शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

बड़े कैनवास पर आने की कोशिश

भाजपा में नई पीढ़ी को कमान देने के प्रयास में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपनी जादू की डिबिया से जिस अल्पज्ञात राजनेता को लोगों के सामने पेश किया है वे नितिन गडकरी आज देश की नंबर दो पार्टी यानी भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के सिंहासन पर आरूढ़ हो चुके हैं। अपने अध्यक्षीय नेतृत्व में पार्टी के राष्टï्रीय अधिवेशन का सफल संचालन कर और उसमें नए तेवर दिखाकर यह जता दिया कि उनकी भाजपा भारतीय राजनीतिक कैनवास पर बड़ा फलक पाने को बेताब है। तभी तो पंचसितारा संस्कृति और बंद कमरे से हटकर खुले मैदान में तंबू में राष्टï्रीय नेताओं के संग बैठकें हुई और एक तरह से अछूत माने जानेवाले मुस्लिम बिरादरी से भी सहयोग करने की अपील की।
दरअसल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचाकर मोहन भागवत के लिए नितिन गडकरी एक ऐसा नाम है जो लगातार पिछले कुछ वर्षों से संक्रमण और निष्क्रमण के दौर से गुजर रही भाजपा को संकट के भंवर से उबार कर नई ऊचांइयों तक पहुंचाएंगे। भाजपा की सफलता का अब तक का इतिहास ही अटल बिहारी वाजपेयी की सर्वमान्य छवि और लालकृष्ण आडवाणी की संगठन क्षमता का परिणाम रहा है। इन दोनों के अलावा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी पर जो भी बैठा उसकी पार्टी पर पकड़ बहुत कमजोर रही। इस सबके बीच नए अध्यक्ष को अपने कर्तव्य का बोध और जिम्मेदारियों का अहसास है। उसी का नतीजा है कि नितिन गडकरी ने कार्यकर्ताओं का आह्वान किया कि वे समाज के बहुसंख्यक वर्ग के लिए काम करें ताकि पार्टी के वोट प्रतिशत में 10 प्रतिशत का इजाफा कर 2014 में पार्टी को देश की सत्ता हासिल हो सके। भाजपा के राष्ट्रीय अधिवेशन के दूसरे दिन राष्ट्रीय परिषद को संबोधित करते हुए गडकरी ने कार्यकर्ताओं से कहा कि वे अनुसूचित जाति, जनजाति और अल्पसंख्यक वर्ग तक अपनी पहुंच बनाने में कोई कसर न छोड़ें, यह वर्ग ऐसे राजनीतिक कार्यकर्ताओं की प्रतीक्षा कर रहा है जो उनके दुखड़े को सुने और उनकी आकांक्षाओं को पूरा करे।
नारा 'पार्टी विद ए डिफरेंसÓ, वाद - राष्टï्रवाद और चोला भगवा। यही है शायद भाजपा की पहचान। नए अध्यक्ष ने अपने पहले ही अधिवेशन में कुछ हटकर कुछ नया करने की सोच जाहिर कर दी। बिना किसी तर्क-वितर्क के। सो, मुसलमानों से कह दिया - आप मंदिर बनवाने में सहयोग करें, भाजपा मस्जिद भी बनाने के लिए आगे आएगी। धर्मनिरपेक्षता का डंका पीटने वाले सियासी आलंबरदारों के चेहरे पर तनिक देर के लिए सिकन दिखाई पड़ी, लेकिन उसके बाद जिस प्रकार से साधु-संतों और मौलवियों ने आँखे तरेरनी शुरू की। मामला ही निपटता दिख रहा है।
ज्योतिष एवं द्वारका शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती कहते हैं, 'गडकरी के विचार विहिप के उस बयान के खिलाफ हैं कि अयोध्या की सीमा में कोई मस्जिद नहीं बनाई जाए। भाजपा अध्यक्ष को यह साफ करना चाहिए कि वास्तव में मंदिर और मस्जिद का निर्माण कहां होगा?Ó शिव सेना ने भी तीखे तेवर दिखाते हुए कहा है कि मंदिर के लिए भीख मांगने की जरूरत नहीं है। भाजपा के साथ बरसों से गठबंधन की राजनीति कर रही शिवसेना ने अब राममंदिर के मसले में उसकी भूमिका को गलत ठहराने की कोशिश की है। राममंदिर के लिए मुसलमानों से जमीन देने की भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी की अपील पर शिवसेना नेता और सांसद संजय राऊत ने कहा, 'राममंदिर के लिए हमें किसी से भीख मांगने की जरूरत नहीं। शिवसैनिकों ने अपनी ताकत से बाबरी मस्जिद ढहाई थी और उसी ताकत से हम राममंदिर बनाएंगे।Ó अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत ज्ञानदास ने सवाल उठाया, 'गडकरी कौन होते हैं मंदिर मामले में बोलने वाले? किसने इन्हें फैसला करने का हक दे दिया है? वे एक राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष हैं न कि राम भक्तों व हिंदू समाज के। उन्हें सीमा में रहकर बयानबाजी करनी चाहिए।Ó दूसरी ओर, जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने कहा कि असली झगड़ा तो उसी स्थान का है जहां बाबरी मस्जिद है। मस्जिद वहीं बननी चाहिए। मंदिर कहीं और बनाना है तो बात की जा सकती है। जबकि फतेहपुरी मस्जिद के इमाम मुफ्ती मुकर्रम फरमाते हैं कि यह मामला केवल एक मस्जिद का नहीं है। इसका पूरे मजहब से ताल्लुक है। बाबरी मस्जिद के स्थान से कोई समझौता नहीं किया जा सकता है। मिलजुलकर रहने की हमारी परंपरा है। भाजपा बड़ा दिल करके मजिस्द वहीं बनाने पर राजी हो तो दूसरी जगह मंदिर बनाने पर किसी को कोई ऐतराज नहीं है।
सचमुच अब बहुत हो चुका। आखिर कब तक चलता रहेगा मंदिर-मस्जिद रूपी चूहे-बिल्ली का खतरनाक देश-तोड़क खेल? वोट की राजनीति की पोषक और सत्ता के लिए सामाजिक सौहाद्र्र को भी दांव पर लगाने में नहीं हिचकिचाने वाली तथाकथित धर्मनिरपेक्ष शक्तियां भारतीय जनता पार्टी को साम्प्रदायिक निरूपित कर उस पर प्रहार करती हैं। सुनियोजित तरीके से उसे बचाव की भूमिका अपनाने को मजबूर करने की कोशिशें होती रहीं। उसे अल्पसंख्यक विरोधी के रूप में पेश किया जाना एक फैशन बन गया। साम्प्रदायिकता के पर्याय के रूप में भाजपा को प्रस्तुत करने की एक बड़ी साजिश इन कथित धर्मनिरपेक्ष ताकतों ने रची। इसी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से जब इतिहास बदल डालने का आह्वान अल्पसंख्यक मुस्लिमों के लिए आया है तब इस अवसर को व्यर्थ न जाने दिया जाए। भाजपा के नए अध्यक्ष नितिन गडकरी ने मंदिर और मस्जिद दोनों बनाए जाने का आह्वान कर स्वघोषित धर्मनिरपेक्ष ताकतों को चुनौती दी है। धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा पहन राजनीति की रोटी सेंकने वाली ये ताकतें बेचैन हो उठी हैं। अगर मंदिर-मस्जिद का मसला शांतिपूर्ण तरीके से सुलझ गया तब तो इनका 'वोटबैंकÓ दिवालिया हो जाएगा।
राजनीतिक व सामाजिक विश्लेषकों की रायशुमारी मानें तो मंदिर-मस्जिद के दुर्भाग्यपूर्ण, संवेदनशील विवाद को सुलझाने की दिशा में उठाया गया नितिन गडकरी का सकारात्मक कदम सर्वमान्य-सुखद परिणति का आकांक्षी रहेगा। तेजी से विकसित देशों की श्रेणी में प्रवेश की ओर अग्रसर भारत की जनता अब ऐसी साजिशों का शिकार होना नहीं चाहती। धर्म निहायत निजी आस्था का मामला है। हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई, बौद्ध सभी की धार्मिक परंपराओं को भारतीय समाज में सम्मानजनक स्थान प्राप्त है। इसे छिन्न-भिन्न करने वाले राष्ट्रभक्त नहीं हो सकते। अयोध्या में मंदिर और मस्जिद विवाद को हल करने की दिशा में पहली बार भाजपा ने व्यावहारिक कदम उठाने की पहल की है। सराहनीय है यह। इसके पूर्व ऐसा ठोस फैसला कभी नहीं किया गया। यह सुखदायी परिवर्तन का पूर्व संकेत है।
इससे इतर भाजपा की बात करें तो साथ में कार्यकर्ताओं को हिदायत भी दी कि वे चाटुकारिता का सहारा न लें और पैर पडऩे की आदत से दूर रहें। अपना उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने न तो नेताओं के घरों के चक्कर लगाए हैं और न ही स्वागत के लिए मालाओं पर राशि खर्च की है इसलिए कार्यकर्ता अपने काम पर ध्यान दें। गडकरी ने एक बार फिर कांग्रेस पर अपरोक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा कि उनके न तो पिता और न ही नाना-नानी देश के प्रधानमंत्री रहे हैं, वे तो महज एक कार्यकर्ता थे और राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए बाकी पार्टियों में तो नेता का बेटा ही अध्यक्ष बनता है। यह सिर्फ भाजपा में ही संभव है। उन्होंने कहा कि देश में 1000 पार्टियां है, 50 प्रमुख दल हैं जिनमें भाजपा सहित देश में सिर्फ पांच दल ही ऐसे हैं जहां घरानाशाही नहीं है। बाकी में तो नेता का बेटा ही अध्यक्ष होता है। हालंाकि इससे हटकरराष्ट्रीय अधिवेशन के लिए गांव के कृत्रिम परिवेश वाली तंबुओं की अस्थाई नगरी तो बसा दी, लेकिन पार्टी के कुछ बड़े नेताओं का आलीशान होटल में रात गुजारना चर्चा का विषय बना ।
भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने हालांकि दावा किया था कि पार्टी के सभी नेता तंबू में ही हैं और उनके लिए तंबू में रात गुजारना कोई नई बात नहीं है। पांच सितारा संस्कृति वाले सियासी दल की छवि से खुद को दूर रखने की भरसक कोशिश में जुटी भाजपा शुरू से कहती आ रही है कि पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान सभी नेता तंबू में ही रूकेंगे। इंदौर में आतंकी खतरे के अलर्ट के बाद भी यही बात दोहराई गई थी। बावजूद इसके चर्चा बनी हुई है कि भाजपा के राष्ट्रीय अधिवेशन के पहले दिन कुछ बड़े चेहरे तंबुओं की नगरी में दिखाई तो दिए, मगर रात उन्होंने किसी आलीशान होटल में बिताई।
इस बीच शहर की आबादी से दूर 90 एकड़ में फैली तंबुओं की नगरी में मौसम पिछले 10 दिन से असामान्य तौर पर करवट बदल रहा है। इस दौरान यह नगरी बारिश से दो बार तरबतर हो चुकी है। अब जबकि भाजपा का राष्ट्रीय अधिवेशन शुरू हो गया है, यहां दिन में चुभने वाली धूप पड़ रही है तो रात में कड़कड़ाती सर्दी। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया रात के समय अधिवेशन स्थल पर सर्द हवाएं, तंबुओं की दीवारों को पार कर भीतर आ रही हैं। उधर भाजपा में ऐसे नेताओं की भी कमी नहीं है, जिनका कहना है कि पार्टी के लिए उन्हें तंबू में रात गुजारने में तनिक भी परेशानी नहीं हो रही है। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान के मुताबिक भाजपा के लिए वह खटिया या चट्टान पर भी सो सकते हैं। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि वह सड़क से अपना सफर शुरू करने वाले आदमी हैं, ऐसे में राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान उन्हें तंबू में रूकने में कोई दिक्कत नहीं हो रही है।

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