भारतीय राजव्यवस्था में शासनगत नीतियों के लिए विख्यात चाणक्य नीति के अनुसार बलशाली शत्रु को छल से तबाह करना चाहिए और इसके लिए साम, दाम, दंड, भेद चारों युक्ति का इस्तेमाल करना बुद्धिमानी है। चाणक्य ने ही अपने 'कौटिल्य अर्थशास्त्रÓ में कहा है कि यदि किसी देश को तोडऩा है तो सबसे पहले उसकी अर्थव्यवस्था को नेस्तोनाबूद कर दें, उसके बाद उस देश पर हमला करें। इसी नीति के तहत हिटलर ने भी जर्मनी में अपनी सत्ता कायम की थी। वर्तमान में यही चाणक्य नीति आज भारत को उलटे पल्ले पड़ गई है। पड़ोसी देश की खुफिया एजैंसी आईएसआई भारत को तबाह करने के लिए एक तरफ बम विस्फोट और विध्वंसक कार्रवाइयां कर रही है और दूसरी तरफ जाली नोटों के जरिए देश की अर्थव्यवस्था को तबाह करने पर तुली हुई है। यह सर्वमान्य सत्य है कि मुसीबत के समय काफी मुश्किलात 'अर्थÓ के सहारे हल किए जा सकते हैं, लेकिन जब आपकी 'अर्थÓ ही अप्रासंगिक हो जाएगी तो भला कैसे मुसीबतों का मुंहतोड़ जबाव देंगे। वाकई यह आतंकवाद का नया रूप है और अपना रूप विकराल करता जा रहा है। तभी तो इसे पर काटने के लिए गत दिनों भारत सरकार ने फैसला किया कि 1996 शृंखला के हजार और पांच सौ के नोटों का प्रचलन बंद करके इनके स्थान पर 2006 के महात्मा गांधी सीरीज के नोटों का प्रचलन बढ़ाएगी। असल में, सरकार के कान तब खड़े हुए जब राजधानी दिल्ली में भी नकली करंसी पकड़ी गई है।
सूत्रों के अनुसार हालिया दिनों में जब भारत सरकार ने पाकिस्तान पर निगरानी बढ़ा दी है तो पाकिस्तान नेपाल और बांग्लादेश के रास्ते सबसे ज्यादा नकली नोट भारतीय बाजार में उतार आ रहा है। जो सिलिपिंग मॉडयूल आतंकी घटनाओं को अंजाम देने का काम करता रहता है, उसी नेटवर्क का इस्तेमाल करके इस 'नव आतंकवादÓ को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे पूर्व भारत में नकली नोट मध्य-पूर्व और पूर्वी एशिया के देशों के रास्ते पहुँचता रहा है। इन देशों में भारतीय बड़ी संख्या में काम करते हैं। ये वो देश हैं जहां के लिए भारत ने सीधी विमान सेवाएं हाल ही में शुरू की है। कहा जाता है कि नकली नोटों का सौदागर कुछ भारतीय लोगों को नोटों का वाहक बनने के लिए राजी कर लेता है। उत्तरप्रदेश से पहले राजस्थान, पंजाब, मध्यप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, आंधप्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्टï्र, कर्नाटक आदि रास्तों से आयात किया जाता है।
कहा जा रहा है कि पाकिस्तान भारतीय धन के साथ भारत में छद्म लड़ाई लड़ रहा है। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने का मकसद भी पूरा होता है। खुफिया एजैंसियों के अनुमान के मुताबिक आईएसआई देश की वाणिज्यिक राजधानी मुम्बई में ही विभिन्न गतिविधियों और आतंकी कार्रवाइयों के लिए करोड़ों रुपए दे रही है। जाहिर है इसके लिए वह जाली करंसी का सहारा लेती है। इससे पूर्व देश में जाली स्टाम्प पेपर का अरबों रुपए का घोटाला सामने आया था। जिस प्रकार सरकारी स्टाम्प पेपरों में जो कागज इस्तेमाल किया जाता है ठीक ऐसे ही कागज का इस्तेमाल जाली स्टाम्प पेपरों या नोटों के लिए किया जाता है। इस कारण आम आदमी इसका अंतर नहीं समझता। विदेशों में बैठे भारत विरोधी तत्व इसके लिए सक्रिय हैं जिन्हें पाकिस्तान की खुफिया एजैंसी आईएसआई का संरक्षण प्राप्त है। देश के गुमराह युवक या रातोंरात करोड़पति बनने का ख्वाब देखने वाले युवक इसके हत्थे आसानी से चढ़ जाते हैं जिसके माध्यम से यह खेल शुरू हो जाता है। हाल ही के वर्षों में हैदराबाद ऐसे केन्द्र के रूप में उभरा है जहां आईएसआई की नकली करंसी दुबई से भेजी जाती है। दुबई में जाली भारतीय करंसी नोटों की बिक्री व वितरण में लगे एक एशियाई गिरोह का पर्दाफाश हुआ जिसमें 20 लाख की जाली करंसी के साथ एक सदस्य गिरफ्तार हुआ था। बाद में उसके कुछ अन्य सहयोगियों को भी जाली मुद्रा के साथ काबू किया गया। यह भी रहस्योद्घाटन हुआ कि दाऊद इब्राहिम की 'डीÓ कम्पनी भी आईएसआई के सहयोग से जाली भारतीय करंसी के धंधे में लगी है। ये नकली नोट दुबई से सीधे हैदराबाद, बेंगलुरु, तिरुवनंतपुरम, कोच्चि व अन्य जगह भेजे जाते हैं। इनकी खेप काठमांडौ, ढाका भी भेजी जाती है जहां से इन्हें भारत में भेजा जाता है।
कहा तो यहां तक जा रहा है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने भारत की अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाने की हरचंद कोशिशेां में जुटी है। लगता है कि करेंसी नोट छापने के कागज आईएसआई के हाथ लग गए है और वह इसका फायदा उठाकर आतंकियों को बेहिसाब पैसा उपलब्ध करा रही है। इसी को ध्यान में रखकर संसद की एक समिति ने सरकार से कहा कि वह इस बात की जांच कराए कि जिन विदेशी कंपनियों के साथ इस कागज की आपूर्ति को लेकर समझौता किया गया है, कहीं उन्होंने किसी दूसरे देश को भी इस कागज की सप्लाई तो शुरू नहीं कर दी है। इस संदेह की पुष्टि इससे भी होती है कि कोलकाता में एक पाक नागरिक मोहम्मद यूसुफ उर्फ सरफराज को दस लाख के नकली नोटों के साथ पकड़ा गया है। यह व्यक्ति बांग्लादेश के एक बैंक में निदेशक है। सुरक्षा एजेंसियों को इस तरह की आशंका पहले भी रही है। खुफिया ब्यूरो में एक सूत्र ने कहा कि सरकार को इस बात की जानकारी है।
नेपाल में शरण लिए भारत के भगोड़े अपराधी देश की आर्थिक रीढ़ पर प्रहार करने के लिये वहां से भारतीय जाली नोट का कारोबार कर रहे हैं। इस कार्य में ये अपराधी बिहार के बेरोजगार युवकों और यहां से अन्य प्रदेशों में मजदूरी करने के लिए जाने वाले लोगों को लोभ देकर उनसे भी जाली नोटों का धंधा कराते हैं। बिहार के रास्ते होने वाले नोटों की तस्करी में बताते हुए सीमा सशस्त्र बल के कमाडेंट एच।सी. भरोट ने बताया कि भारत के भगोड़े अपराधी मुन्ना खान, रामचन्द्र चौहान, मुरारी, पहलवान, राधे यादव आदि नेपाल में शरण लिए हुए हैं और वे भारत के सीमावर्ती इलाकों में जाली नोट के अपने धंधे का संचालन वहीं से करते हंै। भारतीय जाली मुद्रा की तस्करी के लिए ये अपराधी बिहार के पश्चिम चंपारण, किशनगंज, कटिहार, सीतामढी, मधुबनी एवं बिहार के नेपाल से सटे अन्य सीमावर्ती जिलों का उपयोग ट्रांजिट कैम्प के रूप में कर रहे है। ये अपराधी जिले के बेरोजगार युवकों तथा दूसरे राज्यों में रोजगार की तलाश में जाने वाले यहां के मजदूरों के माध्यम से एक हजार पांच सौ तथा सौ रुपये के जाली नोटों को देश के अन्य भागों में पहुंचाया जा रहा है। जाली नोट के इन धंधेबाजों के तार पश्चिम बंगाल पूर्वोत्तर क्षेत्र जम्मू कश्मीर, पंजाब, दिल्ली,राजस्थान, हरियाणा, उत्तारांचल तथा महाराष्ट्र सहित देश के अन्य भागों से जुड़े हुये हैं। नतीजतन आये दिन इन राज्यों में कोई न कोई जाली नोटों का सौदागर पकडा जाता है और वहां की पुलिस भी अन्य अभियुक्तों को पकडने के लिये यहां दस्तक देती रहती है। नेपाल से बिहार के सीमावर्ती इलाकों में इन दिनों बढे जाली नोटों, हथियारों और मादक द्रव्यों की तस्करी, बिहार में फिरौती के लिए अपहरण सहित अन्य आपराधिक गतिविधियों पर कैसे नियंत्रण पाया जा सके। इस संबंध में नेपाल के वित्तमंत्री बाबूराम भट्ट्टïराई से जब संपर्क किया गया तो उन्होंने बताया कि सीमावर्ती इलाकों में जारी आपराधिक गतिविधियों पर नियंत्रण के लिए भारत-नेपाल द्वारा एक क्षेत्रीय समन्वय कमेटी बनाने का निर्णय लिया गया है। हमने भारत सरकार से हरसंभव सहयोग का वादा किया है। अव्वल तो यह कि गत वर्ष 30 जुलाई को नेपाल की राजधानी काठमांडू के त्रिभुवन अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डा पर एक करोड़ के भारतीय जाली नोट के साथ एक व्यक्ति को अधिकारियों ने गिरफ्तार किया था। यह व्यक्ति नेपाल के बारा जिला का निवासी था।
पिछले कुछ वर्षो में नकली नोटों के एकदम असली जैसे दिखने के बाद से ही खुफिया एजेंसियों ने इस बारे में संबंधित विभागों को सतर्क किया था। सूत्रों का मानना है कि नोट छपाई में उपयोग आने वाली विशेष स्याही और कागज आाईएसआई को उपलब्ध है। अनुमान तो यह भी है कि भारतीय बाजार में उपलब्ध मुद्रा में 10 से 15 फीसदी नकली हो सकती है। साल 2007-08 के दौरान जाली नोटों की जांच के बाद उनकी कीमत में 137 फीसदी की वृद्घि दर्ज की गई। पिछले वित्तीय वर्ष के 2।4 करोड़ रुपए के मुकाबले इस साल उनका मूल्य बढ़कर 5.5 बढ़कर रुपए हो गया। वित्त मंत्रालय संबंधी की स्थायी समिति ने इस बात पर नाराजगी जताई है कि कई दशक बाद भी नोट का कागज बनाने और छपाई से जुड़ा पूरा काम अपने देश में नहीं होता। उसने सरकार से पूछा है कि हम अब तक क्यों विदेशी कंपनियों पर निर्भर है। नोट का कागज बनाने के लिए अब तक संयुक्त उद्यम पेपर मिल क्यों नहीं बना। सुरक्षा पेपर और इंक के लिए विदेशों के भरोसे रहने से देश पर नकली मुद्रा के प्रयार का खतरा मंडरा रहा है। वित्त मंत्रालय के मुताबिक नोट छपने वाला कागज देश में नहीं बनता। सरकार इसे ब्रिटेन, नीदरलैंड, जर्मनी, इटली और फ्रांस जैसे यूपरोपीय देशों की छह कंपनियों से मंगाती है। इसके लिए कंपनियों से समझौता किया गया है कि वे किसी अन्य देश या संगठन को वह कागज नहीं बेचेंगी जिस पर भारतीय नोट छापे जा रहे हैं। समिति की रिपोर्ट में हालांकि ऐसा कोई उदाहरण नहीं दिया गया है जिससे इस कागज के दुरूपयोग की बात सामने आए। पिछले तीन वर्ष में करीब सात करोड़ रूपये के नकली नोट बरामद किए गए है। एक अनुमान के मुताबिक अकेले उत्तर प्रदेश में ही 40 करोड़ रूपये मूल्य के नकली नोट प्रचलन में हैं।
आलम तो यह है कि अब सरकारी और प्रतिष्ठित बैंकों द्वारा भी धड़ल्ले से जाली नोटों का प्रचलन हो रहा है। आए दिन एटीएम से जाली नोट निकलने की शिकायतें मिल रही हैं। इसका मतलब साफ है कि असली और नकली नोटों में विभेद करना बैंक अधिकारियों के लिए भी संभव नहीं रहा है या इस षड्यंत्र में वे भी शामिल हैं तो ऐसे में आम जनता क्या करे? असली-नकली में भेद करना विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र में सहज नहीं है। एक मोटे अनुमान के अनुसार इन दिनों भारत में लगभग 17 खरब रुपए की नकली करंसी प्रचलन में है। सर्वविदित है कुछ समय पूर्व उत्तर प्रदेश के डूमरियागंज स्थित एक बैंक से लगभग तीन करोड़ की नकली करंसी मिली। नेपाल सीमा से लगे इस बैंक से रोजाना करोड़ों का लेन-देन होता है।
और तो और राष्टï्रीय राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा का आलम यह है कि लोग पांच सौ और एक हजार का नोट देखते ही पहला सवाल यही करते हैं कि यह नकली तो नहीं है? यही हाल बैंकों का भी है। अधिकांश बैंकों ने अपने यहां नोट चेक करने के लिए मशीनें लगा दी हैं। बैंक सूत्रों के मुताबिक यहां के बैंकों में प्रतिदिन दो या तीन नोट नकली निकल रहे हैं। अधिकत्तर पांच सौ या एक हजार के नोट ही नकली मिल रहे हैं। कुछ बैंक इन नोटों को जला देते हैं तो कुछ इन पर क्रॉस कर लाने वाले को वापस कर देते हैं। बैंक अधिकारी भी इस बात को कहते हैं कि जिन लोगों के पास एक-दो नकली नोट निकल रहे हैं वे लोग गलत नहीं है। उनकी मंशा बाजार में नकली नोट चलाने की नहीं है। बैंक ऐसे लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करता है और न ही पुलिस को सूचना देता है। बैंक उसी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करता है जिसके प्रति आभास हो जाता है कि यह नकली नोट जानबूझकर चलाने का प्रयास कर रहा है।
बात मध्यप्रदेश की कि जाए तो प्रदेश की राजधानी भोपाल सहित पूरे प्रदेश में नकली नोट का कारोबार तेजी से पांव पसार रहा है। एक अनुमान के अनुसार हर महीने दो करोड़ रुपए के नकली नोट प्रदेश के बाजार में उतारे जा रहे हैं। राजधानी में भी बड़ी संख्या में लोग यह शिकायत करते हैं कि उन्हें एटीएम या बैंक के काउन्टर से नकली नोट मिला। कई बार तो स्थिति यह होती ळै कि एक बैंक जिस नोट को असली बताता है, दूसरा उसे नकली बता कर जब्त कर लेता है। रिजर्व बैंक के सूत्रों के अनसुार दो सालों में नकली नोट मिलने की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। एक समय था जब रिजर्व बैंक के स्थानी कार्यालय में महीने में एक या दो नकली नोट आते थे, लेकिन यह संख्या अब बढ़ते-बढ़ते रोजना दो से तीन नोट रिजर्व बैंक में आ रहे हैं। इनमें से अधिकत्तर पांच सौ और हजार के होते हैं। साल 2007 के अंत में मध्यप्रदेश पुलिस ने भोपाल से करीब 75 किलोमीटर दूर होशंगाबाद में चार लोगों को गिरफ्तार किया था जिनके पास नकली नोट बनाने वाली मशीन की भी बरामदगी हुई थी। इस गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने खुलासा किया था कि ये लोगे 20 हजार रुपए लेकर एक लाख रुपए का नकली नोट देते थे।
वहीं, उत्तरप्रदेश में नकली नोटों के संजाल से परेशान होकर भारतीय रिजर्व बैंक पेट्रोल पंप कर्मचारियों को नोटों की पहचान करना सीखा रहा है। कहा जा रहा है कि अब पेट्रोल पंप पर पेट्रोल भरवाने के बाद उन्हें जाली नोट थमा कर नौ-दो ग्यारह होने वालों की खैर न होगी। पेट्रोल पंप एसोसिएशन के एक अधिकारी के अनुसार, 'अक्सर लोग पेट्रोल पंप पर आते हैं, अपनी गाड़ी में पेट्रोल भरवाते हैं और पांच सौ या हजार रुपए का नोट पकड़ा कर चले जाते हैं। बाद में जब हम पेट्रोल पंप बंद होने के बाद कैश चेक करते हैं तो एकाध नोट जाली पाया जाता है। हमारा अनुमान हैकि प्रतिदिन सर्वाधिक नकली नोट पेट्रोल पंप पर ही आते होंगे क्योंकि ग्राहक और पेट्रोल पंप कर्मचारी इतनी जल्दबाजी में होते हैं कि उन्हें असली और नकली नोट का फर्क करने की फुरसत नहीं होती।Ó इन हालातों से निपटने की बाबत भारतीय रिजर्व बैंक के क्षेत्रीय निदेशक जे।बी. भोरिया बताते हैं, 'पेट्रोल पंप एसोसिएशन ने भारतीय रिजर्व बैंक से कहा था कि वह पेट्रोल पंप कर्मचारियों और डीलरों को असली और नकली नोट की पहचान बताए और यह भी जानकारी दें कि विशेषकर पांच सौ या हजार का नोट ग्राहक से लेते समय क्या विशेष सावधानी बरतें क्योंकि अधिकत्तर यहीनोट नकली निकलते हैं। प्रथम चरण में करीब 100 पेट्रोल पंप कर्मचारियों को असली-नकली नोट की पहचान का प्रशिक्षण दिया गया है। शीघ्र ही दूसरे चरण में और अधिक पेट्रोल पंप कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जाएगा।Ó ऐसा नहीं है कि यह पहली बार किया गया। इससे पहले भी रिजर्व बैंक पुलिसकर्मियों, रेलवे कर्मचारियों, डाक और टेलिफोन कर्मचारियों को इस प्रकार का प्रशिक्षण दे चुका है। श्री भोरिया का स्पष्टï कहना है, 'जिस किसी विभाग को नकली-असली नोट के बारे में जानकारी हासिल करनी हो वह सीधे रिजर्व बैंक अधिकारियों से संपर्क कर सकता है। रिजर्व बैं का लक्ष्य लोगों को असली-नकली नोट में फर्क करना सीखाना है, साथ ही उन्हें वित्तीय साक्षरता देना है ताकि देश की अर्थवव्यवस्था को खोखला करने वाले नकली नोट के कोढ़ को जड़ से समाप्त किया जा सके।Ó
भारतीय मुद्रा के जाली नोट के संकट पर लगाम लगाने के लिए सीबीआई ऐसी मुद्रा का राष्ट्रीय डाटा बैंक तैयार कर रही है। यह पहल हाल में करीब आठ करोड़ रुपए के जाली नोट बरामद होने की घटना के बाद सामने आई है। एक वरिष्ठ सीबीआई अधिकारी ने कहा कि हम जाली मुद्रा नोट का एक राष्ट्रीय डाटा बैंक बना रहे हैं ताकि इससे स्रोत को पहचानने में मदद मिले। इससे हमें जाली नोट का स्रोत और जिस क्षेत्र में इसका प्रसार किया गया है उसे पहचानने में मदद मिलेगी। इसका मकसद है जाली नोट की प्रिंटिग पर लगाम लगाना। सूत्रों ने बताया कि प्रस्ताव योजना आयोग को मंजूरी के लिए भेज दिया गया है। हाल में ज्यादातर 500 रुपए के जाली नोट सामने आए हैं। जाली नोट का लक्ष्य है देश में आर्थिक आतंकवाद फैलाना और अर्थव्यवस्था को पलटना। पहले जाली मुद्रा को पहचानना आसान था क्योंकि इसे कम विशेषज्ञता वाले लोग बनाते थे। लेकिन अब इस व्यवसाय से जुड़े लोगों ने उच्च स्तर की तकनीक प्राप्त कर ली है और ऐसे नोट को पहचानना मुश्किल होता जा रहा है। एक अन्य अधिकारियों ने कहा कि जालसाजी का यह काम इतनी अच्छी तरह किया जाता है कि नकली मुद्रा को पहचानना मुश्किल होता है। जिस व्यक्ति को कोई संदेह नहीं है उसे जाली नोट असली नोट की ही तरह दिखता है।
दरअसल नकली नोटों पर अंकुश लगाने के लिए सरकार द्वारा जो कदम उठाए जाते हैं वह कारगर साबित नहीं हो रहे हैं। सरकार की इस कार्रवाई का अधिकतर भोले-भाले आम नागरिक शिकार होते हैं। अब जबकि एटीएम के माध्यम से निकला धन भी जाली साबित हो रहा है, ऐसे में पूरे तंत्र की त्वरित जांच कर एहतियाती उपाय करना जरूरी है, जिसमें आम जनता कम से कम परेशान हो। इसके लिए तत्काल न्याय की जरूरत होगी क्योंकि विलम्बित न्याय प्रणाली ही किसी अपराध प्रवृत्ति की पृष्ठपोषक होती है। अपराधी के मन में भय होना भी अपेक्षित है जो कि वर्तमान कानूनी प्रक्रिया में संभव नहीं, क्योंकि कहा भी जाता है 'भय बिनु होत न प्रीति।Ó
शनिवार, 11 जुलाई 2009
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1 टिप्पणी:
बहुत बढिया विश्लेषण के साथ आपने यह आलेख लिखा है .. इतनी बडी मात्रा में नकली नोटों की बाजार में उपस्थिति से बहुत तेज गति से महंगाई बढ रही है .. इतना होने के बाद भी हमें नोटों के कागजों और इंक के लिए लिए विदेशों पर निर्भर रहने की क्या जरूरत है .. जल्द ही सरकार की आंख नहीं खुली तो भयावह परिणाम आ ही सकते हैं !!
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