बहुत हुआ। अब नहीं चलेगा। पांच साल से अधिक का मौका दिया। दोबारा भी कुर्सी थमाई। फिर भी न देश सुधरा और न परिवार। एक ही तो बेटा था, जिसकी शादी भी नहीं करा पाए। तो भला क्यों बनाए 'रखवारÓ। ऐसे थोड़े ही होता है। लोग तो यही कहते हैं न कि सरकार का रिमोट जब हाथ में है तो खुद ही क्यों नहीं गद्दी पर बैठ जाते हैं। नया साल का बजट भी पेश हो गया तब भी आम आदमी को राहत नहीं मिला। इसी प्रकार की तमाम मुद्दों पर सरकार और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की होलियाड बैठक हुई, जिसमें फैसला लिया गया कि डा. मनमोहन सिंह को अपने पद पर बने रहने का कोई नैतिक अधिकार शेष नहीं रह गया है। सो, उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए। ताजा घटनाक्रम में मनमोहन सिंह ने भरे मन से अपन पद और गोपनीयता से इस्तीफा दे दिया है और सोनिया गांधी ने रिमोट ही नहंी पूरी सरकार अपने हाथ में रख ली है।
दरअसल, देश को बजट मिल गया। सत्ता में बैठे नेताजी सब खुश हैं, उनके दोनों मंत्रियोंं ने एकदम धांसू इलेक्शन वाला बजट पेश किया है, तो विपक्षी नेताओं की परेशानी ई है कि बजट का पोस्टमार्टम कर ऊ जनता को जो उसका सड़ा-गला पार्ट दिखा रहे हैं, उसको देखकर जनता को हार्ट अटैक नहीं हो रहा। एक ठो विपक्षी नेताजी मिले, बोले, 'पब्लिक निकम्मी हो गई है। पहले लालू ने सब्जबाग दिखा दिया, ऊ खुश हो गई... इस दफा ममता ने दिखाया तब भी खुश। आज प्रणव दा ने भी खूब छकाया, कई ख्वाब दिखाया, ऊ खुश हो गई। हमरी तो कोयो सुनबे नहीं करता है। हम कह रहा हूं कि ई बोगस बजट है, इससे लोगों का भला नहीं होगा, लेकिन पब्लिक है कि समझने को तैयार नहीं है।Ó
दो दिन पहले ममता दी का दिन था...अब प्रणब दा का । प्रणब दा को फिक्र रही ..फिस्कल घाटे की...जीडीपी की...रुपया आएगा कहां से...रुपया जाएगा कहां...लेकिन आंकड़ों की बाज़ीगरी के इस वार्षिक अनुष्ठान से हमारा-आपका सिर्फ इतना वास्ता होता है कि क्या सस्ता और क्या महंगा...इनकम टैक्स में छूट की लिमिट बढ़ी या नहीं...होम लोन सस्ता होगा या नहीं...लेकिन इस देश में 77 करोड़ लोग ऐसे भी हैं जिनका प्रणब दा से एक ही सवाल है...रोटी मिलेगी या नहीं...?
बजट से एक दिन पूर्व आर्थिक सर्वे में सुनहरी तस्वीर दिखाई गई कि भारत ने आर्थिक मंदी पर फतेह हासिल कर ली है...अगले दो साल में नौ फीसदी की दर से विकास का घोड़ा फिर सरपट दौडऩे लगेगा...लेकिन आम आदमी को इस घोड़े की सवारी से कोई मतलब नहीं...उसे सीधे खांटी शब्दों में एक ही बात समझ आती है कि दो जून की रोटी के जुगाड़ के लिए भी उसकी जेब में पैसे होंगे या नहीं...? दाल, चावल, आटे के दाम यूं ही बढ़ते रहे तो कहीं एक वक्त फ़ाके की ही नौबत न आ जाए...ये उसी आम आदमी का दर्द है जिसके दम पर यूपीए सरकार सत्ता में आने की दुहाई देते-देते नहीं थकती थी...चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस नारा लगाती थी...आम आदमी के बढ़ते कदम, हर कदम पर भारत बुलंद...लेकिन आठ महीने में ही आम आदमी की सबसे बुनियादी ज़रूरतों पर ही सरकार लाचार नजऱ आने लगी...।
इससे पूर्व बैठक में यह भी चर्चा हुई कि पंचवर्षीय योजनाओं के देश में 100 दिन की योजना बनी। हरेक मंत्रालय के लिए, वह भी प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देश पर। तब किसी ने यह नहीं पूछा कि गरीबी कब दूर होगी? महंगाई कब खत्म होगी? भ्रष्टïाचार से कब छुटकारा मिलेगा? पीने के लिए जल लोगों को कब मुहैया होगा? बिजली कब आएगी? सब को रोजगार कब मिलेगी? आदि...आदि। संभव है जबाव मिलता - 100 दिन में। जबकि गुणा भाग का तात्कालिक हिसाब से मनमोहन सरकार के पास कोई 1825 दिन का जमा पूंजी था। लेकिन वे थे कि 100 दिन में ही सब निपटा देना चाहते थे। सारे मंत्री 100 दिन के टारगेट पर सेट कर दिए गए।
अब, जबकि टारगेट की सौ दिनी समय-सीमा कब की समाप्त हो चुकी है और दूसरा सौ दिन भी बीत चुका है, एक भी लक्ष्य पूरा नहीं कि या गया। सरकार ने क्या उपलब्ध्यिां हासिल की, इस पर हर कोई चुप्पी साधे हुए है। चुप, एकदम चुप। सरकार के तमाम मंत्रालय चुप्पी साधे रहे जबकि 100 दिनों का एजेंडा पेश करने के लिए मंत्रालयों और मंत्रियों में होड़ लगी हुई थी। मानो जल्दी ही सौ दिन में लिखी जाने वाली कोई कालजयी रचना स्टैंड पर आने वाली हो। ओबामा ने भी सौ दिन का टारगेट सेट किया था। कहां है किसी को पता नहीं। मुश्किल ये है कि इस चक्कर में इतने फैसले हो जाएंगे कि लागू ही नहीं हो पायेगा।
अब, जब इतना सब हो गया तो आखिर सोनिया गांधी कब तक खैर मनाती। जनता के प्रति उनकी जबावदेही भी है तो कुछ । सो, खुद ही कुर्सी थाम ली।
ये है होली स्पेशल
4 टिप्पणियां:
कल IBN7 पर एक डिबेट देख रहा था, जिसमे कौंग्रेस की तरफ से मौजूद डिबेटर कुछ इस तरह कह रहे थे "अगर सोनिया जी कहेंगी तो इन प्रावधानों को रोल बैक भी किया जा सकता है" ! अब इससे क्या अनुमान आप लगा सकते है और इसे क्या कहेंगे आप ?
॒ गोदियाल जी आपको तो पता है भई कान्ग्रेस के मन्त्री देश नही सोनिया जी के प्रति बफ़ादार है
शुरू से ही इस देश को रिमोट से चलाया जाता रहा है। पाक ने जब कश्मीर पर कब्ज़ा किया तो पटेल कि पहल पर पाक का ५५ करोड़ रूपया कबिनेट निर्णय कर रोक लिया। गांधीजी ने अनशन कि धमकी दी तो उसी दिन कबिनेट का फैसला वापिस ले लिया गया-' कश्मीर भी दिया और पैसा भी' .आज की गाँधी का तो इशारा ही काफी है
vyang v achha likh lete hoo.............
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