बुधवार, 6 फ़रवरी 2013

लौटो ‘हिंदुत्व’ की ओर


भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक-दूसरे के पर्याय माने जाते हैं। एक के बिना दूसरे की नहीं चलती। हालांकि, गाहे-बगाहे दोनों में खटपट भी सुनाई देती है। बीते दिनों भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को लेकर जिस प्रकार से संघ और भाजपा के कुछ नेताओं में टकराहट की खबरें सरेआम हुई, उससे संघ की साख पर मानो धक्का लगा। अब, नितिन गडकरी नहीं हैं, तो क्या हुआ राजनाथ सिंह हैं न! संघ किसी भी सूरत में भाजपा पर अपनी पूरी पकड़ रखना चाहता है। भाजपा, विश्व हिंदू परिषद और संघ के आला नेताओं के बीच राजधानी दिल्ली में हुई एक अहम बैठक में संघ ने दो टूक शब्दों में कह दिया कि भाजपा ‘हिंदुत्व’ और ‘राम मंदिर’ जैसे मुद्दों से डिगेगी नहीं। अगले आम चुनाव में भी इन्हें जोर-शोर से उठाया जाएगा। 31 जनवरी को दिल्ली में भाजपा और विश्व हिंदू परिषद नेताओं की बैठक हुई, जिसमें संघ के भी कई दिग्गज मौजूद थे। आमतौर पर भाजपा नेताओं की बैठक में संघ का शीर्ष नेतृत्व नहीं होता, लेकिन विश्व हिंदू परिषद और भाजपा की समन्वय बैठक में संघ में नंबर दो कहे जाने वाले भैयाजी जोशी की मौजूदगी को सियासी गलियारों में कई दृष्टियों से देखा जा रहा है। इस बैठक में भैयाजी जोशी, सुरेश सोनी और दत्तात्रेय होशबोले जैसे दिग्गज संघ नेताओं की एक साथ मौजूदगी को गंभीर माना जा रहा है। साफ है कि संघ भाजपा में उन नेताओं को हावी होने देना नहीं चाहता, जो उसकी विचारधारा से इत्तेफाक नहीं रखते। दरअसल, नितिन गडकरी के दोबारा भाजपा अध्यक्ष न बन पाने स यह संदेश गया है कि भाजपा पर संघ की पकड़ कमजोर हुई है। यही वजह है कि बैठक में भाजपा को राम मंदिर जैसे एजेंडे पर दोबारा चलने की नसीहत दी गई है। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा कि भगवा आतंकवाद का मुद्दा राष्ट्रीय स्वाभिमान से जुड़ा हुआ है। गृहमंत्री शिंदे के बयान से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को धक्का लगा है। यह पार्टी नेताओं की संघ के साथ अनौपचारिक बैठक थी, जो हर तीन माह पर होती रहती है। इस बैठक में भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह, वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, विहिप नेता अशोक सिंघल, प्रवीण तोगड़िया मौजूद थे। हालांकि, कहा जा रहा है कि आडवाणी ने विचारधारा पर लौटने के सुझाव पर कोई आपत्ति नहीं की। संघ से जुड़े लोगों ने बताया कि इस बैठक में संदेश साफ था कि भाजपा का एजेंडा संघ ही तय करेगा। भ्रष्टाचार और महंगाई जैसे मुद्दे अपनी जगह हैं, लेकिन ‘हिंदुत्व’ का मुद्दा छोड़ा नहीं जाएगा। क्या भाजपा अगले लोकसभा चुनाव में राम मंदिर का मुद्दा उठाएगी, भाजपा के मुख्य प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि हिंदुत्व हमेशा से हमारा मुद्दा है और मुद्दा बना रहेगा। उन्होंने कहा कि 1989 में पालमपुर में भाजपा ने एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें कहा गया था कि राम मंदिर अयोध्या में बनाया जाना चाहिए। यह भाजपा, देश और दुनिया के करोड़ों हिंदुओं की मांग है। बैठक में भाजपा की राजनीतिक योजना और चुनाव तक के महीनों के लिए रणनीति पर चर्चा की गई। हिंदू आतंकवाद, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और सांप्रदायिक हिंसा बिल जैसे मुद्दों पर रणनीति को अंतिम रूप देने पर चर्चा हुई। संघ से जुड़े संगठन देशभर में कांग्रेस की तुष्टिकरण की राजनीति से पर्दा हटाना जारी रखेंगे। बैठक में गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे के भगवा आतंकवाद के आरोपों का जवाब देने की रणनीति बनाई गई। साथ ही इस मुद्दे को देशव्यापी मुद्दा बनाने का फैसला किया गया। तय किया गया कि इलाहाबाद के महाकुंभ से अभियान की शुरुआत होगी। इसके अलावा राज्य इकाइयों में संघ, भाजपा और विहिप नेताओं के बीच बेहतर समन्वय और सौहार्द पर जोर दिया गया। दरअसल, यह बैठक इसलिए भी महत्वपूर्ण मानी जा रही थी, क्योंकि पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर पार्टी और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के सहयोगी दलों में चर्चाएं आजकल जोरों पर हैं। एनडीए के प्रमुख घटक शिवसेना ने भी साफ शब्दों में कह दिया है कि 2014 के आम चुनाव के लिए गठबंधन के उम्मीदवार का नाम जल्द तय करना होगा। इस बैठक में विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर मुद्दे को फिर से खड़ा करने को लेकर बैठक में एक ब्योरेवार रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट में यूपीए सरकार के सांप्रदायिक हिंसा विधेयक का भी जिक्र था। गौर करने योग्य यह है कि विहिप कुंभ में संतों की बैठक करने जा रही है, जिसमें संघ के बड़े नेता भी शामिल होंगे। वहां गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने का प्रस्ताव रखा जाएगा। हालांकि, भाजपा फिलहाल इन दोनों मुद्दों पर खामोश है। जानकारों का कहना है जिस प्रकार से संघ और विहिप का दबाव भाजपा पर बढ़ रहा है, उसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा एक बार फिर हिंदुत्व और राम मंदिर के मुद्दे को अपने अभियान से जोड़ सकती है।

रविवार, 3 फ़रवरी 2013

जीवन साथी चुनते समय


इक्कीसवीं सदीं की नारी सफलता की ऊचांईयों को छू रही है लेकिन इन गगनचुंबी ऊंचाईयों के साथ- साथ उसके सोचने के तरीकों मे बदलाव हुआ है। पाश्चात्य संस्कृति की होड़ में कभी मान मर्यादा की प्रतिमूर्ति रही नारी आज खुद ही इससे दूर होती जा रही है । ये अलग बात है कि आज महिलाओं ने समाज में अपनी एक अलग पहचान बना ली है । जिसके दम पर वह अपनी परंपरागत धारणाओं से न केवल दूर हुई है बल्कि अपने अच्छे बुरे के निर्णय भी वह स्वयं लेती हैं। यहां तक कि अपनी जिंदगी के सबसे अहम फैसले शादी को भी वह कभी-कभी भावावेश में बह कर ले लेती हैं जिससे बाद में उन्हें सिवाय अफसोस के कुछ हासिल नहीं होता। पहले ये फैसले हमारे बड़ो के द्वारा लिए जाते थे जो सही भी होते थे पर आज की महिलाएं अपने फैसले लेने के लिए स्वछंद हैं,उन्हें लगता है कि वह अपने से जुड़े फैसले स्वयं और अच्छे ले सकती हैं । अपने से बड़ों की बातें मानना उनके इगों को बर्दाश्त नहीं। महिलाएं हमारे समाज का आधार हैं जिनके बगैर हमारे समाज की कल्पना ही नहीं की जा सकती।पर अपने आपको आगे दिखाने की होड़ में ये ना केवल अपने घर परिवार से दूर हुई हैं बल्कि अब अपने परिवार में भी सांमजस्य स्थापित कर पाना इनके लिए मुश्किल साबित हो रहा है । विवाह जैसे पवित्र बंधन का निर्णय करने से पहले गहन चिंतन करें कि क्या आप उस माहौल में रहने के लिए तैयार हैं और क्या शादी के बाद भी आपके रिश्ते ऐसे ही मधुर बने रहेंगे? आप इस बात का ध्यान जरूर रखें की ये आपका फैसला है और इससे जुड़ी हर ऊंच नीच से आप को ही रूबरू होना है कोई और नहीं होगा आपका साथ देने वाला। दरअसल जो चीजे हमें कभी-कभी दूर से बड़ी खुबसूरत दिखती हैं उसकी वास्तविकता बड़ी कुरूप होती है इसका अंदाजा हमें तब लगता है जब हम उससे संपर्क में आते हैं। सभी परिथतियों को समझते हुए निर्णय ले ।परिवार के सभी व्यक्ति चाहे वह छोटा या बड़ा हो, सभी के साथ मिल कर रहें और एक-दूसरे की तकलीफो और भावनाओं को समझें। और इतना ध्यान रखें कि जो संस्कार आपको अपने मायके में मिले हैं उन्हीं के दम पर आपको उन अजनबी लोगों के बीच अपना स्थान बनाना है और वहीं ससुराल में आपके साथ होने वाले बर्ताव के आधार को सुनिश्चित करेगा। अक्सर देखने-सुनने में आता है कि कई लड़कियां भावावेश में बहकर या फिर यौवन के आकर्षण में आकर गलत जीवन साथी का चुनाव कर बैठती हैं। इसलिए जीवन साथी चुनते समय सबसे पहले तो यह याद रखें कि इस संबंध में आपका कोई भी निर्णय भावनाओं में बहकर नहीं लिया गया हो नहीं तो आपको आजीवन पश्चाताप करना पड़ेगा। यदि आप किसी को चाहती हैं तो उसे कई बार परख कर देखिए कि क्या वह भी आपको सचमुच चाहता है। आप जिसे जीवन साथी बनाना चाहती हैं उसमें गुणों की खान भी अवश्य ही होनी चाहिए। पहले तो यह जानिए कि वह करता क्या है? और क्या उसको मिलने वाला वेतन आप दोनों के सामान्य खर्चों को पूरा कर सकता है? यदि उसके किसी के साथ पहले से ही संबंध रहे हों तो आप उन संबंधों की गहनता के विषय में भी उससे खुलकर बात कर लें नहीं तो यह बात बाद में आपके दाम्पत्य जीवन को प्रभावित कर सकती है। जीवन साथी का चुनाव करते समय एक और बात ध्यान रखने योग्य होती है वह यह कि आप यह अवश्य देखिए कि क्या आप दोनों की सोच मिलती है? यदि हां, तो ठीक है, यदि नहीं तो फिर यह समझ लीजिए कि आप दोनों के बीच विभिन्न विषयों को लेकर मतभेद भी बाद में उजागर हो सकते हैं। आपका प्रेमी आपकी भावनाओं की कितनी कद्र करता है और आपके विचारों को कितनी महत्ता देता है, यह भी आपके लिए जानने वाली बात है। डेटिंग के दौरान यदि आपका प्रेमी किसी विवाह पूर्व संबंधों की बात करे तो आप तुरंत टाल जाएं और उससे शीघ्र विवाह के लिए कहें, ऐसे में यदि वह विवाह की बात टालता है तो आपको गंभीर होना पड़ेगा और यदि वह तुरंत हां भी कर देता है तो भी जरा संभलिए, परखिए कि कहीं यह क्षणिक आवेश वाला आश्वासन तो नहीं है। याद रखिए जमाना चाहे कितना भी बदल गया हो लेकिन स्त्री के चरित्र को आज भी प्रमुखता दी जाती है इसलिए आपको यह सदैव ध्यान रखना है कि आपके चरित्र पर लांछन न आने पाए।आपके जीवनसाथी की शैक्षणिक योग्यता आपसे ज्यादा नहीं तो आपके समकक्ष तो होनी ही चाहिए क्योंकि आज जमाना वह आ गया है जबकि बच्चों के स्कूल में दाखिले के समय मां-बाप के ज्ञान और शिक्षा स्तर को भी जांचा जाता है। वैसे भी यदि आपने स्वयं से कम शिक्षित या अधेड़ उम्र व्यक्ति से शादी कर ली तो बाद में आप इगो प्रॉब्लम की शिकार हो सकती हैं और ऐसे में बात इतनी आगे बढ़ जाती है कि पारिवारिक अशांति को तो बढ़ावा मिलता ही है साथ ही कभी-कभी तो तलाक की नौबत तक आ जाती है। याद रखें आज भी समाज में पुरुषों का दंभ कम नहीं हुआ है। पुरूषों के लिए विवाह और तलाक कोई परेशानी का सबब नहीं होते। तलाक की मार से अधिकतर महिलाओं को ही जूझना पड़ता है, इसलिए ये कह देने मात्र से कि आज महिलाएं अपने दम पर हैं होना ही महिलाओं के लिए काफी नहीं है। सुखद दाम्पत्य की पहली शर्त को मानना भी अनिवार्य है इसलिए महज भावनाओं में बहकर जीवन साथी चुनना उचित नहीं है। जीवन साथी चुनते समय यदि आप उपरोक्त बातों को ध्यान में रखें तो यह बात निश्चित रूप से कही जा सकती है कि आपके दाम्पत्य के गुलशन में फूल-ही-फूल खिले होंगे जो आपके जीवन को स्वर्ग बना देगा।