वर्तमान समय में किसी भयानक से भयानक रोग का नाम लिया जाए, जिसका शरीर में होना ही मृत्यु का पर्याय माना जाता हो तो ऐसे रोग अंगुलियों पर गिने जा सकते हैैं इनमेें से एक हैै- कैंसर। ज्योंहि किसी व्यक्ति को कैंसर होने की घोषणा चिकित्सक करता है तो उस व्यक्ति एवं उसके परिजनों पर कहर टूट पड़ता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति दवा की ओर कम और पराशक्ति की ओर अधिक झुक जाता है। यदि धैर्यपूर्वक कैंसर का ज्योतिषीय अध्ययन किया जाए तो और ग्रहों की स्थिति के अनुसार उपाय किया जाये तो कैैंसर से मुक्ति भी संभव है।
संस्कृत में कैंसर राशि को कर्क और कैैंसर रोग को कर्काबर्द कहते हैं। उपयुक्त लक्षणों मेें कर्क राशि के स्वामी चन्द्रमा और उनके विभिन्न संयोगों को कैंसर रोग में योगदान का विशेष महत्व है।
विभिन्न ज्योतिषीय योग प्राचीन ग्रंथ में विद्यमान है। शरीर में कैैंसर इस रोग के होने और विकसित होने से कई वर्ष पूर्व ही जन्म कुंडली के आधार पर कैंसर होने की भविष्यवाणी की जा सकती हैै। प्रश्र यह नहीं कि ज्योतिष, हस्तरेखा सही या नहीं - उत्तर यह है कि हमारी पकड़ ज्योतिष, हस्तरेखा के उपर कितनी गहरी हैै। जबकि विज्ञान ने इतनी तरक्की की है इसके द्वारा भी जब भूल संभव है तब एक ज्योतिष के द्वारा गणना एवं विचार में भूल होनो कौन से बड़ी बात है। आवश्यकता इस बात की है कि किसी भी विषय पर पहुंचने से पहले सभी बातों का अच्छी तरह से विचार कर निर्णय किया जाए।
जन्म कुंंडली का छठा भाव रोग का होता है। कैंसर जैसे रोग के संबंध में इस भाव के स्वामी, इसकी राशि और पाप ग्रहों की दृष्टिï आदि के संबं में विचार किया जाना परम आवश्यक हैै। किसी भी जन्म कुंडली में चंद्र, केतु, राहु, शनि एंव मंगल की युति या दृष्टिï कैंसर का मूल कारण है। जन्म कुंडली में भावों के अनुसार शरीर से संबंधित ग्रहों के रत्नों का धारण करने से रोग-मुक्ति संभव होती है। लेकिन कभी-कभी जिसके द्वारा रोग उत्पन्न हुआ है, उसके शत्रु ग्र्रह का रत्न धारण करना भी लाभप्रद होता हैै।
अब सवाल उठता है कि कौन सा ग्रहों की युति इसका मार्ग प्रशस्त करती है, तो -
यदि छठे भाव का स्वामी पाप ग्रह हो और लग्नेश आठवें या दसवें घर में बैठा हो तो कैंसर रोग की आशंका रहती हैै।
छठे भाव में कर्क राशि में चंद्रमा हो, तब भी कैंसर का द्योतक है।
छठे भाव में कर्क या मकर का मंगल स्तर कैंसर का द्योतक है।
मकर राशि का बृहस्पति भी कैैंसर का परिचायक है।
छठे भाव में कर्र्कअथवा मकर राशि का शनि स्तन कैंसर का संकेत देता हैै।
छठे भाव के स्वामी का आठवें भाव में स्थित होना भी कैंसर होने का संकेत देता हैै।
छठे भाव में कर्क का सूर्य अथ्वा वृश्चिक मौन का चंद्रमा होने पर भी कैंसर का संकेत माना जाात है।
यदि शुक्र या मंगल या गुरू छठे या चंद्र-शनि के योग भी कैंसर के संकेत देते हैं।
किसी योग में अगर चंद्रमा पर शनि की दृष्टिï हो तब कंैसर की संभावना जन्म लेती है।
शनि असाध्य एवं भयानक लंबे समय तक चलने वाले रोगों का परिचालक है। इसके संयोग से अधिक इसकी दृष्टि पीड़ादायक है।
शरीर में किसी भी प्रकार की रसौली जल से होता है। अत: जल राशियों कर्क, वृश्चिक और मीन। ये जल राशियां हैं। इनके पाप ग्रस्त होने पर कैंसर की संभावना प्रबल होती है।
चंद्रमा से शनि का सप्तम होना कैंसर की संभावना को प्रबल बनाता है।
इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि यदि सूक्ष्मता से ग्रहों के व्यावहारिक गुण-दोष के आधार पर दशा, अंर्तदशा आदि का ज्ञान कर किसी रोग का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है एवं समय पर उसके उचित निवारण करने का प्रयास किया जा सकता है।
एक बात बहुत स्पष्टï रूप से समझ लेना चाहिए कि मात्र ज्योतिषीय मंत्र-तंत्र-यंत्र से ही किसी रोग का निवारण नहीं किया जा सकता है। इन सभी के साथ-साथ औषधि सेवन, चिकित्सकों के द्वारा दी गई सलाह आदि का पालन किया जाना उतना ही आवश्यक है। तभी इसका पूर्ण लाभ उठाया जा सकता हैै। अगर समय से पूर्व किसी भी घटना या दुर्घटना के बारे में जानकारी हो जाये तो उससे बचने का हर संभव प्रयास किया जा सकता हैै।
शनिवार, 25 जुलाई 2009
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1 टिप्पणी:
VERY MUCH INFORMATIVE.
EXCELLENT TREATMENT
REALLY YOU MEAN ASTROLOGY.
PLEASE LEAVE A REPLY THOUGH EMAIL.
RAMESH SACHDEVA
hpsdabwali07@gmail.com
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