पाप-पुण्य के बीच खिंचा है,
युगों-युगों से ही पाला,
पुण्य, पुण्य से टकराकर अब,
भड़काये भीषण ज्वाला।
दावानल बड़वानल युग भी,
कम है ऐसी ज्वाला से,
तभी बुझेगी यह ज्वाला जब,
पियें पुण्यकर्ता हाला।
सत्य सत्य से, न्याय न्याय से,
हुआ द्रोह करनेवाला,
इस कारण ही पूर्ण न होता,
मधु से जीवन का प्याला।
मिले पूर्णता तो जीवन को,
साकी के मदिरालय में,
जहाँ बैठ निद्र्वंन्द पियें सब,
साकी के हाथों हाला।
जीवन-प्रतीक परिवर्तन की
निश्चित है होनेवाला,
रूके न यह परिवर्तन जब तक,
पूर्ण न हो पीनेवाला।
सकल पूर्णता संभव होगी,
केवल तब ही जीवन की,
जब सात्विक प्याले में भरकर
प्यासे पियें वरद हाला।
- धनसिंह खोबा 'सुधाकरÓ
रविवार, 7 फ़रवरी 2010
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