जम्मू के लोग इन दिनों परेशान हैं। वजह है प्रीपेड मोबाइल सेवाओं पर प्रतिबंध। सुरक्षा कारणों के मद्देनजर यह रोक लगाई गई है। इससे प्रीपेड फोन धारकों में खासा रोष है। लोगों के आक्रोश और प्रतिरोध के मद्देनजर ही यहां मीडिया को सलाह दी गई है कि वह इस मामले को ज्यादा हवा न दें। उल्लेखनीय है कि इससे पहले पिछले वर्ष श्री अमरनाथ यात्रा के दौरान सरकार ने एसएमएस पर रोक लगाई थी। तब भी लोगों को परेशानी हुई थी। इस समय में राज्य में करीब 45 लाख लोग मोबाइल सेवाओं का प्रयोग कर रहे हैं। इनमें से करीब 38 लाख लोग प्रीपेड मोबाइल धारक थे। सुरक्षा तंत्र की सूचनाओं के अनुसार आतंकी अपनी करतूतों को अंजाम देने और सहयोगियों से संपर्क के लिए प्रीपेड सेवाओं का प्रयोग करते आ रहे हैं। गृह मंत्रालय के लिए इन सेवाओं पर प्रतिबंध लगाने के लिए यह वजह जायज है, क्योंकि राष्ट्रहित से बढ़कर कोई अन्य हित नहीं हो सकता है लेकिन खुफिया एजेंसियों के पास ऐसे कई प्रमाण हैं, जिनसे पता चलता है कि आतंकी अत्याधुनिक उपकरण प्रयोग में ला रहे हैं। ऐसे में केवल प्रीपेड मोबाइल सेवाओं पर रोक से कैसे समस्या दूर हो सकती है? इसका जवाब तो सुरक्षा नियम तय करने वाले अफसर ही बेहतर दे सकते हैं लेकिन इस रोक से उन लाखों लोगों को परेशानी में डाल दिया है, जो लंबे समय से प्रीपेड मोबाइल सेवाओं का प्रयोग कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि गलत तत्व पोस्ट पेड मोबाइलों का दुरुपयोग भी कर सकते हैं।
बीसीए का छात्र कुशल अवस्थी इस मसले पर कहता है कि यह प्रतिबंध कई परेशानियां लेकर आया है। ज्यादातर छात्र अपनी पढ़ाई या रोजगार की वजह से माता-पिता से दूर रहते हैं। प्रीपेड मोबाइल सेवाओं का लाभ ज्यादातर युवा वर्ग ही उठाता है, क्योंकि इसमें जरूरत के मुताबिक रिचार्ज कराने की सुविधा होती है प्रीपेड पर ही प्रतिबंध क्यों? और बिल भरने के लिए भटकने का भी कोई झंझट नहीं। प्रीपेड मोबाइल वालों को पेश आ रही परेशानी दुकानदार सोहन अग्रवाल का कहना है कि मेरे घर पर सब लोग कामकाजी हैं, सिर्फ दादी घर पर रहती हैं। उनके पास प्रीपेड मोबाइल था। यह उनके लिए सुविधाजनक था, क्योंकि बुढ़ापे में वह बिल जमा करवाने नहीं जा सकतीं। घर बैठे ही फोन रिचार्ज करवाया जा सकता है। बुजुर्गों के लिए प्रीपेड सेवा आसान है लेकिन अब उन्हें काफी परेशानी हो रही है।
सुरक्षा विभाग के अनुसार दूरसंचार विभाग फोन नंबर जारी करने में नियमों का पालन नहीं किया। प्रीपेड सेवा वाले कई लोगों ने फर्जी दस्तावेज देकर नंबर लिए हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि दस्तावेजों का पुन: निरीक्षण नहीं किया जा सकता था या नियमों में कोई बदलाव नहीं लाया जा सकता था। कश्मीरी विस्थापित कनिष्क मंटू के अनुसार गृह मंत्रालय का यह कदम समझ नहीं आता। हमारे साथ ही पक्षपात क्यों? एक ओर तो केंद्र इस बात का ढिंढोरा पीट रहा है कि राज्य में हालात सामान्य हो गए हैं और विस्थापित कश्मीरियों को उनकी जन्मभूमि में स्थापित किया जा रहा है। दूसरी ओर सुरक्षा के बहाने प्रीपेड मोबाइल पर रोक लगाई जा रही है। इससे साफ है कि हालात अभी सामान्य नहीं हैं। ख्याल रहे, जम्मू के दौरे पर आए गृहमंत्री ने हाल ही में जगती में कश्मीरी विस्थापितों के लिए बन रहे फ्लैटों का निरीक्षण किया था। उन्होंने इस कार्य में लगी कंपनी को हिदायत दी थी कि काम जल्द पूरा किया जाए, ताकि विस्थापितों को रहने के लिए घर मिल सकें। गृहमंत्री ने भरोसा दिया था कि वह हरसंभव कोशिश करेंगे, जिससे कश्मीरी विस्थापित अपनी जन्मभूमि लौट सकें लेकिन गृह मंत्रालय के नए फरमान से विस्थापितों की दुविधा बढ़ गई है। ऐसा नहीं है कि यह रोक आम जनता के लिए ही परेशानी का सबब है। सुरक्षा बल भी इससे परेशान हैं।
यहां तैनात ज्यादातर सुरक्षाकर्मी बाहर के हैं। अपनों से संपर्क करने के लिए ये लोग भी प्रीपेड फोन का ही इस्तेमाल करते हैं। इन सैनिकों के पास मोबाइल ही ऐसा सहारा है, जिससे वह सीमा की सुरक्षा करते हुए भी अपनों से संपर्क में रह सकते हैं। इनके लिए प्रीपेड मोबाइल ठीक रहता है। जितने पैसे डालो उतनी बात। पोस्टपेड फोन लेने की औपचारिकताएं और नियम काफी अलग हैं। जम्मू में तैनात सैनिक राहुल शर्मा झारखंड के हैं। उनके अनुसार प्रीपेड में कई योजनाएं हैं। इसमें हर माह पैसे देने की जरूरत नहीं पड़ती। मैं जब भी तीन माह की छुट्टïी पर जाता हूं, मुझे पैसा नहीं भरना पड़ता। दूसरे फोन का प्रयोग करने पर माह बिल देना पड़ता है। बहरहारल, हालात ये हैं कि सरकार के इस फैसले के खिलाफ जम्मू-कश्मीर के लोग धरनों का सहारा ले रहे हैं। कश्मीर में केटीएमएफ ने धरना देकर रोष जताया और प्रतिबंध को निराधार बताया। केटीएमएफ क अनुसार इस प्रतिबंध से 20 हजार से ज्यादा लोगों को बेरोजगारी का सामना करना पड़ेगा। प्रीपेड सेवाओं पर प्रतिबंध से न सिर्फ आम जनता, इस व्यवसाय से जुड़े लोगों पर भी असर पड़ा है। मोबाइल रिचार्ज के काम से जुड़े ओमप्रकाश के अनुसार पिछले माह धंधा काफी अच्छा रहा लेकिन प्रीपेड सेवाओं पर रोक से हमारा काम ठप हो गया है। सरकार को कोई भी निर्णय लेने से पहले उस चीज या व्यापार से जुड़े लोगों के हितों के बारे में भी सोचना चाहिए। बहरहाल, सरकार का तर्क है कि सुरक्षा के मामले में कोई जोखिम नहीं लिया सकता। इसी कारण यह कदम उठाया गया है। सवाल है कि आतंकी दूसरी आधुनिक सेवाओं का भी प्रयोग कर रहे हैं, ऐसे में सिर्फ प्रीपेड फोनों पर ही रोक कितना कारगर? अगर प्रीपेड नंबर जारी करने में कहीं कोई खामियां हैं तो उन्हें दूर किया जा सकता है। फिर जिसको गड़बड़ करनी है, वह पोस्ट पेड मोबाइल सेवाओं से भी तो कर सकता है।
मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें