बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

उ का है गोरी...

कभी-कभार ऐसा होता है कि मन नहीं लगता। अब नहीं लगता तो नहीं लगता। ऐसे में हम त दोइए काम करते हैं। एक कहीं घूमने भाग जाते नहि त इंटरनेट पर बैठिए। न कोनो चिक-चिक, झिक-झिक। कल अइसन ही हुआ। कुछेक दोस्तों के संग हंसी ठिठोली शुरू हो गई।
अब, आप लोगन के त दिमाग में सवाल उठबै न करेगा कि दोस्तन के संग हंसी-ठिठोली और वह भी होरी के समय में। उ का है न कि भौजी त रहती है गाम में आर साली हुई न है.... त करें त करें क्या? है कोनो इलाज। नहिए होगा। जब हम जइसन बिहारी के पास नहि है त आप त दिल्ली वाले हैं? एक बिहारी सब पर भारी त सुनिबै किया होगा न...
खैर... ई कहानी फिर कभियो। उ का है कि कल एगो हमरे मित्र ने कहा कि आपको चढ़ गया। अब, उ का जाने कि यहां त सैलरी का दिगदारी है, तो चढ़ेगा कहाँ से... अब त मांग-चांग के पीने-पिलाने का आदति त है न। वैसे भी त होली का तैयारी करना है...आब आप लोगन तो ठहरे धनिक। आपको तो कोनो दिक्कत नई है। हमरा लोगन को तो है न... लड़कैन को तौ तनिको नहि... उनको तो रंगो नहि खरीदना होता होगा... छौड़ा सब त पन्द्रह दिन पहिले से होलियाने लगता है। अब तो अंगुरी पर गिनने लायक दिने बचा है।
देखिए... हम तो होलियाने के चक्कर में इ भूले गया था कि हम अपना मित्र के बात कर रहा था। मित्र नहि त मित्राणी समझ लीजिए। कभी-कभार त बात होता है। फोन पर कमे... नेट पर अधिक। एहि मे हमरा दोष नहि है। उनको फुर्सत नहि मिलता है। तीन-तीन मैगजीन आ अकेला जान... सब जगह लिखना पड़ता है। इतना ही दिक्कत नहि है न उनके संग। आरो बहुतो परेशानी है। एक त देखने मे सुन्नर है....बोलने में अच्छा है और सबसे बुरा लक्षण है कि सिद्घांतवादी है। अब, जब लोगन सब बिना टैंलेंटे के शॉर्टकट अपनाता है त इथिक्स से काम नहि न लेना चाहिए। लेकिन हम त समझा-समझा के थक गया। हमको त खाली समझना ही पड़ता है न। वैसे एक गप्प बता दें, हमको अपने लिए भी समझ की दिगदारी रहती है। लेकिन, बच्चा से ही सुनतै आए हैं न कि 'बाँटि चुटि खाय..राजा घर जाए...Ó। इसी लोभ में समझदारी भी बांटते फिरते हैं। अब इ त कोनो अइसन चीज है न हि कि बांटने से खतम हो जाएगा। लेकिन ई बात भी यादा ठीक नहीं है। एक बार अपना-अपनैती में बांटा जाए त ठीक।
अब सरकारी नौकरी त है नहि। प्राइवेट मे त बॉस का चमचा बनना पड़ता है। लेकिन हमारी मित्राणी है कि नहि बनेगी। नहि बनना है नहि बनइये। लेकिन फिर कोई परेशानी होगी त कोई कुछ नहीं करेगा। बता-बता के थक गया। अब का है न... कि लड़की जात का बुद्घि त घुटने में होता है न । तुरंते उपर-नीचे होने लगता है। मूड का ठिकाना नहिं। क्षणे रूष्टïा- क्षणे तुष्टïा... आखिर आदिशक्ति महादेवी भी तो ऐसी ही है न... उस पर जो सुन्नर होता है... उस पर साक्षात देवी का आशीर्वाद समझ लीजिए।
अरे देवी-महादेवी के चक्कर में त भूले गए कि हमारी मित्राणी कोनो बिहारी नहि है। खालिस दिल्ली सेट। उस पर डीयू का छौंक। फिर भी बिहारी को जानती-पहचानती है। आखिर बिहारी मतलब बकलेल, बकटेट आ परिश्रमी। अब, जो इतना विशेषण-क्रियाविशेषण के संग चलता होगा...उसको हर कोई पसंद त करबै करेगा न। ठाकरे खानदान को नहि सुहाता। तो नहि सुहाए। जाए ससुरा भाड़ में। वैसन लोग त गाम में हमरा सबके पौनी-पथारी रहता है।
लेकिन दिल्ली वाले की बात निराली। दिल्ली दिलवालों की- यूं ही नहीं कहा जाता। इ अलग बात है कि दिल्ली का कोई नहीं है। सब कहीं न कहीं से आ के बसा है। जो पहले आ कर बस गया, अपने को दिल्लीवाला कहता है। अब इसके लिए झगड़ा त नहिये होगा न। हम सब त बुद्घ को मानते हैं। बहुतो समझाए.... झगड़ा नहि करना चाहिए... अपनों के संग... घर में हो तो चलता है लेकिन ऑफिस में कभियों नहि।
अब हम बोलें तो का बोलें.... ? गरीब आदमी दिवार बरोबर। दिवार के सिर्फ कान होते हैं, मुँह नहीं। हम भी चुप-चाप कई गप्प सुन के रह जाते हैं। बोल तो सकते नहीं हैं। तो बैठे-बैठे ब्लोगिया लिए। उ कहते हैं ना कि 'साहेब रूठे तो मेहनत बचे।Ó चलो इसी बहाने फुर्सतो तो मिला। इसी बात पर बोल जोगीरा सा...रा...रा...रा...रा.... !!!
हमनी के लेख पर मित्राणी ने जो रिप्लाई दिहिस है.... उसको ज्यों का त्यों भी पढ़ते रहिए और होलियाते भी। तो पढि़ए का कहल .....
प्ंाजाबी काहि से कम नाहीं। लगता बा कि भौजी ने खूब-खूब घोटन-घोटन के परसादी बनाई है मेहमानन के लिए। संभल के, कहीं तुहार ज्याइदा चख ली है न। चखनी इतनी चढ़ जाई ई जानत नाही....
पर ई सबूतबा भी मिल गई। तभी बोलत कुछ बा, लिखवत कुछ। अब त मानवा ल कितोहरा चढ़ गइल बा। सिर्फ तोहरे नहीं, हर लोगन में इका सरूर है। तुहार मेल आइल रहे। अकोरा पडली, बाकि कुछ समझा ली न। ई केकरा पर है बाबूजी। लगता है हमै इैंन तोहारी सखियन। पर ई का ? श्ुारूआत त नैटवा पर चर्चा की। फिर अब पिटारे का मजा लाई रहत कि तुहार सखियन आवत। फिर इक दम से अ खोवत। रूके... रूकबा बबुआ। कहां भाइगल ई का Óजाने कि यहां त सैलरी का दिगदारी है,करना हैÓ। कुछ धुंधला लग रहल बा। लागत सब चढ़ गईल बा।
पत्रकार बाबू अभी पढऩ का आनंद लूट रही थी न कि दिल्ली का जिक्र। बिहारी बाबू तोहार कइसे भूल गइल कि ई दिल्ली ही तोहरा रूपइया देवत है। -----तो काई दिल्ली-----डीयू छौंक----की बातन करत।
इक बात बताइल रउआ कि। खाली हम ही तो नाही तोहार सखीयन। सब जानत है। और ई का होवत दिल्ली -----डीयू का छौंक। जलन करत हमाई से। उके बाद Óगरीब--------;तोहरा कलमवा को काई हुअतै सब ठीक हाई न। हां एक औउर बात कहित तोहार सरकारी बाबू तो नहीं। ई हम जान पर बिहारी बाबू और उपर से पत्रकार। तो हुई ना बात। समझे नाही। अरे, हम कहत------कहत कितन पीइलीए---तो हो ेहीत्र----। फिर काहि बोलत कि ' पीलन नाही------Ó मांगत मांगत नहीं। इ लूर न हो तो काहि के प-कार। और काहि का धौंस। काइल चलत जात। उभी ठहरबा न। ई बतई हम कइसन टिपपणी देहत राही। खालिस बिहारी----पियोर दिल्ली वाली-----पंजाबी कुड़ी । भाई तोहार लोगन के लेल ई दिल्ली कौनों अमेरिका से कम नाही। पंजाबी तड़का बाहरी में काइसन लागल जवाब जरूर देब हम ओकरा इंतजार करब------इ पंजाबी कुढ़ी का अकिल बाल घुटना में नाहीं, दिमाग में होता-------फगूुआ में सब चलले बा।

2 टिप्‍पणियां:

chhattishgarh_neelam ने कहा…

aise mitra bhi jaroory hai. kam se kam vicharon ka aadan pradan to ho hi jata hai.

बेनामी ने कहा…

लाजबाव दोस्त। खालिस बिहारी पुट लिए आपका आलेख। ब्लॉग पर ऐसा बिरले होता है कि आपके किसी लेख पर जो संदर्भित व्यक्ति है, वह भी उसी अंदाज में अपना मंतव्य प्रकट करता है। यह नूतन प्रयास है। इसे बरकरार रखे।

पल्लव, पटना