नई दिल्ली। स्वस्थ नागरिक राष्टï्र की सबसे बड़ी संपत्ति होते हैैं। यदि नागरिक स्वस्थ होंगे तो सभी राष्टï्रीय उत्पादकता में वृद्घि होगी व राष्टï्र का विकास होगा । सदियों पुरानी कहावत हैै स्वास्थ्य ही धन हैै। उत्तम स्वास्थ्य का लक्ष्य पाना, वास्तव में किसी भी व्यक्ति व राष्ट्र के लिए एक बडी उपलब्धि होती हैै। इस संबंध में सबसे महत्वपूर्ण प्रश्र ये उठता है कि अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी क्या है ? संतुलित आहार व पौष्टिक भोजन बहुत हद तक अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी का काम करता हैै। इससे हमारे शरीर रूपी ईंजन को ईंधन मिलता हैै वह अच्छे तरीके से काम करता हैै। पूर्ण, समृद्घ व समग्र जीवन का आनंद उठाने के इच्छुक किसीभी व्यक्ति के लिए संतुलित भोजन की पर्याप्त मात्रा अत्यंत आवश्यक हैै। पिछले वर्षो में पोषण की अवधारणा में व्यापक परिवर्तन आया हैै।
18वीं सदी में माना जाता था कि सभी भोज्य पदार्थों में एक ही प्रकार के तत्व पाए जाते हंै। फिर कार्बोहाइड्रेटस, प्रोटीन और वसा जैसे ततवों की खोज हुई।इसके प्रोटीन व अमीनों एसिडस के बारे में पता चला। इसके बाद एक बडी खोज के रूस्प में सूक्ष्म पोषक तत्वों यानि विटामिनों का पता लगाया गया। पोषक तत्वों की कमी होनेवाली बीमारियों का मुकाबला करने की तकनीक का पता चलने के बाद पोषण की समूची अवधारणा बदल गई और इन तत्वों की कमी से होने वाली बीमारियों से अनेक लोगों की जान बचाने में मदद मिली।
मानव की बदलती जीवन शैली के चलते रोग विज्ञान के क्षेत्र में भी अनेक परिवर्तन हुए हैैं। आज विकासशील देशों को कुपोषण से होनेवाली बीमारियों का सामना करना पड़ रहा हैै। ये ऐसी बीमारियां हैैं जो भोजन में आवश्यक पोषक तत्वों के अभाव के कारण पैदा होती है। इन देशों में भोजन की मात्रा कम होने से भी समस्याएं सामने आई। कुपोषण से अनेक राष्ट्रों का विकास अस्त व्यस्त हो गया हैै।
यूनिसेफ की रिपोर्ट मेें कहा गया है कि विकासशील देशों में पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की कुल मौतों में से आधी मौतें कुपोषण के कारण होती हैै। कुपोषण जिसे पोषाहार की कमी भी कहा जाता है, का गंभीर दुष्प्रभाव लगभग उसी उम्र के लोगों पर पड़ता है। किंतु बच्चों, किशोरों और गर्भावस्था तथा बच्चे को सर्वाधिक विनाशकारी होता हैै। भारत भी उन्हीं विकासशील देशों में से एक है, जिसे कुपोषण का सामना करना पड़ रहा है। यदि मध्यप्रदेश की बात करें तो धार, झबुआ, बैतूल, बालाघाट, शिवपुरी व छिंदवाड़ा आदि जिलों में कुपोषण एक गंभीर समस्या बन चुकी हैै। इनके कई गांवों में तो यह महामारी बन चुकी हैै। आदिवासी इलाकों में कुपोषण की दर 6।4 फीसदी से 10.3 फीसदी हैै। हालांकि कुपोषण से निजात पाने के लिए बाल संजीवनी अभियान, दीनदयाल अंत्योदय योजना, जननी सुरक्षा योजना, बाल सुरक्षा जैसी कई योजनाएं चलाई जा रही है। इनसे कुुछ हद तक फायदा हुआ है। आदिवासी क्षेत्र बहुत पिछड़े व अशिक्षित हैं। इनमें अंधविश्वास कूट-कूट कर भरा होता हैै। अत: इन लोगों को कुपोषण के खतरों से अवगत कराने के लिए अभियान चलाया जाना आवश्यक हैै। साथ ही सरकार गरीबों के कल्याण के लिए जो योजनाएं चला रही है, इनका लाभ गरीबों तक पहुंच पाता है या नहीं, यह पता लगाना बहुत जरूरी है, अन्यथा बच्चे तथा महिलाएं इसी कुपोषण का शिकार होकर मौत की बलि चढ़ते रहेंगे।
गुरुवार, 30 जुलाई 2009
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