मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

तालिबान को नहीं चाहिए शांति

अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ चल रही लड़ाई के बीच तालिबान ने एक बार फिर करजई के शांति समझौते की पेशकश को ठुकरा दिया। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई ने तालिबान के साथ शांति समझौते की बात कही थी। इससे पहले भी तालिबान ने पाकिस्तान के संग भी शांति समझौते का ठुकरा दिया था।
ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हुआ है। कुछ दिन पूर्व लंदन में तालिबान के साथ शांति समझौते की संभावना पर कवायद के बीच पश्चिमी सेना प्रमुखों और राजनीतिज्ञों ने अफगानिस्तान से बाहर निकलने की रणनीति के तमाम पहलुओं के क्रमवार विचार किया। ब्रिटिश सेना के प्रमुख जनरल सर डेविड रिचर्ड के अनुसार तालिबान के साथ बातचीत पर विचार किया जा सकता है लेकिन यह काम ताकत की स्थिति पर ही आधारित होना चाहिए। यह सिद्धांत का नहीं वरन वक्त का मामला है। अमेरिकी सैन्य बलों के सर्वोच्च कमांडर जनरल डेविड पेट्रास ने भी अपनी सहमति जताते हुए कहा स्थिति में सुधार के पहले संघर्ष तेज होगा। अमेरिका,अफगानिस्तान में गतिरोध तोडने के लिए 30000 अतिरिक्त सैनिक भेजने जा रहा है। जनरल पेट्रास और अफगानिस्तान में अमेरिका और उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के संयुक्त सैन्य कमांडर जनरल स्टेनली मैक क्रिस्टल ने तालिबान के नेतृत्व के साथ तुरंत बातचीत शुरू करने की संभावना से इनकार नहीं किया। जनरल पेट्रास ने कहा कि अफगान सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के तालिबान के बड़े नेताओं के बीच सुलह सफाई के लिए बातचीत में शायद पाकिस्तान के अधिकारी शामिल हो सकते हैं।अमेरिका और नाटो के सैन्य कमांडरों और राजनीतिज्ञों का मानना है कि अफगानिस्तान में सैन्य बलों की कार्रवाई तेज करके तालिबान को बातचीत के लिए राजी करने के साथ वहां के विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर अमल करने की रणनीति कारगर साबित हो सकती है।
गौरतलब है कि अफगान मुद्दे पर लंदन में की गई बैठक में भी सभी देशों ने करजई के शांति प्रयासों की काफी प्रशंसा की थी। उस दौरान भी करजई ने तालिबान आतंकियों के समक्ष हथियार छोड़ मुख्य धारा में आने का प्रस्ताव रखा था। इस बार भी तालिबान ने करजई का प्रस्ताव ठुकरा दिया। उसका कहना है कि पहले अंतरराष्ट्रीय सेनाओं को अफगानिस्तान से हटाया जाना चाहिए। राष्ट्रपति के प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए तालिबान के प्रवक्ता कारी मुहम्मद यूसुफ ने कहा, 'करजई एक कठपुतली हैं। वो एक देश या एक सरकार का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते।Ó कारी ने दावा किया, 'वो खुद ही भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। वह अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों के इशारे पर नाचते हैं। जो उनका इस्तेमाल कर अपने आपको धनी बना रहे हैं।Ó
दूसरी तरफ अमरीकी जनरल मकक्रिस्टल को लगता है कि इस सप्ताह अफग़़ानिस्तान के बारे में होने वाला सम्मेलन, अन्य देशों को उनकी उग्रवाद विरोधी नीति के बारे में तैयार करने का अच्छा अवसर है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने हताहत गठजोड़ सैनिकों की बढ़ती संख्या और अफगान सरकार की घटती विश्वसनीयता के बारे में चिंता व्यक्त की। जनरल मकक्रिस्टल ने कहा कि वह अतरिक्त 30,000 अमरीकी सैनिकों का इस्तेमाल उग्रवादियों को इतना दुर्बल बनाने के लिए करेंगे कि उनके नेता अफग़़ान सरकार के साथ समझौता करने को मजबूर हो जाएंगे। श्री मकक्रिस्टल ने कहा कि कोई भी अफग़़ान जो भविष्य पर ध्यान केन्द्रित करे, अतीत पर नहीं अफगान सरकार में भूमिका निभा सकता है। उनकी इस बात का यह मतलब निकाला जा सकता है कि एक बार लड़ाई समाप्त हो जाए तो तालिबान नेता सरकार का हिस्सा बन सकते हैं।
ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर इन हालातों में कैसे हो पाएगा अफगानिस्तान का पुर्नगठन? तालिबान को पैसे, नौकरी और जमीन के बदले अफगानिस्तान के पुर्नगठन योजना में शामिल होने के लिए प्रस्तावित किया गया है। अमेरिका द्वारा 2011 तक अफगानिस्तान से अंतरराष्ट्रीय सेनाओं को हटाने के प्रयास का पहला कदम है यह। परंतु इस योजना के शुरू होने के साथ ही कुछ सवाल भी खड़े हैं। इसमें उन तालिबान को शामिल करने का प्रयास किया जाएगा जो अल कायदा के साथ अपने संबंधों को छोड़कर हिंसा और हथियार त्यागने पर राजी हो जाएंगे। क्या आपरेशन मुश्तरक तालिबान को कमजोर करेगा? कुछ कहना जल्दबाजी होगी। हालांकि अमेरिकी सेना ने मारजाह के कई भागों पर कब्जा कर तमाम तालिबान को मौत के घाट उतार दिया है। इसके साथ ही यह भी अहम सवाल है कि क्या मुल्ला बिरादर बनेगा मोहरा उसकी गिरफ्तारी से तालिबान पर मनोवैज्ञानिक दबाव बना है। लेकिन बिरादर के बीते कल पर नजर डालने से लगता है कि अमेरिकी सेना उससे कुछ भी उगलवाने में नाकाम ही रहेंगी। उसको अफगानिस्तान के पुर्नगठन के लिए इस्तेमाल कर पाना भी एक मुश्किल काम है।

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