उत्पीडि़तों और विस्थापितों के लिए समर्पित मेधा पाटकर का जीवन शक्ति, उर्जा और वैचारिक उदात्तता की जीती-जागती मिसाल है। पिछले 20 वर्षों से अधिक के उनके संघर्षशील जीवन ने उन्हें पूरे विश्व के सबसे महत्वपूर्ण शख्सियतों में शुमार किया है। इस समय वे अनेक मोर्चों पर संघर्षरत हैं। उन्हीं मोर्चों के बारे में जानने के लिए उनसे बात की -
प्र। वर्तमान में अधिक से अधिक मतदान की बात हो रही है। विचार संगोष्ठी भी आयोजित की गई। बावजूद इसके, अपेक्षित वृद्घि देखने को नहीं मिली, क्या कारण है ?
उत्तर : भले ही शिक्षा का स्तर और लोगों में जागरूकता बढ़ी हो, फिर भी इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि पढ़े-लिखे लोगों की रूचि मतदान करने में लगातार घट रही है। विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में लगातार मतदान प्रतिशत का गिरना दुर्भाग्यपूर्ण है। मतदान करने में गरीबों की भागीदारी ज्यादा होती है। बावजूद इसके, उनका अस्तित्व नहीं समझा जा रहा है।
प्र। चुनाव में जिस प्रकार से पैसा बहाया जा रहा है, उसे किस रूप में देखती हैं। वोट डालने के बाद भी गरीबों को उनका हक क्यों नहीं मिलता
उत्तर : सच है कि आज पूंजी का बोलबाला है, लेकिन सच्चाई यह है कि पूंजी खाकर कोई भी जी नहीं सकता। रहने के लिए घर की जरूरत पड़ती है, जिंदा रहने के लिए खाने की जरूरत पड़ती है। यह सारी सुविधाएं गरीब लोगों के द्वारा मुहैया होती है और आज उन्हीं के अस्तित्व को नहीं समझा जा रहा है। आज वह समय आ गया है जब हमें यह सोचना है कि एक ऐसे लोकतंत्र की स्थापना की जाए जिसमें गरीबों को भी वह सम्मान मिले जिसके वे हकदार हैं।
प्र। जनमानस में यह बात स्थापित होती जा रही है कि नेताओं को हमारी फिक्र नहीं है, आप क्या सोचती हैं?
उत्तर : बिलकुल। आम आदमी और विशेषकर वे श्रमिक जिनको हिस्सा ही नहीं मिल रहा है विकास की पूरी प्रक्रिया में उनको तो यही लग रहा है कि उनके नाम पर चुनाव लड़े जाते हैं और जीते जाते हैं। लेकिन उनके लिए कोई नेता जीता नहीं है। वे केवल अपना घर भरने में लगे हैं, जनता जनार्दन की सोच उनके जेहन में नहीं है।
प्र। अधिकतर लोग कहते हैं कि ये राजनीति हमें समझ में नहीं आती?
उत्तर : बहुत तर्कसंगत है क्योंकि हमारे राजनीतिज्ञ को अगर आप देखें तो उन्हें देखकर सहज ही कोई श्रद्घा का भाव नहीं व्यक्त करता। अगर आप सोचने की कोशिश करें तो आपको याद नहीं आएगा कि इंस्पिरेशनल लीडर हमने कब देखा था अंतिम बार। कुछ लोग कहते हैं नेहरू जी थे, कुछ कहते हैं वाजपेयी जी थे। मगर आज की जो पीढ़ी है उसने ऐसा नेता कहां देखा है।
प्र। आपकी संघर्ष यात्रा नर्मदा बचाओ आंदोलन से शुरू हुई थी, अब इस समस्या पर आपके संघर्ष के मुख्य बिंदु क्या रह गए हैं ?
उत्तर : नर्मदा घाटी का संघर्ष अपने पूरे उत्साह से जारी है। पुनर्वास, पानी का सही वितरण, पर्यावरण, वैक ल्पिक वनीकरण, सभी को लेकर हमारा संघर्ष चल रहा है। हमारे संघर्ष का ही परिणाम है कि सरकार के बांध के पूरा होने के पहले ही जल संग्रहण क्षेत्र से गाद निकालने को मजबूर होना पड़ा । हमने भी यह सिद्ध किया है कि कमांड एरिया का विकास न होने एवं वितरण व्यवस्था ठीक न होने से मुख्य नहर फूट रही है।
प्र। आपने कई इलाकों में विशेषकर आर्थिक क्षेत्र (सेज) के खिलाफ भी मोर्चा खोल रखा है?
उत्तर : जहां भी जल, जमीन, जंगल की बात होगी और लोगों के साथ अन्याय होगा, मैं उपेक्षितों के साथ रहूंगी। निश्चित रूप से सेज संविधान विरोधी कार्य है। तीन स्थानों पर मैं सक्रि य तौर पर सेज विरोधी आंदोलन से जुड़ी हूं। पश्चिम बंगाल में नंदीग्राम, महाराष्ट्र में पूना के आसपास और आंध्रप्रदेश में काकीनाड़ा। इन सब स्थानों के अलावा जब भी मौका मिलता है, मैं अन्य संगठनों व जन आंदोलन जहां भी सेज का विरोध कर रहे हैं, वहां पहुंचती हूं।
प्र। जब आपने सिंगूर में नैनो परियोजना का विरोध किया गया तो कहा जाने लगा कि आप औद्योगीकरण का विरोध कर रही हैं, विकास नहीं चाहतीं?
उत्तर : न तो मैं विकास और न ही औद्योगीकरण के खिलाफ हूं। पीडि़तों के हक में आवाज उठाने का मतलब यह नहीं लगाना चाहिए कि मैं विकास का विरोध कर रही हूं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि जिस उद्योग की योजना बनाई जा रही है और जिस विकास की बात सत्ता पक्ष कर रहे हैं, उसकी प्रकृति कैसी है। भारत कृषि प्रधान देश है। यहां कृषि आधारित उद्योग अधिक होने चाहिए ताकि अधिसंख्य लोग लाभान्वित हो सकें। मु_ïी भर लोगों के लाभ के लिए जब भी परियोजना बनाई जाएगी, जन आंदोलन से जुड़े लोग विरोध करने को विवश होंगे।
प्र। तो फिर मुंबई में आपने मोर्चा क्यों खोला था ?
उत्तर : वहां सेज जैसी कोई बात नहीं थी मगर मुंबई की गरीब बस्तियों को उजाड़ा जा रहा था। हमने तीन संगठनों 'घर बचाओ, घर बनाओ,Ó 'फेरीवाला संगठनÓ व 'राष्ट्रीय शहर विकास संघर्षÓ के माध्यम से सरकार के समक्ष चुनौती खड़ी कर दी। हैरत तो तब हुई जब पता चला कि बड़े बिल्डर गरीबों को 400वर्ग फीट और निम्र मध्यम आय वर्ग को 600 वर्ग फीट के फ्लैट न देकर तीन करोड़ के फ्लैट बनाकर बेच रहे हैं। इनके विरुद्ध संघर्ष जारी है।
प्र। गत दिनों आप कोसी पीडि़तों से मिली थीं, क्या कहता है आपका अनुभव ?
उत्तर : कोसी की बाढ़ ने चेतावनी दी कि हम अपना मार्ग बदले। कोसी ने अत्याचार के खिलाफ संघर्ष के साथ अपना रास्ता बदला है। बाढ़ नियंत्रित करना भ्रम साबित हुआ। बाढ़ का प्रबंधन किया जाना चाहिए था। नदियों को जोडऩे की परिकल्पना अवैज्ञानिक है। नदी बेसिन के हिसाब से योजना बनानी चाहिए। जल व जमीन का बेहतर नियोजन करना होगा। भूगर्भ जल व वर्षो जल संरक्षण के मुद्दों पर काम किया जाना चाहिए।
प्र। आज जगह-जगह जनांदोलन चल रहे हैं। आपकी नजर में इसका क्या कारण है?
उत्तर : आम जनता की शक्ति से सत्ता में बैठे लोग डरते हैं। इस कारण उनकी भागीदारी नहीं सुनिश्चित करना चाहते। नतीजतन आज देश के कोने-कोने में विभिन्न मुद्दों पर आंदोलन चलाए जा रहे हैं जो बाजार व्यवस्था की पोल खोल रहे हैं। ऐसे आंदोलनों को जन सहभागिता की दरकार है। अफसोस इस बात का है कि ऐसे कई आंदोलनों को मीडिया की सुर्खियां नहीं मिलती। कोई 96 फीसदी असंगठित मजदूरों के विषय में नहीं सोचता, जिनकी पूरी जिंदगी मेहनत करके बीत जाती है। जब शरीर की ताकत जबाव दे जाती है तो उनके पास इलाज का पैसा भी नहीं रहता। इन मजदूरों को न्यूनतम बुनियादी सुविधाएं दिलाने के लिए लगातार अंादोलन चल रहा है, लेकिन कोई परिणाम नहीं निकलता।
प्र। जन आंदोलन से जुड़े लोगों को सक्रिय राजनीति में आना चाहिए ?
उत्तर : आने में कोई बुराई नहीं है। मगर दूसरा पहलू यह है कि ऐसे लोग राजनीतिक छल-प्रपंच से सराबोर नहीं होते और अपनी जमानत तक नहीं बचा पाते। चुनावों में जिस प्रकार से पैसों का बोलबाला है, वैसे में आंदोलनकारी कहां से टिक पाएंगे। इसके लिए आवश्यक है कि चुनाव का पूरा चुनाव आयोग के माध्यम से किया जाए।
प्र. आपकी कोई योजना जिसे पूरा करने की ईच्छा हो?उत्तर : भारत का नवनिर्माण। बाबा आमटे का सपना था कि भारत का नवनिर्माण हो। हम चाहते हैं कि उनका यह सपना हर हाल में पूरा हो। मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले की छोटी कसरावद क्षेत्र में बाबा ने जो 'निज बलÓ नामक कुटिया बनाई थी, उनकी उस कुटिया की प्रेरणा से मिला बल हमें मजबूती देगा जिससे उनके सपने को पूरा किया जा सके।
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