सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

...तो अपराधी चलाएंगे सरकार

लाख बहस-मुबाहिसों के बावजूद प्रदेश की राजनीति बाहुबलियों से पीछा नहीं छुड़ा पा रही है। चुनाव आयोग डंडा चलने के बाद आपराधिक छवि वाले दागी नेता चुनाव नहीं लड़ पा रहे हैं तो अपने नाते-रिश्तेदारों को टिकट दिलाने में कामयाब हुए हैं..समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर ने बहुत पहले बिहार विधानसभा में कहा था कि जब बैलेट फेल होता है तो बुलेट हावी होने लगती है। कर्पूरी ठाकुर की बात प्रदेश की मौजूदा राजनीति में सोलह आने सच साबित हो रही है। चुनाव आयोग की तमाम बंदिशों और राजनीतिक दलों के भरपूर आश्वासनों के बावजूद राज्य की राजनीति में बाहुबलियों की पकड़ कम नहीं हुई है। हां, इसका तरीका जरूर बदल गया है। कल तक जो बाहुबली चुनाव मैदान में खम ठोकते थे अब वे अपने चहेतों को चुनाव लड़ाकर उन्हें विधानसभा भेजने की फिराक में हैं। इस बार संगीन अपराधों के लिए सजा पाए बाहुबली भले ही चुनावी मैदान में खुद न उतर पाएं हों, लेकिन वे अपने सियासी वजूद को जिंदा रखने के लिए अपनी पत्नियों की ओर आस लगाए बैठे हैं। बीते लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भी कई बाहुबलियों की पत्नियां विधानसभा पहुंचने की कोशिश में हैं। वर्तमान विधायक और राष्ट्रीय जनता दल की उम्मीदवार कुंती देवी एक बार फिर गया जिले के अतरी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में हैं। इनके पति राजेंद्र यादव वर्तमान समय में हत्या के एक मामले में जेल में सजा काट रहे हैं और कई अन्य अपराधिक मामले भी इन पर चल रहे हैं। नवादा क्षेत्र की वर्तमान निर्दलीय विधायक पूर्णिमा यादव तथा इनके पति एवं निर्दलीय विधायक कौशल यादव को जदयू ने टिकट दिया है। कौशल पर राजस्व घोटाले समेत कई अन्य अपराधिक मामले चल रहे हैं। इसी तरह बक्सर जिले के शाहपुर विधानसभा क्षेत्र की विधायक मुन्नी देवी और खगडिय़ा की पूनम देवी एक बार फिर अपने पति के सहारे सदन में पहुंचने की तैयारी में हैं। मुन्नी के पति भुअर ओझा तथा देवर विमेश्वर ओझा कई अपराधिक मामले में आरोपी हंै, जबकि पूनम के पति रणवीर यादव पर भी कई अपराधिक मामले चल रहे हैं। लालगंज के विधायक मुन्ना शुक्ला मंत्री वृजबिहारी प्रसाद की हत्याकांड में दोषी हैं, मगर इस चुनाव में उनकी पत्नी अन्नु शुक्ला जदयू की प्रत्याशी हंै। इसी तरह बाहुबली पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव विधायक अजीत सरकार की हत्या के मामले में दोषी करार दिए गए हैं और उनकी पत्नी रंजीता रंजन को चुनावी मैदान में उतारा गया है। हाल ही में कांग्रेस में शामिल बाहुबली सांसद आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद को सहरसा जिले के आलमनगर से प्रत्याशी बनाया गया है। आनंद मोहन सहरसा जेल में पूर्व जिलाधिकारी जी कृष्णैया हत्याकांड के मामले में सजा काट रहे हैं। इसी तरह राजद विधायक बीमा भारती इस चुनाव में पाला बदलकर जदयू के टिकट पर रुपौली विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में है। बीमा के पति अवधेश मंडल हत्या, रंगदारी जैसे करीब एक दर्जन से ज्यादा मामलों में आरोपी हैं।
सच तो यह है कि बिहार की राजनीति में बाहुबली नेता सभी राजनीतिक दलों की जरूरत बन गए हैं। चुनाव आयोग ने बड़ी संजीदगी के साथ बिहार के राजनीतिक दलों से विधानसभा चुनाव से बाहुबलियों को दूर रखने की अपील की थी। आयोग की अपील के बाद स्वयंसेवी संगठनों ने राजनीतिक दलों पर दबाव बढ़ाना शुरू किया। चुनाव को निष्पक्ष बनाने के लिए एक संस्था 'एसोसियशन फॉर डैमोक्रेटिक रिफॉम्र्स एवं नेशनल इलेक्शन वॉचÓ का गठन भी हुआ, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात। हर दल ने बाहुबलियों और आपराधिक रिकॉर्डधारियों को अपना उम्मीदवार बनाया है। अभी तक जितने प्रत्याशियों की घोषणा हुई है, उसमें करीब 43 फीसदी अपराधी हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यही अपराधी सरकार चलाएंगे?
गौरतलब है कि प्रदेश में चुनावों की घोषणा से पहले यहां के अधिकांश दलों ने कहा था कि विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ेंगे और बाहुबलियों को किसी भी सूरत में टिकट नहीं देंगे, मगर अब विकास पर बाहुबल हावी हो गया है। हालांकि, रैली और सभाओं में प्रदेश की राजनीति के तीनों प्रमुख महारथी लालू प्रसाद, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान अपने-अपने विकास कार्यों का ही बखान कर रहे हैं। जहां नीतीश के पास मुख्यमंत्री के रूप में कार्य का ब्योरा है तो लालू अपने और पत्नी रावड़ी के पंद्रह साल के कार्यकाल का गुणगान करने के बजाय रेलमंत्री के रूप में किए गए विकास कार्यों की दुहाई दे रहे हैं। उधर, जिन रामविलास पासवान पर अवसरवादिता का सबसे बड़ा आरोप लगाया जाता है, वे कहते हैं कि जब भी उन्होंने केंद्रीय मंत्री का पदभार संभाला सबसे अधिक बिहार पर ही ध्यान दिया। इन विकासवादी ढिंढोरों के बीच जो सच है, वह यह कि इन नेताओं ने अपराधियों और बाहुबलियों को खूब तवज्जो दी है। तो क्या माना जाए कि बिहार में चुनाव बगैर बाहुबल और अपराधी को साथ लिए नहीं हो सकती? इसका जबाव 'हांÓ में मिलता है। अब तक बिहार चुनाव की जो तस्वीर सामने आई है, उसमें 43 प्रतिशत उम्मीदवार दागी या अपराधी प्रवृत्ति के हैं? चुनाव आयोग की सर्वदलीय बैठक में राजनीति का अपराधीकरण रोकने की खुली वकालत करने वाले सियासी दलों की गंभीरता का अंदाजा विधानसभा चुनाव के लिए अब तक जारी प्रत्याशियों की सूचियों के से लग जाता है। अब तक चुनाव के लिए पांच प्रमुख दलों ने कुल 526 प्रत्याशी घोषित किए हैं। इनमें से 268 के पुराने रिकॉर्ड मौजूद हैं। इनमें से 116 प्रत्याशियों (43.28 फीसदी) के खिलाफ आम मामलों से लेकर हत्या, अवैध हिरासत, फिरौती और लूटपाट जैसे गंभीर मामले लंबित हैं। हैरानी की बात यह है कि दागी छवि के लोगों को टिकट देने में खुद को पार्टी विद ए डिफरेंस कहने वाली भाजपा सबसे आगे है। भाजपा के करीब 62.12 प्रत्याशियों के खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं। दूसरे स्थान पर रामविलास पासवान की अगुआई वाली लोजपा है जिसके 46.43 फीसदी दागी छवि के हैं। लालू यादव की राजद के 38.60 फीसदी उम्मीदवारों के खिलाफ ऐसे मामले बकाया हैं। सत्तारूढ़ जनता दल यूनाईटेड भी इसमें पीछे नहीं है और उसके 36.05 फीसदी उम्मीवारों का दागी इतिहास रहा है। 'नेशनल इलेक्शन वॉचÓ नामक स्वंयसेवी संस्था द्वारा जुटाए गए आंकड़ों में सोनिया गांधी की कांग्रेस भी दागी छवि के प्रत्याशी उतारने में पीछे नहीं है। कांग्रेस ने 29.03 फीसदी दागी छवि के लोगों को अपना चुनाव चिह्नï थमाया है।
गौरतलब है कि इसके पहले लोकसभा चुनाव में भी बाहुबली पूर्व संासद शहाबुद्दीन ने अपनी पत्नी हिना शहाब, पप्पू यादव ने अपनी मां शांति देवी, बाहुबली पूर्व सांसद सूरजभान ने अपनी पत्नी वीणा देवी को चुनाव मैदान में उतारा था, लेकिन इन सभी को चुनावों में मुंह की खानी पड़ी थी। अब देखना है कि विधानसभा चुनाव में सूबे के बाहुबली अपनी पत्नियों और रिश्तेदारों को सत्ता तक पहुंचा पाते है या नहीं।

1 टिप्पणी:

sandhyagupta ने कहा…

chaliye kam se kam aapradhik chavi wale logon ko ticket dene ke naam par to sabhi partiyan 'ekmat' hain.