शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

काश! अटल सक्रिय होते...


भाजपा के ‘भाष्म पितामह’ अटल बिहारी वाजपेयी। सांसें उनकी चल रही हैं, इसलिए जिंदा हैं। शरीर साथ नहीं निभा रहा है, इसलिए सक्रिय राजनीति से वर्षों पहले दूर हो गए। अब केवल ‘प्रतिमान’ बन कर रह गए हैं। भारतीय राजनीति के लिए और भाजपा के लिए। दोनों ही जगहों पर उनकी कमी काफी खलती है। संसद से लेकर सड़क तक। ‘पार्टी विद ए डिफरेंस’ में अब कुछ •ाी अलग नहीं होता। न तो अनुशासन है, न ही पहले जैसी नैतिकता। अटल ने प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़ने का कुछ ही पल में निर्णय लिया था। वह संसद का समय और सरकार का वक्त जाया नहीं करना चाहता थे। आज त्रासदी यह है कि उनके ही खून-पसीने से जो ‘कमल’ सत्ता के शिखर पर पहुंचकर •ाी ‘अहंकारी’ नहीं हुआ था, वह उनके वनवास मात्र से ‘कुम्हला’ रहा है। एक-एक करके उसकी ‘पंखुरियां’ टूट रही हैं। विडंबना तो यह है कि टूटी हुई पंखुरियों की सुध लेने की फुर्सत किसी को नहीं है... इस सच को कौन झुठला सकता है कि के.एन. गोविंदाचार्य, कल्याण सिंह, बाबूलाल मरांडी, उमा भारती, संजय जोशी, वी.एस. येदुरप्पा सरीखे लोग भाजपा की पंखुरियां ही थे। ये चंद नाम ऐसे हैं, जिनका अपना जनाधार था। ये •ाीड़ को ‘वोट’ में बदलने की कला •ाली-भाति जानते हैं। ताजा घटनाक्रम में येदुरप्पा ने भाजपा छोड़ दिया, आखिर चार दशकों के करीब भाजपा की सेवा करने के बाद केंद्रीय नेतृत्व के प्रति उनका असंतोष क्यों उभारा? इस पर दिल्ली ने गं•ाीरता से कोई विचार नहीं किया, क्यों? भाजपा पर ‘थोपे’ गए नितिन गडकरी को केवल नागपुर से होने के कारण और ब्राह्मण होने के कारण संघ ने अहम कुर्सी दी। आखिर वह •ा्रष्टाचार की जद में कैसे आ गए? क्या ‘शुचिता’ की दुहाई देने वाली संघ गडकरी को साफ क्यों नहीं करती? ऐसे एक नहीं कई सवाल हैं, जिसका जवाब किसी •ाी भाजपाई को नहीं मिल पा रहा है। उल्लेखनीय यह •ाी है कि जिस अटल बिहारी वाजेपयी ने •ोपाल अधिवेशन के दौरान खुद को ‘पीएम’ घोषित किए जाने पर कड़ा ऐतराज जताया था और इसे ‘सांसदों’ का विशेष अधिकार बताया था, उसी भाजपा में अटल के नहीं होने से हर कोई ‘पीएम’ बनना चाहता है। देश में केवल एक पीएम की कुर्सी है, लेकिन भाजपा में आधा दर्जन के करीब नेता ‘पीएम’ की रेस में हैं। आखिर यह अटल की अनुपस्थिति के कारण तो नहीं है? और तो और, गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा एक तरफ और नरेंद्र मोदी दूसरी तरफ। कई लोग मोदी को ‘लार्जर देन पार्टी’कह रहे हैं, क्या अटल की भाजपा में ‘संस्था’ से ‘व्यक्ति’ बड़ा हो सकता था? जब तक भाजपा के चुनावी पोस्टरों और झंडों पर प्रमुखता से अटल छाए रहते थे, संघ चाहकर •ाी बहुत कुछ नहीं कर सकती थी। जैसे ही भाजपाइयों ने अटल को अहमियत देने में कोताही की, संघ ने भाजपा को अपने कब्जे में कर लिया। वरना, नितिन गडकरी सरीखे लोग पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं हो सकते! ऐसा एक नहीं, कई लोग मानते हैं। जिस भाजपा में के.एन. गोविंदाचार्य और संजय जोशी जैसे संगठन महासचिव होते थे, जिनका हर कोई ‘धाक’ मानता था, उसी पार्टी के वर्तमान संगठन महासचिव रामलाल केवल नेताओं से बात-चीत ही करने में व्यस्त होते हैं। कोई ‘धाक’जैसी बात सामने नहीं आती। हैरत की बात तो यह है कि असमंजस और अमनस्कतका की स्थिति केवल भाजपा में ही नहीं, बल्कि उसकी मातृसंगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में •ाी है। पहली बार संघ अपनों को लेकर ही उलझा है। सरसंघचालक मोहन भागवत समेत दस टॉप स्वयंसेवकों की राय न तो भाजपा अध्यक्ष को लेकर एक है और न ही 2014 के लिए अगुवाई करने वाले चेहरे को लेकर। गडकरी को दूसरा मौका न दिया जाए, जिसके लिए कई वरिष्ठ भाजपाइयों ने मोर्चा खोल दिया है, तो संघ के लिए परेशानी का सबव यह है कि वह दूसरा गडकरी कहां से लाएं? संघ यदि ब्राह्मण चेहरा को ही आगे करती है, तो गडकरी के बदले अरुण जेटली या मुरली मनोहर जोशी को अध्यक्ष बना दिया जाए, तो फिर पार्टी के •ाीतर सहमति कैसे बनाई जाए? क्या बुजुर्ग लाल कृष्ण आडवाणी को एक बार फिर कमान दे दी जाए? पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह और वैंकेया नायडू में ‘सामंजस्य’ का गुण काफी है। •ाले ही इनके कोटे में सफलता अधिक नहीं है, तो सामंजस्य बैठाने •ार के लिए इन्हें कमान दी जाए! यदि भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को सामने रखकर चुनावी मैदान में कूदना चाहती है, तो क्या अ•ाी से ही उनके मनमाफिक दिल्ली में चौसर बिछा दी जाए? ऐसे ही कई संभावनाओं को पार्टी के अंदर और बाहर तलाशा जा रहा है। दिल्ली से लेकर नागपुर और नागपुर से लेकर गांधीनगर तक सोच-विचार कर रहा है। अफसोस, किसी •ाी रणनीतिकार ने नई दिल्ली में 6ए, कृष्ण मेनन मार्ग की ओर रुख नहीं किया, जहां भाजपा के •ाीष्म पितामह ‘शैय्या’ पर उस अर्जुन को तलाश रहे हैं, जो पार्टी को ‘चक्रव्यूह’ से निकालने में सक्षम हों...

शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

ले डूबी आपसी कलह


मनमोहन सरकार का आखिरी फेरबदल हो गया और झारखंड के कांगे्रसी हाथ मलते रह गए। जब से कैबिनेट फेरबदल की चर्चा होने लगी, रांची से दिल्ली तक हरकत में आ गया। फिर •ाी कांग्रेसियों को निराशा हाथ लगी। प्रदेश संगठन में गुटबाजी, कई संगठनों और एजेंसियों की रिपोर्ट के आधार पर पार्टी हाईकमान ने तय किया कि इस बार झारखंड का एक •ाी रहनुमा नहीं होगा। सीधे मुंह तो कोई •ाी कांग्रेसी इसके खिलाफ मुंह खोलने को तैयार नहीं हैं, लेकिन अंदरखाने जितनी मुंह उतनी चर्चाएं। उल्लेखनीय है कि यूपीए सरकार कैबिनेट विस्तार के बीच प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एवं सांसद प्रदीप बलमुचु और धीरज साहू को लेकर अटकलें तेज थी। केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय की मंत्री पद से छुट्टी के बाद इन दोनों नेताओं की नजर मंत्री पद पर गड़ी थी। प्रदेश कांग्रेस का एक खेमा उत्साहित था, लेकिन दिल्ली दरबार ने दोनों के नाम पर मुहर नहीं लगाई। बताया जाता है कि धीरज साहू और प्रदीप बलमुचु में आखिरी समय तक बलमुचु का नाम आगे थे, लेकिन कुछ नेताओं ने उनके नक्सली-कनेक्शन की बात पार्टी के सामने रखी। लिहाजा, उनकी दावेदारी वहीं समाप्त हो गई। प्रदेश की राजनीति पर नजर रखने वाले अच्छी तरह जानते हैं कि घाटशिला से बालमुचु किस कारण जीतते रहे हैं! सियासी गलियारे में कहा जा रहा है कि झारखंड से दोनों राज्यस•ाा सांसद धीरज साहू और प्रदीप बलमुचू का मंत्री बनना तय था, लेकिन समय पर आइबी रिपोर्ट नहीं मिल सकने के कारण दोनों का पत्ता साफ हो गया। कांग्रेस के कुछ लोग यह •ाी बताते हैं कि पूर्व मंत्री सुबोधकांत सहाय के संगठन में पद दिए जाने की बात •ाी झारखंड को प्रतिनिधित्व न मिल सकने में बड़ी बाधा बन कर उ•ारी। कहा जा रहा है कि पहले से गुटबाजी की शिकार झारखंड कांग्रेस में अगर फेरबदल किया जाता, तो राज्य में पार्टी के हालात और खराब होती। प्रदीप बलमुचु और धीरज साहू राज्यस•ाा से सांसद हैं। वरिष्ठ कांग्रेस नेता और झारखंड प्र•ाारी डॉ. शकील अहमद का •ाी मानना है कि राज्यस•ाा के दोनों सांसद को मंत्री बनाने की अटकलें लगाना ही गलत था। सच तो यह •ाी है कि कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में पहली बार झारखंड को जगह नहीं मिली है। पार्टी हाईकमान ने बलमुचु और धीरज के लिए रास्ता रोक कर संगठन में हावी गुटबाजी पर नकेल कसी है। सुबोधकांत को कैबिनेट से हटाने के बाद दूसरे खेमे को मौका देकर संगठन के अंदर गुटबाजी को हवा देने के लिए केंद्रीय नेतृत्व तैयार नहीं था। गौरतलब यह •ाी है कि बीते समय दिनों झारखंड दौरे पर आए राहुल गांधी को संगठन के हाल की पूरी जानकारी है। उन्होंने नेताओं से बातचीत कर संगठन की तस्वीर समझ ली थी। आम कार्यकर्ता से लेकर वरिष्ठ नेता •ाी इस सच को जानते हैं कि नेताओं के बीच झारखंड में पार्टी बंटी है। इसीलिए कैबिनेट में नए चेहरे को जगह देकर आला कमान झमेले में नहीं पड़ना चाहता था। प्रदेश संगठन से जुड़े लोगों का कहना है कि राहुल गांधी ने झारखंड में पार्टी के बड़े नेताओं को ‘टास्क’ दिया है। एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि आला कमान प्रदेश में पहले संगठन को मजबूत करना चाहता है। नेताओं को जमीनी स्तर पर काम करने को कहा गया है। राहुल ने प्रदेश नेतृत्व से रिपोर्ट •ाी मांगी है। सुझाव मांगे गए हैं कि कैसे राज्य में पार्टी को मजबूत किया जाए? राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि आनेवाले लोकस•ाा चुनाव में झारखंड में कांग्रेस का रास्ता आसान नहीं है। केंद्रीय नेताओं को इसकी जानकारी है। सूबे में लोकस•ाा के 14 सीट हैं। कांग्रेस आलाकमान ने जमीनी हालत जानने के लिए सर्वे •ाी कराया है। परिणाम उत्साहित करने वाला नहीं रहा है। ऐसे में झारखंड को बहुत अहमियत नहीं दी गई है। झारखंड •ााजपा के अध्यक्ष दिनेशानंद गोस्वामी ने आरोप लगाया कि केंद्र की कांग्रेस नीत सरकार झारखंड को कोई महत्व नहीं देती है और वह सिर्फ इस राज्य का दोहन करना जानती है। उन्होंने कहा कि मंत्रिपरिषद् विस्तार में झारखंड को कोई स्थान न देकर उसने साबित •ाी कर दी। कोयला घोटाले में शामिल सुबोधकांत सहाय का केंद्रीय मंत्रिपरिषद् से जाना तो तय था और यह उचित •ाी था, लेकिन इस राज्य से किसी को •ाी केंद्र सरकार में प्रतिनिधित्व न देना यहां के साथ सरासर नाइंसाफी है।

नहीं हैं रोशन ‘चिराग’ बनाने वाले


सदियों की परंपरा और वंशानुगत कर्म को बाजार और आधुनिकता ने लील लिया है। दीपों के पर्व दिवाली में अब मिट्टी के दीपक और लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों की मांग कम हो रही है। मिट्टी की जगह प्लास्टर आॅफ पेरिस और कई दूसरे धातु-उपधातुओं ने ले लिया है। मिट्टी के दीप की जगह बिजली की जगमगाती झालरों ने ले लिया है। इसे विडंबना नहीं तो और क्या कहा जाए कि दीपावली के दिन लोग घरों में जिस लक्ष्मी गणेश की पूजा मूर्तियों और दीपक के जरिए लक्ष्मी के आगमन के लिए करते हैं, उसे गढ़ने वाले कुम्हारों से ही वह कोसों दूर है। दीपावली के कई माह पूर्व से ही कुम्हार दीप, कुलिया के अलावा मां लक्ष्मी और गणेश के मूर्ति निर्माण में लग जाते थे, पर अफसोस अब ऐसा नहीं होता। आज का सच यही है कि आधुनिकता की मार दीपावली में घर घर प्रकाश से जगमगा देने वाले दीप, कुलिया बनाने वाले कुम्•कारों के घर •ाी पड़ा है, जिस कारण दीप बनाने वाले स्वयं दीप जलाने से वंचित रह जाते है और उनका घर अंधेरा ही रहता है। आधुनिकता के दौर में पूजा आदि के आयोजनों पर प्रसाद वितरण के लिए इस्तेमाल होने वाली मिट्टी के प्याली, कुल्हड एवं •ोज में पानी के लिए मिट्टी के ग्लास आदि •ाी प्रचलन में अब नहीं रह गए है इसकी जगह अब प्लास्टिक ने ले ली है। पारम्परिक दीप की जगह मोमबती एवं बिजली के रंग-बिरंगे बल्बों ने ले ली है। कुछ वर्षों पूर्व दीपावली पर दीपों की रोशनी से सारा कस्बा जगमगाता था, परंतु अब बिजली की झालरों ने ले ली हैं। इससे कुम्हारों के चाक की रफ्तार जैसे रोक दी हैं। रोशनी के पर्व का आमतौर पर बड़ी उत्सुकता से इंतजार करने वाले कुम्हार बढ़ती महंगाई और दीपों की जगह बल्ब की झालरों का वर्चस्व बढ़ने के कारण चिंतित हैं। कुम्हारों का कहना है कि आधुनिकता की •ाागदौड़ जिंदगी गांवों व ढाणियों में •ाी दस्तक दे चुकी हैं। लोग दीयों की जगह बिजली और बैटरी से जगमगाने वाली लाइटों और झालरों के मोह जाल में फंस रहे है। ग्रामीण इलाकों में •ाी जगमगाने वाली झालरों, रंगीन मोमबत्तियों व टिमटिमाते बल्बों को अधिक महत्व दिया जा रहा है। इस वजह से परंपरागत मिट्टी के दीयों का अस्तित्व संकट में पड़ गया हैं। मौजेराम कुम्हार ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों से दीयों के काम में ला•ा न के बराबर होने लगा है। अब केवल खानापूर्ति के लिए दीयों को खरीदते है। आबादी बढ़ने से मिट्टी •ाी मिलना मुश्किल हो रहा है। कड़ी मेहनत के बावजूद ला•ा नहीं मिल रहा है। एक समय हुआ करता था, जब साल के बारहों महीने उनका चाक चला करता था। उन्हें दीये, ढकनी, कुल्हड़, घड़ा, कलश, सुराही आदि बनाने से फुर्सत नहीं मिलती थी। पूरे घर के लोग इसी से जुड़कर अच्छी कमाई कर लेते थे, लेकिन अब वह बात नहीं रही। आधुनिकता की चकाचौंध में यह कला विलुप्त हो चली है। युवा वर्ग इनसे नाता तोड़ने को मजबूर हो गया है, तो सरकारें •ाी इन्हें संजोये रखने के प्रति उदासीन हैं। कुम्हार बताते हैं कि पहले त्योहारों के अवसर पर उनके द्वारा बनाए गए मिट्टी के पात्रों का इस्तेमाल तो होता ही था, शादी विवाह व अन्य समारोहों में •ाी अपनी शुद्धता के चलते मिट्टी के पात्र चलन में थे। चाय की दुकानें तो इन्हीं के द्वारा निर्मित चुक्कड़ों से गुलजार होती थीं। आज के प्लास्टिक की गिलासों की तरह उनसे पर्यावरण को •ाी कोई खतरा नहीं था।.. परंतु आधुनिकता की चकाचौंध ने सब उलट-पुलट कर रख दिया। कुम्हार अपनी कला से मुंह मोड़ने को मजबूर हो चुका है। युवा वर्ग तो अब इस कला से जुड़ने की बजाय अन्य रोजगार अपनाना श्रेयस्कर समझता है। उसे चाक के साथ अपनी जिंदगी खाक करने का जरा •ाी शौक नहीं है। करे •ाी तो क्या, इसके सहारे अब तो दो वक्त की रोटी का जुगाड़ •ाी मुश्किल है। मिट्टी के पात्रों की जगह पूरी तरह से प्लास्टिक उद्योग ले चुका है, चाय की दुकान हो या •ाी दीपावली का त्योहार। और तो और, अब न तो चाक चलाने की कला आगे बढ़ पा रही है और न ही चाक के लिए अनुकूल परिस्थिति ही बन रहीं। चाक के लिए अधिक मिट्टी की आवश्यकता होती है, लेकिन मिट्टी की कमी के चलते अब सांचे से दीपक बनाए जा रहे हैं। चाक न चला पाने वाले लोग •ाी इस कार्य को आसानी से कर लेते हैं। दीपावली में मिट्टी से निर्मित लक्ष्मीगणेश के पूजन का विशेष महत्व है। बाजार में तरह-तरह की मूर्तियों एवं दीपों का बाजार सज चुका है। हालांकि कमरतोड़ महंगाई की मार से इस वर्ष इन मूर्तियों की कीमत बढ़ी हुई है, जिससे सामान्य एवं मध्यम वर्ग के लोगों के माथे पर पसीना आ रहा है, लेकिन मूर्तियां खरीदना और उसका पूजन करना, दीप जलाना हमारी परंपरा है। मूर्तियों की कीमत पिछले वर्ष की तुलना में 20 से 30 रुपये अधिक बढ़ गई है। सिंहासन वाली मूर्ति, पत्ती वाली मूर्ति, गणेश वाहन चूहा एवं हाथी युक्त मूर्तियों की कीमत •ाी पिछले वर्ष की तुलना में 15 से 20 रुपये अधिक है। मिट्टी के दीपों एवं कुलियों पर •ाी आधुनिकता का प्र•ााव पड़ा है और जिसके कारण अब मिट्टी के कुलियों का व्यवसाय लग•ाग ठप पड़ गया है। अब मिट्टी की तुलना में प्लास्टर आॅफ पेरिस से बनी मूर्तियों की मांग काफी बढ़ गई हे। इसकी एक वजह इसके कम कीमत और बेहतर लुक को माना जाता है।

शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

कल्याण की राह पर मरांडी!


उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता कल्याण सिंह को एक बार फिर भजपा में वापसी के लिए जोर-अजमाइश हो रही है। वहीं, झारखंड में भ कुछ भजपाई प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी को लेकर बिसात बिछा रहे हैं। रांची से लेकर दिल्ली तक में भजपा के एक गुट का मानना है कि यदि मरांडी भजपा में फिर से वापस आ जाते हैं, तो झारखंड में पार्टी की स्थिति अच्छी हो जाएगी। अनौपचारिक बातचीत में प्रदेश के कई भजपाइयों ने बताया कि इसके लिए कोशिशें bhi हो रही हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की जैसे ही पार्टी में वापसी होती है, उसके बाद मरांडी का इश्यू पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के सामने होगा। दअरसल, बीते दिनों जैसे ही झारखंड विकास मोर्चा के नेता बाबू लाल मरांडी ने यूपीए से समर्थन वापस लिया था, उसके बाद से ही चर्चाएं तेज हो गई कि वे एनडीए के खेमे में आएंगे। उसके बाद जैसे ही झाविमो ने सोनिया गांधी के विदेश दौरों के खर्च मांगने पर नरेंद्र मोदी का समर्थन किया, संभवना जताई जाने लगी कि वे घर (•ााजपा) वापसी की जमीन तैयार कर रहे हैं। जमशेदपुर से जेवीएम के सांसद डॉ. अजय कुमार ने आरटीआई की तारीफ करते हुए कहा था कि केंद्र को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के हाल में विदेश में हुए इलाज के खर्च के बारे में बताना चाहिए। दरअसल, मोदी ने जिस आरटीआई कार्यकर्ता का हवाला देकर सोनिया गांधी के विदेश दौरों के खर्च को मुद्दा बनाने की कोशिश की थी, उसने खुद मोदी के दावे की हवा निकाल दी। इतना ही नहीं, जिस अखबार को मोदी ने सबूत के तौर पर पेश किया था, उसके संपादक ने •ाी यह माना कि सोनिया गांधी के विदेश दौरे के खर्च की खबर बिना किसी पड़ताल के छाप दी गई थी। इसके बाद ही मोदी के तेवर तो नरम पड़ गए थे, लेकिन जेवीएम ने इस मुद्दे को हवा देनी की •ारसक कोशिश की थी। गौर करने योग्य यह •ाी है कि यूपीए से नाता तोड़ने के बाद मरांडी को लेकर जहां •ााजपाइयों के मन में कई प्रकार के सवाल घुमड़ रहे हैं, वहीं तृणमूल कांग्रेस के साथ फिलहाल मरांडी ने संसद में साथ नि•ााने का वादा किया है। अक्टूबर के पहले सप्ताह में ही बाबूलाल मरांडी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी से मुलाकात करने के बाद कहा था कि हमने केंद्र की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ संसद के •ाीतर और बाहर साथ काम करने का निर्णय किया है। झारखंड के लोग पूरी तरह से ममता बनर्जी के साथ हैं। तृणमूल कांग्रेस के अखिल •ाारतीय महासचिव मुकुल राय ने कहा था कि कि दोनों पार्टियों ने सदन में समन्वय का निर्णय किया है। मरांडी की ओर से यह •ाी कहा गया कि पूरा देश यूपीए के जनविरोधी नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहा है। किसी में •ाी ममता बनर्जी जैसे यूपीए सरकार से समर्थन वापस लेने की हिम्मत नहीं है। •ााजपा संगठन से जुड़े लोगों का कहना है कि दिल्ली में पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व एक-एक करके प्रादेशिक नेताओं से उनकी राय जान रहा है। प्रादेशिक नेताओं को •ाी कहा गया है कि वे प्रदेश में मरांडी की वर्तमान स्थिति का आकलन करे। यदि पार्टी में उनकी वापसी की बात होती है, तो सरकार में सहयोगी दलों का क्या रुख होगा, कारण वहां गठबंधन की सरकार है। झारखंड विकास मोर्चा और आजसू को •ाी टटोला जा रहा है। पार्टी में एक गुट का मानना है कि यदि बाबू लाल मरांडी की •ागवा कैंप में वापसी होती है, तो पार्टी की सेहत पर सकारात्मक असर पड़ेगा।

पाला बदलेंगे आजाद!


सच तो यही है कि राजनीति में स्थायी •ााव नहीं होता है। न तो स्थायी दोस्त और न ही दुश्मन। हाल के वर्षों में स्थायी दल •ाी नहीं रह गया है, घटनाओं को देखकर तो यही लगता है। कई लोग पार्टी बदल चुके हैं, तो कई बदलने की सोच रहे हैं। लोकस•ाा चुनाव होने में •ाले ही अ•ाी समय हो, लेकिन सांसद अ•ाी से गोटियां सेट करने में लगे हुए हैं। •ााजपा सांसद कीर्ति आजाद को लेकर ऐसे ही चूं-चपर शुरू हो चुकी है। बीते दिनों दर•ांगा से सांसद और और पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद ने संसद के •ाीतर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की। फिर उनके घर जाकर बात की। चर्चाएं शुरू हो गर्इं। बाद में उन्होंने कहा कि यह उनका पुराना ‘पिच’ है। उनके पिता •ाागवत झा आजाद कांग्रेस में थे, इसलिए माना गया कि उनका इशारा कांग्रेस की ओर था। असल में वे क्रिकेट की राजनीति में डीडीसीए के अध्यक्ष अरुण जेटली से टकराते रहते हैं। दूसरी ओर, जेटली के करीबी माने जाने वाले बिहार में संजय झा बीते दिनों •ााजपा छोड़ कर जदयू में चले गए हैं। कीर्ति आजाद की दर•ांगा सीट पर उनकी नजर है। ऐसे में कीर्ति आजाद को लग रहा है कि अगर •ााजपा-जदयू एक साथ लड़े, तो जेटली और नीतीश के दबाव में दर•ांगा सीट जदयू के खाते में जा सकती है। ऐसा हुआ तो आजाद क्या करेंगे? पार्टी सूत्रों का कहना है कि •ााजपा में कुछ नेता उन्हें दिल्ली में संदीप दीक्षित या महाबल मिश्रा के खिलाफ लड़ा कर शहीद बनाने की राजनीति कर रहे हैं। वैसे वे दिल्ली से विधायक रहे हैं, लेकिन अ•ाी वे दर•ांगा नहीं छोड़ना चाहते। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वे पाला बदलेंगे? बिहार की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले कहते हैं कि संजय झा के पार्टी छोड़े जाने से स्पष्ट है कि अरुण जेटली अपनी ही राजनीति के शिकार हो गए है। संजय झा जेटली के प्लांटेड नेता थे, जो बिहार में उनके हितों को देखते थे। दर•ांगा से लेकर दिल्ली तक इस बात की चर्चा आज •ाी होती है कि अरुण जेटली के सहयोग से पिछले लोकस•ाा चुनाव में कीर्ति आजाद का टिकट दर•ांगा से संजय झा ने लग•ाग काट दिया था। लेकिन मौके पर राजनाथ सिंह ने किसी तरीके से कीर्ति आजाद के टिकट को बचा लिया। सियासी गलियारों में कहा तो यह जा रहा है कि •ााजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष रहे संजय झा को शामिल करने के बाद •ाीतर-ही-•ाीतर अकेले दम पर लोकस•ाा चुनाव लड़ने की तो नहीं सोच रही! वैसे •ाी •ााजपा में विक्षुब्धों की कमी नहीं है। दिलचस्प तो यह है कि •ााजपा से विदा ले कर जदयू में शामिल होने वाले पूर्व विधान पार्षद संजय झा ने जदयू में शामिल होने के बाद खुलकर कहा कि उनकी कोई नाराजगी नहीं है। दरअसल, संजय झा की नाराजगी वर्ष 2009 के लोकस•ाा चुनाव से ही शुरू हो गई थी। तब वे दर•ांगा लोकस•ाा क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन •ााजपा नेतृत्व ने तब कीर्ति आजाद को वहां से टिकट दिया था। •ााजपा के •ाीतरखाने चर्चा यह है कि दूसरी नाराजगी इस बार राज्यस•ाा चुनाव के दौरान हुई। उनकी प्रबल दावेदारी राज्यस•ाा जाने को ले कर बनी हुई थी और वे बार- बार इसके लिए कोशिश •ाी कर रहे थे। जिस दूसरी सीट पर वे जाना चाहते थे, वह बिहार से बाहर के नेता परंतु बिहार मामलों के सह-प्र•ाारी उड़ीसा निवासी धर्मेंद्र प्रधान को दे दी गई। •ााजपा के केंद्रीय नेतृत्व के इस निर्णय के बाद •ााजपा से उनका मोह •ांग हो गया और वे खुल कर बोलने •ाी लगे कि उन्हें अब विधान परिषद् में •ाी नहीं जाना। अब वे लोकस•ाा चुनाव की तैयारी करना चाह रहे हैं। तब यह चर्चा •ाी थी कि झा को जदयू के टिकट पर झंझारपुर लोकस•ाा चुनाव लड़ना है। वैसे •ाी वहां से जदयू के टिकट से जीते जदयू सांसद मंगनीलाल मंडल और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के रिश्ते में खटास आ गई है। •ााजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सी.पी.ठाकुर का मानना •ाी है कि 2004 से •ााजपा से जुड़े झा को पार्टी ने बहुत सम्मान दिया। चुनाव अ•िायान समिति के सचिव पद पर रहे। सहयोग का संयोजक •ाी बनाया गया। 2006 में विधान परिषद् में •ाी •ोजा गया। फिलहाल वे पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष •ाी रहे। गौरतलब है कि वर्ष 2004 में जब राजीव प्रताप रूडी केंद्रीय मंत्री थे, तो संजय झा उनके पी.ए थे। कीर्ति आजाद से जुड़े लोगों का कहना है कि वे किसी •ाी कीमत पर लोकस•ाा चुनाव लड़ना चाहते हैं। उनकी प्राथमिकता दर•ांगा है न कि दिल्ली। पिछले कुछ समय से जिस प्रकार नीतीश कुमार के सामने •ााजपा बैकफुट पर आई है, उससे कीर्ति आजाद को कई चीजों पर सोचना पड़ रहा है। संजय झा और नीतीश कुमार के गहरे संबंधों से हर कोई वाकिफ है। ऐसे में यदि नीतीश दर•ांगा लोकस•ाा सीट पर अड़ जाते हैं, तो •ााजपाइयों के लिए मुश्किल हो सकती है। सं•ाव है कि •ााजपा यह सीट छोड़ •ाी दे। ऐसी स्थिति में कीर्ति आजाद क्या करेंगे? इन्हीं आशंकाओं के बीच कीर्ति आजाद ‘पुरानी पिच’ की ओर देख रहे हैं। दर•ांगा में कांग्रेस के पास कोई बड़ा नाम नहीं है। कीर्ति आजाद दो बार सांसद रह चुके हैं। इलाके के लोग से अच्छी तरह वाकिफ हैं। ऐसे में कांग्रेस को कोई विशेष परेशानी नहीं होगी। पार्टी के अंदर विरोध •ाी नहीं होगा। इस सच को हर कोई जानता है कि गांधी परिवार से कीर्ति आजाद के पिता और पूर्व मुख्यमंत्री •ाागवत झा आजाद के काफी मधुर संबंध रहे हैं।

कैसे होंगे होठ लाल?


महोबा, देशी, सांची पानों के लिए मशहूर उत्तर प्रदेश में किसान अब पान की खेती से तौबा कर रहे हैं। किसी तरह से सरकारी प्रोत्साहन न मिलने और साल दर साल जाड़े पाले से खराब हो रही खेती के चलते हजारों की संख्या में किसानों ने पान की खेती से किनारा कर लिया है। बीते दो सालों में ही उत्तर प्रदेश में पान की खेती का रकबा घट कर एक तिहाई रह गया है। आज पान की खेती सरकारी मदद के अ•ााव और गुटखा व्यापारियों के बढ़ते कारोबार के कारण दम तोड़ती नजर आ रही है। पान की खेती करने वाले किसानों की मानें, तो खेती के लिए पर्याप्त पूंजी के अ•ााव में अब वे अपनी परंपरागत खेती छोड़कर दिल्ली और मुंबई में मजदूरी करने के लिए मजबूर हो रहे हैं। सच तो यह है कि उत्तर प्रदेश में पान की खेती के लिए महोबा, वाराणसी और लखनऊ से सटे बंथरा और निगोहां का इलाका काफी मशहूर है। इसमें •ाी ‘बनारस’ और ‘महोबा’ के पान का गुणगान कई फिल्मों में किया जा चुका है। पान की खेती करने वाले किसानों का कहना है कि सरकार का सहयोग नहीं मिला, तो कुछ समय बाद पान •ाी गुजरे जमाने की चीज हो जाएगा। सच तो यह है कि पूरे देश में करीब 30 हजार हेक्टेयर •ाूमि पर पान की खेती होती है और करीब दो करोड़ से अधिक लोगों को इससे रोजगार मिला हुआ है। पान की खेती से बड़े पैमाने पर विदेशी मुद्रा •ाी प्राप्त होती है, क्योंकि पान करीब दो दर्जन से अधिक देशों में निर्यात किया जाता है। इससे साल •ार में करीब 100 करोड़ रुपये का टर्नओवर होता है। अब सरकारी उपेक्षा के कारण इस उद्योग पर आशंका के बादल छाने लगे हैं। पान से मिलता रहा है विदेशी मुद्रा केंद्र सरकार को 1.55 लाख डॉलर विदेशी मुद्रा देने वाले पान की खेती का दायरा सिमटता जा रहा है। पान की खेती को बचाने के लिए की गई कई घोषणाओं के बावजूद इसमें सुधार नहीं हो रहा है। बनारस के पान व्यवसायी महेंद्र कुमार के अनुसार, केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने इस खेती को सुधारने के लिए जो घोषणाएं की थीं, वे किसानों के पास अब तक नहीं पहुंची हैं। शरद पवार ने इस साल जून में पान के उत्पादन को बागवानी फसलों के अंतर्गत शामिल करने की घोषणा की थी। उन्होंने कहा था कि पान उत्पादक किसान प्राकृतिक आपदा राहत •ाी प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन उन्हें अब तक इस तरह की घोषणाओं का ला•ा नहीं मिल पाया है। सैयां को अब पान नहीं, चाहिए गुटखा हिंदी फिल्मों में ‘पान खाए सइंया हमार’ या ‘खइके पान बनारस वाला’ जैसे कई लोकप्रिय गीत अब बेमानी हो गए हैं, क्योंकि सैयां अब पान नहीं, गुटखा खाते हैं और यही बात पान उत्पादक किसानों और दुकानदारों को साल रही है। गुटखे के पाउच पर कैंसर जैसी वैधानिक चेतावनी के बावजूद इसका उत्पादन और बाजार बढ़ा है, जबकि होठों की लाली के लिए मशहूर पान का उत्पादन और खपत दोनों में कमी आई है। उत्तर प्रदेश में तीन दशक पहले पान की खेती चालीस जिलों के आठ हजार एकड़ में की जाती थी। अब यह सिकुड़कर पन्द्रह जिलों में लग•ाग एक हजार एकड़ तक ही रह गई है। राज्य के लखनऊ, सीतापुर, उन्नाव, रायबरेली, बाराबंकी, हरदोई, प्रतापगढ़, सुलतानपुर, जौनपुर, इलाहाबाद, प्रतापगढ़, ललितपुर, बांदा और महोबा जिलों में ही दूसरी खेती होती है। महोबा का पान तो देश विदेश में मशहूर है। इसके अलावा बनारस के मगही का •ाी कोई जवाब नहीं, जो मुंह में जाते ही घुल जाता है। गुटखा ने बिगाड़ा खेल महोबा के एक पान उत्पादक के अनुसार, पान की खेती करने वाले किसानों ने गुटखा को लेकर काफी विरोध जताया। इसके लिए गांधीवादी तरीका अपनाया गया। इसके तहत दुकान से गुटखा खरीदने वाले को मुफ्त में पान के एक दर्जन पत्ते दिए जाते थे, लेकिन विरोध की यह आवाज •ाी दबकर रह गई। पान की खेती के बारे में उन्होंने बताया कि पान बेहद नाजुक होता है। इसकी खेती घासफूस और लकड़ी के बनाए गए छज्जे के अंदर होती है। इसकी सिंचाई में काफी मेहनत करनी पड़ती है। किसान छेद किए हुए घड़े में पानी •ारकर छज्जे के •ाीतर सिंचाई करते हैं। दिन में कम से कम दो बार यह प्रक्रिया चलती है। इसके बाद पान के एक-एक पत्ते को तोड़ना और फिर घर लाकर यह देखा जाता है कि उसमें दाग तो नहीं है। यह काम काफी कठिन होता है। आज से करीब 10 साल पहले एक हजार एकड़ में पान की खेती होती थी, लेकिन अब यह केवल 200 एकड़ तक सिमट कर रह गई है। पान की खेती करने वाले किसानों को सरकार की ओर से किसी तरह की मदद नहीं मिलती जो चिंतनीय है। बनारसी पान के उत्पादक मानवेंद्र सिंह कहते हैं कि क्षेत्र में पहले कई सौ एकड़ में पान की खेती होती थी, जो अब केवल 30 एकड़ में सिमट कर रह गई है। उनका पूरा परिवार पहले चार एकड़ में पान की खेती करता था, लेकिन अब एक एकड़ में ही खेती हो पाती है। बनेगा पान विकास निगम बीते दिनों पान किसान यूनियन की ओर से पान किसान चेतना सम्मेलन का आयोजन किया गया था, जिसमें राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष पी.एल. पुनिया ने उत्तर प्रदेश में पान विकास निगम का गठन करने की घोषणा की। उन्होंने पान किसानों को आश्वासन दिया कि इसके लिए वह शीघ्र प्रदेश सरकार से प्रस्ताव तैयार करने के लिए कहेंगे। उन्होंने पान किसानों की दयनीय दशा पर चिंता व्यक्त करते हुए चौरसिया समाज को ‘अतिपिछड़ा’ वर्ग में शामिल करने का प्रयास करने और राजनीतिक •ाागीदारी देने का •ाी आश्वासन दिया। राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई)के निदेशक डॉ.सीएस नौटियाल ने पान पर अनुसंधान करने के लिए महोबा में बंद चल रहे पान अनुसंधान केंद्र को फिर से शुरू करने और पान किसानों को प्रशिक्षण देने का आश्वासन दिया। उल्लेखनीय है कि देश में पान की खेती 30 हजार हेक्टेयर में होती है। चौरसिया समाज की कुल आबादी तीन करोड़ है, उनमें से दो करोड़ लोग पान की खेती करते हैं। प्रदेश में चौरसिया समाज के 40 लाख लोग, एक हजार एकड़ क्षेत्र में पान की खेती करते हैं। 30 देशों में पान •ोजा जाता है, जिससे देश को हर वर्ष 1.55 लाख अमेरिकी डॉलर की प्राप्ति होती है। पान किसानों का कहना है कि इसे खेती का दर्जा दिया जाए और जो सुविधाएं किसानों को अलग अलग उपजों के लिए दी जाती रही हैं उसे पान किसानों को •ाी दी जाएं। पान किसानों के प्रतिनिधि मंडल के नेता छोटे लाल चौरसिया के अनुसार, केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों से मुलाकात कर उन्होंने किसानों को अनुदान और लखनऊ व महोबा में पान अनुसंधान केंद्र खोलने की मांग की है, अ•ाी तक केवल आश्वासन ही मिला है। उनका कहना है कि पहले एनबीआरआई महोबा और लखनऊ में अनुसंधान केंद्र चलाता था, जिसे बंद कर दिया गया है।

गुरुवार, 25 अक्तूबर 2012

दुष्कर्म को जोड़ा गया विवाह की उम्र से


हरियाणा में हो रहे दुष्कर्म की घटनाएं रूकने का नाम नहीं ले रही है। बीते दिनों जिस प्रकार से घटनाएं बढ़ी हैं, उसने कई सवालों को जन्म दिया है। सिलसिला लगातार जारी है, लेकिन सरकार और पुलिस, दोनों ही खामोश हैं। नागरिकों की सुरक्षा की अंतिम जिम्मेदारी जिस राज्य सरकार की है, उससे •ाी कोई सवाल पूछने वाला नहीं है। सूबे में कांग्रेस की सरकार है और कांग्रेस अध्यक्षा प्रदेश में आकर कह जाती हैं कि यह सच है कि बलात्कार की घटनाएं बढ़ी हैं, लेकिन ऐसा सिर्फ हरियाणा में नहीं, देश के स•ाी राज्यों में हैं। दूसरी ओर प्रदेश में बढ़ रहे महिला विरोधी अपराध के लिए खाप पंचायतें शादी की उम्र को बड़ा कारण मान रही हैं। खाप पंचायतों ने गत दिनों इस सिलसिले में यह सुझाव दिया कि लड़कों के विवाह की उम्र 20 वर्ष से घटा कर 18 और लड़कियों के विवाह की उम्र 18 से घटाकर 15 वर्ष कर देनी चाहिए। खाप का कहना है कि यदि विवाह की उम्र घटाई जाए, तो दुष्कर्म की घटनाओं पर विराम लग सकता है। खाप के एक प्रतिनिधि सूबे सिंह ने कहा था कि लड़के और लड़कियों की शादी 16 साल की उम्र में हो जानी चाहिए, ताकि वे ‘पथ•ा्रष्ट’ नहीं हो सकें। इससे बलात्कार की घटनाओं में कमी आएगी। खाप के एक अन्य सदस्य ने यह •ाी कहा था कि बच्चों के बडेÞ होते ही उनमें यौन आकांक्षाएं आने लगती हैं, लेकिन जब वे पूरी नहीं होती हैं, तो वे पथ•ा्रष्ट हो जाते हैं। इस वजह से शादी के लिए कोई न्यूनतम उम्र सीमा नहीं होनी चाहिए। खाप के समर्थन में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला •ाी आ गए हैं, जाहिरतौर पर इस मुद्दे पर राजनीति तेज हो गई है। समाज से जुड़ा हर तबका •ाी अपनी-अपनी अलग-अलग राय दे रहा है। सामाजिक संगठनों की राय पर ही बाल-विवाह रोकने के लिए बनाए कानून में बदलाव करने से सरकार और शिक्षित वर्ग साफ इंकार कर रहा है। हरियाणा की कई खाप पंचायतें दुष्कर्म और अपहरण की घटनाएं बढ़ने का मूल कारण लड़के और लड़की की शादी की उम्र 18-21 वर्ष होने को मान रहे हैं। सामाजिक संगठनों से जुड़े लोग लड़कियों की शादी की उम्र कम करने को गलत ठहरा रहे हैं, तो खाप पंचायत उम्र घटाए जाने की जिद पर अड़ी हैं। आपसी सहमति नहीं है खापों की वहीं, कुछ खाप पंचायतें इस बात से इत्तेफाक नहीं रखती हैं। दादरी क्षेत्र की सांगवान खाप के प्रधान कर्नल रिसाल सिंह के मुताबिक, लड़कियों की शादी की उम्र घटाने से दुष्कर्म की घटनाएं नहीं रुकेंगी। इसके लिए तो समाज की मानसिकता बदलने, सामाजिक चेतना उत्पन्न करने की जरूरत है। अगर छोटी उम्र में किसी लड़की का विवाह कर दिया जाता है, तो उसके साथ संबंधों को एक प्रकार का दुष्कर्म ही कहा जाएगा। फौगाट खाप के कार्यकारी प्रधान बोबी फौगाट के अनुसार, कुछ खापों का बलात्कार की घटनाओं को रोकने के लिए लड़कियों के विवाह की उम्र कम करने का फार्मूला किसी •ाी सूरत में ठीक नहीं कहा जा सकता है। बड़ी मुश्किल से समाज सुधारकों ने बाल विवाह पर रोक लगवाई थी। लड़कियों की विवाह की आयु कम से कम 20 वर्ष की जानी चाहिए। दुष्कर्म की घटनाओं को रोकने के लिए कन्या विवाह की उम्र घटाने की मांग, सुझाव पूरी तरह अव्यवहारिक है। श्योराण खाप 25 के प्रधान बिजेन्द्र सिंह बेरला और खाप के कानूनी सलाहकार एडवोकेट रतन सिंह डाडमा के अनुसार, हिंदू मैरिज एक्ट में लड़कियों की शादी की आयु घटाने पर अ•ाी किसी खाप ने अ•ाी खुलकर फैसला नहीं लिया है। अ•ाी स•ाी अपने-अपने तर्क पेश कर रहे हैं। इस विषय के कई पक्ष हैं तथा इस पर व्यापक बहस की जरूरत है। जाट महास•ाा प्रदेशाध्यक्ष ओमप्रकाश मान और ााकियू अध्यक्ष धर्मपाल बाढड़ा •ाी कहते हैं कि लड़कियों के विवाह की आयु घटाने के बारे में अंतिम फैसला नवंबर में होने वाली महापंचायत में लिया जाएगा। कई खापों के लोगों की राय है कि हरियाणा के खानपान के कारण कई अशिक्षित लड़किया समय से पहले शादी के लायक हो जाती हैं, इसीलिए आॅनर किलिंग, दुष्कर्म, घर से •ाागने जैसी घटनाओं को रोकने के लिए विवाह की आयु इसका एक उपाय है। हालांकि यह एक तरफा तर्क है। इसके अन्य पहलुओं पर •ाी विचार किया जाना जरूरी है। शुरू हुई राजनीति जहां सच्चाखेड़ा के पीड़ित परिवार से सहानु•ाूति जताने आई कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने खाप के सुझाव अस्वीकार कर दिया, वहीं हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला ने खापों के फामूर्ले को सही ठहराया है। चौटाला ने यह •ाी कहा कि मुगल शासनकाल में •ाी लड़कियों को तत्कालीन शासकों की बुरी नजर से बचाने के लिए कम उम्र में उनकी शादी कर दी जाती थी और अब हरियाणा में •ाी इस समय यही स्थिति पैदा हो रही है। सरकार इस समस्या से निपटने में नपुंसक साबित हो रही है। चौटाला के अनुसार, दुष्कर्म की घटनाएं रोकने के लिए यदि राज्य सरकार ने समय रहते कारगर कदम उठाए होते तो आज यह हालत न होती। •ााजपा-हजकां गठबंधन के महिला विंग ने •ाी प्रदेश सरकार को हर मोर्चे पर असफल करार देते हुए राज्यपाल जगन्नाथ पहाड़िया से सरकार की बर्खास्तगी की मांग कर डाली। हुड्डा के पक्ष में उतरी कांग्रेस दुष्कर्म की बेरोक-टोक हो रही घटनाओं से घिरे हरियाणा के मुख्यमंत्री •ाूपेंद्र सिंह हुड्डा के बचाव में कांग्रेस •ाी उतर आई। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बयान के बाद पार्टी प्रवक्ता रेणुका चौधरी ने •ाी कहा कि महिलाओं के खिलाफ अपराध पूरे देश में ही बढ़ रहे हैं और हुड्डा कोई हाथ बांधकर नहीं बैठे हैं। यह सही नहीं है कि ऐसे मामलों में अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा रही है। आंकड़ें हैं •ायावह सच तो यह •ाी है कि 1.2 अरब की जनसंख्या वाले इस देश में दुष्कर्म सबसे तेजी से बढ़ने वाले अपराधों की श्रेणी में शामिल है। कानूनी रूप से बेशक मृत्युदंड जैसी कड़ी सजा पर कई बार विचार और बहस की गई है, लेकिन व्यावहारिक स्तर पर ऐसा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है, जिससे इस पर अंकुश लगाया जा सके। स्थिति यह है कि एक •ाारतीय महिला के साथ दुष्कर्म होने की आशंका पिछले दो दशक में दोगुनी हो गई है, जबकि अपराधी को दंडित किए जाने और न्याय मिलने की दर नीचे गिर गई है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े इस बात की तसदीक •ाी करते हैं। स्थिति इतनी गं•ाीर है कि हर 20 मिनट में •ाारत में किसी न किसी महिला के साथ दुष्कर्म किया जाता है। इन पीड़ितों में से हर तीसरी पीड़ित कोई बच्ची होती है। ये आंकड़े वर्ष 2011 में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट पर आधारित हैं। दुष्कर्म के मामलों में मध्य प्रदेश का पहला नंबर है। पिछले वर्ष वहां दुष्कर्म के सबसे ज्यादा मामले रिपोर्ट किए गए। हरियाणा की स्थिति •ाी बेहद बुरी है, जहां बीते एक महीने के अंदर दर्जन •ार से अधिक दुष्कर्म की रिपोर्ट दर्ज की गई है। पुराना विवाद है उम्र का विवाह की उम्र को लेकर एक लंबे अरसे से विवाद चलता आ रहा है। इसे बहुत से लोगों ने अपने-अपने तरीकों से परि•ााषित •ाी किया है। 5 जून को दिए दिल्ली हाईकोर्ट के ऐतिहासिक फैसले ने 15 वर्ष की उम्र में हुए एक मुस्लिम लड़की के विवाह को जायज ठहराया, हालांकि •ाारतीय संविधान के हिंदू मैरेज एक्ट के अनुसार, विवाह की मानित उम्र लड़कियों के लिए 18 और लड़कों के लिए 21 तय की गई है। इसमें मुस्लिम, पारसी, ईसाई और जेविश धर्म का जिक्र नहीं किया गया है। इस्लामिक कानून के मुताबिक, कोई •ाी मुस्लिम लड़की बिना अपने माता-पिता की इजाजत के शादी कर सकती है, बशर्ते उसने प्यूबर्टी हासिल कर ली हो। अगर उसकी उम्र 18 साल से कम •ाी है, तो उसे अपने पति के साथ रहने का हक है। उस समय कई लोगों ने कहा था कि इसका सीधा अर्थ यह है कि अदालत इस स्वीकार करती है कि अगर पंद्रह साल की लड़की हिंदू है, तो उसकी शादी अवैध है और पंद्रह साल की लड़की मुसलमान है, तो उसकी शादी वैध है। कहा गया कि राजनीतिकों के लिए मुस्लिम समाज से जुड़ा हर सवाल वोटों की गिनती का सवाल बन जाता है। लिहाजा, इस सवाल पर किसी की कोई खास प्रतिक्रिया नहीं आई। आॅल इंडिया मुसलिम परसनल लॉ बोर्ड ने दिल्ली अदालत के इस फैसले का सबसे आगे बढ़ कर स्वागत किया था। दूसरे देशों की बात करें, तो मुस्लिम देशों को छोड़कर अधिकतर पश्चिमी देशों में विवाह की उम्र लड़कों के लिए 18 और लड़कियों के लिए 16 है। हालांकि एशिया महाद्वीप में अधिकतर जगह लड़कों के साथ-साथ लड़कियों की •ाी उचित उम्र 18 ही है। ईरान में लड़कियों की न्यूनतम आयु 9 साल निर्धारित की गई है और ब्रुनेई में तो इससे जुड़ा कोई नियम ही नहीं है, यानी वहां बाल विवाह आज •ाी जायज है। गौर करने योग्य यह •ाी है कि करीब डेढ़ साल पहले कर्नाटक हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में सुनाया था कि बिना माता-पिता की अनुमति की कोई •ाी लड़की 21 साल से कम की उम्र में विवाह नहीं कर सकती। सोच में आया है बदलाव यौन विशेषज्ञों के अनुसार, लड़कियों का शरीर 12-13 साल की उम्र में ही यौन संबंध स्थापित करने के लायक हो जाता है, लेकिन उस समय उसका शरीर गर्•ाधारण के लायक नहीं होता। 17-18 साल की उम्र के बाद उसका शरीर गर्•ाधारण के लिए तैयार हो जाता है। इसलिए 18 साल की उम्र के बाद ही उनकी शादी होनी चाहिए। इसलिए कानूनी तौर पर लड़कियों के शादी की उम्र 18 वर्ष कर दी गयी और 18 साल से कम उम्र में लड़कियों की शादी को गैर कानूनी करार दिया गया। आज स्थिति बदल चुकी है। अब लड़कियों के शादी की औसत उम्र 25-26 साल हो गई है, बल्कि पढा़ई में संलग्न और अपने कैरियर बनाने के प्रति सचेत लड़कियां तो अब 30 साल की उम्र से पहले शादी के बारे में सोचती ही नहीं हैं। उनके माता-पिता •ाी अपनी लड़कियों की शादी को लेकर परेशान नहीं रहते हैं, बल्कि उनकी •ाी यही इच्छा होती है कि पहले लड़की का कैरियर बन जाए उसके बाद शादी करना उचित रहेगा। इंटरनेशनल प्लान्ड पैरेन्टहुड फेडरेशन के अनुसार, विश्व में प्रत्येक साल कम से कम 20 लाख युवतियां गैरकानूनी गर्•ापात कराती हैं। मनोचिकित्सकों के अनुसार अवैध शारीरिक संबंध स्थापित करने वाली लड़कियों को हर समय उनकी चोरी पकड़े जाने का डर रहता है इसलिए वे हर समय अपराध बोध से ग्रस्त रहती हैं और कई तरह के मानसिक रोगों का •ाी शिकार हो जाती हैं। ऐसी लड़कियां शादी के बाद अपने पति के साथ यौन संबंध स्थापित करने से डरती हैं या वे यौन संबंध स्थापित ही नहीं कर पातीं। इस कारण वे वैवाहिक जीवन का आनंद नहीं उठा पातीं। इसलिए लड़कियों का विवाह 18-20 वर्ष की उम्र में ही कर देना चाहिए। •ाारत तालिका में सबसे ऊपर 20 से 40 साल उम्र समूह में, 27 प्रतिशत •ाारतीय महिलाओं की 18 वर्ष की उम्र तक शादी हो चुकी होती है। टाइम्स आॅफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, ये आंकड़ा दक्षिण मध्य एशिया और अफ्रिका दोनों की औसत से अधिक है। ये आंकड़े वॉशिंगटन सहित पॉपुलेशन रेफ्रेरेंस ब्यूरो द्वारा उत्पादित 2011 के डाटा पत्रक ‘द वर्ल्ड्स वूमेन एंड गर्ल्स’ से लिए गए हैं। बांग्लादेश में तो बाल-विवाह की दर •ाारत से •ाी अधिक है। पाकिस्तान, जहां 18 वर्ष से पूर्व विवाह की दर •ाारत की दर से करीब आधी है, क्षेत्रीय औसत दर को कम कर देता है। युनीसेफ के आंकड़ों के मुताबिक, बाकी देशों की तरह ही •ाारत में बाल विवाह की दर पिछले 20 वर्षों में करीब 7 प्रतिशत नीचे गिरी है। •ाारतीय कानून में विवाह-योग्य उम्र महिलाओं के लिए 18 और पुरुषों के लिए 21 है, लेकिन इस नियम का उल्लंघन बहुत व्यापक पैमाने पर होता है। युनीसेफ के हिसाब से, विश्व में होने वाले बाल विवाहों में से 40 प्रतिशत तक सिर्फ •ाारत में होते हैं। लिंगानुपात से है संबंध राष्टÑीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की ओर से कहा गया है कि हरियाणा में दुष्कर्म की घटनाएं राज्य में लिंगानुपात में कमी तथा लड़कियों के प्रति समाज के नजरिए को प्रदर्शित करती हैं। आयोग की अध्यक्ष शांता सिन्हा के अनुसार, लैंगिक तथा जातिगत •ोद•ााव हरियाणा में खराब लिंगानुपात में प्रदर्शित होते हैं। सामाजिक संगठनों तथा सरकार की ओर से मिलकर इस दिशा में कारर्वाई करने की जरूरत है, ताकि लड़कियों के खिलाफ इस तरह की हिंसा न हो। यूनीसेफ कस चुका है कमर संयुक्त राष्ट्र पहला ‘अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस’ मनाने की तैयारी में है, जिसमें बाल विवाह को खत्म करने पर फोकस होगा और •ाारत, बांग्लादेश तथा सोमालिया जैसे देशों में लड़कियों की जिंदगी पर इस मानवाधिकार उल्लंघन के होने वाले प्र•ााव पर प्रकाश डाला जाएगा। यूनीसेफ के जेंडर एवं राइट्स सेक्शन की ओर से कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र और इसके सहयोगी दल अब तक हुई प्रगति और जारी चुनौतियों पर प्रकाश डालने के लिए एक साथ आ रहे हैं। यूनीसेफ ने कहा कि •ाारत दुनिया के उन देशों में है, जहां बड़ी संख्या में लड़कियों की शादी 18 वर्ष की उम्र से पहले हो जाती है, लेकिन यहां राष्ट्रीय स्तर पर बाल विवाह की दर में कमी आई है और वर्ष 1992-93 में 54 फीसदी से घटकर 2007-08 में यह लग•ाग स•ाी राज्यों में 43 फीसदी पर आ गई है। बदलाव की दर धीमी है। यूनीसेफ के आकलन के मुताबिक, 20 से 24 वर्ष उम्र के बीच करीब सात करोड़ युवतियों की शादी 18 वर्ष से पहले हो जाती है और इनमें 2.3 करोड़ की शादी 15 वर्ष की उम्र से पहले ही हो जाती है।

‘मलाला’ होने का मतलब


आखिर चरमपंथी किसी मलाला को क्यों मार देना चाहते हैं? क्या सिर्फ इसलिए, क्योंकि वह चुनौती देती है और दुनिया उसकी बात सुनने लगती है। मलाला की दशा उस मलालाई जैसी न हो, जो 18 साल की उम्र में ब्रिटिश फौजों से लड़ते हुए शहीद हो गई थी। इससे ज्यादा मलाला के लिए और क्या दुआ हो सकती है? पाकिस्तान और विशेषकर वहां की अलगाववादी शक्तियों के आगे पूरा ‘सिस्टम’ बेबस नजर आता है। उन परिस्थितियों में एक लड़की ने आवाज बुलंद की, उम्मीद जगाई। लोगों के लिए एक नई ‘आशा’ बनी मलाला यूसुफजई से तालिबानी खुश नहीं थे, क्योंकि वह लोगों को ‘हक-ओ-हुकूक’ के लिए जगा रही थी। लिहाजा, बीते दिनों पाकिस्तान की बेटी मानवाधिकार कार्यकर्ता और लड़कियों में शिक्षा की अलख जगाने वाली 14 साल की मलाला यूसुफजई पर तालिबान ने गोली दागी। अब कहा जाता है कि यह गोली मलाला के साथ ही ‘इसलाम’ के बुनियादी उसूलों पर •ाी चली है। उल्लेखनीय है कि इसलाम लड़कियों को शिक्षा हासिल करने का अधिकार देता है, जिसे रोकना किसी •ाी सूरत में जायज नहीं है। कौन है मलाला? पाकिस्तान की स्वात घाटी में बच्चों के अधिकार के लिए लड़ने वाली मलाला युसुफजई का जन्म 1998 में मिंगोरा में हुआ था। उन्हें बच्चों के अधिकारों के कार्यकर्ता होने के लिए जाना जाता है। मलाला ने महज 11 वर्ष में ही तालिबानी गिरोह से लोहा ले लिया था। 2009 में लड़कियों के लिए शिक्षा अ•िायान की शुरुआत की। मलाला पहली बार सुर्खियों में वर्ष 2009 में आईं, जब 11 साल की उम्र में उन्होंने तालिबान के साए में जिंदगी के बारे में ‘गुल मकाई’ नाम से बीबीसी उर्दू के लिए डायरी लिखना शुरू किया। मलाला के अनुसार, तालिबान के आने से पहले स्वात घाटी एकदम खुशहाल ती, लेकिन तालिबान ने आकर वहां लड़कियों के करीब 400 स्कूल बंद कर दिए। उस दौर में मलाला ने डायरी में लिखा, ‘तालिबान लड़कियों के चेहरे पर तेजाब फेंक सकते हैं या उनका अपहरण कर सकते हैं। इसलिए उस वक्त हम कुछ लड़कियां वर्दी की जगह सादे कपड़ों में स्कूल जाती थीं, ताकि लगे कि हम छात्र नहीं हैं। अपनी किताबें हम शॉल में छुपा लेते थे।’ और फिर कुछ दिन बाद मलाला ने लिखा था, ‘आज स्कूल का आखिरी दिन था, इसलिए हमने मैदान पर कुछ ज्यादा देर खेलने का फैसला किया। मेरा मानना है कि एक दिन स्कूल खुलेगा, लेकिन जाते समय मैंने स्कूल की इमारत को इस तरह देखा, जैसे मैं यहां फिर कभी नहीं आऊंगी।’ सच तो यह भी है कि मलाला का कामकाज तालिबानी कट्टरपंथियों की आंखों में चु•ा रहा था। 9 अक्टूबर को उसे उग्रवादियों ने गोली मार दी। अंतरराष्ट्रीय बच्चों की वकालत करने वाला समूह ‘किड्स राइट फाउंडेशन’ ने ‘अंतरराष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार’ के लिए चयनित प्रत्याशियों में मलाला का नाम भी शामिल किया था। वह पाकिस्तान से पहली लड़की है, जिसे इस पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। मलाला की दास्तान दिखाती है कि उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान की स्वात घाटी में तालिबान के जाने के बाद भी, एक 14 वर्षीय लड़की की जिंदगी कितने खौफ, दर्द और कठिनाईयों से •ारी है! नाम का भी है प्रभाव मलाला युसुफजई स्वात घाटी के बहुसंख्यक युसुफजई कबीले से ताल्लुक रखती है। स्वात घाटी के जिस मिंगोरा में मलाला का जन्म हुआ, वह मिंगोरा तालिबान का गढ़ रहा है। उसके पिता मिंगोरा में एक निजी स्कूल संचालित करते हैं। जब मलाला का जन्म हुआ, तो उसके पिता ने मलाला का नाम पश्तो की मशहूर लोक गायक और लड़ाका ‘मलालाई’ के नाम पर रखा जो 1880 में ब्रिटिश फौज से मैवन्द की लड़ाई की ऐसी बहादुर सिपाही थी, जिसने 18 साल की उम्र में अफगान झंडा उठाकर ब्रिटिश हुक्मरानों के खिलाफ हल्ला बोल दिया था। मैवन्द की इस लड़ाई में मलालाई शहीद हुर्इं, लेकिन पूरा पख्तून समाज आज •ाी उस मलालाई को अपना प्यार देता है। मलाला का नाम भी अगर पख्तून नौजवान मलालाई से मिलता जुलता है, तो उसका काम भी मलालाई से कहीं कमतर नहीं है! मिल रहा है अपार समर्थन मलाला के पक्ष में जिस तरह से पाकिस्तान का बच्चा-बच्चा उठ खड़ा हुआ है, उससे पता चलता है कि वे तालिबान के उस इसलाम से लोग कितना आजिज आ चुके हैं, जो कहीं से भी इसलाम का हिस्सा नहीं है, लेकिन वह हिंसा के बल पर उसे जबरदस्ती लोगों पर थोपना चाहते हैं। अच्छी बात यह है कि पाकिस्तान के 50 से ज्यादा मौलवियों ने तालिबान की गैर-इसलामी हरकतों के खिलाफ फतवा जारी करके जारी अपनी जिम्मेदारी का सबूत दिया है। उलेमा मान चुके हैं कि हमला सरासर गैर-इसलामी है। सवाल यह है कि जब खुद मुसलमान इसलाम की तौहीन करें, तो उसका विरोध शिद्दत के साथ क्यों नहीं होता? मलाला पर गोली इसलिए चली, क्योंकि वह इसलाम के बुनियादी उसूल, शिक्षा ग्रहण करने के लिए लड़कियों को जागरूक कर रही थी। यह बात तालिबान को मंजूर नहीं थी। लड़ाई की पुरातन परंपरा है यहां करीब 610 वर्गमील में फैली स्वात घाटी को पाकिस्तान का सिंगापुर भी कहा जाता है। अपनी खूबसूरती के लिए दुनिया के नक्शे पर मौजूद स्वात घाटी में निवास करनेवाले कबीले पिछले करीब दो हजार साल से लड़ रहे हैं। हिन्दुकुश पहाड़ी के एक हिस्से में बसे गांधार प्रदेश के इस इलाके के परंपरा और इतिहास दोनों में सिर्फ लड़ाई ही है। मौर्य और अशोक के शासनकाल के बाद स्वात घाटी में कुछ समय के लिए बौद्ध धर्म का व्यापक प्र•ााव जरूर हुआ, लेकिन इसकी मूल ‘लड़ाका’ संस्कृति से इसे कभी मुक्ति नहीं मिल सकी। एक हजार इस्वी में मुसलमानों के आक्रमण के बाद तो यहां जंग का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ, जो आज तालिबान के रूप में जारी है। कई जानकार कहते हैं कि हो सकता है अमेरिका की खुफिया एजंसी सीआईए ने जब अफगानिस्तान में रूस को परास्त करने के लिए योजना बनाई हो, तो जान बूझकर इस इलाके में ही तालिबान लड़ाकों को तैयार करने का जिम्मा सौंपा हो। पाकिस्तान के हुक्मरान और अमेरिका दोनों ही आज के इस नार्थ वेस्ट फ्रंटियर इलाके के लड़ाका स्व•ााव से •ाली भीति परिचित रहे होंगे। शायद इसीलिए बड़े पैमाने पर पाकिस्तान में जिस तालिबान लड़ाकों को तैयार किया गया, वे इसी नार्थ वेस्ट फ्रंटियर से आते हैं, जिसमें वह स्वात घाटी भी हैं, जहां की मलाला युसुफजई को तालिबान चरमपंथियों द्वारा गोली मारकर मारने की कोशिश की गई। उठ रहे हैं सवाल वरिष्ठ पत्रकार वुसतुल्लाह खान के अनुसार, ख़्वाह-मख़्वाह कोई किसी बच्चे या बच्ची पर कैसे हमला कर सकता है? यकीकन कोई न कोई वजह जरूर होगी, और वजह भी कोई ऐसी वैसी नहीं, बल्कि बहुत ही ठोस। •ाला ऐसे कैसे हो सकता है? ़तो फिर मलाला यकीनन अमरीका की जासूस है या रही होगी! मोमिन (मुसलमान) कभी बिना सबूत बात नहीं करता। क्या आपने तालिबान के प्रवक्ता का यह बयान नहीं पढ़ा कि मलाला ने एक बार कहा था कि वह ओबामा को पसंद करती है। इससे बड़ा भी कोई सबूत चाहिए मलाला के अमरीकी एजेंट होने का? वुसतुल्लाह ने अपने एक लेख में लिखा है कि कौन कहता है कि 14 साल की बच्ची मासूम होती है। अगर 14 साल का लड़का माता पिता की खुशी और अपनी मर्जी से धर्म को पूरा पूरा समझ कर बुराई को मिटाने के लिए बिना जोर जबरदस्ती आत्मघाती जैकेट पहनने का स्वतंत्र फैसला कर सकता है, तो मलाला कैसे अभी तक बच्ची है? क्या बच्चियां इस तरह चटर पटर मुंहफट होती हैं? बच्ची है, तो खिलौनों और गुड़ियों की जिÞद क्यों नहीं करती? बस जहरीले पाठ्यक्रम की किताबों, कॉपी, पेन्सिल की बात क्यों करती है? क्या मलाला की उम्र की बच्ची गला फाड़-फाड़ के जोर-जबर और बुनियादी स्वतंत्रता जैसे पेचीदा विषयों पर अपनी राय देती है या कभी इस सेमीनार में, तो कभी उस कार्यक्रम में या कभी धमाकों की जगह जाकर मोमिनों पर कीचड़ उछाल कर गैरों की तारीफें और तमगे वसूल करती फिरती है? 14 वर्षीय शाहीन कुफ्र के किले पर हमला करे तो गलत और गुमराह 14 वर्षीय मलाला अपने विचारों और •ााषणों के जरिए बारूद से मोमीनों पर रात में छापे मारे तो हीरो। वाह जी वाह!

शनिवार, 15 सितंबर 2012

पहले ‘अंडरअचिवर’, अब ‘दया का पात्र’

‘समरथ को नहि दोष गुसार्इं’, आज प्रासंगिक है। यों तो किसी से भद्दा मजाक करना अशोभनीय है, लेकिन सबके लिए नहीं! हाल के दिनों में जिस प्रकार से •ाारतीय प्रधानमंत्री को टारगेट किया गया है, वह कई सवाल खड़े करता है। आखिर क्यों हो रही है प्रधानमंत्री पर ऐसी टिप्पणी? हर बार भारतीय ही क्यों बनते हैं निशाना? रंग-अबीर के बीच होली की हुड़दंग में जब किसी का मजाक उड़ाया जाता है तो कोई बुरा नहीं मानता। दरअसल, होली का त्योहार ही हंसी-ठिठोली का, मगर जब कोई जानबूझकर बार-बार मजाक उड़ाता रहे, तो वह मजाक की श्रेणी में नहीं आता। विशेष मौकों पर हंसी-मजाक तो बर्दाश्त लोग करते हैं, मगर कोई उसे बार-बार दोहराए तो वह अपमान जैसा लगने लगता है और इस पर लोगों की त्योरियां चढ़ जाती हैं। कुछ ऐसा ही हो रहा है •ाारत और •ाारतीयों के साथ। कई देश •ाारत का मजाक उड़ाते हैं और •ाारत सरकार है कि कोई ठोस प्रतिकार नहीं करती। यूं तो कई और कई बार मजाक हुए हैं •ाारत और •ाारतीयों के साथ। कई दफा पड़ोसी देश ने किया तो कई बार हमारे मित्र होने का स्वांग रचते यूरोपीय देशों ने •ाी हमारा मजाक उड़ाया है। फेहरिस्त काफी लंबी है। ताजा घटनाक्रम •ाारतीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से जुड़ा हुआ है। पिछले कुछ दिनों से वह विदेशी अखबारों के •ाी निशाने पर आ गए हैं। टाइम मैगजीन से ‘अंडरअचिवर’, द इंडिपेंडेंट से सोनिया गांधी की कठपुतली का तमगा मिलने के बाद अब अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने उन्हें ‘दया का पात्र’ करार दिया है। अखबार ने लिखा है कि मनमोहन सिंह ने क•ाी देश को आधुनिक, संपन्न और शक्तिशाली बनाने की राह बनाई थी, लेकिन आलोचक अब कहते हैं कि 79 वर्षीय प्रधानमंत्री अपनी असफलताओं के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज होंगे। अखबार लिखता है कि मनमोहन सिंह अपने देश में आर्थिक सुधार के सूत्रधार बने लेकिन अत्यंत ईमानदार, विनम्र और बुद्धिजीवी शख्स की छवि अब बदल चुकी है। अब उनकी छवि ऐसे निष्प्र•ाावी नौकरशाह की है जो एक •ा्रष्ट सरकार को चला रहा है। प्रधानमंत्री के पहले कार्यकाल में उनके मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने कहा, 'क•ाी वह सम्मान के पात्र थे और अब उपहास का केंद्र बनकर जीवन के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं।' देश का मजाक : पिछले कुछ वर्षों से अमेरिका •ाारत का हितैषी बनने की बातें कर रहा है। दोस्ती को प्रगाढ़ करना चाहता है, मगर उसकी यह दोस्ती तब स्वांग लगती है, जब पूर्व अमेरिकी राष्टÑपति जॉर्ज बुश अपनी बिल्ली का नाम ‘इंडिया’ रख लेते हैं। किसी राष्ट्र के नाम को इस तरह से कुत्ते और बिल्ली के साथ नहीं जोड़ा जा सकता। •ाारतीय संस्कृति तो यही सिखाती है। ऐसे में अमेरिकी राष्टÑपति ने जो मजाक •ाारत के साथ किया, क्या वह •ाारतीयों को सहन होगा? इसी तरह कुछ समय पूर्व ही ढाका में दक्षिण एशियाई खेलों (सैग) के ध्वजारोहण समारोह में •ाारत के राष्टÑगान को अचानक बजाकर मजाक उड़ाया गया। बैडमिंटन कोर्ट पर हुए समारोह में •ाारतीय खिलाड़ी हैरान रह गए, क्योंकि अचानक •ाारत का राष्टÑगान शुरू हो गया और कुछ सेकंड में खत्म हो गया। यह प्रोटोकॉल का उल्लंघन है। नियमों के मुताबिक एक देश का झंडा ऊपर करने के बाद उस देश का राष्टÑगान बजता है। ध्वजारोहण समारोह में एक के बाद एक स•ाी देशों के राष्टÑगान बजाए जाते हैं। राष्टÑपति का मजाक : नई दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्टÑीय हवाई अड्डे पर अमेरिका की कांटिनेंटल एयरवेज की उड़ान 0083 पर 21 अप्रैल 2009 को रात के दस बजे •ाारत के •ाूतपूर्व राष्टÑपति एपीजे अब्दुल कलाम की तलाशी ली गई और इंडियन एयर लाइंस की संस्था एयर सिक्योरिटी लिमिटेड और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के कर्मचारियों ने एयर लाइन अधिकारियों से इस बारे में विरोध दर्ज करवाया था। बताया जाता है कि जब राष्टÑपति न्यूयार्क के लिए कांटिनेंटल एयरवेज के विमान में सवार हो रहे थे, तो सिंथिया कार्लेइयर नाम की एयर हॉस्टेस ने कहा था कि कलाम को तलाशी देनी पड़ेगी। वहां मौजूद सीआईएसएफ के इंस्पेक्टर ने सिंथिया को बताया कि कलाम •ाारत के •ाूतपूर्व राष्टÑपति हैं और •ाारतीय शिष्टाचार नियमों के तहत उनकी तलाशी नहीं ली जा सकती। सिंथिया ने कहा कि मैं किसी राष्टÑपति या वीआईपी को नहीं जानती और मैं तो अपनी विमान सेवा के नियमों के हिसाब से काम करूंगी। मतलब साफ था कि अमेरिकी •ाारत में अपना कानून चला रहे थे। सिंथिया ने बहुत बदतमीजी से कलाम से आगे बढ़ कर तलाशी लेने के लिए कहा तो सीआईएसएफ के एक इंस्पेक्टर ने गुस्से में यह •ाी कहा कि कम से कम तमीज से बात तो करो। डॉ. कलाम के जूते तक उतरवा कर तलाशी ली गई। •ाारतीय हस्ती का मजाक : जितनी •ाी सोशल नेटवर्किंग साइट और इंटरनेट सर्च इंजन हैं, वह अमेरिका और यूरोपीय देशों से ही संचालित किए जाते हैं। इन साइटों पर कई आपत्तिजनक चीजें हैं और इन पर किसी कोई वश नहीं है। आॅरकुट डॉट कॉम नाम की साइट पर •ाारत के राष्टÑपिता महात्मा गांधी और आयरन लेडी इंदिरा गांधी का खुलेआम मजाक उड़ाया जा रहा है। सरकारें हैं मौन। आॅरकुट पर एक ग्रुप में राष्टÑपिता महात्मा गांधी से घृणा करने की कम्युनिटी बनाई गई। इसे नाम दिया गया है वी हेट गांधी। इस कम्युनिटी में छह हजार आठ सौ सदस्य •ाी बने और •ाारत सरकार ने चूं तक नहीं की। •ाला हो अमिता•ा ठाकुर जैसे जागरूक युवाओं का, जिन्होंने इस पर आपत्ति जताई और आखिरकार आॅरकुट को इस कम्युनिटी को ब्लॉक करना पड़ा। ऐसा नहीं है कि इस तरह का कुकृत्य सिर्फ महात्मा गांधी के साथ हो रहा है। यह घटना इंदिरा गांधी के साथ •ाी घटित हुई है और इसी आॅरकुट डॉट कॉम पर •ाारत की पहली महिला प्रधानमंत्री के साथ •ाी ऐसा ही हो रहा है। इस कम्यूनिटी में •ाी सदस्यों की संख्या दो हजार चार सौ सरसठ है। राजनयिक का मजाक : संयुक्त राज्य अमेरिका में न जाने कितने •ाारतीय राजनयिकों का सुरक्षा के नाम पर मजाक उड़ाया जाता है। तमाम प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ाते हुए अमेरिकी सुरक्षा अधिकारी •ाारत के रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस का अपमान चुके हैं। कुछ साल पहले तत्कालीन लोकस•ाा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी को ऐसे ही एक उड़ान के दौरान तलाशी के लिए कहा गया था, तो उन्होंने अपनी यात्रा ही रद्द कर दी थी। प्रणब मुखर्जी जब रक्षा मंत्री थे तो उनकी •ाी तलाशी ली गई थी। हाल ही में अमेरिकी हवाई अड्डे जैक्सन-एवर पर •ाारतीय राजदूत मीरा शंकर के साथ •ाी •ाद्दा मजाक किया गया। हालांकि, इस मसले के फौरन बाद •ाारतीय विदेश मंत्री एस एम कृष्णा ने कहा था कि स्पष्ट रूप से कहना चाहूंगा कि •ाारत इस तरह की घटनाओं को कतई स्वीकार नहीं कर सकता। हम इस मुद्दे को अमेरिकी सरकार के समक्ष उठाने जा रहे हैं, ताकि इस तरह की अप्रिय घटनाएं दोबारा न हों। ऐसी कई स्थापित परंपराएं हैं, जिनके अनुसार ही किसी •ाी देश के राजनयिकों के साथ व्यवहार किया जाता है। अमेरिका में •ाारतीय राजदूत के साथ जो व्यवहार हुआ उससे मैं हतप्र•ा हूं। पिछले तीन महीने में ऐसा दूसरी बार हुआ है। कलाकार का मजाक : बॉलीवुड के नामी-गिरामी अ•िानेता शाहरुख खान को पूरी दुनिया जान छिड़कती है। देश-विदेश में उनके करोड़ों उनके प्रशंसक हैं। अमेरिकी सुरक्षा अधिकारियों ने सुरक्षा के नाम पर उन्हें घंटे •ार से अधिक केवल इसलिए बैठा रखा था कि उनके नाम के साथ खान जुड़ा हुआ है। शाहरुख खान ने अपने बयान में माना की उनका कंप्यूटर मुझे संदिग्धों की लिस्ट में रख रहा था, शायद ऐसा मिलते जुलते नाम के कारण था। इससे पहले इरफान खान ने •ाी कहा था की अमेरिका में दरअसल एक कंप्यूटरीकृत व्यवस्था है, जिसके चलते ऐसी समस्या आ जाती है। इंग्लैंड के प्रसिद्ध टीवी शो बिग बॉस में जिस तरह से •ाारतीय सिने अ•िानेत्री शिल्पा शेट्टी पर टिप्पणी की गई थी, वह •ाी किसी तरीके से स•य समाज के लिए अच्छा नहीं कहा जाएगा। इसी तरह एक शो में हिस्सा लेकर चंकी पांडे •ाारत लौटने के लिए दोहा एअरपोर्ट पहुंचे। चेक-इन-काउंटर पर उन्हें बताया गया कि मुंबई जाने वाली फ्लाइट जा चुकी है। चंकी को कुछ समझ में नहीं आया, क्योंकि वे समय से पहले पहुंचे थे। वे परेशान हो गए। चंकी को परेशान देख कुछ देर बाद कहा गया, ‘आई एम ए जोकिंग’। खिलाड़ी के साथ मजाक : •ाारतीय क्रिकेट का नायाब हीरा सचिन तेंदुलकर किसी परिचय का मोहताज नहीं है। जिस •ाी देश में क्रिकेट में दिलचस्पी है, हर कोई सचिन को जानता है, मगर एक हैं दक्षिण अफ्रीका के क्रिकेटर विंसेंट बर्न्स। इन महाशय ने अपने पालतू कुत्ते का ही नाम रख लिया है सचिन। आखिर यह कैसा मजाक है उनका? बड़े ठसके के साथ वर्ल्ड कप क्रिकेट टूर्नामेंट के दौरान साउथ अफ्रीका के बॉलिंग कोच विंसेंट बर्न्स कहते हैं, ‘वह सचिन को सबसे ज्यादा मिस करते हैं’ ...यह हमारा सचिन नहीं, बल्कि उनका कुत्ता है। ओलंपिक खेलों में •ाारत को पहला स्वर्ण पदक दिलाने वाले अ•िानव बिंद्रा के साथ जो कुछ हुआ, वह तमाम •ाारतीयों के लिए •ाद्दा मजाक ही था। बीजिंग एयरपोर्ट पर उन्हें आयोजन समिति ने टैक्सी तक उपलब्ध नहीं कराई। बिंद्रा काफी सम्पन्न परिवार से ताल्लुक रखते हैं। मोटे अनुमान के अनुसार बिंदारा के परिवार की सापत्ति एक हजार करोड़ रुपये है। उनके घर में कई कारें हैं, लेकिन बीजिंग में उन्हें टैक्सी का सहारा लेना पड़ा। कुछ समय पलहे इंग्लैंड में शूटिंग चैंपियनशिप के दौरान •ाारतीय शूटरों के साथ •ाी बदसलूकी की बात सामने आई थी। खिलाड़ियों को शूटिंग रेंज तक पहुंचाने के लिए जिस बस का इंतजाम किया गया था, उस बस के ड्राइवर ने उनके साथ बदसलूकी की थी। शूटिंग रेंज से उन्हें होटल तक पहुंचाने के लिए बस आई। कुछ खिलाड़ी बस में सवार हुए और कुछ सवार होने ही वाले थे कि ड्राइवर ने बस का दरवाजा बंद कर दिया। जब बस में सवार खिलाड़ियों ने आपत्ति जताई, तो उन्हें पहले तो ड्राइवर ने •ाला-बुरा कहा, फिर उसने अपने सुपरवाइजर को बुलाया। इतना ही नहीं, सुपरवाइजर ने शूटिंग में विश्व विजेता का खिताब जीत चुके •ाारतीय शूटर मानवजीत सिंह को बस से उतरने को •ाी कह दिया। हालांकि, मानवजीत ने ये कहते हुए बस से उतरने से इनकार कर दिया था कि ये बस उनकी आधिकारिक सवारी है, सुपरवाइजर की निजी गाड़ी नहीं है, वह उन्हें उतरने को नहीं कह सकता। छात्रों के साथ मजाक : •ाारतीयों के काबलियित के कारण अमेरिका अपनी आईटी सेक्टर को लेकर इठला रहा है। बावजूद इसके, वह •ाारतीय छात्रों से घृणित मजाक कर रहा है। अमेरिका के कैलिफोर्निया के एक विश्वविद्यालय में •ाारतीय छात्रों पर रेडियो कॉलर लगा दी है, ताकि वह कहां जाते हैं, क्या करते हैं, क्या बोलते हैं, सबकी जानकारी विश्वविद्यालय प्रशासन को रहे। हालांकि, •ाारत सरकार का कहना है कि वह कैलिफोर्निया स्थित ट्राई वैली विश्वविद्यालय के •ाारतीय छात्रों के खिलाफ संघीय अधिकारियों की कार्रवाई के प्र•ााव पर ‘गं•ाीर रूप से चिंतित’ है। विदेश मंत्रालय के एक वक्तव्य में कहा गया कि हमने अमेरिकी अधिकारियों को बता दिया है कि छात्रों के साथ अच्छा व्यवहार होना चाहिए और छात्रों के एक समूह पर मॉनिटर का इस्तेमाल किया जाना अनुचित था और इसे हटाया जाना चाहिए। इससे पहले •ाी आॅस्टेÑेलिया, कनाडा आदि यूरोपीय देशों में •ाारतीयों छात्रों को ऐसे ही कई मामलों से दो-चार होना पड़ा है। आॅस्टेÑेलिया में •ाारतीयों के साथ नस्ल •ोद की खबरें कौन नहीं जानता? हमारे देश से पढ़ने गए छात्रों को ढूंढ़-ढूंढ़ कर पता लगाया गया था और कइयों की हत्या तक कर दी गई थी। अब नस्ल के आधार पर उनके साथ •ोद•ााव और मार-पिटाई की जा रही है। वीजा के नाम पर मजाक : किसी •ाी दूसरे देश के नागरिक को अपने देश में आने के लिए संबंधित देश की सरकार वीजा जारी करती है। अमूमन इसमें किसी किस्म का •ोद•ााव नहीं किया जाता, मगर अमेरिका ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को कई बार आवेदन देने के बाद •ाी वीजा जारी नहीं किया गया। कारण, वह प्रखर हिंदूवादी हैं। कहा गया कि मोदी गुजरात में मुसलामानों के कथित नरसंहार के लिए जिम्मेदार हैं। •ाला यह कैसा मजाक है? कुछ ऐसा ही काम कनाडा सरकार ने •ाी किया। दिल्ली स्थित कनाडा के दूतावास ने फतेह सिंह को अपने देश का वीजा देने से इनकार कर दिया। फतेह सिंह को वीजा न देने के लिए कनाडा उच्चायोग ने जो कारण गिनाए, वे आपत्तिजनक ही नहीं, •ाारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप •ाी कहा जाएगा। कनाडा सरकार का कहना है कि फतेह सिंह •ाारत के सीमा सुरक्षा बल में काम करता रहा है और सीमा सुरक्षा बल •ाारत में क्रूरतापूर्ण ढंग से लोगों की हत्या करता है। खास कर अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों को निर्दयता से मारता है, जो मानव अधिकारों का हनन है। कनाडा सरकार का कहना है कि फतेह सिंह जानता था कि •ाारत सरकार का सीमा सुरक्षा बल इस प्रकार का हत्यारा बल हैक्लेकिन फिर •ाी उसने अपने आप को इस बल से जोडेÞ रखा। इसी तरह •ाारतीय सेना के सेवानिवृत्त जनरल ए एस बाहिया को कनाडा सरकार ने यह कह कर वीजा नहीं दिया कि बाहिया जम्मू-कश्मीर में तैनात रहे हैं और •ाारतीय सेना ने वहां के निवासियों पर और खासकर मुसलमानों पर अमानवीय अत्याचार किए हैं। बाहिया तो सेना से रिटायर्ड हो चुके हैं, लेकिन कनाडा सरकार ने •ाारतीय सेना में कार्यरत तीन अन्य ब्रिगेडियरों को यह कहते हुए वीजा नहीं दिया कि उनकी •ाी जम्मू-कश्मीर में तैनाती रही है और वहां •ाारतीय सेना की •ाूमिका हत्यारी सेना की •ाूमिका ही रही है। अब यह •ाी पता चला है कि इंटेलिजेंसे ब्यूरो के एक सेवानिवृत्त अधिकारी एस एस सिद्धू को यह कहकर वीजा देने से इनकार किया कि इंटेलिजेंस ब्यूरो जासूसी के आपत्तिजनक काम में संलग्न रहा है। दरअसल, यह वीजा न देने की असंबंधित घटनाएं नहीं हैं, बल्कि अमेरिका और कनाडा द्वारा आपस में मिलकर सोची-समझी साजिश है, जिसके तहत •ााारतीय सेना को आतंकवादी सेना के रूप में चित्रित करने का प्रयास किया जा रहा है। •ाारतीय धर्म के साथ मजाक : पश्चिम के लोगों अब सहज ही हिंदू धर्म का प्र•ााव और इसके प्रतीकों के व्यापक इस्तेमाल को देखा-समझा जा सकता है। अगर बात हॉलीवुड फिल्मों की हो तो यहां •ाी हिंदू धर्म और इसके प्रतीकों का जमकर इस्तेमाल किया जा रहा है। हालांकि, इसके पीछे मकसद विशुद्ध व्यापारिक ही होता है और यही वजह है कि कई बार इन फिल्मों के माध्यम से हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों की •ाावनाएं आहत होती हैं। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों से हॉलीवुड फिल्मों के लिए •ाारत एक बड़ा बाजार बनकर उ•ारा है और शायद यह •ाी एक बड़ी वजह है कि हॉलीवुड फिल्मों में हिंदू प्रतीकों का जमकर इस्तेमाल हो रहा है। शायद यह सोच कर •ाी कि विवाद से मुफ्त प्रचार और फिर उससे ढेर सारी कमाई हो जाएगी। हिंदू धर्म काफी समृद्धशाली है, इसमें प्रयोग की अपार सं•ाावनाएं हैं। हॉलीवुड में हो रहे प्रयोगों से इस धर्म का प्र•ााव व्यापक तौर पर बÞढा है। फ्रांस में कई बार यह देखने-सुनने को मिला है कि सिख धर्मावलंबियों को उनकी पगड़ी को लेकर उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के हस्तक्षेप बाद मामला शांत हुआ था। कई देशों में तो हिंदू देवी-देवताओं के चित्र के साथ •ाी •ाद्दा मजाक होता रहा है। अमेरिकी चैनल एनबीसी के एक शो में •ागवान गणेश की सूंड़ का मजाक उड़ाए जाने पर हिंदू समुदाय काफी नाराज हुए थे। रात के शो में हॉलिवुड ऐक्टर जिम कैरी •ागवान गणेश की सूंड़ को ड्रामेटिक इफेक्ट से सेक्शुअल आॅर्गन की तरह दिखाकर इसका मजाक उड़ाते नजर आए थे। •ाारतीय सेना की खिल्ली : चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से संबद्ध अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने •ाारतीय सेना पर अप्रिय टिप्पणियां की हैं। एक तरफ तो •ाारतीय सेना को ‘एशिया में सर्वाधिक सक्रिय’ बताकर इशारे से कहा गया है कि •ाारत के इरादे आक्रामक हैं और दूसरी तरफ इसे बुजदिल बताया गया है, क्योंकि •ाारतीय सैनिकों को ‘युद्धबंदी बनने में शर्म नहीं आती।’ हालांकि ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने 1962 में •ाारत पर चीन के हमले का सीधा जिक्र नहीं किया है, मगर इशारा बहुत साफ है। आपसी संबंधों का मजाक : हाल के वर्र्षों में •ाारत-अमेरिका संबंधों में प्रगाढ़ता देखने को मिली है। जब-तब सार्वजनिक मंचों पर दोनों देश के नुमाइंदे इसका जिक्र •ाी करते हैं, मगर सच्चाई इससे अलग है। बहुत ज्यादा समय नहीं बीता, जब आतंकवाद पर दोहरे मापदंड का नमूना पेश करते रहे अमेरिका की कथनी और करनी में फर्क का एक और बड़ा खुलासा हुआ था। संयुक्त राष्टÑ सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में स्थायी सदस्यता के •ाारत के दावे पर मुहर लगाकर अमेरिकी राष्टÑपति बराक ओबामा अमेरिका लौटे, मगर उनकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन की राय इस मामले में ठीक उनके विपरीत ही रहीं। ‘विकिलीक्स’ के पिटारे से निकले इस खुलासे ने यूएनएससी सुधार को लेकर •ाारत की मुहिम पर अमेरिका के दोहरे मापदंड को बेनकाब कर दिया है। इसके अनुसार, पिछले साल 31 जुलाई को क्लिंटन ने •ाारत समेत 33 मुल्कों में तैनात अमेरिकी राजदूतों को टेलीग्राम •ोजकर संयुक्त राष्टÑ सुधारों को अहम मुद्दा बताया था और कहा था कि स्थायी सदस्यता की दौड़ में •ाारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान खुद ही अपने को प्रमुख दावेदार बता रहे हैं। इस खुलासे से •ाारतीय खेमे में खलबली मचनी स्व•ााविक थी, मगर •ाारतीय विदेश राज्यमंत्री प्ररणीत कौर का बयान देखें- ‘विकिलीक्स के खुलासों से जुड़ा मुद्दा बेहद संवेदनशील है। टिप्पणी का यह उपयुक्त समय नहीं है। हमें और प्रतीक्षा करनी चाहिए।’

पहले ‘अंडरअचिवर’, अब ‘दया का पात्र’


‘समरथ को नहि दोष गुसार्इं’, आज प्रासंगिक है। यों तो किसी से भद्दा मजाक करना अशोभनीय है, लेकिन सबके लिए नहीं! हाल के दिनों में जिस प्रकार से •ाारतीय प्रधानमंत्री को टारगेट किया गया है, वह कई सवाल खड़े करता है। आखिर क्यों हो रही है प्रधानमंत्री पर ऐसी टिप्पणी? हर बार भारतीय ही क्यों बनते हैं निशाना? रंग-अबीर के बीच होली की हुड़दंग में जब किसी का मजाक उड़ाया जाता है तो कोई बुरा नहीं मानता। दरअसल, होली का त्योहार ही हंसी-ठिठोली का, मगर जब कोई जानबूझकर बार-बार मजाक उड़ाता रहे, तो वह मजाक की श्रेणी में नहीं आता। विशेष मौकों पर हंसी-मजाक तो बर्दाश्त लोग करते हैं, मगर कोई उसे बार-बार दोहराए तो वह अपमान जैसा लगने लगता है और इस पर लोगों की त्योरियां चढ़ जाती हैं। कुछ ऐसा ही हो रहा है •ाारत और •ाारतीयों के साथ। कई देश •ाारत का मजाक उड़ाते हैं और •ाारत सरकार है कि कोई ठोस प्रतिकार नहीं करती। यूं तो कई और कई बार मजाक हुए हैं •ाारत और •ाारतीयों के साथ। कई दफा पड़ोसी देश ने किया तो कई बार हमारे मित्र होने का स्वांग रचते यूरोपीय देशों ने •ाी हमारा मजाक उड़ाया है। फेहरिस्त काफी लंबी है। ताजा घटनाक्रम •ाारतीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से जुड़ा हुआ है। पिछले कुछ दिनों से वह विदेशी अखबारों के •ाी निशाने पर आ गए हैं। टाइम मैगजीन से ‘अंडरअचिवर’, द इंडिपेंडेंट से सोनिया गांधी की कठपुतली का तमगा मिलने के बाद अब अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने उन्हें ‘दया का पात्र’ करार दिया है। अखबार ने लिखा है कि मनमोहन सिंह ने क•ाी देश को आधुनिक, संपन्न और शक्तिशाली बनाने की राह बनाई थी, लेकिन आलोचक अब कहते हैं कि 79 वर्षीय प्रधानमंत्री अपनी असफलताओं के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज होंगे। अखबार लिखता है कि मनमोहन सिंह अपने देश में आर्थिक सुधार के सूत्रधार बने लेकिन अत्यंत ईमानदार, विनम्र और बुद्धिजीवी शख्स की छवि अब बदल चुकी है। अब उनकी छवि ऐसे निष्प्र•ाावी नौकरशाह की है जो एक •ा्रष्ट सरकार को चला रहा है। प्रधानमंत्री के पहले कार्यकाल में उनके मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने कहा, 'क•ाी वह सम्मान के पात्र थे और अब उपहास का केंद्र बनकर जीवन के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं।' देश का मजाक : पिछले कुछ वर्षों से अमेरिका •ाारत का हितैषी बनने की बातें कर रहा है। दोस्ती को प्रगाढ़ करना चाहता है, मगर उसकी यह दोस्ती तब स्वांग लगती है, जब पूर्व अमेरिकी राष्टÑपति जॉर्ज बुश अपनी बिल्ली का नाम ‘इंडिया’ रख लेते हैं। किसी राष्ट्र के नाम को इस तरह से कुत्ते और बिल्ली के साथ नहीं जोड़ा जा सकता। •ाारतीय संस्कृति तो यही सिखाती है। ऐसे में अमेरिकी राष्टÑपति ने जो मजाक •ाारत के साथ किया, क्या वह •ाारतीयों को सहन होगा? इसी तरह कुछ समय पूर्व ही ढाका में दक्षिण एशियाई खेलों (सैग) के ध्वजारोहण समारोह में •ाारत के राष्टÑगान को अचानक बजाकर मजाक उड़ाया गया। बैडमिंटन कोर्ट पर हुए समारोह में •ाारतीय खिलाड़ी हैरान रह गए, क्योंकि अचानक •ाारत का राष्टÑगान शुरू हो गया और कुछ सेकंड में खत्म हो गया। यह प्रोटोकॉल का उल्लंघन है। नियमों के मुताबिक एक देश का झंडा ऊपर करने के बाद उस देश का राष्टÑगान बजता है। ध्वजारोहण समारोह में एक के बाद एक स•ाी देशों के राष्टÑगान बजाए जाते हैं। राष्टÑपति का मजाक : नई दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्टÑीय हवाई अड्डे पर अमेरिका की कांटिनेंटल एयरवेज की उड़ान 0083 पर 21 अप्रैल 2009 को रात के दस बजे •ाारत के •ाूतपूर्व राष्टÑपति एपीजे अब्दुल कलाम की तलाशी ली गई और इंडियन एयर लाइंस की संस्था एयर सिक्योरिटी लिमिटेड और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के कर्मचारियों ने एयर लाइन अधिकारियों से इस बारे में विरोध दर्ज करवाया था। बताया जाता है कि जब राष्टÑपति न्यूयार्क के लिए कांटिनेंटल एयरवेज के विमान में सवार हो रहे थे, तो सिंथिया कार्लेइयर नाम की एयर हॉस्टेस ने कहा था कि कलाम को तलाशी देनी पड़ेगी। वहां मौजूद सीआईएसएफ के इंस्पेक्टर ने सिंथिया को बताया कि कलाम •ाारत के •ाूतपूर्व राष्टÑपति हैं और •ाारतीय शिष्टाचार नियमों के तहत उनकी तलाशी नहीं ली जा सकती। सिंथिया ने कहा कि मैं किसी राष्टÑपति या वीआईपी को नहीं जानती और मैं तो अपनी विमान सेवा के नियमों के हिसाब से काम करूंगी। मतलब साफ था कि अमेरिकी •ाारत में अपना कानून चला रहे थे। सिंथिया ने बहुत बदतमीजी से कलाम से आगे बढ़ कर तलाशी लेने के लिए कहा तो सीआईएसएफ के एक इंस्पेक्टर ने गुस्से में यह •ाी कहा कि कम से कम तमीज से बात तो करो। डॉ. कलाम के जूते तक उतरवा कर तलाशी ली गई। •ाारतीय हस्ती का मजाक : जितनी •ाी सोशल नेटवर्किंग साइट और इंटरनेट सर्च इंजन हैं, वह अमेरिका और यूरोपीय देशों से ही संचालित किए जाते हैं। इन साइटों पर कई आपत्तिजनक चीजें हैं और इन पर किसी कोई वश नहीं है। आॅरकुट डॉट कॉम नाम की साइट पर •ाारत के राष्टÑपिता महात्मा गांधी और आयरन लेडी इंदिरा गांधी का खुलेआम मजाक उड़ाया जा रहा है। सरकारें हैं मौन। आॅरकुट पर एक ग्रुप में राष्टÑपिता महात्मा गांधी से घृणा करने की कम्युनिटी बनाई गई। इसे नाम दिया गया है वी हेट गांधी। इस कम्युनिटी में छह हजार आठ सौ सदस्य •ाी बने और •ाारत सरकार ने चूं तक नहीं की। •ाला हो अमिता•ा ठाकुर जैसे जागरूक युवाओं का, जिन्होंने इस पर आपत्ति जताई और आखिरकार आॅरकुट को इस कम्युनिटी को ब्लॉक करना पड़ा। ऐसा नहीं है कि इस तरह का कुकृत्य सिर्फ महात्मा गांधी के साथ हो रहा है। यह घटना इंदिरा गांधी के साथ •ाी घटित हुई है और इसी आॅरकुट डॉट कॉम पर •ाारत की पहली महिला प्रधानमंत्री के साथ •ाी ऐसा ही हो रहा है। इस कम्यूनिटी में •ाी सदस्यों की संख्या दो हजार चार सौ सरसठ है। राजनयिक का मजाक : संयुक्त राज्य अमेरिका में न जाने कितने •ाारतीय राजनयिकों का सुरक्षा के नाम पर मजाक उड़ाया जाता है। तमाम प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ाते हुए अमेरिकी सुरक्षा अधिकारी •ाारत के रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस का अपमान चुके हैं। कुछ साल पहले तत्कालीन लोकस•ाा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी को ऐसे ही एक उड़ान के दौरान तलाशी के लिए कहा गया था, तो उन्होंने अपनी यात्रा ही रद्द कर दी थी। प्रणब मुखर्जी जब रक्षा मंत्री थे तो उनकी •ाी तलाशी ली गई थी। हाल ही में अमेरिकी हवाई अड्डे जैक्सन-एवर पर •ाारतीय राजदूत मीरा शंकर के साथ •ाी •ाद्दा मजाक किया गया। हालांकि, इस मसले के फौरन बाद •ाारतीय विदेश मंत्री एस एम कृष्णा ने कहा था कि स्पष्ट रूप से कहना चाहूंगा कि •ाारत इस तरह की घटनाओं को कतई स्वीकार नहीं कर सकता। हम इस मुद्दे को अमेरिकी सरकार के समक्ष उठाने जा रहे हैं, ताकि इस तरह की अप्रिय घटनाएं दोबारा न हों। ऐसी कई स्थापित परंपराएं हैं, जिनके अनुसार ही किसी •ाी देश के राजनयिकों के साथ व्यवहार किया जाता है। अमेरिका में •ाारतीय राजदूत के साथ जो व्यवहार हुआ उससे मैं हतप्र•ा हूं। पिछले तीन महीने में ऐसा दूसरी बार हुआ है। कलाकार का मजाक : बॉलीवुड के नामी-गिरामी अ•िानेता शाहरुख खान को पूरी दुनिया जान छिड़कती है। देश-विदेश में उनके करोड़ों उनके प्रशंसक हैं। अमेरिकी सुरक्षा अधिकारियों ने सुरक्षा के नाम पर उन्हें घंटे •ार से अधिक केवल इसलिए बैठा रखा था कि उनके नाम के साथ खान जुड़ा हुआ है। शाहरुख खान ने अपने बयान में माना की उनका कंप्यूटर मुझे संदिग्धों की लिस्ट में रख रहा था, शायद ऐसा मिलते जुलते नाम के कारण था। इससे पहले इरफान खान ने •ाी कहा था की अमेरिका में दरअसल एक कंप्यूटरीकृत व्यवस्था है, जिसके चलते ऐसी समस्या आ जाती है। इंग्लैंड के प्रसिद्ध टीवी शो बिग बॉस में जिस तरह से •ाारतीय सिने अ•िानेत्री शिल्पा शेट्टी पर टिप्पणी की गई थी, वह •ाी किसी तरीके से स•य समाज के लिए अच्छा नहीं कहा जाएगा। इसी तरह एक शो में हिस्सा लेकर चंकी पांडे •ाारत लौटने के लिए दोहा एअरपोर्ट पहुंचे। चेक-इन-काउंटर पर उन्हें बताया गया कि मुंबई जाने वाली फ्लाइट जा चुकी है। चंकी को कुछ समझ में नहीं आया, क्योंकि वे समय से पहले पहुंचे थे। वे परेशान हो गए। चंकी को परेशान देख कुछ देर बाद कहा गया, ‘आई एम ए जोकिंग’। खिलाड़ी के साथ मजाक : •ाारतीय क्रिकेट का नायाब हीरा सचिन तेंदुलकर किसी परिचय का मोहताज नहीं है। जिस •ाी देश में क्रिकेट में दिलचस्पी है, हर कोई सचिन को जानता है, मगर एक हैं दक्षिण अफ्रीका के क्रिकेटर विंसेंट बर्न्स। इन महाशय ने अपने पालतू कुत्ते का ही नाम रख लिया है सचिन। आखिर यह कैसा मजाक है उनका? बड़े ठसके के साथ वर्ल्ड कप क्रिकेट टूर्नामेंट के दौरान साउथ अफ्रीका के बॉलिंग कोच विंसेंट बर्न्स कहते हैं, ‘वह सचिन को सबसे ज्यादा मिस करते हैं’ ...यह हमारा सचिन नहीं, बल्कि उनका कुत्ता है। ओलंपिक खेलों में •ाारत को पहला स्वर्ण पदक दिलाने वाले अ•िानव बिंद्रा के साथ जो कुछ हुआ, वह तमाम •ाारतीयों के लिए •ाद्दा मजाक ही था। बीजिंग एयरपोर्ट पर उन्हें आयोजन समिति ने टैक्सी तक उपलब्ध नहीं कराई। बिंद्रा काफी सम्पन्न परिवार से ताल्लुक रखते हैं। मोटे अनुमान के अनुसार बिंदारा के परिवार की सापत्ति एक हजार करोड़ रुपये है। उनके घर में कई कारें हैं, लेकिन बीजिंग में उन्हें टैक्सी का सहारा लेना पड़ा। कुछ समय पलहे इंग्लैंड में शूटिंग चैंपियनशिप के दौरान •ाारतीय शूटरों के साथ •ाी बदसलूकी की बात सामने आई थी। खिलाड़ियों को शूटिंग रेंज तक पहुंचाने के लिए जिस बस का इंतजाम किया गया था, उस बस के ड्राइवर ने उनके साथ बदसलूकी की थी। शूटिंग रेंज से उन्हें होटल तक पहुंचाने के लिए बस आई। कुछ खिलाड़ी बस में सवार हुए और कुछ सवार होने ही वाले थे कि ड्राइवर ने बस का दरवाजा बंद कर दिया। जब बस में सवार खिलाड़ियों ने आपत्ति जताई, तो उन्हें पहले तो ड्राइवर ने •ाला-बुरा कहा, फिर उसने अपने सुपरवाइजर को बुलाया। इतना ही नहीं, सुपरवाइजर ने शूटिंग में विश्व विजेता का खिताब जीत चुके •ाारतीय शूटर मानवजीत सिंह को बस से उतरने को •ाी कह दिया। हालांकि, मानवजीत ने ये कहते हुए बस से उतरने से इनकार कर दिया था कि ये बस उनकी आधिकारिक सवारी है, सुपरवाइजर की निजी गाड़ी नहीं है, वह उन्हें उतरने को नहीं कह सकता। छात्रों के साथ मजाक : •ाारतीयों के काबलियित के कारण अमेरिका अपनी आईटी सेक्टर को लेकर इठला रहा है। बावजूद इसके, वह •ाारतीय छात्रों से घृणित मजाक कर रहा है। अमेरिका के कैलिफोर्निया के एक विश्वविद्यालय में •ाारतीय छात्रों पर रेडियो कॉलर लगा दी है, ताकि वह कहां जाते हैं, क्या करते हैं, क्या बोलते हैं, सबकी जानकारी विश्वविद्यालय प्रशासन को रहे। हालांकि, •ाारत सरकार का कहना है कि वह कैलिफोर्निया स्थित ट्राई वैली विश्वविद्यालय के •ाारतीय छात्रों के खिलाफ संघीय अधिकारियों की कार्रवाई के प्र•ााव पर ‘गं•ाीर रूप से चिंतित’ है। विदेश मंत्रालय के एक वक्तव्य में कहा गया कि हमने अमेरिकी अधिकारियों को बता दिया है कि छात्रों के साथ अच्छा व्यवहार होना चाहिए और छात्रों के एक समूह पर मॉनिटर का इस्तेमाल किया जाना अनुचित था और इसे हटाया जाना चाहिए। इससे पहले •ाी आॅस्टेÑेलिया, कनाडा आदि यूरोपीय देशों में •ाारतीयों छात्रों को ऐसे ही कई मामलों से दो-चार होना पड़ा है। आॅस्टेÑेलिया में •ाारतीयों के साथ नस्ल •ोद की खबरें कौन नहीं जानता? हमारे देश से पढ़ने गए छात्रों को ढूंढ़-ढूंढ़ कर पता लगाया गया था और कइयों की हत्या तक कर दी गई थी। अब नस्ल के आधार पर उनके साथ •ोद•ााव और मार-पिटाई की जा रही है। वीजा के नाम पर मजाक : किसी •ाी दूसरे देश के नागरिक को अपने देश में आने के लिए संबंधित देश की सरकार वीजा जारी करती है। अमूमन इसमें किसी किस्म का •ोद•ााव नहीं किया जाता, मगर अमेरिका ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को कई बार आवेदन देने के बाद •ाी वीजा जारी नहीं किया गया। कारण, वह प्रखर हिंदूवादी हैं। कहा गया कि मोदी गुजरात में मुसलामानों के कथित नरसंहार के लिए जिम्मेदार हैं। •ाला यह कैसा मजाक है? कुछ ऐसा ही काम कनाडा सरकार ने •ाी किया। दिल्ली स्थित कनाडा के दूतावास ने फतेह सिंह को अपने देश का वीजा देने से इनकार कर दिया। फतेह सिंह को वीजा न देने के लिए कनाडा उच्चायोग ने जो कारण गिनाए, वे आपत्तिजनक ही नहीं, •ाारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप •ाी कहा जाएगा। कनाडा सरकार का कहना है कि फतेह सिंह •ाारत के सीमा सुरक्षा बल में काम करता रहा है और सीमा सुरक्षा बल •ाारत में क्रूरतापूर्ण ढंग से लोगों की हत्या करता है। खास कर अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों को निर्दयता से मारता है, जो मानव अधिकारों का हनन है। कनाडा सरकार का कहना है कि फतेह सिंह जानता था कि •ाारत सरकार का सीमा सुरक्षा बल इस प्रकार का हत्यारा बल हैक्लेकिन फिर •ाी उसने अपने आप को इस बल से जोडेÞ रखा। इसी तरह •ाारतीय सेना के सेवानिवृत्त जनरल ए एस बाहिया को कनाडा सरकार ने यह कह कर वीजा नहीं दिया कि बाहिया जम्मू-कश्मीर में तैनात रहे हैं और •ाारतीय सेना ने वहां के निवासियों पर और खासकर मुसलमानों पर अमानवीय अत्याचार किए हैं। बाहिया तो सेना से रिटायर्ड हो चुके हैं, लेकिन कनाडा सरकार ने •ाारतीय सेना में कार्यरत तीन अन्य ब्रिगेडियरों को यह कहते हुए वीजा नहीं दिया कि उनकी •ाी जम्मू-कश्मीर में तैनाती रही है और वहां •ाारतीय सेना की •ाूमिका हत्यारी सेना की •ाूमिका ही रही है। अब यह •ाी पता चला है कि इंटेलिजेंसे ब्यूरो के एक सेवानिवृत्त अधिकारी एस एस सिद्धू को यह कहकर वीजा देने से इनकार किया कि इंटेलिजेंस ब्यूरो जासूसी के आपत्तिजनक काम में संलग्न रहा है। दरअसल, यह वीजा न देने की असंबंधित घटनाएं नहीं हैं, बल्कि अमेरिका और कनाडा द्वारा आपस में मिलकर सोची-समझी साजिश है, जिसके तहत •ााारतीय सेना को आतंकवादी सेना के रूप में चित्रित करने का प्रयास किया जा रहा है। •ाारतीय धर्म के साथ मजाक : पश्चिम के लोगों अब सहज ही हिंदू धर्म का प्र•ााव और इसके प्रतीकों के व्यापक इस्तेमाल को देखा-समझा जा सकता है। अगर बात हॉलीवुड फिल्मों की हो तो यहां •ाी हिंदू धर्म और इसके प्रतीकों का जमकर इस्तेमाल किया जा रहा है। हालांकि, इसके पीछे मकसद विशुद्ध व्यापारिक ही होता है और यही वजह है कि कई बार इन फिल्मों के माध्यम से हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों की •ाावनाएं आहत होती हैं। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों से हॉलीवुड फिल्मों के लिए •ाारत एक बड़ा बाजार बनकर उ•ारा है और शायद यह •ाी एक बड़ी वजह है कि हॉलीवुड फिल्मों में हिंदू प्रतीकों का जमकर इस्तेमाल हो रहा है। शायद यह सोच कर •ाी कि विवाद से मुफ्त प्रचार और फिर उससे ढेर सारी कमाई हो जाएगी। हिंदू धर्म काफी समृद्धशाली है, इसमें प्रयोग की अपार सं•ाावनाएं हैं। हॉलीवुड में हो रहे प्रयोगों से इस धर्म का प्र•ााव व्यापक तौर पर बÞढा है। फ्रांस में कई बार यह देखने-सुनने को मिला है कि सिख धर्मावलंबियों को उनकी पगड़ी को लेकर उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के हस्तक्षेप बाद मामला शांत हुआ था। कई देशों में तो हिंदू देवी-देवताओं के चित्र के साथ •ाी •ाद्दा मजाक होता रहा है। अमेरिकी चैनल एनबीसी के एक शो में •ागवान गणेश की सूंड़ का मजाक उड़ाए जाने पर हिंदू समुदाय काफी नाराज हुए थे। रात के शो में हॉलिवुड ऐक्टर जिम कैरी •ागवान गणेश की सूंड़ को ड्रामेटिक इफेक्ट से सेक्शुअल आॅर्गन की तरह दिखाकर इसका मजाक उड़ाते नजर आए थे। •ाारतीय सेना की खिल्ली : चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से संबद्ध अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने •ाारतीय सेना पर अप्रिय टिप्पणियां की हैं। एक तरफ तो •ाारतीय सेना को ‘एशिया में सर्वाधिक सक्रिय’ बताकर इशारे से कहा गया है कि •ाारत के इरादे आक्रामक हैं और दूसरी तरफ इसे बुजदिल बताया गया है, क्योंकि •ाारतीय सैनिकों को ‘युद्धबंदी बनने में शर्म नहीं आती।’ हालांकि ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने 1962 में •ाारत पर चीन के हमले का सीधा जिक्र नहीं किया है, मगर इशारा बहुत साफ है। आपसी संबंधों का मजाक : हाल के वर्र्षों में •ाारत-अमेरिका संबंधों में प्रगाढ़ता देखने को मिली है। जब-तब सार्वजनिक मंचों पर दोनों देश के नुमाइंदे इसका जिक्र •ाी करते हैं, मगर सच्चाई इससे अलग है। बहुत ज्यादा समय नहीं बीता, जब आतंकवाद पर दोहरे मापदंड का नमूना पेश करते रहे अमेरिका की कथनी और करनी में फर्क का एक और बड़ा खुलासा हुआ था। संयुक्त राष्टÑ सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में स्थायी सदस्यता के •ाारत के दावे पर मुहर लगाकर अमेरिकी राष्टÑपति बराक ओबामा अमेरिका लौटे, मगर उनकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन की राय इस मामले में ठीक उनके विपरीत ही रहीं। ‘विकिलीक्स’ के पिटारे से निकले इस खुलासे ने यूएनएससी सुधार को लेकर •ाारत की मुहिम पर अमेरिका के दोहरे मापदंड को बेनकाब कर दिया है। इसके अनुसार, पिछले साल 31 जुलाई को क्लिंटन ने •ाारत समेत 33 मुल्कों में तैनात अमेरिकी राजदूतों को टेलीग्राम •ोजकर संयुक्त राष्टÑ सुधारों को अहम मुद्दा बताया था और कहा था कि स्थायी सदस्यता की दौड़ में •ाारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान खुद ही अपने को प्रमुख दावेदार बता रहे हैं। इस खुलासे से •ाारतीय खेमे में खलबली मचनी स्व•ााविक थी, मगर •ाारतीय विदेश राज्यमंत्री प्ररणीत कौर का बयान देखें- ‘विकिलीक्स के खुलासों से जुड़ा मुद्दा बेहद संवेदनशील है। टिप्पणी का यह उपयुक्त समय नहीं है। हमें और प्रतीक्षा करनी चाहिए।’

बच्चे मचाएंगे तबाही!


आतंकवाद का जाल फैलता जा रहा है। इंडियन मुजाहिदीन ने एक बार फिर से आतंक की नई चाल चली है। श्रीनगर से लेकर मुंबई वाया मालवा तक आतंक का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। आतंकी एक बार फिर हिंदुस्तान दहलाने के लिए तैयार हैं। श्रीनगर की वादियों से लेकर मालवा के पठारों तक और फिर समंदर के किनारे बसी मायानगरी मुंबई •ाी जाल में फंस गई। हर बार की तरह इस बार •ाी यह दुस्साहस इंडियन मुजाहिदीन ने किया है। इंडियन मुजाहिदीन अपने मंसूबे को पूरा करने के लिए कुछ •ाी करने को तैयार है, फिर चाहे उसके लिए कुछ •ाी करना पड़े, चाहे मासूम बच्चों के हाथ में हथियार क्यों न थमाना पड़े? श्रीनगर में पूर्व आतंकियों के साथ ही बच्चों को •ाी इन गुटों में शामिल कराए जाने की खबरें है। इसमें कई और आतंकी संगठन •ाी साथ दे रहे हैं। इंडियन मुजाहिदीन के साथ अब जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठन •ाी शामिल हो गए हैं। घाटी में आतंक का सफाया कर देने के लिए तैयार रहने वाले सुरक्षा बलों के लिए हैरान कर देने वाली बात यह है कि जिन आतंकियों को उन्होंने हिरासत में लेकर सलाखों के पीछे •ोजा और बाद में उन्हें फिर से मुख्यधारा में शामिल किया था, वे पुन: इन आतंकी संगठनों में शामिल हो रहे हैं। मुंबई में आतंकी हमलों की तैयारी फिर से शुरू कर दी गई है, इसके लिए बकायदा युवाओं को प्रशिक्षण देना •ाी शुरू कर दिया है। यह सारा काम इंडियन मुजाहिदीन के इशारे पर सुरक्षा एजेंसियों की नाक के नीचे हो रहा है। यदि 26 अगस्त की रात एक बजकर 45 मिनट पर मुंबई के मीरा रोड पर धमाका न हुआ होता, तो सुरक्षा एजेंसियों को इस साजिश का पता •ाी नहीं चलता। इस हादसे से सुरक्षा एजेंसियों के साथ-साथ पुलिस •ाी हैरान है। हालांकि इस हादसे में कोई घायल नहीं हुआ, लेकिन यह क्यों और किसने किया? इसकी खबर किसी को नहीं है। जाहिरतौर पर इतनी रात में धमाका किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं किया गया था। इस बात की •ाी सं•ाावना है कि बम बनाते वक्त फट गया होगा। पुलिस जांच में जुटी है, लेकिन उस जगह कोई मौजूद नहीं है। खुफिया एजेंसियों का मानना है कि यह काम आतंकियों का ही हो सकता है। यह सं•ाव है कि वे किसी बड़े हमले की योजना बना रहे हों, क्योंकि इस इलाके में इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादियों ने छिपकर रहना शुरू कर दिया था। उल्लेखनीय है कि हिंदुस्तान में जब •ाी कोई आतंकी घटना होती है, उसका संबंध कहीं-न-कहीं मीरा रोड से होता है, फिर •ाी यहां की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर पुलिस या प्रशासन चौकस नहीं है। आतंकी पूरे मुंबई को दहलाना चाहते हैं और मीरा रोड इनके लिए सबसे महफूज ठिकाना है। 26/11 हमले में घूम-घूमकर पूरी मुंबई की रेकी करने वाला हेडली का आशियाना •ाी यहीं था। इन आतंकवादियों का ठिकाना सिर्फ मुंबई ही नहीं है। इंडियन मुजाहिदीन ने अपना जाल मालवा में •ाी बुना है। यह जाल तब बुनना शुरू हो चुका था, जब इंडियन मुजाहिदीन ‘सिमी’ के रूप में काम किया करता था। खास बात यह है कि देश में कहीं •ाी ब्लास्ट हो, तो खुफिया एजेंसियां सबसे पहले मालवा का रुख करती है, क्योंकि मालवा इंडियन मुजाहिदीन के लिए सबसे महफूज इलाका बन चुका है। मालवा क्षेत्र के शहरों मसलन मन्दसौर, राजगढ़, इंदौर, रतलाम, उज्जैन, सीहोर और धार में आतंक के मंसूबे को इंडियन मुजाहिदीन ने खूब हवा दी है। सिमी का गठन 25 अप्रैल 1977 को हुआ था, जिसका मकसद था मुस्लिम युवकों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ना और कुरान की आयतों के मुताबिक इस्लाम का प्रचार करना। थोड़े समय बाद ही सिमी अपने मकसद से •ाटक गया। सिमी को देशद्रोही गतिविधियों के चलते प्रतिबंधित कर दिया गया। तमाम तरह के प्रतिबंधों के बावजूद सिमी की राष्ट्रविरोधी गतिविधियां लगातार जारी रही। मालवा में सिमी की पैठ बनाने का काम सफदर नागोरी ने किया, जो देश के नाम पर शपथ खाने वाले एक इंस्पेक्टर का बेटा है। इन प्रतिबंधों से सिमी का काम मुश्किल हो गया था, इसी कारण सिमी का नाम इंडियन मुजाहिदीन कर दिया गया। नाम बदला, लेकिन आतंकी गतिविधियां और बढ़ गई। यह राज तब खुला, जब इंदौर पुलिस ने मुखबिरी के आधार पर होटल में छापा मारा और अबू फैजल उर्फ फरहान को सिमी के आधा दर्जन सदस्यों के साथ गिरफ्तार किया। एटीएस और सुरक्षा एजेंसियों की मानें, तो अ•ाी •ाी मालवा-निमाड़ क्षेत्र में कई स्लीपर सेल सक्रिय हैं, जो लूट के जरिए इन संगठनों के लिए पैसे का इंतजाम करते हैं। सिमी के हाल ही में पकड़े गए आठ आतंकियों से पूछताछ में हुए खुलासे ने तो सुरक्षा एजेंसियों के •ाी होश उड़ा दिए हैं। मालवा में आतंक को पनाह •ाी मिलती रही है और आगामी गतिविधियों का इंतजाम •ाी होता रहा है। मध्य प्रदेश की पुलिस •ाले ही यह दावा करती रही है कि सिमी और उससे जुडेÞ संगठनों का पूरी तरह सफाया हो चुका है, लेकिन इन स•ाी दावों की पोल तब खुल जाती है, जब देश में किसी •ाी हमले के बाद सुरक्षा एजेंसियों के तार मालवा से जुड़ जाते हैं। सच तो यह •ाी है कि इंडियन मुजाहिदीन को सिमी और पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर का मुखौटा माना जाता है। दिल्ली, मुंबई, उत्तर प्रदेश और बेंगलुरू के कई ब्लास्ट में इंडियन मुजाहिदीन का हाथ रहा है। ‘जिहाद’ के नाम पर बेगुनाहों का खून बहाने वाले इस आतंकी संगठन का नाम 23 फरवरी, 2005 को तब सामने आया, जब उसने वाराणसी में हमला किया था। जानकारों के मुताबिक, इंडियन मुजाहिदीन पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के हाथों की कठपुतली है। आमिर रजा खान इंडियन मुजाहिदीन के संस्थापक सदस्यों में से एक है। इस समय इंडियन मुजाहिदीन की कमान उत्तरी कर्नाटक के रहने वाले रियाज •ाटकल के हाथ में हैं, जो श्रीनगर से लेकर मुंबई तक एक जाल बुन रहा है। इससे पहले •ाी इंडियन मुजाहिदीन •ाारत में दस बड़े आतंकी हमलों से हिंदुस्तान को दहला चुका है। साल 2005 में दिवाली से ठीक पांच दिन पहले दिल्ली के सरोजिनी नगर में हुए ब्लास्ट में 66 लोगों की मौत हो गई थी। साल 2006 में मुंबई में सीरियल धमाके में 187 लोगों की मौत हुई थी। साल 2007 में लखनऊ, वाराणसी और फैजाबाद कोर्ट में सिलसिलेवार धमाके में 18 लोगों की मौत। साल 2008 में जयपुर में हुए ब्लास्ट में 80 लोग मारे गए। 25 जुलाई 2008 में बेंगुलुरू में हुए धमाके में दो लोगों की मौत, 26 जुलाई 2008 में अहमदाबाद में सिलसिलेवार धमाकों में 56 लोगों की मौत और 200 लोग घायल हो गए थे। 13 सितंबर 2008 दिल्ली में सीरियल ब्लास्ट में 30 लोगों की मौत, 13 फरवरी 2010 को पुणे के जर्मन बेकरी ब्लास्ट में 17 लोग मारे गए। उसके बाद इस साल हुए सीरियल ब्लास्ट में •ाी इंडियन मुजाहिदीन का हाथ सामने आया है। इन आंकड़ों से साफ होता है कि इंडियन मुजाहिदीन दिन-ब-दिन अपनी ताकत बढ़ाता जा रहा है, लेकिन हमारी सुरक्षा व्यवस्था जस की तस है। इनपुट : न्यूज एक्सप्रेस

शुक्रवार, 8 जून 2012

ऐसा क्यों ?

एक बार मैंने उन्हें कह दिया तुम मेरी जि़न्दगी हो! बहुत ख़ुश हुईं!! खनकती आवाज़ में बोलीं, 'शुक्रिया!Ó आज भी उनकी आवाज कानों में रस घोलती है। कितना अपनापन था। आज भी देह सिहर उठा, जब फोन रिसीव किया था। लगा वही हैं। लेकिन थी नहीं। कॉल सेंटर से फोन था। मन हुआ, सुनता ही रहूं। काश! आज वह याद आ रही है, जब नहीं वह नहीं है। इंसानी फितरत है, जब कोई पास में नहीं होता है, तभी उसकी अहमियत जान पड़ती है। यह आभास आज हो रहा है। तब नहीं हुआ था। मन कचोट जाता है, स्मरण मात्र से। लेकिन कर भी क्या सकता हूं? उनसे जुड़ी तमाम बातें एक-एक करके मानस पाटल पर अंकित होती चली जा रही है। लगता है कल की ही बात है। वास्तव में करीब एक दशक पूर्व हमारी पहली मुलाकाम एक छोटे से कस्बे में हुई थी। उम्र में मुझसे चंद साल बड़ी रही होंगी। आज तक उम्र नहीं पूछा। लड़कियों का उम्र नहीं पूछते भाई। मुलाकात होती गई और समय बीतता गया। यह तो समयचक्र है, जो हर वक्त चलायमान रहता हैै और उसी के वशीभूत प्राणी समझता है कि वह बदल गया हैै। लेकिन वास्तव में समय बदलता है, साथ ही नयी जिम्मेदारियां और प्राथमिकताएं आ जाती हंै। और मानव को उसे गाहे-बगाहे स्वीकार करना होता है। जिसने समय की इस नियति को स्वीकार नहीं किया है, समय उसका अस्तित्व ही मिटा देता है। समयचक्र की उसी गति में मैं बदल गया और बदल गया मेरा परिवेश। बदल गई हैं मान्यताएं । जिसे मैं अपने जीवन का सिद्घांत समझता था, जिनको अपना अराध्य मान लिया था, वह भी तो बदल गया है। याद आ रहा है, वह पड़ाव जहां आकर आकर दोनों के राह जुदा हुए। कसमें खाईं थी रहगुजर होने का। लेकिन...सामाजिक डर के कारण निभा नहीं सका। विजातीय होने से समाज का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। सामने से तो साहस था, मैं ही भीरू निकल गया। फिर, उस मोहपाश से किसी तरह निकल पाया था। औपचारिक शिक्षा पूरी करते ही महानगर आ पहुंचा। यह रहने के संग पुराने रिश्ते छीजते गए। संवेदनाएं कम होती रहीं। प्राथमिताएं बदलती गईं। जिनके बिना पहले रहना मुश्किल होता, उनकी याद मुश्किल से ही आती। शायद यह मानवीय गुण है। आम आदमी की। जि़न्दगी में भी जैसे-जैसे महत्व एवं उपयोगिता बढ़ती जाती है, व्यक्ति उत्तेजनारहित और शांत होता जाता है। खनक! सिक्कों की खनक तो सुनी ही होगी आपने। सिक्के, मूल्य वाले तो होते हैं एक, दो, पांच के, पर आवाज ज़्यादा निकालते हैं। वहीं दस, बीस, पचास, सौ, पांच सौ और हज़ार के नोट शांत होते हैं, ख़ामोश रहते हैं, क्योंकि उनका मूल्य अधिक होता है। इसी तरह जि़न्दगी में भी जैसे-जैसे महत्व एवं उपयोगिता बढ़ती जाती है, व्यक्ति उत्तेजनारहित और शांत होता जाता है। नए जिम्मेदारियां उसे फुरसत ही नहीं लेनी देती। सच तो यह भी है कि जि़न्दगी में हर कोई सफलता की ऊँचाई प्राप्त करना चाहता है। पर हम कितनी ऊँचाई प्राप्त कर सकते हैं, तब तक नहीं जान पाते जब तक हम उड़ान भरने के लिए अपने पंख नहीं फैलाते। मगर इसके साथ एक दिक्कत भी है। हम अपने पुराने जमीन से दूर होते जाते हैं। कुछ ऐसा ही तो हुआ था। जीवन को बेहतर बनाने की कवायद में वह स्मृति के किसी स्याह कोने में चली गईं थी। अचानक आज फोन की आवाज से बेतरतीब चित्र उभरने लगे। उसका एक-एक कहा शब्द याद आने लगा। याद आता है उसकी सादगी, उसकी मौसिकी की न$फासत और नजाकत भी। प्रेम में टूटी हुई, बिखरी हुई- खुदï्दार स्त्री। वास्तव में उसकी बातों में एक अजीब सी चहचहाट थी जो अपने मद्घिम-मद्घिम सुरों में सोते हुओं को जगाने का काम करती थी। उसमें रूमानियत भी थी और गहरी ऐंद्रिकता भी, पर कहीं भी ऐसा नहीं लगता कि सामने की दुनिया सिफऱ् एक सपना हैै। अपनी सूक्ष्म यथार्थपरकता के कारण ही मुख्य रूप से स्त्री और प्रेम को आधार बनाकर उसकी कही बातें आज भी जेह्न में आती हैं, कितनी परिपक्व थी उसकी सोच। कभी-कभार झुंझलाती थी मुझ पर या स्वयं पर ? समाज की रूढि़वादी मान्यताओं पर? अथवा कार्यक्षेत्र की चकाचौंध भरी भागम-भाग जि़ंदगी और गलाकाट प्रतिस्पर्धा पर, जिसके मारे हुए हम दोनों ही थे? दोनों के बीच आरोप-प्रत्यारोप चलता था, लेकिन वैयक्तिगत स्तर पर नहीं, समूह के आधार पर। मैं महिला को कोसता तो वह पुरुष को। कारण, हम दोनों कमोबेश एक ही सोच के थे। फिर भी दोस्ती थी...............। कई बार तो गिरने से संभाला था। शुक्रिया भी तो नहीं कहा था। आखिर, गंगा में स्नान करने के बाद भला कोई यह कहता है, ''शुक्रिया माँ गंगे, तूने मेरा पाप धो डाला।ÓÓ जि़न्दगी का हर हिस्सा एक समान नहीं होता। कुछ करड़-मरड़ की आवाज़ वाला, तो कुछ कड़वे-कसैले स्वाद वाला, वहीं कुछ मुलायम तो कुछ कठोर पल वाला। जब भी परेशान होता तो वह कहा करती थी, सुंदर जि़न्दगी बस यूं ही नहीं हो जाती। इसे रोज़ बनाना पड़ता है अपनी प्रार्थनाओं से, नम्रता से, त्याग से एवं प्रेम से! उस पल तो शांत हो जाता था। लेकिन आज मन की ज्वाला शांत नहीं हो रही। दशक बीत चुके हैं। आज फिर से उसका साथ पाने को मन आतुर हो रहा है। आखिर क्यों? मन में एक हूक-सी उठती है। जबाव मिलता है- भीरूता का यही परिणाम होता है। जब वह थी तो उसका महत्व समझ नहीं पाया और जब आज वह नहीं है तो उसका पुराण पाठ स्मृति में कर रहा हूं। यह मानवीय लक्षण है। जब कोई हमारे पास नहीं होता,तो हम बड़ा ख़ाली-ख़ाली महसूस करते हैं, अकेलापन का अनुभव करते हैं। ऐसे लोगों से जि़न्दगी के मतलब बदल जाते हैं। ऐसे लोग हमारे हृदय तंतुओं को छूते हैं। उनके आस-पास रहने से हममें मधुर भावनाओं का संचार होता है। जि़न्दगी में हम विभिन्न प्रकार के लोग से मिलते हैं। कुछ लोग अन्य की तुलना में हमारे ज़्यादा प्रिय हो जाते हैं। ऐसा क्यों होता है? शायद वह हमारे किस्मत में नहीं होते। हमारी करनी का फल नियति देता है। जिसका कद्र तुमने नहीं किया, वह तुमसे आगे निकल जाएगा। तुम्हारे पास पछतावे के अलावे कुछ नहीं होता।

किसान चले सात समुद्र पार

किसान इस देश में सबसे हिकारत कि चीज़ बना दिए गए हैं। उनके नाम पर कजऱ्माफी की छलावे और धोखेबाजियों भरी घोषणा करके सरकार किसान-कन्हैया बन जाती हैं और किसान भौंचक रहते हैं कि उन्हें मिला क्या? लेकिन अब भारतीयों किसानों की उद्यमिता और लगन को देखते हुए उनकी मांग कनाडा, अमेरिका सरीखें देशों में होने लगी है। भारतीय किसान परिश्रम, सेवा और त्याग की सजीव मूर्ति है। उसकी सादगी, सरलता तथा दुबलापन उसके सात्विक जीवन को प्रकट करती है। उसकी प्रशंसा में ठीक ही कहा गया है- नगरों के ऐसे पाखंडों से दूर, साधना निरत, सात्विक जीवन के महा सत्य तू नंदनीय जग का, चाहे रहे छिपा नित्य, इतिहास कहेगा तेरे श्रम में रहा सत्य। किसान संसार का अन्नदाता कहा जाता है। वह सवेरे से सूर्यास्त तक लगातार काम करता है। संकट में भी किसी से शिकायत नहीं करता। दुख के घूंट पीकर रह जाता है। उसके रहन-सहन में बड़ी सरलता और सादगी होती है। वह फैशन और आडम्बर की दुनिया से हमेशा दूर रहता है। उसका जीवन अनेक प्रकार के अभावों से घिरा रहता है। अपनी सरलता और सीधेपन के कारण वह सेठ साहूकारों तथा ज़मीदारों के चंगुल में फंस जाता है। वह इनके शोषण की चक्की में पिसता हुआ दम तोड़ देता है। मुन्शी प्रेमचन्द्र ने अपने उपन्यास गोदान में किसान की शोचनीय दशा का मार्मिक चित्रण किया है। किसान कुछ दोषों के होने पर भी दैवी गुणों से युक्त होता है। वह परिश्रम , बलिदान, त्याग और सेवा के आदर्श द्वारा संसार का उपकार करता है। ईश्वर के प्रति वह आस्थावान है। प्रकृति का वह पुजारी तथा धरती मां का उपासक है। धन के गरीब होने पर भी वहमन का अमीर और उदार है। किसान अन्नदाता है। वह समाज का सच्चा हितैशी है। ऊसके सुख़ में ही देश का सुख़ है। भारतीयों की प्रतिभा और उद्यमिता का लोहा देश के दूसरे विकसित देश दशकों से मानते रहे हैं। आम भारतीय सीना ठोंक कर कहता है कि अमेरिका के तकनीकी विकास में हमारी महत्ती भूमिका है, वरना 'नासाÓ जैसे संगठनों में एक तिहाई से अधिक भारतीयों की संख्या नहीं होती। हमारे देश से 'ब्रेन ड्रेनÓ की बात दशकों से होती रही है और उससे पूर्व श्रम का भी पलायन हुआ है। एक बार फिर देश से श्रम का पलायन होने वाला है, वह भी 'अन्नदाताओंÓ का। आम शहरी की नजर में किसान इस देश में सबसे हिकारत कि चीज़ बना दिए गए हैं। सरकार उनके विकास की खातिर कई योजनाओं की बात करती है, लेकिन किसान तक पहुंचते-पहुंचते वह फलीभूत नहीं हो पाती। सो, कृषि क्षेत्र का संकट पिछले दशक में एक लाख से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की, आखिर क्यों ? शायद इसका माकूल जबाव हमारे सरकार के पास भी नहीं हो। भले ही देश में किसानों की दुर्दशा हो रही हो पर पश्चिमी देशों में भारतीय किसानों का जादू सिर चढ़कर बोल रहा है। अमेरिका और कनाडा जैसे देश हमारे किसानों को अपने यहां बसाने के लिए बेकरार हैं। हालत यह है कि भारतीय किसानों को बुलाने के लिए इन देशों में अपनी आव्रजन नीतियों में भी बदलाव से गुरेज नहीं किया है। हालिया दिनों में जिस प्रकार के संकेत मिलने शुरू हुए हैं, उससे तो यही कहा जा सकता है कि कनाडा, अमेरिका व कजाकिस्तान ने नई आव्रजन नीति बनाई है। इसके तहत इन देशों में भारतीय किसानों का बसना आसान हो जाएगा। ये देश मानते हैं कि भारतीय किसान मेहनतकश हैं और इसके सहारे वह विश्वभर में क्रांति ला सकते हैं। इसी विश्वास के चलते इन देशों ने कृषि और व्यापार श्रेणी में आव्रजन के लिए शैक्षणिक योग्यता और अंग्रेजी के ज्ञान की शर्ताें को हटा दिया है। दरअसल, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार आर्थिक सुधार के दशकों में हमारी श्रम-उत्पादकता 84 प्रतिशत तक बढ़ी है। परंतु आईएलओ की वही रिपोर्ट यह भी बताती है कि निर्माण क्षेत्र में श्रमिकों के वास्तविक मजदूरी में 22 प्रतिशत की कमी हुई है (ऐसे समय में जबकि सीईओ के वेतन आसमान छू रहे हैं)। इस तरह पिछले 15 वर्षों के दौरान अपनी आबादी के ऊपर के एक छोटे से हिस्से की अप्रत्याशित समृद्घि देखी है और ठीक उसी समय पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से शुद्ध प्रति व्यक्ति खाद्यान्न की उपलब्धता घटी है। आबादी के निचले तबके में बढ़ती भूख- खाद्य असुरक्षा की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था एफएओ का विश्व रिपोर्ट यह दिखाता है कि 1995-97 से 1999-2001 के बीच लाखों की संख्या में जितने नये भूखे भारतीय आबादी में जुड़े, वो पूरे विश्व में भूखों की कुल संख्या से भी अधिक थे। हमारे देश में ऐसे समय में भूख बढ़ी है जबकि यह इथोपिया में भी घटी है। हमारे देश के कुछ शहरों में रोज एक नया रेस्त्रां खुलता है पर हमारे देश के प्रसिद्ध कृषि अर्थशास्त्री प्रो. उत्सा पटनायक बताती हैं कि एक औसत ग्रामीण परिवार 10 वर्ष पूर्व के मुकाबले आज 1000 किलोग्राम अनाज की कम खपत प्रतिवर्ष कर रहा है। खाद्यान्न उपलब्धता के यह आंकड़े संसद में प्रतिवर्ष रखे जाने वाले उस आर्थिक सर्वेक्षण से लिए गये हैं, जो हमें शुद्ध प्रति व्यक्ति खाद्यान्न उपलब्धता (एनपीसीए) संबंधी आँकड़े मुहैया कराता है। इस सर्वेक्षण के सहारे हम 1951 से लेकर अब तक के आँकड़े प्राप्त कर सकते हैं। यह उपलब्धता आर्थिक सुधारों के शुरूआती दिनों 1992 में 510 ग्राम थी। यह 1993 में 437 ग्राम तक गिर गया। 2005 का अपुष्ट आँकड़ा 422 ग्राम था। एक-दो वर्षों में यह थोड़ा जरूर बढ़ा है, पर पिछले 15 वर्षों में समग्र रूप से देखा जाए तो एक स्पष्ट गिरावट हुई है। कहा जा रहा है कि द्वि-राष्ट्र का सिद्धांत अब पुरानी बात है, अब दो ग्रहों की सी स्थिति है- आज 5 प्रतिशत भारतीय आबादी के लिए पश्चिमी यूरोप, संरा अमेरिका, जापान और अस्टे्रलिया बेंचमार्क है और तलछटी में रहने वाली 40 प्रतिशत आबादी के लिए उप-सहारा के अफ्रीकी देश बेंचमार्क हैं, जो साक्षरता में हमसे भी आगे हैं। पिछले दशक में ऋण का बोझ दुगुना हुआ है- हृस्स्ह्र का 59वाँ सर्वेक्षण हमें बताता है कि जहाँ 1991 में 26 प्रतिशत खेतिहर घरों पर कर्ज का बोझ था, 2003 तक यह प्रतिशत लगभग दुगुना बढ़कर 48 प्रतिशत हो गया है। लिहाजा, अव्यवस्था और आय के स्त्रोतों के ध्वस्त होने एवं जीवन-खर्च में बेतहाशा वृद्धि के कारण बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा है। इसी संदर्भ में वल्र्ड वाइड इमिग्रेशन कंसल्टेंसी सर्विसेज (डब्ल्यूडब्ल्यूआईसीएस) के सीमएडी ले.कर्नल बीएस संधू के अनुसार, ' भारतीय किसानों के लिए इस वक्त अमेरिका, कनाडा व यूरोप के देशों में स्थाई रूप से सेटल होने का उचित अवसर है। हालिया योजना के तहत न केवल विदेश जाकर समृद्घ किसान या व्यवसायी बना जा सकता है बल्कि अपने रिश्तेदारों और मित्रों को भी स्थाई नागरिकता उपलब्ध कराई जा सकती है। कृषि और व्यापार के क्षेत्र में घोषित आव्रजन योजना में आईलेटस भी पास नहीं करना पड़ेगा। केवल कृषि और व्यापार के क्षेत्र में कनाडा सरकार द्वारा घोषित योजना के तहत आठ लाख कनेडियन डॉलर की संपत्ति और पांच वर्ष का अनुभव होना जरूरी है।Ó दरअसल, गत दिनों मोहाली में वल्र्ड वाइड इमिग्रेशन कंसल्टेंसी सर्विसेज के तत्वावधान में एक सरपंच सम्मेलन का आयोजन किया गया था, जिसमें पंजाब सहित दूसरे प्रदेशों के करीब 130 सरपंच और प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। उसी सम्मेलन में यह बात सामने कि अब तक सैकड़ों किसान विदेश जाने के लिए आवेदन कर चुके हैं और कई इसके लिए मन बना रहे हैं। सम्मेलन के दौरान यह बताया गया कि कनाडा में 1.20 लाख कनेडियन डॉलर का निवेश करने पर वहां की सरकार 4 लाख कनेडियन डालर का ऋण भी प्रदान करेगी, जिसे आसान किश्तों में लौटाया जा सकता है। भारतीय किसानों का स्याह सच यह है कि किसान इस देश में सबसे हिकारत कि चीज़ बना दिए गए हैं। उनके नाम पर कजऱ्माफी की छलावे और धोखेबाजियों भरी घोषणा करके सरकार किसान-कन्हैया बन जाती हैं और किसान भौंचक रहते हैं कि उन्हें मिला क्या। एक निर्मम प्रक्रिया हैं जो सरकार चलाने से लेकर नीतियाँ बनाने और उन्हें लागू कराने तक में दिखती हैं। और इन सबसे जो निकलता हैं, वह हैं एक लाख से अधिक किसानों की आत्महत्या और हजारों किसानों का विद्रोह। कृषि क्षेत्र का संकट पिछले दशक में एक लाख से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या क्यों की ? मद्रास इंस्टीच्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज के प्रो. के. नागराज के शब्दों में कहें तो हम इस पूरी स्थिति को एक पंक्ति में इस तरह रख सकते हैं-जो प्रक्रिया इस संकट को संचालित कर रही है वो है- गाँवों के लूटनेवाली व्यवसायीकरण की प्रक्रिया। सभी मानवीय मूल्यों की विनिमय मूल्यों में तब्दीली। यह प्रक्रिया जैसे-जैसे ग्रामीण भारत में बढ़ती गई, जीविका के लाखों साधन ध्वस्त हो गये। लाखों लोग कस्बों और शहरों की ओर रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं, पर वहाँ काम नहीं हैं। वो एक ऐसी स्थिति की ओर बढ़ते हैं, जहाँ न तो वो मजदूर हैं और न ही किसान। कई घरेलू नौकर बन कर रह जाते हैं, जैसे कि दिल्ली शहर में झारखंड की एक लाख से अधिक लड़कियाँ घरेलू नौकरानियों के रूप में काम कर रही हैं। छोटी जोतवाले किसानों का विश्व-व्यापी संकट। हालाँकि, यह संकट किसी भी रूप में सिर्फ भारत से जुड़ा हुआ नहीं है। यह छोटे पैमाने पर खेती करने वालों का विश्वव्यापी संकट है। पूरी पृथ्वी पर से छोटे पारिवारिक खेतों को मिटाया जा रहा है और ऐसा पिछले 20 से 30 वर्षों से होता आ रहा है। यह ठीक है कि पिछले 15 साल में भारत में यह प्रक्रिया काफी तेज हुई है। नहीं तो किसानों की आत्महत्या ने कोरिया में भी काफी गंभीर चिंताएँ उत्पन्न किया है। नेपाल और श्रीलंका में भी आत्महत्याओं की दर काफी ऊँची है। अफ्रीका, बुर्किना फासो, माली जैसे इलाकों में बड़े पैमाने पर हुई आत्महत्याओं का कारण यह है कि संरा अमेरिका और यूरोपीय यूनियन की सब्सिडियों के कारण उनके कपास उत्पाद का कोई खरीददार नहीं रहा। इत्तफाक से, संरा अमेरिका के मिडवेस्ट और अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में भी समय-समय पर किसानों ने बड़े पैमाने पर आत्महत्याएँ की हैं। वास्तव में, अस्सी के दशक में अकलाहोमा में किसानों के आत्महत्या की दर संरा अमेरिका के राष्ट्रीय आत्महत्या दर के दुगुनी से भी ज्यादा थी और ऐसा कम ही होता है कि ग्रामीण आत्महत्या दर शहरी आत्महत्या के दर से ज्यादा हो। किसानों की स्थिति पर गहन दृष्टिï रखने वाले पी. सांईनाथ के अनुसार, 'हम कई रूपों में छोटे किसानों को टूटते और मरते देख रहे हैं। यह बहुत जरूरी है कि हम कुछ करें क्योंकि हमारा देश ऐसा सबसे बड़ा देश है जहाँ छोटे जोते वाले किसानों की संख्या सबसे ज्यादा है। संभवत: हमारे यहाँ ही खेतिहर मजदूरों और भूमिहीन श्रमिकों की संख्या सबसे ज्यादा है। अगर आप गौर करें तो संरा अमेरिका में जो कुछ घटा उससे सबक लेना चाहिए।संरा अमेरिका में 1930 में 60 लाख पारिवारिक खेत थे। यह वह समय था जब भारत स्वतंत्रता प्राप्त करने से ठीक एक दशक के आसपास दूर था, तब अमेरिका की एक चौथाई आबादी इन 60 लाख खेतों पर आश्रित थी और इनमें काम करती थी। आज अमेरिका में खेतों में काम करने वालों से ज्यादा लोग जेलों में बंदी हैं। आज 7 लाख लोग खेतों पर आश्रित हैं और 21 लाख लोग जेलों में हैं।हमें कॉरपोरेट खेती की ओर धकेला जा रहा हैयह प्रक्रिया हमें किस ओर ले जा रही है ? दो शब्दों में कहें तो कॉरपोरेट खेती की ओर। यह भारत और पूरे विश्व में आने वाले दिनों में खेती की बड़ी तस्वीर है। हमें कॉरपोरेट खेती की ओर धकेला जा रहा है। एक प्रक्रिया जिसमें खेती को किसानों से छीना जा रहा है और कॉरपोरेट के हाथों में सौंप दिया जा रहा है। संरा अमेरिका में बिल्कुल ऐसा ही हुआ है और विश्व के अन्य कई देशों में भी। यह जीत बंदूकों, ट्रकों, बुलडोजरों और लाठियों के सहारे नहीं मिली। ऐसा किया गया लाखों छोटे जोत वाले किसानों के लिए खेती को अलाभकारी बनाकर, वर्त्तमान ढाँचे में खेती कर गुजर-बसर करना असंभव कर दिया गया। यह सब बातें तब सामने आईं जब स्वतंत्र भारत के इतिहास में असमानता को तेजी से बढ़ता देखा गया। और यह समझने वाली बात है कि जब समाज में असमानता बढ़ती है, तब सबसे ज्यादा भार कृषि क्षेत्र पर ही पड़ता है। हर हाल में यह एक अलाभकारी क्षेत्र है। इस कारण जब असमानता बढ़ती है तो कृषि क्षेत्र पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है।भारत में असमानता का विध्वंसकारी विकासखरबपतियों में चौथा स्थान- मुझे पूरा विश्वास है कि आप यह जान कर रोमांचित हो जायेंगे कि 2007 में भारत में खरबपतियों की चौथी सबसे बड़ी संख्या थी। खरबपतियों की संख्या में हम संरा अमेरिका, जर्मनी और रूस को छोड़ सभी देशों से आगे हैं। इतना ही नहीं कुल संपत्ति के मामले में हमारे खरबपति जर्मनी और रूस के खरबपतियों के मुकाबले ज्यादा धनी हैं।Ó

बुधवार, 30 मई 2012

स्पीड मांगे मोर, 4 जी है न ...

हर दिल मांगे मोर। टेक्नोलॉजी के युग में कोई रूकना नहीं चाहता। प्रतीक्षा करने की •ाी किसी को फुर्सत नहीं। पलक झपकते ही सबकुछ चंद मिनटों में हासिल करना चाहते हैं। उसी सोच को साकार करने की दिशा में एक नया कदम है 4 जी। देश में 4 जी वायरलेस ब्रॉडबैंड सेवा शुरू हो गई। एयरटेल ने इसे कोलकाता में लांच किया। इसके शुरू होने से नेट सर्फिंग, गाने और वीडियो डाउनलोडिंग स्पीड में खासी तेजी आएगी। यह 3 जी से 5 गुना तो 2जी से 10 गुना तेज होगी। 4जी का इस्तेमाल फिलहाल कम्प्यूटर और लैपटॉप वगैरह में वायरलेस ब्रांडबैंड के तौर पर किया जा सकेगा, मोबाइल में नहीं। वास्तविक 4जी सेवा तब आएगी, जब 700 मेगाहर्ट्ज का बैंडविथ उपलब्ध होगा। डेढ़ से दो घंटे की फिल्म एवीआई फॉरमैट में 700-800 एमबी की होती है। यानी 8 सेकंड में आप एक फिल्म डाउनलोड कर सकेंगे। एयरटेल के चेयरमैन सुनील •ाारती मित्तल ने बताया कि इस महीने यह सेवा बेंगलुरू में शुरू की जाएगी। इसके बाद पुणे और चंडीगढ़ में इसे लांच किया जाएगा। इस सेवा की शुरूआत करते वक्त केंद्रीय सूचना व प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल •ाी कोलकाता में थे। जानकार कहते हैं कि 3जी के मुकाबले कहीं अधिक तेज गति और सुरक्षित ढंग से तथा किफायती दरों पर डाटा ट्रंसफर और एक्सेस की सुविधा उपयोक्ताओं (यूजर्स) को मिल सकेगी। इंटरनेट एंड मोबइल एसोसिएशन आॅफ इंडिया (आईएण्डएमआई) द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार हमारे देश में हर महीने बहुसंख्या में इंटरनेट उपयोक्ता जुड़ते हैं, जिनमें से अधिकतर छोटे शहरों और कस्बों से होते हैं। इसके लिए 4 जीएलटीई तकनीक के आने से इंटरनेट की शक्ति और पहुंच का इस्तेमाल ग्रामीण और दूर-दराज के क्षेत्रों में •ाी सफलतापूर्वक किया जा सकेगा। इससे इन क्षेत्रों में बेहतर संचार, शिक्षा-कॉमर्स एवं ई-गवर्नेस की सुविधा का प्रसार कर पाना सं•ाव होगा। खासकर गांवों में साक्षरता संबंधी समस्याओं को दूर करने में इससे काफी मदद मिलेगी। तकनीक है उन्नत इंटरनेट ब्रॉडबैंड सेवा प्रदान करने की 4 जीएलटीई (लांग टर्म इवोल्यूशन) एक उन्नत तकनीक है। इसमें ‘जी’ का अर्थ है जेनरेशन, यानी पीढ़ी। इस तकनीक पर आधारित ब्रॉडबैंड सेवा प्रदान करने के लिए सरकार ने कुछ निजी ब्रॉडबैंड कंपनियों को ब्रॉडबैंड वायरलेस एक्सेस (बीडब्ल्यूए) लाइसेंस जारी किए हैं। जिन कंपनियों को बी.डब्ल्यू.ए. लाइसेंस प्रदान किए गए हैं, उनमें तिकोना डिजिटल नेटवर्क्स, इनफोटेल, क्वालकॉम, एयरसेल और आॅगेयर आदि कंपनियां शामिल हैं। नि:संदेह 4 जी तकनीक डाटा एक्सेस को काफी तेज बना देगी। 4 जी तकनीक के आने से डाटा ट्रंसफर स्पीड में करीब दस गुना वृद्धि हो जायेगी। पहले की तकनीकों में 1जी में सिर्फ बात करने तथा टेक्स्ट मैसेज •ोजने की सुविधा। 2जी में बातचीत के अलावा इंटरनेट तथा रोमिंग की सुविधा। 3जी में 21 एमबीपीएस इंटरनेट स्पीड, मोबाइल पर वीडियो कॉल्स। 4जी में 100 एमबीपीएस इंटरनेट स्पीड, वीडियो क्वालिटी अधिक स्पष्ट। कितनी अधिक है गति? 2-जी और 3-जी परिवार के उन्नत रूप, 4-जी में 3-जी की तुलना में पांच गुना अधिक तीव्र सेवा मिल सकेगी। इसके जरिए हाईडेफिनेशन मोबाइल टीवी और वीडियो कान्फ्रेंसिंग •ाी की जा सकेगी। 4 जी में डाउनलोड की गति 100 मेगाबाइट प्रति सेकेंड तक पहुंच सकती है। तेज है पर महंगा कोलकाता में लांच की गई ये सेवा 999 रुपये में छह जीबी डाटा डाउनलोड से शुरू होती है। इसके अलावा 1399 रुपये में नौ जीबी डाटा और 1999 रुपये में 18 जीबी डाटा डाउनलोड की योजना •ाी उपलब्ध है। इस सेवा का ला•ा उठाने के लिए जो डोंगल लेना पड़ेगा, उसका दाम 7,999 रुपये रखा गया है। अ•ाी उप•ोक्ताओं को 3जी सेवाओं के डोंगल 2500 रुपए से कम में मिल जाते हैं। 4 जी के फायदे 4 जी में डाउनलोड की गति 100 मेगाबाइट प्रति सेकेंड तक पहुंच सकती है। 3 जी में ये गति 21 मेगाबाइट प्रति सेकेंड तक होती है। इसे सेवा लॉन्ग टर्म इवोल्यूशन नामक टेक्नोलॉजी पर शुरू की है। फिलहाल कोलकाता में ही उपलब्ध है। जल्द ही दूसरे शहरों सुविधा मुहैया करा दी जाएगी। 3-जी को फ्लाप बताया केंद्रीय दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने कोलकाता में 4-जी सेवा शुरू करते हुए कहा कि 2-जी सेवा की तरह 3-जी सेवा लोकप्रिय नहीं हो सकी। सिब्बल ने माना कि 3जी सेवाओं के लिए मूल•ाूत संरचना में निवेश तथा जरूरी उपकरणों की कमी के कारण इसे जनमानस के बीच लोकप्रिय नहीं बनाया जा सका। हम स्वीकार करते हैं कि 3-जी सेवा अधिक लोकप्रिय नहीं हो सकी, क्योंकि इस क्षेत्र में निवेश की कमी दिखी। स्पेक्ट्रम पाने के लिए कम्पनियों ने हालांकि बड़ी रकम खर्च की। अ•ाी शुरूआत, फैलना है शेष 4जी को फिलहाल केवल कोलकाता में लांच किया गया है। अगले चरण में एयरटेल इसे बेंगलूरू में लांच करेगा। इसके बाद पंजाब, महाराष्ट्र और कर्नाटक सर्किल्स में •ाी इसका विस्तार किया जाएगा। दरअसल, 4जी की रेस में एयरटेल के अलावा रिलायंस इन्फोटेल, क्वॉलकॉम, एयरसेल जैसी कई कंपनियां शामिल हैं, मगर इनमें से केवल इन्फोटेक को ही पूरे देश में 4जी सेवा देने का लाइसेंस मिला है। - 4 जी है 3 जी से 5 गुना तो 2जी से 10 गुना तेज - 4 जी में 100 एमबीपीएस इंटरनेट स्पीड, वीडियो क्वालिटी है अधिक स्पष्ट - वास्तविक 4जी सेवा तब आएगी, जब 700 मेगाहर्ट्ज का बैंडविथ होगा उपलब्ध - 8 सेकेंड में डाउनलोड कर सकते हैं एक फिल्म

मंगलवार, 22 मई 2012

.अब जेलर करेंगे कैदी को सैल्यूट

एक पुरानी कहावत है, दिन धरावे तीन नाम। कुछ ऐसा ही है राजा भैया के संग। जिन जेलों में वह सजायाफ्ता कैदी रह चुके हैं, वहां के जेलर अब उनके चौखट पर शीश झुकाएंगे। हाय रे किस्मत... कुछ ऐसा ही है भारतीय लोकतंत्र। जहां कुछ भी हो सकता है। चुनावी गणित किसी को रंक तो किसी को राजा बना सकता है। कुछ भी पहले से तय नहीं। कब उल्टी गंगा बहने लगे, कह नहीं सकते। अब, उत्तरप्रदेश के मंत्री राजा भैया को ही ले लें। वर्षों जेल में रहे, अब जेलर सलामी ठोकेंगे। हाय रे किस्मत। मंत्री तो बन गए, पर जेल से नाता नहीं टूटा। रघुराज प्रताप सिंह का। इस नाम से इन्हें कम लोग जानते हैं। राजा भैया के नाम से जगप्रसिद्ध हैं। बड़े-बड़े आरोपों के चक्कर में कई दफा जेल जा चुके राजा भैया के खाते में एक बार फिर जेल ही आया। उत्तरप्रदेश के नए मंत्रिमण्डल में उन्हें मंत्रिपद मिला और जेल का मंत्रालय सौंपा गया। अब बतौर मंत्री उत्तर प्रदेश की सेवा करेंगे और इनकी सेवा का क्षेत्र होगा जेल। कई संगीन मामलों में आरोपी होने के चलते जेल जा चुके राजा भैया यूपी के नए जेल मंत्री हैं। पोटा और गैंगस्टर एक्ट समेत कई संगीन मामलों में आरोपी रहे कुंडा के निर्दलीय विधायक राजा भैया मुलायम सिंह की सरकार में साल 2005 में भी मंत्री रह चुके हैं। शपथ ग्रहण के बाद बतौर सीएम अखिलेश यादव ने कहा था कि राजा भैया के खिलाफ सभी मुकदमे राजनीतिक साजिश के तहत दर्ज किए गए हैं। राजा भैया के खिलाफ 45 आपराधिक मुकदमे लंबित हैं। हालांकि, पोटा के आरोपों से वे बरी हो गए हैं। दिसंबर 2010 में एक स्थानीय नेता ने निकाय चुनावों के दौरान राजा भैया और एक सांसद, एक विधायक और एक विधान परिषद सदस्य समेत 13 लोगों के खिलाफ जान से मारने की कोशिश का मुकदमा दर्ज कराया था। इस मामले में राजा भैया को गिरफ्तार करके उनके खिलाफ गैंगस्टर एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया। इससे पहले साल 2002 में भाजपा विधायक पूरन सिंह बुंदेला ने उन पर अपहरण करने का आरोप लगाया। कुंडा विधानसभा सीट पर राजा भैया की निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर यह लगातार पांचवी जीत है। वह अपने क्षेत्र में कई स्कूल और कॉलेज चलाते हैं, जिससे स्थानीय लोगों में उनकी पैठ मजबूत हो गई है। कुंडा रियासत के भदरी घराने से आने वाले राजा भैया जेल में रहकर सजा भी काट चुके हैं। राजा भैया का जन्म 1969 में हुआ। इनके पिता उदय प्रताप सिंह हैं। दादा राजा बजरंग बहादुर सिंह पंत नगर यूनिवर्सिटी के फाउंडर वाइस चांसलर थे। बाद में वह हिमाचल प्रदेश के पहले राज्यपाल बने। राजा भैया दून स्कूल से शिक्षा ग्रहण करने के बाद, लखनऊ यूनिवर्सिटी से स्नातक की शिक्षा ली। वह अपने खानदान के पहले व्यक्ति थे, जिसने राजनीति में कदम रखा। 1993 में हुए विधानसभा चुनाव से कुंडा की राजनीति में कदम रखने वाले राजा भैया को उनकी सीट पर अभी तक कोई हरा नहीं सका है। उनसे पहले कुंडा सीट पर कांग्रेस के नियाज हसन का डंका बजता था। हसन 1962 से लेकर 1989 तक कुंडा से पांच बार विधायक चुने गए। राजा भैया 1993 और 96 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी समर्थित, तो 2002 और 2007 के चुनाव में सपा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विधायक चुने गए। राजा भैया, भाजपा की कल्याण सिंह सरकार और सपा की मुलायम सिंह सरकार में भी मंत्री बने। मुलायम सरकार में खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री बनने के बाद उन्हें जेड-श्रेणी की सुरक्षा भी मिल चुकी है। राजा भैया की छवि एक ऐसे शख्स के रूप में है जो तत्काल न्याय दिलाता है। उनके गांव में एक तालाब है, जिसमें कई मगरमच्छ हैं। इस तालाब की तलाशी में कई साल पहले इंसानी और जानवरों की हड्डयिां भी मिलने की बात सामने आई थी। राजा भैया का आपराधिक इतिहास रहा है। वह अब भंग हो चुके पोटा कानून के तहत जेल में रहे हैं और उनके घर पर रेड मारने वाले पुलिस आॅफिसर की हत्या के आरोपी हैं। संदेहास्पद परिस्थिति में पुलिस अधिकारी की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। सीबीआई अभी भी इस मामले की जांच कर रही है। इसके अलावा भी उनके खिलाफ मुकदमों की लंबी लिस्ट है। इस विधानसभा चुनाव के दौरान राजा भैया ने चुनाव आयोग में जो हलफनामा जमा किया है, उसके मुताबिक उनके खिलाफ लंबित आठ मुकदमों में हत्या की कोशिश, अपहरण और डकैती के मामले भी शामिल हैं। उत्तर प्रदेश गैंगेस्टर ऐक्ट के तहत भी उनके खिलाफ मामला चल रहा है। साल 2002 में भाजपा के विधायक पूरन सिंह बुंदेला ने अपहरण और धमकाने का आरोप लगाते हुए राजा भैय्या के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई। तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के आदेश पर राजा भैया को 2 नवंबर की रात तीन बजे उनके घर से गिरफ्तार कर लिया गया। मायावती सरकार ने राजा भैया पर पोटा लगाया। साल 2003 में फिर से सूबे में मुलायम सिंह की सरकार आई और सरकार आने के 25 मिनट के भीतर ही राजा भैया से पोटा संबंधी आरोप हटा दिए गए। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने बाद में सरकार को पोटा हटाने से रोक दिया। 2004 में राजा भैया पर से पोटा आखिरकार हटा लिया गया। वर्तमान में उत्तरप्रदेश के नए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी कह दिया है कि राजा भैया पर राजनीतिक साजिश के तहत आरोप लगाए गए हैं। ऐसे में माना जा सकता है कि मंत्रीपद मिलने के बाद सबकुछ एडजस्ट हो जाएगा। कहीं, इसी एडजेस्टमेंट के तहत उन्हें जेल का महकमा तो नहीं दिया गया है। यह सवाल कई लोगों के जेहन में है। परिचय नाम : रघुराज प्रताप सिंह चर्चित नाम : राजा भैया पिता : उदय प्रताप सिंह दादा : राजा बजरंग बहादुर सिंह, हिमाचल प्रदेश के पहले राज्यपाल जन्म : 1969 व्यवसाय : राजनीति चर्चा में : पोटा और गैंगस्टर एक्ट को लेकर। 45 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज। मंत्री बनने के बाद भी उम्र विवाद का साया। रिकॉर्ड : कुंडा विधानसभा सीट पर लगातार पांच बार निर्दलीय विधाय