी हैें, बल्कि आपातकालीन विवरण छाप-छाप कर प्रकाशकों ने दूसरे मुनाफे पर नजर रखी है।

दूसरी आजादी के दौरान यह दूसरा मुनाफा बहुत अहम हो गया है। हमारे जितने साहित्यकार, कलाकार, विचारक , लेखक , कवि, पत्रकार इस दूसरी आजादी की तरफ भागे थे - उन्हें इस दूसरे मुनाफे का उतना पता नहीं था। हमारा पढ़ा-लिखा तबका तो दूसरी आजादी के लिए भागा ही था, पर उन्हीें के साथ कुुछ ऐसे लोग भी दौड़ रहे थे, जिनके लिए आजादी अहम नहीं थी- मुनाफा अहम था। अब खासतौर से हिन्दी में वे लोग भी पछता रहे हैं जो आजादी के लिए दूसरी बार दौड़े थे। आजादी के लिए दौडऩा गलत या बुरा नहीं है, पर हर बार आजादी गलत क्यों हो जाती है - सोचने का मसला यह हैै? यह दूसरी आजादी (हम जो आजादी से सहमत, पर दूसरी आजादी वाले कुुछ तत्वों से पूर्णत: असहमत) , इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ जयप्रकाश, कृपालानी, मोरारजी, बालासाहब देवरस, तारकुण्डे, पालकीवाला, चरणसिंह नाम के व्यक्तियों के लिएउ नहीं लाए थे -पूरे देश के लिए लाए थे।

देश का वह पूरा हिन्दी प्रदेश और पंजाब, जो दूसरी आजादी का गढ़ है- वह इस आजादी के बाद कुल 4,720 किताबें छापता है- 38 करोड़ लोगों के लिए। जबकि पश्चिम बंगाल जैसा सी.पी.एम. शासित राज्य अकेले 2,978 पुस्तकें छापता है। यह हाल है बुद्घिजीवी की दुनिया का।


एक तरफ राष्टï्रीय पुस्तक ग्रंथागार कलकत्ता यह सूचना देता है और हम सोचते रह जाते हैं कि आखिर दूसरी आजादी में इस देश के साहित्यिक और सांस्कृतिक माहौल को कौन-सा लकवा मार गया हैै?
इस लकवे की सूचना बम्बई पुलिस की एक रिपोर्र्ट ने दी है। बम्बई पुलिस की सूचना के मुताबिक इस समय देश में विदेशी अश£ील साहित्य की बाढ आयी हुई हैै। सन्ï 77-78 में अनुमानत: अंग्रेजी का विदेशी अश£ील साहित्य जो इस देश के तटों पर उतरा है - उसकी संख्या करीब 2 लाख पुस्तकें हैं।
अब सोचिए कि पूरा देश मिलकर 77-78 में कुल 19,659 किताबेें छापता है और उसी देश में विदेशी अश£ील साहित्य की 2 लाख किताबें बिकने के लिए आती हैं। इन किताबों में पत्रिकाएं भी हैें - प्ले ब्वाय, प्लेयर, स्कू, न्यूड आदि। पत्रिकाओं की कीमत प्रति कॉपी 90 रूपये से लेकर 150 रूपये तक है। सैक्स एलबम - जो करीब 50,000 की संख्या में, इस एक वर्ष में विदेशों से, आये हैं उनकी बिक्री की कीमत 50 रूपये प्रति कॉपी है।
इतना ही नहीं - यह कागजी सोना एक बार बिककर खत्म नहीं हो जाता, यह बार-बार बिकता है। इसका बाजार समाप्त नहीं होता । ये किताबें-पत्रिकाएं और एलबम टैक्सियों की तरह किराये पर भी चलते हैं।
भारतीय बुद्घिजीवी इन टैैक्सियों को नहीं देख पाते । उन्हें इस बात का भी अंदाज नहीं है कि पुस्तकों को खरीदने की आर्थिक क्षमता क्या खरीद रही है?
दूसरी आजादी के अलमरबरदार बुद्घिजीवियों को बखूबी पता है कि अब उनकी आपातकालीन किताबें भी नहंी बिकती । मनोहर मलगांवकर जैसे गंभीर अंग्रेजी लेखक की पुस्तक - शालीमार - जो कवर पर पिस्तौल लेकर आई थी, वह भी नहीं बिकती यहां, इस देश में वह सब बंद बाजारों में बिक रहा है, जो खुले बाजार में बिकनेवाले भारतीय साहित्य के बाजार का पैसा जोंक की तरह चूस जाता हैै।
आजादी बड़ी चीज है। लेकिन बरबादी भी मामूली चीज नहीं है। आजादी में कौन-सी बरबादी हमारे हाथ लग रही है - अगर इदसे हमने न देखा तो आजादी तो कभी भी काफूर की तरह उड़ जाएगी, सिर्फ बरबादी हमारे हाथ रह जायेगी। आजादी के नाम पर जो तमाशा इस वक्त देश में चल रहा हैै, उसे अब बन्द होना चाहिए, कोई एक इंदिरा गांधी चिकमगलूर से जीत जाती है तो इस देश के घटिया बुद्घिजीवी और दूसरे दर्जे के न्यायधीश और नेता चीखने लगते हैें - आजादी खतरें में है। और जब इंदिरा गांधी नाम की एक लोकसभा सदस्य लोकसभा से बर्खास्त कर दी जाती है तो ये घटिया बुद्घिजीवी, दूसरे दर्जे के न्यायधीश और नेता तालियां बजाने लगते हैैं - आजादी बच गई।
आजादी के इस घटिया तमाशे को अब बन्द होना चाहिए। सुरेश कुमार, संजय गांधी और कांति देसाई जैसे लोगों को जनता के न्याय के लिए खुला छोड़ देना चाहिए ताकि इस देश की जनता तो सलूक उनके साथ करना चाहती है - कर सके।
हर गलत चीज तो जब तक राजनीति का संरक्षण प्राप्त होता रहेगा, तब तक सही काम के लिए वक्त ही नहीं मिलेगा। संजय, सुरेश और कांति देश की समस्याएं हैं - वे देश के भविष्य नहीं हैं।
देश का भविष्य अब टूटी - फूटी पार्टियां तय नहीं करेंगी - राजनीतिक पार्टियों ने तो देश को तोड़ ही दिया है, कादिर मियंा का बयान आप पढ़ ही चुके हैं, अब उसे जोडऩेवाली शक्ति और कोई है तो इस देश का साहित्य और संस्कृति है। इसलिए जरूरी है कि साहित्या और संस्कृति के क्षेत्र में जो बन्द बाजार गर्म है, दूसरा मुनाफा कमाने का जो दौर चल रहा है और दूसरी आजादी के नाम पर जो दूसरी बरबादी आ रही है- इसे रोका जाये।
देश के नेता तो कौमी झण्डे के कफन लपेटकर तोपों की सलामी लेते हुए किसी घाट या वन की समाधि में आराम से सो जायेंगे - पर यह दौर इतिहास में - संस्कृति , कला और साहित्य की समाधि के रूप में याद किया जाये, इससे पहले कम से कम उन लोगों को तो जागना चाहिए जो इस देश को समाधि के रास्ते पर नहीं जाने देना चाहते ।

(यह लेख, करंट, साप्ताहिक, बम्बई, 13.01.1979 से सादर साभार)

रविवार, 12 दिसंबर 2010

The descendents of farmers will never be landless!


Bhupendra Singh रावत


The rapid use of agricultural land for the sake of growth of industrialization, Special economic Zone (SEZ), web of roads, express high ways and dams has not only been changing the use of agricultural land but also been a cause of limiting land for agriculture. The land which was witnessed of farmers who has been producing grains for keeping the whole mankind alive the ancestors of those are now landless and people who are dependent on agriculture are being jobless. The growing population in our country, world wide as well and limiting agricultural land has been a great cause for food crisis.
Now our country is entering in to 60 decades of freedom but still when any private and government planning take root from the land at the name of development of country and nation, the land which a farmer has been cultivating since ages then the ancestors of farmer not only get landless but being jobless makes them think of what to do and where to go. Can't we adopt and develop a Model for the development of our country by the way which ancestors of farmers can get rid of being landless and jobless as well?The beauty of our nations democracy lies in the fact that the future ancestors of politicians in to politics, future of business mans ancestors in to business and the same goes for industrialist s are secured but the pain of the other side is that the future of ancestor of a framer get puzzled only with the planning of the use of land. This is enough to clear that the farmers of our country have only right of cultivating in the form of slaves. On the paper, changes of use of land in the course of planning of any road, SEZ, residential or industrialization, the rights of farmer get eroded with the amount they get as compensation.The farmers are against of such kind of development models .There had many lives been sacrificed by farmers against the issued planes in Orissa ( Kashipur 1998 ), Kaling Nagar (January 2006 ) , Singoor ( west bengal november 2006 ) , nandi gram ( march 2007 ) Greater Noida (Ghodi bacheda (August 2008) , Sompat ( andhra prudish ( July 2010 ) ,and Jirakpur village ( U.P 2010 ).After a Police firing which took lives of two kids and a person during a movement around express highway near to Jirakpoor many higher authority of different politics parties got indulged in to a race of announcements of modifying the '' bho-arzan canon 1984 and struggling towards it .
The outcome of this race resulted when Ajeet Choudhary Singh who has been indulge in to politics on the basis of farmers in UP announced that he will protest on 26 th of august 2010 at parliament. After this announcement took place the chief minister of UP Mayawati , Ramwilas Paswan ( Lok Jan skate Party ) ,vampanthi along with some parties of South India had also declared their support towards them .
whatever amendment will take place after freedom of 63 years it should be in the favour of farmers rather than companies who had been serving the whole world by the way of agriculture and keeping the human species alive. There is a group who has been active in the movement of ’’ bhumi bachao '' in NCR and struggling towards getting a national acknowledgement on this issue so that the matter will be taken into consideration in future and any changes which will take place in the planning of land use wont effect the future of farmers and their families as well .This can be done by amendment in the Law of 19 84 land acquisition in common of Government and farmers.Existing Law and Development Lawin present land acquisition by Government takes place under the Law of Land acquisition Law 1984 .In the process of acquisition if anyone has any objection can raise it under the provision 4, as initial notification ,under Provision 5A the issue gets opinion n resolved and under the provision 6 it gets final announcement. After this, to claim the compensation amount an issue get raised under provision 9 and results get announced under the provision 11.When these compulsory processes get settled down the land gets acquired by the Government.In this whole process the owner of the and the people who get affected by this has only one chance to raise their voice against it and that is answering back to the provision 4. But this right for people does not have any meaning as land acquisition takes place after raising objections as well. Court has also not set the limitations for using this right which is logical under Eminent Domain.So, the vary first demand which farmers can put is that, any proposed planning under the provision of '' 4'' and before having any label of being right and wrong the matter or the planning should go under the process of opinions and ideas of '' Gram Sabha '' .By this way the whole village will get a chance of putting their opinion on the issue. The provision 4 under the notification should itself say that the land which is marked for the planning would be developed under in common of '' farmer - government '' or farmer private area.
After that, under the operation of provision 5 A, by the way of capable perquisite an open people opinion plate form should be formed. In this way people will get aware of the conditions in the changes of land uses along with they will also be capable of putting their common views.the condition should clearly be mentioned in the 6th provision under which any planning of land use got changed. The opportunity which has been provided in Provision - 9 can be used as a medium of giving the important conditions of the planning other forward steps. The result which will be announced under the provision -11 , can also include the conditions of agreement , in this way as a process agreement between development agencies ( private ) farmers , landless labours the setting of Land development conceptual constitution can take place under existing legislation system.
This participation can be governed in the following ways

1. Under the general intent of the project, allotting a special percentage of the land/houses/places for the vocational /developmental, income generating activities and the maintenance of the same. Through this they will become a part of the Project.

2. In place where people provide land and project agency makes the financial and technical arrangement, a joint venture should be started. In this venture, the people providing land will have a special shareholding.

3. The land requisition for developmental projects should include the land from the village council, the land for public use and governmental land. The landless villagers should be taken into account in the involvement with this land. Under the shareholding of the profits, the employment from the project, land for income generating activities and residential flats should be included.

4. A powerful agency must be established for the governance of these ideas between the developmental agency and the people giving out their land

5. The head of the district administration must ensure that the villagers are not being pressurized or cheated by the private agencies appointed for the purpose of acquisition of the land.

6. The requisition of the land should be done in such a way that the villagers are closely aware of the developmental activities of the project and the associated profits.

7. In an alternative to the participation, the following profits can be included
· Attractive compensation
· For the purpose, prior training and employment for one member of the family
· on project expenses
· Sufficient land for residence/land for starting a job
· An agreement for enforcement of a service/special work
· A shareholding in company's profit
· The partnership in lease of land is possible under the following provisions

1) The payment of premium while enforcement of lease
2) Yearly rent of the lease
3) The overview of the lease if it is about to be completed.

After 63 years of independence, Government of India is conspiring to amend the land acquisition law in such a way that on one hand the farmers will continue to lose their land and the landless villagers will also not be entitled for any profits and on the other hand it would also not be liable to rehabilitate the affected farmers, tribals and the labourers under the National Rehabilitation and Re-establishment Policy 2007.

Point to be noted is that If the government acquires agricultural land of 400 or more than 400 families, then only will the funds be allocated for the aforesaid policies to reinstate them. But after the draft of the amendment of land acquisition law, 1894 which is being brought up by UPA government comes to realization, the land of the farmers will be sold analogous to things sold in the market hall which will be bought by large companies through private agents because under this draft the companies will be entitled to buy 70 percent of the land directly from the land owners and only 30 percent of the land will be acquired by the government in the name of public welfare and made available to the companies.

In this situation, on one side 70 percent of the farmers whose land will be bought by the companies would not be rehabilitated and on the other side the 30 percent farmers whose land will be acquired by the government to make it available to the companies will not sum up to 400. Henceforth, regardless of the rehabilitation policy, government will not be liable for the rehabilitation of those farmers. Therefore the draft for the amendment of land acquisition law which the government is bringing up should be opposed vehemently.


शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

खास है ओबामा को लेकर उड़ने वाला विमान


दुनिया के सबसे ताकतवर शख्स माने जाने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति 6 नवंबर को भारत पहुंच रहे हैं। इस यात्रा में होने वाले समझौतों, राजनयिक साझेदारियों और कूटनीतिक चर्चा के अलावा एक बार फिर अमेरिका के राष्ट्रपति के भोजन, उनके यात्रा स्थलों की भी चर्चा हो रही है। अब बारी है उनके आने-जाने के साधनों की। बराक ओबामा एक बेहद खास विमान से भारत पहुंचेंगे। यह विमान है एयर फोर्स वन। आइए जानें कि एक खास शख्स को लेकर उड़ने वाले इस विमान की क्या खासियतें, अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा वहां की वायु सेना के जिस भी विमान में सफर करते हैं, उसे तकनीकी तौर पर 'एयर फोर्स वन' नाम से जाना जाता है। फिलहाल एयर फोर्स वन के बेड़े में बोइंग 747-200 बी सीरीज़ के दो विमान शामिल हैं। अमेरिका की वायु सेना ने इन जहाजों को जो कोड दिया है वह है वीसी-25 ए। दुनिया के सबसे ताकतवर शख्स को उनकी मंजिल तक पहुंचाने वाले यह विमान बेहद खास है। दरअसल, एयर फोर्स वन एक कॉल साइन है जो अमेरिकी एयर ट्रैफिक कंट्रोल के तहत सिर्फ अमेरिका के राष्ट्रपति के विमान के लिए तय है। यह परंपरा 1953 में तब शुरू हुई जब एक व्यवसायिक विमान अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति आइजेनहावर के विमान के हवाई क्षेत्र में दाखिल हो गया। अमेरिका के राष्ट्रपति को ले जाने के लिए कई विमानों का इस्तेमाल किया गया है। लेकिन 1990 से दो बोइंग विमानों वीसी-25ए का ही इस्तेमाल किया जा रहा है। यह बोइंग 747-200 बी सीरीज़ का विमान है। अमेरिका की वायु सेना अब इन दोनों विमानों को बदलने की योजना पर काम कर रही है। नए विमानों को सप्लाई करने की होड़ में सिर्फ बोइंग ही शामिल है। अमेरिका के राष्ट्रपति के लिए नया एयर फोर्स वन विमान 2017 में शामिल किया जाएगा। इन विमानों पर यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका लिखा हुआ है। साथ ही अमेरिकी झंडे की छाप और अमेरिका के राष्ट्रपति की मुहर भी इस विमान के बाहरी हिस्से में देखी जा सकती है।

इस विमान में हवा में ही ईंधन भरने की क्षमता है। एयर फोर्स वन की उड़ा क्षमता जबर्दस्त है। विमान के भीतर मौजूद इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों पर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों का कोई असर नहीं पड़ता है। इसके अलावा, एयर फोर्स वन में संचार की आधुनिकतम सुविधाएं मौजूद हैं, जिसकी खास बात यह है कि अमेरिका पर हमले की स्थिति में यह विमान मोबाइल कमांड सेंटर में तब्दील हो सकता है। विमान के तीन स्तरों में करीब 4 हजार वर्गफुट का क्षेत्रफल है, जिसका इस्तेमाल राष्ट्रपति और उनके सहयोगी करते हैं। इसमें राष्ट्रपति के एक सूट भी शामिल है। इस सूट में एक बड़ा दफ्तर, वॉश रूम और कॉन्फ्रेंस रूम शामिल है। एयर फोर्स वन में एक मेडिकल सूट भी है, जिसमें ऑपरेशन करने की सुविधा मौजूद है। विमान में राष्ट्रपति के साथ एक डॉक्टर हमेशा यात्रा करता है। विमान में दो फूड गैलरी हैं जहां एक बार में करीब 100 लोगों के भोजन का इंतजाम किया जा सकता है। इस विमान में अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ सफर करने वाले लोगों के लिए क्वॉर्टर भी है। इस विमान के आगे--आगे कई कार्गो विमान भी उड़ते हैं, जो आपातकाल या दूरदराज के इलाकों में राष्ट्रपति की जरूरतें पूरी कर सकें। एयर फोर्स वन के रखरखाव और संचालन का काम प्रेजिडेंशल एयरलिफ्ट ग्रुप करता है जो वाइट हाउस सैन्य दफ्तर का हिस्सा है...

अमेरिका के राष्ट्रपति अगर हवा में बेहद खास विमान से उड़ते हैं तो ज़मीन पर उनके सफर का इंतजाम भी कहीं से भी कमतर नहीं है। अमेरिका के राष्ट्रपति लिमो वन: द बीस्ट नाम की कार से चलते हैं। द बीस्ट एक लिमो कार है जिसमें अमेरिका के राष्ट्रपति चलते हैं। दुनिया में जहां कहीं भी राष्ट्रपति जाते हैं, यह कार उनकी सेवा में हाजिर रहती है। यह कार बेहद सुरक्षित है। कार का कोड नेम 'स्टेजकोच' है। लेकिन इसका वजन, वीलबेस और बंकर जैसी सुरक्षा इस कार को खास बनाती है। जनरल मोटर (जीएम) ने इसका निर्माण किया है। यह कार बराक ओबामा के शपथ ग्रहण समारोह के दिन, 20 जनवरी, 2009 से उनकी सेवा में है। हालांकि, सुरक्षा पहलुओं के मद्देनजर इस कार की कई खासियतें सार्वजनिक नहीं की गई हैं। अमेरिका के प्रोटेक्टिव ऑपरेशंस के सीक्रेट सर्विस ऑफिस के पूर्व सहायक निदेशक निकोलस ट्रोटा ने कहा, इस कार की सुरक्षा और संचार प्रणाली कोड आधारित है। जीएम और सीक्रेट सर्विस पर इस कार की देखभाल का जिम्मा है। कार में आधुनिक संचार सुविधाएं मौजूद हैं, जिसमें फोन, सेटेलाइट, इंटरनेट शामिल हैं। कार की कीमत करीब 1.35 करोड़ रुपये है। ओबामा की कार उनसे पहले अमेरिका के राष्ट्रपति रहे जॉर्ज बुश की कार कैडिलैक डीटीएस का आधुनिक संस्करण है। लिमो वन का वज़न सात से आठ टन है। कार में डीज़ल इंजन लगा है। कार में जीएम के मीडियम ड्यूटी ट्रक चेसिस का इस्तेमाल किया गया है। दरवाजों पर लगी धातु की चादर की मोटाई करीब आठ इंच है। हर दरवाजे का वजन तकरीबन बोइंग 747 विमान के केबिन के दरवाजे के बराबर है। गाड़ी के ऊपर सेना द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला आर्मर चढ़ाया गया है। इस आर्मर को बनाने में स्टील, एल्युमिनियम, टाइटेनियम और सेरेमिक जैसी धातुओं और पदार्थ का इस्तेमाल किया जाता है। कार में शीशे के तौर पर बैलिस्टिक ग्लास लगाई गई है, जिसकी मोटाई करीब पांच इंच है। अमेरिका के मशहूर अख़बार लॉस एंजिलिस टाइम्स के मुताबिक कार की फर्श में केवलार मैट (चटाई) का इस्तेमाल किया गया है, ताकि विस्फोट से इस कार को बचाया जा सके। कार में रासायनिक हमले की स्थिति में सांस लेने के लिए एयर रिसर्कुलेशन सिस्टम भी मौजूद है। ओबामा की इस शानदार कार में अंदरूनी साजसज्जा के लिए चमड़े का खूब इस्तेमाल किया गया है। राष्ट्रपति के मनोरंजन के लिए कार में एक सीडी सिस्टम भी है। डेट्रॉएट न्यूज के मुताबिक जनरल मोटर्स (जीएम) ने इस तरह की महज 25 कारों का निर्माण किया है, जो सिर्फ ओबामा प्रशासन के इस्तेमाल के लिए हैं। इन कारों की औसत उम्र एक दशक है, लेकिन राष्ट्रपति की कार हर चार साल में बदल दी जाती है। राष्ट्रपति द्वारा खाली की गई कारों का इस्तेमाल उप राष्ट्रपति और अमेरिका आने वाले विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्ष करते हैं।


साभार

गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

भ्रष्टं...भ्रष्टं....भ्रष्टं....

जन्म से लेकर मृत्यु और मृत्यु पश्चात के कर्मकाण्डों के लिए भी भारत में सुविधा शुल्क देना पड़ता है। मृत्यु या जन्म प्रमाणपत्र लेना हो, या फिर भीड़ भरी ट्रेन में सीट, हमें यह करना होता है। नहीं किया, तो काम नहीं होगा। नतीजन, करीब 1 ट्रीलियन डालर का भुगतान सुविधा शुल्क के रूप में करते हैं जबकि यहां एक अरब लोग रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जबरदस्त असमानता। भ्रष्टïाचार आज शिष्टïाचार की संज्ञा में समाहित होता दिख रहा है। हर जगह, हर स्तर पर यह व्याप्त है। जो लोग किसी कारणवश इसके पकड़ में आ गए, वह भ्रष्टाचारी नहीं तो शेष शिष्टïाचारी। कई रिपोर्टेां से बात को बल मिलता रहा है कि भारत में दिन दूनी, रात चौगुनी की गति से भ्रष्टाचार का फैलाव होता जा रहा है। हाल ही में, जिस प्रकार से राष्टï्रमंडल खेलों में भ्रष्टïाचार की खबरें ने लोगों को दांतों तले अंगुली दबाने पर विवश कर दिया, वह अनायास नहीं था। इस देश में तो यह सदियों से चला आ रहा है।
यकीन मानिए, भारत में भ्रष्टाचार का इतिहास बहुत पुराना है। भारत की आजादी के पूर्व अंग्रंजों ने सुविधाएं प्राप्त करने के लिए भारत के सम्पन्न लोगों को सुविधास्वरूप धन देना प्रारंभ किया। राजे रजवाड़े और साहूकारों को धन देकर उनसे वे सब प्राप्त कर लेते थे जो उन्हे चाहिए था। अंग्रेज भारत के रईसों को धन देकर अपने ही देश के साथ गद्दारी करने के लिए कहा करते थे और ये रईस ऐसा ही करते हैं। यह भ्रष्टाचार वहीं से प्रारम्भ हुआ और तब से आज तक लगातार चलते हुए फल फूल रहा है। रईसों की जगह अब नेता और नौकरशाहों ने ले रखी है। तो उनके साथ के कारिन्दें भी भला क्यों पीछे रहें?
बाबरनामा में उल्लेख है कि कैसे मु_ी भर बाहरी हमलावर भारत की सड़कों से गुजरते थे। सड़क के दोनों ओर लाखों की संख्या में खड़े लोग मूकदर्शक बन कर तमाशा देखते थे। बाहरी आक्रमणकारियों ने कहा है कि यह मूकदर्शक बनी भीड़, अगर हमलावरों पर टूट पड़ती, तो भारत के हालात भिन्न होते। इसी तरह पलासी की लड़ाई में एक तरफ़ लाखों की सेना, दूसरी तरफ़ अंगरेजों के साथ मु_ी भर सिपाही, पर भारतीय हार गये। एक तरफ़ 50,000 भारतीयों की फ़ौज, दूसरी ओर अंगरेजों के 3000 सिपाही. पर अंगरेज जीते. भारत फिऱ गुलाम हआ. जब बख्तियार खिलजी ने नालंदा पर ग्यारहवीं शताब्दी में आक्रमण किया, तो क्या हालात थे? खिलजी की सौ से भी कम सिपाहियों की फ़ौज ने नालंदा के दस हजार से अधिक भिक्षुओं को भागने पर मजबूर कर दिया। नालंदा का विश्वप्रसिद्ध पुस्तकालय वर्षों तक सुलगता रहा। तब भी कोई प्रतिकार नहीं हुआ और आज भी नहीं हो रहा।
नतीजन, हर तीन में से एक भारतीय भ्रष्टïाचार में लिप्त है। यह कोई हवा-हवाई बात नहीं है, बल्कि केंद्रीय सतर्कता आयोग के पूर्व आयुक्त प्रत्युष सिन्हा ने भी कही है। बकौल प्रत्यूष सिन्हा, 'मेरे कार्यकाल का सबसे खराब पहलू यह निरीक्षण करना रहा है कि सुविधाओं के बढने के साथ भ्रष्टाचार में कैसे बढोतरी हो रही है? मैं जब छोटा था और उन दिनों अगर कोई आदमी भ्रष्ट पाया जाता था तो इसे सामाजिक कलंक माना जाता था। लेकिन समाज ने भ्रष्टाचार की बीमारी को सामाजिक स्वीकार्यता दे दी है। आज बमुश्किल 20 प्रतिशत लोग ही ऐसे होंगे जो अपनी अंतरात्मा की शक्ति के बल पर ईमानदारी से जिंदगी जी रहे हैं। आधुनिक भारत में धनवान को ही सम्मानजनक माना जाता है। लेकिन कोई यह प्रश्न नहीं उठाता कि उसने इतना धन कैसे कमाया है।Ó
काबिलेगौर है कि ग्लोबल फाइनेन्शियल इन्टीग्रिटी (जीएफआई) की रिपोर्ट कहती है कि बाहर भेजे जाने वाले धन में से ज्यादातर भारत में ही कमाया गया धन था जिसे अवैध तरीके से बाहर भेजा गया। जीएफआई की अर्थशास्त्री कार्ली कर्सियो ने भारत से अवैध वित्तीय प्रवाह और गरीबी, भ्रष्टाचार व अपराध से इसके संबंध पर जारी हुई इस रिपोर्ट के विषय में एक ब्लॉग पर कहा है, 'भारत में मानवता के खिलाफ इस भ्रष्टाचार को चुनौती देने के लिए हाल ही में किए गए प्रयासों को हिंसा का सामना करना पड़ा है। भारत के वित्तीय रूप से विकास करने और बेहतर बुनियादी सुविधाओं के चलते ऐसा माना जाता है कि इसके साथ सभी भारतीय नागरिकों के रहन-सहन के स्तर में सुधार होता है और लोगों की आय में अंतर कम होता है जबकि वास्तविकता यह है कि समय के साथ भारतीयों की आय में असमानता बढ़ी है।Ó
सेंटर फॉर इंटरनेशनल पॉलिसी (सीआईपी) की शोध शाखा का कहना है कि भारत में भ्रष्टाचार के बढऩे और अवैध कारोबार के चलते वित्तीय प्रवाह देश से बाहर की ओर हो रहा है। रिपोर्ट कहती है कि पिछले 8 वर्ष में भारत से भ्रष्टïाचार का 125 अरब डॉलर धन विदेशों में जमा किया गया है। साथ ही इसमें कहा गया है कि लभभग सभी विकासशील देशों की तरह भारत में भी भ्रष्टाचार व्याप्त है। भ्रष्ट राजनेता और भ्रष्ट कारपोरेट अधिकारी राजनीतिक और निजी क्षेत्र में इस्तेमाल के लिए भारतीयों की मदद के लिए इस्तेमाल होने वाली इस राशि को अवैध तरीके से बाहर भेज देते हैं।
भारत में यह प्रचलन हो गया है कि किसी भी काम के लिए हमें सुविधा शुल्क देना पड़ता है। यह स्पीड मनी होता है और यदि आप सुविधा शुल्क नहीं देंगे तो आप कोई भी काम नहीं करा सकते। देश की लचर कानून ब्यवस्था का नौकरशाह व राजनीतिज्ञ भरपूर लाभ उठाते हैं लेकिन आम आदमी को कोई भी काम कराने के लिए सुविधा शुल्क का सहारा लेना पड़ता है। मृत्यु या जन्म प्रमाणपत्र लेना हो, या फिर भीड़ भरी ट्रेन में सीट, हमें सुविधा शुल्क देना पड़ता है। एक अनुमान के अनुसार अपना काम कराने के लिए लोग लगभग 1 ट्रीलियन डालर का भुगतान करते हैं जबकि यहां एक अरब लोग रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यहां तो जीने के लिए भी लोगों को सुविधा शुल्क देने की आवश्यकता पड़ रही है। जब भ्रष्टाचार ऊंचे स्थानों पर होता है और उसमें रक्षा व उड़ानों से संबंधित सौदे होते हैं तो उसके कुछ और ही मायने होते हैं।
क्या कहेंगे आप? और क्या सोचेगी आपकी आने वाली पीढ़ी? आगामी पीढ़ी को इस संक्र ामक बीमारी से सरकार ही छुटकारा दिला सकती है, जिसमें आमजन की भागीदारी हो। आईटी क्षेत्र की प्रमुख कंपनी इन्फोसिस के गैर कार्यकारी चेयरमैन और संरक्षक नारायणमूर्ति का कहना है कि भारत सरकार को भ्रष्ट लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। उनका कहना है कि कि ई-प्रशासन से जवाबदेही में सुधार हो सकता है। सार्वजनिक क्षेत्र की बड़ी परियोजनाओं के आंकड़ों को इंटरनेट पर डाला जाना चाहिए। इससे न केवल भ्रष्टाचार कम किया जा सकता है, बल्कि देश में जवाबदेही के स्तर में भी सुधार हो सकता है। मूर्ति के अनुसार, 'हमें ऐसे नेतृत्व की जरूरत है जो भ्रष्ट लोगों से सख्ती से निपट सके। चीन में भ्रष्टाचार में शामिल लोगों को मौत की सजा तक दी जाती है।Ó

गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010

ऐसी थी हर्ट की लेह विकास यात्रा


विनोद बंसल


यूं तो गैर सरकारी संगठन हर्ट (हिंदू इमर्जेंसी एड एण्ड रिलीफ़ टीम)द्वारा अनेक प्रकार की राहत सामग्री लेह लद्दाख के बाढ पीडितों कीसहायतार्थ पहले से ही भेज कर उसका वितरण किया जा रहा था किन्तु फ़िर भीराहत कार्यों को नजदीक से स्वयं निरीक्षण करने तथा आगामी योजनार्थ हर्टके एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधि मण्ड्ल ने वहां जाने का निर्णय लिया।दुनिया के सबसे ऊंचे स्थानों में से एक लेह में गत 6 अगस्त को आई भीषणबाढ की चपेट में मारे गए 200 से अधिक लोगों के परिजनों व अन्य पीडितों कीसहायतार्थ विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की प्रेरणा से बने हर्ट का एक सातसदस्यीय उच्च स्तरीय प्रतिनिधि मंण्डल गत मास लेह पंहुचा जिसमें मैं भीसामिल था। लद्दाख के लेह शहर और उसके आस पास के क्षेत्रों में हुई प्रकतिकी ताण्डव लीला का अध्ययन करने हमारा दल वहां से सायं 2-30 बजे रवानाहुआ। जब हमने मानेट्रेडिंग व चोगलमसर के साथ ढलान पर स्थित जिला मुख्यालयके क्षेत्र को देखा तो बिना किसी से पूछे, स्वतः आभास हो गया कि बाढ काप्रकोप यहां कितना गंभीर था। मकानों, दुकानों व अन्य भवनों के खण्डहर वकीचड से भरे हुए घर चीख-चीख कर अपनी व्यथा सुना रहे थे। चारों तरफ़ विनाशकी ताण्डव लीला दिखाई दे रही थी। दूर दूर तक टूटे-फ़ूटे भवन व उखडे हुएपेड ही दिखाई दे रहे थे। लेह शहर, जो दुनिया की छत के नाम से जाना जाताहै उसके नागरिक अपनी छत की बाट जोह रहे थे।अनेक प्रभावित क्षेत्रों को देखते हुए हम लोग ऊंची पहाडी पर स्थित कालीमाता के मंदिर के दर्शन करने पहुंचे और उसके बाद क्षेत्र की कुशल क्षेमहेतु पवित्र सिंधु घाट पर पूजा अर्चना की। सूर्यास्त की किरणें सिंधु जलपर पड़ने से उसकी स्वर्णिंम छवि मानो कह रही थी कि भारत का यह मस्तिस्कपुन: स्वर्ण मुकुट की तरह चमकेगा।दूसरे दिन प्रातः 9-30 बजे हमारा दल हर्ट के अस्थाई कार्यालय, राहतसामग्री के भण्डार ग्रह व राहत शिविरों के साथ जिले के विविध गावों काअध्ययन करने तथा प्रभावित परिवारों से व्यक्तिगत रूप से मिलने हेतु रवानाहुआ। सबसे पहले राहत सामग्री भंडार ग्रह में पहुंच हम सभी ने वहां रखेसामान को इस तरह पैक किया कि प्रत्येक पीडित परिवार को समान रूप से उसकावितरण सुनिश्चित हो सके। इस सामग्री को हमने एक टाटा 407 गाडी में भरा औरवहां से चल दिए।विश्व हिंदू परिषद के केन्द्रीय संयुक्त महामंत्री व हर्ट के ट्रष्टीस्वामी विज्ञानानन्द जी महाराज के नेतृत्व में हमारे दल में चेन्नई सेआईं प्रसिद्ध शिक्षाविद व विश्व हिंदू विधा केन्द्र की महामंत्री डाश्रीमती गिरिजा शेषाद्री, दिल्ली के यूरोलोजिस्ट डा शिल्पी तिवारी, समाजसेवी श्री संजीव साहनी व उनकी धर्म पत्नी श्रीमती संगीता साहनी तो देश कीराजधानी से ही हमारे साथ थे किन्तु बेंगलौर से पधारे एक और समाज सेवकश्री एम बी पद्मनाभ राव तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पहले ऐसे स्वयंसेवक जो बौध भिछु से प्रचारक बने श्री वांचुक भी हमारे मार्ग दर्शन वसामग्री के उचित वितरण के लिये हमारे साथ हो लिए।अब हम लेह से लगभग 70 किमी दूर स्थित गांव ससपोशे के लिए राहत सामग्री केट्रक के साथ रवाना हुए। मार्ग में जहां एक ओर लेह बस अड्डा, रेडियोस्टेशन, जिला अस्पताल, भारत संचार निगम लिमिटेड का कार्यालय की स्थितिअपने दु:ख की दारुण व्यथा सुना रहे थे तो दूसरी ओर जब हमने वायु सेनाकेंद्र, व अन्य सुरक्षा संस्थान, बौद्ध स्तूप, मठ, मंदिर व गुरुद्वारेदेखे तो लगा कि मानो प्रक्रति के प्रकोप ने इन्हें छूआ तक नहीं।मैग्नेटिक हिल, वास्गो व निम्मू गांव होते हुए पहाडों व नदियों के किनारेकिनारे हम ससपोशे पंहुचे। संतोष की बात यह थी कि रास्ते की पूरी सडकदिल्ली की किसी भी रोड से अच्छी थी। शायद आपदा के तुरंत बाद इसे बनायागया होगा।ससपोशे रोड के अंतिम छोर पर स्थित था जिसके बाद आगे कोई मार्ग न था। हमनेग्राम प्रधान के सहयोग से राहत सामग्री को पीडितों में वितरित किया। हमेंदेख, ग्राम चौपाल पर देखते ही देखते अनेक नर-नारी, बच्चे, बूढे व जबानइकट्ठे हो गए। नन्हे मुन्ने स्कूली बच्चों को देख हमारे दल के सदस्यों नेउन्हें अपनी गोदी में बिठा लिया। इतने में दो महिलाएं हम सबके लिये एकट्रे में लद्दाखी चाय व विस्कुट ले आईं। गांव की आर्थिक स्थिति को देखहमारा चाय पीने का मन तो नहीं किया किन्तु उनके नम्र आग्रह को हम नकारनहीं पाए। सामग्री के वितरण के पश्चात हमें गांव के सरपंच व अन्य लोगोंने वहां बाढ से हुई तबाही का मंजर दिखाया। कई मकान ऐसे थे जिनके कमरेऊंचे पहाडों से अर्ध रात्रि को आई बाढ के मलबे से भरे पडे थे। कई मकानटूटे थे तो कुछ में दरारें पडीं थीं। विद्यालय भवन का एक हिस्सा का भीइस बाढ के साथ बह गया था। अनेक विद्यार्थी टेन्टों के बने अस्थाई कक्षोंमें पढ रहे थे। पूरे व विद्यालय परिसर को देखने के बाद हम प्रधानाचार्यके कार्यालय में पहुंचे। उनसे बात कर हमें इस बात का बडा संतोष हुआ किभारत के एक छोर पर स्थित इस छोटे से गांव में अध्ययन कर रहे मात्र 30विद्यार्थियों के लिए एक ऐसा उच्च प्राथमिक विद्यालय था जिसके पास नसिर्फ़ पक्का भवन था बल्कि गांव में विधुत की आपूर्ति न होने के बावजूदअपना कम्प्यूटर व टी वी सेट के साथ अवाध विधुत सप्लाई हेतु इन्वर्टर वसोलर सिस्टम भी था। प्रधानाचार्या श्रीमती प्रसेरिंग डोलमा ने बाढ कीविभीषिका व अब तक हुए राहत कार्यों की जानकारी हमें दी। भारतीय सेना केएक सैनिक की पत्नी द्वारा किया आथित्य सत्कार हमें अंदर तक छू गया।हालांकि वह अपने 6 मास के बच्चे के साथ अकेली थी फ़िर भी उसने हम सबको नकेवल अच्छी तरह से सुसज्जित अपने घर में बिठाया बल्कि लद्दाखी चाय वलद्दाखी रोटी भी अति प्रेम से खिलाई। घर की बैठक, भण्डार ग्रह, रसोई वशौचालय की बनाबट हम सब के लिए आकर्षण के केन्द्र थे।लौटते हुए भारतीय सेना द्वारा संचालित गुरुद्वारा पाथर साहिब में हमनेमत्था टेका। गुरुद्वारे से बाहर चंद्रमा का ब्रहद आकार व सुंदरता, धरतीसे उसकी नजदीकी के कारण अनुपमेय थी। थोडी ही दूरी पर चल कर भारतीय सेनाके बहादुर जवानों की स्मृति में बनाए गये संग्रहालय – हाल औफ़ फ़ेम कोदेखा। वहीं पहाडों के बीच लहराता भारतीय तिरंगा देश की गौरव गाथा को गारहा था।

सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

...तो अपराधी चलाएंगे सरकार

लाख बहस-मुबाहिसों के बावजूद प्रदेश की राजनीति बाहुबलियों से पीछा नहीं छुड़ा पा रही है। चुनाव आयोग डंडा चलने के बाद आपराधिक छवि वाले दागी नेता चुनाव नहीं लड़ पा रहे हैं तो अपने नाते-रिश्तेदारों को टिकट दिलाने में कामयाब हुए हैं..समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर ने बहुत पहले बिहार विधानसभा में कहा था कि जब बैलेट फेल होता है तो बुलेट हावी होने लगती है। कर्पूरी ठाकुर की बात प्रदेश की मौजूदा राजनीति में सोलह आने सच साबित हो रही है। चुनाव आयोग की तमाम बंदिशों और राजनीतिक दलों के भरपूर आश्वासनों के बावजूद राज्य की राजनीति में बाहुबलियों की पकड़ कम नहीं हुई है। हां, इसका तरीका जरूर बदल गया है। कल तक जो बाहुबली चुनाव मैदान में खम ठोकते थे अब वे अपने चहेतों को चुनाव लड़ाकर उन्हें विधानसभा भेजने की फिराक में हैं। इस बार संगीन अपराधों के लिए सजा पाए बाहुबली भले ही चुनावी मैदान में खुद न उतर पाएं हों, लेकिन वे अपने सियासी वजूद को जिंदा रखने के लिए अपनी पत्नियों की ओर आस लगाए बैठे हैं। बीते लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भी कई बाहुबलियों की पत्नियां विधानसभा पहुंचने की कोशिश में हैं। वर्तमान विधायक और राष्ट्रीय जनता दल की उम्मीदवार कुंती देवी एक बार फिर गया जिले के अतरी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में हैं। इनके पति राजेंद्र यादव वर्तमान समय में हत्या के एक मामले में जेल में सजा काट रहे हैं और कई अन्य अपराधिक मामले भी इन पर चल रहे हैं। नवादा क्षेत्र की वर्तमान निर्दलीय विधायक पूर्णिमा यादव तथा इनके पति एवं निर्दलीय विधायक कौशल यादव को जदयू ने टिकट दिया है। कौशल पर राजस्व घोटाले समेत कई अन्य अपराधिक मामले चल रहे हैं। इसी तरह बक्सर जिले के शाहपुर विधानसभा क्षेत्र की विधायक मुन्नी देवी और खगडिय़ा की पूनम देवी एक बार फिर अपने पति के सहारे सदन में पहुंचने की तैयारी में हैं। मुन्नी के पति भुअर ओझा तथा देवर विमेश्वर ओझा कई अपराधिक मामले में आरोपी हंै, जबकि पूनम के पति रणवीर यादव पर भी कई अपराधिक मामले चल रहे हैं। लालगंज के विधायक मुन्ना शुक्ला मंत्री वृजबिहारी प्रसाद की हत्याकांड में दोषी हैं, मगर इस चुनाव में उनकी पत्नी अन्नु शुक्ला जदयू की प्रत्याशी हंै। इसी तरह बाहुबली पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव विधायक अजीत सरकार की हत्या के मामले में दोषी करार दिए गए हैं और उनकी पत्नी रंजीता रंजन को चुनावी मैदान में उतारा गया है। हाल ही में कांग्रेस में शामिल बाहुबली सांसद आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद को सहरसा जिले के आलमनगर से प्रत्याशी बनाया गया है। आनंद मोहन सहरसा जेल में पूर्व जिलाधिकारी जी कृष्णैया हत्याकांड के मामले में सजा काट रहे हैं। इसी तरह राजद विधायक बीमा भारती इस चुनाव में पाला बदलकर जदयू के टिकट पर रुपौली विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में है। बीमा के पति अवधेश मंडल हत्या, रंगदारी जैसे करीब एक दर्जन से ज्यादा मामलों में आरोपी हैं।
सच तो यह है कि बिहार की राजनीति में बाहुबली नेता सभी राजनीतिक दलों की जरूरत बन गए हैं। चुनाव आयोग ने बड़ी संजीदगी के साथ बिहार के राजनीतिक दलों से विधानसभा चुनाव से बाहुबलियों को दूर रखने की अपील की थी। आयोग की अपील के बाद स्वयंसेवी संगठनों ने राजनीतिक दलों पर दबाव बढ़ाना शुरू किया। चुनाव को निष्पक्ष बनाने के लिए एक संस्था 'एसोसियशन फॉर डैमोक्रेटिक रिफॉम्र्स एवं नेशनल इलेक्शन वॉचÓ का गठन भी हुआ, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात। हर दल ने बाहुबलियों और आपराधिक रिकॉर्डधारियों को अपना उम्मीदवार बनाया है। अभी तक जितने प्रत्याशियों की घोषणा हुई है, उसमें करीब 43 फीसदी अपराधी हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यही अपराधी सरकार चलाएंगे?
गौरतलब है कि प्रदेश में चुनावों की घोषणा से पहले यहां के अधिकांश दलों ने कहा था कि विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ेंगे और बाहुबलियों को किसी भी सूरत में टिकट नहीं देंगे, मगर अब विकास पर बाहुबल हावी हो गया है। हालांकि, रैली और सभाओं में प्रदेश की राजनीति के तीनों प्रमुख महारथी लालू प्रसाद, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान अपने-अपने विकास कार्यों का ही बखान कर रहे हैं। जहां नीतीश के पास मुख्यमंत्री के रूप में कार्य का ब्योरा है तो लालू अपने और पत्नी रावड़ी के पंद्रह साल के कार्यकाल का गुणगान करने के बजाय रेलमंत्री के रूप में किए गए विकास कार्यों की दुहाई दे रहे हैं। उधर, जिन रामविलास पासवान पर अवसरवादिता का सबसे बड़ा आरोप लगाया जाता है, वे कहते हैं कि जब भी उन्होंने केंद्रीय मंत्री का पदभार संभाला सबसे अधिक बिहार पर ही ध्यान दिया। इन विकासवादी ढिंढोरों के बीच जो सच है, वह यह कि इन नेताओं ने अपराधियों और बाहुबलियों को खूब तवज्जो दी है। तो क्या माना जाए कि बिहार में चुनाव बगैर बाहुबल और अपराधी को साथ लिए नहीं हो सकती? इसका जबाव 'हांÓ में मिलता है। अब तक बिहार चुनाव की जो तस्वीर सामने आई है, उसमें 43 प्रतिशत उम्मीदवार दागी या अपराधी प्रवृत्ति के हैं? चुनाव आयोग की सर्वदलीय बैठक में राजनीति का अपराधीकरण रोकने की खुली वकालत करने वाले सियासी दलों की गंभीरता का अंदाजा विधानसभा चुनाव के लिए अब तक जारी प्रत्याशियों की सूचियों के से लग जाता है। अब तक चुनाव के लिए पांच प्रमुख दलों ने कुल 526 प्रत्याशी घोषित किए हैं। इनमें से 268 के पुराने रिकॉर्ड मौजूद हैं। इनमें से 116 प्रत्याशियों (43.28 फीसदी) के खिलाफ आम मामलों से लेकर हत्या, अवैध हिरासत, फिरौती और लूटपाट जैसे गंभीर मामले लंबित हैं। हैरानी की बात यह है कि दागी छवि के लोगों को टिकट देने में खुद को पार्टी विद ए डिफरेंस कहने वाली भाजपा सबसे आगे है। भाजपा के करीब 62.12 प्रत्याशियों के खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं। दूसरे स्थान पर रामविलास पासवान की अगुआई वाली लोजपा है जिसके 46.43 फीसदी दागी छवि के हैं। लालू यादव की राजद के 38.60 फीसदी उम्मीदवारों के खिलाफ ऐसे मामले बकाया हैं। सत्तारूढ़ जनता दल यूनाईटेड भी इसमें पीछे नहीं है और उसके 36.05 फीसदी उम्मीवारों का दागी इतिहास रहा है। 'नेशनल इलेक्शन वॉचÓ नामक स्वंयसेवी संस्था द्वारा जुटाए गए आंकड़ों में सोनिया गांधी की कांग्रेस भी दागी छवि के प्रत्याशी उतारने में पीछे नहीं है। कांग्रेस ने 29.03 फीसदी दागी छवि के लोगों को अपना चुनाव चिह्नï थमाया है।
गौरतलब है कि इसके पहले लोकसभा चुनाव में भी बाहुबली पूर्व संासद शहाबुद्दीन ने अपनी पत्नी हिना शहाब, पप्पू यादव ने अपनी मां शांति देवी, बाहुबली पूर्व सांसद सूरजभान ने अपनी पत्नी वीणा देवी को चुनाव मैदान में उतारा था, लेकिन इन सभी को चुनावों में मुंह की खानी पड़ी थी। अब देखना है कि विधानसभा चुनाव में सूबे के बाहुबली अपनी पत्नियों और रिश्तेदारों को सत्ता तक पहुंचा पाते है या नहीं।

सोमवार, 11 अक्तूबर 2010

चतुर्थ कूष्मांडा


सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।

दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्मांडा शुभदास्तु मे।।


मां दुर्गाजी के चौथे स्वरूप का नाम कूष्मांडा है। अपनी मंद, हल्की हंसीद्वारा अंड अर्थात ब्रह्मïांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडादेवी के नाम से अभिहित किया गया है। संस्कृत भाषा में कूष्माण्डा कोकुम्हड़ कहते है। बलियों में कुम्हड़े की बलि इन्हें सर्वाधिक प्रिय है।इस कारण से भी मां कूष्मांडा कहलाती है।नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कूष्मांडा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जातीहै। इस दिन साधक का मन अदाहत चक्र में अवस्थित होता है। अत: इस दिन उसेअत्यंत पवित्र और अचंचल मन से कूष्मांडा देवी के स्वरूप को ध्यान मेंरखकर पूजा-उपासना के कार्य में लगना चाहिए।जब सृष्टिï का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने अपने ईषत् हास्य सेब्रह्मïांड की रचना की थी। अत: ये ही सृष्टिï की आदि-स्वरूपा, आदिशक्तिहैं। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। वहां निवास कर सकने कीक्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनके शरीर की कांति और प्रभा भीसूर्य के समान ही दैदीप्यान और भास्वर हैं।इनके तेज और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्मïांड कीसभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है।मां की आठ भुजाएं हैं। अत: ये अष्टïभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं।इनके सात हाथों में क्रमश: कमंडलु, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश,चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्घियों और निधियों को देने वालीजपमाला है। इनका वाहन सिंह है।मां कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक विनष्टï हो जातेहैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्घि होती है। मांकूष्माण्डा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं यदि मनुष्यसच्चे हृदय से इनका शरणागत बन जाए तो फिर उसे अत्यन्त सुगमता से परम पदकी प्राति हो सकती है।विधि-विधान से मां के भक्ति-मार्ग पर कुछ ही कदम आगे बढऩे पर भक्त साधकको उनकी कृपा का सूक्ष्म अनुभव होने लगता है। यह दु:ख स्वरूप संसार उसकेलिए अत्यंत सुखद और सुगम बन जाता है। मां की उपासना मनुष्य को सहज भाव सेभवसागर से पार उतारने के लिए सर्वाधिक सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है।मां कूष्मांडा की उपासना मनुष्य को आधियों-व्याधियों से सर्वथा विमुक्तकरके उसे सुख, समृद्घि और उन्नति की ओर ले जाने वाली है। अत: अपनी लौकिक,पारलौकिक उन्नति चाहने वालों को इनकी उपासना में सदैव तत्पर रहना चाहिए।

रविवार, 10 अक्तूबर 2010

तृतीय चंदघंटा


पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।

प्रसादं तनुते मह्मïं चंद्रघंटेति विश्रुता।।



मां दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना मेंतीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह कापूजन आराधन किया जाता है। इस दिन साधक का मन मणिपुर चक्र में प्रविष्टïहोता है।मां चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्यसुगंधियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियां सुनाईदेती हैं। ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने के होते हैं।मां का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटेका आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण से इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाताहै। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं। इनकेदसों हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं। इनकावाहन सिंह है। इनकी मुद्रा युद्घ के लिए उद्यत रहने की होती है।मां चंद्रघंटा की कपा से साधक के समस्त पाप और बाधाएं विनष्टï हो जातीहैं। इनकी आराधना सद्य: फलदायी है। मां भक्तों के कष्टï का निवारण शीघ्रही कर देती है। इनका उपासक सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय हो जाता है।इनके घंटे की ध्वनि सदा अपने भक्तों को प्रेतबाधा से रक्षा करती है। इनकाध्यान करते ही शरणागत की रक्षा के लिए इस घंटे की ध्वनि निनादित हो उठतीहै।मां का स्वरूप अत्यंत सौम्यता एवं शांति से परिपूर्ण रहता है। इनकीआराधना से वीरता-निर्भयता के साथ ही सौम्यता एवं विनम्रता का विकास होकरमुख, नेत्र तथा संपूर्ण काया में कांति-गुण की वद्घि होती है। स्वर मेंदिव्य, अलौकिक माधुर्य का समावेश हो जाता है। मां चंद्रघंटा के भक्त औरउपासक जहां भी जाते हैं, लोग उन्हें देखकर शांति और सुख का अनुभव करतेहैं।मां के आराधक के शरीर से दिव्य प्रकाशयुक्त परमाणुओं का अदृश्य विकिरणहोता रहता है। यह दिव्य क्रिया असाधरण चक्षुओं से दिखायी नहीं देती,किन्तु साधक और उसके संपर्क में आने वाले लोग इस बात का अनुभव भली-भांतिकरते रहते हैं।हमें चाहिए कि अपने मन, वचन, कर्म एवं काया को विहित विधि-विधान केअनुसार पूर्णत: परिशुद्घ एवं पवित्र करके मां चंद्रघंटा के शरणागत होकरउनकी उपासना-आराधना में तत्पर हों। उनकी उपासना से हम समस्त सांसारिककष्टïों से विमुक्त होकर सहज ही परमपद के अधिकारी बन सकते हैं।हमें निरंतर उनके पवित्र विग्रह को ध्यान में रखते हुए साधन की ओरन्अग्रसर होने का प्रयत्न करन्ना चाहिए। उनका ध्यान हमारे इहलोक और परलोकदोनों के लिए परम कल्याणकारी और सदगति देने वाला है।

शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

द्वितीय ब्रह्मïचारिणी


दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।

देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मïचारिण्यनुत्तमा।।



मां दुर्गा की नवशक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मïचारिणी का हैै। यहांब्रह्मï शब्द का अर्थ तपस्या हैै। ब्रह्मïचारिणी अर्थात तप की चारिणी- तपका आचरण करने वाली। कहा भी हैै-वेदस्तत्तवं तपो ब्रह्मï- वेद, तत्व और तपब्रह्मï शब्द के अर्थ हैैं।दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती हैै। इसदिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होता हैै। इस चक्र मेंअवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।ब्रह्मïचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य हैै।इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमण्डल रहता हैै।अपने पूर्व जन्म में जब ये हिमालय के घर पुत्री- रूप में उत्पन्न हुईथीं, तब नारद के उपदेश से इन्होंने भगवान शंकरजी को पति-रूप में प्राप्तकरने के लिए अत्यंत कठिन तपस्या की थी। इसी दुष्कर तपस्या के कारण इन्हेंतपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मïचारिणी नाम से अभिहित किया गया।एक हजार वर्ष उन्होंने केवल फल-मूल खाकर व्यतीत किए थे। सौ वर्षों तककेवल शाक पर निर्वाह किया था। कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखते हुए खुलेआकाश के नीचे वर्षा और धूप के भयानक कष्ट सहे, इस कठिन तपश्चर्या केपश्चात तीन हजार वर्षों तक केवल जमीन पर टूटकर गिरे हुए बेलपत्रों कोखाकर वे अहर्निश भगवान शंकर की आराधना करती रहीं इसके बाद उनके सूखेबेलपत्रों को भी खाना छोड़ देने के कारण उनका एक नाम अपर्णा भी पड़ गया।कई हजार वर्षों की इस कठिन तपस्या के कारण ब्रह्मïचारिणी देवी का वहपूर्व जन्म का शरीर एकदम क्षीण हो उठा । वे अत्यंत दु:खित हो उठीं।उन्होंने उन्हें उस कठिन तपस्या से विरत करने के लिए आवाज दी (उ मा, अरे)नहीं, ओ! नहीं! तबसे देवी ब्रह्मïचारिणी का पूर्वजन्म का एक नाम उमा भीपड़ गया था।उनकी इस तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। देवता, ऋषि, सिद्घगण,मुनि सभी ब्रह्मïचारिणी देवी की इस तपस्या को अभूतपूर्व पुण्यकृत्य बतातेहुए उनकी सराहना करने लगे। अंत में पितामह ब्रह्मïाजी ने आकाशवाणी द्वाराउन्हें संबोधित करते हुए प्रसन्न स्वरों में कहा- हे देवी! आज तक किसी नेऐसी कठोर तपस्या नहीं की थी। ऐसी तपस्या तुम्हीं से संभव थी। तुम्हारे इसअलौकिक कृत्य की चतुर्दिक सराहना हो रही है। तुम्हारी मनोकामनासर्वतोभावेन परिपूर्ण होगी। भगवान चन्द्रमौलि शिवजी तुम्हें पतिरूप मेंप्राप्त होंगे। अब तुम तपस्या से विरत होकर घर लौट जाओ। शीघ्र हीतुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं। मां ब्रह्मïचारिणी भक्तों औरसिद्घों को अनंत फल देने वाली हैं। इनकी उपासना से मनुष्य में तप,त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्घि होती हैै कठिन संघर्षों में भीउसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता । मां की कृपा से उसे सर्वत्रसिद्घि और विजय की प्राप्ति होती है।

शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

प्रथम शैलपुत्री


वंदे वांछितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्।

वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥


मां दुर्गा पहले स्वरूप में शैलपुत्री के नाम से जानी जाती हैं। ये हीनवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप मेंउत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। नवरात्र-पूजन में प्रथमदिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इस प्रथम दिन की उपासना मेंयोगी अपने मन को 'मूलाधार चक्रÓ में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योगसाधना का प्रारंभ होता है।वृषभ-स्थिता इन माताजी के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमलपुष्प सुशोभित है। अपने पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या के रूपमें उत्पन्न हुई थीं। तब इनका नाम सती था। इनका विवाह भगवान शंकरजी सेहुआ था।एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। इसमें उन्होंने सारेदेवताओं को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया,किंतु शंकरजी को उन्होंने इस यज्ञ में निमंत्रित नहीं किया। सती ने जबसुना कि उनके पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहांजाने के लिए उनका मन विकल हो उठा।अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकरजी को बताई। सारी बातों पर विचार करने के बादउन्होंने कहा- प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं। अपने यज्ञ मेंउन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है। उनके यज्ञ-भाग भी उन्हेंसमर्पित किए हैं, किंतु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है। कोई सूचना तकनहीं भेजी है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहां जाना किसी प्रकार भीश्रेयस्कर नहीं होगा।शंकरजी के इस उपदेश से सती का प्रबोध नहीं हुआ। पिता का यज्ञ देखने, वहांजाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता किसी प्रकार भी कम न होसकी। उनका प्रबल आग्रह देखकर भगवान शंकरजी ने उन्हें वहां जाने की अनुमतिदे दी।सती ने पिता के घर पहुंचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथबातचीत नहीं कर रहा है। सारे लोग मुंह फेरे हुए हैं। केवल उनकी माता नेस्नेह से उन्हें गले लगाया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भावभरे हुए थे।परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत क्लेश पहुंचा। उनहोंने यह भीदेखा कि वहां चतुर्दिक भगवान शंकरजी के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआहै। दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सती काहृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा। उन्होंने सोचा भगवानशंकरजी की बात न मान, यहां आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है। वे अपने पतिभगवान शंकर के इस अपमान को सह न सकीं। उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षणवहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। वज्रपात के समान इसदारुण-दु:खद घटना को सुनकर शंकरजी ने क्रुद्घ हो अपने गणों को भेजकर दक्षके उस यज्ञ का पूर्णत: विध्वंस करा दिया।सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराजहिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वे शैलपुत्री नाम सेविख्यात हुईं, पार्वती, हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। नवदुर्गाओं मेंप्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियां अनंत हैं।

मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

प्रीपेड पर ही प्रतिबंध क्यों?

जम्मू के लोग इन दिनों परेशान हैं। वजह है प्रीपेड मोबाइल सेवाओं पर प्रतिबंध। सुरक्षा कारणों के मद्देनजर यह रोक लगाई गई है। इससे प्रीपेड फोन धारकों में खासा रोष है। लोगों के आक्रोश और प्रतिरोध के मद्देनजर ही यहां मीडिया को सलाह दी गई है कि वह इस मामले को ज्यादा हवा न दें। उल्लेखनीय है कि इससे पहले पिछले वर्ष श्री अमरनाथ यात्रा के दौरान सरकार ने एसएमएस पर रोक लगाई थी। तब भी लोगों को परेशानी हुई थी। इस समय में राज्य में करीब 45 लाख लोग मोबाइल सेवाओं का प्रयोग कर रहे हैं। इनमें से करीब 38 लाख लोग प्रीपेड मोबाइल धारक थे। सुरक्षा तंत्र की सूचनाओं के अनुसार आतंकी अपनी करतूतों को अंजाम देने और सहयोगियों से संपर्क के लिए प्रीपेड सेवाओं का प्रयोग करते आ रहे हैं। गृह मंत्रालय के लिए इन सेवाओं पर प्रतिबंध लगाने के लिए यह वजह जायज है, क्योंकि राष्ट्रहित से बढ़कर कोई अन्य हित नहीं हो सकता है लेकिन खुफिया एजेंसियों के पास ऐसे कई प्रमाण हैं, जिनसे पता चलता है कि आतंकी अत्याधुनिक उपकरण प्रयोग में ला रहे हैं। ऐसे में केवल प्रीपेड मोबाइल सेवाओं पर रोक से कैसे समस्या दूर हो सकती है? इसका जवाब तो सुरक्षा नियम तय करने वाले अफसर ही बेहतर दे सकते हैं लेकिन इस रोक से उन लाखों लोगों को परेशानी में डाल दिया है, जो लंबे समय से प्रीपेड मोबाइल सेवाओं का प्रयोग कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि गलत तत्व पोस्ट पेड मोबाइलों का दुरुपयोग भी कर सकते हैं।
बीसीए का छात्र कुशल अवस्थी इस मसले पर कहता है कि यह प्रतिबंध कई परेशानियां लेकर आया है। ज्यादातर छात्र अपनी पढ़ाई या रोजगार की वजह से माता-पिता से दूर रहते हैं। प्रीपेड मोबाइल सेवाओं का लाभ ज्यादातर युवा वर्ग ही उठाता है, क्योंकि इसमें जरूरत के मुताबिक रिचार्ज कराने की सुविधा होती है प्रीपेड पर ही प्रतिबंध क्यों? और बिल भरने के लिए भटकने का भी कोई झंझट नहीं। प्रीपेड मोबाइल वालों को पेश आ रही परेशानी दुकानदार सोहन अग्रवाल का कहना है कि मेरे घर पर सब लोग कामकाजी हैं, सिर्फ दादी घर पर रहती हैं। उनके पास प्रीपेड मोबाइल था। यह उनके लिए सुविधाजनक था, क्योंकि बुढ़ापे में वह बिल जमा करवाने नहीं जा सकतीं। घर बैठे ही फोन रिचार्ज करवाया जा सकता है। बुजुर्गों के लिए प्रीपेड सेवा आसान है लेकिन अब उन्हें काफी परेशानी हो रही है।
सुरक्षा विभाग के अनुसार दूरसंचार विभाग फोन नंबर जारी करने में नियमों का पालन नहीं किया। प्रीपेड सेवा वाले कई लोगों ने फर्जी दस्तावेज देकर नंबर लिए हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि दस्तावेजों का पुन: निरीक्षण नहीं किया जा सकता था या नियमों में कोई बदलाव नहीं लाया जा सकता था। कश्मीरी विस्थापित कनिष्क मंटू के अनुसार गृह मंत्रालय का यह कदम समझ नहीं आता। हमारे साथ ही पक्षपात क्यों? एक ओर तो केंद्र इस बात का ढिंढोरा पीट रहा है कि राज्य में हालात सामान्य हो गए हैं और विस्थापित कश्मीरियों को उनकी जन्मभूमि में स्थापित किया जा रहा है। दूसरी ओर सुरक्षा के बहाने प्रीपेड मोबाइल पर रोक लगाई जा रही है। इससे साफ है कि हालात अभी सामान्य नहीं हैं। ख्याल रहे, जम्मू के दौरे पर आए गृहमंत्री ने हाल ही में जगती में कश्मीरी विस्थापितों के लिए बन रहे फ्लैटों का निरीक्षण किया था। उन्होंने इस कार्य में लगी कंपनी को हिदायत दी थी कि काम जल्द पूरा किया जाए, ताकि विस्थापितों को रहने के लिए घर मिल सकें। गृहमंत्री ने भरोसा दिया था कि वह हरसंभव कोशिश करेंगे, जिससे कश्मीरी विस्थापित अपनी जन्मभूमि लौट सकें लेकिन गृह मंत्रालय के नए फरमान से विस्थापितों की दुविधा बढ़ गई है। ऐसा नहीं है कि यह रोक आम जनता के लिए ही परेशानी का सबब है। सुरक्षा बल भी इससे परेशान हैं।
यहां तैनात ज्यादातर सुरक्षाकर्मी बाहर के हैं। अपनों से संपर्क करने के लिए ये लोग भी प्रीपेड फोन का ही इस्तेमाल करते हैं। इन सैनिकों के पास मोबाइल ही ऐसा सहारा है, जिससे वह सीमा की सुरक्षा करते हुए भी अपनों से संपर्क में रह सकते हैं। इनके लिए प्रीपेड मोबाइल ठीक रहता है। जितने पैसे डालो उतनी बात। पोस्टपेड फोन लेने की औपचारिकताएं और नियम काफी अलग हैं। जम्मू में तैनात सैनिक राहुल शर्मा झारखंड के हैं। उनके अनुसार प्रीपेड में कई योजनाएं हैं। इसमें हर माह पैसे देने की जरूरत नहीं पड़ती। मैं जब भी तीन माह की छुट्टïी पर जाता हूं, मुझे पैसा नहीं भरना पड़ता। दूसरे फोन का प्रयोग करने पर माह बिल देना पड़ता है। बहरहारल, हालात ये हैं कि सरकार के इस फैसले के खिलाफ जम्मू-कश्मीर के लोग धरनों का सहारा ले रहे हैं। कश्मीर में केटीएमएफ ने धरना देकर रोष जताया और प्रतिबंध को निराधार बताया। केटीएमएफ क अनुसार इस प्रतिबंध से 20 हजार से ज्यादा लोगों को बेरोजगारी का सामना करना पड़ेगा। प्रीपेड सेवाओं पर प्रतिबंध से न सिर्फ आम जनता, इस व्यवसाय से जुड़े लोगों पर भी असर पड़ा है। मोबाइल रिचार्ज के काम से जुड़े ओमप्रकाश के अनुसार पिछले माह धंधा काफी अच्छा रहा लेकिन प्रीपेड सेवाओं पर रोक से हमारा काम ठप हो गया है। सरकार को कोई भी निर्णय लेने से पहले उस चीज या व्यापार से जुड़े लोगों के हितों के बारे में भी सोचना चाहिए। बहरहाल, सरकार का तर्क है कि सुरक्षा के मामले में कोई जोखिम नहीं लिया सकता। इसी कारण यह कदम उठाया गया है। सवाल है कि आतंकी दूसरी आधुनिक सेवाओं का भी प्रयोग कर रहे हैं, ऐसे में सिर्फ प्रीपेड फोनों पर ही रोक कितना कारगर? अगर प्रीपेड नंबर जारी करने में कहीं कोई खामियां हैं तो उन्हें दूर किया जा सकता है। फिर जिसको गड़बड़ करनी है, वह पोस्ट पेड मोबाइल सेवाओं से भी तो कर सकता है।

पगड़ी संभाल मुंडा

पगड़ी की महिमा भी बड़ी अजीब होती है। जिसको नहीं मिलती वह उसके लिए परेशान होता है, और जिसे मिल जाती ह ै उसे संभालने में मुश्किल होती है। पगड़ी इज्जत भी देता है और दायित्व भी लेता है। आजकल झारखण्ड के नए मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को यह प्रदेश के लोगों ने 'पगड़ीÓ पहनाई हुई है। अभी तक अपने मंत्रिमंडल का विस्तार तक नहीं कर पाए हैं। कभी राज्यपाल के यहां तो कभी नई दिल्ली आकर गडकरी और नागपुर में भागवत के यहां मिलते हैं। दिक्कत को अपने साथ दो-दो मुख्यमंत्री को लेकर भी है। आखिर, अपना ही काम तो बांटना होगा उनके संग। पहले तो केवल मंत्री ही होता था न...। इस बार जिम्मेदारी और हालात कुछ अलग ढ़ंग के हैं। वैसे, मुंडा कहते हैं कि उनके राजकाज चलाने में किसी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं है। पार्टी के बड़ेजनों का आशीर्वाद मिल चुका है। प्रदेश की जनता साथ है। सहयोग हेमंत और सुदेश भी इसबार सकारात्मक सोच के साथ हर कदम पर साथ है। तो उम्मीद की जा सकती है इस बार मुंडा को 'पगड़ीÓ संभालने में ज्यादा रस्साकशी नहीं करनी होगी।

सोमवार, 20 सितंबर 2010

अपनों के निशाने पर गडकरी-भागवत

भाजपा में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए संघ ने अनजाने चेहरे गडकरी को अध्यक्ष बनाकर सबको चौंका दिया। लेकिन, अब भाजपा की चौकड़ी सत्ता दल से सांठ-गांठ करके गडकरी और संघ प्रमुख मोहन भागवत को ही हटाने की मुहिम शुरू हो चुकी है।
भाजपा में इन दिनों सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। पार्टी के असरदार नेता आजकल अपने मातृसंगठन के मुखिया से ही नाखुश हैं। कारण एक नहीं, अनेक हैं। कई मौके पर इस मुखिया को दरकिनार किया गया, उसकी बातों को नहीं माना गया। अब तो यह भी कोशिश की जा रही है कि संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत को ही उनकी जगह से हटा दिया जाएगा। न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी। कुछ इसी तर्ज पर भाजपा के वातानुकूलित नेता मजमून तैयार करने में लगे हैं। अव्व्ल तो यह कि ये नेता सत्तापक्ष से भी गुटरगूं करने से परहेज नहीं कर रहे हैं।
दरअसल, बीते दिनों भाजपा के कुछ असंतुष्टï नेताओं ने पार्टी मुख्यालय में एक पर्चा बांटा। इसमें सीधे तौर पर आरोप लगाया गया कि पार्टी में एक गुट वर्तमान अध्यक्ष नितिन गडकरी को हटाने की जुगत में है। असंतुष्टïों ने इस गुट को डी-4 कहकर संबोधित किया है। बताया जाता है कि असंतुष्टï खेमा में वे नेता हैं, जिन्होंने नितिन गडकरी को अध्यक्ष बनाने के लिए दिल्ली-नागपुर के बीच काफी भागदौड़ की थी। इन्हें यह आशा थी कि गडकरी के कुर्सी संभालने के बाद मुख्यालय में इनकी पूछ होने लगेगी और शक्ति की धुरी इनके पास भी होगी, मगर डी-4 नामक गु्रप ने एक के बाद एक, हर अहम कुर्सी पर अपना कब्जा जमा लिया। तब से ही ये लोग अपने को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।
जानकार मानते हैं कि यह डी-4 कोई और नहीं बल्कि आडवाणी खेमा है। बेशक, राजनाथ सिंह की विदाई होने के साथ ही संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कई बार यह एहसास दिलाने की कोशिश की कि भाजपा में अब नया होने वाला है, लेकिन नहीं हुआ। उनके किसी भी बदलाव को सत्ता का स्वाद चख चुकी दिल्ली की चौकड़ी ने तवज्जो नहीं दिया। काबिलेगौर है कि लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली आडवाणी के ही विश्वस्त हैं। जसवंत सिंह की वापसी भी आडवाणी गुट को संबल प्रदान करती है।
इस संबलता से संघ के निष्ठावान कुछ शीर्ष नेताओं ने मोर्चा खोल दिया है, लेकिन दिल्ली की चौकड़ी को इससे फर्क नहीं नहीं पड़ता। इस चौकड़ी के नेताओं को संघ की सलाह पर गांव-गांव घूमकर पार्टी का जनाधार बनाने की कोई इच्छा नहीं है। इस गुणात्मक प्रभाव के कारण पार्टी में भी सत्ता के कई केेंद्र बन चुके हैं। जब राजनाथ सिंह अध्यक्ष थे तो आडवाणी के प्रति सहानुभूति रखने वाले नेताओं का एक वर्ग सक्रिय था, जिसने राजनाथ सिंह को असफल करने की पूरी कोशिश की थी। उम्मीद की जा रही थी कि राजनाथ सिंह के हटने के बाद यह वर्ग पार्टी के साथ एकजुटता दिखाएगा और नए अध्यक्ष नितिन गडकरी को मजबूत करने में नागपुर की मदद करेगा, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है।
यह चौकड़ी अब तो राजनीतिक विरोधी कांग्रेस में सटने की पूरी कोशिश कर रही है। यह अनायास नहीं है कि विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी के साथ बीते दिनों वीरभूमि स्थित राजीव गांधी की समाधि पर जाकर पुष्पांजलि अर्पित करें। संसद के अंदर कई महत्वपूर्ण मसलों पर जिस प्रकार से भाजपा ने कांग्रेस का साथ दिया, उससे संघ हैरत में है। वह अपनी नीतियों को टटोल रहा है। साथ ही भाजपा मुख्यालय से इस बात की तस्दीक कर रहा है कि क्या भाजपा के ये चार असरदार नेता संघ की अवहेलना कर रहे हैं। बीते दिनों अघोषित रूप से पार्टी मुख्यालय में एक पर्चा बंटा था।
पर्चे में आरोप लगाया गया है कि इस खेमा के लोग गृह मंत्री पी. चिदंबरम से भी संपर्क में हैं और जो भगवा आतंकवाद को निशाने पर लेने की कांग्रेस की कोशिश चल रही है, उसे इस खेमा का आशीर्वाद मिला हुआ है। इसी पर्चे में यह भी आरोप लगाया गया है कि पिछले एक वर्ष में आडवाणी और उनके गुट के बाकी डी-4 के नेता, कांग्रेस के बहुत करीब पंहुच गए हैं। 28 अगस्त के अखबारों में छपी एक खबर के हवाले से इस खेमा ने आरोप लगाया है कि आडवाणी की खास कृपापात्र सुषमा स्वराज ने प्रधानमंत्री की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। वैसे भी दिल्ली के सत्ता के गलियारों में यह चर्चा का विषय है कि सुषमा स्वराज और सोनिया गांधी के बीच अब वह तल्खी नहीं है, जो पहले हुआ करती थी।
राजनीति के जानकार बताते हैं कि आडवाणी और डी-4 के लोग संघ की ओर से भारी चुनौती का सामना कर रहे हैं। इन नेताओं में किसी की भी जमीनी राजनीति में कोई हैसियत नहीं है। इनका कोई भी नेता अपने राज्य में कोई भी चुनाव नहीं जीत सकता। इनमें से सभी सुरक्षिता सीट की तलाश में रहते हैं या फिर राज्यसभा के रास्ते संसद पंहुचते हैं। उनकी असली ताकत तिकड़म की राजनीति है। उन्हें दिल्ली दरबार की हर चालाकी मालूम है और वे इसी के बूते संघ को भी धता बता देने की क्षमता रखते हैं। इनके खिलाफ दबी ज़ुबान से ही सही, विरोध के सुर उभर रहे हैं। आरोप लगाया गया है कि यह लोग राजनीति में इतने दक्ष है कि संघ के मोहन भागवत तक इनके सामने असहाय हो जाते हैं।
राजनीतिक प्रेक्षकों की रायशुमारी है कि भाजपा के ही कुछ नेता संघ पर सरकार की तरफ से हो रहे हमलों के निशाने में लाने की कवायद में लगे हुए हैं, क्योंकि उसके बाद डी-4 का पलड़ा भारी हो जाएगा और वह अपनी शर्तों पर संघ को बचाने की कोशिश करेगा, लेकिन सत्ता के लोभ में भाजपा में आए लोग परेशान हैं। ताजा घटनाक्रम में झारखंड में सरकार गठन को लेकर भी भाजपा की चौकड़ी खुश नहीं है। अपने जिन कारणों और सोच के बल पर गडकरी ने भाजपा सरकार का गठन कराया हो, लेकिन किन्हीं कारणों से अगर सरकार गिरती है तो सारा ठीकरा गडकरी के माथे होगा। ऐसी स्थिति मेंं यह चौकड़ी अपने किसी मनमाफिक व्यक्ति को अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाएगी। इस तरह से तमाम घटना-परिघटनाओं से भाजपा का आम कार्यकर्ता भी परेशान है कि अपने खून पसीने से उसने जिस पार्टी को बनाया था, उसका सारा फायदा चंद लोग उठा रहे हैं। उधर, पार्टी के नेतृत्व पर कब्जा जमाए वे लोग खुश हैं, जो नितिन गडकरी के विरोधी हैं और उस घड़ी का इंतजार कर रहे हैं, जब अपनी बेलगाम जबान के चलते गडकरी कोई ऐसी गलती कर देगें जब उन्हें बचा पाना असंभव हो जाएगा और उन्हें भी बंगारू लक्ष्मण की तरह विदा कर दिया जाएगा। हवा का रुख तो यही कह रहा है कि भाजपा नेताओं के कारण अब तक पार्टी को संजीवनी प्रदान करने वाले संघ के सरसंघचालक भी हटा दिए जाएंगे और उनके साथ ही गडकरी को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा।

शनिवार, 11 सितंबर 2010

मचेगा बिहार में घमासान

तमाम आशंकाओं का पटाक्षेप करते हुए चुनाव आयोग ने देश के सबसे अधिक राजनीतिक रूप से सशक्त राज्य बिहार में चुनाव के तारीखों की घोषणा करके सियासी घमासान की औपचारिक शुरूआत कर दी। छह चरणों में होने वाला चुनाव की घोषणा चुनाव आयोग के मुख्य आयुक्त कुरैशी ने 6 सितंबर को की। हालांकि सियासी दलों को इस बात का आभास नहीं था कि चुनाव छह चरणों में होगा, वह भी त्योहारों के बीच में। बिहार के मुख्य त्योहार छठ दिन चुनाव की तारीख को लेकर जदयू सहित राजद और लोजपा को संशय है, वह चरण को लेकर नीतिश सरकार को किसी प्रकार की कोई आपत्ति नहीं है। आयोग का तर्क है कि चूंकि प्रदेश में नक्सलवादी गतिविधि बढ़ी है, इसके चलते शांतिपूर्ण मतदान के लिए यह आवश्यक है। अब राजनीतिक दल अपने-अपने सियासी गणित को साधने में लगे हैं।
बहरहाल, चुनाव आयोग के तयशुदा कार्यक्रम के तहत पहले चरण में 21 अक्टूबर को मतदान होगा। पहले चरण में 47 सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे। जबकि दूसरे चरण का मतदान 25 अक्टूबर को होगा और दूसरे चरण में 47 सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे। 28 अक्टूबर को तीसरे चरण का मतदान होगा जिसमें 48 सीटों, 1 नवंबर को 42, नौ नवंबर को 35 सीटों के लिए तथा 20 नवंबर को 26 सीटों के लिए मतदान होगा। कुल 243 सीटों के लिए मतदान के बाद 24 नवंबर को मतगणना की जाएगी।
दिल्ली में जैसे ही बिहार के लिए चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा की गई, पटना में चुनावी चाल तैयार किए जाने लगे। कुल 243 सीटों वाले बिहार विधानसभा का चुनाव छह चरणों तक खींचे जाने का अनुमान न तो नेताओं को था और न ही सूबे के नौकरशाहों को। नेता छह चरणों में चुनावों की घोषणा का तो इस्तेकबाल कर रहे हैं, लेकिन दशहरा, दिवाली और बिहार का सबसे पावन पर्व छठ के बीच चुनाव की घोषणा को वे गलत करार दे रहे हैं। चुनावों के बरक्स आयोग की घोषणा के साथ ही विभिन्न दलों के नेताओं ने छठ के ठीक पहले पांचवें चरण के चुनाव की तारीख में तब्दीली करने की मांग कर दी है।
सूर्य की उपासना का पर्व छठ नहाय खाय, खरना और सूर्य को एक दिन शाम को और दूसरे दिन सूर्योदय के समय अघ्र्य के साथ तीन दिनों में संपन्न होता है। काबिलेगौर है कि व्रत की तैयारी हफ्ते भर पहले से चलती है इस बीच माना जा रहा है कि विभिन्न दलों के प्रत्याशी चुनाव प्रचार नहीं करने के स्थिति में रहेंगे। जदयू अध्यक्ष शरद यादव का कहना है कि चुनाव आयोग को छठ के ठीक पहले पांचवें चरण के चुनाव की तारीख बदलनी चाहिए। बिहार में छठ पर्व की महत्ता को देखते हुए 9 नवंबर को पांचवें चरण का चुनाव कराना किसी भी दृष्टि से ठीक नहीं।Ó 5 नवंबर को दिवाली के छह दिनों के बाद छठ का पर्व होने के कारण तारीख आती है 11 नवंबर। माना जा रहा है कि व्रत का त्योहार तीन दिनों तक चलने का स्पष्ट असर चुनाव प्रचार पर पड़ेगा। ज्यादातर प्रत्याशियों को इस बात की भी चिंता सता रही है कि चुनावों के बीच आने वाले पर्व के कारण वोटरों तक अपनी बात असरदार तरीके से कैसे पहुंचाई जाए! राजद, लोजपा, भाजपा और कांग्रेस के कई नेताओं ने अलग-अलग बातचीत में स्वीकार किया कि कुछ चुनाव की कुछ तारीखों पर आयोग से बातचीत कर बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की जाएगी। औसतन हर चरण में 40 सीटों पर चुनाव की तैयारी आयोग ने की है।
गौरतलब है कि एस.वाई. कुरैशी के मुख्य चुनाव आयुक्त का पद संभालने के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव होगा। चुनाव आयोग राज्य का पहले ही दौरा कर चुका है और वहां चुनाव की तैयारियों खासकर फोटो पहचान पत्र और मतदाता सूची के संशोधन कार्यो का जायजा ले चुका है। चुनाव की तैयारियों को अंतिम रूप देते हुए चुनाव आयोग ने पिछले दिनों केंद्रीय गृह सचिव जी.के. पिल्लई के साथ सुरक्षा इंतजामों पर चर्चा की थी। पिछली बार यानी वर्ष 2005 में बिहार विधानसभा के चुनाव चार चरणों में कराए गए थे, जबकि 2000 के विधानसभा चुनाव तीन चरणों में हुए थे। 2005 में राज्य में दो बार विधानसभा चुनाव हुए थे। पहली बार फरवरी में मतदान हुआ था और किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था। राज्य में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव हुए थे, जिसमें नीतीश कुमार के नेतृत्व में जदयू भाजपा गठबंधन पिछले पंद्रह वर्षो से सत्ता में काबिज लालू प्रसाद के नेतृत्व वाली राजद को जबर्दस्त शिकस्त देते हुए सत्तारूढ़ हुआ था। आगामी विधानसभा चुनाव में राज्य में सत्तारूढ़ जदयू भाजपा गठबंधन का मुख्य मुकाबला लालू प्रसाद और रामविलास पासवान के नेतृत्व वाली राजद लोजपा गठबंधन से होगा। लंबे समय से सत्ता से बहार रही कांग्रेस भी इस बार पूरे दमखम से चुनाव मैदान में होगी। पिछले लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भी कांग्रेस ने राज्य की सभी सीटों पर अकेले चुनाव लडऩे की घोषणा की है। उधर, वामपंथी पार्टियां माकपा, भाकपा और माकपा माले मिलकर चुनाव लडऩे की तैयारी कर रही हैं। इन दलों के बीच अगले सप्ताह सीटों का तालमेल होने की उम्मीद है।
नीतीश कुमार ने मांग की है कि लोग चुनाव की प्रक्रिया में भयमुक्त होकर भाग लें तथा स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव संपन्न हो सके इसके लिए शत-प्रतिशत मतदान केंद्रों पर केंद्रीय सशस्त्र बलों की तैनाती की जाए।गौर करने योग्य यह भी है कि अभी भी बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एवं भाजपा के बीच जो रस्साकशी चल रही है, उसकी जड़ में मुस्लिम वोटों की राजनीति है। जहां एक ओर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का विवादास्पद विज्ञापन एक रणनीति का हिस्सा था, तो वहीं नीतीश कुमार का बाढ़ पीडि़तों के लिए मोदी द्वारा दी गई 5 करोड़ की राशि लौटाना। बिहार में महादलित का कार्ड चलने के बाद नीतीश अब मुस्लिमों को अपने पाले में खींचना चाहते हैं और यह तभी संभव है जब वह भाजपा के कट्टरपंथी चेहरे पर आघात कर आक्रामक रुख अपनाएं। आजकल वह यही कर रहे हैं। बिहार में दलितों और मुस्लिमों के वोटों की संख्या एक-तिहाई के करीब बैठती है। बिहार में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 39 है। नीतीश की निगाह इसी एक-तिहाई वोट बैंक को हासिल करने की है। बिहार में एक पुरानी कहावत है- यहां लोग वोट डालने नहीं जाते बल्कि जाति के लिए वोट डालते हैं। और इसी के इर्द-गिर्द राजनीति घूमती है। बेशक, इन पांच सालों में विकास कार्य के बल पर नीतिश ने एक नई सोच बनाई है। कुर्मी वोट हालांकि बहुत अधिक नहीं हैं, फिर भी जितने हैं नीतीश के साथ हैं। राज्य में अगड़े वोट बंटे हुए हैं। इस तरह नीतीश इस बार बहुत सोच समझ कर अपनी चाल चल रहे हैं। वह एक नया सामाजिक समीकरण बनाना और उसके बल पर सत्ता में पहुंचना चाहते हैं। बहुत हद तक मुस्लिमों का भरोसा भी एक बड़ा कारण होगा। 2005 के विधानसभा चुनाव में नीतीश के जदयू ने 139 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसने 20.46 फीसदी वोटों के साथ 88 सीटों पर जीत हासिल की थी।
यदि वह इस बार अकेले दम पर सरकार बनाने का सपना देख रहे हैं तो उन्हें 243 सीटों में से 122 सीटों को जीतना होगा। उत्तर-पूर्वी बिहार के कई इलाकों में नीतीश को भाजपा की दरकार हो सकती है। पूर्णिया, किशनगंज, बेतिया, कटिहार, भागलपुर आदि कई जगहों पर एंटी मुस्लिम फीलिंग ने भाजपा को अपने पैर जमाने में मदद की है। यह ऐसे इलाके हैं जहां भाजपा के साथ रहते नीतीश को मुस्लिम वोट मिलना नामुमकिन है। बिहार में मुस्लिमों के वोट पाने के लिए नीतीश को भाजपा का दामन छोडऩा होगा। बिहार में करीब 60 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोट निर्णायक साबित होते हैं। इसी को ध्?यान में रख नीतीश कह रहे हैं कि यदि बिहार में गठबंधन को बचाना है तो भाजपा को नरेंद्र मोदी और वरूण गांधी को बिहार विधानसभा चुनाव से दूर रखना होगा। लेकिन इन इलाकों में यही दो नेता भाजपा के खेवनहार भी बन सकते हैं। गठबंधन पर फैसले को लेकर आज भाजपा के नेता बैठक कर रहे हैं।
नीतीश के इस नये समीकरण को गढऩे की राह में मायावती एक बड़ा रोड़ा बन सकती हैं। बसपा ने बीते विधानसभा चुनाव में 4.17 फीसदी वोटों के साथ 4 सीटों पर जीत हासिल की थी। बसपा कितनी सीटें जीतती है, इससे अधिक वह कितनी सीटों पर वोट काटती है, यह बात देखने वाली होगी। राज्सभा के सदस्?य डाक्?टर एजाज अली, जो कि फिलहाल जदयू से निष्?कासित हैं, ने बताया कि बीते लोकसभा चुनाव में जदयू-भाजपा गठबंधन को मुस्लिमों के वोट नहीं मिले थे। राज्?य में मुस्लिम वोटों की संख्?या 16 फीसदी के करीब है। वह कहते हैं कि राज्?य में मुस्लिम वोट एकतरफा पड़ता है। हालांकि बीते चुनाव में यह लालू और पासवान में बंट गया था।
वहीं, कांग्रेस बिहार विधानसभा चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंकने को तैयार है। पार्टी महासचिव राहुल गांधी के दौरों को लेकर खासी उत्साहित है। सूबे के हरके हिस्से से राहुल गांधी के कार्यक्रम की मांग हो रही है। प्रदेश अध्यक्ष महबूब अली कैसर ने भी आलाकमान से मांग की है कि राहुल गांधी के ज्यादा से ज्यादा दौरे प्रदेश में हों। प्रदेश अध्यक्ष ने इस बाबत खुद राहुल से भी संपर्क साधा है। इस बीच कांग्रेस ने अपने प्रचार अभियान में कुछ निजी एजेंसियों का भी सहयोग लेने का मन बनाया है और कुछ एजेंसियों को यह जिम्मेदारी दे दी गई है।


हर कोई लुभाने की कोशिश करेगा मुस्लिम को
एशियन डवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा कराए गए इस सर्वे के मुताबिक बिहार में मुस्लिमों की आधी आबादी गरीबी रेखा के नीचे गुजर बसर करती है।हालांकि नीतीश कुमार ने राज्य में मुस्लिमों के शैक्षिक एवं आर्थिक उत्थान के लिए तालीमी मरकज और हुनर का प्रोग्राम आदि कार्यक्रम चलाए और कब्रिस्तान की घेराबंदी के लिए विशेष फंड की व्यवस्था की। बिहार में यह मामला दंगे भड़कने का सबसे बड़ा कारण बनता रहा है। बिहार के मुस्लिमों में माइग्रेशन एक बड़ी समस्या बना हुआ है। ग्रामीण इलाकों में प्रति 100 मुस्लिम परिवारों में 63 इस समस्या से जूझ रहे हैं। सर्वे में एक और अहम बात यह सामने आई है कि केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा मुस्लिमों के लिए चलाए जाने वाले कार्यक्रमों का भी उन्हें लाभ नहीं मिल पाता। बिहार का मुस्लिम समाज 43 जातियों में बंटा हुआ है। सर्वे में मुस्लिमों को सबसे गरीब समुदाय बताया गया है।सर्वे के मुताबिक 49.5 फीसदी ग्रामीण मुस्लिम परिवार और 44.8 फीसदी शहरी मुस्लिम परिवार गरीबी रेखा के नीचे रह रहे हैं। 28.04 फीसदी ग्रामीण मुस्लिमों के पास जमीन नहीं है।

बुधवार, 8 सितंबर 2010

हिन्दू धर्म जीवन पद्धति है

हिन्दू धर्म विश्व में सर्वाधिक शालीन, भद्र, सभ्य और ' वसुधैव कुटुम्बकम् Ó की भावना प्रसारित करने वाली जीवन पद्धति है जो किसी संप्रदाय या पंथ से व्याख्यायित नहीं हो सकती। इस जीवन पद्धति के आधुनिक उद्गाता महापुरुषों में स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती, शाहू जी महाराज, लाला लाजपत राय, बालगंगाधर तिलक, श्री अरविंद, महात्मा गांधी, डॉ. हेडगेवार, वीर सावरकर प्रभृति जननायक हुए। उन्होंने उस समय हिन्दू समाज की दुर्बलताओं, असंगठन और पाखण्ड पर चोट की। तेजस्वी-ओजस्वी वीर एवं पराक्रमी हिन्दू को खड़ा करने की कोशिश की। उन महापुरुषों को आज के नेताओं से छोटा या कम बुद्धिमान नहीं कहा जा सकता। महात्मा गांधी ने दुनिया में एक आदर्श हिन्दू का ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया कि आज सारी दुनिया भारत को महात्मा गांधी के देश के नाम से जानती है। डॉ. हेडगेवार ने भारत के हज़ारों साल के इतिहास में पहली बार क्रांतिधर्मा समाज परिवर्तन की ऐसी प्रचारक परम्परा प्रारम्भ की जिसने देश के मूल चरित्र और स्वभाव की रक्षा हेतु अभूतपूर्व सैन्य भावयुक्त नागरिक शक्ति खड़ी कर दी। इनमें से किसी भी महानायक ने नकारात्मक पद्धति को नहीं चुना। सकारात्मक विचार ही

उनकी शक्ति का आधार रहा। स्वामी दयानंद सरस्वती ने पाखंड खंडनी पताका के माध्यम से हिन्दू समाज को शिथिलता से मुक्त किया और ईसाई पादरियों के पापमय, झूठे प्रचार के आघातों से हिन्दू समाज को बचाते हुए शुद्धि आंदोलन की नींव डाली। जिसके परिणामस्वरूप हिन्दू समाज की रक्षा हो पाई। स्वामी विवेकानंद और स्वामी रामतीर्थ ने विश्वभर में हिन्दू धर्म के श्रेष्ठतम स्वरूप का परिचय देते हुए ईसाई और मुस्लिम आक्रमणों के कारण हतबल दिख रहे हिन्दू समाज में नूतन प्राण का संचार करते हुए समाज का सामूहिक मनोबल बढ़ाया।

कोई भी इस सच से इनकार नहीं कर सकता कि हिन्दू धर्म विश्व के सभी धर्मों में सबसे पुराना धर्म है। ये वेदों पर आधारित धर्म है, जो अपने अन्दर कई अलग अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय, और दर्शन समेटे हुए है। अनुयायियों की संख्या के आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है, संख्या के आधार पर इसके अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में है। वैसे इसे मानने वाले हर जगह हैं।

हिन्दू केवल एक धर्म या सम्प्रदाय ही नहीं है अपितु जीवन जीने की एक पद्धति है, 'हिंसायाम दूयते या सा हिन्दुÓ अर्थात् जो अपने मन, वचन, कर्म से हिंसा से दूर रहे वह हिन्दू है और जो कर्म अपने हितों के लिए दूसरों को कष्ट दे वह हिंसा है। सच तो यही है कि हिन्दू धर्म में कोई एक अकेले सिद्धान्तों का समूह नहीं है जिसे सभी हिन्दुओं को मानना ज़रूरी है। ये तो धर्म से ज़्यादा एक जीवन का मार्ग है। हिन्दुओं का कोई केन्द्रीय चर्च या धर्मसंगठन नहीं है, और न ही कोई 'पोपÓ। इसके अन्तर्गत कई मत और सम्प्रदाय आते हैं, और सभी को बराबर श्रद्धा दी जाती है। धर्मग्रन्थ भी कई हैं। फिऱ भी, वो मुख्य सिद्धान्त, जो ज़्यादातर हिन्दू मानते हैं, हैं इन सब में विश्वास धर्म (वैश्विक क़ानून), कर्म (और उसके फल), पुनर्जन्म का सांसारिक चक्र, मोक्ष (सांसारिक बन्धनों से मुक्ति--जिसके कई रास्ते हो सकते हैं), और बेशक, ईश्वर। हिन्दू धर्म के अनुसार संसार के सभी प्राणियों में आत्मा होती है। मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो इस लोक में पाप और पुण्य, दोनों कर्म भोग सकता है, और मोक्ष प्राप्त कर सकता है।

हिन्दू विचारों को प्रवाहित करने वाले वेद हैं, उपनिषद् हैं, स्मृतियां हैं, षड्-दर्शन हैं, गीता, रामायण और महाभारत हैं, कल्पित नीति कथाओं और कहानियों पर आधारित पुराण हैं । ये सभी ग्रन्थ हिन्दुत्व के उद्विकास एवं उसके विभिन्न पहलुओं के दर्शन कराते हैं । इनकी तुलना विभिन्न स्थलों से निकलकर सद्ज्ञान के महासागर की ओर जाने वाली नदियों से की जा सकती है । किन्तु ये नदियाँ प्रदूषित भी हैं । उदाहरण के लिए झूठ पर आधारित वर्ण व्यवस्था को सही ठहराने और प्राचीन स्वरूप देने के लिए ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में कुछ अंश जोड़ा गया । ऊँच-नीच की भावना पैदा करने के लिए अनेक श्लोक गढ़कर मनुस्मृति के मूल स्वरूप को नष्ट कर दिया गया । पुराणों में इतनी अधिक काल्पनिक कथाएँ जोड़ी गयीं कि वे पाखण्ड एवं अंधविश्वास के आपूर्तिकर्ता बन गये । आलोचनाओं में न उलझकर किसी भी ग्रन्थ के अप्रासंगिक अंश को अलग करने पर ही हिन्दुत्व का मूल तत्त्व प्रकट होता है । मोटे तौर पर कहा जाए तो सामान्य हिन्दू का मन किसी एक ग्रन्थ से बँधा हुआ नहीं है । जैसे ब्रिटेन का संविधान लिखित नहीं है किन्तु वहां जीवन्त संसदीय लोकतन्त्र है और अधिकांश लोकतान्त्रिक प्रक्रिया परम्पराओं पर आधारित है; उसी प्रकार सच्चे हिन्दुत्व का वास हिन्दुओं के मन, उनके संस्कार और उनकी महान् परम्पराओं में है ।

आज हम लोग उसी परंपराओं को आगे बढ़ाने के लिए एकत्रित हुए हैं। पूरे विश्व को एक नया संदेश देना चाहते हैं। पिछले कुछ समय से कई देशों में शाकाहार को बढ़ावा देने के लिए तरह-तरह के कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं। कई संस्थाओं का अस्तित्व ही इसी पर है। उन लोगों को हम यह बताना चाहते हैं कि शाकाहार को हिंदू सनातन काल से पोषित करते आ रहे हैं। किसी भी हिन्दू का शाकाहारी होना आवश्यक है, क्योंकि शाकाहार का गुणज्ञान किया जाता है। शाकाहार को सात्विक आहार माना जाता है। आवश्यकता से अधिक तला भुना शाकाहार ग्रहण करना भी राजसिक माना गया है। मांसाहार को इसलिये अच्छा नहीं माना जाता, क्योंकि मांस पशुओं की हत्या से मिलता है। इसीकारण यह तामसिक पदार्थ है। वैदिक काल में पशुओं का मांस खाने की अनुमति नहीं थी, एक सर्वेक्षण के आजकल लगभग 30 प्रतिशत हिन्दू, अधिकतर ब्राह्मण व गुजराती और मारवाड़ी हिन्दू पारम्परिक रूप से शाकाहारी हैं। वे भी गोमांस कभी नहीं खाते, क्योंकि गाय को हिन्दू धर्म में माता समान माना गया है। कुछ हिन्दू मन्दिरों में पशुबलि चढ़ती है, पर आजकल यह प्रथा हिन्दुओं द्वारा ही निन्दित किये जाने से समाप्तप्राय: है।

इन तमाम बातों को कहने के पीछे हमारा मुख्य अभिप्राय केवल और केवल एक ही था। आज जो लोग हिंदुओं के विषय में कई प्रकार के दुष्प्रचार कर रहे हैं, भ्रामक जानकारी देने की असफल कोशिश कर रहे हैं, उनको यह बताना चाहते हैं कि हिंदू समाज अनादिकाल से ही अखिल विश्व के लिए सोचता आया है। आज भी वह केवल अपने लिए ही नहीं, सबके लिए सोच रहा है। पूरे विश्व का कल्याण कैसे हो, यही हमारी कोशिश रहती है।

कितने दिन टिकेंगे मुण्डा ?

आखिरकार वही हुआ जो आज से करीब तीन माह पूर्व हो जाना चाहिए था, भाजपा झामुमो और आजसू के संग मिलकर प्रदेश में सरकार बनाने जा रही है। तीन महीनों के अंदर काफी चली राजनीतिक दांवपेंच के बाद आखिरकार भाजपा की ओर से सरकार बनाने का दावा पेश किया गया और संभावना है कि 10 सितंबर तक अर्जुन मुण्डा प्रदेश की सत्ता पर काबिज होंगे। इसके साथ ही यह कयास लगाए जाने शुरू हो गए हैं कि आखिर कितने दिनों तक चलेगी मुण्डा की सरकार। कारण, करीब नौ वर्षों के कालवधि में प्रदेश की जनता आठवें मुख्यमंत्री को देखने जा रही है।
इससे पूर्व के घटनाक्रम में झारखण्ड में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 7 सितंबर को झारखण्ड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और ऑल झारखण्ड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) के समर्थन से सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया। पार्टी के विधायक दल के नेता चुने गए अर्जुन मुंडा ने राज्यपाल एम.ओ.एच. फारूक से मिलकर उन्हें 45 विधायकों के समर्थन की चि_ी दी। झामुमो, आजसू, जनता दल (युनाइटेड) के नेता और दो निर्दलीय विधायक भी उनके साथ थे। गौरतलब है कि बीते 30 मई को शिबू सोरेन के इस्तीफा देने के बाद से राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है। इससे पहले, पूर्व मुख्यमंत्री मुंडा को भाजपा विधायक दल का नेता चुना गया। पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष रघुबर दास ने इसकी औपचारिक घोषणा की।
कहा यह जा रहा है कि इस तमाम कवायद को लेकर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी काफी चौकस थे। इस दफा वह किसी भी प्रकार की चूक नहीं चाहते थे और इसके लिए सख्त हिदायत प्रदेश के नेताओं को दे रखी थी। झारखंड भाजपा अध्यक्ष रघुवर दास से फ़ोन पर बातचीत की और इसके बाद पार्टी ने प्रदेश में सरकार बनाने का दावा पेश किया। हालांकि, झारमंड मुक्ति मोर्चा ने चार सितंबर को संकेत दिया था कि कोई भी पार्टी अगर सरकार बनाने की दिशा में पहल करती है तो वह बिना शर्त समर्थन देगी। इसके बाद मुंडा ने 6 सितंबर की रात 45 विधायकों की हस्ताक्षरयुक्त सूची राष्ट्रीय नेतृत्व को भेजी। उन्होंने हरी झंडी के लिए वरिष्ठ नेताओं अनंत कुमार, राजनाथ सिंह और वेंकैया नायडू से संपर्क किया। दास ने अपने कदम से पार्टी नेतृत्व को कुछ परेशान कर दिया और उन्होंने तीन घंटे देर से पहुंच कर विधायक दल के नेता पद से इस्तीफ़ा दिया। एक वरिष्ठ नेता ने कहा, देर से संकेत मिलता है कि भाजपा का एक वर्ग सरकार बनाने के प्रति उत्सुक नहीं है, लेकिन पार्टी के निर्देश का पालन किया जाना चाहिए।
सियासी हलकों में कहा जा रहा है कि अगर कांग्रेस की ओर से कोई अड़ंगा नहीं लगाया जाता है तो अर्जुन मुण्डा 10 सितंबर से पहले शपथ ग्रहण कर लेंगे। झारखंड में भाजपा व झामुमो सहयोग से सरकार बनाने के दावा पेश किये जाने के बाद प्रदेश की राजनीति में नयी हलचल पैदा कर दी है। इस पर दिल्ली में कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की एक बैठक हुई जिसमें करीब एक घंटे तक झारखंड की राजनीतिक हालात पर चर्चा की गयी। माना जा रहा है कि केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने राज्य के घटनाक्रम और संप्रग के समक्ष उपलब्ध विकल्पों के बारे में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तथा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को अवगत करा दिया है. इस बैठक में वित्त ंत्री प्रणव मुखर्जी, रक्षा मंत्री एके एंटनी और कानून मंत्री एम वीरप्पा मोइली उपस्थित थे. गौरतलब है कि झामुमो के साथ सत्ता के रास्ते जुदा करने के तीन माह बाद भाजपा ने एकबार फिऱ शिबू सोरेन की पार्टी के साथ मिलकर झारखंड में नयी सरकार बनाने का दावा किया, जिससे कांग्रेसी रणनीतिकारों को काफी ठेस पहुंची है।
राज्य में पिछली राजग सरकार उस वक्त बिखर गयी थी जब राजग में शामिल हुए घटक झारखण्ड मुक्ति मोर्चा ने सीएम पद को लेकर फजीहत पैदा कर दी थी। उस वक्त यह फार्मूला निकाला गया था मुख्यमंत्री पद भाजपा के पास रहेगा और झामुमो तथा आजसू सरकार को समर्थन करेंगे. लेकिन उस वक्त हालात ऐसे हो गये थे कि कोई भी फार्मूला सफल नहीं हुआ और केन्द्र ने 1 जून 2010 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया। इस घटनाक्रम के बाद भी राज्य में अर्जुन मुण्डा सक्रिय रहे और सरकार बनाने की दिशा में काम करते रहे। सरकार बनाने की दिशा में पहली दफा तब बड़ी कामयाबी मिली जब दो दिन पहले आजसू और झारखण्ड मुक्ति मोर्चा दोनों ही दलों ने अर्जुन मुण्डा को अपने समर्थन का पत्र सौंप दिया। इसके बाद भाजपा के विधायक दल की एक बैठक हुई जिसमें अर्जुन मुण्डा को सर्वसम्मति से दोबारा विधायक दल का नेता चुन लिया गया। इसके बाद 7 सितंबर को ही मुण्डा ने राज्यपाल फारुखी से मुलाकात करके सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया और 45 विधायकों के समर्थन की चि_ी सौंप दी।

मंगलवार, 7 सितंबर 2010

क्या सत्ता की दलाल हैं सोनिया गांधी ?

भारती राजनीति में त्याग की प्रतिमूर्ति के रूप में स्थापित श्रीमति सोनिया गांधी ने लगातार चौथी बार अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनकर एक इतिहास रचा हो, लेकिन विदेशी मीडिया को यह नहीं सुहा रहा है। भारत में मीडिया भले ही उन्हें त्याग की देवी बता रहा हो या उनकी महानता का गुणगान कर रहा हो, दुनिया की सबसे बड़ी समाचार एजंसियों में से एक 'एएफपीÓ ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को सत्ता का सबसे बड़ा दलाल घोषित कर दिया है। हैरत तो इस बात को लेकर भी है कि एक भी कांग्रेसी ने इस समाचार पर अपनी अथवा संगठन की ओर से कोई आपत्ति तक नहीं दर्ज कराईं। तो इसे क्या माना जाए? साथ ही साथ लोगों के जेहन में यह सवाल उठने भी शुरू हो गए हैं कि आखिर क्यों सोनिया गांधी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठ रही हैं? अब तो उनका बेटा राहुल गांधी भी इस लायक हो चुके हैं। कांग्रेस महासचिव के रूप में उनका कार्य सब को भा रहा है? तो फिर वह कुर्सी से दूर क्यों हैं? सवाल कई हैं।
दरअसल, सोनिया गांधी के चौथी बार कांग्रेस अध्यक्ष बनने के मौके पर एएफपी ने जो खबर जारी की है उसकी हेडिंग लगाता है कि ''इंडियन पॉवर ब्रोकर सोनिया गांधी विन्स प्लेस इन हिस्ट्री बुक्स।ÓÓ खबर के इन्ट्रो में ही एजेंसी लिखती है कि इटली की पैदाइश सोनिया गांधी सत्ता की दलाली को मजबूत करते हुए सोनिया गांधी रिकार्ड चौथी बार अध्यक्ष बन गयी हैं। (Italian-born Sonia Gandhi was elected Friday for a record fourth term as president of India's ruling Congress party, cementing her role as the power broker of the country's politics.)
अपने देश में पॉवर ब्रोकर शब्द राजनीति में किन लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है इसे बताने की जरूरत नहीं है। खुद अमर सिंह भी अपने आप को पॉवर ब्रोकर (सत्ता के दलाल) कहलाना शायद ही पसंद करें, फिर यहां तो सोनिया गांधी सवाल है। वह जो लाखों कांग्रेसियों के लिए देवी की मूर्ति हैं। जिनके आवास 'दस जनपथÓ की देहरी तक पहुंचने को भी कांग्रेंसी किसी तीर्थ स्थान की मानिंद मानते हैं। हालांकि खबर में एक और अतिवादिता की गयी है। सोनिया गांधी को भले ही कांग्रेस के इतिहास में रिकार्ड दर्ज करनेवाला बताया गया है लेकिन खबर के आखिरी पैरे में एजंसी लिखती है कि ''वे इन दिनों राजनीति में अपने 40 वर्षीय बेटे राहुल गांधी के लिए रास्ता तैयार कर रही हैं ताकि 77 वर्षीय मनमोहन सिंह को हटाकर उन्हें अगला नेता बनाया जा सके।ÓÓ (She now is widely thought to be preparing the way for her son Rahul, y®, to become the country's ne&t leader, replacing -year-old Singh.)
आश्चर्य तो इस बात को लेकर भी है कि भाजपा जब लगतार चौथी बार सोनिया गांधी के अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी को लेकर सवाल खड़े करती हैं तो कई सारे कांग्रेसी विरोध में खड़े हो उठते हैं, लेकिन जब एक विदेशी समाचार एजेंसी इस प्रकार के आपत्तिजनक बातें सोनिया गांधी के बारे में लिखती है तो चूं तक नहंी किया जाता है। आखिर क्यों? क्योंकि वह एक विदेशी समाचार एजेंसी हैं? भाजपा के इस बयान पर कि सोनिया गांधी अध्यक्ष पद खुद ही किसी गैर नेहरू गांधी परिवार के व्यक्ति को आफर कर दें, कांग्रेस ने हंगामा खड़ा कर दिया था। अब एएफपी द्वारा सोनिया गांधी को सत्ता का दलाल बताये जाने पर कांग्रेस के प्रवक्ता क्या कहेंगे? क्या वाकई प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को हटाने के लिए सोनिया राहुल को तैयार कर रही है? हैरत है कि कांग्रेसी और उनका मीडिया प्रभाग कानों में रुई देकर सोया पड़ा है?
कहीं इसके पीछे कोई विदेशी ताकत तो नहीं है? जो एक साथ तीन लोगों पर वार कर रही है। सोचता हूं कौन हैं वो चेहरे, कौन हैं वो हाथ जो सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, मनमोहन सिंह को हमारे सामने किये हुए हैं। पर सब कुछ कितने सही मैनेज किया हुआ है। ये न विस्मयकारी है न रहस्यपूर्ण। खुले आम नंगई है।

शनिवार, 4 सितंबर 2010

सुपरपावर कौन ?

दुनिया में सुपरपावर कौन है? जबाव मिलता है अमेरिका। दूसरे नंबर पर चीन काबिज है। लेकिन हम भी उसी राह पर निकल चुके हैं। हममें भी वह कूव्वत है कि आने वाले दशक में हम सुपरपावर होंगे। आर्थिकयुग में अर्थ ही ताना-बाना बुनता है। भारतीय अर्थव्यव्यवस्था और यहां की युवाशक्ति सुपरपावर बनने के लिए कमर कस चुकी है। आखिर यह कब और कैसे सच होगा?
आर्थिक युग में तमाम क्रियाकलाप 'अर्थÓ यानी धन के सहारे ही संपादित होते हैं। जिसके पास जितना अधिक धन, वह उतना अमीर। अमीर यानी शक्तिशाली। तभी तो अमेरिका पूरे विश्व में सुपरपावर बनकर अपनी दादागिरी बघारता फिर रहा है। अमेरिका के बाद दूसरे पायदान पर चीन है। आर्थिक समृद्धि के बल पर ही चीन सामरिक महाशक्ति बनकर चुपचाप दुनिया पर नजर रख रहा है। लोगों को पढ़-सुनकर भले इस बात पर हंसने का मन करे, मगर जल्द ही हम सुपरपावर बनने जा रहे हैं। हम यानी हमारा देश भारत। दुनिया अमेरिका और चीन को भूल जाएगी और हमारा डंका बजेगा। हममें वह ताकत है कि हम महाशक्ति बन सकते हैं। जवान भारत (देश में 50 फीसदी से अधिक आबादी युवा है) की दूरदर्शिता, मजबूत और गतिशील आर्थिक ढांचा हमें इस रास्ते पर ले चला है। हमारी ठोस आर्थिक जमीन का ही नतीजा है कि जब अमेरिकी आर्थिक मंदी ने पूरे विश्व की चूलें हिला रखी थी, भारतीय अर्थव्यवस्था पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। हमारी आर्थिक गतिविधि चलती रही और हमने विकास दर को भी बरकरार रखा।
इसके पीछे एक सच यह भी है कि भारतीयों के पैसा दुनिया में सबसे अधिक पैसा है। यह अलग बात है कि यह पैसा काला धन के रूप में हैं। कुछ दिन पहले ही बात सामने आई थी कि केवल स्विस बैंक में भारतीयों की जमा पूंजी 700 खरब की है। इसके अलावा देश के कितने ही लोग अपने लॉकरों और घरों के तिजोरी में कितना धन रखे हुए हैं, इसकी कोई आधिकारिक सूचना नहीं है। हाल के आंकड़े बताते हैं कि 30 करोड़ भारतीयों की परचेजिंग पावर 20 हजार रुपये प्रतिमाह से अधिक की हो गई है।
यह कोई अतिरंजना नहीं, विभिन्न आर्थिक मामलों के विशेषज्ञों की रायशुमारी है। कई रिपोर्ट भी हमारी सोच का समर्थन करती हैं। दुनिया की जानी मानी रिसर्च फर्म मॉर्गन स्टैनली की रिपोर्ट में बड़े स्पष्टï शब्दों में कहा गया है कि भले ही चीन दुनिया की नंबर-2 अर्थव्यवस्था बन गया है, लेकिन भारत जल्द ही आर्थिक विकास दर के मामले में उसे पीछे छोडऩे वाला है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत 2013 से 2015 के बीच 9-9.5 फीसदी विकास दर हासिल करने की ओर बढ़ रहा है, जबकि चीन की विकास दर की रफ्तार धीमी दिखाई दे रही है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चीन की विकास दर 2012 में घटकर 9 फीसदी के स्तर पर आ जाएगी। वहीं 2015 तक इसमें और गिरावट आएगी और यह 8 फीसदी ही रह जाएगी।
यहां गौर करने लायक है कि यह बात फिर कही जा रही है कि अमेरिका पर एक बार फिर मंदी के बादल मंडरा रहे हैं और अगर ऐसा होता है तो अमेरिकी अर्थव्यस्था बर्बादी की कगार पर पहुंच जाएगी क्योंकि वह तो अभी पहली मंदी से ही पूरी तरह नहीं उबर पाई है। 2008 की मंदी के दौरान वहां बेरोजगार हुए लोगों में से लाखों लोगों को अभी तक नौकरी नहीं मिल पाई है। जानकारों का कहना है कि ऐसे में अगर दोबारा वहां मंदी आती है तो चीन और भारत पर्चेजिंग पावर के मामले में अमेरिकी अर्थवस्था को पछाड़ सकते हैं।
जानकारों का स्पष्टï तौर पर मानना है कि भारत एक बार फिर विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक और राजनीतिक ताकत बनने को तैयार है। भारत आने वाले 50 वर्षों में 17वीं सदी वाली आर्थिक संपन्नता को प्राप्त कर लेगा। एक अग्रणी जर्मनी बैंक की ओर से तैयार रिपोर्ट में कहा गया है कि पचास वर्ष बाद भारत और चीन की अर्थव्यवस्था का आकार पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था का एक चौथाई होगा। आर्थिक इतिहासविद एंगुस मैडिशन की एक पुस्तक पर आधारित रिपोर्ट में कहा गया है कि 17वीं सदी में चीन और भारत की अर्थव्यवस्था का आकार विश्व की पूरी अर्थव्यवस्था का 25 फीसदी था। बाद में 1950 तक आते-आते यह पांच फीसदी से भी कम रह गया। डियोस्टेक बैंक की शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व अर्थव्यवस्था में भारत और चीन अगले 50 साल में फिर शीर्ष स्थान पर होंगे।
जब आर्थिक रूप से संपन्न होंगे तो हमारी सामरिक शक्ति को कोई चुनौती नहीं दे सकता। आज भारत की सेना विश्व में दूसरे नंबर पर है। वायुसेना का स्थान चौथा, जल सेना का स्थान पांचवा है। भारतीय सेना वैश्विक स्तर पर अन्य देशों की सैन्यशक्ति की तुलना में अपना विशिष्ट स्थान न केवल सामरिक दृष्टिï से रखती है, बल्कि भारतीय सेना के जांबाज युद्ध नीति, कौशल कला के प्रत्येक क्षेत्र में श्रेष्ठ योग्यता रखते हैं। सैन्य मामलों के जानकार रिटयार्ड मेजर जनरल जी.डी. बक्शी के अनुसार द्वितीय युद्ध के बाद से लगातार भारतीय सैन्य शक्ति में इजाफा हुआ है। देश में आज तक का जो विकास और बदलाव दिखाई देता है वह भारत में समय-समय पर हुई सैन्य क्रांतियों का परिणाम है। पांच हजार वर्षों के भारतीय इतिहास में तीन बार देश में सुगठित साम्राज्य देखने को मिला। मौर्य, मुगल और ब्रिटिश काल में। चाणक्य ने मौर्य काल में जो सैन्यनीति बनाई वह आज भी प्रासंगिक है। उसका उपयोग कर ही भारत विश्वशक्ति बन सकता है। इस राह पर भारत काम भी कर रहा है।
सूचना-प्रौद्योगिकी के अपने विकसित क्षेत्र में हम चीन पर छा सके, इसकी पूरी संभावनाएं नहीं है। हमें भी अपने उत्पादों की लागत घटाकर और गुणवत्ता और बढ़ाकर उन्हें चीनी बाजारों में अच्छी मार्केटिंग के साथ जोरदार प्रवेश दिलाना होगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि 1991 के बाद शुरू हुए उदारीकरण के दौर में भारत और चीन दो प्रमुख आर्थिक शक्तियों के रूप में उभरकर सामने आए हैं। भारत और चीन के पास अपने-अपने कई चमकते हुए आर्थिक संसाधनों और मानव संसाधनों की धरोहर है।
कैसे होगा यह
भारत युवा देश है। इसका सीधे तौर पर मतलब यह हुआ कि देश की कुल आबादी में युवाओं की तादाद ज्यादा है। जब कोई अर्थव्यवस्था आगे बढ़ती है तो वहां मृत्युदर और जन्म दर में कमी आती है। इसके चलते कामकाजी लोगों की संख्या बढ़ जाती है और गैर-कामकाजी लोगों की आबादी घटती है यानी काम करने वाले लोगों पर गैरकामकाजी लोगों का बोझ कम हो जाता है। इससे लोगों के बचत करने की क्षमता में तो इजाफा होता ही है, जीडीपी में लोगों की हिस्सेदारी भी बढ़ जाती है। इसके साथ ही पिछले दिनों इन्फ्रास्ट्रक्चर में सरकार की तरफ से बीते कुछ दिनों में जो भारी भरकम निवेश किया गया है, उसका भी सकारात्मक असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। ज्यादा से ज्यादा लोगों को काम काम मिला है। इससे जीडीपी ग्रोथ रेट बढ़ा है। जाहिरतौर पर आने वाले दिनों में भारत में अर्थव्यवस्था की ग्रोथ रेट में जोरदार उछाल आने वाला है। और ये ग्रोथ रेट चीन से कहीं ज्यादा होगी।
विशेष बातें :
भारत 2013 से 2015 के बीच 9-9.5 फीसदी विकास दर हासिल करने की ओर बढ़ रहा है। चीन की विकास दर 2012 में घटकर 9 फीसदी के स्तर पर आ जाएगी। 2015 तक इसमें और गिरावट आएगी और यह 8 फीसदी ही रह जाएगी।
भारत युवा देश है। देश की कुल आबादी में युवाओं की तादाद सबसे ज्यादा है। जब कोई अर्थव्यवस्था आगे बढ़ती है तो वहां मृत्यु दर और जन्म दर में कमी आती है। इसके चलते कामकाजी लोगों की संख्या बढ़ जाती
भारतीयों में मल्टीटास्किंग योग्यता गजब की है। एक औसत अमेरिकी में एक बार में दो काम करने की क्षमता नहीं होती, जबकि भारत के किसी गांव में चले जाएं तो वहां का दुकानदार एक ग्राहक को कीमत बोलता मिलेगा, तो दूसरे के लिए पुडिय़ा बांध रहा होगा और बीच-बीच में घर के अंदर झांककर पत्नी को घरेलू काम के लिए निर्देश दे रहा होगा।
भारत विश्व का सबसे बड़ा बहुदलीय लोकतंत्र है। उसके पास दुनिया की चौथी सबसे बड़ी सेना है और क्रयशक्ति के आधार पर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है जो अगले बीस वर्षों के भीतर विश्व में तीसरे स्थान पर पहुंच जाएगी।
भारत के पास अमरीका के बाद सबसे अधिक इंजीनीयर, डॉक्टर और विशेषज्ञ हैं। भारत के पास सबसे बड़ा फिल्म उद्योग है और विश्व भर में उसके खाने, फैशन और संस्कृति की धाक है।
अर्थशास्त्र का सीधा सा सिद्धांत है कि श्रेष्ठ होने के लिए हम दुनिया के श्रेष्ठ से प्रतिस्पर्धा करें। संयोगवश, हमें इस मसले पर किसी से घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि हमने यह दिखा दिया है कि दुनिया के बाजार में भारतीय बेहद प्रतिस्पर्धी हैं और हमें किसी के संरक्षण की जरूरत नहीं।
- अर्थव्यवस्था की तरक्की के लिए जरूरी है कि सरकार नीतियों में खुलापन लाए और भारतीय उद्यमियों को भी खुलकर काम करने दे। हमारी सरकार इसी सोच के साथ आगे बढ़ रही है। पिछले एक दशक में भारत में सबसे तेज गति से निवेश हुआ है।
अमरीका में करीब 35,000 भारतीय डॉक्टर काम कर रहे हैं, जो देश का पांच फीसदी है। भारत के कई छात्र वहां मेडिकल कॉलेजों में भी पढ़ रहे हैं और यह संख्या अमेरिका के कुल मेडिकल छात्रों का दस फीसदी हैं।
- विश्व के कुल जीडीपी में लगभग 40 फीसदी योगदान अमेरिका का हुआ करता था, पर चीन ने अमेरिका को पछाड़ दिया है और पिछले साल कुल वैश्विक विकास में 25 फीसदी हिस्सा चीन का ही था।
-तेजी से विकास के लिए चीन ने निवेश-आधारित रणनीति पर जोर दिया, जबकि हम खपत-आधारित रणनीति से लाभान्वित हुए हैं। भारत में भी बचत व निवेश दर 34 प्रतिशत है और विकास की गति के लिए इसे बनाए रखना होगा।