शनिवार, 4 सितंबर 2010

सुपरपावर कौन ?

दुनिया में सुपरपावर कौन है? जबाव मिलता है अमेरिका। दूसरे नंबर पर चीन काबिज है। लेकिन हम भी उसी राह पर निकल चुके हैं। हममें भी वह कूव्वत है कि आने वाले दशक में हम सुपरपावर होंगे। आर्थिकयुग में अर्थ ही ताना-बाना बुनता है। भारतीय अर्थव्यव्यवस्था और यहां की युवाशक्ति सुपरपावर बनने के लिए कमर कस चुकी है। आखिर यह कब और कैसे सच होगा?
आर्थिक युग में तमाम क्रियाकलाप 'अर्थÓ यानी धन के सहारे ही संपादित होते हैं। जिसके पास जितना अधिक धन, वह उतना अमीर। अमीर यानी शक्तिशाली। तभी तो अमेरिका पूरे विश्व में सुपरपावर बनकर अपनी दादागिरी बघारता फिर रहा है। अमेरिका के बाद दूसरे पायदान पर चीन है। आर्थिक समृद्धि के बल पर ही चीन सामरिक महाशक्ति बनकर चुपचाप दुनिया पर नजर रख रहा है। लोगों को पढ़-सुनकर भले इस बात पर हंसने का मन करे, मगर जल्द ही हम सुपरपावर बनने जा रहे हैं। हम यानी हमारा देश भारत। दुनिया अमेरिका और चीन को भूल जाएगी और हमारा डंका बजेगा। हममें वह ताकत है कि हम महाशक्ति बन सकते हैं। जवान भारत (देश में 50 फीसदी से अधिक आबादी युवा है) की दूरदर्शिता, मजबूत और गतिशील आर्थिक ढांचा हमें इस रास्ते पर ले चला है। हमारी ठोस आर्थिक जमीन का ही नतीजा है कि जब अमेरिकी आर्थिक मंदी ने पूरे विश्व की चूलें हिला रखी थी, भारतीय अर्थव्यवस्था पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। हमारी आर्थिक गतिविधि चलती रही और हमने विकास दर को भी बरकरार रखा।
इसके पीछे एक सच यह भी है कि भारतीयों के पैसा दुनिया में सबसे अधिक पैसा है। यह अलग बात है कि यह पैसा काला धन के रूप में हैं। कुछ दिन पहले ही बात सामने आई थी कि केवल स्विस बैंक में भारतीयों की जमा पूंजी 700 खरब की है। इसके अलावा देश के कितने ही लोग अपने लॉकरों और घरों के तिजोरी में कितना धन रखे हुए हैं, इसकी कोई आधिकारिक सूचना नहीं है। हाल के आंकड़े बताते हैं कि 30 करोड़ भारतीयों की परचेजिंग पावर 20 हजार रुपये प्रतिमाह से अधिक की हो गई है।
यह कोई अतिरंजना नहीं, विभिन्न आर्थिक मामलों के विशेषज्ञों की रायशुमारी है। कई रिपोर्ट भी हमारी सोच का समर्थन करती हैं। दुनिया की जानी मानी रिसर्च फर्म मॉर्गन स्टैनली की रिपोर्ट में बड़े स्पष्टï शब्दों में कहा गया है कि भले ही चीन दुनिया की नंबर-2 अर्थव्यवस्था बन गया है, लेकिन भारत जल्द ही आर्थिक विकास दर के मामले में उसे पीछे छोडऩे वाला है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत 2013 से 2015 के बीच 9-9.5 फीसदी विकास दर हासिल करने की ओर बढ़ रहा है, जबकि चीन की विकास दर की रफ्तार धीमी दिखाई दे रही है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चीन की विकास दर 2012 में घटकर 9 फीसदी के स्तर पर आ जाएगी। वहीं 2015 तक इसमें और गिरावट आएगी और यह 8 फीसदी ही रह जाएगी।
यहां गौर करने लायक है कि यह बात फिर कही जा रही है कि अमेरिका पर एक बार फिर मंदी के बादल मंडरा रहे हैं और अगर ऐसा होता है तो अमेरिकी अर्थव्यस्था बर्बादी की कगार पर पहुंच जाएगी क्योंकि वह तो अभी पहली मंदी से ही पूरी तरह नहीं उबर पाई है। 2008 की मंदी के दौरान वहां बेरोजगार हुए लोगों में से लाखों लोगों को अभी तक नौकरी नहीं मिल पाई है। जानकारों का कहना है कि ऐसे में अगर दोबारा वहां मंदी आती है तो चीन और भारत पर्चेजिंग पावर के मामले में अमेरिकी अर्थवस्था को पछाड़ सकते हैं।
जानकारों का स्पष्टï तौर पर मानना है कि भारत एक बार फिर विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक और राजनीतिक ताकत बनने को तैयार है। भारत आने वाले 50 वर्षों में 17वीं सदी वाली आर्थिक संपन्नता को प्राप्त कर लेगा। एक अग्रणी जर्मनी बैंक की ओर से तैयार रिपोर्ट में कहा गया है कि पचास वर्ष बाद भारत और चीन की अर्थव्यवस्था का आकार पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था का एक चौथाई होगा। आर्थिक इतिहासविद एंगुस मैडिशन की एक पुस्तक पर आधारित रिपोर्ट में कहा गया है कि 17वीं सदी में चीन और भारत की अर्थव्यवस्था का आकार विश्व की पूरी अर्थव्यवस्था का 25 फीसदी था। बाद में 1950 तक आते-आते यह पांच फीसदी से भी कम रह गया। डियोस्टेक बैंक की शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व अर्थव्यवस्था में भारत और चीन अगले 50 साल में फिर शीर्ष स्थान पर होंगे।
जब आर्थिक रूप से संपन्न होंगे तो हमारी सामरिक शक्ति को कोई चुनौती नहीं दे सकता। आज भारत की सेना विश्व में दूसरे नंबर पर है। वायुसेना का स्थान चौथा, जल सेना का स्थान पांचवा है। भारतीय सेना वैश्विक स्तर पर अन्य देशों की सैन्यशक्ति की तुलना में अपना विशिष्ट स्थान न केवल सामरिक दृष्टिï से रखती है, बल्कि भारतीय सेना के जांबाज युद्ध नीति, कौशल कला के प्रत्येक क्षेत्र में श्रेष्ठ योग्यता रखते हैं। सैन्य मामलों के जानकार रिटयार्ड मेजर जनरल जी.डी. बक्शी के अनुसार द्वितीय युद्ध के बाद से लगातार भारतीय सैन्य शक्ति में इजाफा हुआ है। देश में आज तक का जो विकास और बदलाव दिखाई देता है वह भारत में समय-समय पर हुई सैन्य क्रांतियों का परिणाम है। पांच हजार वर्षों के भारतीय इतिहास में तीन बार देश में सुगठित साम्राज्य देखने को मिला। मौर्य, मुगल और ब्रिटिश काल में। चाणक्य ने मौर्य काल में जो सैन्यनीति बनाई वह आज भी प्रासंगिक है। उसका उपयोग कर ही भारत विश्वशक्ति बन सकता है। इस राह पर भारत काम भी कर रहा है।
सूचना-प्रौद्योगिकी के अपने विकसित क्षेत्र में हम चीन पर छा सके, इसकी पूरी संभावनाएं नहीं है। हमें भी अपने उत्पादों की लागत घटाकर और गुणवत्ता और बढ़ाकर उन्हें चीनी बाजारों में अच्छी मार्केटिंग के साथ जोरदार प्रवेश दिलाना होगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि 1991 के बाद शुरू हुए उदारीकरण के दौर में भारत और चीन दो प्रमुख आर्थिक शक्तियों के रूप में उभरकर सामने आए हैं। भारत और चीन के पास अपने-अपने कई चमकते हुए आर्थिक संसाधनों और मानव संसाधनों की धरोहर है।
कैसे होगा यह
भारत युवा देश है। इसका सीधे तौर पर मतलब यह हुआ कि देश की कुल आबादी में युवाओं की तादाद ज्यादा है। जब कोई अर्थव्यवस्था आगे बढ़ती है तो वहां मृत्युदर और जन्म दर में कमी आती है। इसके चलते कामकाजी लोगों की संख्या बढ़ जाती है और गैर-कामकाजी लोगों की आबादी घटती है यानी काम करने वाले लोगों पर गैरकामकाजी लोगों का बोझ कम हो जाता है। इससे लोगों के बचत करने की क्षमता में तो इजाफा होता ही है, जीडीपी में लोगों की हिस्सेदारी भी बढ़ जाती है। इसके साथ ही पिछले दिनों इन्फ्रास्ट्रक्चर में सरकार की तरफ से बीते कुछ दिनों में जो भारी भरकम निवेश किया गया है, उसका भी सकारात्मक असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। ज्यादा से ज्यादा लोगों को काम काम मिला है। इससे जीडीपी ग्रोथ रेट बढ़ा है। जाहिरतौर पर आने वाले दिनों में भारत में अर्थव्यवस्था की ग्रोथ रेट में जोरदार उछाल आने वाला है। और ये ग्रोथ रेट चीन से कहीं ज्यादा होगी।
विशेष बातें :
भारत 2013 से 2015 के बीच 9-9.5 फीसदी विकास दर हासिल करने की ओर बढ़ रहा है। चीन की विकास दर 2012 में घटकर 9 फीसदी के स्तर पर आ जाएगी। 2015 तक इसमें और गिरावट आएगी और यह 8 फीसदी ही रह जाएगी।
भारत युवा देश है। देश की कुल आबादी में युवाओं की तादाद सबसे ज्यादा है। जब कोई अर्थव्यवस्था आगे बढ़ती है तो वहां मृत्यु दर और जन्म दर में कमी आती है। इसके चलते कामकाजी लोगों की संख्या बढ़ जाती
भारतीयों में मल्टीटास्किंग योग्यता गजब की है। एक औसत अमेरिकी में एक बार में दो काम करने की क्षमता नहीं होती, जबकि भारत के किसी गांव में चले जाएं तो वहां का दुकानदार एक ग्राहक को कीमत बोलता मिलेगा, तो दूसरे के लिए पुडिय़ा बांध रहा होगा और बीच-बीच में घर के अंदर झांककर पत्नी को घरेलू काम के लिए निर्देश दे रहा होगा।
भारत विश्व का सबसे बड़ा बहुदलीय लोकतंत्र है। उसके पास दुनिया की चौथी सबसे बड़ी सेना है और क्रयशक्ति के आधार पर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है जो अगले बीस वर्षों के भीतर विश्व में तीसरे स्थान पर पहुंच जाएगी।
भारत के पास अमरीका के बाद सबसे अधिक इंजीनीयर, डॉक्टर और विशेषज्ञ हैं। भारत के पास सबसे बड़ा फिल्म उद्योग है और विश्व भर में उसके खाने, फैशन और संस्कृति की धाक है।
अर्थशास्त्र का सीधा सा सिद्धांत है कि श्रेष्ठ होने के लिए हम दुनिया के श्रेष्ठ से प्रतिस्पर्धा करें। संयोगवश, हमें इस मसले पर किसी से घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि हमने यह दिखा दिया है कि दुनिया के बाजार में भारतीय बेहद प्रतिस्पर्धी हैं और हमें किसी के संरक्षण की जरूरत नहीं।
- अर्थव्यवस्था की तरक्की के लिए जरूरी है कि सरकार नीतियों में खुलापन लाए और भारतीय उद्यमियों को भी खुलकर काम करने दे। हमारी सरकार इसी सोच के साथ आगे बढ़ रही है। पिछले एक दशक में भारत में सबसे तेज गति से निवेश हुआ है।
अमरीका में करीब 35,000 भारतीय डॉक्टर काम कर रहे हैं, जो देश का पांच फीसदी है। भारत के कई छात्र वहां मेडिकल कॉलेजों में भी पढ़ रहे हैं और यह संख्या अमेरिका के कुल मेडिकल छात्रों का दस फीसदी हैं।
- विश्व के कुल जीडीपी में लगभग 40 फीसदी योगदान अमेरिका का हुआ करता था, पर चीन ने अमेरिका को पछाड़ दिया है और पिछले साल कुल वैश्विक विकास में 25 फीसदी हिस्सा चीन का ही था।
-तेजी से विकास के लिए चीन ने निवेश-आधारित रणनीति पर जोर दिया, जबकि हम खपत-आधारित रणनीति से लाभान्वित हुए हैं। भारत में भी बचत व निवेश दर 34 प्रतिशत है और विकास की गति के लिए इसे बनाए रखना होगा।

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