भाजपा में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए संघ ने अनजाने चेहरे गडकरी को अध्यक्ष बनाकर सबको चौंका दिया। लेकिन, अब भाजपा की चौकड़ी सत्ता दल से सांठ-गांठ करके गडकरी और संघ प्रमुख मोहन भागवत को ही हटाने की मुहिम शुरू हो चुकी है।
भाजपा में इन दिनों सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। पार्टी के असरदार नेता आजकल अपने मातृसंगठन के मुखिया से ही नाखुश हैं। कारण एक नहीं, अनेक हैं। कई मौके पर इस मुखिया को दरकिनार किया गया, उसकी बातों को नहीं माना गया। अब तो यह भी कोशिश की जा रही है कि संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत को ही उनकी जगह से हटा दिया जाएगा। न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी। कुछ इसी तर्ज पर भाजपा के वातानुकूलित नेता मजमून तैयार करने में लगे हैं। अव्व्ल तो यह कि ये नेता सत्तापक्ष से भी गुटरगूं करने से परहेज नहीं कर रहे हैं।
दरअसल, बीते दिनों भाजपा के कुछ असंतुष्टï नेताओं ने पार्टी मुख्यालय में एक पर्चा बांटा। इसमें सीधे तौर पर आरोप लगाया गया कि पार्टी में एक गुट वर्तमान अध्यक्ष नितिन गडकरी को हटाने की जुगत में है। असंतुष्टïों ने इस गुट को डी-4 कहकर संबोधित किया है। बताया जाता है कि असंतुष्टï खेमा में वे नेता हैं, जिन्होंने नितिन गडकरी को अध्यक्ष बनाने के लिए दिल्ली-नागपुर के बीच काफी भागदौड़ की थी। इन्हें यह आशा थी कि गडकरी के कुर्सी संभालने के बाद मुख्यालय में इनकी पूछ होने लगेगी और शक्ति की धुरी इनके पास भी होगी, मगर डी-4 नामक गु्रप ने एक के बाद एक, हर अहम कुर्सी पर अपना कब्जा जमा लिया। तब से ही ये लोग अपने को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।
जानकार मानते हैं कि यह डी-4 कोई और नहीं बल्कि आडवाणी खेमा है। बेशक, राजनाथ सिंह की विदाई होने के साथ ही संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कई बार यह एहसास दिलाने की कोशिश की कि भाजपा में अब नया होने वाला है, लेकिन नहीं हुआ। उनके किसी भी बदलाव को सत्ता का स्वाद चख चुकी दिल्ली की चौकड़ी ने तवज्जो नहीं दिया। काबिलेगौर है कि लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली आडवाणी के ही विश्वस्त हैं। जसवंत सिंह की वापसी भी आडवाणी गुट को संबल प्रदान करती है।
इस संबलता से संघ के निष्ठावान कुछ शीर्ष नेताओं ने मोर्चा खोल दिया है, लेकिन दिल्ली की चौकड़ी को इससे फर्क नहीं नहीं पड़ता। इस चौकड़ी के नेताओं को संघ की सलाह पर गांव-गांव घूमकर पार्टी का जनाधार बनाने की कोई इच्छा नहीं है। इस गुणात्मक प्रभाव के कारण पार्टी में भी सत्ता के कई केेंद्र बन चुके हैं। जब राजनाथ सिंह अध्यक्ष थे तो आडवाणी के प्रति सहानुभूति रखने वाले नेताओं का एक वर्ग सक्रिय था, जिसने राजनाथ सिंह को असफल करने की पूरी कोशिश की थी। उम्मीद की जा रही थी कि राजनाथ सिंह के हटने के बाद यह वर्ग पार्टी के साथ एकजुटता दिखाएगा और नए अध्यक्ष नितिन गडकरी को मजबूत करने में नागपुर की मदद करेगा, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है।
यह चौकड़ी अब तो राजनीतिक विरोधी कांग्रेस में सटने की पूरी कोशिश कर रही है। यह अनायास नहीं है कि विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी के साथ बीते दिनों वीरभूमि स्थित राजीव गांधी की समाधि पर जाकर पुष्पांजलि अर्पित करें। संसद के अंदर कई महत्वपूर्ण मसलों पर जिस प्रकार से भाजपा ने कांग्रेस का साथ दिया, उससे संघ हैरत में है। वह अपनी नीतियों को टटोल रहा है। साथ ही भाजपा मुख्यालय से इस बात की तस्दीक कर रहा है कि क्या भाजपा के ये चार असरदार नेता संघ की अवहेलना कर रहे हैं। बीते दिनों अघोषित रूप से पार्टी मुख्यालय में एक पर्चा बंटा था।
पर्चे में आरोप लगाया गया है कि इस खेमा के लोग गृह मंत्री पी. चिदंबरम से भी संपर्क में हैं और जो भगवा आतंकवाद को निशाने पर लेने की कांग्रेस की कोशिश चल रही है, उसे इस खेमा का आशीर्वाद मिला हुआ है। इसी पर्चे में यह भी आरोप लगाया गया है कि पिछले एक वर्ष में आडवाणी और उनके गुट के बाकी डी-4 के नेता, कांग्रेस के बहुत करीब पंहुच गए हैं। 28 अगस्त के अखबारों में छपी एक खबर के हवाले से इस खेमा ने आरोप लगाया है कि आडवाणी की खास कृपापात्र सुषमा स्वराज ने प्रधानमंत्री की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। वैसे भी दिल्ली के सत्ता के गलियारों में यह चर्चा का विषय है कि सुषमा स्वराज और सोनिया गांधी के बीच अब वह तल्खी नहीं है, जो पहले हुआ करती थी।
राजनीति के जानकार बताते हैं कि आडवाणी और डी-4 के लोग संघ की ओर से भारी चुनौती का सामना कर रहे हैं। इन नेताओं में किसी की भी जमीनी राजनीति में कोई हैसियत नहीं है। इनका कोई भी नेता अपने राज्य में कोई भी चुनाव नहीं जीत सकता। इनमें से सभी सुरक्षिता सीट की तलाश में रहते हैं या फिर राज्यसभा के रास्ते संसद पंहुचते हैं। उनकी असली ताकत तिकड़म की राजनीति है। उन्हें दिल्ली दरबार की हर चालाकी मालूम है और वे इसी के बूते संघ को भी धता बता देने की क्षमता रखते हैं। इनके खिलाफ दबी ज़ुबान से ही सही, विरोध के सुर उभर रहे हैं। आरोप लगाया गया है कि यह लोग राजनीति में इतने दक्ष है कि संघ के मोहन भागवत तक इनके सामने असहाय हो जाते हैं।
राजनीतिक प्रेक्षकों की रायशुमारी है कि भाजपा के ही कुछ नेता संघ पर सरकार की तरफ से हो रहे हमलों के निशाने में लाने की कवायद में लगे हुए हैं, क्योंकि उसके बाद डी-4 का पलड़ा भारी हो जाएगा और वह अपनी शर्तों पर संघ को बचाने की कोशिश करेगा, लेकिन सत्ता के लोभ में भाजपा में आए लोग परेशान हैं। ताजा घटनाक्रम में झारखंड में सरकार गठन को लेकर भी भाजपा की चौकड़ी खुश नहीं है। अपने जिन कारणों और सोच के बल पर गडकरी ने भाजपा सरकार का गठन कराया हो, लेकिन किन्हीं कारणों से अगर सरकार गिरती है तो सारा ठीकरा गडकरी के माथे होगा। ऐसी स्थिति मेंं यह चौकड़ी अपने किसी मनमाफिक व्यक्ति को अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाएगी। इस तरह से तमाम घटना-परिघटनाओं से भाजपा का आम कार्यकर्ता भी परेशान है कि अपने खून पसीने से उसने जिस पार्टी को बनाया था, उसका सारा फायदा चंद लोग उठा रहे हैं। उधर, पार्टी के नेतृत्व पर कब्जा जमाए वे लोग खुश हैं, जो नितिन गडकरी के विरोधी हैं और उस घड़ी का इंतजार कर रहे हैं, जब अपनी बेलगाम जबान के चलते गडकरी कोई ऐसी गलती कर देगें जब उन्हें बचा पाना असंभव हो जाएगा और उन्हें भी बंगारू लक्ष्मण की तरह विदा कर दिया जाएगा। हवा का रुख तो यही कह रहा है कि भाजपा नेताओं के कारण अब तक पार्टी को संजीवनी प्रदान करने वाले संघ के सरसंघचालक भी हटा दिए जाएंगे और उनके साथ ही गडकरी को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा।
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