लोकप्रियता के लिए चर्चा और विवाद में बने रहना कुछ लोगों का शगल होता है। तथ्य है कि इस सस्ती लोकप्रियता का किटाणु नामचीन लोगोेें में कुछ ज्यादा ही होता है। खासकर राजनीति और कला जगत से जुड़ी हस्तियाॅ ंतो मानो इस फोबिया का शिकार ही होती है। फिल्मी दुनिया के जान पहचाने चेहरे तो इसे अपनी कामयाबी और लगातार काम मिलते रहने का सबसे आसान मंत्र मानते हैं। परन्तु कई बार इस चक्कर में वे उन सीमाओं का उल्लंघन करने से भी बाज नहीं आते जिससे सामाजिक सद्भाव प्रभावित हो सकता है। अपने नीहित स्वार्थ के लिए ’साम्प्रदायिक कार्ड’ खेलने से भी नहीं हिचकने वाले लोग अक्सर यह भूल जाते हैं कि उनके कला और कृतित्व को दूसरे वर्ग, सम्प्रदाय और धर्म के लोगों ने ही ज्यादा सराहा है। अभी कुछ दिन पहले ही साम्प्रदायिकता की आॅंच में चर्चा की रोटी सेंकनेवालो में फिल्म कलाकार इमरान हाशमी भी शामिल हुए हैंै। सवाल है कि साम्प्रदायिक कार्ड खेलकर विवाद खड़ा करने वाले इन कलाकार रुपी कलहकारों पर अंकुश लगाने के लिए कठोर कानूनी प्रावधान नहीं होना चाहिए ?
हाल के दिनों में अभिनेता इमरान हाशमी ने अपनेको ’मुसलमान’ होने के कारण किसी हाऊसिंग सोसाइटी में घर नहीं मिलने का पिटा पिटाया आरोप लगाकर सेकुलर मीडिया में खूब सुर्खियाॅं बटोरी। ’विचारपरस्ती’ में आकंठ डूबे कुछ मीडिया समूह तो कई दिनों तक इसे अपने समाचार और चर्चा मंे शामिल कर धर्मनिरपेक्षता के कुुंद हो रहे धार को तेज करने की फिर से एक मुहिम ही चला दी। जैसा कि स्वाभाविक था, ऐसे मामले में निर्माता निर्दशक महेश भट्ट हमेशा की तरह ’माइक’ संभालने वालों में सबसे आगे रहे। इस बार तो मामला उनके प्रिय भानजे इमरान हाशमी ने उठाया था इसलिए उनका उछलकर सबसे आगे आना कतई अनापेक्षित नहीं था। सेकुलर इलेक्ट्रानिक मीडिया अपनी फितरत के अनुसार इस मामले को सुर्खी बनाता रहा किन्तु इस अहम् बात पर किसी ने ध्यान नहीं दिया कि इमरान को उसके पसंदीदा सोसाइटी में घर नहीं मिलना एक अलग मुद्दा था जिसे इमरान और मीडिया ने ’मुसलमान’ शब्द से जोड़कर अपनी संकीर्ण मानसिकता को जाहिर किया। इमरान ने कहा कि ’’ उसे लगता है’’ कि उसके मुसलमान होने की वजह से मकान नहीं दिया गया। यानि उसने अपनी कल्पना को मकान नहीं मिलने के कारण में शामिल कर लिया और इसमें मुसलिम रंग भरकर सोसाइटी पर दवाब बनाने की सोची समझी रणनीति अपनाई। ऐसे में उसके मामा भला कैसे साथ नहीं निभाते! भानजे को शह देकर उकसाने और उचित अनुचित में साथ देने की भारतीय परम्परा तोे महाभारत काल से ही देखने में आती है।
यह कोई पहला उदाहरण नहीं है जब कुछ नामचीन लोगों ने अपनी भड़ास को ’मुसलिम एजेंडा’ बनाने का प्रयास किया है न ही यह अंतिम उदाहरण होने की ही संभावना दिखती है। मैच फिक्ंिसग की जद मेें आये पूर्व क्रिकेटर मुहम्मद अजहरुद्दीन ने इस कार्ड का इस्तेमाल काफी पहले किया था। सेकुलर खेमे के प्रमुख खेलाड़ी और बाॅलिवुड हस्ती शबाना और जावेद अख्तर भी इस खेल में शामिल हो चुके हैं। जिन नामचीन हस्तियों द्वारा इस तरह का खेल खेला गया है वे कहीं न कहीं बीमार मानसिकता से ग्रस्त भी हो सकते हैं, इसकी संभावाना भी बनती है। इन लोगों को अभिनेता शाहरुख और सलमान खान ने आइना दिखलाने वाला जवाब देते हुए कहा कि जिस तरह का आरोप इमरान ने लगाया है वैसा ’मुम्बई’ में नहीं होता। उन लोगों ने इस तरह के घटिया आरोपों का सहारा लेकर दवाब बनाने की छिछोरी रणनीति बनाने वालों को स्पष्ट कहा है कि यदि इस तरह की कोई बात मुम्बई में होती तो आरोप लगाने वाले उस मुकाम को कभी हासिल नहीं कर सकते थे जिस मुकाम पर वे आज हैं।
हाशमी ने एक और आरोप लगाते हुए कहा कि सोसाइटी द्वारा उनसे चरित्र प्रमाण पत्र माॅंगा गया। पता नहीं हाशमी साहब कितने पढ़े लिखे हैं कि इस तरह का इस तरह का आरोप लगाने से पहले कुछ सोचते भी नहीं। स्कूल - काॅलेज में नामांकन, स्थानांतरण से लेकर सरकारी और कई गैर सरकारी संस्थानों में भी चरित्र प्रमाण पत्र की आवश्यकता पड़ती है। इसके अलावा भी कई जगह इसका प्रावधान है। अभिनय करना जीविकोपार्जन का एक साधन हो सकता है किसी व्यक्ति के अच्छे चरित्र की गारंटी नहीं। यदि किसी सोेेेसाइटी के नियम और शर्तों में इसका उल्लेख है तो उसका पालन किया जाना चाहिए न कि अपनेको अति विशिष्ट मानकर इससे आहत होना चाहिए।
इमरान हाशमी का प्रकरण वास्तव में एक खास मानसिकता का द्योतक है जिसका सबसे ंअधिक फायदा देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी के चतुर सयान लोग काफी उठाते रहे हैं। वोट आधारित सरकार की तुष्टीकरण की नीति और प्रगतिशीलता का चादर ओढ़नेवाला मीडिया का एक बड़ा वर्ग इस मानसिकता को खाद पानी मुहैया कराते हैं। किन्तु यह देश और समाज के हित में नहीं है। अपने फायदे के लिए धर्म और सम्प्रदाय की ओट लेनेवाले सामाजिक सद्भाव के लिए खलनायक का काम कर रहे हैं। कानून को इस दिशा में कारगर और सख्त होने की आवश्यकता है।
- विपिन बादल
9810054378
शुक्रवार, 7 अगस्त 2009
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1 टिप्पणी:
कबिरा बैठा डाल पर दिया लं... लटकाय।
जिसको जितना चाहिए घर काट-काट लै जाय।।
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