मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

दिव्य प्रेम का अलग संसार है

प्रेम में हम सिर्फ अपने प्रियतम के बारे में सोचते हैं। इस अवस्था का वर्णन करते हुए कई लोग कहते हैं कि उन्हें भूख नहीं लगती, नींद नहीं आती। हर जगह उन्हें अपने प्रियतम का ही चेहरा दिखाई देता है। हर वस्तु उन्हें अपने प्रियतम की याद दिलाती है। अगर उन्हें वह फूल या वह सुगंध मिल जाती है जो एक बार उन्हें अपने प्रियतम से मिली थी, तो उसकी स्मृति जागृत हो जाती है। उन्हें अपने प्रिय का अक्स ओस की हर बूंद में और हर सितारे में दिखाई देता है। वे उसे हजारों बार याद करते हैं और सैकड़ों बार पुकारते हैं।
अगर इस भौतिक संसार के प्रेम में इतनी शक्ति है तो आप अंदाजा लगाइए कि रूहानी स्तर पर प्रभु प्रेम में कितनी शक्ति होगी। यह प्रेम की ही शक्ति है जो हमें भौतिक संसार से ऊपर लाकर प्रभु तक पहुंचाती है। रूहानियत की कहानी, प्रभु के प्रेम द्वारा आत्मा में जागृत हुए प्रेम की कहानी है।
एक सूफी संत एक बार अपने शिष्यों के साथ सच्चे प्रेम के गुणों पर विचार-विमर्श कर रहे थे। हर शिष्य अपने-अपने शब्दों में बताने की कोशिश कर रहा था कि सच्चा प्रेमी कैसा होता है। एक ने कहा, सच्चा प्रेमी वह है जो मुसीबतों का स्वागत करता है और उन्हें खुशी-खुशी और कृतज्ञता से स्वीकार करता है जैसे कि वे प्रभु ने भेजी हों। तब एक शेख बोला, मेरे खयाल में तो प्रभु का सच्चा प्रेमी वह है जो भक्ति में इतना खो जाता है कि उसे कुछ महसूस ही नहीं होता, चाहे उसके सिर पर सौ तलवारें गिर पड़ें।
फिर तीसरा बोला, मैं समझता हूं कि सच्चा प्रेमी वह है जो भक्ति में इतना खो जाता है कि वह उफ भी नहीं करता चाहे उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए जाएं। हर कोई उस वक्तव्य से सहमत था, पर फिर एक और भक्त बोल पड़ा, सच्चा भक्त वह है जो मुसीबतों के बीच भी, आंतरिक रूहानी अनुभवों में इतना खोया रहता है कि वह अपना ध्यान नहीं छोड़ता।
तब सूफी ने अपने शिष्यों को राबिया बसरी का एक कथन सुनाया। राबिया बसरी बहुत बड़ी सूफी संत थीं। उन्होंने एक बार कहा था कि सच्चा प्रेम इन सब चीजों से बहुत ऊपर होता है। सच्चा प्रेमी प्रेम में इतना डूबा रहता है कि वह दर्द और आनंद में कोई फर्क नहीं करता। प्रेमी के साथ जो कुछ भी घटता है, उसका वह स्वागत करता है जैसे कि वह सब कुछ प्रियतम की ओर से ही आया हो। इसलिए एक सच्चा प्रेमी, दर्द और आनंद, दोनों से ऊपर होता है। प्रेमी सिर्फ प्रियतम को जानता है और बाकी सारा संसार उसके लिए कोई भी मायने नहीं रखता।

संत-महात्मा हमें सलाह देते हैं कि प्रभु के प्रेम को दिल में छुपा कर रखना चाहिए और संसार के सामने प्रकट नहीं करना चाहिए। यह ऐसा अनुभव है जो कि आत्मा में होता है। समय के साथ-साथ प्रेम दिल में बढ़ता जाता है। यह और गहरा तथा और ज्यादा होता जाता है। हम इसे औरों के सामने प्रकट नहीं करना चाहते, ताकि इसके विकास में कोई बाधा उत्पन्न न हो। प्रेम का अनुभव आत्मा के स्तर पर होता है और इसे शब्दों में पूरी तरह समझाया नहीं जा सकता। विरले लोग ही इस प्रेम को समझ सकते हैं जो आंतरिक मंडलों में प्रेमी (परमात्मा) और प्रेमिका (आत्मा) के बीच होता है। यह अनुभव इस संसार से ऊपर का है। दिव्य प्रेम या प्रभु प्रेम का अपना अलग संसार है और इस भौतिक संसार में इसका कोई दूसरा विकल्प नहीं है। यह रूहानी प्रेमी-प्रेमिकाओं का संसार है। अगर हम अपनी ध्यान की साधना (मेडिटेशन) का समय बढ़ाएं दें तो हम भी उस संसार का अनुभव कर सकते हैं। जैसे-जैसे हम रूहानी तौर पर विकसित होते जाएंगे, वैसे-वैसे आतंरिक रहस्य हम पर खुलते जाएंगे।



(सावन कृपाल रूहानी मिशन एवं साइंस ऑफ स्प्रिच्युऐलिटी के सौजन्य से)

2 टिप्‍पणियां:

RAJNISH PARIHAR ने कहा…

सच में यदि प्रेम का सही स्वरूप समझ आ जाये तो sari समस्या ही ख़त्म हो जाये,पर अक्सर प्रेम का गलत रूप पेश किया जाता है..जो अधूरा है...

रंजना ने कहा…

अलौकिक प्रेम की बारीकियों का लाजवाब ब्यौरा दिया आपने...
आध्यात्मिक प्रेम- यह मेरे ह्रदय के सबसे निकट का विषय है...इसलिए इस सुन्दर पोस्ट को पढ़ मन आनंद से भर गया...
इस सुन्दर कल्याणकारी प्रेरणाप्रद पोस्ट के लिए आपका साधुवाद...