सूचना का अधिकार कानून को स्वतंत्र भारत में एक क्रांतिकारी वदलाव के तौर पर देखा गया था लेकिन लगता है कि सरकार साम-दाम-दंड-भेद का इस्तेमाल करते हुए किसी भी तरह से इससे मुक्ति चाहती है। हाल में कई ऐसे मामले आए हैं, जिसमें बिहार में सूचना मांगने वालों को प्रताडि़त करने की काफी शिकायतें आ रही हैं। अब बिहार सरकार ने सूचना पाने के नियमों में अवैध संशोधन करके एक आवेदन पर महज एक सूचना देने का नियम बनाया है। अब गरीबी रेखा के नीचे के लोगों को सिर्फ दस पेज की सूचना निशुल्क मिलेगी, इससे अधिक पेज के लिए राशि जमा करनी होगी। ऐसे नियम पूरे देश के किसी राज्य में नहीं हैं।
जमीनी हकीकत यही है कि पंचायत स्तर से लेकर सरकारी विभागों के स्तर तक इस मामले में प्रताडऩा के कई मामले सामने आ चुके हैं। सरकारी योजनाओं में बरती गई अनियमितताओं को दबाने-छिपाने वाला अधिकारी या कर्मचारी वर्ग यहाँ लोगों के सूचना-अधिकार के खिलाफ हमलावर रुख़ अपना चुका है। बिहार में तीन साल पहले इस अधिनियम को लागू करते समय दिखने वाली सरकारी तत्परता की देश भर में सराहना हुई थी। आज स्थिति उलट गई लगती है। कारण है कि अब इसी राज्य में नागरिकों के सूचना-अधिकार का हनन सबसे ज़्यादा हो रहा है। हालत यहाँ तक बिगड़ चुकी है कि भ्रष्टाचार साबित कर देने जैसी सूचना मांगने वालों को झूठे मुक़दमों में फँसाया जा रहा है। ऐसे लोगों को जेल भेज देने की भी धमकी दी जा रही है। सूचना अधिकार क्षेत्र के जाने माने सामजिक कार्यकर्ता और मैगसेसे पुरस्कार प्राप्त कर चुके अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में इस बाबत पटना में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाक़ात की और उन्होंने हालात में सुधार का अनुरोध किया।
हालांकि नीतिश सरकार ने इस अधिकार के प्रचार व प्रसार में काफी पैसे बहाए हैं। सूचना के अधिकार के तहत काफी मेहनत व मुशक्कत के बाद 18 नवंबर 2008 को मिली सूचना के अनुसार इस अधिकार के व्यापक प्रचार-प्रसार हेतु सूचना एवं जन सम्पर्क विभागए बिहार द्वारा मेघदूत पोस्टकार्ड योजना के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने के लिए 1।25 लाख पोस्टकार्ड का मुद्रण किया गयाए जिस पर कुल लागत 2.50 लाख रुपए है। पोस्टर मुद्रण पर 22,500. (बाइस हज़ार पांच सौ) रुपये तथा फ्लैक्स संस्थापन के कार्य पर 52,763 (बावन हज़ार सात सौ तिरसठ) रुपये खर्च किया गया। इसके अतिरिक्त प्रखंडों के आधार पर इसके प्रचारार्थ होर्डिंगए फ्लैक्स एंव पम्पलेट निर्माण हेतु कुल 21,48,000(इक्कीस लाख अड़तालीस हज़ार) रुपये खर्च किया गया है। केन्द्रीय प्रायोजित योजना के तहत भी राज्य को कार्यशाला एंव सेमिनार के माध्यम से प्रचार.प्रसार हेतु 50,000 (पचास हज़ार) रुपये जि़लाधिकारी पटना को मिला। लालू के लालटेन युग के बाद बिहार की जनता में यह उम्मीद जगी थी कि शायद अब भ्रष्टाचार पर लगाम लग जाएगी, लेकिन सुशासन के दौर में भी भ्रष्टाचार बेलगाम बढ़ता ही जा रहा है। खैर बिहार सुधर सकता है, गरीबी का पहाड़ समतल हो सकता है, पर शर्त है कि पुराना ढब बदला जाए। पर यहां के सरकारी अधिकारी ऐसा हरगिज़ नहीं होने देंगे।
सूचना के अधिकार के तहत मिली एक अन्य सूचना के अनुसार बिहार स्टेट इलेक्ट्रॉनिक डेवलपमेंट कारपोरेशन लिमिटेड के ज़रिए आउटसोर्सिंग व्यवस्था से चलने वाली छह सीटर कॉल सेंटर को कार्मिक व प्रशासनिक सुधार विभागए बिहार से दिनांक 25 सितम्बर 2007 को 33,26,000। (तैतीस लाख छब्बीस हज़ार) रुपये प्राप्त हुए जबकि इसने खर्च किया 34,40,586.00 (चौतीस लाख चालीस हज़ार पांच सौ छियासी) रुपये। वहीं बिहार राज्य सूचना आयोग में वर्ष 2008.09 तक 2,75,43,072 (दो करोड़ पचहत्तर लाख तिरालीस हज़ार बहत्तर) रुपये की राशि खर्च की गई। पर अफसोस! इतने खर्च के बावजूद ये राज्य सूचना आयोग दो ही आयुक्तों के सहारे चल रहा हैए जबकि एक मुख्य सूचना आयुक्त सहित 10 आयुक्त यहां होने चाहिए। दिलचस्प बात तो यह है कि यहां मुख्य सूचना आयुक्त का पद ही खाली हैए क्योंकि अक्टूबर 2008 में मुख्य सूचना आयुक्त न्यायमूर्ति शशांक कुमार सिंह सेवानिवृत हो गए और राज्य सरकार ने पटना हाईकोर्ट के सेवानिवृत मुख्य न्यायधीश जे.एन.भट्ट को मुख्य सूचना आयुक्त बनाया गया लेकिन उन्होंने मुख्य सूचना आयुक्त का पदभार ग्रहण नहीं किया।
इसी संदर्भ में बिहार सूचना अधिकार मंच के संयोजक परवीन अमानुल्लाह ने कहा कि बिहार सरकार द्वारा सूचना के अधिकार में किया गया संशोधन अलोकतांत्रिक ही नहीं बल्कि लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन है। मैंने 45 ऐसे मामलों की जानकारी राज्य सरकार को बहुत पहले दी थी, लेकिन उस पर अब तक कुछ भी नहीं हुआ। उन्होंने बताया कि बिहार सरकार द्वारा अब सूचना मांगने के लिए 10 रुपये चुकाने का नियम गरीबों को इस अधिकार से वंचित करना है। कहा जा रहा है कि अगर सूचना पाने के नियमों में संशोधन हुआ तो नागरिकों को सूचना पाने के इस महत्वपूर्ण अधिकार से वंचित होना पड़ेगा। एक समय बिहार को आंदोलन का प्रतीक माना जाता था। आज सूचना कानून के मामले में बिहार पूरे देश में सबसे लाचार और बेबस राज्य नजर आ रहा है। वहां सुशासन की बात करने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दुशासन की भूमिका निभाते हुए कुशासन को बढ़ाना देने के लिए सूचना कानून को कमजोर किया है।
दूसरी ओर शिकायतों की भरमार से घबराए मुख्यमंत्री ने कुछ फौरी कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। इसी सिलसिले में उन्होंने एक हेल्पलाइन नंबर- 2219435 जारी करते हुए ख़ुद टेलिफ़ोन पर पहली शिकायत (संख्या 001) दर्ज कराई। टेलिफ़ोन पर मुख्यमंत्री ने लिखाया- मुख्यमंत्री सचिवालय को सूचना मिली है कि वीरेंद्र महतो, ग्राम- कसियोना, पंचायत- करैया पूर्वी, प्रखंड- राजनगर, जि़ला- मधुबनी द्वारा करैया के प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी से जन वितरण प्रणाली की दुकानों में राशन- किरासन आपूर्ति का ब्यौरा माँगा गया था। इस पर उनको धमकी दी गई, जो राजनगर पुलिस थाना में केस संख्या 181/09 दिनांक 10-08-09 दर्ज किया गया है। इस मामले की पूरी जांच करके मुख्यमंत्री सचिवालय को सूचना दी जाए।
समझा जा सकता है कि मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक तौर पर एक नरम किस्म की ही शिकायत दर्ज कराई। गंभीर किस्म की शिकायतें तो आम लोगों के बीच जाने पर मिलती हैं।
1 टिप्पणी:
आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
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