शनिवार, 29 अगस्त 2009

देर से लिया गया सटीक फैसला

जनता के धन पर जनता के बीच जनता से दूरी ... कुछ ऐसी ही स्थिति है हमारे सियासतदानों की। कभी जनसेवक के रूप में रहने वाले ये लोग कब जनप्रतिनिधि बन गए... कहा नहीं जा सकता। सो, सेवा भाव भी जाता रहा और प्रतिनिधित्व का दंभ भरता चला गया। वरना देश के अंदर भला क्या जरूरत आन पड़ी उन्हें व्यक्तिगत सुरक्षाकर्मी की।
यूं ही नहीं कहा जाता है कि भगवान के घर देर है अंधेर नहीं। कुछ ऐसा ही किया है केंद्रीय गृहमंत्री पी। चिदंबरम ने। आखिरकार पांच वर्षों के असमंजस के बाद गृह मंत्रालय ने 30 वीआईपी से एक्स श्रेणी की सुरक्षा वापस ले ली है जिसमें भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश वाईएस सब्बरवाल भी शामिल हैं। पी. चिदंबरम का मानना है कि सुरक्षा सिर्फ उन्हीं लोगों को दी जानी चाहिए जिन्हें वास्तव में खतरा है या जो संवैधानिक पदों पर हैं। खुद गृह मंत्री ने भी कोई सुरक्षा लेने से मना कर दिया है। गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि इसके साथ ही एक्स श्रेणी की सुरक्षा वाले लोगों की संख्या 20 हो गई है। एक्स श्रेणी सुरक्षा प्राप्त लोगों को एक व्यक्तिगत सुरक्षा अधिकारी आठ घंटे के लिए मिलता है। कहा जा रहा है कि इसके बाद वाई, जेड अ©र जेड प्लस श्रेणियों के लिए भी ऐसा किया जाएगा। जैसे ही एक्स श्रेणी से लोगों से सुरक्षा वापस लेने की खबर फैली वैसे ही पुलिस सुरक्षा के लिए गृह मंत्रालय में वीआईपी लोगों के आग्रह भरे काफी काल आने लगे। विभिन्न क्षेत्रों के वीआईपी अ©र अधिकतर राजनेता गृह मंत्रालय के समक्ष अपनी सुरक्षा की आवश्यकता को सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं।
काबिलेगौर है कि गृह मंत्रालय द्वारा आहूत उच्च स्तरीय समीक्षा बैठक में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती, पूर्व केंद्रीय मंत्री लालू प्रसाद, राबड़ी देवी, समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव अ©र भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी सहित कुछ वीआईपी से एनएसजी सुरक्षा वापस लेने की अनुशंसा की गई लेकिन आखिरी निर्णय चिदंबरम को करना है। बहरहाल राजनीतिक दलों ने इसका जोरदार विरोध किया अ©र सरकार ने लोकसभा में कहा कि वीआईपी लोगों से सुरक्षा वापस लेने के लिए जल्दबाजी में कोई निर्णय नहीं किया जाएगा। बैठक के दौरान केंद्र सरकार से सुरक्षा प्राप्त करीब दो सौ वीआईपी लोगों की सुरक्षा को लेकर समीक्षा की गई। इन वीआईपी की सुरक्षा या तो एनसजी करती है या अन्य अर्धसैनिक बलों के जवान करते हं। बैठक में महसूस किया गया कि पूर्व मंत्रियों- शिवराज पाटिल, रामविलास पासवान अ©र जगमोहन की सुरक्षा को कम किया जाए जबकि पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह से सुरक्षा पूरी तरह वापस ले ली जाए। अनुशंसा की गई है कि भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला अ©र गुलाम नबी आजाद अ©र आतंकवाद विरोधी फोरम के नेता एमएस बिट्टा की एनएसजी सुरक्षा को बरकरार रखा जाए।
सच तो यह भी है कि वीआईपी सुरक्षा के कारण खर्च वहन करना भी मंत्रालय पर वित्तीय बोझ है। कुछ मामलों में यह देखा गया कि वीआईपी सरकारी सुरक्षा को रुतबे के प्रतीक के रूप में लेते हैं न कि किसी खतरे के कारण। सो, अच्छा होता कि कुछ और लोगों को इस दायरे में लाया जाता।

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