शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

अगले महीने घूमेगा महामशीन

प्रकृति के गहरे राज आज भी वैज्ञानिकों के लिए राज ही बने हुए हैं। ज्योतिष के सहारे लोग अपना भविष्य जानने को उत्सुक होते हैं तो हाईड्रोन कोलाइडर (एलएचसी) के सहारे वैज्ञानिक सृष्टिï के सृजनात्मक तत्व का ज्ञान हासिल करना चाहते हैं। शुरूआती सफलता मशीन के निर्माण का तो हो गया, लेकिन तकनीकी खराबियों के कारण मशील फिलहाल बंद है। कहा जा रहा है कि वैज्ञानिक फरवरी में इसे फिर से शुरू करेंगे और शायद सृष्टिï के राजों का पर्दाफाश हो जाए।
यूरोपीयन ऑर्गनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (सीईआरएन)ने कहा कि हाईड्रोन कोलाइडर(एलएचसी)के काम को फिर से फरवरी में शुरु किया जाएगा। एलएचसी ने कहा कि उच्च उर्जा स्तर पर प्रक्रिया को अंजाम देने की तैयारी के लिए काम रोका गया है। इसे फरवरी में दोबारा शुरू किया जाएगा। भौतिकशास्त्री का मानना है कि बिग बैंग के तुरंत बाद केवल एक ही ताकत थी। समय गुजरने के बाद यह चार ताकतों में बँट गई। उम्मीद की जा रही है कि आईएलसी के माध्यम से इस शुरुआती ताकत को पैदा करके देखा जा सकेगा कि यह किस तरह चार ताकतों में विभक्त होती है। इसके अलावा यह ब्रह्मांड में मौजूद डार्क मैटर पर भी नई जानकारी मुहैया कराएगी। दो दर्जन से अधिक देशों के 300 विश्वविद्यालयों तथा प्रयोगशालाओं के 2000 से अधिक लोग इस प्रयोग से जुड़े है। तीन साल पहले शुरू हुए लगभग 32 अरब रुपए के इस प्रोजेक्ट पर अभी तक 12 अरब रुपए खर्च हो चुके हैं। उम्मीद है कि इसका फाइनल डिजाइन 2012 तक आ जाएगा। हालाँकि इसे किस देश में स्थापित किया जाएगा, इसका फैसला अभी बाकी है। पर अंदाजा लगाया जा रहा है कि इसे भी स्विट्जरलैंड में लगाया जाएगा।
काबिलेगौर है कि सितंबर, 2008 में तकनीकी खराबी आ जाने के कारण शुरू होने के सात दिन बाद ही बंद हो गई महाविस्फोट मशीन यानी लार्ज हैड्रोन कोलाइडर (एलएचसी) सितंबर, 2009 में दोबारा चालू हुई थी। फ्रांस और स्विट्जरलैंड बॉर्डर के पास जमीन से 175 मीटर नीचे 27 किलोमीटर लंबी सुरंग में बनी इस मशीन में हीलियम के रिसाव के कारण गड़बड़ी पैदा हो गई थी, जिसके बाद इसे पिछले साल 10 सितंबर को बंद कर दिया गया था। सर्न के वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रयोग के दौरान वही परिस्थितियां पैदा होंगी जो ब्राह्मांड के निर्माण की थीं, जिसे बिग बैंग भी कहा जाता है। प्रयोग के लिए प्रोटॉनों को इस गोलाकार सुरंगों में दो विपरित दिशाओं से भेजा जाएगा। इनकी गति प्रकाश की गति के लगभग बराबर होगी और जैसा कि वैज्ञानिक बता रहे हैं प्रोटॉन एक सेकेंड में 11,000 से भी अधिक परिक्रमा पूरी करेंगे। इस प्रॉसेस के दौरान प्रोटॉन कुछ विशेष स्थानों पर आपस में टकराएंगे। इसके बाद एक चोंचदार पक्षी का ब्रेड का टुकड़ा गिरने से ब्रहमांड के रहस्यों से पर्दा उठाने के लिए काम कर रही दुनिया की सबसे बड़ी मशीन को कुछ समय के लिए रोक दिया। माना गया कि यह पक्षी एक उल्लू था। संबंधित एजेंसी सीईआरएन ने कहा कि बाहरी विद्युत आपूर्ति लाइन पर गिरे रोटी के टुकड़े के कारण शार्ट सर्किट हो गया था, जिसके चलते ब्रहमांड का खुलासा करने के लिए किये जा रहे महाप्रयोग की शीतलन प्रणाली बंद हो गयी। सितंबर 2008 में शुरू हुई यह मशीन समस्याओं से घिरी रही है। हालांकि सीईआरएन का कहना है कि नयी घटना मामूली थी और इसने मरम्मत के बाद मशीन को फिर से शुरू करने के प्रयासों को प्रभावित नहीं किया।
दूसरी ओर, सापेक्षता के सिद्घांतों का जवाब ढूढंने के लिए एक और नई महामशीन बनाई गई है। जिनेवा में लार्ज हैडरन कोलाइडर (एलएचसी) के महापरीक्षण के कुछ समय बाद से ही वैज्ञानिक इससे भी बड़ी मशीन बनाने की तैयारी कर रहे हैं। इस मशीन का नाम रखा गया है 'इंटरनेशनल लीनियर कोलाइडरÓ (आईएलसी)। यह एक अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट है। इसका मकसद भी विज्ञान के अनसुलझे सवालों को खोजना होगा। प्रोजेक्ट के यूरोपियन डायरेक्टर और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ब्रायन फोस्टर बताते हैं कि आईएलसी भी एलएचसी के ढाँचे पर ही काम करेगी। इसके बावजूद यह उससे काफी अलग और एडवांस होगी। यह उससे ज्यादा लंबी यानी करीब 30-50 किलोमीटर की होगी। आईएलसी की तरह उसकी सुरंग गोल नहीं, बल्कि लंबी होगी। इसीलिए इसका नाम लीनियर कोलाइडर है। एलएचसी में तो प्रोटॉन बीम की आपसी टक्कर होना है, जबकि आईएलसी में मैटर (इलेक्ट्रॉन) और एंटी मैटर (पॉजिट्रॉन) की टक्कर होगी। इन दोनों पार्टिकलों को फायर करने के लिए इसमें दो 'गनÓ होंगी, जो आमने-सामने लगी होंगी। मैटर और एंटी मैटर के कणों को तेज गति से चलने वाली रेडियो तरंगों पर सवार कर एक-दूसरे से टकराया जाएगा। कहा तो यह भी जा रहा है कि पर्यावरणविद् हमेशा एलएचसी का विरोध करते रहे हैं क्योंकि इसकी एक बड़ी समस्या है कि इसमें प्रयोग के दौरान काफी 'कचराÓ निकलेगा, पर वैज्ञानिक दावा कर रहे हैं कि आईएलसी पर्यावरण के लिहाज से एकदम क्लीन प्रोजेक्ट है। इसके अलावा आइंस्टीन ने अपनी थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी या सापेक्षता के सिद्धांत में कई सवाल उठाए थे जिनके जवाब आज तक नहीं ढूँढे जा सके हैं। उनके हिसाब से बहुत बड़ी और बहुत छोटी चीजों पर एक जैसे नियम नहीं लागू होने चाहिए। मसलन, परमाणुओं और सूक्ष्म कणों पर तीन तरह के इलेक्ट्रोमैग्नेटिक बल लगते हैं। इसके अलावा उन पर उनके नाभिकों की ताकतें भी लगती हैं। दूसरी ओर, चाँद-तारों पर एक चौथी ताकत ग्रेविटेशनल फोर्स भी काम करती है। आइंस्टीन के सिद्धांत की समस्या यह है कि उसके जरिये गुरुत्वाकर्षण और बाकी तीन बलों में तालमेल नहीं बैठाया जा सकता।

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