शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

खास है ओबामा को लेकर उड़ने वाला विमान


दुनिया के सबसे ताकतवर शख्स माने जाने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति 6 नवंबर को भारत पहुंच रहे हैं। इस यात्रा में होने वाले समझौतों, राजनयिक साझेदारियों और कूटनीतिक चर्चा के अलावा एक बार फिर अमेरिका के राष्ट्रपति के भोजन, उनके यात्रा स्थलों की भी चर्चा हो रही है। अब बारी है उनके आने-जाने के साधनों की। बराक ओबामा एक बेहद खास विमान से भारत पहुंचेंगे। यह विमान है एयर फोर्स वन। आइए जानें कि एक खास शख्स को लेकर उड़ने वाले इस विमान की क्या खासियतें, अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा वहां की वायु सेना के जिस भी विमान में सफर करते हैं, उसे तकनीकी तौर पर 'एयर फोर्स वन' नाम से जाना जाता है। फिलहाल एयर फोर्स वन के बेड़े में बोइंग 747-200 बी सीरीज़ के दो विमान शामिल हैं। अमेरिका की वायु सेना ने इन जहाजों को जो कोड दिया है वह है वीसी-25 ए। दुनिया के सबसे ताकतवर शख्स को उनकी मंजिल तक पहुंचाने वाले यह विमान बेहद खास है। दरअसल, एयर फोर्स वन एक कॉल साइन है जो अमेरिकी एयर ट्रैफिक कंट्रोल के तहत सिर्फ अमेरिका के राष्ट्रपति के विमान के लिए तय है। यह परंपरा 1953 में तब शुरू हुई जब एक व्यवसायिक विमान अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति आइजेनहावर के विमान के हवाई क्षेत्र में दाखिल हो गया। अमेरिका के राष्ट्रपति को ले जाने के लिए कई विमानों का इस्तेमाल किया गया है। लेकिन 1990 से दो बोइंग विमानों वीसी-25ए का ही इस्तेमाल किया जा रहा है। यह बोइंग 747-200 बी सीरीज़ का विमान है। अमेरिका की वायु सेना अब इन दोनों विमानों को बदलने की योजना पर काम कर रही है। नए विमानों को सप्लाई करने की होड़ में सिर्फ बोइंग ही शामिल है। अमेरिका के राष्ट्रपति के लिए नया एयर फोर्स वन विमान 2017 में शामिल किया जाएगा। इन विमानों पर यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका लिखा हुआ है। साथ ही अमेरिकी झंडे की छाप और अमेरिका के राष्ट्रपति की मुहर भी इस विमान के बाहरी हिस्से में देखी जा सकती है।

इस विमान में हवा में ही ईंधन भरने की क्षमता है। एयर फोर्स वन की उड़ा क्षमता जबर्दस्त है। विमान के भीतर मौजूद इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों पर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों का कोई असर नहीं पड़ता है। इसके अलावा, एयर फोर्स वन में संचार की आधुनिकतम सुविधाएं मौजूद हैं, जिसकी खास बात यह है कि अमेरिका पर हमले की स्थिति में यह विमान मोबाइल कमांड सेंटर में तब्दील हो सकता है। विमान के तीन स्तरों में करीब 4 हजार वर्गफुट का क्षेत्रफल है, जिसका इस्तेमाल राष्ट्रपति और उनके सहयोगी करते हैं। इसमें राष्ट्रपति के एक सूट भी शामिल है। इस सूट में एक बड़ा दफ्तर, वॉश रूम और कॉन्फ्रेंस रूम शामिल है। एयर फोर्स वन में एक मेडिकल सूट भी है, जिसमें ऑपरेशन करने की सुविधा मौजूद है। विमान में राष्ट्रपति के साथ एक डॉक्टर हमेशा यात्रा करता है। विमान में दो फूड गैलरी हैं जहां एक बार में करीब 100 लोगों के भोजन का इंतजाम किया जा सकता है। इस विमान में अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ सफर करने वाले लोगों के लिए क्वॉर्टर भी है। इस विमान के आगे--आगे कई कार्गो विमान भी उड़ते हैं, जो आपातकाल या दूरदराज के इलाकों में राष्ट्रपति की जरूरतें पूरी कर सकें। एयर फोर्स वन के रखरखाव और संचालन का काम प्रेजिडेंशल एयरलिफ्ट ग्रुप करता है जो वाइट हाउस सैन्य दफ्तर का हिस्सा है...

अमेरिका के राष्ट्रपति अगर हवा में बेहद खास विमान से उड़ते हैं तो ज़मीन पर उनके सफर का इंतजाम भी कहीं से भी कमतर नहीं है। अमेरिका के राष्ट्रपति लिमो वन: द बीस्ट नाम की कार से चलते हैं। द बीस्ट एक लिमो कार है जिसमें अमेरिका के राष्ट्रपति चलते हैं। दुनिया में जहां कहीं भी राष्ट्रपति जाते हैं, यह कार उनकी सेवा में हाजिर रहती है। यह कार बेहद सुरक्षित है। कार का कोड नेम 'स्टेजकोच' है। लेकिन इसका वजन, वीलबेस और बंकर जैसी सुरक्षा इस कार को खास बनाती है। जनरल मोटर (जीएम) ने इसका निर्माण किया है। यह कार बराक ओबामा के शपथ ग्रहण समारोह के दिन, 20 जनवरी, 2009 से उनकी सेवा में है। हालांकि, सुरक्षा पहलुओं के मद्देनजर इस कार की कई खासियतें सार्वजनिक नहीं की गई हैं। अमेरिका के प्रोटेक्टिव ऑपरेशंस के सीक्रेट सर्विस ऑफिस के पूर्व सहायक निदेशक निकोलस ट्रोटा ने कहा, इस कार की सुरक्षा और संचार प्रणाली कोड आधारित है। जीएम और सीक्रेट सर्विस पर इस कार की देखभाल का जिम्मा है। कार में आधुनिक संचार सुविधाएं मौजूद हैं, जिसमें फोन, सेटेलाइट, इंटरनेट शामिल हैं। कार की कीमत करीब 1.35 करोड़ रुपये है। ओबामा की कार उनसे पहले अमेरिका के राष्ट्रपति रहे जॉर्ज बुश की कार कैडिलैक डीटीएस का आधुनिक संस्करण है। लिमो वन का वज़न सात से आठ टन है। कार में डीज़ल इंजन लगा है। कार में जीएम के मीडियम ड्यूटी ट्रक चेसिस का इस्तेमाल किया गया है। दरवाजों पर लगी धातु की चादर की मोटाई करीब आठ इंच है। हर दरवाजे का वजन तकरीबन बोइंग 747 विमान के केबिन के दरवाजे के बराबर है। गाड़ी के ऊपर सेना द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला आर्मर चढ़ाया गया है। इस आर्मर को बनाने में स्टील, एल्युमिनियम, टाइटेनियम और सेरेमिक जैसी धातुओं और पदार्थ का इस्तेमाल किया जाता है। कार में शीशे के तौर पर बैलिस्टिक ग्लास लगाई गई है, जिसकी मोटाई करीब पांच इंच है। अमेरिका के मशहूर अख़बार लॉस एंजिलिस टाइम्स के मुताबिक कार की फर्श में केवलार मैट (चटाई) का इस्तेमाल किया गया है, ताकि विस्फोट से इस कार को बचाया जा सके। कार में रासायनिक हमले की स्थिति में सांस लेने के लिए एयर रिसर्कुलेशन सिस्टम भी मौजूद है। ओबामा की इस शानदार कार में अंदरूनी साजसज्जा के लिए चमड़े का खूब इस्तेमाल किया गया है। राष्ट्रपति के मनोरंजन के लिए कार में एक सीडी सिस्टम भी है। डेट्रॉएट न्यूज के मुताबिक जनरल मोटर्स (जीएम) ने इस तरह की महज 25 कारों का निर्माण किया है, जो सिर्फ ओबामा प्रशासन के इस्तेमाल के लिए हैं। इन कारों की औसत उम्र एक दशक है, लेकिन राष्ट्रपति की कार हर चार साल में बदल दी जाती है। राष्ट्रपति द्वारा खाली की गई कारों का इस्तेमाल उप राष्ट्रपति और अमेरिका आने वाले विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्ष करते हैं।


साभार

गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

भ्रष्टं...भ्रष्टं....भ्रष्टं....

जन्म से लेकर मृत्यु और मृत्यु पश्चात के कर्मकाण्डों के लिए भी भारत में सुविधा शुल्क देना पड़ता है। मृत्यु या जन्म प्रमाणपत्र लेना हो, या फिर भीड़ भरी ट्रेन में सीट, हमें यह करना होता है। नहीं किया, तो काम नहीं होगा। नतीजन, करीब 1 ट्रीलियन डालर का भुगतान सुविधा शुल्क के रूप में करते हैं जबकि यहां एक अरब लोग रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जबरदस्त असमानता। भ्रष्टïाचार आज शिष्टïाचार की संज्ञा में समाहित होता दिख रहा है। हर जगह, हर स्तर पर यह व्याप्त है। जो लोग किसी कारणवश इसके पकड़ में आ गए, वह भ्रष्टाचारी नहीं तो शेष शिष्टïाचारी। कई रिपोर्टेां से बात को बल मिलता रहा है कि भारत में दिन दूनी, रात चौगुनी की गति से भ्रष्टाचार का फैलाव होता जा रहा है। हाल ही में, जिस प्रकार से राष्टï्रमंडल खेलों में भ्रष्टïाचार की खबरें ने लोगों को दांतों तले अंगुली दबाने पर विवश कर दिया, वह अनायास नहीं था। इस देश में तो यह सदियों से चला आ रहा है।
यकीन मानिए, भारत में भ्रष्टाचार का इतिहास बहुत पुराना है। भारत की आजादी के पूर्व अंग्रंजों ने सुविधाएं प्राप्त करने के लिए भारत के सम्पन्न लोगों को सुविधास्वरूप धन देना प्रारंभ किया। राजे रजवाड़े और साहूकारों को धन देकर उनसे वे सब प्राप्त कर लेते थे जो उन्हे चाहिए था। अंग्रेज भारत के रईसों को धन देकर अपने ही देश के साथ गद्दारी करने के लिए कहा करते थे और ये रईस ऐसा ही करते हैं। यह भ्रष्टाचार वहीं से प्रारम्भ हुआ और तब से आज तक लगातार चलते हुए फल फूल रहा है। रईसों की जगह अब नेता और नौकरशाहों ने ले रखी है। तो उनके साथ के कारिन्दें भी भला क्यों पीछे रहें?
बाबरनामा में उल्लेख है कि कैसे मु_ी भर बाहरी हमलावर भारत की सड़कों से गुजरते थे। सड़क के दोनों ओर लाखों की संख्या में खड़े लोग मूकदर्शक बन कर तमाशा देखते थे। बाहरी आक्रमणकारियों ने कहा है कि यह मूकदर्शक बनी भीड़, अगर हमलावरों पर टूट पड़ती, तो भारत के हालात भिन्न होते। इसी तरह पलासी की लड़ाई में एक तरफ़ लाखों की सेना, दूसरी तरफ़ अंगरेजों के साथ मु_ी भर सिपाही, पर भारतीय हार गये। एक तरफ़ 50,000 भारतीयों की फ़ौज, दूसरी ओर अंगरेजों के 3000 सिपाही. पर अंगरेज जीते. भारत फिऱ गुलाम हआ. जब बख्तियार खिलजी ने नालंदा पर ग्यारहवीं शताब्दी में आक्रमण किया, तो क्या हालात थे? खिलजी की सौ से भी कम सिपाहियों की फ़ौज ने नालंदा के दस हजार से अधिक भिक्षुओं को भागने पर मजबूर कर दिया। नालंदा का विश्वप्रसिद्ध पुस्तकालय वर्षों तक सुलगता रहा। तब भी कोई प्रतिकार नहीं हुआ और आज भी नहीं हो रहा।
नतीजन, हर तीन में से एक भारतीय भ्रष्टïाचार में लिप्त है। यह कोई हवा-हवाई बात नहीं है, बल्कि केंद्रीय सतर्कता आयोग के पूर्व आयुक्त प्रत्युष सिन्हा ने भी कही है। बकौल प्रत्यूष सिन्हा, 'मेरे कार्यकाल का सबसे खराब पहलू यह निरीक्षण करना रहा है कि सुविधाओं के बढने के साथ भ्रष्टाचार में कैसे बढोतरी हो रही है? मैं जब छोटा था और उन दिनों अगर कोई आदमी भ्रष्ट पाया जाता था तो इसे सामाजिक कलंक माना जाता था। लेकिन समाज ने भ्रष्टाचार की बीमारी को सामाजिक स्वीकार्यता दे दी है। आज बमुश्किल 20 प्रतिशत लोग ही ऐसे होंगे जो अपनी अंतरात्मा की शक्ति के बल पर ईमानदारी से जिंदगी जी रहे हैं। आधुनिक भारत में धनवान को ही सम्मानजनक माना जाता है। लेकिन कोई यह प्रश्न नहीं उठाता कि उसने इतना धन कैसे कमाया है।Ó
काबिलेगौर है कि ग्लोबल फाइनेन्शियल इन्टीग्रिटी (जीएफआई) की रिपोर्ट कहती है कि बाहर भेजे जाने वाले धन में से ज्यादातर भारत में ही कमाया गया धन था जिसे अवैध तरीके से बाहर भेजा गया। जीएफआई की अर्थशास्त्री कार्ली कर्सियो ने भारत से अवैध वित्तीय प्रवाह और गरीबी, भ्रष्टाचार व अपराध से इसके संबंध पर जारी हुई इस रिपोर्ट के विषय में एक ब्लॉग पर कहा है, 'भारत में मानवता के खिलाफ इस भ्रष्टाचार को चुनौती देने के लिए हाल ही में किए गए प्रयासों को हिंसा का सामना करना पड़ा है। भारत के वित्तीय रूप से विकास करने और बेहतर बुनियादी सुविधाओं के चलते ऐसा माना जाता है कि इसके साथ सभी भारतीय नागरिकों के रहन-सहन के स्तर में सुधार होता है और लोगों की आय में अंतर कम होता है जबकि वास्तविकता यह है कि समय के साथ भारतीयों की आय में असमानता बढ़ी है।Ó
सेंटर फॉर इंटरनेशनल पॉलिसी (सीआईपी) की शोध शाखा का कहना है कि भारत में भ्रष्टाचार के बढऩे और अवैध कारोबार के चलते वित्तीय प्रवाह देश से बाहर की ओर हो रहा है। रिपोर्ट कहती है कि पिछले 8 वर्ष में भारत से भ्रष्टïाचार का 125 अरब डॉलर धन विदेशों में जमा किया गया है। साथ ही इसमें कहा गया है कि लभभग सभी विकासशील देशों की तरह भारत में भी भ्रष्टाचार व्याप्त है। भ्रष्ट राजनेता और भ्रष्ट कारपोरेट अधिकारी राजनीतिक और निजी क्षेत्र में इस्तेमाल के लिए भारतीयों की मदद के लिए इस्तेमाल होने वाली इस राशि को अवैध तरीके से बाहर भेज देते हैं।
भारत में यह प्रचलन हो गया है कि किसी भी काम के लिए हमें सुविधा शुल्क देना पड़ता है। यह स्पीड मनी होता है और यदि आप सुविधा शुल्क नहीं देंगे तो आप कोई भी काम नहीं करा सकते। देश की लचर कानून ब्यवस्था का नौकरशाह व राजनीतिज्ञ भरपूर लाभ उठाते हैं लेकिन आम आदमी को कोई भी काम कराने के लिए सुविधा शुल्क का सहारा लेना पड़ता है। मृत्यु या जन्म प्रमाणपत्र लेना हो, या फिर भीड़ भरी ट्रेन में सीट, हमें सुविधा शुल्क देना पड़ता है। एक अनुमान के अनुसार अपना काम कराने के लिए लोग लगभग 1 ट्रीलियन डालर का भुगतान करते हैं जबकि यहां एक अरब लोग रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यहां तो जीने के लिए भी लोगों को सुविधा शुल्क देने की आवश्यकता पड़ रही है। जब भ्रष्टाचार ऊंचे स्थानों पर होता है और उसमें रक्षा व उड़ानों से संबंधित सौदे होते हैं तो उसके कुछ और ही मायने होते हैं।
क्या कहेंगे आप? और क्या सोचेगी आपकी आने वाली पीढ़ी? आगामी पीढ़ी को इस संक्र ामक बीमारी से सरकार ही छुटकारा दिला सकती है, जिसमें आमजन की भागीदारी हो। आईटी क्षेत्र की प्रमुख कंपनी इन्फोसिस के गैर कार्यकारी चेयरमैन और संरक्षक नारायणमूर्ति का कहना है कि भारत सरकार को भ्रष्ट लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। उनका कहना है कि कि ई-प्रशासन से जवाबदेही में सुधार हो सकता है। सार्वजनिक क्षेत्र की बड़ी परियोजनाओं के आंकड़ों को इंटरनेट पर डाला जाना चाहिए। इससे न केवल भ्रष्टाचार कम किया जा सकता है, बल्कि देश में जवाबदेही के स्तर में भी सुधार हो सकता है। मूर्ति के अनुसार, 'हमें ऐसे नेतृत्व की जरूरत है जो भ्रष्ट लोगों से सख्ती से निपट सके। चीन में भ्रष्टाचार में शामिल लोगों को मौत की सजा तक दी जाती है।Ó

गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010

ऐसी थी हर्ट की लेह विकास यात्रा


विनोद बंसल


यूं तो गैर सरकारी संगठन हर्ट (हिंदू इमर्जेंसी एड एण्ड रिलीफ़ टीम)द्वारा अनेक प्रकार की राहत सामग्री लेह लद्दाख के बाढ पीडितों कीसहायतार्थ पहले से ही भेज कर उसका वितरण किया जा रहा था किन्तु फ़िर भीराहत कार्यों को नजदीक से स्वयं निरीक्षण करने तथा आगामी योजनार्थ हर्टके एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधि मण्ड्ल ने वहां जाने का निर्णय लिया।दुनिया के सबसे ऊंचे स्थानों में से एक लेह में गत 6 अगस्त को आई भीषणबाढ की चपेट में मारे गए 200 से अधिक लोगों के परिजनों व अन्य पीडितों कीसहायतार्थ विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की प्रेरणा से बने हर्ट का एक सातसदस्यीय उच्च स्तरीय प्रतिनिधि मंण्डल गत मास लेह पंहुचा जिसमें मैं भीसामिल था। लद्दाख के लेह शहर और उसके आस पास के क्षेत्रों में हुई प्रकतिकी ताण्डव लीला का अध्ययन करने हमारा दल वहां से सायं 2-30 बजे रवानाहुआ। जब हमने मानेट्रेडिंग व चोगलमसर के साथ ढलान पर स्थित जिला मुख्यालयके क्षेत्र को देखा तो बिना किसी से पूछे, स्वतः आभास हो गया कि बाढ काप्रकोप यहां कितना गंभीर था। मकानों, दुकानों व अन्य भवनों के खण्डहर वकीचड से भरे हुए घर चीख-चीख कर अपनी व्यथा सुना रहे थे। चारों तरफ़ विनाशकी ताण्डव लीला दिखाई दे रही थी। दूर दूर तक टूटे-फ़ूटे भवन व उखडे हुएपेड ही दिखाई दे रहे थे। लेह शहर, जो दुनिया की छत के नाम से जाना जाताहै उसके नागरिक अपनी छत की बाट जोह रहे थे।अनेक प्रभावित क्षेत्रों को देखते हुए हम लोग ऊंची पहाडी पर स्थित कालीमाता के मंदिर के दर्शन करने पहुंचे और उसके बाद क्षेत्र की कुशल क्षेमहेतु पवित्र सिंधु घाट पर पूजा अर्चना की। सूर्यास्त की किरणें सिंधु जलपर पड़ने से उसकी स्वर्णिंम छवि मानो कह रही थी कि भारत का यह मस्तिस्कपुन: स्वर्ण मुकुट की तरह चमकेगा।दूसरे दिन प्रातः 9-30 बजे हमारा दल हर्ट के अस्थाई कार्यालय, राहतसामग्री के भण्डार ग्रह व राहत शिविरों के साथ जिले के विविध गावों काअध्ययन करने तथा प्रभावित परिवारों से व्यक्तिगत रूप से मिलने हेतु रवानाहुआ। सबसे पहले राहत सामग्री भंडार ग्रह में पहुंच हम सभी ने वहां रखेसामान को इस तरह पैक किया कि प्रत्येक पीडित परिवार को समान रूप से उसकावितरण सुनिश्चित हो सके। इस सामग्री को हमने एक टाटा 407 गाडी में भरा औरवहां से चल दिए।विश्व हिंदू परिषद के केन्द्रीय संयुक्त महामंत्री व हर्ट के ट्रष्टीस्वामी विज्ञानानन्द जी महाराज के नेतृत्व में हमारे दल में चेन्नई सेआईं प्रसिद्ध शिक्षाविद व विश्व हिंदू विधा केन्द्र की महामंत्री डाश्रीमती गिरिजा शेषाद्री, दिल्ली के यूरोलोजिस्ट डा शिल्पी तिवारी, समाजसेवी श्री संजीव साहनी व उनकी धर्म पत्नी श्रीमती संगीता साहनी तो देश कीराजधानी से ही हमारे साथ थे किन्तु बेंगलौर से पधारे एक और समाज सेवकश्री एम बी पद्मनाभ राव तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पहले ऐसे स्वयंसेवक जो बौध भिछु से प्रचारक बने श्री वांचुक भी हमारे मार्ग दर्शन वसामग्री के उचित वितरण के लिये हमारे साथ हो लिए।अब हम लेह से लगभग 70 किमी दूर स्थित गांव ससपोशे के लिए राहत सामग्री केट्रक के साथ रवाना हुए। मार्ग में जहां एक ओर लेह बस अड्डा, रेडियोस्टेशन, जिला अस्पताल, भारत संचार निगम लिमिटेड का कार्यालय की स्थितिअपने दु:ख की दारुण व्यथा सुना रहे थे तो दूसरी ओर जब हमने वायु सेनाकेंद्र, व अन्य सुरक्षा संस्थान, बौद्ध स्तूप, मठ, मंदिर व गुरुद्वारेदेखे तो लगा कि मानो प्रक्रति के प्रकोप ने इन्हें छूआ तक नहीं।मैग्नेटिक हिल, वास्गो व निम्मू गांव होते हुए पहाडों व नदियों के किनारेकिनारे हम ससपोशे पंहुचे। संतोष की बात यह थी कि रास्ते की पूरी सडकदिल्ली की किसी भी रोड से अच्छी थी। शायद आपदा के तुरंत बाद इसे बनायागया होगा।ससपोशे रोड के अंतिम छोर पर स्थित था जिसके बाद आगे कोई मार्ग न था। हमनेग्राम प्रधान के सहयोग से राहत सामग्री को पीडितों में वितरित किया। हमेंदेख, ग्राम चौपाल पर देखते ही देखते अनेक नर-नारी, बच्चे, बूढे व जबानइकट्ठे हो गए। नन्हे मुन्ने स्कूली बच्चों को देख हमारे दल के सदस्यों नेउन्हें अपनी गोदी में बिठा लिया। इतने में दो महिलाएं हम सबके लिये एकट्रे में लद्दाखी चाय व विस्कुट ले आईं। गांव की आर्थिक स्थिति को देखहमारा चाय पीने का मन तो नहीं किया किन्तु उनके नम्र आग्रह को हम नकारनहीं पाए। सामग्री के वितरण के पश्चात हमें गांव के सरपंच व अन्य लोगोंने वहां बाढ से हुई तबाही का मंजर दिखाया। कई मकान ऐसे थे जिनके कमरेऊंचे पहाडों से अर्ध रात्रि को आई बाढ के मलबे से भरे पडे थे। कई मकानटूटे थे तो कुछ में दरारें पडीं थीं। विद्यालय भवन का एक हिस्सा का भीइस बाढ के साथ बह गया था। अनेक विद्यार्थी टेन्टों के बने अस्थाई कक्षोंमें पढ रहे थे। पूरे व विद्यालय परिसर को देखने के बाद हम प्रधानाचार्यके कार्यालय में पहुंचे। उनसे बात कर हमें इस बात का बडा संतोष हुआ किभारत के एक छोर पर स्थित इस छोटे से गांव में अध्ययन कर रहे मात्र 30विद्यार्थियों के लिए एक ऐसा उच्च प्राथमिक विद्यालय था जिसके पास नसिर्फ़ पक्का भवन था बल्कि गांव में विधुत की आपूर्ति न होने के बावजूदअपना कम्प्यूटर व टी वी सेट के साथ अवाध विधुत सप्लाई हेतु इन्वर्टर वसोलर सिस्टम भी था। प्रधानाचार्या श्रीमती प्रसेरिंग डोलमा ने बाढ कीविभीषिका व अब तक हुए राहत कार्यों की जानकारी हमें दी। भारतीय सेना केएक सैनिक की पत्नी द्वारा किया आथित्य सत्कार हमें अंदर तक छू गया।हालांकि वह अपने 6 मास के बच्चे के साथ अकेली थी फ़िर भी उसने हम सबको नकेवल अच्छी तरह से सुसज्जित अपने घर में बिठाया बल्कि लद्दाखी चाय वलद्दाखी रोटी भी अति प्रेम से खिलाई। घर की बैठक, भण्डार ग्रह, रसोई वशौचालय की बनाबट हम सब के लिए आकर्षण के केन्द्र थे।लौटते हुए भारतीय सेना द्वारा संचालित गुरुद्वारा पाथर साहिब में हमनेमत्था टेका। गुरुद्वारे से बाहर चंद्रमा का ब्रहद आकार व सुंदरता, धरतीसे उसकी नजदीकी के कारण अनुपमेय थी। थोडी ही दूरी पर चल कर भारतीय सेनाके बहादुर जवानों की स्मृति में बनाए गये संग्रहालय – हाल औफ़ फ़ेम कोदेखा। वहीं पहाडों के बीच लहराता भारतीय तिरंगा देश की गौरव गाथा को गारहा था।

सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

...तो अपराधी चलाएंगे सरकार

लाख बहस-मुबाहिसों के बावजूद प्रदेश की राजनीति बाहुबलियों से पीछा नहीं छुड़ा पा रही है। चुनाव आयोग डंडा चलने के बाद आपराधिक छवि वाले दागी नेता चुनाव नहीं लड़ पा रहे हैं तो अपने नाते-रिश्तेदारों को टिकट दिलाने में कामयाब हुए हैं..समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर ने बहुत पहले बिहार विधानसभा में कहा था कि जब बैलेट फेल होता है तो बुलेट हावी होने लगती है। कर्पूरी ठाकुर की बात प्रदेश की मौजूदा राजनीति में सोलह आने सच साबित हो रही है। चुनाव आयोग की तमाम बंदिशों और राजनीतिक दलों के भरपूर आश्वासनों के बावजूद राज्य की राजनीति में बाहुबलियों की पकड़ कम नहीं हुई है। हां, इसका तरीका जरूर बदल गया है। कल तक जो बाहुबली चुनाव मैदान में खम ठोकते थे अब वे अपने चहेतों को चुनाव लड़ाकर उन्हें विधानसभा भेजने की फिराक में हैं। इस बार संगीन अपराधों के लिए सजा पाए बाहुबली भले ही चुनावी मैदान में खुद न उतर पाएं हों, लेकिन वे अपने सियासी वजूद को जिंदा रखने के लिए अपनी पत्नियों की ओर आस लगाए बैठे हैं। बीते लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भी कई बाहुबलियों की पत्नियां विधानसभा पहुंचने की कोशिश में हैं। वर्तमान विधायक और राष्ट्रीय जनता दल की उम्मीदवार कुंती देवी एक बार फिर गया जिले के अतरी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में हैं। इनके पति राजेंद्र यादव वर्तमान समय में हत्या के एक मामले में जेल में सजा काट रहे हैं और कई अन्य अपराधिक मामले भी इन पर चल रहे हैं। नवादा क्षेत्र की वर्तमान निर्दलीय विधायक पूर्णिमा यादव तथा इनके पति एवं निर्दलीय विधायक कौशल यादव को जदयू ने टिकट दिया है। कौशल पर राजस्व घोटाले समेत कई अन्य अपराधिक मामले चल रहे हैं। इसी तरह बक्सर जिले के शाहपुर विधानसभा क्षेत्र की विधायक मुन्नी देवी और खगडिय़ा की पूनम देवी एक बार फिर अपने पति के सहारे सदन में पहुंचने की तैयारी में हैं। मुन्नी के पति भुअर ओझा तथा देवर विमेश्वर ओझा कई अपराधिक मामले में आरोपी हंै, जबकि पूनम के पति रणवीर यादव पर भी कई अपराधिक मामले चल रहे हैं। लालगंज के विधायक मुन्ना शुक्ला मंत्री वृजबिहारी प्रसाद की हत्याकांड में दोषी हैं, मगर इस चुनाव में उनकी पत्नी अन्नु शुक्ला जदयू की प्रत्याशी हंै। इसी तरह बाहुबली पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव विधायक अजीत सरकार की हत्या के मामले में दोषी करार दिए गए हैं और उनकी पत्नी रंजीता रंजन को चुनावी मैदान में उतारा गया है। हाल ही में कांग्रेस में शामिल बाहुबली सांसद आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद को सहरसा जिले के आलमनगर से प्रत्याशी बनाया गया है। आनंद मोहन सहरसा जेल में पूर्व जिलाधिकारी जी कृष्णैया हत्याकांड के मामले में सजा काट रहे हैं। इसी तरह राजद विधायक बीमा भारती इस चुनाव में पाला बदलकर जदयू के टिकट पर रुपौली विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में है। बीमा के पति अवधेश मंडल हत्या, रंगदारी जैसे करीब एक दर्जन से ज्यादा मामलों में आरोपी हैं।
सच तो यह है कि बिहार की राजनीति में बाहुबली नेता सभी राजनीतिक दलों की जरूरत बन गए हैं। चुनाव आयोग ने बड़ी संजीदगी के साथ बिहार के राजनीतिक दलों से विधानसभा चुनाव से बाहुबलियों को दूर रखने की अपील की थी। आयोग की अपील के बाद स्वयंसेवी संगठनों ने राजनीतिक दलों पर दबाव बढ़ाना शुरू किया। चुनाव को निष्पक्ष बनाने के लिए एक संस्था 'एसोसियशन फॉर डैमोक्रेटिक रिफॉम्र्स एवं नेशनल इलेक्शन वॉचÓ का गठन भी हुआ, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात। हर दल ने बाहुबलियों और आपराधिक रिकॉर्डधारियों को अपना उम्मीदवार बनाया है। अभी तक जितने प्रत्याशियों की घोषणा हुई है, उसमें करीब 43 फीसदी अपराधी हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यही अपराधी सरकार चलाएंगे?
गौरतलब है कि प्रदेश में चुनावों की घोषणा से पहले यहां के अधिकांश दलों ने कहा था कि विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ेंगे और बाहुबलियों को किसी भी सूरत में टिकट नहीं देंगे, मगर अब विकास पर बाहुबल हावी हो गया है। हालांकि, रैली और सभाओं में प्रदेश की राजनीति के तीनों प्रमुख महारथी लालू प्रसाद, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान अपने-अपने विकास कार्यों का ही बखान कर रहे हैं। जहां नीतीश के पास मुख्यमंत्री के रूप में कार्य का ब्योरा है तो लालू अपने और पत्नी रावड़ी के पंद्रह साल के कार्यकाल का गुणगान करने के बजाय रेलमंत्री के रूप में किए गए विकास कार्यों की दुहाई दे रहे हैं। उधर, जिन रामविलास पासवान पर अवसरवादिता का सबसे बड़ा आरोप लगाया जाता है, वे कहते हैं कि जब भी उन्होंने केंद्रीय मंत्री का पदभार संभाला सबसे अधिक बिहार पर ही ध्यान दिया। इन विकासवादी ढिंढोरों के बीच जो सच है, वह यह कि इन नेताओं ने अपराधियों और बाहुबलियों को खूब तवज्जो दी है। तो क्या माना जाए कि बिहार में चुनाव बगैर बाहुबल और अपराधी को साथ लिए नहीं हो सकती? इसका जबाव 'हांÓ में मिलता है। अब तक बिहार चुनाव की जो तस्वीर सामने आई है, उसमें 43 प्रतिशत उम्मीदवार दागी या अपराधी प्रवृत्ति के हैं? चुनाव आयोग की सर्वदलीय बैठक में राजनीति का अपराधीकरण रोकने की खुली वकालत करने वाले सियासी दलों की गंभीरता का अंदाजा विधानसभा चुनाव के लिए अब तक जारी प्रत्याशियों की सूचियों के से लग जाता है। अब तक चुनाव के लिए पांच प्रमुख दलों ने कुल 526 प्रत्याशी घोषित किए हैं। इनमें से 268 के पुराने रिकॉर्ड मौजूद हैं। इनमें से 116 प्रत्याशियों (43.28 फीसदी) के खिलाफ आम मामलों से लेकर हत्या, अवैध हिरासत, फिरौती और लूटपाट जैसे गंभीर मामले लंबित हैं। हैरानी की बात यह है कि दागी छवि के लोगों को टिकट देने में खुद को पार्टी विद ए डिफरेंस कहने वाली भाजपा सबसे आगे है। भाजपा के करीब 62.12 प्रत्याशियों के खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं। दूसरे स्थान पर रामविलास पासवान की अगुआई वाली लोजपा है जिसके 46.43 फीसदी दागी छवि के हैं। लालू यादव की राजद के 38.60 फीसदी उम्मीदवारों के खिलाफ ऐसे मामले बकाया हैं। सत्तारूढ़ जनता दल यूनाईटेड भी इसमें पीछे नहीं है और उसके 36.05 फीसदी उम्मीवारों का दागी इतिहास रहा है। 'नेशनल इलेक्शन वॉचÓ नामक स्वंयसेवी संस्था द्वारा जुटाए गए आंकड़ों में सोनिया गांधी की कांग्रेस भी दागी छवि के प्रत्याशी उतारने में पीछे नहीं है। कांग्रेस ने 29.03 फीसदी दागी छवि के लोगों को अपना चुनाव चिह्नï थमाया है।
गौरतलब है कि इसके पहले लोकसभा चुनाव में भी बाहुबली पूर्व संासद शहाबुद्दीन ने अपनी पत्नी हिना शहाब, पप्पू यादव ने अपनी मां शांति देवी, बाहुबली पूर्व सांसद सूरजभान ने अपनी पत्नी वीणा देवी को चुनाव मैदान में उतारा था, लेकिन इन सभी को चुनावों में मुंह की खानी पड़ी थी। अब देखना है कि विधानसभा चुनाव में सूबे के बाहुबली अपनी पत्नियों और रिश्तेदारों को सत्ता तक पहुंचा पाते है या नहीं।

सोमवार, 11 अक्तूबर 2010

चतुर्थ कूष्मांडा


सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।

दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्मांडा शुभदास्तु मे।।


मां दुर्गाजी के चौथे स्वरूप का नाम कूष्मांडा है। अपनी मंद, हल्की हंसीद्वारा अंड अर्थात ब्रह्मïांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडादेवी के नाम से अभिहित किया गया है। संस्कृत भाषा में कूष्माण्डा कोकुम्हड़ कहते है। बलियों में कुम्हड़े की बलि इन्हें सर्वाधिक प्रिय है।इस कारण से भी मां कूष्मांडा कहलाती है।नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कूष्मांडा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जातीहै। इस दिन साधक का मन अदाहत चक्र में अवस्थित होता है। अत: इस दिन उसेअत्यंत पवित्र और अचंचल मन से कूष्मांडा देवी के स्वरूप को ध्यान मेंरखकर पूजा-उपासना के कार्य में लगना चाहिए।जब सृष्टिï का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने अपने ईषत् हास्य सेब्रह्मïांड की रचना की थी। अत: ये ही सृष्टिï की आदि-स्वरूपा, आदिशक्तिहैं। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। वहां निवास कर सकने कीक्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। इनके शरीर की कांति और प्रभा भीसूर्य के समान ही दैदीप्यान और भास्वर हैं।इनके तेज और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्मïांड कीसभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है।मां की आठ भुजाएं हैं। अत: ये अष्टïभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं।इनके सात हाथों में क्रमश: कमंडलु, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश,चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्घियों और निधियों को देने वालीजपमाला है। इनका वाहन सिंह है।मां कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक विनष्टï हो जातेहैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्घि होती है। मांकूष्माण्डा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं यदि मनुष्यसच्चे हृदय से इनका शरणागत बन जाए तो फिर उसे अत्यन्त सुगमता से परम पदकी प्राति हो सकती है।विधि-विधान से मां के भक्ति-मार्ग पर कुछ ही कदम आगे बढऩे पर भक्त साधकको उनकी कृपा का सूक्ष्म अनुभव होने लगता है। यह दु:ख स्वरूप संसार उसकेलिए अत्यंत सुखद और सुगम बन जाता है। मां की उपासना मनुष्य को सहज भाव सेभवसागर से पार उतारने के लिए सर्वाधिक सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है।मां कूष्मांडा की उपासना मनुष्य को आधियों-व्याधियों से सर्वथा विमुक्तकरके उसे सुख, समृद्घि और उन्नति की ओर ले जाने वाली है। अत: अपनी लौकिक,पारलौकिक उन्नति चाहने वालों को इनकी उपासना में सदैव तत्पर रहना चाहिए।

रविवार, 10 अक्तूबर 2010

तृतीय चंदघंटा


पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।

प्रसादं तनुते मह्मïं चंद्रघंटेति विश्रुता।।



मां दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना मेंतीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह कापूजन आराधन किया जाता है। इस दिन साधक का मन मणिपुर चक्र में प्रविष्टïहोता है।मां चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्यसुगंधियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियां सुनाईदेती हैं। ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने के होते हैं।मां का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटेका आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण से इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाताहै। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं। इनकेदसों हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं। इनकावाहन सिंह है। इनकी मुद्रा युद्घ के लिए उद्यत रहने की होती है।मां चंद्रघंटा की कपा से साधक के समस्त पाप और बाधाएं विनष्टï हो जातीहैं। इनकी आराधना सद्य: फलदायी है। मां भक्तों के कष्टï का निवारण शीघ्रही कर देती है। इनका उपासक सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय हो जाता है।इनके घंटे की ध्वनि सदा अपने भक्तों को प्रेतबाधा से रक्षा करती है। इनकाध्यान करते ही शरणागत की रक्षा के लिए इस घंटे की ध्वनि निनादित हो उठतीहै।मां का स्वरूप अत्यंत सौम्यता एवं शांति से परिपूर्ण रहता है। इनकीआराधना से वीरता-निर्भयता के साथ ही सौम्यता एवं विनम्रता का विकास होकरमुख, नेत्र तथा संपूर्ण काया में कांति-गुण की वद्घि होती है। स्वर मेंदिव्य, अलौकिक माधुर्य का समावेश हो जाता है। मां चंद्रघंटा के भक्त औरउपासक जहां भी जाते हैं, लोग उन्हें देखकर शांति और सुख का अनुभव करतेहैं।मां के आराधक के शरीर से दिव्य प्रकाशयुक्त परमाणुओं का अदृश्य विकिरणहोता रहता है। यह दिव्य क्रिया असाधरण चक्षुओं से दिखायी नहीं देती,किन्तु साधक और उसके संपर्क में आने वाले लोग इस बात का अनुभव भली-भांतिकरते रहते हैं।हमें चाहिए कि अपने मन, वचन, कर्म एवं काया को विहित विधि-विधान केअनुसार पूर्णत: परिशुद्घ एवं पवित्र करके मां चंद्रघंटा के शरणागत होकरउनकी उपासना-आराधना में तत्पर हों। उनकी उपासना से हम समस्त सांसारिककष्टïों से विमुक्त होकर सहज ही परमपद के अधिकारी बन सकते हैं।हमें निरंतर उनके पवित्र विग्रह को ध्यान में रखते हुए साधन की ओरन्अग्रसर होने का प्रयत्न करन्ना चाहिए। उनका ध्यान हमारे इहलोक और परलोकदोनों के लिए परम कल्याणकारी और सदगति देने वाला है।

शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

द्वितीय ब्रह्मïचारिणी


दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।

देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मïचारिण्यनुत्तमा।।



मां दुर्गा की नवशक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मïचारिणी का हैै। यहांब्रह्मï शब्द का अर्थ तपस्या हैै। ब्रह्मïचारिणी अर्थात तप की चारिणी- तपका आचरण करने वाली। कहा भी हैै-वेदस्तत्तवं तपो ब्रह्मï- वेद, तत्व और तपब्रह्मï शब्द के अर्थ हैैं।दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती हैै। इसदिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होता हैै। इस चक्र मेंअवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।ब्रह्मïचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य हैै।इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमण्डल रहता हैै।अपने पूर्व जन्म में जब ये हिमालय के घर पुत्री- रूप में उत्पन्न हुईथीं, तब नारद के उपदेश से इन्होंने भगवान शंकरजी को पति-रूप में प्राप्तकरने के लिए अत्यंत कठिन तपस्या की थी। इसी दुष्कर तपस्या के कारण इन्हेंतपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मïचारिणी नाम से अभिहित किया गया।एक हजार वर्ष उन्होंने केवल फल-मूल खाकर व्यतीत किए थे। सौ वर्षों तककेवल शाक पर निर्वाह किया था। कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखते हुए खुलेआकाश के नीचे वर्षा और धूप के भयानक कष्ट सहे, इस कठिन तपश्चर्या केपश्चात तीन हजार वर्षों तक केवल जमीन पर टूटकर गिरे हुए बेलपत्रों कोखाकर वे अहर्निश भगवान शंकर की आराधना करती रहीं इसके बाद उनके सूखेबेलपत्रों को भी खाना छोड़ देने के कारण उनका एक नाम अपर्णा भी पड़ गया।कई हजार वर्षों की इस कठिन तपस्या के कारण ब्रह्मïचारिणी देवी का वहपूर्व जन्म का शरीर एकदम क्षीण हो उठा । वे अत्यंत दु:खित हो उठीं।उन्होंने उन्हें उस कठिन तपस्या से विरत करने के लिए आवाज दी (उ मा, अरे)नहीं, ओ! नहीं! तबसे देवी ब्रह्मïचारिणी का पूर्वजन्म का एक नाम उमा भीपड़ गया था।उनकी इस तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। देवता, ऋषि, सिद्घगण,मुनि सभी ब्रह्मïचारिणी देवी की इस तपस्या को अभूतपूर्व पुण्यकृत्य बतातेहुए उनकी सराहना करने लगे। अंत में पितामह ब्रह्मïाजी ने आकाशवाणी द्वाराउन्हें संबोधित करते हुए प्रसन्न स्वरों में कहा- हे देवी! आज तक किसी नेऐसी कठोर तपस्या नहीं की थी। ऐसी तपस्या तुम्हीं से संभव थी। तुम्हारे इसअलौकिक कृत्य की चतुर्दिक सराहना हो रही है। तुम्हारी मनोकामनासर्वतोभावेन परिपूर्ण होगी। भगवान चन्द्रमौलि शिवजी तुम्हें पतिरूप मेंप्राप्त होंगे। अब तुम तपस्या से विरत होकर घर लौट जाओ। शीघ्र हीतुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं। मां ब्रह्मïचारिणी भक्तों औरसिद्घों को अनंत फल देने वाली हैं। इनकी उपासना से मनुष्य में तप,त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्घि होती हैै कठिन संघर्षों में भीउसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता । मां की कृपा से उसे सर्वत्रसिद्घि और विजय की प्राप्ति होती है।

शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

प्रथम शैलपुत्री


वंदे वांछितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्।

वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥


मां दुर्गा पहले स्वरूप में शैलपुत्री के नाम से जानी जाती हैं। ये हीनवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप मेंउत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। नवरात्र-पूजन में प्रथमदिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इस प्रथम दिन की उपासना मेंयोगी अपने मन को 'मूलाधार चक्रÓ में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योगसाधना का प्रारंभ होता है।वृषभ-स्थिता इन माताजी के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमलपुष्प सुशोभित है। अपने पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या के रूपमें उत्पन्न हुई थीं। तब इनका नाम सती था। इनका विवाह भगवान शंकरजी सेहुआ था।एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। इसमें उन्होंने सारेदेवताओं को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया,किंतु शंकरजी को उन्होंने इस यज्ञ में निमंत्रित नहीं किया। सती ने जबसुना कि उनके पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहांजाने के लिए उनका मन विकल हो उठा।अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकरजी को बताई। सारी बातों पर विचार करने के बादउन्होंने कहा- प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं। अपने यज्ञ मेंउन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है। उनके यज्ञ-भाग भी उन्हेंसमर्पित किए हैं, किंतु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है। कोई सूचना तकनहीं भेजी है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहां जाना किसी प्रकार भीश्रेयस्कर नहीं होगा।शंकरजी के इस उपदेश से सती का प्रबोध नहीं हुआ। पिता का यज्ञ देखने, वहांजाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता किसी प्रकार भी कम न होसकी। उनका प्रबल आग्रह देखकर भगवान शंकरजी ने उन्हें वहां जाने की अनुमतिदे दी।सती ने पिता के घर पहुंचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथबातचीत नहीं कर रहा है। सारे लोग मुंह फेरे हुए हैं। केवल उनकी माता नेस्नेह से उन्हें गले लगाया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भावभरे हुए थे।परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत क्लेश पहुंचा। उनहोंने यह भीदेखा कि वहां चतुर्दिक भगवान शंकरजी के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआहै। दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सती काहृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा। उन्होंने सोचा भगवानशंकरजी की बात न मान, यहां आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है। वे अपने पतिभगवान शंकर के इस अपमान को सह न सकीं। उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षणवहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। वज्रपात के समान इसदारुण-दु:खद घटना को सुनकर शंकरजी ने क्रुद्घ हो अपने गणों को भेजकर दक्षके उस यज्ञ का पूर्णत: विध्वंस करा दिया।सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराजहिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वे शैलपुत्री नाम सेविख्यात हुईं, पार्वती, हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। नवदुर्गाओं मेंप्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियां अनंत हैं।

मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

प्रीपेड पर ही प्रतिबंध क्यों?

जम्मू के लोग इन दिनों परेशान हैं। वजह है प्रीपेड मोबाइल सेवाओं पर प्रतिबंध। सुरक्षा कारणों के मद्देनजर यह रोक लगाई गई है। इससे प्रीपेड फोन धारकों में खासा रोष है। लोगों के आक्रोश और प्रतिरोध के मद्देनजर ही यहां मीडिया को सलाह दी गई है कि वह इस मामले को ज्यादा हवा न दें। उल्लेखनीय है कि इससे पहले पिछले वर्ष श्री अमरनाथ यात्रा के दौरान सरकार ने एसएमएस पर रोक लगाई थी। तब भी लोगों को परेशानी हुई थी। इस समय में राज्य में करीब 45 लाख लोग मोबाइल सेवाओं का प्रयोग कर रहे हैं। इनमें से करीब 38 लाख लोग प्रीपेड मोबाइल धारक थे। सुरक्षा तंत्र की सूचनाओं के अनुसार आतंकी अपनी करतूतों को अंजाम देने और सहयोगियों से संपर्क के लिए प्रीपेड सेवाओं का प्रयोग करते आ रहे हैं। गृह मंत्रालय के लिए इन सेवाओं पर प्रतिबंध लगाने के लिए यह वजह जायज है, क्योंकि राष्ट्रहित से बढ़कर कोई अन्य हित नहीं हो सकता है लेकिन खुफिया एजेंसियों के पास ऐसे कई प्रमाण हैं, जिनसे पता चलता है कि आतंकी अत्याधुनिक उपकरण प्रयोग में ला रहे हैं। ऐसे में केवल प्रीपेड मोबाइल सेवाओं पर रोक से कैसे समस्या दूर हो सकती है? इसका जवाब तो सुरक्षा नियम तय करने वाले अफसर ही बेहतर दे सकते हैं लेकिन इस रोक से उन लाखों लोगों को परेशानी में डाल दिया है, जो लंबे समय से प्रीपेड मोबाइल सेवाओं का प्रयोग कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि गलत तत्व पोस्ट पेड मोबाइलों का दुरुपयोग भी कर सकते हैं।
बीसीए का छात्र कुशल अवस्थी इस मसले पर कहता है कि यह प्रतिबंध कई परेशानियां लेकर आया है। ज्यादातर छात्र अपनी पढ़ाई या रोजगार की वजह से माता-पिता से दूर रहते हैं। प्रीपेड मोबाइल सेवाओं का लाभ ज्यादातर युवा वर्ग ही उठाता है, क्योंकि इसमें जरूरत के मुताबिक रिचार्ज कराने की सुविधा होती है प्रीपेड पर ही प्रतिबंध क्यों? और बिल भरने के लिए भटकने का भी कोई झंझट नहीं। प्रीपेड मोबाइल वालों को पेश आ रही परेशानी दुकानदार सोहन अग्रवाल का कहना है कि मेरे घर पर सब लोग कामकाजी हैं, सिर्फ दादी घर पर रहती हैं। उनके पास प्रीपेड मोबाइल था। यह उनके लिए सुविधाजनक था, क्योंकि बुढ़ापे में वह बिल जमा करवाने नहीं जा सकतीं। घर बैठे ही फोन रिचार्ज करवाया जा सकता है। बुजुर्गों के लिए प्रीपेड सेवा आसान है लेकिन अब उन्हें काफी परेशानी हो रही है।
सुरक्षा विभाग के अनुसार दूरसंचार विभाग फोन नंबर जारी करने में नियमों का पालन नहीं किया। प्रीपेड सेवा वाले कई लोगों ने फर्जी दस्तावेज देकर नंबर लिए हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि दस्तावेजों का पुन: निरीक्षण नहीं किया जा सकता था या नियमों में कोई बदलाव नहीं लाया जा सकता था। कश्मीरी विस्थापित कनिष्क मंटू के अनुसार गृह मंत्रालय का यह कदम समझ नहीं आता। हमारे साथ ही पक्षपात क्यों? एक ओर तो केंद्र इस बात का ढिंढोरा पीट रहा है कि राज्य में हालात सामान्य हो गए हैं और विस्थापित कश्मीरियों को उनकी जन्मभूमि में स्थापित किया जा रहा है। दूसरी ओर सुरक्षा के बहाने प्रीपेड मोबाइल पर रोक लगाई जा रही है। इससे साफ है कि हालात अभी सामान्य नहीं हैं। ख्याल रहे, जम्मू के दौरे पर आए गृहमंत्री ने हाल ही में जगती में कश्मीरी विस्थापितों के लिए बन रहे फ्लैटों का निरीक्षण किया था। उन्होंने इस कार्य में लगी कंपनी को हिदायत दी थी कि काम जल्द पूरा किया जाए, ताकि विस्थापितों को रहने के लिए घर मिल सकें। गृहमंत्री ने भरोसा दिया था कि वह हरसंभव कोशिश करेंगे, जिससे कश्मीरी विस्थापित अपनी जन्मभूमि लौट सकें लेकिन गृह मंत्रालय के नए फरमान से विस्थापितों की दुविधा बढ़ गई है। ऐसा नहीं है कि यह रोक आम जनता के लिए ही परेशानी का सबब है। सुरक्षा बल भी इससे परेशान हैं।
यहां तैनात ज्यादातर सुरक्षाकर्मी बाहर के हैं। अपनों से संपर्क करने के लिए ये लोग भी प्रीपेड फोन का ही इस्तेमाल करते हैं। इन सैनिकों के पास मोबाइल ही ऐसा सहारा है, जिससे वह सीमा की सुरक्षा करते हुए भी अपनों से संपर्क में रह सकते हैं। इनके लिए प्रीपेड मोबाइल ठीक रहता है। जितने पैसे डालो उतनी बात। पोस्टपेड फोन लेने की औपचारिकताएं और नियम काफी अलग हैं। जम्मू में तैनात सैनिक राहुल शर्मा झारखंड के हैं। उनके अनुसार प्रीपेड में कई योजनाएं हैं। इसमें हर माह पैसे देने की जरूरत नहीं पड़ती। मैं जब भी तीन माह की छुट्टïी पर जाता हूं, मुझे पैसा नहीं भरना पड़ता। दूसरे फोन का प्रयोग करने पर माह बिल देना पड़ता है। बहरहारल, हालात ये हैं कि सरकार के इस फैसले के खिलाफ जम्मू-कश्मीर के लोग धरनों का सहारा ले रहे हैं। कश्मीर में केटीएमएफ ने धरना देकर रोष जताया और प्रतिबंध को निराधार बताया। केटीएमएफ क अनुसार इस प्रतिबंध से 20 हजार से ज्यादा लोगों को बेरोजगारी का सामना करना पड़ेगा। प्रीपेड सेवाओं पर प्रतिबंध से न सिर्फ आम जनता, इस व्यवसाय से जुड़े लोगों पर भी असर पड़ा है। मोबाइल रिचार्ज के काम से जुड़े ओमप्रकाश के अनुसार पिछले माह धंधा काफी अच्छा रहा लेकिन प्रीपेड सेवाओं पर रोक से हमारा काम ठप हो गया है। सरकार को कोई भी निर्णय लेने से पहले उस चीज या व्यापार से जुड़े लोगों के हितों के बारे में भी सोचना चाहिए। बहरहाल, सरकार का तर्क है कि सुरक्षा के मामले में कोई जोखिम नहीं लिया सकता। इसी कारण यह कदम उठाया गया है। सवाल है कि आतंकी दूसरी आधुनिक सेवाओं का भी प्रयोग कर रहे हैं, ऐसे में सिर्फ प्रीपेड फोनों पर ही रोक कितना कारगर? अगर प्रीपेड नंबर जारी करने में कहीं कोई खामियां हैं तो उन्हें दूर किया जा सकता है। फिर जिसको गड़बड़ करनी है, वह पोस्ट पेड मोबाइल सेवाओं से भी तो कर सकता है।

पगड़ी संभाल मुंडा

पगड़ी की महिमा भी बड़ी अजीब होती है। जिसको नहीं मिलती वह उसके लिए परेशान होता है, और जिसे मिल जाती ह ै उसे संभालने में मुश्किल होती है। पगड़ी इज्जत भी देता है और दायित्व भी लेता है। आजकल झारखण्ड के नए मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को यह प्रदेश के लोगों ने 'पगड़ीÓ पहनाई हुई है। अभी तक अपने मंत्रिमंडल का विस्तार तक नहीं कर पाए हैं। कभी राज्यपाल के यहां तो कभी नई दिल्ली आकर गडकरी और नागपुर में भागवत के यहां मिलते हैं। दिक्कत को अपने साथ दो-दो मुख्यमंत्री को लेकर भी है। आखिर, अपना ही काम तो बांटना होगा उनके संग। पहले तो केवल मंत्री ही होता था न...। इस बार जिम्मेदारी और हालात कुछ अलग ढ़ंग के हैं। वैसे, मुंडा कहते हैं कि उनके राजकाज चलाने में किसी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं है। पार्टी के बड़ेजनों का आशीर्वाद मिल चुका है। प्रदेश की जनता साथ है। सहयोग हेमंत और सुदेश भी इसबार सकारात्मक सोच के साथ हर कदम पर साथ है। तो उम्मीद की जा सकती है इस बार मुंडा को 'पगड़ीÓ संभालने में ज्यादा रस्साकशी नहीं करनी होगी।