शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

कैसे होंगे होठ लाल?


महोबा, देशी, सांची पानों के लिए मशहूर उत्तर प्रदेश में किसान अब पान की खेती से तौबा कर रहे हैं। किसी तरह से सरकारी प्रोत्साहन न मिलने और साल दर साल जाड़े पाले से खराब हो रही खेती के चलते हजारों की संख्या में किसानों ने पान की खेती से किनारा कर लिया है। बीते दो सालों में ही उत्तर प्रदेश में पान की खेती का रकबा घट कर एक तिहाई रह गया है। आज पान की खेती सरकारी मदद के अ•ााव और गुटखा व्यापारियों के बढ़ते कारोबार के कारण दम तोड़ती नजर आ रही है। पान की खेती करने वाले किसानों की मानें, तो खेती के लिए पर्याप्त पूंजी के अ•ााव में अब वे अपनी परंपरागत खेती छोड़कर दिल्ली और मुंबई में मजदूरी करने के लिए मजबूर हो रहे हैं। सच तो यह है कि उत्तर प्रदेश में पान की खेती के लिए महोबा, वाराणसी और लखनऊ से सटे बंथरा और निगोहां का इलाका काफी मशहूर है। इसमें •ाी ‘बनारस’ और ‘महोबा’ के पान का गुणगान कई फिल्मों में किया जा चुका है। पान की खेती करने वाले किसानों का कहना है कि सरकार का सहयोग नहीं मिला, तो कुछ समय बाद पान •ाी गुजरे जमाने की चीज हो जाएगा। सच तो यह है कि पूरे देश में करीब 30 हजार हेक्टेयर •ाूमि पर पान की खेती होती है और करीब दो करोड़ से अधिक लोगों को इससे रोजगार मिला हुआ है। पान की खेती से बड़े पैमाने पर विदेशी मुद्रा •ाी प्राप्त होती है, क्योंकि पान करीब दो दर्जन से अधिक देशों में निर्यात किया जाता है। इससे साल •ार में करीब 100 करोड़ रुपये का टर्नओवर होता है। अब सरकारी उपेक्षा के कारण इस उद्योग पर आशंका के बादल छाने लगे हैं। पान से मिलता रहा है विदेशी मुद्रा केंद्र सरकार को 1.55 लाख डॉलर विदेशी मुद्रा देने वाले पान की खेती का दायरा सिमटता जा रहा है। पान की खेती को बचाने के लिए की गई कई घोषणाओं के बावजूद इसमें सुधार नहीं हो रहा है। बनारस के पान व्यवसायी महेंद्र कुमार के अनुसार, केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने इस खेती को सुधारने के लिए जो घोषणाएं की थीं, वे किसानों के पास अब तक नहीं पहुंची हैं। शरद पवार ने इस साल जून में पान के उत्पादन को बागवानी फसलों के अंतर्गत शामिल करने की घोषणा की थी। उन्होंने कहा था कि पान उत्पादक किसान प्राकृतिक आपदा राहत •ाी प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन उन्हें अब तक इस तरह की घोषणाओं का ला•ा नहीं मिल पाया है। सैयां को अब पान नहीं, चाहिए गुटखा हिंदी फिल्मों में ‘पान खाए सइंया हमार’ या ‘खइके पान बनारस वाला’ जैसे कई लोकप्रिय गीत अब बेमानी हो गए हैं, क्योंकि सैयां अब पान नहीं, गुटखा खाते हैं और यही बात पान उत्पादक किसानों और दुकानदारों को साल रही है। गुटखे के पाउच पर कैंसर जैसी वैधानिक चेतावनी के बावजूद इसका उत्पादन और बाजार बढ़ा है, जबकि होठों की लाली के लिए मशहूर पान का उत्पादन और खपत दोनों में कमी आई है। उत्तर प्रदेश में तीन दशक पहले पान की खेती चालीस जिलों के आठ हजार एकड़ में की जाती थी। अब यह सिकुड़कर पन्द्रह जिलों में लग•ाग एक हजार एकड़ तक ही रह गई है। राज्य के लखनऊ, सीतापुर, उन्नाव, रायबरेली, बाराबंकी, हरदोई, प्रतापगढ़, सुलतानपुर, जौनपुर, इलाहाबाद, प्रतापगढ़, ललितपुर, बांदा और महोबा जिलों में ही दूसरी खेती होती है। महोबा का पान तो देश विदेश में मशहूर है। इसके अलावा बनारस के मगही का •ाी कोई जवाब नहीं, जो मुंह में जाते ही घुल जाता है। गुटखा ने बिगाड़ा खेल महोबा के एक पान उत्पादक के अनुसार, पान की खेती करने वाले किसानों ने गुटखा को लेकर काफी विरोध जताया। इसके लिए गांधीवादी तरीका अपनाया गया। इसके तहत दुकान से गुटखा खरीदने वाले को मुफ्त में पान के एक दर्जन पत्ते दिए जाते थे, लेकिन विरोध की यह आवाज •ाी दबकर रह गई। पान की खेती के बारे में उन्होंने बताया कि पान बेहद नाजुक होता है। इसकी खेती घासफूस और लकड़ी के बनाए गए छज्जे के अंदर होती है। इसकी सिंचाई में काफी मेहनत करनी पड़ती है। किसान छेद किए हुए घड़े में पानी •ारकर छज्जे के •ाीतर सिंचाई करते हैं। दिन में कम से कम दो बार यह प्रक्रिया चलती है। इसके बाद पान के एक-एक पत्ते को तोड़ना और फिर घर लाकर यह देखा जाता है कि उसमें दाग तो नहीं है। यह काम काफी कठिन होता है। आज से करीब 10 साल पहले एक हजार एकड़ में पान की खेती होती थी, लेकिन अब यह केवल 200 एकड़ तक सिमट कर रह गई है। पान की खेती करने वाले किसानों को सरकार की ओर से किसी तरह की मदद नहीं मिलती जो चिंतनीय है। बनारसी पान के उत्पादक मानवेंद्र सिंह कहते हैं कि क्षेत्र में पहले कई सौ एकड़ में पान की खेती होती थी, जो अब केवल 30 एकड़ में सिमट कर रह गई है। उनका पूरा परिवार पहले चार एकड़ में पान की खेती करता था, लेकिन अब एक एकड़ में ही खेती हो पाती है। बनेगा पान विकास निगम बीते दिनों पान किसान यूनियन की ओर से पान किसान चेतना सम्मेलन का आयोजन किया गया था, जिसमें राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष पी.एल. पुनिया ने उत्तर प्रदेश में पान विकास निगम का गठन करने की घोषणा की। उन्होंने पान किसानों को आश्वासन दिया कि इसके लिए वह शीघ्र प्रदेश सरकार से प्रस्ताव तैयार करने के लिए कहेंगे। उन्होंने पान किसानों की दयनीय दशा पर चिंता व्यक्त करते हुए चौरसिया समाज को ‘अतिपिछड़ा’ वर्ग में शामिल करने का प्रयास करने और राजनीतिक •ाागीदारी देने का •ाी आश्वासन दिया। राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई)के निदेशक डॉ.सीएस नौटियाल ने पान पर अनुसंधान करने के लिए महोबा में बंद चल रहे पान अनुसंधान केंद्र को फिर से शुरू करने और पान किसानों को प्रशिक्षण देने का आश्वासन दिया। उल्लेखनीय है कि देश में पान की खेती 30 हजार हेक्टेयर में होती है। चौरसिया समाज की कुल आबादी तीन करोड़ है, उनमें से दो करोड़ लोग पान की खेती करते हैं। प्रदेश में चौरसिया समाज के 40 लाख लोग, एक हजार एकड़ क्षेत्र में पान की खेती करते हैं। 30 देशों में पान •ोजा जाता है, जिससे देश को हर वर्ष 1.55 लाख अमेरिकी डॉलर की प्राप्ति होती है। पान किसानों का कहना है कि इसे खेती का दर्जा दिया जाए और जो सुविधाएं किसानों को अलग अलग उपजों के लिए दी जाती रही हैं उसे पान किसानों को •ाी दी जाएं। पान किसानों के प्रतिनिधि मंडल के नेता छोटे लाल चौरसिया के अनुसार, केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों से मुलाकात कर उन्होंने किसानों को अनुदान और लखनऊ व महोबा में पान अनुसंधान केंद्र खोलने की मांग की है, अ•ाी तक केवल आश्वासन ही मिला है। उनका कहना है कि पहले एनबीआरआई महोबा और लखनऊ में अनुसंधान केंद्र चलाता था, जिसे बंद कर दिया गया है।

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