शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

बढेगा नीतीश का यश, लालू की गृहदशा रहेगी खराब

वर्ष 2012 बिहार की राजनीतिक पृष्ठभूमि में कोई बदलाव के संकेत नहीं दे रहा है। ज्योतिष की नजर से देखें तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की यश यात्रा जारी रहेगी। वे पूरे वर्ष ऊर्जावान बने रहेंगे और सफलता हासिल करते रहेंगे। वहीं बिहार की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान की ग्रह दशा ठीक उलट है। लालू प्रसाद यादव इस वर्ष राहू की दशा से बाहर नहीं निकलेंगे और उनकी परेशानियां दूर नहीं हो पाएंगी। रामविलास पासवान की कुंडली में शनि की साढ़ेसाती है और वे विरोधियों के बढ़ते प्रभाव से परेशान रहेंगे।

नीतीश कुमार की राशि वृश्चिक है और कुंडली में शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव रहेगा। इसके बावजूद उनकी यश और कीर्ति पर कोई कुप्रभाव नहीं पड़ने वाला है। वर्ष की शुरूआत में उदर विकार और मानसिक अशांति के दौर से गुजरने की आशंका है। राशि का मालिक मंगल जून महीने तक कर्म भाव में रहेगा जिससे मुख्यमंत्री अपने सभी कार्यो को सफलता पूर्वक अंजाम देते रहेंगे।

विरोधी उनपर कुछ दबाव बनाने की कोशिश करेंगे लेकिन नीतीश कुमार राज्य के विकास मार्ग पर बढ़ते रहेंगे। हालांकि उन्हें अपने विश्वासपात्रों से सतर्क रहने की जरूरत होगी। वर्ष के अंत तक मुख्यमंत्री को ऊर्जा के क्षेत्र में सफलता मिल सकती है। कुंडली में शनि 12वें घर में और व्यय भाव में होने की वजह से उन्हें राज्य के विकास में धन की कमी भी महसूस हो सकती है। इस वर्ष के उनके खर्च बढ़ेंगे। शनि धन भाव को भी देख रहा है इस लिए केन्द्र से उनकी धन की लड़ाई जारी रहेगी।

लालू प्रसाद यादव मेष राशि के हैं। पूरे वर्ष वे राहू की विपरीत ग्रह दशाओं से परेशान रहेंगे। इस वजह से वे आर्थिक और मानसिक तौर पर परेशान रहेंगे। उनके घर में मांगलिक कार्य हो सकते हैं। संतान पक्ष से दायित्वों में कमी आयेगी। जीवन साथी से मतभेद होंगे और स्वास्थ्य के प्रति चिंता बरकरार रहेगी। पूरे वर्ष वे राजनीतिक रूप से सबल होने का प्रयास करते रहेंगे पर कोई खास सफलता मिलने की संभावना नहीं है।

इस क्रम में सहयोगियों से भी उनके मतभेद हो सकते हैं। उनके लिए उचित होगा कि अपने सलाहकारों का सम्मान करते रहें। वर्ष के अंत में राजनीतिक सफलता मिलने के आसार हैं इसके लिए उन्हें जन-मानस के बीच में बने रहने की जरूरत होगी। वाणी पर संयम भी सफलता की राह दिखा सकती है।

रामविलास पासवान तुला राशि के हैं। राशि का स्वामी शुक्र संतान भाव में है जिससे उन्हें पूरे वर्ष संतान से खुशी मिलेगी। शनि की साढ़ेसाती का पूर्ण प्रभाव होने के कारण राजनीतिक जीवन संकट में रहेगा। उनके विरोधियों का प्रभाव बढ़ेगा जो मानसिक परेशानी का कारण बनेगा। अप्रैल महीने में शुक्र अष्टम भाव में होगा और केतु के साथ रहेगा। यह योग उनके राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।

जून महीना रामविलास पासवान को कुछ शांति देगा लेकिन जुलाई में मंगल व्यय घर में होगा जिससे उन्हें धन की कमी हो सकती है। उन्हें नए सहयोगियों से भी कुछ खास सफलता नहीं मिलेगी। अक्टूबर महीने से उनकी व्यवस्था बढ़ सकती है। यात्रा एवं प्रवास के योग रहेंगे। मांगलिक कार्यो में हिस्सा लेने से राविलास पासवान का मन प्रसन्न होगा और पारिवारिक दायित्व बढ़ेगा।

साभार : दैनिक भास्कर

गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

खाद्य सुरक्षा पर भाकपा का हल्ला बोल

जब सरकारी नीतियों के परिणामस्वरूप देश की जनता महंगाई और खाद्यान्न को लेकर त्राहि-त्राहि कर रही है तो विपक्षी दल जनहित के मुद्दे पर आगे आती है। इसी सोच के तहत भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने 15 दिसंबर को अब खाद्य सुरक्षा दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया है। भाकपा के महासचिव ए.बी. वर्धन का कहना है कि गत दिनों पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक में हमने इसे मनाने का निर्णय किया है।
इस कार्यक्रम के सिलसिले में भाकपा सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सर्वव्यापी बनाने, केवल लक्षित गु्रपों को सब्सिडी पर खाद्यान्न मुहैया कराने की व्यवस्था को समाप्त करने और कैश ट्रांसफर पर रोक लगाने की मांग के साथ देश भर में रैलियां निकालेगी। इस दरम्यान प्रदर्शन और जनसभाओं का आयोजन भी किया जाएगा। पार्टी महासचिव ए.बी. बर्धन का कहना है कि कहा कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा बिल की राह में रोड़े अटकाने के प्रयास जारी हैं। वर्तमान में यूपीए सरकार कहती कुछ है, करती कुछ है। उसकी कथनी और करनी में एकरूपता कम देखने को मिल रही है। केवल इतना ही नहीं, सरकार गरीबी की अवधारणा को तोडऩे-मोडऩे का प्रयास भी कर रही है। उसने गरीबों के बीच भी बंटवारा कर दिया है-बीपीएल और एपीएल। साथ ही, सरकार सब्सिडी वाली अनिवार्य सामग्रियों की सप्लाई को सुनिश्चित करने के बजाय सीधे कैश ट्रांसफर लाने की योजना बना रही है।
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर, यह सच है कि अन्ना हजारे आंदोलन ने इस आंदोलन को फोकस में ला दिया है। हमारी पार्टी को भी इस बात का श्रेय जाता है कि उसने 21 अक्टूबर को कारगर एवं मजबूत लोकपाल बिल लाने की मांग करते हुए राष्ट्रव्यापी भूख हड़ताल आयोजित की। राष्ट्रीय कायज़्कारिणी ने अपने इस दृष्टिकोण को दोहराया और सरकार से मांग की कि वह संसद की शीतकालीन सत्र में मजबूत लोकपाल बिल पारित कराये। मीटिंग में इस बात की चेतावनी दी गयी कि यदि चालू सत्र में मजबूत लोकपाल बिल नहीं लाया जाता तो देशव्यापी आंदोलन तेज किया जायेगा। दोहरे अंकों तक पहुंच चुकी और जनता के जीवन को दुश्वार बनाने वाली पेट्रोल की कीमतों में लगातार वृद्धि का विरोध करते हुए बर्धन ने कहा कि सरकार को आम जनता के हित में ईंधन की कीमतों के विनियमन और विनियंत्रण को वापस लेना चाहिए।
दरअसल, राजनीतिक रूप से सरकार भटकाव की शिकार है। ऐसे बहुत से मसले लटके पड़े हैं जिन पर सरकार फैसले लेने में नाकामयाब रही है। बर्धन ने इसके बड़े उदाहरण के रूप में तेलगांना मुद्दे का उल्लेख किया और कहा कि किसी को नहीं पता सरकार जिस सलाह-मशविरे की दुहाई दे रही है वह किस स्टेज में है। तेलंगाना एक गंभीर समस्या है। पूरा आंध्र प्रदेश एक महीने से अधिक समय तक ठप्प रहा। एक और उदाहरण उन्होंने मणिपुर में जारी आर्थिक नाकेबंदी का दिया जो 100 दिनों से अधिक समय से जारी है और राज्य की जीवन-रेखा, राष्ट्रीय राजमार्ग पर नाकेबंदी खत्म कराने की लिए कुछ भी नहीं कर रही। उन्होंने प्रश्न किया कि क्या हम युद्ध जैसी स्थिति में हैं कि जरूरी सामान लोगों तक नहीं पहुंच रहा और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है? नागाओं के साथ ऐसी क्या वार्ताएं हो रही हैं जो 20 साल से चल रही है और जो रहस्यों से घिरी हैं। मल्डी ब्रांड खुदरा व्यवसाय में एफडीआई की इजाजत देने के यूपीए-दो सरकार के फैसले की निंदा करते हुएऋ सरकार के पेंशन फंड रेगुलेटरी और डेवलपमेंट अथारिटी बिल लागू करने के हाल के फैसलों का विरोध करते हुए केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा अनुसूचित जाति सब-प्लान और अनुसूचित जनजाति सब-प्लान पर योजना आयोग के दिशा निर्देश के अनुरूप अमल में न लाये जाने पर पार्टी काफी चिंतित है।
जनसंख्या वृद्धि के कारण खाद्यान्न समस्या का सबसे अधिक सामना विकासशील देश कर रहे हैं। सवा अरब आबादी वाले भारत जैसे देश में, जहां सरकारी आकलनों के अनुसार 32 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं, अत्यंत शोचनीय है। एफएओ के अनुसार भारत में 2009 में 23 करोड़ 10 लाख लोग चरम भूखमरी का सामना कर रहे थे। आज भी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। देश में खाद्यान्न का उत्पादन बड़े स्तर पर होने के बावजूद बहुत बड़ी आबादी भूखमरी का संकट झेल रही है। तेजी से आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर भारत का विश्व भूखमरी सूचकांक में 88 देशों में 66वां स्थान है। भारत से बेहतर भूखमरी से पीड़ित अफ्रीकी देशों नाइजीरिया, कांगों, बेनिन, चाड, सूडान आदि देश हैं। राज्य स्तर पर तो और भी व्यापक असमानता देखने को मिलती है। झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और राजस्थान आदि में भूख एवं कुपोषण से पीड़ित लोगों की संख्या अन्य भागों से अधिक है। आबादी बढऩे एवं खाद्यान्न की स्थिर पैदावार के कारण देश में प्रति व्यक्ति अनाज की खपत घटती जा रही। यूनीसेफ की एक रिपोर्ट अनुसार भारत में प्रतिदिन 5000 बच्चो कुपोषण के शिकार होते जा रहे हैं। जन वितरण प्रणाली के माध्यम से गरीबों को मिलने वाला अनाज भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जा रहा है। कृषि क्षेत्र लगातार सरकारी उपेक्षा का शिकार हो रहा है। आज देश की अथज़्व्यवस्था में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी मात्र 14 फीसदी है और इस पर 55 फीसदी कामगारों की आजीविका चलती है।
घरेलू आर्थिक स्थिति बहुत गंभीर है। मैनुफैक्चरिंग क्षेत्र में मात्र 1.4 प्रतिशत की वृद्धि दर देखी गयी है। शायद पिछले कुछ दशकों की यह सबसे नीची वृद्धि दर है। वे दिन लग गये जब हमारे वितमंत्री 8.5 प्रतिशत और 9 प्रतिशत की वृद्धि दर की बात करते थे। अब वे ज्यादा-से-ज्यादा 7 प्रतिशत की उम्मीद कर सकते हैं। यह सच है कि खाद्य उत्पादन बेहतर है। इसकी वजह प्रकृति की मेहरबानी है। प्रकृति ने अच्छी बरसात की सौगात दी। जहां तक निर्यात का संबंध है उसमें विभिन्न कारणों से कमी आ रही है। पश्चिम के देशों में बाजार की कमी है और वह मंदी से बुरी तरह महीना-दर-महीना, साल- दर- साल बढ़ती महंगाई ने देश के आम लोगों का जीना दूभर कर दिया है और सरकार को कोई फ्रिक ही नहीं। संसद के शीतकालीन सत्र ने सवज़्सम्मति से प्रस्ताव पारित कर सरकार को निर्देश दिया था कि महंगाई को रोके। पर उसके बाद के महीनों में सरकार के आचरण से पता चलता है कि जनता के लिए जानलेवा बनी निरंतर बढ़ती महंगाई से सरकार को जैसे कोई देश वास्तव में गंभीर संकट में है क्योंकि अर्थव्यवस्था की सभी आधारभूत चीजें, चाहे वह सही या गलत किसी ढंग से देश पर थोपी गयी हों, कमजोर हो रही हैं।

सोमवार, 5 दिसंबर 2011

अपने-अपने थप्पड़

दरबार में सन्नाटा पसरा हुआ। हर कोई एक-दूसरे का मुंह निहार रहा है। बोलने की हिम्मत नहीं हो रही। आखिर क्या और कैसे बोला जाए? हर कोई महारानी के आने की प्रतीक्षा में...
तभी दरबारियों की जैसे तंद्रा टूटती है। पिछले दरवाजे से महारानी आकर कुर्सी पर बैठ जाती है और उनके पीछे-पीछे दबे पांव चलकर आ रहे प्रधानमंत्री जी भी मौन मुद्रा में हैं। प्रधानमंत्री जी हर ओर निगाहें डालते हैं और चश्मे के ऊपर से मराठी क्षत्रप को तलाशते हैं। कहीं नजर नहीं आते। तब एक संतरी से बुलावा भेजा जाता है।
कुछ ही देर में मुंह लटकाए, मुरझाए से, लाल गाल के संग शेर-ए-मराठा दाखिल होते हैं। हर कोई उनकी गाल को तिरछी नजरों से देख रहा है। उसमें कुछ संवेदना के संग तो कुछ शरारत भरी नजरों से। पर दिक्कत यह कि जब सामे महारानी हों तो शोक भी नहीं प्रगट कर सकते, उनकी तौहीन हो जाएगी। शोक भी प्रगट करने का अधिकार तो पहले मल्लिका-ए-दरबार का ही होता है न... वहीं कुछेक दरबारी के चेहरे पर कुटिल मुस्कान भी तैर रही थी। हालांकि वह अपनी ओर से छिपाने का भरसक कोशिश कर रहा था।
महारानी की मंशा जानकर वजीर-ए-आजम ने मराठा छत्रप से मुखातिब होते हुए पहले उन्हें एक अदना-सा आदमी द्वारा तमाचा रसीदे जाने पर दुख और संवेदना प्रकट किया। लगे हाथ यह भी पूछा कि कहें तो आपकी सुरक्षा की खातिर एसपीजी की टुकड़ी लगा दूं? एसपीजी के सामने किसी की क्या मजाल जो मेरे- आप तक बिना पूछे घुस जाए? आप कहें तो सही? दरबार आपकी सुरक्षा और सम्मान का पूरा ख्याल रखेगी। उसी के लिए तो आज महारानी भी हमलोगों के सामने है।
मराठा छत्रप ने कहा, आपने जो सम्मान दिया है और जो भावनाएं व्यक्त की है, उसके लिए हम शुक्रगुजार हैं। महरानी का तो हम पर कई ऋण पहले से ही है। जो होना था हो गया। अब कर ही क्या सकते हैं।
तभी दरबारियों में फुसफुसाहट सुनाई पड़ी। कुछ आपस में बतिया रहे थे। बचपन में थप्पड़ किसी को सुधारने के लिए और बड़े होकर किसी को थप्पड़ लगाना विरोध का प्रतीक है। कम से कम मराठा क्षत्रप के मामले में तो यही लगता है। बड़े शेर बनते थे। महारानी को भी कई बार नीचा दिखाने का प्रपंच रचा था। जो काम महारानी ने दिया था, उस पर ध्यान देते नहीं और विदेश दौरे-क्रिकेट पर ज्यादा जोर था। एक अदना सा इंसान ने ऐसा झन्नाटेदार थप्पड़ लगाया कि किसी को मुंह दिखाने का साहस नहीं जुटा रहे थे। बनते थे शेर, चूहा बनकर दुबक गए अपनी बेटी के घर। वह तो प्रधानमंत्री ही थे जो फोन करके ढांढस बंधाया। और कोई होता तो पूछता भी नहीं...
तभी दूसरे दरबारी ने कहा यह तो विरोधियों की साजिश है। विरोधी भगवाइयों ने ही बयानबाजी कर-करके लोगों को उकसा दिया है। उकसाने में तो उन्हें महारत हासिल है। राजकाज कुछ दिन क्या चला लिया, समझते हैं कि राजकाज के हर दांव-पेंच उन्हें पता है।
उत्तरप्रदेश से ताल्लुक रखने वाले एक दरबारी ने महारानी और प्रधानमंत्री की ओर मुंह करके बोलना श्ुारू किया। उसने कहा, महारानी यह विरोधियों की साजिश का परिणाम है। महंगाई तो आज बढ़ी नहीं है। यह हमारी सरकार की विफलता भी नहीं है। यह तो वैश्विक समस्या है। लेकिन भगवाई बार-बार हमारी भोली-भाली जनता को उकसा रहे हैं। दो दिन पहले ही तो एक भगवाई ने
कहा था कि अगर सरकार का यही रवैया रहा तो हम तो नाउम्मीद होंगे ही, देश की जनता भी पूरी तरह नाउम्मीद हो जाएगी। सरकार महंगाई पर कुछ नहीं करेगी। यदि ऐसा होता है तो लोगों का गुस्सा कहीं न कहीं फूटेगा। बड़ी चिंता आम आदमी की स्थिति को लेकर है जो इसे अब ज्यादा बर्दाश्त नहीं करेगा। और हमें कोई आश्चर्य नहीं होगा यदि महंगाई इस देश में हिंसा का कारण बन जाए। अब प्रधानमंत्री जी ही तय करें क्या कोई इस प्रकार की बात सरेआम कहता है क्या?
तभी दूसरे दरबारी ने कहा, महारानी इतना ही नहीं, कुछ लोग तो इसे युवराज वाली घटना से भी जोड़ रहे हैं।
युवराज वाली घटना? हर दरबारी का दिमाग सन्न रह गया। इसमें युवराज कहां से आ गए? युवराज को लेकर यदि कहीं तीन-पांच हो भी गया तो महारानी के सामने क्यों कहा जाए। मगर तभी महारानी ने कहा, बोलो दरबारी क्या चर्चा हो रही है अवाम में...
जी महारानी, यदि आप बुरा न मानें तो कहूं?
बोलो...
जी...कुछ ही दिन हुए हैं जब युवराज देश के सबसे बड़े प्रदेश के दौरे पर थे। रैली होनी थी। आपकी दुआ से सब व्यवस्था चाक-चौक चौबंद थी। मगर... विरोधियों ने युवराज के दौरे में खलल डालने की कोशिश की। सो, हमारे ही दो वरिष्ठ दरबारियों ने जिन्हें आपने ने कुछ महकमों का दायित्व भी दिया हुआ है, एक आम आदमी पर लात-घूंसा बरसाने लगा।
अचानक प्रधानमंत्री बीच में कूद पड़े। हाथ जोड़कर बड़े विनम्र भाव से बोले, महारानी इस घटना की पूरी तस्दीक मैंने कराई। युवराज की कोई गलती नहीं थी। दोनों दरबारियों को कारण-बताओ नोटिस भी जारी किया हुआ है। बस, कुछ ही देर में उसका जबाव भी आता होगा।
लेकिन, महारानी को लगा जैसे किसी दरबारी की घटना में युवराज का नाम घसीटकर उनके गाल पर भी थप्पड़ लगाया गया है। महारानी मन ही मन सोचने लगी। चूंकि थप्पड़ एक आदमी की तरफ से आया है और इसकी लाइव टेलिकास्ट तमाम संचार माध्यमों पर अगले ही पल हो गई, लिहाजा अदना-सा इंसान से दरबारियों की बयानबाजी हो रही है। वह सोच रही थी यह मराठा छत्रप पर नहीं बल्कि आम आदमी की ओर से 'उनकी पावरÓ पर लगाया गया है। महरानी को गुन-धुन की मुद्रा में देखकर प्रधानमंत्री ने फौरन दरबार की कार्रवाई को अगले आदेश तक के लिए बर्खाश्त कर दिया। पर हर दरबारी यही सोचने लगा कि कहीं युवराज का नाम ले-कर उन्होंने महारानी को ही तो थप्पड़ नहीं लगा दिया।

मार-कुटाई के संग सियासी राग

राम...राम इतवारी लाल जी, कहां से आ रहा हैं? मौसम सर्द होने को बेताब है और आपके चेहरे पर पसीना? सबकुछ ठीक-ठाक हैं न...
हां, भई, कुछ ठीक भी कह सकते हैं। और नहीं भी। अभी-अभी नागपुर से लौटा हूं।
नागपुर? संतरा लेने गए थे क्या?
अरे, भई आप भी न... संतरा तो अपनी दिल्ली में भी सस्ती हो गई है। तो भला उसके लिए नागपुर क्यों जाऊं। मैं तो गया था वसंतराव देशपांडे हॉल में टीम अन्ना को सुनने। वहां की खबरें जानने। शीतलकालीन सत्र भी आने को है न... सो, मन में जिज्ञासा हुई कि टीम अन्ना की हरकत को देखूं। मगर, क्या बताएं? हरकत में तो वहां के लोग दिखे।
जो वसंतराव देशपांडे हॉल अब किसी बड़े राजनेता के भाषणवाजी में नहीं भरता, वह टीम अन्ना के महारथी अरविंद केजरीवाल के कारण भर गया। एकदम ठूंस-ठूंस कर लोग भरे थे। फिर भी जिन्हें जगह न मिली वो हॉल के बाहर बड़े-बड़े स्क्रीनों पर केजरीवाल को देख-सुन रहे थे। अरे बाप, काफी दिनों बाद यह हॉल इतना भरा था। स्थानीय लोगों को भी यह भान नहीं था कि आखिरी दफा कब इतनी हुजूम यहां जुटी थी।
सच। दिल्ली में तो चर्चा है कि वहां भाजपा-कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में जूतम-पैजार तक हो गई?
हां भई। ऐसी ही नौबत थी। मगर, तिल को ताड़ कैसे बनाया जाता है, यह तो दिल्ली दरबार की खासियत रही है। जनता से सरोकार नहीं और बेमतलब का बखेड़ा। दरअसल, केजरीवाल का भाषण खत्म हुआ वैसे ही बाहर खड़े दस-पन्द्रह लोगों ने काले झंडे लहराने शुरु कर दिये। जो बाहर खड़े होकर भाषण सुन रहे थे उन्होंने काले झंडे दिखाने वालो को मारना-पीटना शुरु कर दिया। बस, दिल्ली में बैठे लोग चिल्लाने लगे कि कांग्रेसी और भाजपाई में जूतम-पैजार हो गई।
सच तो यह है कि नागपुर के इस हॉल में दोनों दल की डायरेक्ट एंट्री नहीं थी इस कार्यक्रम में। कार्यक्रम तो इंडिया अगेंस्ट करप्शन ने किया था। मुख्य आयोजक की भूमिका में नागपुर के बिजनेसमैन अजय सांघी थे। प्रत्यक्ष तौर पर जिनका कोई ताल्लकुत राजनीति में अभी तक नहीं है। आने वाले दिन में कौन सा बिजनैसमेन किस पार्टी का दामन थाम ले, ये तो अभी कह नहीं सकता न...
ये बात तो हर कोई जानता है न कि कांग्रेस के एक पूर्व मुख्यमंत्री आजकल टीम अन्ना के खिलाफ जमकर मोर्चा खोला था। लगता है कि अचानक उन्हें कुछ घूंटी पिलाई गई है, इसीलिए तो वह खुलकर बोल नहीं पाते। मगर राजनेता बोलने से जाए तो जाए, लेकिन राजनीति करने से न जाए... ये बात तो हर कोई जानता ही है। दरअसल, जंतर-मंतर से टीम अन्ना का जो स्वरूप अस्तित्व में आया वह रामलीला मैदान में अपने विराट स्वरूप का अक्स दिखा दिया। केवल सत्ताधीशों को ही नहीं, बल्कि पूरी संसदीय व्यवस्था के नुमांइदें को कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया। सियासी गलियारों में हाय-तौबा मचनी शुरू हो गई। यह अनायास थोड़े ही था कि जो प्रधानमंत्री 18 अगस्त को संसद में अन्ना हजारे के आंदोलन को देश के लिये खतरनाक बता रहे थे, वही प्रधानमंत्री 28 अगस्त को पलट गए और समूची संसद ने अन्ना से अनशन तोडऩे की प्रार्थना की। बस...टीम अन्ना के हौंसले इस कदर बुलंद हो गए कि उन्हें लगना लगा...हम ही हैं रक्षक। नए भारत के निर्माता। इस सोच को भोंपू ने भी आमजनता तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लोग-बाग टीम अन्ना को तारणहार मानने लगे। और जब इंसान भगवान के रूप में आ जाता है तो साथ में वह अहंकारी भी हो जाता है। अहंकार दुराचार का मार्ग खोलता है। शक्ति उसका संवर्धन करती है।
अरे, इतवारी लाल जी, आप तो दर्शन बताने लगे?
काहे का दर्शन... देश के सामने आज कुछ ऐसी ही परिस्थिति है। यह परिस्थितियां देश के सामने कुछ नये सवाल खड़ा करती हैं। जनलोकपाल को लेकर आम जनता के मन में यह बात घर कर बैठी है कि इसके आने से भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा और भ्रष्टाचार खत्म होते ही महंगाई छू-मंतर हो जाएगी। तभी तो आम आदमी टीम अन्ना में अपना अक्स देख रहा है।
अब चूंकि छह प्रदेशों में चुनावी बिगुल बजने भर का देर है। महंगाई और भ्रष्टाचार के कारण राष्ट्रीय स्तर पर भी रूक-रूक कर मध्यावधि चुनाव की संभावना तलाशी जा रही है। इस हालात में चुनावी राजनीति की धुरी जनलोकपाल के सवाल पर टीम टीम है। कांग्रेस को इसमें राजनीतिक घाटा तो भाजपा को राजनीतिक लाभ नजर आ रहा है। जनलोकपाल आंदोलन से पहले सरकार इतनी दागदार नहीं लग रही थी और भाजपा की सड़क पर हर राजनीतिक पहल बे-सिर पैर की कवायद लग रही थी। देश का आम आदमी, जिसकी अहमियत केवल चुनावों तक जैसे सीमित हो चुकी लगती है, उसे कांग्रेस को लेकर यह मत था कि यह भ्रष्ट है। मगर भाजपा के जरिये रास्त्ता निकलेगा ऐसा भी किसी ने सोचा नहीं था। लेकिन अन्ना आंदोलन ने झटके में एक नयी बिसात बिछा दी।
इसी बिसात की एक चाल तो नागपुर में दिखी। वरना क्यों कोई काले झण्डा दिखाता और क्यों नाहक मार-कुटाई होती। भोंपू को तो मसाला चाहिए। सो, कह दिया गया कि जिसने काले झण्डे दिखाए वह कांग्रेसी और जिसने मार-कुटाई की वह भाजपाई। एक तरफ कांग्रेस की झपटमार दिग्विजयी राजनीति ने भाजपा और संघ में जान ला दी तो दूसरी तरफ भाजपा की चुनावी राजनीति ने सरकार की जनवरोधी नीतियों से हटकर कांग्रेस की सियासी राजनीति को केन्द्र में ला दिया।

बुधवार, 31 अगस्त 2011

कैसे हो सपना पूरा

पूर्व में उपेक्षित प्रदेश जब अपनी विकास की गति को पाना चाहता है तो वह केंद्र सरकार से कई प्रकार की सुविधा ‘विशेष राज्य’ का दर्जा पाने के बाद लेना चाहता है। बिहार के तमाम नेता और जनता का अब यही सपना है कि उन्हें भी विशेष का दर्जा मिल जाए। काफी अरसे से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा के नाम पर नेताओं की बयानबाजी होती आ रही है। कई मुख्यमंत्रियों ने इसकी बात उठाई और बात ठंडे बस्ते में चली गई। मगर इस दफा नीतिश कुमार ने स्वयं मोर्चा खोला है तो जाहिरतौर पर उनकी सरकार और दल के लोग उनके साथ हैं। पटना से दिल्ली तक हस्ताक्षर अभियान भी उसी का हिस्सा है। तभी तो केंद्र सरकार इतना कह रही है कि वह जल्द ही इस मसले पर विचार कर रही है और एक एक अंतर-मंत्रालय ग्रुप का गठन किया जाएगा, जिसकी सिफारिशों के आधार पर ही कोई फैसला लिया जाएगा।
दरअसल, बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के सवाल पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आक्रामक मुद्रा में हैं। केन्द्र से दो-दो हाथ करने की तैयारी में है। उन्होंने साफ कहा है कि बिहार से नाइन्साफी बर्दाश्त नहीं करेंगे और विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिला तो बिगुल फूंकेगे। इस मांग के समर्थन सूबे के एक करोड़ से अधिक लोगों का हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन दिल्ली तक पहले ही पहुंच चुका है। मुख्यमंत्री कहते हैं कि दिल्ली में बैठे लोग जस्टिस नहीं कर रहे हैं। लेकिन अब हम बर्दाश्त भी नहीं करने वाले। विशेष राज्य का दर्जा किसी एक दल की नहीं बल्कि सर्वदलीय मांग है जिसे विधान मंडल के दोनों सदनों से सर्वानुमति प्राप्त है। फिर केन्द्र की हीलाहवाली क्यों? बिहार के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती उसके साथ हो रहा अन्याय है। एक ओर तीन राज्यों को कर्ज की माफी की तैयारी हो रही है तो दूसरी ओर बिहार के हितों को नजरअंदाज किया जा रहा है। विपक्ष को भी समझना चाहिए। दलीय भावना से उपर उठकर काम करने का समय है। बिहार की पीड़ा ती दूर हो सकेगी।
उधर, इस मांग का विरोध नहीं करते हुए भी राज्य के कांग्रेसी नेता इसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीतिक चाल देखते हैं। उनका आरोप है कि इस सरकार के विकास संबंधी खोखले दावे और विफल हो रही योजनाओं से उत्पन्न जनाक्रोश का रुख़ केंद्र सरकार की तरफ़ मोडऩे के लिए नीतीश कुमार विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिये जाने वाला शोर मचा रहे हैं।
लेकिन जहां तक राज्य के आम लोगों की बात है, तो इस मुद्दे पर प्राय: सभी इस मांग के समर्थन में एकजुट होने लगे हैं। ख़ासकर उद्योग धंधे के लिए पूंजी निवेश को इस राज्य में आकर्षित करने का एकमात्र उपाय अब इसी विशेष राज्य वाले दर्जे की मांग में नजऱ आ रहा है। दरअसल, विश्ेष दर्जा वाली श्रेणी में जिस राज्य को शामिल कर लिया जाता है, वहाँ कोई कारखाना या उद्योग लगाने वालों को विभिन्न करों में भारी रियायत और केंद्र प्रायोजित योजनाओं में राज्य सरकार को बड़ी छूट मिल जाती है। यही कारण है कि इस श्रेणी वाले प्रदेशों में पूंजी निवेश करने वालों की ख़ास दिलचस्पी होती है। देश के ग्यारह राज्य, यानी जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम, मणिपुर और सिक्किम को विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ है।
वैसे आमतौर पर बिहारवासियों में फि़लहाल यह उम्मीद या भरोसा उस हद तक नहीं है कि मौजूदा केंद्र सरकार यह मांग मान ही लेगी। लेकिन इस बाबत आवाज़ बुलंद करने की कुलबुलाहट यहाँ आम जनों में उभरती हुई दिखने लगी है।
दूसरी तरफ केंद्र सरकार का कहना है कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने पर जल्द ही विचार किया जाएगा। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाल में ही राज्य के कई नेताओं के साथ प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी और राज्य को विशेष दर्जा देने का अनुरोध किया था। योजना राज्यमंत्री अश्विनी कुमार का कहना है कि बिहार को विशेष दर्जा देने के मामले में विचार करने के लिए एक अंतर-मंत्रालय ग्रुप का गठन किया जाएगा। इस ग्रुप की सिफारिशों के आधार पर ही कोई फैसला लिया जाएगा।


गाडगिल फार्मूला की कसौटी पर खरा हैदुनिया के सभी संघीय गणराज्यों में यह नियम है कि केंद्र विभिन्न राज्यों को वित्तीय सहायता देता रहता है। जो राज्य संपन्न हैं, उन्हें थोड़ी सहायता दी जाती है और जो गरीब हैं, उन्हें अधिक। भारत में गरीब राज्यों को ‘विशेष श्रेणी’ में रखने का सिलसिला 1969 में ‘गाडगिल फॉर्मूले’ के तहत शुरू किया गया। इस फॉर्मूले के अनुसार, वित्त आयोग ने गरीब राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया और यह तय किया कि उन्हें केंद्र से जो आर्थिक सहायता दी जाएगी, उसका 90 प्रतिशत अनुदान के रूप में होगा और 10 प्रतिशत ऋण के रूप में। अन्य राज्यों को, जो संपन्न हैं, उन्हें केंद्र से जो आर्थिक सहायता दी जाएगी, वह अनुदान के रूप में 30 प्रतिशत और ऋण के रूप में 70 प्रतिशत होगी। इसके पीछे मकसद यही था कि गरीब राज्य देर-सबेर अपने पैरों पर खड़े हो सकें। गाडगिल फॉर्मूले के अनुसार, विशेष राज्य का दर्जा देते समय यह कहा गया था कि उन्हीं राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाए, जो किसी अन्य देश की सीमा पर स्थित हैं, जहां से देश की सुरक्षा को खतरा है। जो पहाड़ी क्षेत्र हैं और जहां की जमीन ऊबड़-खाबड़ है और जहां लोग आसानी से एक जगह से दूसरी जगह जा नहीं सकते हैं। जहां आबादी का घनत्व कम है, जहां जनजातीय लोग बहुतायत में रहते हैं, जहां इंफ्रास्ट्रक्चर नाममात्र का है और जो क्षेत्र आर्थिक रूप से बहुत ही पिछड़ा है। जहां प्रति व्यक्ति औसत आय बहुत ही कम है। इन सारे मानदंडों पर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिया जा सकता है। वह नेपाल और बांग्लादेश की सीमा पर स्थित है, जहां से सुरक्षा को भयानक खतरा है। उसका अधिकतर क्षेत्र पहाड़ी और ऊबड़-खाबड़ नहीं है, परंतु हर वर्ष उत्तरी बिहार नेपाल से निकलने वाली नदियों के कारण डूब जाता है और दक्षिण बिहार में आए दिन सूखा पड़ता रहता है। बिहार में ऐसे लोग सबसे ज्यादा हैं, जो गरीबी रेखा के नीचे हैं।


महत्वपूर्ण तिथिवार :
4 अप्रैल 2006 को बिहार विधानसभा का सर्वसम्मत प्रस्ताव।
3 जून 2006 को मुख्यमंत्री का प्रधानमंत्री के नाम पत्र।
31 मार्च 2010 को बिहार विधानपरिषद का सर्वसम्मत प्रस्ताव।
10 मार्च 2011 प्रभात खबर, पटना कार्यालय से मुख्यमंत्री ने हस्ताक्षर अभियान की शुरुआत की।
23 मार्च 2011 राज्य के सभी राजनैतिक दलों के सांसदों का प्रधानमंत्री के नाम पत्र।
10 जुलाई 2011 वशिष्ठ नारायण सिंह के नेतृत्व में हस्ताक्षर ज्ञापन यात्रा पटना से दिल्ली के लिए रवाना।
14 जूलाई 2011 जदयू प्रतिनिधिमंडल पीएम से मिला, पीएम ने एनडीसी में चर्चा का आश्वासन दिया।

गुरुवार, 28 जुलाई 2011

भारत विश्व का नं. 1 कार बाजार


आम जनता की नजर में महंगाई अभी विकराल रूप में हैं, लेकिन बहुत कम को इस बात का इल्म होगा कि कार बिक्री के हिसाब से भारत अब विश्व का नम्बर वन होने वाला है। सदियों पुरानी अपनी खोई पहचान को भारत फिर से हासिल करने के लिए निकल चुका है। कभी विश्व के दूसरे देश भारत की आर्थिक संपन्नता को सलाम करते थे और इसे सोने की चिडिय़ा के नाम से पुकारते थे। एक बार फिर से भारत अपनी आर्थिक समृद्घि को हासिल करने के लिए आगे बढ़ रहा है। यह अनायास नहीं है कि कारों की बिक्री में भारत अमेरिका को पछाडऩे की दिशा में बढ़ चुका है। एक कंसल्टिंग फर्म बूज ऐंड कंपनी के मुताबिक भारत का कार बाजार चीन की ही तरह तेजी से बढ़ रहा है और यह अगले 25 वर्षों में अमेरिका को भी पीछे छोड़ देगा। भारत में ऑटोमोबाइल की बिक्री 2020 तक आज की तुलना में दुगनी हो जाएगी। उस समय भारत में हर साल 50 लाख कारें बिका करेंगी और यह संख्या बढक़र 60 लाख तक हो जाएगी। इसी कंपनी का यह भी कहना है कि 2020 में भारत का ऑटोमोबाइल बाजार की बिक्री के मामले में जर्मनी का दुगना हो जाएगा। जर्मनी का ऑटोमोबाइल बाजार यूरोप का सबसे बड़ा बाजार है। उसके बाद भारत तेजी से बढ़ते हुए अमेरिका के बाज़ार को पीछे छोड़ देगा। उस समय भारतीय ऑटोमोबाइल मार्केट 200 अरब डॉलर का होगा।
यही वजह है कि विश्व की नामी गिरामी कंपनी बीएमडब्लू, मर्सिडिज, जनरल मोटर्स सरीखीं नामी गिरामी कंपनियां भारतीय बाजार को ध्यान में रखकर अपने नए उत्पाद का निर्माण कर रह हैं। अब तो विश्व की सबसे तेज चलने वाली कार अल्टीमेट एरो भी भारतीय बाजार में दस्तक दे चुकी है। अध्ययन के मुताबिक आनेवाले दिनों में भारत में ऑटो क्षेत्र में 35 अरब डॉलर का निवेश होगा और यहां काम कर रही कंपनियां दक्षिणी अमेरिका, अरब देशों और अफ्रीका तक कारों का निर्यात करेंगी। ऑटोमोबाइल सेक्टर से जुड़े लोगों का मानना है कि कार निर्माताओं के लिए भारत में कारों का उत्पादन कोरिया और जापान की तुलना में कहीं सस्ता पड़ेगा। भारतीयों की आय बढ़ते जाने के साथ ही उनकी वाहन खरीदने की क्षमता भी बढ़ती जाएगी।
वर्ष 2010 में दर्जनों नई कारें भारतीय बाजार में आईं और लोगों ने उसे सराहा। लिहाजा, कार निर्माताओं को भारतीय बाजार रास आने लगा और अनुमान है कि इस वर्ष विभिन्न कंपनियों के करीब 50 नई कारें लॉन्च होंगी। अर्थव्यवस्था की मजबूती के साथ खर्च करने लायक आमदनी में बढ़ोतरी होने और छोटे शहरों में भी अमीरों की तादाद अच्छी-खासी होने से लोग कारें खरीदने की लालसा पर लगाम नहीं लगा पा रहे हैं।
होंडा इस साल ब्रियो और बीएमडब्ल्यू मिनी लॉन्च करेगी। इससे मारुति सजुकी की स्विफ्ट और फोर्ड की फिगो के दबदबे वाले कॉम्पैक्ट कार बाजार में नई चुनौती पैदा होगी। अपनी छोटी कारों के लिए मशहूर मारुति सुजुकी ने इस साल अपनी लग्जरी सेडान कार किजाशी जनवरी में लॉन्च की। किजाशी की कीमत 18 लाख रूपए है। अपनी स्मूथ और पॉवरफुल परफॉर्मेस से अलग पहचान बनाने वाली मारूति ने अमरीका में 30 जुलाई 2009 को मिडल साइज कार सुजुकी किजाशी लॉन्च की थी। कंपनी अपने बारे में ग्राहकों की सोच बदलने और लग्जरी सेगमेंट में अपनी पहुंच बढ़ाने की कोशिश में जुटी है। मुकाबले में आगे निकलने के लिए कई कार कंपनियां अपने मौजूदा उत्पादों के ज्यादा सुधरे हुए वर्जन लॉन्च करने की तैयारी में हैं। मारुति सुजुकी अपनी स्विफ्ट को पुश बटन इग्नीशन के साथ ला रही है जिससे फ्यूल की खपत कम की जा सके। इसके अलावा स्विफ्ट में सनरूफ का ऑप्शन भी दिया जाएगा। यह अपने मौजूदा मॉडल के मुकाबले ज्यादा लंबी और चौड़ी होगी।
मर्सिडीज अपनी सबसे महंगी गाड़ी मेबैक को फिर लॉन्च करने की तैयारी में है। ऑडी भी जल्द ही देश में अपनी ऑडी 8 लॉन्च करने वाली है, जिससे इस बाजार में होड़ और तीखी हो जाएगी। पिछले साल अक्टूबर में 150 स्थानीय कारोबारियों के समूह ने एकसाथ मर्सिडीज खरीदने का फैसला किया था। इससे पता चलता है कि देश में किस तरह से लोग लग्जरी गाडिय़ों के लिए बेकरार हैं। स्पोर्ट्स यूटिलिटी ह्वीकल (एसयूवी) बाजार में भी नए खिलाड़ी आ रहे हैं। बाजार में चर्चा गर्म है कि फॉक्सवैगन अपनी टाइगुआन, दी रेक्सटॉन और सैंगयोंग अपनी कोरांडो भी इस साल भारतीय बाजार में उतारने वाली हैं। सैंगयोंग अब महिंदा एंड महिंद्रा का ही एक हिस्सा है। रेनॉ क्रॉसओवर कोलियोस भी इस सेगमेंट में इस साल आ सकती है। भारत में एसयूवी मार्केट पहले ही काफी तेजी पकड़ चुका है। टोयोटा की फॉर्च्यूनर की बिक्री एक साल में करीब दोगुनी होकर एक लाख के पार पहुंच चुकी है। टोयोटा के डिप्टी एमडी (मार्केटिंग) संदीप सिंह के मुताबिक, हम कुछ वास्तविक प्रतिस्पर्धा का इंतजार कर रहे हैं। बाजार में फॉर्च्यूनर की मांग इतनी ज्यादा है कि हमें छह महीने के बाद जनवरी में इसकी बुकिंग फिर से शुरू करनी पड़ी है। ग्राहकों की मांग हर बार कंपनी की क्षमता से ज्यादा कारों पर पहुंच जाती है।
सच तो यही है कि भारत में कारों की बढ़ती बिक्री को देखते हुए दुनियाभर की कार कंपनियां यहां अपने नए-नए मॉडल्स लांच कर रही हैं। मारुति जल्द ही बाजार में अपनी दमदार कार ‘किजाशी’ लांच करने वाली है। जापानी भाषा में ‘किजाशी’ का अर्थ होता है चेतावनी। और वाकई मारुति की यह नई कार अपनी सेग्मेंट की दूसरी कारों के लिए किसी चेतावनी से कम नहीं होगी। भारतीय सडक़ों पर इसका मुकाबला होंडा अकॉर्ड, टोयोटा कोरोला, ह्युंडई सोनाटा, और फोक्सवैगन जेट्टा से होगा। मारुति सुजुकी, किजाशी को स्पोर्ट्स क्रॉसओवर के तौर पर उतारेगी, जिसके फीचर एसयूवी के होंगे, लेकिन इसे कार के प्लेटफॉर्म पर बनाया गया है। किजाशी को सबसे पहले साल 2007 में फ्रैंंकफर्ट मोटर शो में पेश किया गया था। इसके बाद बीते साल दिल्ली ऑटो एक्सपो में भी इसे डिस्प्ले किया गया। जिसके बाद से ही लोग बेसब्री से इसके लांच का इंतजार कर रहे हैं। किजाशी को जापान और अमेरिका में पहले ही लांच किया जा चुका है। भारत में इस कार की कीमत कितनी होगी, फिलहाल कंपनी ने यह साफ नहीं किया है। पर माना जा रहा है कि इसकी कीमत 10 लाख रुपए से ज्यादा होगी।
इसी प्रकार टोयोटा की इनोवा और महिंद्रा की जाइलो को टक्कर देने के लिए टाटा मोटर्स ने कमर कस ली है। कंपनी जल्दी ही अपनी स्पोर्टस यूटीलिटी व्हीकल ‘टाटा एरिया’ को भारत में लांच करने वाली है। भारत में एसयूवी के बढ़ते बाजार को देखते हुए कंपनी की नजर बहुत पहले से इस सेगमेंट पर थी। एरिया में 2179 सीसी का शक्तिशाली इंजन लगाया गया है जो कार को 4,000 पर 140 बीएचपी की ताकत प्रदान करेगा। माना जा रह है कि इसकी कीमत 12 लाख रुपए के आस पास होगी।
तो हैचबैक कटेगरी में टोयोटा जल्दी ही अपनी नई कार इटोयोस को लांच करने वाली है। टोयोटा मोटर्स, इटियोस को इसी साल दिसंबर में लांच करेगी। कार बाजार में फोक्सवैगन की पोलो के बाद मिडसाइज हैचबैक में अब सबको टोयोटा की इटियोस का ही बेसब्री से इंतजार है। टोयोटा इसकी बुकिंग जनवरी से शुरू करेगी। कंपनी के मुताबिक ये कार ‘वैल्यू फॉर मनी’ साबित होगी और लोगों को पंसद आएगी। इटियोस मारुति की स्विफ्ट और स्विफ्ट डिजायर को टक्कर देगी। इसकी कीमत 7 लाख रुपए के आसपास होगी। फ्रांस की वाहन निर्माता कंपनी रेनॉ मोटर्स भारत में अपनी पहली सेडान ‘फ्लुएंस’ लांच करने की तैयारी कर चुकी है। रेनॉ मोटर्स अगले साल मध्य तक इसे भारतीय बाजार में उतार देगी। फ्लुएंस पुरी तरह भारत में बनी कार होगी। हालांकि इस सेडान की कीमत क्या होगी इस पर फिलहाल कंपनी ने कुछ नहीं कहा है। लेकिन सूत्रों की मानें तो इसकी कीमत सात से दस लाख रुपए के बीच हो सकती है।
स्वीडन की कार निर्माता कंपनी स्कोडा इस साल भारतीय बाजार में अपनी नई कार उतारने की सोच रही है। स्कोडा अपनी ये नयी कार भारतीय बाजार में पहले से ही अपनी जगह बना चुके होडा सिटी, हुंडई वेरना और फोर्ड फिएस्टा के प्रतिद्वंदी के रूप में उतारना चाह रही है। कंपनी ने दावा किया है कि वो अपनी इस नयी कार में लउरा से भी बेहतर फिचर्स, डिजाइन, क्वालिटी देंगे। ये नयी कार फौक्स वेगन के वेंटो के ही प्लेटफार्म पर बनी है। स्कोडा भारत में फौक्स वेगन से कम किमत में उसी फिचर्स के साथ कारों को भारत में उतारना चाह रही है। स्कोडा की ये नयी कार फौक्स वेगन वेन्टा के प्लेटफार्म पर बनी जरूर है लेकिन यह वेन्टो से सस्ती होगी।

बुधवार, 27 जुलाई 2011

बंटेगा नगर निगम, जनता असमंजस में

अब लगभग यह तय हो गया है कि दिल्ली नगर निगम को तीन निकायों में बांट दिया जाएगा, लेकिन जनता में पूरी स्थिति को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। हाल ही में दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने पहले कैबिनेट में इस प्रस्ताव को पास कराया और फिर केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम से मुलाकात की। इससे इतना तो तय है कि इस बंटवारे को अब कोई नहीं रोकेगा। मगर बंटवारें के बाद की स्थिति कैसी होगी, इसको लेकर लोगों के मन में तरह-तरह के सवाल घुमड़ रहे हैं। मसलन, वार्डों की स्थिति कैसी होगी? मेयर कितने होंगे? मुख्यालय एक ही होगा या अलग-अलग? अभी दिल्ली नगर निगम का वार्षिक घाटा करीब 1700 करोड़ के करीब है, तो प्रस्तावित बंटवारें के बाद इसमें इजाफा होगा क्या? ऐस ही कई सवाल हैं।
हालांकि, मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कैबिनेट की बैठक में दिल्ली नगर निगम को तीन निकायों में बांटने का फैसला करने के बाद इतना कह दिया कि वार्डो की संख्या यथावत 272 ही रहेगी। मुख्यमंत्री का कहना है कि नगर निगम का कुशल संचालन सुनिश्चित करने के लिए यह फैसला लिया है। निगम को बांटने के निर्णय से पहले हमने पार्टी के कई शीर्ष नेताओं से इस मसले पर राय ली है। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से शीला दीक्षित की हुई मुलाकात के बाद दिल्ली सरकार ने यह फैसला किया।
बताया जाता है कि दिल्ली नगर निगम को उत्तर, दक्षिण और पूर्वी हिस्से में बांटने का प्रस्ताव तैयार किया गया है। पश्चिमी दिल्ली में रहने वाले लोग दक्षिणी जोन में आएंगे। उत्तर, पूर्वी और दक्षिणी दिल्ली के अलग-अलग नगर प्राधिकरण होंगे। सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि इससे नगर निकाय अधिक कारगर तरीके से अपनी सेवाएं मुहैया करा पाएंगे। नगर निगम के नए ढांचे के तहत महिलाओं के लिए 50 फीसद सीट सुरक्षित रखने का फैसला लिया है। दिल्ली में महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में सरकार इसे ऐतिहासिक कदम मान रही है। गौरतलब है कि शीला दीक्षित पिछले चार महीनों से निगम को बांटने की मुहिम में जुटी हुई थीं। कैबिनेट के इस फैसले से सरकार को विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों के साथ ही कांग्रेस के ही नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
दिल्ली नगर निगम को तीन निकायों में बांटने के दिल्ली सरकार के फैसले को शहर की महापौर रजनी अब्बी ने राजनीतिक चाल बताया और प्रस्ताव का विरोध किया है। महापौर रजनी अब्बी का कहना है कि लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। हम एमसीडी को बांटने के प्रस्ताव का विरोध करते रहेंगे। हम इसकी इजाजत नहीं देंगे और यह नगर निगम को कमजोर बनाने की पूरी तरह से राजनीतिक चाल है। हमने गृहमंत्री से नगर निगम के सदस्यों से इस मसले पर विचार-विमर्श करने का आग्रह किया था। उन्होंने मुझसे कहा था कि उन्हें अभी तक इस सिलसिले में कोई औपचारिक प्रस्ताव नहीं मिला है। दिल्ली सरकार के कैबिनेट का फैसला आने के बाद उन्होंने नगर निगम के सदस्यों के साथ इस विषय पर चर्चा करने का आश्वासन दिया था। महापौर का यह भी कहना है कि नगर निगम को को बांटने का फैसला संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के बुनियादी उद्देश्य के खिलाफ है जिसमें स्थानीय एजेंसियों को मजबूत बनाने पर जोर दिया गया है। निगम को तीन हिस्सों में बांटने का दिल्ली सरकार का फैसला वित्तीय और न ही भौगोलिक लिहाज से सही है।
भाजपा के दूसरे पार्षदों का भी मानना है कि बंटवारे से नगर निमग कमजोर होगा। दफ्तर सहित बुनियादी ढांचा बढ़ाने पर अतिरिक्त रूप से 1,000 करोड़ रुपये का भार बढ़ेगा। साथ ही नए पदों के लिए अधिकारियों की नियुक्ति पर 1,000 करोड़ रुपये खर्च होंगे। यह खर्च आखिर कहां से पूरा होगा, निश्चित रूप से जनता की जेबों पर ही किसी न किसी रूप से बोझ पड़ेगा।
इसी संदर्भ में जब भाजपा दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष विजेन्द्र गुप्ता से बात की गई तो उन्होंने सीधे तौर पर कहा कि दिल्ली नगर निगम को नाकाम बताकर मुख्यमंत्री शीला दीक्षित अपनी घटिया राजनीति और सोच का परिचय दे रही हैं। ऐसा कह कर वे दिल्ली सरकार की नाकामी, तानाशाही और भ्रष्टाचार को ढक़ने की कोशिश कर रही हैं। कांग्रेसियों की फितरत है कि जब भी फंसो जनता को भ्रमित करने के लिए नये राग छेड़ दो।
गौर करने योग्य यह भी है कि कुछ ही समय पूर्व में त्रिनगर में एक जनसभा में मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कहा था कि दिल्ली नगर निगम में दिल्ली का 97 प्रतिशत हिस्सा आता है। इतने बड़े हिस्से की देखरेख एक ही नगर निगम द्वारा करना मुश्किल है इसीलिए सरकार निगम को बांटना चाहती है। इसके जवाब में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का कहना है कि मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता, हैदराबाद, अहमदाबाद, बेंगलुरू, पुणे जैसे बड़े शहरों में एक ही नगर निगम कार्यरत हैं। वहां के नगर निगमों के पास कार्य भी ज्यादा है और उनके कार्य में सरकार का कोई हस्तक्षेप भी नहीं होता है, इसीलिए वहां शिकायतें न के बराबर हैं। दिल्ली नगर निगम में जबसे भाजपा सत्ता में आई है तभी से उसे कमजोर करने, वित्तीय रूप से जर्जर बनाने, अधिकार छीनने, कई भागों में बांट कर अक्षम बनाने की कोशिश दिल्ली सरकार बराबर कर रही है। श्री गुप्ता का यह भी कहना है कि जब से दिल्ली सरकार राष्टï्रमंडल खेलों के घोटालों में आरोपित हुई है तभी से उसने निगम विभाजन की मांग करके जनता का ध्यान अन्यत्र बंटाने की साजिश रची है। श्री गुप्ता ने मुख्यमंत्री से सवाल किया कि अपने तीन विधानसभा घोषणापत्रों में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का वायदा करने वाली कांग्रेस ने आज तक दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा क्यों नहीं दिया है जबकि केन्द्र और दिल्ली में कांग्रेस की ही सरकार कायम है। यदि निगम को हड़बड़ी में राजनीतिक साजिश के तहत बांटा गया तो दिल्ली में जनसमस्याएं और बढ़ेंगी तथा जनता पर करों का बोझ कांग्रेस बढ़ायेगी।

मंगलवार, 26 जुलाई 2011

भाजपा-कांग्रेस के लिए मुश्किल हैं येदयुरप्पा

पिछले काफी दिनों से कर्णाटक और विशेषकर येदयुरप्पा सरकार चर्चा का विषय बना हुआ है। ऐसा नहीं है कि इस प्रदेश में इस सरकार ने कोई मील का पत्थर स्थापित किया है, बल्कि अवैध खनन और तत्संबंधी भ्रष्टïाचार के कारण यह सरकार केंद्र सरकार और कांग्रेस के निशाने पर है। कहा जा रहा है क केवल 14 महीनों (अप्रैल 2009 से मई 2010) तक अवैध खनन के जरिए 1827 करोड़ रुपये का घपला हुआ है। जबकि भारतीय जनता पार्टी कर्नाटक की राजनीति में इस तरह फंस गई है कि भ्रष्टाचार के मसले पर वह कांग्रेस के खिलाफ उसकी आलोचना की धार कमजोर दिखाई पड़ती है। देश की वह सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है। जाहिर है सरकार की कमियों को उजागर करने और उसे जनता के सामने जिम्मेदार पार्टी के रूप में पेश आने के लिए विवश करने की मुख्य जिम्मेदारी भी उसी पर है। वह कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा भी संभाले हुए है, लेकिन कनार्टक में उसके अपने ही मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के बड़े मामलों का सामना कर रहे हैं और उनसे जुड़े सवालों का उसके पास कोई जवाब नहीं है।
इस प्रकरण में जब कर्णाटक के मुख्यमंत्री बी.एस. येदयुरप्पा पर निशाना साधा जा रहा है तो साथ में रेड्डी बंधुओं का भी जिक्र आता है। नेपथ्य में लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज और भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी को भी कांग्रेसी निशाना बना रहे हैं तो भाजपा की ओर से पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने मोर्चा संभाला। मामला कुछ दिनों के लिए शांत जरूर दिखा, मगर हुआ नहीं। हालिया घटनाक्रम में अवैध खनन पर कर्नाटक के लोकायुक्त एन. संतोष हेगड़े की लीक हुई रिपोर्ट से एक बार फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बी. एस. येदयुरप्पा की मुश्किलें बढ़ गई हैं। लोकायुक्त ने रिपोर्ट में येदयुरप्पा और रेड्डी बंधुओं समते 4 मंत्रियों के खिलाफ जांच की सिफारिश की है। लोकायुक्त हेंगड़े ने भी स्वीकर किया है कि मेरा फोन टैप किया गया है। इस खुलासे के बाद कांग्रेस ने मुख्यमंत्री येदयुरप्पा से इस्तीफा मांगा है। भाजपा ने इस इस मुद्दे पर कुछ कहने से बचते हुए कहा कि औपचारिक रूप से इसके पेश होने के बाद वह अपनी प्रतिक्रिया देगी। यूपीए सरकार भ्रष्टाचार के मुद्दों से जनता का ध्यान बांटने के लिए इसे बेवजह तूल दे रही है। मगर भाजपा सच यह भी है कि भाजपा इस मुद्दे पर अपने गिरेबां में नहीं झांक रही। बहुत अधिक दिन नहीं हुए हैं जब महाराष्टï्र के आदर्श हाउसिंग सोसायटी घोटाला में नाम आने मात्र से मुख्यमंत्री अशोक चाह्वïाण के खिलाफ भाजपाइयों ने महाराष्टï्र से लेकर नई दिल्ली तक जमकर बावेला काटा था। जांच कमेटी बनने से पूर्व ही अशोक चाह्वïाण ने अपना इस्तीफा सौंप दिया था और भाजपा शांत हुई थी। मगर कर्णाटक प्रकरण में वह नैतिकता को मानो ताक पर रखकर जांच होने की बात कह रही है। यह केवल इसलिए कि कर्णाटक में उसकी अपनी सरकार है?
बहुत जल्द सार्वजनिक होने वाली इस रिपोर्ट में पूर्व मुख्यमंत्री और जेडी (एस) नेता एच. डी. कुमार स्वामी और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद अनिल लाड की भूमिका की भी जांच करने की पैरवी की गई है। जिन 4 मंत्रियों के इस रिपोर्ट में नाम हैं, वे हैं जी. जनार्दन रेड्डी, जी. करुणाकर रेड्डी, बी. श्रीरामुलू (तीनों बेल्लारी जिले का प्रतिनिधित्व करते हैं) और वी. सोमन्ना। पर्यटन मंत्री जी. जनार्दन रेड्डी के बारे में कहा जा रहा है कि उन्होंने बेल्लारी जिले को निजी जागीर के रूप में बदल दिया और अवैध खनन के जरिए 40-45 फीसदी तक लाभ कमाया। लोकायुक्त के रिपोर्ट में कहा गया है कि ऊपर से नीचे तक सारे अधिकारी रेड्डी के हाथों बिके हुए हैं। जो रेड्डी के हाथों बिकते नहीं है उनमें मुख्यरूप से व्यावसायिक प्रतिद्वंद्वी हैं। उन्हें भी अपनी जमीन और लाइसेंस रेड्डी को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद निश्चित रूप से येदयुरप्पा पर लगे कम से कम दो आरोपों की आगे की जांच करने की जरूरत है। येदयुरप्पा के बेटे और उनके दामाद की कंपनी की जमीन एक खनन कंपनी को मार्केट की कीमत से 20 गुना ज्यादा कीमत पर बेची गई और उस कंपनी ने 10 करोड़ रुपये मुख्यमंत्री के पारवारिक ट्रस्ट में जमा कराया। येदयुरप्पा पर दूसरा आरोप है कि रेड्डी बंधुओं पर आरोप लगने और उसके सबूत होने के बावजूद उन्होंने उनका साथ दिया। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के खिलाफ कहा गया है कि उन्होंने दो खनन कंपनियों को नियमों को ताक पर रखकर लाइसेंस दिया।
इस सबके बीच सवाल यह भी मन में कौंधता है कि आखिर भ्रष्टïाचार के आकंठ में डूबी कांग्रेस कर्णाटक पर इसकदर क्यों विशेष निगरानी करती दिख रही है? जबाव मिलता है कि असल में आज़ादी के बाद कांग्रेस को यह घमंड था कि कांग्रेस इस देश में अजेय है उसे कोई भी पार्टी कभी हरा नहीं सकती और कांग्रेस सदियो तक इस देश में राज करेगी। इसलिए कांग्रेस ने देश को लूटने के लिए एक संवैधानिक तरीका निकला। वो है मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोटा। इतिहास बताता है कि डॉ. श्यामा प्रशाद मुखर्जी इस कानून का बहुत विरोध किया लेकिन नेहरु ने इस पास कर दिया था। अब तक इस देश के सभी राज्यों में कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे सभी ने इस कोटे से जम कर लाभ लिया। अहमदाबाद में चिमन भाई पटेल इंस्टिट्यूट जिसकी जमीन अरबो रूपये की है इस कोटे के द्वारा चिमन भाई को मिली।जब नरहरी अमिन उप मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने हीरामणि स्कूल के लिए अरबो की जमीन इसी कोटे से ली। अब तक कांग्रेस को बहुत मजा आ रहा था। इसी प्रकार हर राज्य में एक मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष भी होता है जिसके तहत कोई भी राज्य का मुख्यमंत्री अपने मनमर्जी से रूपये किसी को भी दे सकता है। लोगों को स्मरण है कि जब उत्तरप्रदेश में मुलायम सिंह मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने सारे पत्रकारों और संपादको को 150 करोड़ रूपये बाटें थे इस पर काफी हंगामा हुआ था अदालत में भी चुनौती दी गयी। इस कानून को ‘विवेकाधीन’ नाम दिया गया है। यानी विवेक के अधीन। इस पर कोई भी सवाल नहीं उठा सकता।
पिछले कुछ समय से इस देश कि जनता 18 राज्यों में कांग्रेस को नकार चुकी है। अब कांग्रेस ने नेता जिनको सरकरी कोटे की जमीन पचाने की लत लग गयी है तो वे तड़प रहे हैं। येदयुरप्पा ने मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोटे की जमीन अपने बेटे को एलाट की ये नैतिक रूप से गलत हो सकता है लेकिन क़ानूनी रूप से नहीं। अब तक कांग्रेस सत्ता में थी तो ये कानून का खूब फायदा उठाया। आज भ्रष्टाचार के कारण कांग्रेस के 5 नेता और ए. राजा तथा कोनिमोजी जेल में है जबकि कांग्रेस की ही सत्ता है तो क्या कांग्रेस येदयुरप्पा पर मेहरबान है ? यदि येदयुरप्पा ने गलत किया है तो आज येदयुरप्पा जेल में क्यों नहीं है ? अगर अमित शाह जेल में है तो येदयुरप्पा क्यों नहीं ? बहुत कम को पता होगा कि कांग्रेस ने इस देश के खजाने से 300 करोड़ से उपर की रकम सिर्फ येदयुरप्पा के खिलाफ सुबूत खोजने में खर्च कर चुकी है। यह बात कैग कह रहा है। सवाल यह भी है कि क्यों इस देश में अटार्नी जनरल 3 महीनो तक बंैगलोर में रहे?
नैतिकता और अनुशासन की शेखी बघारने वाली भाजपा को अपने मुख्यमंत्री से यह कहना चाहिए कि वह इस्तीफा दें दे। बेशक, वह अभी विदेश दौरे पर हैं, मगर आते ही तत्क्षण उन्हें नैतिकता के नाम पर ही सही इस्तीफा दे देना चाहिए। होना तो यह बहुत पहले ही चाहिए था जब वहां के राज्यपाल हंसराज भारद्वाज ने मुख्यमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में मुकदमे की इजाजत भी दे दी थी और उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज भी हो गया था। उस समय अदालत से मुख्यमंत्री को भले ही राहत मिल गई हो, मगर इस बार फिर वही मामला गर्म हो चुका है। एक मुख्यमंत्री के रूप में अदालत में अपनी जमानत की गुजारिश करना किसी के लिए भी ठीक नहीं माना जाता है। यही कारण है कि जब उमा भारती को कर्णाटक के की एक कोर्ट में जमानत के लिए हाजिर होना पड़ा था, तो उन्होंने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के पद से पहले इस्तीफा दे दिया था। लालू यादव ने भी बिहार के मुख्यमंत्री के पद से उस समय इस्तीफा दे दिया था, जब उन्हें चारा घोटाले के एक मुकदमे में अदालत में जमानत के लिए हाजिर होना था।
भाजपा के पास अरुण जेटली जैसे नेता भी हैं, जो कानूनी दांवपेच जानते हैं और अदालत के सामने जमानत के लिए जाने के दिन को ज्यादा से ज्यादा दूर कैसे रखा जाए, इसकी कोई न कोई तरकीब निकाल ही लेेंगे। पर यदि येदयुरप्पा के खिलाफ भाजपा का मोह बना रहा, तो केन्द्र सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुद्दे पर चल रहा उसका अभियान अपनी धार खो देगा। सच कहा जाए, तो भाजपा की धार पहले से ही कमजोर हो चुकी है। चूंकि भ्रष्टाचार के मसले पर भाजपा ही नहीं, बल्कि अन्य विपक्षी पार्टियां भी अभियान चला रही है, इसलिए कांग्रेस का काम कठिन हो रहा है। यदि यह भाजपा और कांग्रेस का ही मामला होता, तो फिर केन्द्र सरकार के सामने कोई समस्या ही नहीं थी।
जाहिर है येदयुरप्पा भाजपा के गले की हड्डी बन गए हैं। पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री के पद से हटा नहीं पा रही है और उन्हें मुख्यमंत्री के पद पर बनाए रखकर केन्द्र सरकार के खिलाफ अपने अभियान के पैनापन को कम कर रही है। सवाल उठता है कि भाजपा के यदुरप्पा मोह के पीछे का राज क्या है? सच कहा जाए, तो इसे मोह कहना उचित नहीं होगा, बल्कि यह उसकी विवशता भी है। येदयुरप्पा खुद मुख्यमंत्री का पद छोडऩे के लिए तैयार नहीं हैं। पार्टी राज्य में सत्ता में उनके कारण ही आई है। उनके कारण ही उसने विधानसभा में किसी तरह बहुमत का जुगाड़ किया। जब पार्टी के विधायकों ने बगावत की और कुछ निर्दलीय विधायकों ने समर्थन वापस लिया, तो उस समय भी पार्टी की सरकार यदुरप्पा के कारण ही बची। वहां राजनीति पर धनबल का जबर्दस्त असर है। कुछ लोग तो कहते हैं कि कर्णाटक की राजनीति धनबल से जितना प्रभावित है, उतना किसी और भी राज्य की राजनीति नहीं। जाहिर है यदुरप्पा ने अपनी सरकार के गठन में धन का भी अच्छा निवेश कर रखा होगा और भ्रष्टाचार के उनके मामले धन की उगाही से ही जुड़े हुए हैं। इसलिए वे इन मामलों के बावजूद मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा नहीं देना चाहते और भाजपा उनके महत्व का देखते हुए उन्हें उनकी इच्छा के खिलाफ उनके पद से हटाना नहीं चाहती।

करोड़ों का है पेंटिंग बाज़ार


पेंटिंग की ऊंची कीमतें कला बाजार के ऐसे पक्ष से हमें रू-ब-रू कराती हैं, जिसे लेकर भारतीय समाज में एक अनभिज्ञता की स्थिति व्याप्त है। भारतीय कलाकारों का एक बड़ा वर्ग है, जिसकी अंतरराष्ट्रीय कला बाज़ार में धाक है और जिनकी बनाई पेंटिंग्स करोड़ों रुपए में बिकती है।
लोगों की आम मानसिकता है कि बच्चों को पढ़ाई-लिखाई पर ही अधिक ध्यान दिया जाए जिससे उन्हीं अच्छी नौकरी मिल सके और वह सम्मानजनक ढंग से जीवनयापन कर सकें। कोई भी माता-पिता अपने बच्चों को जल्दी कला के क्षेत्र में विशेषकर पेंटिंग्स आदि के फील्ड में भेजना चाहता है। मगर, जब से पेंटिग्स की कीमतें करोड़ों रुपए को पार कर रही हैं और इसके अंतर्राष्टï्रीय बाजार की धमक लोगों तक पहुंची है, सोच में परिवर्तन आया है। एक अनुमान के मुताबिक़, भारत का कला बाज़ार लगभग दो हज़ार करोड़ रुपये का है। अब तो यह शेयर बाजार से भी संबद्घ होता दिखता है। आर्थिक मंदी के दौरान भी जब इस क्षेत्र को कोई नुकसान नहीं हुआ बल्कि पेंटिग्स ऊंची कीमतों पर बिकी तो शेयर बाजार इस ओर निहार रहा था। क्योंकि मंदी के बावजूद राष्टï्रीय और अंतरराष्ट्रीय कला बाज़ार में मशहूर पेंटरों की कलाकृतियों को भारी-भरकम मूल्य पर खऱीदने वाले रईस निवेशकों की कोई कमी नहीं देखी गई। बाजार के जानकारों का तर्क है कि शेयर बाज़ार से कमाए गए पैसे लोग कला बाज़ार में निवेश करते हैं जो कि एक बेहद सुरक्षित विकल्प माना जाता हैे।
एम.एफ. हुसैन की तीन पेंटिंगों ने हाल में लंदन के बोनहाम नीलामी में 2.32 करोड़ रुपए की रकम के साथ सर्वाधिक राशि हासिल की। उनका शीर्षक रहित एक तेल चित्र 1.23 करोड़ रुपए में बिका जिसमें उन्होंने अपनी जानी पहचानी विषय वस्तु घोड़े और महिला को आधार बनाया। यूं तो मकबूल फिदा हुसैन की पेंटिंग्स के कद्रदान तो सदा रहे ही हैं और उनकी पेंटिंग्स करोड़ों में बिकी हैं, मगर उनके अलावे कई नामचीन भारतीय पेंटर हैं, जिनकी कलाकृतियां हमेशा से करोड़ों रुपये में बिकती हैं और वे सुखिऱ्यां बटोरती हैं। ऐसा नहीं है कि केवल एमएफ हुसैन, रजा, तैयब मेहता जैसे महान चित्रकारों को ही करोड़ों रुपये के खऱीददार मिलते हैं। इन समकालीन चित्रकारों के अलावा कई आधुनिक चित्रकार भी हैं, जिनकी कलाकृतियां करोड़ों रुपये में बिकती हैं, लेकिन इनके बारे में कम लिखा जाता है और इनका काम चर्चित नहीं हो पाता है।
आंकड़े बताते हैं कि 2007 में सॉदबी ने रॉकिब शॉ की पेंटिंग गॉर्डन ऑफ अर्थली डिलाइट्स को इक्कीस करोड़ में बेचकर इतिहास रच दिया था। अनीश कपूर की एक पेंटिंग को अ_ाइस लाख डॉलर, टी.वी. संतोष की कलाकृति ‘टेस्ट टू’ को डेढ़ लाख डॉलर और रॉकिब शॉ की पेंटिंग को इक्यानवे हज़ार डॉलर मिले थे, जो कि नीलामीकर्ता की उम्मीदों से कहीं ज़्यादा थे। चिंतन उपाध्याय की पेंटिंग को तिहत्तर हज़ार डॉलर, रियास कोमू की पेंटिंग सिस्टमेटिक सिटीजऩ फोर्टीन को उनासी हज़ार डॉलर और बोस कृष्णामचारी की पेंटिंग को चालीस हज़ार डॉलर मिले थे। इसी सूची में अपर्णा कौर, युसूफ अरक्कमल, अतुल डोडिया और सुरेंद्र नायर को भी स्थान दिया जा सकता है कि जिनकी पेंटिंग्स विदेशों के अलावा भारत में भी ख़ासी कमाई करती हैं।
कुछ समय पहले लंदन में नीलामी करने वाली कंपनी सॉदबी ने जोगेन चौधरी की कलाकृति ‘डे ड्रीमिंग’ को तीन करोड़ रुपये में बेचा। जोगेन चौधरी की यह पेंटिंग इंक और पेस्टल वर्क का बेहतरीन काम था। तो अकबर पद्मसी की एक पेंटिंग एक करोड़ सत्तासी लाख रुपये में बिकी। एफ.एम. सूजा की ‘ओल्ड सिटी लैंडस्केप’ पौने दो करोड़ रुपये से ज़्यादा में नीलाम हुई। इसके अतिरिक्त अलावा सुबोध गुप्ता और वी.एम. गायतोंडे की पेंटिंग्स को भी एक करोड़ रुपये से ज़्यादा में खऱीदने वाले ग्राहक मिले। इस नीलामी से पहले भी सुबोध गुप्ता की पेंटिंग ‘सात समंदर पार सेवन’ के लिए लगभग पौने चार करोड़ रुपये की बोली लगी थी। सुबोध ने अपनी इस कलाकृति में मौजूदा समाज में इंसान के अहसास को अभिव्यक्त किया था। सुबोध के अलावा अनीश कपूर, टी.वी. संतोष, चिंतन उपाध्याय, रियास कोमू, रॉकिब शॉ और बोस कृष्णामचारी की कलाकृतियों को भी उम्मीद से ज़्यादा क़ीमत मिली थी।
सच तो यही है कि आधुनिक समय में कला के कद्रदान बढ़ रहे हैं और साथ ही बढ़ रहा है इसका कारोबार। इसके बावजूद, इस क्षेत्र में ऊपरी पायदानों पर कुछ गिने-चुने आर्टिस्ट ही काबिज हैं। भारतीय कलाकारों को ध्यान में रखते हुए अगर बीते साल और इस साल अब तक के कला के कारोबार पर निगाह डालें, तो पता चलता है कि चार भारतीय पेंटर इस फेहरिस्त के टॉप नामों में शामिल हैं। इनकी पेंटिंग्स लाखों डॉलर में बिक चुकी हैं। कला के कारोबार में बेशक सबसे अहम उपलब्धि रही तैयब मेहता की महिषासुर। यह पेंटिंग पिछले साल सितंबर में क्रिस्टीज में 1.584 मिलियन डॉलर (करीब 7 करोड़ 70 लाख रुपये) में बिकी। आज तक की यह सबसे महंगी पेंटिंग है। सॉदबीज में 1.472 मिलियन डॉलर (करीब 6.5 करोड़ रुपये) में बिकी एस. एच. रजा की तपोवन इस फेहरिस्त में दूसरे नंबर पर है। इस साल सितंबर में सॉदबीज में न्यूयॉर्क में एफ. एन. सूजा की पेंटिंग मैन विद मॉन्सट्रेंस के लिए 1.36 मिलियन डॉलर (करीब 6 करोड़ रुपये) मिले। सितंबर में ही सॉदबीज द्वारा लगाई गई बोली में वी. एस. गायतोंडे की एक ऑयल पेंटिंग 1.108 मिलियन डॉलर (करीब 50 करोड़ रुपये) में बिकी। एक बार फिर सॉदबीज में तैयब मेहता की एक अनाम कृति ने 1.248 मिलियन डॉलर बटोरे। सितंबर में ही क्रिस्टीज में लगाई गई बोली में भी मेहता की पेंटिंग ने बाजी मारी। सांड के सिर वाली यह अनाम पेंटिंग 1.136 मिलियन डॉलर में बिकी। इन आंकड़ों से पता चलता है कि यूं तो इस साल कई नामी कलाकार अपनी कमाई का रेकॉर्ड सुधार रहे हैं लेकिन एफ. एन. सूजा इसमें अव्वल हैं। इस मरहूम कलाकार की कई पेंटिंग्स लाखों डॉलर में बिकी हैं। क्रिस्टीज में सूजा की मैन एंड वूमन 1.36 मिलियन डॉलर में बिकी। इसके अलावा उनकी न्यासा नेग्रेस विद फ्लावर्स एंड थॉर्न्स 8,36,000 डॉलर में और अनाम स्पेनिश लैंडस्केप 6,88,000 डॉलर में बिकी। सूजा की दो और अनाम पेंटिंग्स के लिए 6,88,000 और 6,32,000 डॉलर की बोली लगी। इस साल कला के क्षेत्र में अच्छी कमाई करने वालों में रामकुमार और एम. एफ. हुसैन का नाम भी शामिल है। रामकुमार की पेंटिंग 4,52,800 डॉलर (करीब दो करोड़) में बिकी, जबकि हुसैन की 5,76,000 डॉलर (करीब 2.5 करोड़ रुपये) में।


कला बाज़ार में इस तेजी के लिए जानकार कलाप्रेमी और शौकीनों की जमकर खऱीददारी को जि़म्मेदार ठहरा रहे हैं, लेकिन साथ ही वे चेतावनी के लहज़े में नब्बे के दशक में कला बाज़ार की तेजी और फिर भारी गिरावट की याद दिलाते हैं। उस समय जापानी खरीददारों की सक्रियता ने कला बाज़ार को काफ़ी ऊपर उठा दिया था, जो कि कृत्रिम था और थोड़े ही दिनों में वह मुंह के बल आ गिरा। लेकिन कला का जो बाज़ार है, उसमें ग्राहकों का मनोविज्ञान एक अहम भूमिका अदा करता है। जानकार यह भी कहते हैं कि यदि देश में राजनैतिक हालात बेहतर रहते हैं तो रईसों का विश्वास मज़बूत रहता है और वे ब़ेफिक्र होकर निवेश करते हैं। कला बाजार के जानकारों की मानें तो कला में निवेश करने वालों की तादाद बढ़ रही है और आने वाले समय में इस बाज़ार में बढ़ोतरी और स्थिरता अधिक देखने को मिल सकती है। घरेलू कला बाज़ार और सोना दो निवेश ऐसे हैं, जिनमें निवेशकों का विश्वास लगातार बना हुआ है। यदि यूरोप की कला बाज़ार में हाल की नीलामियों और प्रदर्शनियों का विश्लेषण किया जाए तो यह निष्कर्ष निकलता है कि वहां भी कला को लेकर खऱीददारों और निवेशकों का विश्वास मज़बूत हुआ है।

रविवार, 3 अप्रैल 2011

सिरमौर इंडिया




क्रिकेट अब महज खेल नहीं रह गया। यह धर्म बन चुक है भारत में और एशिया ·ी ता·त ·े रूप में पूरे विश्व ·ो दिख रहा है। दो एशियाई देशों ·े बीच हुए फाईनल मैच में टीम इंडिया ने जिस प्रकार का प्रदर्शन ·िया, वह हर भारतीय ·े लिए गर्व का क्षण लेकर आया। गर्व इतना ·ि देश का हर आम-ओ-खास झूम उठा। देश में दीवाली मनाई जाने लगी। ·िसी तीज-त्योहार ·े सरीखें एसएमएस और काल ·े जरिए बधाई का तांता लग गया। क्रिकेट इतिहास में आखिरकर भारत ने वह इतिहास फिर से रच दिया, जिसका इंतजार देश ·ो 28 साल से था। धोनी ·े धुरंधरों ने मुंबई ·े वानखेड़े स्टेडियम में श्रीलंका ·ो हराकर आईसीसी विश्व कप, 2011 ·ी ट्रॉफी अपने नाम कर ली। आंसू थे ·ि थमने का नाम नहीं ले रहे थे। हर हिंदुस्तानी ·े आँखों में आंसू छल· पड़े। आखिर, खुशी मिली इतनी...
सच तो यही है ·ि कuल ·प्तान महेंद्र सिंह धोनी ·ी उतनी ही ·ूल बैटिंग और गौतम गंभीर ·ी यादगार पारी ·ी बदौलत भारत ने 28 साल पुराना इतिहास दोहराते हुए वल्र्ड कप जीत लिया। इस जीत ·े साथ ही भारत ने श्रीलंका ·े हाथों 1996 में सेमीफाइनल में मिली हार का भी बदला ले लिया। इस तरह भारत दो बार वन डे का वल्र्ड चैंपियन और एक बार टी - ट्वेंटी चैंपियन बनने वाला पहला देश बन गया। तभी तो 1983 वल्र्ड कप विजेता भारतीय क्रिकेट टीम कप्तान कपिल देव ने कहा, ‘जीत सेक्रिकेट ही नहीं बल्·का पूरे खेल जगत का परिदृश्य बदलेगा।’
सच में इस बार क्रिकेट वल्र्ड कप ने पूरे विश्व क्रिकेट ·े परिदृश्य ·ो ही बदल कर रख दिया। क्रिकेट ·ी शुरूआत इंग्लैण्ड में हुई और शुरूआती दिनों में क्रिकेट पर दबदबा इंग्लैण्ड, ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज का रहा। पहली दफा भारत ही था जिसने वेस्टइंडीज ·ी बादशाहत ·ो तोड़ा था। उस·े बाद तो एशियाई देश ·िसी भी दूसरे देश ·ो पट·नी देने का माद्दा रखने लगे। यह महज संयोग नहीं काहा जा सकाता है ·ि आईसीसी क्रिकेट वल्र्ड कप 2011 ·े सेमीफाइनल में पहुंचने वाली चार में से तीन टीमें एशियाई रही। वर्तमान का सच यही है ·ि भारत, श्रीलंका, पा·िस्तान और बांग्लादेश मिल·र एशियाई क्रिकेट ·ी तस्वीर बनाते हैं। इसमें बांग्लादेश भले नया-नवेला हो, ले·िन उसने अपनी क्रिकेट ·ी चम· दुनिया भर में बिखेरी है। भारत, श्रीलंका और पा·िस्तान ·े पास तो वल्र्ड चैंपियन का तमगा पहले से भी है। भारत ने महेंद्र सिंह धोनी ·ी अगुवाई वाली टीम ·े बूते इस तमगे ·ो दुबारा हासिल ·िया है।

मंगलवार, 29 मार्च 2011

उफ, मैं स्वार्थी हो गया...

विवाह के कुछ बरस बीत जाने पर पत्नी का उतना ख्याल ही कहाँ रह पाता है। जिम्मेदारियों को निभाते-निभाते आपसी प्रेम कहां नेपथ्य में चला जाता है, पता ही नहीं चलता। आपसी संबंधों में नई गरमाहट लाने के लिए मैंने छुट्टïी ली था। सरकारी नौकरी में इतनी तो सहूलियत है कि एलटीसी मिलती है। मतलब सरकारी खर्च में परिवार के साथ मौज-मस्ती करने का मौका। भला कैसे छोड़ सकता था।
यूं भी एक जगह रहते-रहते मन ऊब जाता है। नए जगह, नए लोग, मन को लुभाते हैं। और, सबसे बढ़कर पत्नी का साथ। पत्नी की इच्छा थी समुद्र देखें और मेरे मन में लालसा की सोमनाथ और द्वारकाधीश के दरबार में चलूं। सो, नई दिल्ली से अहमदाबाद के लिए राजधानी एक्सप्रेस में सवार हुआ। स्टेशन से खुलते ही चंद मिनटो में ट्रेन अपनी रफ्तार को हासिल कर चुकी थी। जैसे-जैसे ट्रेन आगे भागता, मैं भी कभी अतीत तो कभी कल्पनाओं के आकाश में गोते लगाता। कितने सुहाने दिन थे, जब मधु मेरे जीवन में आई थी। हर पल का ख्याल रखती। मुझे क्या अच्छा लगता है और कौन-सी चीज नापसंद है, मुझसे अधिक उसे पता थी। मगर अब तो वह मुझसे अधिक शौर्य का ख्याल रखती। मुझे तो औपचारिकतावश ही...।
चंद मिनट ही बीते होंगे कि ट्रेन में चाय सर्व होने लगा। चाय की चुस्की के संग मैंने मधु से बात करनी शुरू की। मगर, उसकी दिलचस्पी मुझमें नहीं दिखी। उसकी निगाहें तो जैसे शौर्य को ही तलाश रही थी। अचानक वह सीट से उठी और टॉयलेट की ओर गई। कुछ पल बीतने के बाद मधु आई और उसके पीछे शौर्य। मुझे अंदर से खीझ हुई। शायद, मधु को इसका आभास हो गया। वह धीरे से बोली, 'क्यों परेशान होते हैं? कुछ दिनों में मैं धीरे-धीरे शौर्य से अलग हो जाऊंगी।Ó मुझे उन दोनों के प्रेम की जानकारी यूं तो सात वर्ष पहले ही हो गया था। लेकिन, शादी के नौ वर्ष बाद भी मैं मधु को अपने से अलग नहीं देखना चाहता था। शायद यही पति की कमजोरी होती है कि उसकी पत्नी किसी दूसरे को उससे अधिक तवज्जो देने लगती है तो पति खुन्नस खाने लगता है। मैं इसी गुन-धुन में था।
तेज गति से चल रही टे्रन की खिड़की से जब बाहर देखता तो मन बहल जाता। मगर, दूसरे ही पल सामने वाली सीट पर बैठे शौर्य को देखता, मन गुस्सा से भर जाता। कर भी तो कुछ नहीं सकता था। आखिर, मधु शौर्य से बेइंतहा मुहब्बत जो करने लगी थी। पत्नी के साथ सात फेरों का वचन जो लिया था। पत्नी को हरसंभव खुश रखने का कोशिश करता। लेकिन यह क्या? दूसरे की खुशी में मेरी अपनी ईच्छा खत्म होने को थी। भला कोई पुरुष यह कैसे बर्दाश्त कर सकता है कि उसकी पत्नी उसकी अनदेखी कर किसी और को... तभी पेंट्रीकार वाले खाने का ऑर्डर लेने आए। मैंने नानवेज का ऑर्डर दिया तो पत्नी ने वेज थाली का। अरे, यह क्या? मधु तो इससे पहले जब भी मेरे साथ ट्रेन में सफर करती, वह नानवेज ही खाती थी। मगर, आज उसे क्या हो गया है?
तपाक से मैंने पूछा, 'आज वेज थाली क्यों?Ó
'शौर्य नानवेज नहीं खाना चाहता...उसने ट्रेन में चढ़ते ही मुझसे बोल दिया था...तुम खा लो...Ó
मैंने तुरंत वेटर को आवाज लगाई और अपना मेन्यू चेंज कराया। नॉनवेज की जगह, वेज थाली। जीवनसंगिनी का साथ जो निभाना था।
खाना खाया। अब, सोने का वक्त था। मेरा साइड लोअर था। मधु का सामने में नीचे का और शौर्य मिडिल बर्थ पर था। ट्रेन किसी स्टेशन पर आकर लगी थी। पता चला कि पिंक सिटी जयपुर है। टे्रन ने सीटी दी और कुछ मिनट में अपने गंतव्य की ओर पूरे रफ्तार में बढ़ चली। हौले-हौले ट्रेन के हिचकोले में चैन की नींद कहाँ आ पाती है। कमपार्टमेंट में दूसरे लोग भी थे। लेकिन सबसे अधिक सुंंदर मधु ही थी। कोई उससे बात नहीं कर रहा था। मेरे अवाले केवल शौर्य ही था तो उससे गप्प कर रह था। अमूमन लोग सुंदर स्त्री से जल्दी बात नहीं करने में ही अपनी बुद्घिमानी समझते हैं। आखिर, सुंदरी क्या सोचेगी? सामने वाले के बारे में क्या ख्यालात होंगे उसके...आदि-आदि। मैं तो उलझन में था...आखिर लोग चुप्प हैं तो हैं, मधु क्यों औरों के बातचीत में दिलचस्पी नहीं ले रही है? कॉलेज के दिनों में तो वह हर वाद-विवाद प्रतियोगिता में हिस्सा लेती और अव्वल आती। पुरुष और महिला में हर स्तर पर समानता की वकालत करती। लेकिन यह क्या? आज तो ट्रेन के इस कमपार्टमेंट में उसकी हिस्सेदारी महज 12.5 फीसदी थी। आठ बर्थ में वह अकेली नारी जाति का प्रतिनिधित्व कर रही थी।
यही सब सोचते-सोचते कब नींद लग गई, पता नहीं चला। कुछ देर बाद कानों में मधु के हँसने की आवाज सुनाई पड़ी। नींद खुल गई। कलाई पर नजर दिया तो पता चला कि सुबह के पाँच बजे हैं। इतनी जल्दी क्यों उठ गई मधु? घर में तो कभी नहीं जल्दी उठती...अरे यह क्या? उसके गोद में शौर्य अपना सिर रखकर आराम फरमा रहा है। दोनों आपस में तल्लीन है़। दूसरे की सुध-बुध ही नहीं। अपने में अलमस्त। द्वेष की भावना से मेरा मन भर गया। इधर के वर्षों में तो मधु ने मुझे इस प्रकार अपने साथ नहीं रखा। हाँ, शादी के शुरूआती दिनों में जरूर इस प्रकार का सान्निध्य मिला था। लेकिन, जब से शौर्य मधु के जीवन में आया है...
मैं तो गुस्से में आग बबूला हुआ जा रहा था। मगर कर भी क्या सकता था? मधु को नाराज नहीं कर सकता था। तभी पेंट्रीकार वाले चाय-चाय की आवाज लगाने लगा। झट से एक चाय के लिए। 'अरे, कैसी चाय बनाते हो?Ó
'क्या हुआ, सरÓ
'चाय में चीनी तक नहीं है?Ó
'नहीं सर, चीनी तो है। हो सकता है कम हो। मैं अभी और लेकर आता हूं।Ó
चायवाला तो चला गया। लेकिन, मेरे अचानक क्रोध को जैसे मधु जान गई थी। वह सरक कर मेरे पास आई।
'क्या हुआ तुम्हें?Ó
'तुम जाओ यहां से। जाकर शौर्य का ख्याल रखोÓ
'...ओह, तो जनाब को शौर्य से दिक्कत हो रही है। अरे, मैं उसका ख्याल नहीं रखूंगी तो कौन रखेगा।Ó
मुस्की के संग मधु अपने सीट पर चली गई। बैग से एक टिफिन निकाला। 'कुछ नाश्ता कर लो....Ó
'नहीं मुझे भूख नहीं।Ó
'मैं घर से बनाकर लाई हूं।Ó
'नहीं खाना मुझे...।Ó
मधु, टिफिन को फिर से बैग में रखने लगी। तो शौर्य ने रोक लिया।
आँख मिलते हुए कहा, 'माँ, मुझे खाना है।Ó
अगले ही पल जैसे, मुझे मधु के बात का एहसास हो गया। सच ही तो कह रही है कि वह ख्याल नहीं रखेगी तो कौन रखेगा। मैं तो नाहक ही अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर द्वेष की भावना मन में पाल रहा था।

बुधवार, 23 मार्च 2011

99 दीये के संग बिहार उत्सव 2011 दिल्ली में


बिहार के 99वां स्थापना दिवस पर दिल्ली में आयोजित सात दिवसीय बिहार उत्सव का उद्घाटन 22 मार्च 2011 को सांय 6 बजे बिहार के महामहिम राज्यपाल श्री देवानंद कुंवर ने दीप प्रज्जवलित कर किया। 99वां बिहार स्थापना दिवस समारोह के रुप में आयोजित बिहार उत्सव 2011 को यादगार बनाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों से जुडे़ गणमान्य व्यक्तियों द्वारा दिल्ली के कंस्टीट्यूषन क्लब के प्रंागण में बिहार उत्सव 2011 मंडप के मुख्य द्वार पर 99 दीये जलाकर उत्सव का षुभारंभ किया गया। 99 दीये जलाने वालों में बिहार के एवं बिहार से जुड़े कई सांसद एवं नेतागण भी मौजूद थे, जिनमें श्री षरद यादव, श्री अर्जुन राय, श्री महाबली सिंह, श्री वैधनाथ मेहतो, श्री राजीव प्रताप रुडी, श्री उदय सिंह, श्री राधा मोहन सिंह, श्री एन.के. सिंह, श्री महाबल मिश्रा, श्री असरारुल हक, श्रीमती पूनम आजाद आदि प्रमुख थे। बिहार उत्सव मंडप के मुख्य द्वार पर विषेश रुप से तैयार किए गए जलपात्र में तैरते प्रज्ज्वलित 99 दीये मनोरम एवं विहगम दृष्य प्रस्तुत कर रहा था। इस मौके पर महामहिम राज्यपाल ने सभी बिहारवासियो को 99वें बिहार स्थापना दिवस की षुभकामनाएं दी। उद्धाटन के बाद माननीय राज्यपाल महोदय एवं उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों ने पूर्वी लोक संगीत का लुत्फ भी उठाया। विरेन्द्र ओझा ‘विमल’, श्रीमती अनीता सिंह एवं दल ने भोजपुरी लोकसंगीत से उपस्थित लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस अवसर पर बिहार सरकार के उधोग विभाग के प्रधान सचिव श्री सी.के. मिश्रा, बिहार के स्थानिक आयुक्त श्री अलोक वर्धन चतुर्वेदी एवं बिहार आधौगिक क्षेत्र विकास प्राधिकार की प्रबंध निदेषक श्रीमती अंषुली आर्या भी उपस्थित थे।

दिल्ली में सात दिनों तक चलने वाले बिहार उत्सव में इस बार गौरवषाली प्रग्रतिषील बिहार को हम हमारा बिहार के नाम से दिखाया जा रहा है। बिहार सरकार द्वारा दिल्ली के कंस्टीट्यूषन क्लब में 22 से 28 मार्च 2011 तक गौरवषाली व प्रगतिषील बिहार की प्रदर्षनी हस्तकरधा एवं हस्तषिल्प उत्कृश्ट सामानों की बिक्री एवं प्रदर्षनी का आयोजन किया गया है तथा पीएसके लक्ष्मीनगर में बिहार के कला एवं संस्कृति की प्रदर्षनी व भोजपुरी फिल्म महोत्सव का आयोजन 23 से 25 मार्च तक किया जा रहा है।

मेले में बिहार के ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत के साथ-साथ वर्त्तमान में हो रहे विकास को भी आकर्षक ढंग से प्रस्तुतीकरण किया गया है। कंस्टीट्यूषन क्लब के लॉन मे हस्तकरधा एवं हस्तषिल्प के लगभग 25 स्टॉल लगाया गया है। स्टॉलों के माध्यम से मषहूर भागलपुरी सिल्क, मिथिला पेंटिंग, सिकी से निर्मित सामग्री, भभुआ के पत्थर की आकर्षक हाथी, मेहंदी, मोतीहारी का आकर्षक सीप से निर्मित आभूषण, टेरा कोटा से निर्मित वस्तुएॅं, जूट निर्मित वस्तुएं यथा जूट ज्वेलरी, टिकुली आर्ट के साथ-साथ नालंदा, बिहारशरीफ का निपुरा सिल्क एवं हस्तकरघा से निर्मित बेड-सीट, चादर विषेष रूप से मेले के आकर्षण का केन्द्र रहेंगे। साथ ही बिहारी व्यंजनों के स्टॉल के साथ-साथ प्रतिदिन संध्या में सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया जा रहा है। कंस्टीट्यूषन क्लब में 26 मार्च को एक सेमिनार का आयोजन किया जाएगा।
पूर्वा सांस्कृतिक केन्द्र पीएसके लक्ष्मी नगर में दिनांक 23-25 मार्च में बिहार के सांस्कृतिक धरोहर, पर्व त्यौहार, पर्यटन स्थलों की एक आकर्शक झांकी प्रस्तुत की जा रही है साथ ही त्रिदवसीय भोजपुरी फिल्म महोत्सव का आयोजन भी किया गया है, जिसमें भोजपुरी सिनेमा की चर्चित फिल्म बलम परदेषिया, धरती मैया, बिदाई, गंगा जैसन पीरितिया हमार, कब अईबु अंगनवा हमार दिखाई जायेगी। संध्या मे सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया जायेगा। बिहार उत्सव 2011 के समापन समारोह का आयोजन दिनांक 28 मार्च को दिल्ली के सिरी फोर्ट ऑडिटोरियम में रंगारंग कार्यक्रम के साथ किया जाएगा, जिसमें मषहूर गायक मनोज तिवारी एवं गायिका मालनी अवस्थी जहां अपनी गायिकी का जलवा बिखेरेगे वहीं मषहूर कथक नृत्यांगना षिखा खरे अपनी मनमोहक नृत्य प्रस्तुत करेंगी।

शनिवार, 12 मार्च 2011

सोनिया गांधी की इज्जत पर कीचड़ उछालने का प्रयास

भूपेन्द्र सिंह रावत



आज समूचा राष्ट्र भ्रष्टाचार से त्रस्त है। यही वजह है कि महान क्रांतिकारी शहीद चंद्रशेखर आजाद के बलिदान दिवस पर भारत स्वाभिमान ट्रस्ट, पतंजलि योग समिति के आवाहन पर भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ रामलीला मैदान में आयोजित रैली में हजारों लोगों ने भागीदारी निभाई। इस रैली में सामाजिक, राजनीतिक और आध्यामित जगत से जुड़े जाने माने लोगों के साथ शहीदों के वंशज भी शामिल हुए।
इस रैली के आयोजन की तैयारी से लेकर और रैली वाले दिन तक एक बात पर भारत स्वाभिमान ट्रस्ट और अन्य सामाजिक संगठनों में सहमति थी कि हमारी लड़ाई किसी व्यक्ति या संगठन के बिरूद्ध न होकर एक इस देश को उस तंत्र से बचाने की है जो हमारे देश को भ्रष्ट तरीके अपना कर अंदर से उस तरह खोखला कर रहा है जैसे दीमक लकड़ी को करते हैं। दूसरा देश के भ्रष्ट लोगों ने जो काली कमाई स्वीस बैंक में जमा कर रखी है उसे वापस भारत लाने के लिए संघर्ष। यह सहमति संगठन स्तर पर ही नहीं रैली में शामिल हुए तमाम किसान और मजदूरों की भी थी।
रैली की शरूआत में बात रखने वालों में शामिल देश की प्रथम महिला आईपीएस रह चुकी किरण बेदी व मैगसेेसे पुरूष्कार से सम्मानित अर्विन्द केजरीवाल दोनों ने जोर देकर कहा भी कि इस देश में भ्रष्टाचारियों के खिलाफ बने कमजोर कानून के कारण ही वे घबराते नहीं हैं और यही कारण है कि भ्रष्टाचार रूकने का नाम ही नहीं ले रहा है। इसका एक मात्र उपाय है कि लोकपाल बिल में ऐसा प्रावधान हो कि भ्रष्टाचारियों के बिरूद्ध निश्चित समय सीमा के अन्दर जांच पूरी कर उन्हें सजा देने नौकरी से निकालने व भ्रष्ट तरीके से अर्जित धन को वापस लेने का प्रवाधान भी होना चाहिए। इस बात से रैली में आए तमाम लोग सहमत थे। इनके संबोधन के बाद आयकर विभाग के पूर्व आयुक्त विश्वबंधु गुप्ता ने संबोधन करते हुए यह दावा किया कि वे आयकर आयुक्त के ओहदे पर रहने के कारण जो कुछ भी बात रखने जा रहे हैं, उन सबके सबूत उनके पास मौजूद हैं।
अपनी बात की शुरूआत करते हुए विश्वबंधु गुप्ता ने दावा किया कि उन्हांेने ही बाबा राम देव को कालेधन की जानकारी दी है। और कहा कि आज की रैली में बाबा राम देव के आग्रह पर ही शामिल हुआ हूं। अपनी बात के क्रम में पूर्व आयकर आयुक्त ने कहा कि एक मामले की जांच के दौरान एक ऐसा कंप्यूटर हमारे विभाग के हाथ लगा जिस पर विदेश में धन जमा करने वाले पंद्रह लोगों के नाम तो थे, किंतु उन पंद्रह नामों में से मात्र तीन नाम ही पढे़ जा सकते थे।
पूर्व आयकर आयुक्त ने दावा किया कि जो नाम पढ़े जा सकते थे उन नामों में विलास राव देश मुख का है जो कि वर्तमान समय में यूपीए सरकार में केन्द्रिय ग्रामीण विकास मंत्री हैं और अहमद पटेल का था जो कि सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव भी हैं। इसके अलावा उन्होंने एक नाम को और उजागर किया वह नाम था हसन अली का, जिसके विषय मंे उन्होंने कहा कि वह दाऊद कंपनी के करीबी लोगों में से है।
अपनी बात के क्रम को आगे बढाते हुए विश्वबंधु गुप्ता ने कहा कि विदेश में जमा भारतीय काला धन के संदर्भ में वे आयकर आयुक्त के ओहदे पर रहते हुए वर्ष 2005 में तत्कालीन केन्द्रिय वित्त मंत्री पी. चितंबरम से मिले और उसको राय दी कि वह इस मामले में उस देश को पत्र लिखें जिस देश में भारतीयों ने काला धन जमा कर रखा हैै। उनहोंने दावा किया कि चितंबरम ने उनकी राय को नहीं स्वीकारा। उन्होंने कहा कि चितंबरम के व्यवहार से ऐसा लग रहा था जैसे कि वे एक हिजड़े से बात कर रहे हैं। गुप्ता बीच-बीच में यह दावा भी कर रहे थे कि वे जो कुछ भी बोल रहे हैं उसके उनके पास सबूत भी मौजूद हैं।
भ्रष्टाचार और काले धन के विरूद्ध आयोजित रैली में केन्द्रिय मंत्री पी.चितंबरम को पूर्व आयकर आयुक्त का दावे के साथ यह कहना कि वह एक हिजड़ा है, उन्होंने देश और दुनिया में एक नई बहस को जन्म दे दिया कि आखिर उनको कैसे पता लगा कि पी.चितंबरम पुरूष न होकर एक हिजड़ा हैं ?
गुप्ता के कथन के मुताबिक विलास राव देश मुख और अहमद पटेल का स्विस बैंक में काला धन जमा किया हुआ है। इससे उन्होंने दूसरा सवाल यह पैदा किया कि आखिर आयकर आयुक्त के ओहदे पर रहते हुए वे इनके विरूद्ध कार्रवाही करने में असफल क्यों रहे और उन्होंने इस बात का खुलासा उस दौरान ही क्यों नहीं किया ? किंतु भले ही वे यह काम अपने ओहदे पर रहते हुए नहीं कर पाए हों लेकिन आज भी ऐसे तमाम सबूतों को वे सार्वजनिक कर सकते हैं जिनके आधार पर वे दावा कर रहे हैं कि कांग्रेस के इन दो नेताओं का धन स्वीस बैंक में जमा है। जिसके आधार पर इन नेताओं के विरूद्ध कार्रवाही संभव हो पाय।
इस तरह की जानकारी जब गुप्ता के द्वारा दी जा रही थी तब तक उसपर इस लिए यकीन किया जा रहा था क्योंकि वे दावा कर रहे थे कि वे जन सभा में जो कुछ भी बोल रहे हैं उन सबके सबूत भी उनके पास हैं। किंतु इसके बाद विश्वबंधु गुप्ता ने दावा किया कि अहमद पटेल सोनिया गांधी का ऐसा राजनीतिक सचिव है जो रात्रि को बारह बजे से तीन बजे के बीच में ही सोनिया को राजनीति की सलाह देता है यही नहीं गुप्ता ने दावा किया कि अहमद पटेल सोनिया के घर गाड़ियां बदल-बदल कर जाता है। और इस कथन के साथ ही पूर्व आयकर आयुक्त ने सोनिया गांधी को चुनौती देते हुए कहा कि इस देश में यह कैसी राजनीति हो रही है सोनिया जवाब दे ? जिस आसय के साथ गुप्ता यह सब कह रहे थे उससे एक बात तो साफ हो चुकी थी कि भले ही रैली भ्रष्टाचार और काले धन के विरूद्ध आयोजित की गई हो लेकिन वे इस रैली का उपयोग राजनीति में सम्मानित एक महिला के चरित्र का चीर हरण करने से भी नहीं चूके।
अपने संबोधन में पूर्व आयकर आयुक्त ने यह दावा भी किया कि बोफोर्स तोप की दलाली में जिय क्वात्रोची का नाम शामिल है उसके बेटे का होटल लीमेरिडियन में कार्यलय है जिसमें बैठ कर वह अपने कारोबार को संचालित करता है।
पूरे देश मंे हर जगह लोग भ्रष्टाचार और काले धन के बिरूद्ध संघर्ष करने वालों को सुनने को तैयार है लेकिन किसी भी ऐसी महिला जो किसी की मां हो किसी की पत्तनी रही हो किसी की बहु रही हो उसके चरित्र का चीरहरण करने की इजाजत कंही भी नहीं है
खासकर अपने भारत में जो कि सदियों से ऋषि मुनियों और सूफी सन्तों का देश रहा है वहां तो इस प्रकार की भाषा कोेई सहन नहीं कर सकता है।
दुर्भाग्य से जिस मंच से विश्वबंधु गुप्ता मानव जाति को शर्मशार करने वाले सवाल पैदा कर रहे थे उस समय रैली के मंच पर विराजमान आंदोलन के हमारे वरिष्ठ साथी अन्ना हजारे, स्वामी अग्निवेश, सहित अरविन्द केजरिवाल सहित आध्यात्तमिक जगत और राजनीति से जुड़े हुए ऐसे लोग भी मौजूद थे जो कभी न कभी ऐसे आन्दोलनों का हिस्सा भी रह चुके हैं जिन आन्दोलनों में ऐसे नारे भी लगते हैं कि ‘‘महिलाओं के सहयोग बगैर हर बदलाव अधूरा है’’ इसके अलावा चंद्रशेखर आजाद, राज गुरू और भगतसिंह के परिवार के सदस्य भी थे।
देश की प्रथम आईपीएस रह चुकी किरण बेदी सहित स्वामी रामदेव और विभिन्न साधु-सन्त, राजनेता, सामाजिक कार्यकर्ता यह सुनकर कैसे और क्यों मौन रह गये। जैसे कि पूर्व आयकर आयुक्त रह चुके व्यक्ति ने दावा किया कि वे रामदेव को सलाह देते रहे हैं और आज की सभा में रामदेव के अनुरोध पर ही शामिल हुए हैं, स्वामी रामदेव की चुपी समझ में आती है। लेकिन दुःख और आश्चर्य इस बात का है कि आन्दोलन के वरिष्ठ साथी अन्ना हजारे, स्वामी अग्निवेश और अन्य ने इस व्यक्ति को निम्न स्तर की भाषा बोलने की इजाजत कैसे दे दी ? उम्मीद थी कि ये लोग उसे रोकेंगे, लेकिन उन्होंने तो बाद में इस व्यक्ति के द्वारा कहे गये अपशब्दों की निन्दा तक नहीं की। सोनिया जैसी प्रतिष्ठत महिला के लिए अपशब्दों का प्रयोग उस मंच से हो जिस मंच पर समाज की लड़ाई लड़ने के अगवा विराजमान हों तो हर किसी को कष्ट होना स्वाभाविक है। हैरानगी इस बात की भी है कि देश की प्रथम आईपीएस रह चुकी किरण बेदी भली भांति जानती हैं कि देश और दुनिया में सामाजिक, राजनीतिक और सेवा क्षेत्र में महिलाओं को पुरूषों के साथ मिलकर ही काम करने पड़ते हैं। यह कतई संभव नहीं हो सकता कि महिलाएं इन क्षेत्रों में अकेले ही तमाम काम पूरे कर सकें ? इस लिए उनको संबोधन के दौरान ही अपना विरोध दर्ज करना चाहिए था। हो सकता है कि आयकर आयुक्त के ओहदे पर रहते हुए विश्व बंधु गुप्ता को सायद ऐसा अवसर प्राप्त न हुआ हो।
जिस देश के धार्मिक ग्रन्थ यत्र नार्यास्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता की शिक्षा देते हों वहां साधु और सन्तों के बीच में बड़े ओहदे में रहकर बने बुद्धिजीवी होने का दावा करने वाले व्यक्ति के द्वारा सोनिया गांधी की इज्जत का चीरहरण किया गया। ऐसा लग रहा था जैसे कि धृतराष्ट्र की सभा में द्रोपदी का चीरहरण चल रहा है और मंच पर विराजमान सभी लोग पितामह भीष्म की तरह इसलिए विवश थे कि कहीं बाबा रामदेव रूष्ट न हो जायं। असल में सबकी घबराहट का कारण एक और भी था कि वक्ता बार-बार यह दावा कर रहा था कि मैं आयकर आयुक्त के ओहदे के कारण जो कुछ बोल रहा हूॅं उस सबके सबूत मेरे पास मौजूद हैं। हालांकि उसने जनता में कोई भी सबूत सार्वजनिक नहीं किया।
राष्ट्र की एक सम्मानित ऐसी महिला जो कि किसी की मां, बहन, बेटी और बहू भी है, उसके चरित्र पर मंच से एक व्यक्ति ने आरोप लगाने का परियास कर समस्त नारी जाति का अपमान करने का काम किया है। वह घोर निंदनीय है।
बाबा रामदेव, अन्ना हजारे, स्वामी अग्निवेश सहित आंदोलन के हमारे साथियों को राष्ट्र के लोगों की भावनाओं का एहसास हो जाना चाहिए कि लोग उनके नेतृत्व में भ्रष्टाचार के खिलाफ एकजुट हुए हैं न कि किसी के खिलाफ जबरदस्ती कीचड़ उछालने। बेहत्तर होता कि सोनिया गांधी को अनावश्यक निशाना बनाने के बजाय भ्रष्टाचार के खिलाफ जारी मुहिम को मंजिल तक पहंुचाने का ऐजेंडा और रणनीति पर बाबा रामदेव द्वारा आमंत्रित पूर्व आयकर आयुक्त अपनी राय सार्वजनिक करता। इस व्यक्ति के भाषण के उपरान्त यह खतरा पैदा हो चुका है कि भविष्य में भ्रष्टाचार और काले धन के विरूद्ध जारी लड़ाई कहीं भटक कर किसी राजनितीक पार्टी के विरूद्ध जाकर न ठहर जाय। आंदोलन के तमाम साथियों को समय रहते हुए इस दिशा में गम्भीर चिंतन मनन करने की जरूरत है। कहीं ऐसा न हो कि राष्ट्र की जनता आंदोलन से कटने लगे।
सोनिया गांधी अपने राजनीतिक सचिव से किस समय राजनीति पर चर्चा करती है और उनके राजनीतिक सचिव किस गाड़ी के द्वारा उनके आवास पर आना-जाना करता है इसका भ्रष्टाचार को मिटाने या विदेशों में जमा काले धन को वापस भारत लाने की मुहिम से क्या लेना-देना है।
स्विस बैंक में जमा कालाधन वापस लाने का दावा कर हम अपने देशवासियों को आंदोलन करने के लिए प्रेरित तो कर सकते हैं ताकि सरकार पर दबाव बना कर देश में ऐसी जन लोक पाल व्यवस्था कायम हो सके जिसके उपरांत कोई भी भ्रष्टाचार करने का साहस न जुटा सके। लेकिन हमें यह भी देखना होगा कि स्विस बैंकों की जवाब देही हमारे भारत देश की बजाय अपने ग्राहकों और उनके द्वारा निवेश किये गये धन के पक्ष में है। यही उसकी सफलता का कारण भी है।
हम कितने शक्तिशाली हैं यह हमारे साथ-साथ पूरी दुनिया जानती है। एनडीए की सरकार के कार्यकाल में भारतीय जेल में बंद खूंखार पाकिस्तानी उग्रवादियों को हमारे देश के मंत्री कंधार तक बाइज्जत छोड़कर आये। ऐसे छोडे गये उग्रवादियों का न केवल नाम है बल्कि उनके फोटो, उनके हाथ पांव के निशान हमारे देश के पास मौजूद हैं और वे पाकिस्तान में पहुंचकर निरन्तर हमारे देश के विरूद्ध आतंकवादी युद्ध लड़ रहे हैं। हम न तो उन्हें वापस भारत लाने की ताकत रखते हैं और ना ही पाकिस्तान में घुसकर उनको ठिकाने लगाने की। इसलिए हम कैसे स्विस बैंक को उनके ग्राहकों के विरूद्ध कदम उठाने के लिए विवश कर सकते हैं जिनके कारण ही ऐसे बैंक का अस्तित्व कायम है।
इसलिए हमारे वरिष्ठ साथी अन्ना हजारे की राय के मुताबिक लोकपाल बिल तैयार करने के लिए सरकार ऐसे समिति का गठन करे जिसमें पचास फीसदी सदस्य गैर सरकारी हों और उस मसौदे में सामाजिक संगठनों के द्वारा इंडिया अगेंस्ट करपशन की मुहिम को मिले जनता के सुझावों पर भी गौर किया जाय। भ्रष्टाचार को रोकने का यही कारगर तरीका भी हो सकता है न कि राजनीति में शक्रिय लोगों के चरित्र पर प्रश्न चिन्ह लगा कर !
वक्त रहते भ्रष्टाचार के बिरूद्ध व काले धन के खिलाफ जारी मुहिम में शामिल बाबा राम देव सहित मंच पर बिराज मान रहे तमाम सामाजिक कार्यकर्ताओं को अपनी राय सार्वजनिक करनी चाहिए कि वे विश्वबंधु गुप्ता की राय से सहमत हैं या असहमत। इससे यह बात सार्वजनिक हो पाएगी कि यह मुहिम जिस ओर बढ रही है उसकी मंजिल कंहा है ?
( लेखक- जनसंघर्ष वाहिनी के संयोजक और भ्रष्टाचार के खिलाफ जारी मुहिम में शामिल हैं।)

रविवार, 13 फ़रवरी 2011

कब और क्यों होगी तबाह धरती

भविष्य को जानने की उत्सुकता हर मनुष्य की होती है। चाहे अच्छा हो या बुरा... आगे क्या होने वाले है, वह हमारे लिए कैसा होगा? हमारे परिजनों के लिए कैसा रहेगा? हर कोई जानना चाहता है। इसी उत्सुकता के अति उत्साह में कई बार विभिन्न अध्ययनों और अनुमानों के आधार पर कही जाती है कि हमारी धरती तबाह होने वाली है। कोई इसकी समय-सीमा 2012 तय करता है तो कोई धरती पर जलजला आने की बात 2036 में करता है। सबके अपने-अपने तर्क और साक्ष्य। मगर, सवाल यह भी मौजूं है कि जब 21वीं सदी का विज्ञान यह बताने में समर्थ है कि अमुक वर्ष में धरती तबाह हो सकती है तो क्या यह पहल नहीं होगी कि इसे कैसे रोका जाए? या फिर यह कोरी कल्पना है, बिलकुल मुंबइया फिल्मी गॉसिप की तरह।
हालिया घटनाक्रम में कुछ वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि वर्ष 2036 के पहले धरती का विनाश हो सकता है। इन वैज्ञानिकों की माने तो 23,000 मील प्रति घंटा की रफ्तार से आ रहे विशालकाय क्षुद्र ग्रह के टकराने से धरती तबाह हो सकती है। वैज्ञानिकों के अनुसार धरती के काफी निकट स्थित 275 मीटर चौड़ा क्षुद्रग्रह धरती के काफी शक्तिशाली गुरूत्वीय केंद्र की होल से अप्रैल 2029 में गुजरेगा और सात साल बाद लगभग 13 अप्रैल 2036 को यह धरती से टकरायेगा। गौरतलब है कि धरती के गुरूत्वाकषर्ण के काफी शक्तिशाली होने के कारण जब यह क्षुद्र ग्रह इसके काफी निकट से गुजरेगा तो इस बल की वजह से यह क्षुद्रग्रह अपने रास्ते से विचलित हो जायेग।
नासा के नीयर अर्थ आब्जेक्ट प्रोग्राम कार्यालय के निदेशक डोनाल्ड योमांस के अनुसार, धरती के गुरूत्वाकषर्ण की वजह से यह क्षुद्र अपने रास्ते से विचलित होगा और इस बात की संभावना बनती है कि यह धरती से टकरा जाये। यह स्थिति 13 अप्रैल 2029 को हो सकती है। क्षुद्र ग्रह के धरती के काफी निकट होने के कारण ऐसा हो सकता है लेकिन हमनें इस समय धरती के टकराने संबंधी संभावनाओं को पूरी तरह खारिज कर दिया है। उनके अनुसार, 'अगर यह धरती के काफी करीब यानी की होल के पास से गुजरता है तो यह अपने रास्ते से विचलित होगा और 13 अप्रैल 2036 को सीधा धरती से आ टकरायेगा।Ó नासा वैज्ञानिक ने कहा कि यह टक्कर वैसी नहीं होगी जिस तरह 2036 में क्षुद्र ग्रह के टकराने की भविष्यवाणी रूस के वैज्ञानिक कर रहे है। काबिलेगौर है कि सेंट पीटसबर्ग सरकारी विविद्यालय के प्रोफेसर लियोनिड सोकोलोव पहले ही भविष्यवाणी कर चुके है कि 3,7000 से 3,8000 किलोमीटर की रफ्तार से चल रहा क्षुद्र ग्रह 13 अप्रैल 2029 को धरती से टकरा सकता है। प्रोफेसर सोकोलोव के अनुसार, 'यह संभव है कि 13 अप्रैल 2036 को धरती से यह क्षुद्र ग्रह टकरा जाये। हमारा काम इसके विकल्पों पर विचार करना है और इस क्षुद्र ग्रह में भविष्य में होने वाले परिवर्तनों के आधार पर वैसी स्थिति का निर्माण करना है।Ó
इससे पहले भी देश-विदेश के प्रमुख वैज्ञानिकों ने आशंका व्यक्त की थी कि आगामी कुछ वर्ष में सूर्य की प्रचंड लपटों से 'सौर सुनामीÓ के कारण ऐसी खतरनाक स्थिति पैदा हो सकती है, जिससे भारत समेत विभिन्न देशों के उपग्रह ध्वस्त हो सकते है और संचार प्रणाली ठप हो सकती है। उस समय कहा गया था कि सूर्य की प्रचंड लपटों से सैंकडों हाइड्रोजन बम के बराबर ऊर्जा निकलेगी जिससे पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित होगा। इसके असर से अंतरिक्ष में तैनात उपग्रह ध्वस्त हो सकते है और उनसे प्रेषित होने वाली सूचना प्रणाली भी काम करना बंद कर देगी। खतरनाक सौर आंधी बीते वर्ष अप्रैल में अमेरिका के 'गैलेक्सी 15Ó संचार उपग्रह को चौपट कर चुकी है।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी 'नासाÓ की रिपोर्ट में सौर सुनामी के पृथ्वी पर असर के बारे में भयावह तस्वीर पेश की गई थी । रिपोर्ट में बताया गया कि सूर्य का यह तूफान पृथ्वी की संचार प्रणाली में तबाही मचा सकता है। सौर आंधी से उच्च क्षमता वाली रेडियोधर्मिता पैदा होगी जिसके असर से ट्रेनें और विमान सेवा ठप हो सकती है, जीपीएस प्रणाली रेडियों और मोबाइल नेटवर्क गायब हो सकता है, बैंकिंग तथा वित्तीय बाजार में अफरा-तफरी मच सकती है। पूरी दुनिया की संचार प्रणाली पर इस खतरनाक सौर सुनामी का असर कुछ घंटों से लेकर कई माह तक चल सकता है। वैज्ञानिक पिछले 11 वर्षो से सूर्य की गतिविधियों पर बारीकी से नजर रख रहे हैं। पिछले कुछ वर्ष से आग का यह गोला शांत है लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि यह तूफान के पहले का सन्नाटा है। यदि इसकी विनाश लीला पृथ्वी तक पहुंच गई तो धरती के समस्त तेल और कोयला भंडार से जितनी ताप ऊर्जा निकलेगी उसका सौ गुना ज्यादा ऊर्जा इससे पैदा होगी। सूर्य की ज्वाला से निकलने वाले कण 400 से 1000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से घूमते हुए एक या दो दिन में पृथ्वी के वातावरण में पहुंच जाएंगे जिससे धरती का चुंबकीय क्षेत्र विचलित हो जाएगा।

गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

तैयार है हिरण, तैयार है रांची


34वें राष्ट्रीय खेल आधी-अधूरी तैयारियों से अब तक छह बार टल चुका है, मगर इस दफा मेजबान राज्य के मुख्यमंत्री तथा आयोजन समिति के पदेन अध्यक्ष होने के नाते अर्जुन मुंडा ने खुद इसके सफल आयोजन की कमान संभाली हुई है। प्रदेश के दूसरे कार्यों की अपेक्षा मुख्यमंत्री का पूरा ध्यान इस आयोजन पर है। वे कहते हैं, '34वें राष्टï्रीय खेलों का सफल आयोजन झारखंड की प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ है। प्रदेशवासी हर तरह से इसे सफल बनाने के लिए कृतसंकल्पित हैं।Ó
उल्लेखनीय है कि 34वें राष्ट्रीय खेल आयोजित कराने की मेजबानी वर्ष 2002 में रांची को मिली थी। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार पहले ये खेल 15 से 28 नवंबर 2007 में आयोजित होने थे, लेकिन आधारभूत सुविधाओं की अधूरी तैयारियों के चलते इनके आयोजन की तारीख को एक से 13 दिसंबर 2008 कर दिया गया। बाद में इसे 15 से 28 फरवरी 2009 किया गया और फिर एक बार इसे पीछे खिसकाकर एक से 14 जून 2009 किया गया था। तारीख आगे खिसकने के बाद भी खेलों के लिए स्टेडियमों का निर्माण पूरा नहीं हो पाया तो इसे 21 नवंबर से पांच दिसंबर 2010 और फिर नौ दिसंबर से 22 दिसंबर 2010 में आयोजित कराने का निर्णय लिया गया। झारखंड में पंचायत चुनाव के कारण एक बार फिर राष्ट्रीय खेलों की आयोजन तारीख आगे बढ़ाई गई और तब जाकर इसे 2011 के फरवरी में आयोजित कराने का निर्णय लिया गया।
गौर करने योग्य तथ्य यह भी है कि 10 फरवरी को खरसावां विधानसभा का उपचुनाव भी है, जहां मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा प्रत्याशी हैं। भाजपा के उम्मीदवार के रूप में बेशक, मुंडा चुनाव मैदान में हो लेकिन इनके समर्थन में झामुमो और आजसू के नेता भी हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अर्जुन मुंडा भाजपा के नहीं, बल्कि सरकार के प्रत्याशी हैं। 19 जनवरी को खरसावां में नामांकन के बाद चुनाव की पूरी जिम्मेदारी निवर्तमान विधायक सोए पर सौंपकर अर्जुन मुंडा राष्टï्रीय खेल आयोजन पर पूरा ध्यान दे रहे हैं। गठबंधन की सरकार ने इसे प्रदेश की प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है।
वैसे तो खेलों का मुख्य आयोजन मुख्य रूप से राजधानी रांची में ही निर्धारित है, लेकिन कुछ स्पर्धाएं जमशेदपुर और धनबाद में भी होनी हैं। खेल आयोजन से जुड़े निर्माण कार्यों को लेकर शुरुआत से भ्रष्टïाचार की बात होती रही है। उपकरणों की खरीद तथा अन्य निविदाओं में हुए करोड़ों रुपये के घपले की जांच विभिन्न एजेंसियां कर रही हैं। इन खेलों को अब तक का सबसे महंगा राष्ट्रीय खेल आयोजन माना जा रहा है और अव्वल तो यह कि इसके लिए खरीदे गए कई उपकरण बेकार हो चुके हैं।
झारखंड ओलंपिक संघ के महासचिव तथा आयोजन समिति के सचिव एसएम हाशमी ने लगभग एक साल पहले ही राष्ट्रीय खेलों के आयोजन पर कुल खर्च की राशि को लगभग एक हजार करोड़ रुपये आंका था।
बहरहाल, इस बार रांची पूरी तैयार दिख रही है। राज्य के प्रशासनिक महकमे के सबसे आला अधिकारी मुख्य सचिव एके सिंह कहते हैं, 'मैं खेलों की तैयारियों से संतुष्ट हूं। थोड़ा विलंब हुआ है, पर मुझे पूरा विश्वास है कि आयोजन के लिहाज से ये अब तक के सर्वोत्कृष्ट राष्ट्रीय खेल साबित होंगे। अब कोई घपला घोटाला भी नहीं होगा। इसकी गारंटी लेता हूं। जमशेदपुर में आयोजित होने वाली पांच स्पर्धाओं तीरंदाजी, बाक्सिंग, भारोत्तोलन, महिला फुटबॉल और घुड़सवारी की तैयारियों से मैं संतुष्ट हूं। आगंतुक खिलाडिय़ों के ठहरने की व्यवस्था के मामले में कुछ कमियां हैं, जिन्हें दूर करने के लिए स्थानीय आयोजन समिति को निर्देश दे दिए गए हैं। हमारी प्राथमिकता इन्हें मितव्ययिता पूर्ण और पारदर्शी तरीके से आयोजित करने की है।Ó मुख्य सचिव का यह भी कहना है कि खेलों को भव्य और अभूतपूर्व बनाने के लिए तैयारियां युद्ध स्तर पर जारी हैं। दैनिक समीक्षा के जरिए सभी कमियों को दूर किया जा रहा है। रेल मंत्रालय से भी आग्रह किया गया है कि खेलों के एक प्रमुख आयोजन स्थल जमशेदपुर से हावड़ा के बीच लगभग आठ माह से बंद रात्रिकालीन रेल सेवा को फिर शुरू कर दिया जाए।
खेलों के आयोजन को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए मुख्य सचिव के साथ राज्य के खेल सचिव सुखदेव सिंह, विशेष खेल सचिव एनएम कुलकर्णी, खेल निदेशक अमिताभ चौधरी, झारखंड ओलंपिक संघ के कोषाध्यक्ष मधुकांत पाठक और स्थानीय समन्वय समिति की अध्यक्ष सह उपायुक्त हिमानी पांडेय लगातार कार्य स्थलों का जायजा ले रहे हैं।




यादगार होगा खेल आयोजन : सुदेश महतो, उपमुख्यमंत्री व खेल मंत्री
सरकार चाहती है कि खेल तय समय पर और शानदार तरीके से हों। सरकार के पास समय कम है। खेलों से जुड़ा भ्रष्टाचार का मुद्दा जरूर है, पर इससे आयोजन में बाधा नहीं आएगी। सफल आयोजन के लिए हम सबको मिल कर कोशिश करनी है। राष्ट्रीय खेलों के इतिहास में पहली बार खिलाडिय़ों को कोलकाता स्थित भारत सरकार के टक्साल में गढ़े गए कीमती स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक दिए जाएंगे। इनकी औसत कीमत करीब पांच हजार रुपये होगी। राज्य सरकार ने राष्ट्रीय खेलों को अविस्मरणीय बनाने के लिए न सिर्फ आठ सौ करोड़ की लागत से 18 अंतरराष्ट्रीय स्तर के स्टेडियम तैयार कराए हैं, बल्कि खिलाडिय़ों को कीमती पदक देने के लिए एक करोड़ 40 लाख रुपये देने का फैसला किया है।

बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

पर्यटन को लगे पंख

भारत में विदेशी पर्यटकों के शीर्ष दस स्थानों की वार्षिक सूची में गोआ की जगह बिहार का नाम आया है। हालांकि, 2009 में गोआ में 7 फीसदी के इजाफे के साथ विदेशी पर्यटकों की संख्या बढ़कर 376,000 हो गई थी, लेकिन बिहार में 22 फीसदी बढ़कर इस संख्या के 423,000 से ज्यादा थी
प्रदेश के विकास में पर्यटन उद्योग का खासा योगदान होता है। जितनी अधिक संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं, उसी अनुपात में ज्यादा से ज्यादा लोग इस उद्योग से जुड़कर जीवनयापन कर सकते हैं। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए नीतीश सरकार ने प्रदेश के पर्यटन स्थलों को विकसित और सुव्यवस्थित करने का संकल्प लिया है। पूरा खाका तैयार है और इसके प्रभाव भी देखे जा रहे हैं।
लोगों को यह बात हजम करने में भले ही थोड़ी दिक्कत हो, मगर यह सोलह आने सच है कि बीते साल बिहार में गोवा से अधिक पर्यटक आए हैं। यह खबर किसी भी बिहारी के लिए गर्व का विषय हो सकता है। यह आंकड़ा किसी निजी संस्था का नहीं, बल्कि भारतीय पर्यटन मंत्रालय का है। भारत के पर्यटन मंत्रालय द्वारा हाल में जारी किए गए आंकड़े बताते हैं कि देश में विदेशी पर्यटकों के शीर्ष दस स्थानों की वार्षिक सूची में गोआ की जगह बिहार का नाम आ गया है। हालांकि, 2009 में गोआ में 7 फीसदी के इजाफे के साथ विदेशी पर्यटकों की संख्या बढ़कर 376,000 हो गई थी, लेकिन बिहार में 22 फीसदी बढ़कर इस संख्या के 423,000 से ज्यादा हो जाने से गोआ की साख को बट्टा लग गया। इसकी तुलना में 2001 के आंकड़ों पर अगर नजर डालें तो स्थिति काफी चौंकाने वाली है, क्योंकि 2001 में लगभग 260,000 विदेशी पर्यटक गोआ गए थे, जबकि सिर्फ 85,700 विदेशी पर्यटकों ने बिहार की ओर रुख किया था। विदेशी पर्यटकों के गोआ की तुलना में कहीं अधिक बिहार जाने के इन तथ्यों से अनेक लोगों को हैरानी हो सकती है।
इन बदली हुई स्थितियों को भांपते हुए पर्यटकों को लुभाने के लिए बिहार सरकार अब पूरब की तरफ रुख कर रही है। पर्यटन विभाग पूर्वी एशिया के उन मुल्कों को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश में जुटा है, जहां बौद्ध धर्म को मानने वालों की तादाद काफी ज्यादा है। इसके लिए विभाग ने कई तरह की तैयारियां भी कर रखी हैं। बिहार राज्य पर्यटन निगम के उप महाप्रबंधक नवीन कुमार के अनुसार, इस वक्त हम बौद्ध मुल्कों को काफी तरजीह दे रहे हैं। ऐसे मुल्कों को लुभाने के लिए हम काफी कोशिशें कर रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि बिहार के राजस्व आय का एक बहुत बड़ा हिस्सा पर्यटन से ही आता है। ऐसे में सरकार अधिक से अधिक संख्या में देशी-विदेशी सैलानियों को राज्य की ओर आकर्षित करना चाहती है, जिससे राज्य के आय में बढ़ोत्तरी हो। पर्टयन निगम ने कुछ समय पहले ही नदी पर्यटन शुरू किया है। इसी तरह मुजफ्फरपुर के लीची के बागानों को हरा-भरा रखने के लिए सरकार किसानों को आर्थिक मदद देने पर भी विचार कर रही है। हालांकि, अभी इन्हें बतौर ऋण आर्थिक सहायता दी जाती है।
योजनाओं की कड़ी में पटना के गंगा तट पर बनारस जैसी गंगा आरती भी अब पर्यटकों को लुभाएगी। जल्द ही लोगों को गंगा तट पर गंगा आरती देखने को मिलेगी। राज्य पर्यटन विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक धर्मनगरी काशी में प्रत्येक शाम गंगा के कई घाटों के किनारे होने वाली गंगा आरती का विहंगम दृश्य गंगा तटों पर भी लोगों को देखने को मिलेगा। इसके लिए सरकारी स्तर पर तैयारी शुरू कर दी गई है।
राज्य के पर्यटन मंत्री सुनील कुमार 'पिंटुÓ का कहना है कि गंगा आरती से जहां लोगों में धार्मिक जागृति आएगी, वहीं गंगा तट पर्यटकों को भी आकर्षित करेगा। विदेशी पर्यटक यहां की समृद्धि सांस्कृतिक विरासत को भी नजदीक से देख सकेंगे। पटना में ऐसे तो कई ऐतिहासिक और दर्शनीय स्थल हैं, मगर गंगा आरती विदेशी पर्यटकों को लुभाने के लिए काफी मददगार होगी। पहले चरण में गंगा आरती सप्ताह में दो दिन किए जाने की योजना है, इसके बाद इसे हर दिन कराया जाएगा।
सच तो यह है कि बिहार की गौरवशाली ऐतिहासिक धरोहरें किसी भी सैलानी को यहां आने के लिए विवश करती हैं, मगर एक दशक पहले यहां की अराजक राजनीतिक व्यवस्था में असुरक्षा की भावना लोगों में खौफ पैदा करती थी। इस कारण इस सूबे की ओर रुख करने में लोग नाक-भौं सिकोड़ते थे। अब परिस्थितियां बदली हैं, लोगों का नजरिया बदला है और सामाजिक माहौल बदला है। सबसे बड़ी बात यह है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर बदला है। ऐसे में प्रदेश के विकास में पर्यटन उद्योग नई इबारत लिखने जा रहा हो तो हैरत कैसी?

सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

विद्या की देवी सरस्वती की पूजा


वसंत पंचमी एक भारतीय त्योहार है, इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन स्त्रियाँ पीले वस्त्र धारण करती हैं।
प्राचीन भारत में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था।जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों मे सरसों का सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती, यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है।
सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों आ॓र मौन छाया रहता है। विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है- प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु। अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से ख़ुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और यूँ भारत के कई हिस्सों में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक जारी है। पतंगबाज़ी का वसंत से कोई सीधा संबंध नहीं है। लेकिन पतंग उड़ाने का रिवाज़ हज़ारों साल पहले चीन में शुरू हुआ और फिर कोरिया और जापान के रास्ते होता हुआ भारत पहुँचा.
वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है। यों तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी (माघ शुक्ल 5) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। कलाकारों का तो कहना ही क्या? जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।
[संपादित करें]पौराणिक महत्व
इसके साथ ही यह पर्व हमें अतीत की अनेक प्रेरक घटनाओं की भी याद दिलाता है। सर्वप्रथम तो यह हमें त्रेता युग से जोड़ती है। रावण द्वारा सीता के हरण के बाद श्रीराम उसकी खोज में दक्षिण की ओर बढ़े। इसमें जिन स्थानों पर वे गये, उनमें दंडकारण्य भी था। यहीं शबरी नामक भीलनी रहती थी। जब राम उसकी कुटिया में पधारे, तो वह सुध-बुध खो बैठी और चख-चखकर मीठे बेर राम जी को खिलाने लगी। प्रेम में पगे झूठे बेरों वाली इस घटना को रामकथा के सभी गायकों ने अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया। दंडकारण्य का वह क्षेत्र इन दिनों गुजरात और मध्य प्रदेश में फैला है। गुजरात के डांग जिले में वह स्थान है जहां शबरी मां का आश्रम था। वसंत पंचमी के दिन ही रामचंद्र जी वहां आये थे। उस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रध्दा है कि श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। वहां शबरी माता का मंदिर भी है.
वसंत पंचमी पर मां सरस्वती की पूजा विशेष रूप से की जाती है। मां सरस्वती को विद्या, बुद्धि, ज्ञान, संगीत और कला की देवी माना जाता है। व्यावहारिक रूप से विद्या तथा बुद्धि व्यक्तित्व विकास के लिए जरुरी है। शास्त्रों के अनुसार विद्या से विनम्रता, विनम्रता से पात्रता, पात्रता से धन और धन से सुख मिलता है।
वसंत पंचमी के दिन यदि विधि-विधान से देवी सरस्वती की पूजा की जाए तो विद्या व बुद्धि के साथ सफलता भी निश्चित मिलती है। वसंत पंचमी पर मां सरस्वती की पूजा इस प्रकार करें-
- सुबह स्नान कर पवित्र आचरण, वाणी के संकल्प के साथ सरस्वती की पूजा करें।
- पूजा में गंध, अक्षत के साथ खासतौर पर सफेद और पीले फूल, सफेद चंदन तथा सफेद वस्त्र देवी सरस्वती को चढ़ाएं।
- प्रसाद में खीर, दूध, दही, मक्खन, सफेद तिल के लड्डू, घी, नारियल, शक्कर व मौसमी फल चढ़ाएं।
ऎं हीं श्रीं वाग्वादनी सरस्वती देवी मम जिव्हायां। सर्व विद्यां देही दापय-दापय स्वाह।
इस मंत्र के जप से साधक को मां सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है।
इस मंत्र की एक माला प्रतिदिन जपें।
मंत्र जप स्फटिक की
माला से करें।
मंत्र जप का आरंभ शुभ मुहूर्त, वार एवं योग में अपने गुरू से दीक्षा लेने के बाद शुरू करें...

या कुन्देन्दु तुषार हार-धवला,
या शुभ्र-वस्त्रावृता
या वीणा-वर-दण्ड-मंडितकरा
या श्वेत पद्मासना
या ब्रह्माच्युत शंकर प्रभ्रृतिभिर देवै-सदा वन्दिता
सा माम पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्यापहा.
शुक्लां प्रजापति विचार सार परमा माध्यम जगद्व्यापिणी,
हस्ते मालिकम कमलं पद्मासने संस्थितम.
वन्देतं परमेश्वरी भगवती....
सा माम पातु सरस्वती भगवती बुद्धिप्रदाम शारदाम.....

शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

धर्मांतरण द्वारा भारत की आत्मा से खिलबाड

- विनोद बंसल

भारतीय गणतंत्र की 61वीं वर्षगांठ के ठीक एक दिन पूर्व हमारी
सर्वोच्च न्यायालय ने मात्र चार दिन पूर्व स्वयं द्वारा सुनाए गए एक
ऐतिहासिक निर्णय में बदलाव कर न सिर्फ़ अपने ही नियमों को नजरंदाज किया है
बल्कि धर्मांतरण के संबंध में एक नई बहस का बीजा-रोपण भी किया है। संभवत:
यह अभूतपूर्व ही है कि देश के सर्वोच्च न्यायालय ने किसी मुकदमे में अपने
ही निर्णय को स्वेच्छा से संशोधित किया हो और उसका कोई कारण नहीं बताया
गया हो।
माननीय उच्चतम न्यायालय ने बाईस जनवरी 1999 को उडीसा के मनोहरपुर गांव
में आस्ट्रेलियन मिशनरी ग्राहम स्टैन्स व उसके दो बच्चों को जिन्दा जलाए
जाने के आरोप में रविन्द्र कुमार पाल (दारा सिंह) व महेन्द्र हम्ब्रम को
आजीवन कारावास की सजा सुनाते हुए 21 जनवरी 2011 को कहा था कि फांसी की
सजा दुर्लभ से दुर्लभतम मामलों में दी जाती है। और यह प्रत्येक मामले में
तथ्यों और हालात पर निर्भर करती है। मौजूदा मामले में जुर्म भले ही कड़ी
भ‌र्त्सना के योग्य है। फिर भी यह दुर्लभतम मामले की श्रेणी में नहीं आता
है। अत: इसमें फांसी नहीं दी जा सकती। विद्वान न्यायाधीश जस्टिस पी
सतशिवम और जस्टिस बी एस चौहान की बेंच ने अपने फैसले में यह भी कहा कि
लोग ग्राहम स्टेंस को सबक सिखाना चाहते थे, क्योंकि वह उनके क्षेत्र में
मतांतरण के काम में जुटा हुआ था। न्यायालय ने यह भी कहा कि किसी भी
व्यक्ति की आस्था और उसके विश्वास में हस्तक्षेप करना और इसके लिए बल,
उत्तेजना या लालच का प्रयोग करना या किसी को यह झूठा विश्वास दिलाना कि
उनका धर्म दूसरे से अच्छा है और ऐसे तरीकों का इस्तेमाल करते हुए किसी
व्यक्ति का मतांतरण करना (धर्म बदल देना) किसी भी आधार पर न्यायसंगत नहीं
कहा जा सकता। इस प्रकार के धर्मांतरण से हमारे समाज की उस संरचना पर चोट
होती है, जिसकी रचना संविधान निर्माताओं ने की थी। किसी की आस्था को चोट
पहुंचा कर जबरदस्ती धर्म बदलना या फिर यह दलील देना कि एक धर्म दूसरे से
बेहतर है, उचित नहीं है।
उपरोक्त पंक्तियों को बदलते हुए न्यायालय ने कहा कि इन पक्तियों को इस
प्रकार पढा जाए-“घटना को घटे बारह साल से अधिक समय बीत गया, हमारी राय और
तत्थों के आलोक में उच्च न्यायालय द्वारा दी गई सजा को बढाने की कोई
आवश्यकता नहीं है।“ आगे के वाक्य को बदलते हुए माननीय न्यायालय ने कहा कि
“किसी भी व्यक्ति के धार्मिक विश्वास में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप
करना न्यायोचित नहीं है।“
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा चार दिन के भीतर ही अपने निर्णय में स्वत:
संशोधन करते हुए निर्णय की कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियों को हटा लिए जाने से
कई प्रश्न उठ खडे हुए हैं। एक ओर जहां चर्च व तथा कथित सैक्यूलरवादियों
का प्रभाव भारत की सर्वोच्च संस्थाओं पर स्पष्ट दिख रहा है। वहीं, भारत
का गरीब बहुसंख्यक जन-जातीय समाज अपने को ठगा सा महसूस कर रहा है। मामले
से संबन्धित पक्षकारों में से किसी भी पक्षकार के आग्रह के विना किये गए
संशोधन को विधिवेत्ता उच्चतम न्यायालय नियम 1966 के नियम 3 के आदेश
संख्या 13 का उल्लंघन मानते हैं। साथ ही वे कहते हैं कि इससे भारतीय दण्ड
संहिता की धारा 362 का भी उल्लंघन होता है।
इस निर्णय ने एक बार फ़िर चर्च की काली करतूतों की कलई खोल कर रख दी है।
विश्व में कौन नहीं जानता कि भारत की भोली-भाली जनता को जबरदस्ती अथवा
बरगला कर उसका धर्म परिवर्तन कराने का कार्य ईसाई मिशनरी एक लम्बे समय से
करते आ रहे हैं। अभी हाल के दिनों की सिर्फ़ दो घटनाओं पर ही गौर करें तो
भी हमें चर्च द्वारा प्रायोजित मतांतरण के पीछे छिपा वीभत्स सत्य का पता
चल जाएगा । सन् 2008 में कर्नाटक के कुछ गिरजाघरों में हुईं तोड़-फोड़ की
घटनाओं में “सेकूलर” दलों और मीडिया ने संघ परिवार और भाजपा की
नवनिर्वाचित प्रदेश सरकार को दोषी ठहराने का भरसक प्रयास किया था।
किन्तु, न्यायाधीश सोम शेखर की अध्यक्षता में गठित न्यायिक अधिकरण द्वारा
अभी हाल ही में सौंपी रिपोर्ट स्पष्ट कहती है कि ये घटनाएं इसलिए घटीं,
क्योंकि ईसाई मत के कुछ संप्रदायों ने हिंदू देवी-देवताओं के संदर्भ में
अपमानजनक साहित्य वितरण किया था। तथा इस भड़काऊ साहित्य का मकसद हिंदुओं
में अपने धर्म के प्रति विरक्ति पैदा करना था। मध्य प्रदेश में मिशनरी
गतिविधियों की शिकायतों को देखते हुए 14 अप्रैल, 1955 को तत्कालीन
कांग्रेस सरकार ने पूर्व न्यायाधीश डॉ. भवानी शंकर नियोगी की अध्यक्षता
में एक समिति गठित की थी। समिति की प्रमुख संस्तुति में मतांतरण के
उद्देश्य से आए विदेशी मिशनरियों को बाहर निकालना और उन पर पाबंदी लगाने
की बात प्रमुख थी। बल प्रयोग, लालच, धोखाधड़ी, अनुचित श्रद्धा, अनुभव
हीनता, मानसिक दुर्बलता का उपयोग मतांतरण के लिए न हो। बाद में देश के कई
अन्य भागों में गठित समितियों ने भी नियोगी आयोग की संस्तुतियों को उचित
ठहराया। जस्टिस नियोगी आयोग की रिपोर्ट, डीपी वाधवा आयोग की रिपोर्ट तथा
कंधमाल में हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद बनाए गए जस्टिस एससी महापात्रा
आयोग की रिपोर्ट के साथ और कितने ही प्रमाण चिल्ला चिल्ला कर कह रहे हैं
कि इस आर्यवर्त को अनार्य बनाने में चर्च किस प्रकार संलग्न है।
इस प्रकार, विविध न्यायालयों व समय समय पर गठित अनेक जांच आयोगों व
न्यायाधिकरणों ने स्पष्ट कहा है कि अनाप- सनाप आ रहे विदेशी धन के
बल-बूते पर चर्च दलितों-वचितों व आदिवासियों के बीच छल-फरेब से ईसाइयत के
प्रचार-प्रसार में संलग्न है। उनकी इस अनुचित कार्यशैली पर जब-जब भी
प्रश्न खडे किए जाते हैं, चर्च और उसके समर्थक सेकुलरबादी उपासना की
स्वतंत्रता का शोर मचाने लगते हैं। आखिर उपासना के अधिकार के नाम पर लालच
और धोखे से किसी को धर्म परिवर्तन की छूट कैसे दी जा सकती है। यदि देह
व्यापार अनैतिक है तो आत्मा का व्यापार तो और भी घृणित तथा सर्वथा
निंदनीय है।
महर्षि दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गाधी तथा डॉ. भीमराव
अंबेडकर सहित अनेक महापुरुषों ने धर्मांतरण को समाज के लिए एक अभिशाप
माना है। गांधीजी ने तो बाल्यावस्था में ही स्कूलों के बाहर मिशनरियों को
हिंदू देवी-देवताओं को गालियां देते सुना था। उन्होंने चर्च के मतप्रचार
पर प्रश्न खड़ा करते हुए कहा था- ''यदि वे पूरी तरह से मानवीय कार्य और
गरीबों की सेवा करने के बजाय डॉक्टरी सहायता व शिक्षा आदि के द्वारा धर्म
परिवर्तन करेंगे तो मैं उन्हें निश्चय ही चले जाने को कहूंगा। प्रत्येक
राष्ट्र का धर्म अन्य किसी राष्ट्र के धर्म के समान ही श्रेष्ठ है।
निश्चय ही भारत का धर्म यहां के लोगों के लिए पर्याप्त है। हमें धर्म
परिवर्तन की कोई आवश्यकता नहीं है।'' एक अन्य प्रश्न के उत्तर में गांधी
जी ने कहा था कि ''अगर सत्ता मेरे हाथ में हो और मैं कानून बना सकूं तो
मैं मतांतरण का यह सारा खेल ही बंद करा दूं। मिशनरियों के प्रवेश से उन
हिंदू परिवारों में, जहां मिशनरी पैठ है, वेशभूषा, रीति-रिवाज और खानपान
तक में अंतर आ गया है।'' इस संदर्भ में डॉ. अंबेडकर ने कहा था, ''यह एक
भयानक सत्य है कि ईसाई बनने से अराष्ट्रीय होते हैं। साथ ही यह भी तथ्य
है कि ईसाइयत, मतांतरण के बाद भी जातिवाद नहीं मिटा सकती।'' स्वामी
विवेकानद ने मतांतरण पर चेताते हुए कहा था ''जब हिंदू समाज का एक सदस्य
मतांतरण करता है तो समाज की एक संख्या कम नहीं होती, बल्कि हिंदू समाज का
एक शत्रु बढ़ जाता है।' यह भी सत्य है कि जहां-जहां इनकी संख्या बढी,
उपद्रव प्रारंभ हो गये। पूर्वोत्तर के राज्य इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।
वर्ष 2008 में उडीसा के कंधमाल में हुई स्वामी लक्ष्मणानन्द जी की हत्या,
तथा आज मणिपुर, नागालैंड, असम आदि राज्यों में मिशनरियों द्वारा अपना
संख्याबल बढ़ाने के नाम पर जो खूनी खेल खेला जा रहा है वह सब इस बात का
प्रत्यक्ष गवाह है कि भारत की आत्मा को बदलने का कार्य कितनी तेजी के साथ
हो रहा है।
यदि हम आंकडों पर गौर करें तो पायेंगे कि उडीसा के सुन्दरगढ, क्योंझार व
मयूरभंज जिलों की ईसाई आबादी वर्ष 1961 की जनगणना के आकडों के अनुसार
क्रमश: 106300, 820 व 870 थी जो वर्ष 2001 में बढ कर 308476, 6144 व 9120
हो गई। यदि इसी क्षेत्र की जनसंख्या ब्रद्धि दर की बात करें तो पाएंगे कि
वर्ष 1961 की तुलना में जहां ईसाई जनसंख्या तीन से दस गुनी तक बढी है
वहीं हिन्दु बाहुल्य इन तीन जिलों में हिन्दुओं की जनसंख्या गत चालीस
वर्षों में मात्र कहीं दुगुनी तो कहीं तिगुनी ही हुई है। क्या ये आंकडे
किसी भी जागरूक नागरिक की आंखें खोलने के लिए पर्याप्त नहीं हैं? आज चर्च
का पूरा जोर अपना साम्राज्यवाद बढ़ाने पर लगा हुआ है। इस कारण देश के कई
राज्यों में ईसाइयों एवं बहुसंख्यक हिंदुओं के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है।
मतांतरण की गतिविधियों के चलते करोड़ों अनुसूचित जाति से ईसाई बने
बन्धुओं का जीवन चर्च के अंदर ही नर्क बन गया है। चर्च लगातार यह दावा भी
करता आ रहा है कि वह देश में लाखों सेवा कार्य चला रहा है, लेकिन उसे
इसका भी उत्तर ढूंढ़ना होगा कि सेवा कार्य चलाने के बावजूद भारतीयों के
एक बड़े हिस्से में उसके प्रति इतनी नफरत क्यों है कि 30 सालों तक सेवा
कार्य का दाबा करने वाले ग्राहम स्टेंस को एक भीड़ जिंदा जला देती है और
उसके पंथ-प्रचारकों के साथ भी अक्सर टकराव होता रहता है। ऐसा क्यों हो
रहा है? इसका उत्तर तो चर्च को ही ढूंढ़ना होगा। क्या छलकपट और फरेब के
बल पर मत परिर्वतन की अनुमति देकर कोई समाज अपने आप को नैतिक और सभ्य
कहला सकता है?
किन्तु अब एक अहम प्रश्न यह है कि आखिर कब तक हम, हमारी सरकारें और
मजबूत लोकतंत्र के अन्य प्रहरी धर्मांतरण से राष्ट्रांतरण की ओर बढते इस
षढयंत्र पूर्वक चालाए जा रहे अभियान को यूं ही चलने देंगे और अपनी आत्मा
के साथ खिलवाड को सहन करते रहेंगे। वर्तमान परिपेक्ष में किसी राजनेता से
तो इस सम्बन्ध में आशा करना बेमानी सी बात लगती है। हां, न्याय की देवी
के आंखों की पट्टी यदि खुल जाए तो शायद मेरे भोले भाले वनवासी, गिरिवासी
व गरीव भरतवंशी का भाग्योदय संभव है।