शुक्रवार, 7 अगस्त 2009

गौर फरमाएं

इक दावत एक कलम हो तो गजल होती है,

जब ये सामान बहम हो तो गजल होती है।


मुफलिसी, भूख, मरज, इश्क, बुढ़ापा, औलाद

दिल को हर किस्म का गम हो तो गजल हेाती है।


तन्दुरूस्ती भी जरूरी है तगज्जुल के लिए

हाथ और पांव में दम हो तो गजल होती है।


शेर नाजिल नहीं होता कभी लालच के बगैर,

दिल को उम्मीदे-रकम हो तो गजल हेाती है।


गजल की शक्ल बदल दी है ऑपरेशन से,

सुखनबरी है अगर ये, तो सर्जरी क्या है?


मेरी गजल में तखल्लुस किसी का फिट कर लो,

तखल्लुसों की भी इस शहर में कमी क्या है?


मैं जब गजल में गुलिस्तां का जिक्र करता हँू,

वो पूछते हैं गुलिस्तां की फारसी क्या है?

- दिलावर फिगार, पाकिस्तान।



लफ्ज तोड़े-मरोड़े, गजल हो गई

सर रदीफों के फोड़े, गजल हो गई।


काफिया तंग देखा तो उसकी जगह,

रख दिए ईंट-रोड़े, गजल हो गई।


ऊंट-बिल्ली से बेमेल मिसरे थे कुछ,

कान उनके मरोड़े, गजल हो गई।


लीद करके अदीबों की महफिल में कल,

हिनहिनाए जो घोड़े, गजल हो गई।


लेके माइक गधा, इक लगा रेंगने,

हाथ पब्लिक ने जोड़े, गजल हो गई।


पंख चींटी के निकले, बनी शाइरा

आन लिपटे मकोड़े, गजल हो गई।


इक रूबाई थी 'अल्हड़Ó पे कब से फिदा,

ले उड़े कुछ निगोड़े, गजल हो गई।


- अल्हड़ बीकानेरी, हिन्दुस्तान

1 टिप्पणी:

Udayesh Ravi ने कहा…

क्या हिमाकत की है आपने अल्हड जी
मैदान में जो छोडे सुबह ग़ज़ल हो गयी.
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