तमाम आशंकाओं का पटाक्षेप करते हुए चुनाव आयोग ने देश के सबसे अधिक राजनीतिक रूप से सशक्त राज्य बिहार में चुनाव के तारीखों की घोषणा करके सियासी घमासान की औपचारिक शुरूआत कर दी। छह चरणों में होने वाला चुनाव की घोषणा चुनाव आयोग के मुख्य आयुक्त कुरैशी ने 6 सितंबर को की। हालांकि सियासी दलों को इस बात का आभास नहीं था कि चुनाव छह चरणों में होगा, वह भी त्योहारों के बीच में। बिहार के मुख्य त्योहार छठ दिन चुनाव की तारीख को लेकर जदयू सहित राजद और लोजपा को संशय है, वह चरण को लेकर नीतिश सरकार को किसी प्रकार की कोई आपत्ति नहीं है। आयोग का तर्क है कि चूंकि प्रदेश में नक्सलवादी गतिविधि बढ़ी है, इसके चलते शांतिपूर्ण मतदान के लिए यह आवश्यक है। अब राजनीतिक दल अपने-अपने सियासी गणित को साधने में लगे हैं।
बहरहाल, चुनाव आयोग के तयशुदा कार्यक्रम के तहत पहले चरण में 21 अक्टूबर को मतदान होगा। पहले चरण में 47 सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे। जबकि दूसरे चरण का मतदान 25 अक्टूबर को होगा और दूसरे चरण में 47 सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे। 28 अक्टूबर को तीसरे चरण का मतदान होगा जिसमें 48 सीटों, 1 नवंबर को 42, नौ नवंबर को 35 सीटों के लिए तथा 20 नवंबर को 26 सीटों के लिए मतदान होगा। कुल 243 सीटों के लिए मतदान के बाद 24 नवंबर को मतगणना की जाएगी।
दिल्ली में जैसे ही बिहार के लिए चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा की गई, पटना में चुनावी चाल तैयार किए जाने लगे। कुल 243 सीटों वाले बिहार विधानसभा का चुनाव छह चरणों तक खींचे जाने का अनुमान न तो नेताओं को था और न ही सूबे के नौकरशाहों को। नेता छह चरणों में चुनावों की घोषणा का तो इस्तेकबाल कर रहे हैं, लेकिन दशहरा, दिवाली और बिहार का सबसे पावन पर्व छठ के बीच चुनाव की घोषणा को वे गलत करार दे रहे हैं। चुनावों के बरक्स आयोग की घोषणा के साथ ही विभिन्न दलों के नेताओं ने छठ के ठीक पहले पांचवें चरण के चुनाव की तारीख में तब्दीली करने की मांग कर दी है।
सूर्य की उपासना का पर्व छठ नहाय खाय, खरना और सूर्य को एक दिन शाम को और दूसरे दिन सूर्योदय के समय अघ्र्य के साथ तीन दिनों में संपन्न होता है। काबिलेगौर है कि व्रत की तैयारी हफ्ते भर पहले से चलती है इस बीच माना जा रहा है कि विभिन्न दलों के प्रत्याशी चुनाव प्रचार नहीं करने के स्थिति में रहेंगे। जदयू अध्यक्ष शरद यादव का कहना है कि चुनाव आयोग को छठ के ठीक पहले पांचवें चरण के चुनाव की तारीख बदलनी चाहिए। बिहार में छठ पर्व की महत्ता को देखते हुए 9 नवंबर को पांचवें चरण का चुनाव कराना किसी भी दृष्टि से ठीक नहीं।Ó 5 नवंबर को दिवाली के छह दिनों के बाद छठ का पर्व होने के कारण तारीख आती है 11 नवंबर। माना जा रहा है कि व्रत का त्योहार तीन दिनों तक चलने का स्पष्ट असर चुनाव प्रचार पर पड़ेगा। ज्यादातर प्रत्याशियों को इस बात की भी चिंता सता रही है कि चुनावों के बीच आने वाले पर्व के कारण वोटरों तक अपनी बात असरदार तरीके से कैसे पहुंचाई जाए! राजद, लोजपा, भाजपा और कांग्रेस के कई नेताओं ने अलग-अलग बातचीत में स्वीकार किया कि कुछ चुनाव की कुछ तारीखों पर आयोग से बातचीत कर बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की जाएगी। औसतन हर चरण में 40 सीटों पर चुनाव की तैयारी आयोग ने की है।
गौरतलब है कि एस.वाई. कुरैशी के मुख्य चुनाव आयुक्त का पद संभालने के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव होगा। चुनाव आयोग राज्य का पहले ही दौरा कर चुका है और वहां चुनाव की तैयारियों खासकर फोटो पहचान पत्र और मतदाता सूची के संशोधन कार्यो का जायजा ले चुका है। चुनाव की तैयारियों को अंतिम रूप देते हुए चुनाव आयोग ने पिछले दिनों केंद्रीय गृह सचिव जी.के. पिल्लई के साथ सुरक्षा इंतजामों पर चर्चा की थी। पिछली बार यानी वर्ष 2005 में बिहार विधानसभा के चुनाव चार चरणों में कराए गए थे, जबकि 2000 के विधानसभा चुनाव तीन चरणों में हुए थे। 2005 में राज्य में दो बार विधानसभा चुनाव हुए थे। पहली बार फरवरी में मतदान हुआ था और किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था। राज्य में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव हुए थे, जिसमें नीतीश कुमार के नेतृत्व में जदयू भाजपा गठबंधन पिछले पंद्रह वर्षो से सत्ता में काबिज लालू प्रसाद के नेतृत्व वाली राजद को जबर्दस्त शिकस्त देते हुए सत्तारूढ़ हुआ था। आगामी विधानसभा चुनाव में राज्य में सत्तारूढ़ जदयू भाजपा गठबंधन का मुख्य मुकाबला लालू प्रसाद और रामविलास पासवान के नेतृत्व वाली राजद लोजपा गठबंधन से होगा। लंबे समय से सत्ता से बहार रही कांग्रेस भी इस बार पूरे दमखम से चुनाव मैदान में होगी। पिछले लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भी कांग्रेस ने राज्य की सभी सीटों पर अकेले चुनाव लडऩे की घोषणा की है। उधर, वामपंथी पार्टियां माकपा, भाकपा और माकपा माले मिलकर चुनाव लडऩे की तैयारी कर रही हैं। इन दलों के बीच अगले सप्ताह सीटों का तालमेल होने की उम्मीद है।
नीतीश कुमार ने मांग की है कि लोग चुनाव की प्रक्रिया में भयमुक्त होकर भाग लें तथा स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव संपन्न हो सके इसके लिए शत-प्रतिशत मतदान केंद्रों पर केंद्रीय सशस्त्र बलों की तैनाती की जाए।गौर करने योग्य यह भी है कि अभी भी बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एवं भाजपा के बीच जो रस्साकशी चल रही है, उसकी जड़ में मुस्लिम वोटों की राजनीति है। जहां एक ओर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का विवादास्पद विज्ञापन एक रणनीति का हिस्सा था, तो वहीं नीतीश कुमार का बाढ़ पीडि़तों के लिए मोदी द्वारा दी गई 5 करोड़ की राशि लौटाना। बिहार में महादलित का कार्ड चलने के बाद नीतीश अब मुस्लिमों को अपने पाले में खींचना चाहते हैं और यह तभी संभव है जब वह भाजपा के कट्टरपंथी चेहरे पर आघात कर आक्रामक रुख अपनाएं। आजकल वह यही कर रहे हैं। बिहार में दलितों और मुस्लिमों के वोटों की संख्या एक-तिहाई के करीब बैठती है। बिहार में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 39 है। नीतीश की निगाह इसी एक-तिहाई वोट बैंक को हासिल करने की है। बिहार में एक पुरानी कहावत है- यहां लोग वोट डालने नहीं जाते बल्कि जाति के लिए वोट डालते हैं। और इसी के इर्द-गिर्द राजनीति घूमती है। बेशक, इन पांच सालों में विकास कार्य के बल पर नीतिश ने एक नई सोच बनाई है। कुर्मी वोट हालांकि बहुत अधिक नहीं हैं, फिर भी जितने हैं नीतीश के साथ हैं। राज्य में अगड़े वोट बंटे हुए हैं। इस तरह नीतीश इस बार बहुत सोच समझ कर अपनी चाल चल रहे हैं। वह एक नया सामाजिक समीकरण बनाना और उसके बल पर सत्ता में पहुंचना चाहते हैं। बहुत हद तक मुस्लिमों का भरोसा भी एक बड़ा कारण होगा। 2005 के विधानसभा चुनाव में नीतीश के जदयू ने 139 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसने 20.46 फीसदी वोटों के साथ 88 सीटों पर जीत हासिल की थी।
यदि वह इस बार अकेले दम पर सरकार बनाने का सपना देख रहे हैं तो उन्हें 243 सीटों में से 122 सीटों को जीतना होगा। उत्तर-पूर्वी बिहार के कई इलाकों में नीतीश को भाजपा की दरकार हो सकती है। पूर्णिया, किशनगंज, बेतिया, कटिहार, भागलपुर आदि कई जगहों पर एंटी मुस्लिम फीलिंग ने भाजपा को अपने पैर जमाने में मदद की है। यह ऐसे इलाके हैं जहां भाजपा के साथ रहते नीतीश को मुस्लिम वोट मिलना नामुमकिन है। बिहार में मुस्लिमों के वोट पाने के लिए नीतीश को भाजपा का दामन छोडऩा होगा। बिहार में करीब 60 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोट निर्णायक साबित होते हैं। इसी को ध्?यान में रख नीतीश कह रहे हैं कि यदि बिहार में गठबंधन को बचाना है तो भाजपा को नरेंद्र मोदी और वरूण गांधी को बिहार विधानसभा चुनाव से दूर रखना होगा। लेकिन इन इलाकों में यही दो नेता भाजपा के खेवनहार भी बन सकते हैं। गठबंधन पर फैसले को लेकर आज भाजपा के नेता बैठक कर रहे हैं।
नीतीश के इस नये समीकरण को गढऩे की राह में मायावती एक बड़ा रोड़ा बन सकती हैं। बसपा ने बीते विधानसभा चुनाव में 4.17 फीसदी वोटों के साथ 4 सीटों पर जीत हासिल की थी। बसपा कितनी सीटें जीतती है, इससे अधिक वह कितनी सीटों पर वोट काटती है, यह बात देखने वाली होगी। राज्सभा के सदस्?य डाक्?टर एजाज अली, जो कि फिलहाल जदयू से निष्?कासित हैं, ने बताया कि बीते लोकसभा चुनाव में जदयू-भाजपा गठबंधन को मुस्लिमों के वोट नहीं मिले थे। राज्?य में मुस्लिम वोटों की संख्?या 16 फीसदी के करीब है। वह कहते हैं कि राज्?य में मुस्लिम वोट एकतरफा पड़ता है। हालांकि बीते चुनाव में यह लालू और पासवान में बंट गया था।
वहीं, कांग्रेस बिहार विधानसभा चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंकने को तैयार है। पार्टी महासचिव राहुल गांधी के दौरों को लेकर खासी उत्साहित है। सूबे के हरके हिस्से से राहुल गांधी के कार्यक्रम की मांग हो रही है। प्रदेश अध्यक्ष महबूब अली कैसर ने भी आलाकमान से मांग की है कि राहुल गांधी के ज्यादा से ज्यादा दौरे प्रदेश में हों। प्रदेश अध्यक्ष ने इस बाबत खुद राहुल से भी संपर्क साधा है। इस बीच कांग्रेस ने अपने प्रचार अभियान में कुछ निजी एजेंसियों का भी सहयोग लेने का मन बनाया है और कुछ एजेंसियों को यह जिम्मेदारी दे दी गई है।
हर कोई लुभाने की कोशिश करेगा मुस्लिम को
एशियन डवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा कराए गए इस सर्वे के मुताबिक बिहार में मुस्लिमों की आधी आबादी गरीबी रेखा के नीचे गुजर बसर करती है।हालांकि नीतीश कुमार ने राज्य में मुस्लिमों के शैक्षिक एवं आर्थिक उत्थान के लिए तालीमी मरकज और हुनर का प्रोग्राम आदि कार्यक्रम चलाए और कब्रिस्तान की घेराबंदी के लिए विशेष फंड की व्यवस्था की। बिहार में यह मामला दंगे भड़कने का सबसे बड़ा कारण बनता रहा है। बिहार के मुस्लिमों में माइग्रेशन एक बड़ी समस्या बना हुआ है। ग्रामीण इलाकों में प्रति 100 मुस्लिम परिवारों में 63 इस समस्या से जूझ रहे हैं। सर्वे में एक और अहम बात यह सामने आई है कि केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा मुस्लिमों के लिए चलाए जाने वाले कार्यक्रमों का भी उन्हें लाभ नहीं मिल पाता। बिहार का मुस्लिम समाज 43 जातियों में बंटा हुआ है। सर्वे में मुस्लिमों को सबसे गरीब समुदाय बताया गया है।सर्वे के मुताबिक 49.5 फीसदी ग्रामीण मुस्लिम परिवार और 44.8 फीसदी शहरी मुस्लिम परिवार गरीबी रेखा के नीचे रह रहे हैं। 28.04 फीसदी ग्रामीण मुस्लिमों के पास जमीन नहीं है।
शनिवार, 11 सितंबर 2010
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