शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

इस गांव में बेटी के जन्म के साथ पौधा लगाया जाता


बिहार में एक ऐसा गांव है, जहां बेटियों के जन्म के साथ पौधरोपण की परंपरा है। भागलपुर जिले के धरहरा गांव में जब किसी घर में बेटी जन्म लेती है तो तुरंत ही उस परिवार के सदस्य गांव में 10 पौधे लगाते हैं। भागलपुर जिला मुख्यालय से करीब 33 किलोमीटर दूर स्थित धरहरा गांव में वर्षो पहले आंरभ की गई यह परंपरा आज गांव की संस्कृति बन गई है। पूर्व में इस गांव में वृक्ष कहीं-कहीं नजर आते थे लेकिन अब यह गांव वृक्षों से भरा पड़ा है। ये वृक्ष इन ग्रामीणों को आर्थिक रूप से भी सबल बना रहे हैं।
धरहरा ग्राम पंचायत के मुखिया विजय कुमार सिंह ने आईएएनएस को बताया कि यह परंपरा गांव में काफी पहले से चली आ रही है। उन्होंने कहा कि बेटी के जन्म के साथ जो 10 पेड़ लगाए जाते हैं वह उनके विवाह के समय तक बड़ा हो जाता है और लोगों की कमाई का जरिया बन जाता है। सिंह कहते हैं कि यही कारण है कि आज इस गांव में कई लोग तीन से चार एकड़ जमीन पर लगे बगीचे के मालिक हैं। यही नहीं बेटियों के जन्मदिन मनाने के दौरान परिवार के लोग इन पेड़ों का जन्मदिन मनाना नहीं भूलते। करीब पांच हजार की आबादी वाले धरहरा गांव के विमलेश सिंह के पास दो एकड़ का बगीचा है। वह कहते हैं कि उनका विवाह वर्ष 1998 में हुआ। वर्ष 2003 में इनकी पहली बेटी का जन्म हुआ था, जिसके बाद उन्होंने पेड़ लगाया था।
राज्य के सूचना एवं जनसम्पर्क मंत्री वृषण पटेल ने बताया कि प्रत्येक वर्ष सरकार वैशाली, नालंदा, बोधगया जैसी परम्परागत थीम पर आधारित झांकी तैयार करती थी, जिसे दिल्ली भेजा जाता था। इस बार बालिका सशक्तीकरण को ध्यान में रखकर 'धरहरा की वन पुत्रियां' थीम पर आधारित झांकी भेजी गई, जिसे समिति ने स्वीकार कर लिया। उन्होंने कहा कि आमतौर पर आज के समय में बेटियों के जन्म के बाद दु:ख जताया जाता है, लेकिन भागलपुर के धरहरा में ऐसा नहीं है। वहां बेटी के जन्म के बाद 10 पौधे लगाने की परम्परा है। झांकी इस बात का द्योतक है कि समाज में बेटी और पेड़ के महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के सचिव राजेश भूषण ने बताया कि झांकी के साथ एक 'सोहर' का भी चयन किया गया है, जो आमतौर पर बेटी के जन्म की खुशी में स्त्रियां गाती हैं। झांकी की थीम का चयन राज्य स्तर पर विकास आयुक्त की अध्यक्षता में गठित एक समिति द्वारा किया जाता है, जिसे रक्षा मंत्रालय की विशेषज्ञ समिति द्वारा अंतिम रूप दिया जाता है। उल्लेखनीय है कि बिहार के भागलपुर जिले के धरहरा गांव में जब किसी घर में बेटी का जन्म होता है तो उस परिवार के सदस्य गांव में 10 पौधे लगाते हैं।
भागलपुर जिला मुख्यालय के करीब 33 किलोमीटर दूर धरहरागांव में वर्षों पहले शुरू की गई यह परम्परा आज गांव की संस्कृति बन गई है। पहले इस गांव में पेड़ कहीं-कहीं नजर आते थे, लेकिन अब यह गांव पेड़ों से हरा-भरा है। ये पेड़ ग्रामीणों को आर्थिक रूप से भी सबल बना रहे हैं। ग्रामीणों के अनुसार, गांव में लैंगिक अनुपात एक हजार पुरुषों पर 871 महिलाओं का है। धरहरा गांव का क्षेत्रफल 1200 एकड़ है, जिसमें 400 एकड़ में पूरी तरह फलदार पेड़ हैं। पेड़ का मालिक वही व्यक्ति होता है, जो इसे लगाता है। ग्रामीण नरेश कुमार सिंह के मुताबिक, इस गांव में कई लोग तीन से चार एकड़ जमीन पर लगे बगीचे के मालिक बन गए हैं। जब लोग अपनी बेटी का जन्मदिन मनाते हैं तो वे पेड़ों का जन्मदिन मनाना भी नहीं भूलते। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी गांव का दौरा कर इस अनोखे कार्य के लिए लोगों की प्रशंसा कर चुके हैं।

सोमवार, 23 जनवरी 2012

कांग्रेसियों पर गिरी जूतों की सबसे ज्यादा गाज

देहरादून में यहां आज राहुल गांधी की सभा में एक शख्‍स ने मंच की तरफ जूता फेंका। इस घटना के बाद सभा में हंगामा मच गया। जूता फेंकने का आरोपी हिरासत में ले लिया गया है। कांग्रेस महासचिव ने इस घटना पर कहा कि वह जूता फेंकने से नहीं घबराते हैं। राहुल अपना सुरक्षा घेरकर तोड़कर जनता से भी मिले।


हिंदुस्तान की आवाम सियासत से कितनी तंग हो चुकी है, यह कभी जूते की शक्ल में तो कभी थप्पड़ के रूप में जम्हूरियत के सामने आ रही है। लेकिन सबसे जूते-थप्पड़ की मार हुकूमत चला रही कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों पर ही पड़ रही है।

पिछले बरसों में जितनी भी इस प्रकार की घटना घटी, उसमें सबसे अधिक हमले कांग्रेस और सहयोगी दलों के नेताओं पर ही हुए हैं। ताजा हमला कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी पर हुआ है। राहुल उत्तराखंड में जब चुनावी सभा को संबोधित कर रहे थे तब एक शख्स ने उन पर जूता फेंक दिया।

इससे पहले केंद्रीय मंत्री शरद पवार पर भी हमला हो चुका है। सियासी विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस पर हमले की प्रमुख वजह उसका सत्ता में रहना है। जो भी सत्ता में रहेगा, उसे बढ़ती महंगाई, भष्ट्राचार जैसे मुद्दों की जिम्मेदारी लेनी होगी। लेकिन कांग्रेस के नेता इससे बचते रहे। यही वजह है कि सरकार से जुड़े नेताओं को लेकर देश में आक्रोश बढ़ रहा है।

देश की जनता में सरकार और कांग्रेस को लेकर कितना आक्रोश है, यह एक बार फिर से सामने आ चुका है। शरद पवार पर हमले से कुछ दिनों पहले ही कांग्रेस की सरकार में वरिष्ठ मंत्री रह चुके सुखराम की भी पिटाई हो चुकी है। पूर्व संचार मंत्री सुखराम पर कोर्ट परिसर में ही एक युवक ने हमले की कोशिश की थी।

हमला उस वक्त हुआ, जब उन्हें घूस लेने के आरोप में पांच साल की कैद और चार लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई जा रही थी। हमले के वक्त सुखराम फैसला सुनने के बाद कोर्ट रूम से बाहर निकल रहे थे। हरविंदर सिंह नाम के हमलावर के पास कोई हथियार नहीं था और उसने लात-घूंसों से ही सुखराम पर हमले की कोशिश की थी लेकिन जल्द ही उसे काबू कर लिया गया।

जूते की मार से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी नहीं बच पाए हैं। प्रधानमंत्री पर उस समय रैली को संबोधित कर रहे थे। जूता प्रधानमंत्री के मंच से कुछ दूरी पर गिरा। इस घटना के बाद भी प्रधानमंत्री भाषण देते रहे। हितेश चौहान नामक युवक ने यह जूता फेंका था।

इतना ही नहीं, गृह मंत्री पी चिदंबरम की प्रेस कॉन्फ्रेस में एक पत्रकार ने उन पर जूता उछाल दिया था। उस वक्त चिदंबर जगदीश टाइटलर को सीबीआई की ओर से क्लीन चिट दिए जाने पर बोल रहे थे। ये पत्रकार उनसे संतुष्ट नहीं हुआ और विरोध करते हुए उनके ऊपर जूता फेंक दिया।

पिछले साल अप्रैल में कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले मामले में गिरफ्तार ऑर्गनाइजिंग कमिटी के पूर्व अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी पर सीबीआई कोर्ट के बाहर चप्पल फेंकी गई थी। हालांकि वह कलमाड़ी को लगी नहीं। कलमाड़ी पर जब चप्पल फेंकी गई, तब उन्हें सीबीआई कोर्ट में पेशी के लिए ले जाया जा रहा था। कपिल ठाकुर नामक शख्स ने उनपर चप्पल फेंकी थी।

कपिल मध्य प्रदेश के रहनेवाले हैं। कांग्रेसी नेता जर्नादन द्विवेदी पर एक पत्रकार ने जूता मारने की कोशिश की थी। उस वक्त द्विवेदी कांग्रेस मुख्यालय पर आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेस में मीडिया को संबोधित कर रहे थे।

पत्रकारों से बातचीत के दौरान द्विवेदी से एक सवाल किया गया जवाब मिलने के बावजूद यह पत्रकार जूता लेकर मंच पर चढ़ गया और द्विवेदी को मारने की कोशिश की। इस पत्रकार की पहचान झुंझून राजस्थान दैनिक नवसंचार के संवाददाता के रूप में की गई है। बाद में पुलिस के हवाले कर दिया गया।

भाजपा के नेताओं पर भी हो चुका है हमलाः भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और युवा सांसद वरुण गांधी पर जूते-चप्पल से हमले हो चुके हैं। मध्यप्रदेश में अप्रैल 2009 में जब एनडीए की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी दौरे पर थे, तब उन पर चप्पल चल गई थी।

घटना मध्य प्रदेश के कटनी में हुई थी। उस वक्त आडवाणी एक सभा को संबोधित कर रहे थे। उन पर चप्पल फेंकना वाला भाजपा का ही कार्यकर्ता पावस अग्रवाल था। इसी तरह, भाजपा के सांसद वरुण गांधी के रैली में न आने से नाराज भाजपा कार्यकर्ताओं ने उनके काफिले पर जूते चप्पल फेंके और उन्हें काले झंडे दिखाए थे। घटना नवाबगंज तहसील की थी।


साभार : भास्कर

शनिवार, 21 जनवरी 2012

सौराठ में खुलेगा मिथिला पेंटिंग प्रशिक्षण संस्थान


सेवा यात्रा के तीसरे दिन जितवारपुर से रांटी पद्मश्री महासुन्दरी देवी के घर पहुंच मुख्यमंत्री ने सौराठ में मिथिला पेंटिंग प्रशिक्षण संस्थान खोलने की घोषणा की। मुख्यमंत्री ने कहा कि इस संस्थान का निर्माण बिहार सरकार के मानव संसाधन विकास विभाग द्वारा कराया जाएगा। सौराठ के इस संस्थान को विश्वविद्यालय का दर्जा भी दिया जाएगा। यहां मिथिला पेंटिंग सीखने व प्रशिक्षण लेने वाले कलाकारों को संस्थान की ओर से प्रमाण पत्र भी दिए जायेंगे जिसकी मान्यता सभी क्षेत्रों में होगी। करोड़ों की लागत से 10 एकड़ में बनने वाले इस पेंटिंग प्रशिक्षण संस्थान के खुल जाने से मिथिलांचल में रोजगार सृजन के अच्छे अवसर मिलने लगेंगे।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि मधुबनी पेंटिंग न सिर्फ मिथिलांचल का मान बढ़ाई है बल्कि इससे प्रदेश व देश भी गौरवान्वित हुआ है। उन्होंने कहा कि मधुबनी पेंटिंग से मुझे भावनात्मक जुड़ाव है। सौराठ का जब यह संस्थान बनकर तैयार हो जाएगा तो यहां के कलाकारों को इधर-उधर नहीं भटकना पड़ेगा। बिचौलिया जो इस विधा पर भी हावी हैं वे कहीं दिखाई नहीं देंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि मधुबनी पेंटिंग को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्थापित करने के लिए सरकार कोई कसर नहीं छोड़ेगी। सौराठ का जब यह प्रशिक्षण केन्द्र काम करने लगेगा तब यहां देश और विदेश के लोग सिर्फ पेंटिंग देखने ही नहीं खरीदने भी पहुंचेंगे। मधुबनी पेंटिंग को अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर सम्मान तो मिलेगा ही कलाकारों को उचित मूल्य भी प्राप्त होगा। उन्होंने कहा सरकार पूर्व में ही मधुबनी प्रशिक्षण केन्द्र खोलने का निर्णय ले चुकी है लेकिन भूमि को लेकर इसकी घोषणा नहीं की गई थी। अब सौराठ में सरकार को जमीन उपलब्ध हो गया है जहां शिक्षा विभाग द्वारा संस्थान का शीघ्र निर्माण प्राप्त हो जाएगा। इस संस्थान में वह सभी सुविधा उपलब्ध रहेगी जो एक विश्वविद्यालय में रहता है। इसे अत्याधुनिक संस्थान बनाया जाएगा और मैथिल ललनाओं को जिसे इस विधा से लगाव है उन्हें प्रशिक्षित कर रोजगार के अवसर प्रदान किए जायेंगे।

मुख्यमंत्री मिथिला को पूरे देश में सम्मान दिलाने वाली पद्मश्री महासुन्दरी देवी के साथ बैठकर उनसे विस्तृत जानकारी भी प्राप्त की। वे मधुबनी पेंटिंग से जुड़ी अन्य तथ्यों को भी महासुन्दरी देवी व उनके परिवार के सदस्यों के साथ बैठकर विचार-विमर्श किया। इससे पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार परिसदन से जितवारपुर पहुंचकर पद्मश्री स्व. सीता देवी, जगदम्बा देवी, चानो देवी सहित जितवारपुर गांव के दर्जनों घर में जाकर मधुबनी पेंटिंग को देखा और कलाकारों से विस्तृत जानकारी प्राप्त की। जितवारपुर जहां वृहत पैमाने पर मधुबनी पेंटिंग का निर्माण होता है वहां पहुंच मुख्यमंत्री अभिभूत दिख रहे थे। देर शाम वे रांटी ड्योढ़ी के बगीचा स्थित उस भवन पर भी गए जहां जीविका समूह से जुड़ी महिलाओं द्वारा कई सामानों का निर्माण किया जा रहा है। वे इस कार्यालय के निरीक्षण व कलाकारों द्वारा निर्मित सामानों को देखकर खुश तो थे ही इसे और बेहतर करने का सुझाव महिलाओं को दी। महिलाओं द्वारा उन्हें कई ऐसे सामान भी दिखाए गए जो मिथिलांचल में प्रसिद्ध है। मुख्यमंत्री का यह अंतिम कार्यक्रम था। वे तकरीबन 7 बजे रांटी से चलकर परिसदन पहुंचे।

रविवार, 15 जनवरी 2012

लाज बचाई खिचड़ी ने

दही-चूड़े ने धोखा दिया,
लाज बचाई खिचड़ी ने।
अखबारों ने खेल बिगाड़ा,
साख बचाई खिचड़ी ने।
दूध-मक्खन ने मुंह फुलाया,
खिचड़ी की अब खैर नहीं।
साग-भाजी ने खूब रुलाया,
मिर्ची से अब बैर नहीं।
लाल टमाटर, गरम बटाटा,
फूलगोभी की हालत पतली।
दाल-चावल में पड़ गया पानी,
खाली रह गई मेरी तसली।
दो नावों पर पैर धरा था,
घप से गिर गए पानी में।
पूरे चौबीस घंटे लग गए,
इस कहानी को बनाने में।
बनते-बनते गिड़ रही थी,
लाज बचाई खिचड़ी ने,
लपक कर बीच में आ गई,
साख बचाई खिचड़ी ने।
खिचड़ी रानी बड़ी सयानी,
बीरबल से पक जाती है।
धुरंधरों को छक्के छुड़ाती,
महीनों-साल पकाती है।
राजनीति में मेल कराती,
कूटनीति सिखलाती है।
सही से पक जाए तो मजा है,
वरना घुटने के आंसू रुलाती है।
समता-ममता टूट जाती है,
दादी-अम्मा रूठ जाती हैं।
जब लगती है जोर की प्यास,
हाथ में रह जाती है आस।
अंगुली भीचकर मुट्ठी बिना,
अकड़कर रह जाता है हाथ।
सूर्ख, लाल, अकड़ी हुई-सी,
मिर्च निभाती है तब साथ।
बनते-बिगड़ते इन रिश्तों की,
लाज बचाई खिचड़ी ने।
बीच भंवर में डूबती नैया की,
पतवार बचाई खिचड़ी ने।
इस खिचड़ी में बड़ा मजा है,
खाकर कोई पछताता है।
जो न खाए, हाथ मलता है,
बिन खाए पछताता है।
पाकर खोने वालों की,
लाज बचाई यही खिचड़ी ने।
सोकर जागने वालों की,
साख बचाई यही खिचड़ी ने।

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विश्वत सेन