गुरुवार, 28 जुलाई 2011

भारत विश्व का नं. 1 कार बाजार


आम जनता की नजर में महंगाई अभी विकराल रूप में हैं, लेकिन बहुत कम को इस बात का इल्म होगा कि कार बिक्री के हिसाब से भारत अब विश्व का नम्बर वन होने वाला है। सदियों पुरानी अपनी खोई पहचान को भारत फिर से हासिल करने के लिए निकल चुका है। कभी विश्व के दूसरे देश भारत की आर्थिक संपन्नता को सलाम करते थे और इसे सोने की चिडिय़ा के नाम से पुकारते थे। एक बार फिर से भारत अपनी आर्थिक समृद्घि को हासिल करने के लिए आगे बढ़ रहा है। यह अनायास नहीं है कि कारों की बिक्री में भारत अमेरिका को पछाडऩे की दिशा में बढ़ चुका है। एक कंसल्टिंग फर्म बूज ऐंड कंपनी के मुताबिक भारत का कार बाजार चीन की ही तरह तेजी से बढ़ रहा है और यह अगले 25 वर्षों में अमेरिका को भी पीछे छोड़ देगा। भारत में ऑटोमोबाइल की बिक्री 2020 तक आज की तुलना में दुगनी हो जाएगी। उस समय भारत में हर साल 50 लाख कारें बिका करेंगी और यह संख्या बढक़र 60 लाख तक हो जाएगी। इसी कंपनी का यह भी कहना है कि 2020 में भारत का ऑटोमोबाइल बाजार की बिक्री के मामले में जर्मनी का दुगना हो जाएगा। जर्मनी का ऑटोमोबाइल बाजार यूरोप का सबसे बड़ा बाजार है। उसके बाद भारत तेजी से बढ़ते हुए अमेरिका के बाज़ार को पीछे छोड़ देगा। उस समय भारतीय ऑटोमोबाइल मार्केट 200 अरब डॉलर का होगा।
यही वजह है कि विश्व की नामी गिरामी कंपनी बीएमडब्लू, मर्सिडिज, जनरल मोटर्स सरीखीं नामी गिरामी कंपनियां भारतीय बाजार को ध्यान में रखकर अपने नए उत्पाद का निर्माण कर रह हैं। अब तो विश्व की सबसे तेज चलने वाली कार अल्टीमेट एरो भी भारतीय बाजार में दस्तक दे चुकी है। अध्ययन के मुताबिक आनेवाले दिनों में भारत में ऑटो क्षेत्र में 35 अरब डॉलर का निवेश होगा और यहां काम कर रही कंपनियां दक्षिणी अमेरिका, अरब देशों और अफ्रीका तक कारों का निर्यात करेंगी। ऑटोमोबाइल सेक्टर से जुड़े लोगों का मानना है कि कार निर्माताओं के लिए भारत में कारों का उत्पादन कोरिया और जापान की तुलना में कहीं सस्ता पड़ेगा। भारतीयों की आय बढ़ते जाने के साथ ही उनकी वाहन खरीदने की क्षमता भी बढ़ती जाएगी।
वर्ष 2010 में दर्जनों नई कारें भारतीय बाजार में आईं और लोगों ने उसे सराहा। लिहाजा, कार निर्माताओं को भारतीय बाजार रास आने लगा और अनुमान है कि इस वर्ष विभिन्न कंपनियों के करीब 50 नई कारें लॉन्च होंगी। अर्थव्यवस्था की मजबूती के साथ खर्च करने लायक आमदनी में बढ़ोतरी होने और छोटे शहरों में भी अमीरों की तादाद अच्छी-खासी होने से लोग कारें खरीदने की लालसा पर लगाम नहीं लगा पा रहे हैं।
होंडा इस साल ब्रियो और बीएमडब्ल्यू मिनी लॉन्च करेगी। इससे मारुति सजुकी की स्विफ्ट और फोर्ड की फिगो के दबदबे वाले कॉम्पैक्ट कार बाजार में नई चुनौती पैदा होगी। अपनी छोटी कारों के लिए मशहूर मारुति सुजुकी ने इस साल अपनी लग्जरी सेडान कार किजाशी जनवरी में लॉन्च की। किजाशी की कीमत 18 लाख रूपए है। अपनी स्मूथ और पॉवरफुल परफॉर्मेस से अलग पहचान बनाने वाली मारूति ने अमरीका में 30 जुलाई 2009 को मिडल साइज कार सुजुकी किजाशी लॉन्च की थी। कंपनी अपने बारे में ग्राहकों की सोच बदलने और लग्जरी सेगमेंट में अपनी पहुंच बढ़ाने की कोशिश में जुटी है। मुकाबले में आगे निकलने के लिए कई कार कंपनियां अपने मौजूदा उत्पादों के ज्यादा सुधरे हुए वर्जन लॉन्च करने की तैयारी में हैं। मारुति सुजुकी अपनी स्विफ्ट को पुश बटन इग्नीशन के साथ ला रही है जिससे फ्यूल की खपत कम की जा सके। इसके अलावा स्विफ्ट में सनरूफ का ऑप्शन भी दिया जाएगा। यह अपने मौजूदा मॉडल के मुकाबले ज्यादा लंबी और चौड़ी होगी।
मर्सिडीज अपनी सबसे महंगी गाड़ी मेबैक को फिर लॉन्च करने की तैयारी में है। ऑडी भी जल्द ही देश में अपनी ऑडी 8 लॉन्च करने वाली है, जिससे इस बाजार में होड़ और तीखी हो जाएगी। पिछले साल अक्टूबर में 150 स्थानीय कारोबारियों के समूह ने एकसाथ मर्सिडीज खरीदने का फैसला किया था। इससे पता चलता है कि देश में किस तरह से लोग लग्जरी गाडिय़ों के लिए बेकरार हैं। स्पोर्ट्स यूटिलिटी ह्वीकल (एसयूवी) बाजार में भी नए खिलाड़ी आ रहे हैं। बाजार में चर्चा गर्म है कि फॉक्सवैगन अपनी टाइगुआन, दी रेक्सटॉन और सैंगयोंग अपनी कोरांडो भी इस साल भारतीय बाजार में उतारने वाली हैं। सैंगयोंग अब महिंदा एंड महिंद्रा का ही एक हिस्सा है। रेनॉ क्रॉसओवर कोलियोस भी इस सेगमेंट में इस साल आ सकती है। भारत में एसयूवी मार्केट पहले ही काफी तेजी पकड़ चुका है। टोयोटा की फॉर्च्यूनर की बिक्री एक साल में करीब दोगुनी होकर एक लाख के पार पहुंच चुकी है। टोयोटा के डिप्टी एमडी (मार्केटिंग) संदीप सिंह के मुताबिक, हम कुछ वास्तविक प्रतिस्पर्धा का इंतजार कर रहे हैं। बाजार में फॉर्च्यूनर की मांग इतनी ज्यादा है कि हमें छह महीने के बाद जनवरी में इसकी बुकिंग फिर से शुरू करनी पड़ी है। ग्राहकों की मांग हर बार कंपनी की क्षमता से ज्यादा कारों पर पहुंच जाती है।
सच तो यही है कि भारत में कारों की बढ़ती बिक्री को देखते हुए दुनियाभर की कार कंपनियां यहां अपने नए-नए मॉडल्स लांच कर रही हैं। मारुति जल्द ही बाजार में अपनी दमदार कार ‘किजाशी’ लांच करने वाली है। जापानी भाषा में ‘किजाशी’ का अर्थ होता है चेतावनी। और वाकई मारुति की यह नई कार अपनी सेग्मेंट की दूसरी कारों के लिए किसी चेतावनी से कम नहीं होगी। भारतीय सडक़ों पर इसका मुकाबला होंडा अकॉर्ड, टोयोटा कोरोला, ह्युंडई सोनाटा, और फोक्सवैगन जेट्टा से होगा। मारुति सुजुकी, किजाशी को स्पोर्ट्स क्रॉसओवर के तौर पर उतारेगी, जिसके फीचर एसयूवी के होंगे, लेकिन इसे कार के प्लेटफॉर्म पर बनाया गया है। किजाशी को सबसे पहले साल 2007 में फ्रैंंकफर्ट मोटर शो में पेश किया गया था। इसके बाद बीते साल दिल्ली ऑटो एक्सपो में भी इसे डिस्प्ले किया गया। जिसके बाद से ही लोग बेसब्री से इसके लांच का इंतजार कर रहे हैं। किजाशी को जापान और अमेरिका में पहले ही लांच किया जा चुका है। भारत में इस कार की कीमत कितनी होगी, फिलहाल कंपनी ने यह साफ नहीं किया है। पर माना जा रहा है कि इसकी कीमत 10 लाख रुपए से ज्यादा होगी।
इसी प्रकार टोयोटा की इनोवा और महिंद्रा की जाइलो को टक्कर देने के लिए टाटा मोटर्स ने कमर कस ली है। कंपनी जल्दी ही अपनी स्पोर्टस यूटीलिटी व्हीकल ‘टाटा एरिया’ को भारत में लांच करने वाली है। भारत में एसयूवी के बढ़ते बाजार को देखते हुए कंपनी की नजर बहुत पहले से इस सेगमेंट पर थी। एरिया में 2179 सीसी का शक्तिशाली इंजन लगाया गया है जो कार को 4,000 पर 140 बीएचपी की ताकत प्रदान करेगा। माना जा रह है कि इसकी कीमत 12 लाख रुपए के आस पास होगी।
तो हैचबैक कटेगरी में टोयोटा जल्दी ही अपनी नई कार इटोयोस को लांच करने वाली है। टोयोटा मोटर्स, इटियोस को इसी साल दिसंबर में लांच करेगी। कार बाजार में फोक्सवैगन की पोलो के बाद मिडसाइज हैचबैक में अब सबको टोयोटा की इटियोस का ही बेसब्री से इंतजार है। टोयोटा इसकी बुकिंग जनवरी से शुरू करेगी। कंपनी के मुताबिक ये कार ‘वैल्यू फॉर मनी’ साबित होगी और लोगों को पंसद आएगी। इटियोस मारुति की स्विफ्ट और स्विफ्ट डिजायर को टक्कर देगी। इसकी कीमत 7 लाख रुपए के आसपास होगी। फ्रांस की वाहन निर्माता कंपनी रेनॉ मोटर्स भारत में अपनी पहली सेडान ‘फ्लुएंस’ लांच करने की तैयारी कर चुकी है। रेनॉ मोटर्स अगले साल मध्य तक इसे भारतीय बाजार में उतार देगी। फ्लुएंस पुरी तरह भारत में बनी कार होगी। हालांकि इस सेडान की कीमत क्या होगी इस पर फिलहाल कंपनी ने कुछ नहीं कहा है। लेकिन सूत्रों की मानें तो इसकी कीमत सात से दस लाख रुपए के बीच हो सकती है।
स्वीडन की कार निर्माता कंपनी स्कोडा इस साल भारतीय बाजार में अपनी नई कार उतारने की सोच रही है। स्कोडा अपनी ये नयी कार भारतीय बाजार में पहले से ही अपनी जगह बना चुके होडा सिटी, हुंडई वेरना और फोर्ड फिएस्टा के प्रतिद्वंदी के रूप में उतारना चाह रही है। कंपनी ने दावा किया है कि वो अपनी इस नयी कार में लउरा से भी बेहतर फिचर्स, डिजाइन, क्वालिटी देंगे। ये नयी कार फौक्स वेगन के वेंटो के ही प्लेटफार्म पर बनी है। स्कोडा भारत में फौक्स वेगन से कम किमत में उसी फिचर्स के साथ कारों को भारत में उतारना चाह रही है। स्कोडा की ये नयी कार फौक्स वेगन वेन्टा के प्लेटफार्म पर बनी जरूर है लेकिन यह वेन्टो से सस्ती होगी।

बुधवार, 27 जुलाई 2011

बंटेगा नगर निगम, जनता असमंजस में

अब लगभग यह तय हो गया है कि दिल्ली नगर निगम को तीन निकायों में बांट दिया जाएगा, लेकिन जनता में पूरी स्थिति को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। हाल ही में दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने पहले कैबिनेट में इस प्रस्ताव को पास कराया और फिर केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम से मुलाकात की। इससे इतना तो तय है कि इस बंटवारे को अब कोई नहीं रोकेगा। मगर बंटवारें के बाद की स्थिति कैसी होगी, इसको लेकर लोगों के मन में तरह-तरह के सवाल घुमड़ रहे हैं। मसलन, वार्डों की स्थिति कैसी होगी? मेयर कितने होंगे? मुख्यालय एक ही होगा या अलग-अलग? अभी दिल्ली नगर निगम का वार्षिक घाटा करीब 1700 करोड़ के करीब है, तो प्रस्तावित बंटवारें के बाद इसमें इजाफा होगा क्या? ऐस ही कई सवाल हैं।
हालांकि, मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कैबिनेट की बैठक में दिल्ली नगर निगम को तीन निकायों में बांटने का फैसला करने के बाद इतना कह दिया कि वार्डो की संख्या यथावत 272 ही रहेगी। मुख्यमंत्री का कहना है कि नगर निगम का कुशल संचालन सुनिश्चित करने के लिए यह फैसला लिया है। निगम को बांटने के निर्णय से पहले हमने पार्टी के कई शीर्ष नेताओं से इस मसले पर राय ली है। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से शीला दीक्षित की हुई मुलाकात के बाद दिल्ली सरकार ने यह फैसला किया।
बताया जाता है कि दिल्ली नगर निगम को उत्तर, दक्षिण और पूर्वी हिस्से में बांटने का प्रस्ताव तैयार किया गया है। पश्चिमी दिल्ली में रहने वाले लोग दक्षिणी जोन में आएंगे। उत्तर, पूर्वी और दक्षिणी दिल्ली के अलग-अलग नगर प्राधिकरण होंगे। सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि इससे नगर निकाय अधिक कारगर तरीके से अपनी सेवाएं मुहैया करा पाएंगे। नगर निगम के नए ढांचे के तहत महिलाओं के लिए 50 फीसद सीट सुरक्षित रखने का फैसला लिया है। दिल्ली में महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में सरकार इसे ऐतिहासिक कदम मान रही है। गौरतलब है कि शीला दीक्षित पिछले चार महीनों से निगम को बांटने की मुहिम में जुटी हुई थीं। कैबिनेट के इस फैसले से सरकार को विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों के साथ ही कांग्रेस के ही नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
दिल्ली नगर निगम को तीन निकायों में बांटने के दिल्ली सरकार के फैसले को शहर की महापौर रजनी अब्बी ने राजनीतिक चाल बताया और प्रस्ताव का विरोध किया है। महापौर रजनी अब्बी का कहना है कि लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। हम एमसीडी को बांटने के प्रस्ताव का विरोध करते रहेंगे। हम इसकी इजाजत नहीं देंगे और यह नगर निगम को कमजोर बनाने की पूरी तरह से राजनीतिक चाल है। हमने गृहमंत्री से नगर निगम के सदस्यों से इस मसले पर विचार-विमर्श करने का आग्रह किया था। उन्होंने मुझसे कहा था कि उन्हें अभी तक इस सिलसिले में कोई औपचारिक प्रस्ताव नहीं मिला है। दिल्ली सरकार के कैबिनेट का फैसला आने के बाद उन्होंने नगर निगम के सदस्यों के साथ इस विषय पर चर्चा करने का आश्वासन दिया था। महापौर का यह भी कहना है कि नगर निगम को को बांटने का फैसला संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के बुनियादी उद्देश्य के खिलाफ है जिसमें स्थानीय एजेंसियों को मजबूत बनाने पर जोर दिया गया है। निगम को तीन हिस्सों में बांटने का दिल्ली सरकार का फैसला वित्तीय और न ही भौगोलिक लिहाज से सही है।
भाजपा के दूसरे पार्षदों का भी मानना है कि बंटवारे से नगर निमग कमजोर होगा। दफ्तर सहित बुनियादी ढांचा बढ़ाने पर अतिरिक्त रूप से 1,000 करोड़ रुपये का भार बढ़ेगा। साथ ही नए पदों के लिए अधिकारियों की नियुक्ति पर 1,000 करोड़ रुपये खर्च होंगे। यह खर्च आखिर कहां से पूरा होगा, निश्चित रूप से जनता की जेबों पर ही किसी न किसी रूप से बोझ पड़ेगा।
इसी संदर्भ में जब भाजपा दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष विजेन्द्र गुप्ता से बात की गई तो उन्होंने सीधे तौर पर कहा कि दिल्ली नगर निगम को नाकाम बताकर मुख्यमंत्री शीला दीक्षित अपनी घटिया राजनीति और सोच का परिचय दे रही हैं। ऐसा कह कर वे दिल्ली सरकार की नाकामी, तानाशाही और भ्रष्टाचार को ढक़ने की कोशिश कर रही हैं। कांग्रेसियों की फितरत है कि जब भी फंसो जनता को भ्रमित करने के लिए नये राग छेड़ दो।
गौर करने योग्य यह भी है कि कुछ ही समय पूर्व में त्रिनगर में एक जनसभा में मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कहा था कि दिल्ली नगर निगम में दिल्ली का 97 प्रतिशत हिस्सा आता है। इतने बड़े हिस्से की देखरेख एक ही नगर निगम द्वारा करना मुश्किल है इसीलिए सरकार निगम को बांटना चाहती है। इसके जवाब में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का कहना है कि मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता, हैदराबाद, अहमदाबाद, बेंगलुरू, पुणे जैसे बड़े शहरों में एक ही नगर निगम कार्यरत हैं। वहां के नगर निगमों के पास कार्य भी ज्यादा है और उनके कार्य में सरकार का कोई हस्तक्षेप भी नहीं होता है, इसीलिए वहां शिकायतें न के बराबर हैं। दिल्ली नगर निगम में जबसे भाजपा सत्ता में आई है तभी से उसे कमजोर करने, वित्तीय रूप से जर्जर बनाने, अधिकार छीनने, कई भागों में बांट कर अक्षम बनाने की कोशिश दिल्ली सरकार बराबर कर रही है। श्री गुप्ता का यह भी कहना है कि जब से दिल्ली सरकार राष्टï्रमंडल खेलों के घोटालों में आरोपित हुई है तभी से उसने निगम विभाजन की मांग करके जनता का ध्यान अन्यत्र बंटाने की साजिश रची है। श्री गुप्ता ने मुख्यमंत्री से सवाल किया कि अपने तीन विधानसभा घोषणापत्रों में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का वायदा करने वाली कांग्रेस ने आज तक दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा क्यों नहीं दिया है जबकि केन्द्र और दिल्ली में कांग्रेस की ही सरकार कायम है। यदि निगम को हड़बड़ी में राजनीतिक साजिश के तहत बांटा गया तो दिल्ली में जनसमस्याएं और बढ़ेंगी तथा जनता पर करों का बोझ कांग्रेस बढ़ायेगी।

मंगलवार, 26 जुलाई 2011

भाजपा-कांग्रेस के लिए मुश्किल हैं येदयुरप्पा

पिछले काफी दिनों से कर्णाटक और विशेषकर येदयुरप्पा सरकार चर्चा का विषय बना हुआ है। ऐसा नहीं है कि इस प्रदेश में इस सरकार ने कोई मील का पत्थर स्थापित किया है, बल्कि अवैध खनन और तत्संबंधी भ्रष्टïाचार के कारण यह सरकार केंद्र सरकार और कांग्रेस के निशाने पर है। कहा जा रहा है क केवल 14 महीनों (अप्रैल 2009 से मई 2010) तक अवैध खनन के जरिए 1827 करोड़ रुपये का घपला हुआ है। जबकि भारतीय जनता पार्टी कर्नाटक की राजनीति में इस तरह फंस गई है कि भ्रष्टाचार के मसले पर वह कांग्रेस के खिलाफ उसकी आलोचना की धार कमजोर दिखाई पड़ती है। देश की वह सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है। जाहिर है सरकार की कमियों को उजागर करने और उसे जनता के सामने जिम्मेदार पार्टी के रूप में पेश आने के लिए विवश करने की मुख्य जिम्मेदारी भी उसी पर है। वह कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा भी संभाले हुए है, लेकिन कनार्टक में उसके अपने ही मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के बड़े मामलों का सामना कर रहे हैं और उनसे जुड़े सवालों का उसके पास कोई जवाब नहीं है।
इस प्रकरण में जब कर्णाटक के मुख्यमंत्री बी.एस. येदयुरप्पा पर निशाना साधा जा रहा है तो साथ में रेड्डी बंधुओं का भी जिक्र आता है। नेपथ्य में लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज और भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी को भी कांग्रेसी निशाना बना रहे हैं तो भाजपा की ओर से पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने मोर्चा संभाला। मामला कुछ दिनों के लिए शांत जरूर दिखा, मगर हुआ नहीं। हालिया घटनाक्रम में अवैध खनन पर कर्नाटक के लोकायुक्त एन. संतोष हेगड़े की लीक हुई रिपोर्ट से एक बार फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बी. एस. येदयुरप्पा की मुश्किलें बढ़ गई हैं। लोकायुक्त ने रिपोर्ट में येदयुरप्पा और रेड्डी बंधुओं समते 4 मंत्रियों के खिलाफ जांच की सिफारिश की है। लोकायुक्त हेंगड़े ने भी स्वीकर किया है कि मेरा फोन टैप किया गया है। इस खुलासे के बाद कांग्रेस ने मुख्यमंत्री येदयुरप्पा से इस्तीफा मांगा है। भाजपा ने इस इस मुद्दे पर कुछ कहने से बचते हुए कहा कि औपचारिक रूप से इसके पेश होने के बाद वह अपनी प्रतिक्रिया देगी। यूपीए सरकार भ्रष्टाचार के मुद्दों से जनता का ध्यान बांटने के लिए इसे बेवजह तूल दे रही है। मगर भाजपा सच यह भी है कि भाजपा इस मुद्दे पर अपने गिरेबां में नहीं झांक रही। बहुत अधिक दिन नहीं हुए हैं जब महाराष्टï्र के आदर्श हाउसिंग सोसायटी घोटाला में नाम आने मात्र से मुख्यमंत्री अशोक चाह्वïाण के खिलाफ भाजपाइयों ने महाराष्टï्र से लेकर नई दिल्ली तक जमकर बावेला काटा था। जांच कमेटी बनने से पूर्व ही अशोक चाह्वïाण ने अपना इस्तीफा सौंप दिया था और भाजपा शांत हुई थी। मगर कर्णाटक प्रकरण में वह नैतिकता को मानो ताक पर रखकर जांच होने की बात कह रही है। यह केवल इसलिए कि कर्णाटक में उसकी अपनी सरकार है?
बहुत जल्द सार्वजनिक होने वाली इस रिपोर्ट में पूर्व मुख्यमंत्री और जेडी (एस) नेता एच. डी. कुमार स्वामी और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद अनिल लाड की भूमिका की भी जांच करने की पैरवी की गई है। जिन 4 मंत्रियों के इस रिपोर्ट में नाम हैं, वे हैं जी. जनार्दन रेड्डी, जी. करुणाकर रेड्डी, बी. श्रीरामुलू (तीनों बेल्लारी जिले का प्रतिनिधित्व करते हैं) और वी. सोमन्ना। पर्यटन मंत्री जी. जनार्दन रेड्डी के बारे में कहा जा रहा है कि उन्होंने बेल्लारी जिले को निजी जागीर के रूप में बदल दिया और अवैध खनन के जरिए 40-45 फीसदी तक लाभ कमाया। लोकायुक्त के रिपोर्ट में कहा गया है कि ऊपर से नीचे तक सारे अधिकारी रेड्डी के हाथों बिके हुए हैं। जो रेड्डी के हाथों बिकते नहीं है उनमें मुख्यरूप से व्यावसायिक प्रतिद्वंद्वी हैं। उन्हें भी अपनी जमीन और लाइसेंस रेड्डी को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद निश्चित रूप से येदयुरप्पा पर लगे कम से कम दो आरोपों की आगे की जांच करने की जरूरत है। येदयुरप्पा के बेटे और उनके दामाद की कंपनी की जमीन एक खनन कंपनी को मार्केट की कीमत से 20 गुना ज्यादा कीमत पर बेची गई और उस कंपनी ने 10 करोड़ रुपये मुख्यमंत्री के पारवारिक ट्रस्ट में जमा कराया। येदयुरप्पा पर दूसरा आरोप है कि रेड्डी बंधुओं पर आरोप लगने और उसके सबूत होने के बावजूद उन्होंने उनका साथ दिया। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के खिलाफ कहा गया है कि उन्होंने दो खनन कंपनियों को नियमों को ताक पर रखकर लाइसेंस दिया।
इस सबके बीच सवाल यह भी मन में कौंधता है कि आखिर भ्रष्टïाचार के आकंठ में डूबी कांग्रेस कर्णाटक पर इसकदर क्यों विशेष निगरानी करती दिख रही है? जबाव मिलता है कि असल में आज़ादी के बाद कांग्रेस को यह घमंड था कि कांग्रेस इस देश में अजेय है उसे कोई भी पार्टी कभी हरा नहीं सकती और कांग्रेस सदियो तक इस देश में राज करेगी। इसलिए कांग्रेस ने देश को लूटने के लिए एक संवैधानिक तरीका निकला। वो है मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोटा। इतिहास बताता है कि डॉ. श्यामा प्रशाद मुखर्जी इस कानून का बहुत विरोध किया लेकिन नेहरु ने इस पास कर दिया था। अब तक इस देश के सभी राज्यों में कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे सभी ने इस कोटे से जम कर लाभ लिया। अहमदाबाद में चिमन भाई पटेल इंस्टिट्यूट जिसकी जमीन अरबो रूपये की है इस कोटे के द्वारा चिमन भाई को मिली।जब नरहरी अमिन उप मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने हीरामणि स्कूल के लिए अरबो की जमीन इसी कोटे से ली। अब तक कांग्रेस को बहुत मजा आ रहा था। इसी प्रकार हर राज्य में एक मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष भी होता है जिसके तहत कोई भी राज्य का मुख्यमंत्री अपने मनमर्जी से रूपये किसी को भी दे सकता है। लोगों को स्मरण है कि जब उत्तरप्रदेश में मुलायम सिंह मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने सारे पत्रकारों और संपादको को 150 करोड़ रूपये बाटें थे इस पर काफी हंगामा हुआ था अदालत में भी चुनौती दी गयी। इस कानून को ‘विवेकाधीन’ नाम दिया गया है। यानी विवेक के अधीन। इस पर कोई भी सवाल नहीं उठा सकता।
पिछले कुछ समय से इस देश कि जनता 18 राज्यों में कांग्रेस को नकार चुकी है। अब कांग्रेस ने नेता जिनको सरकरी कोटे की जमीन पचाने की लत लग गयी है तो वे तड़प रहे हैं। येदयुरप्पा ने मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोटे की जमीन अपने बेटे को एलाट की ये नैतिक रूप से गलत हो सकता है लेकिन क़ानूनी रूप से नहीं। अब तक कांग्रेस सत्ता में थी तो ये कानून का खूब फायदा उठाया। आज भ्रष्टाचार के कारण कांग्रेस के 5 नेता और ए. राजा तथा कोनिमोजी जेल में है जबकि कांग्रेस की ही सत्ता है तो क्या कांग्रेस येदयुरप्पा पर मेहरबान है ? यदि येदयुरप्पा ने गलत किया है तो आज येदयुरप्पा जेल में क्यों नहीं है ? अगर अमित शाह जेल में है तो येदयुरप्पा क्यों नहीं ? बहुत कम को पता होगा कि कांग्रेस ने इस देश के खजाने से 300 करोड़ से उपर की रकम सिर्फ येदयुरप्पा के खिलाफ सुबूत खोजने में खर्च कर चुकी है। यह बात कैग कह रहा है। सवाल यह भी है कि क्यों इस देश में अटार्नी जनरल 3 महीनो तक बंैगलोर में रहे?
नैतिकता और अनुशासन की शेखी बघारने वाली भाजपा को अपने मुख्यमंत्री से यह कहना चाहिए कि वह इस्तीफा दें दे। बेशक, वह अभी विदेश दौरे पर हैं, मगर आते ही तत्क्षण उन्हें नैतिकता के नाम पर ही सही इस्तीफा दे देना चाहिए। होना तो यह बहुत पहले ही चाहिए था जब वहां के राज्यपाल हंसराज भारद्वाज ने मुख्यमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में मुकदमे की इजाजत भी दे दी थी और उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज भी हो गया था। उस समय अदालत से मुख्यमंत्री को भले ही राहत मिल गई हो, मगर इस बार फिर वही मामला गर्म हो चुका है। एक मुख्यमंत्री के रूप में अदालत में अपनी जमानत की गुजारिश करना किसी के लिए भी ठीक नहीं माना जाता है। यही कारण है कि जब उमा भारती को कर्णाटक के की एक कोर्ट में जमानत के लिए हाजिर होना पड़ा था, तो उन्होंने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के पद से पहले इस्तीफा दे दिया था। लालू यादव ने भी बिहार के मुख्यमंत्री के पद से उस समय इस्तीफा दे दिया था, जब उन्हें चारा घोटाले के एक मुकदमे में अदालत में जमानत के लिए हाजिर होना था।
भाजपा के पास अरुण जेटली जैसे नेता भी हैं, जो कानूनी दांवपेच जानते हैं और अदालत के सामने जमानत के लिए जाने के दिन को ज्यादा से ज्यादा दूर कैसे रखा जाए, इसकी कोई न कोई तरकीब निकाल ही लेेंगे। पर यदि येदयुरप्पा के खिलाफ भाजपा का मोह बना रहा, तो केन्द्र सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुद्दे पर चल रहा उसका अभियान अपनी धार खो देगा। सच कहा जाए, तो भाजपा की धार पहले से ही कमजोर हो चुकी है। चूंकि भ्रष्टाचार के मसले पर भाजपा ही नहीं, बल्कि अन्य विपक्षी पार्टियां भी अभियान चला रही है, इसलिए कांग्रेस का काम कठिन हो रहा है। यदि यह भाजपा और कांग्रेस का ही मामला होता, तो फिर केन्द्र सरकार के सामने कोई समस्या ही नहीं थी।
जाहिर है येदयुरप्पा भाजपा के गले की हड्डी बन गए हैं। पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री के पद से हटा नहीं पा रही है और उन्हें मुख्यमंत्री के पद पर बनाए रखकर केन्द्र सरकार के खिलाफ अपने अभियान के पैनापन को कम कर रही है। सवाल उठता है कि भाजपा के यदुरप्पा मोह के पीछे का राज क्या है? सच कहा जाए, तो इसे मोह कहना उचित नहीं होगा, बल्कि यह उसकी विवशता भी है। येदयुरप्पा खुद मुख्यमंत्री का पद छोडऩे के लिए तैयार नहीं हैं। पार्टी राज्य में सत्ता में उनके कारण ही आई है। उनके कारण ही उसने विधानसभा में किसी तरह बहुमत का जुगाड़ किया। जब पार्टी के विधायकों ने बगावत की और कुछ निर्दलीय विधायकों ने समर्थन वापस लिया, तो उस समय भी पार्टी की सरकार यदुरप्पा के कारण ही बची। वहां राजनीति पर धनबल का जबर्दस्त असर है। कुछ लोग तो कहते हैं कि कर्णाटक की राजनीति धनबल से जितना प्रभावित है, उतना किसी और भी राज्य की राजनीति नहीं। जाहिर है यदुरप्पा ने अपनी सरकार के गठन में धन का भी अच्छा निवेश कर रखा होगा और भ्रष्टाचार के उनके मामले धन की उगाही से ही जुड़े हुए हैं। इसलिए वे इन मामलों के बावजूद मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा नहीं देना चाहते और भाजपा उनके महत्व का देखते हुए उन्हें उनकी इच्छा के खिलाफ उनके पद से हटाना नहीं चाहती।

करोड़ों का है पेंटिंग बाज़ार


पेंटिंग की ऊंची कीमतें कला बाजार के ऐसे पक्ष से हमें रू-ब-रू कराती हैं, जिसे लेकर भारतीय समाज में एक अनभिज्ञता की स्थिति व्याप्त है। भारतीय कलाकारों का एक बड़ा वर्ग है, जिसकी अंतरराष्ट्रीय कला बाज़ार में धाक है और जिनकी बनाई पेंटिंग्स करोड़ों रुपए में बिकती है।
लोगों की आम मानसिकता है कि बच्चों को पढ़ाई-लिखाई पर ही अधिक ध्यान दिया जाए जिससे उन्हीं अच्छी नौकरी मिल सके और वह सम्मानजनक ढंग से जीवनयापन कर सकें। कोई भी माता-पिता अपने बच्चों को जल्दी कला के क्षेत्र में विशेषकर पेंटिंग्स आदि के फील्ड में भेजना चाहता है। मगर, जब से पेंटिग्स की कीमतें करोड़ों रुपए को पार कर रही हैं और इसके अंतर्राष्टï्रीय बाजार की धमक लोगों तक पहुंची है, सोच में परिवर्तन आया है। एक अनुमान के मुताबिक़, भारत का कला बाज़ार लगभग दो हज़ार करोड़ रुपये का है। अब तो यह शेयर बाजार से भी संबद्घ होता दिखता है। आर्थिक मंदी के दौरान भी जब इस क्षेत्र को कोई नुकसान नहीं हुआ बल्कि पेंटिग्स ऊंची कीमतों पर बिकी तो शेयर बाजार इस ओर निहार रहा था। क्योंकि मंदी के बावजूद राष्टï्रीय और अंतरराष्ट्रीय कला बाज़ार में मशहूर पेंटरों की कलाकृतियों को भारी-भरकम मूल्य पर खऱीदने वाले रईस निवेशकों की कोई कमी नहीं देखी गई। बाजार के जानकारों का तर्क है कि शेयर बाज़ार से कमाए गए पैसे लोग कला बाज़ार में निवेश करते हैं जो कि एक बेहद सुरक्षित विकल्प माना जाता हैे।
एम.एफ. हुसैन की तीन पेंटिंगों ने हाल में लंदन के बोनहाम नीलामी में 2.32 करोड़ रुपए की रकम के साथ सर्वाधिक राशि हासिल की। उनका शीर्षक रहित एक तेल चित्र 1.23 करोड़ रुपए में बिका जिसमें उन्होंने अपनी जानी पहचानी विषय वस्तु घोड़े और महिला को आधार बनाया। यूं तो मकबूल फिदा हुसैन की पेंटिंग्स के कद्रदान तो सदा रहे ही हैं और उनकी पेंटिंग्स करोड़ों में बिकी हैं, मगर उनके अलावे कई नामचीन भारतीय पेंटर हैं, जिनकी कलाकृतियां हमेशा से करोड़ों रुपये में बिकती हैं और वे सुखिऱ्यां बटोरती हैं। ऐसा नहीं है कि केवल एमएफ हुसैन, रजा, तैयब मेहता जैसे महान चित्रकारों को ही करोड़ों रुपये के खऱीददार मिलते हैं। इन समकालीन चित्रकारों के अलावा कई आधुनिक चित्रकार भी हैं, जिनकी कलाकृतियां करोड़ों रुपये में बिकती हैं, लेकिन इनके बारे में कम लिखा जाता है और इनका काम चर्चित नहीं हो पाता है।
आंकड़े बताते हैं कि 2007 में सॉदबी ने रॉकिब शॉ की पेंटिंग गॉर्डन ऑफ अर्थली डिलाइट्स को इक्कीस करोड़ में बेचकर इतिहास रच दिया था। अनीश कपूर की एक पेंटिंग को अ_ाइस लाख डॉलर, टी.वी. संतोष की कलाकृति ‘टेस्ट टू’ को डेढ़ लाख डॉलर और रॉकिब शॉ की पेंटिंग को इक्यानवे हज़ार डॉलर मिले थे, जो कि नीलामीकर्ता की उम्मीदों से कहीं ज़्यादा थे। चिंतन उपाध्याय की पेंटिंग को तिहत्तर हज़ार डॉलर, रियास कोमू की पेंटिंग सिस्टमेटिक सिटीजऩ फोर्टीन को उनासी हज़ार डॉलर और बोस कृष्णामचारी की पेंटिंग को चालीस हज़ार डॉलर मिले थे। इसी सूची में अपर्णा कौर, युसूफ अरक्कमल, अतुल डोडिया और सुरेंद्र नायर को भी स्थान दिया जा सकता है कि जिनकी पेंटिंग्स विदेशों के अलावा भारत में भी ख़ासी कमाई करती हैं।
कुछ समय पहले लंदन में नीलामी करने वाली कंपनी सॉदबी ने जोगेन चौधरी की कलाकृति ‘डे ड्रीमिंग’ को तीन करोड़ रुपये में बेचा। जोगेन चौधरी की यह पेंटिंग इंक और पेस्टल वर्क का बेहतरीन काम था। तो अकबर पद्मसी की एक पेंटिंग एक करोड़ सत्तासी लाख रुपये में बिकी। एफ.एम. सूजा की ‘ओल्ड सिटी लैंडस्केप’ पौने दो करोड़ रुपये से ज़्यादा में नीलाम हुई। इसके अतिरिक्त अलावा सुबोध गुप्ता और वी.एम. गायतोंडे की पेंटिंग्स को भी एक करोड़ रुपये से ज़्यादा में खऱीदने वाले ग्राहक मिले। इस नीलामी से पहले भी सुबोध गुप्ता की पेंटिंग ‘सात समंदर पार सेवन’ के लिए लगभग पौने चार करोड़ रुपये की बोली लगी थी। सुबोध ने अपनी इस कलाकृति में मौजूदा समाज में इंसान के अहसास को अभिव्यक्त किया था। सुबोध के अलावा अनीश कपूर, टी.वी. संतोष, चिंतन उपाध्याय, रियास कोमू, रॉकिब शॉ और बोस कृष्णामचारी की कलाकृतियों को भी उम्मीद से ज़्यादा क़ीमत मिली थी।
सच तो यही है कि आधुनिक समय में कला के कद्रदान बढ़ रहे हैं और साथ ही बढ़ रहा है इसका कारोबार। इसके बावजूद, इस क्षेत्र में ऊपरी पायदानों पर कुछ गिने-चुने आर्टिस्ट ही काबिज हैं। भारतीय कलाकारों को ध्यान में रखते हुए अगर बीते साल और इस साल अब तक के कला के कारोबार पर निगाह डालें, तो पता चलता है कि चार भारतीय पेंटर इस फेहरिस्त के टॉप नामों में शामिल हैं। इनकी पेंटिंग्स लाखों डॉलर में बिक चुकी हैं। कला के कारोबार में बेशक सबसे अहम उपलब्धि रही तैयब मेहता की महिषासुर। यह पेंटिंग पिछले साल सितंबर में क्रिस्टीज में 1.584 मिलियन डॉलर (करीब 7 करोड़ 70 लाख रुपये) में बिकी। आज तक की यह सबसे महंगी पेंटिंग है। सॉदबीज में 1.472 मिलियन डॉलर (करीब 6.5 करोड़ रुपये) में बिकी एस. एच. रजा की तपोवन इस फेहरिस्त में दूसरे नंबर पर है। इस साल सितंबर में सॉदबीज में न्यूयॉर्क में एफ. एन. सूजा की पेंटिंग मैन विद मॉन्सट्रेंस के लिए 1.36 मिलियन डॉलर (करीब 6 करोड़ रुपये) मिले। सितंबर में ही सॉदबीज द्वारा लगाई गई बोली में वी. एस. गायतोंडे की एक ऑयल पेंटिंग 1.108 मिलियन डॉलर (करीब 50 करोड़ रुपये) में बिकी। एक बार फिर सॉदबीज में तैयब मेहता की एक अनाम कृति ने 1.248 मिलियन डॉलर बटोरे। सितंबर में ही क्रिस्टीज में लगाई गई बोली में भी मेहता की पेंटिंग ने बाजी मारी। सांड के सिर वाली यह अनाम पेंटिंग 1.136 मिलियन डॉलर में बिकी। इन आंकड़ों से पता चलता है कि यूं तो इस साल कई नामी कलाकार अपनी कमाई का रेकॉर्ड सुधार रहे हैं लेकिन एफ. एन. सूजा इसमें अव्वल हैं। इस मरहूम कलाकार की कई पेंटिंग्स लाखों डॉलर में बिकी हैं। क्रिस्टीज में सूजा की मैन एंड वूमन 1.36 मिलियन डॉलर में बिकी। इसके अलावा उनकी न्यासा नेग्रेस विद फ्लावर्स एंड थॉर्न्स 8,36,000 डॉलर में और अनाम स्पेनिश लैंडस्केप 6,88,000 डॉलर में बिकी। सूजा की दो और अनाम पेंटिंग्स के लिए 6,88,000 और 6,32,000 डॉलर की बोली लगी। इस साल कला के क्षेत्र में अच्छी कमाई करने वालों में रामकुमार और एम. एफ. हुसैन का नाम भी शामिल है। रामकुमार की पेंटिंग 4,52,800 डॉलर (करीब दो करोड़) में बिकी, जबकि हुसैन की 5,76,000 डॉलर (करीब 2.5 करोड़ रुपये) में।


कला बाज़ार में इस तेजी के लिए जानकार कलाप्रेमी और शौकीनों की जमकर खऱीददारी को जि़म्मेदार ठहरा रहे हैं, लेकिन साथ ही वे चेतावनी के लहज़े में नब्बे के दशक में कला बाज़ार की तेजी और फिर भारी गिरावट की याद दिलाते हैं। उस समय जापानी खरीददारों की सक्रियता ने कला बाज़ार को काफ़ी ऊपर उठा दिया था, जो कि कृत्रिम था और थोड़े ही दिनों में वह मुंह के बल आ गिरा। लेकिन कला का जो बाज़ार है, उसमें ग्राहकों का मनोविज्ञान एक अहम भूमिका अदा करता है। जानकार यह भी कहते हैं कि यदि देश में राजनैतिक हालात बेहतर रहते हैं तो रईसों का विश्वास मज़बूत रहता है और वे ब़ेफिक्र होकर निवेश करते हैं। कला बाजार के जानकारों की मानें तो कला में निवेश करने वालों की तादाद बढ़ रही है और आने वाले समय में इस बाज़ार में बढ़ोतरी और स्थिरता अधिक देखने को मिल सकती है। घरेलू कला बाज़ार और सोना दो निवेश ऐसे हैं, जिनमें निवेशकों का विश्वास लगातार बना हुआ है। यदि यूरोप की कला बाज़ार में हाल की नीलामियों और प्रदर्शनियों का विश्लेषण किया जाए तो यह निष्कर्ष निकलता है कि वहां भी कला को लेकर खऱीददारों और निवेशकों का विश्वास मज़बूत हुआ है।