ललाहित मन, उत्सुक नयन, करबद्घ तन और दिलों में आपका प्यार है
मनमोहिनी सी इस बेला में बस एक ही अरदास है,
जो सोचा है तुमने वो सब पा लो।
आज के दिन दुआएं तो बहुत मिली होंगी,
उसमें मेरी भी शामिल कर लो।
भूल हुई या चूक कोई हो, ध्यान सभी तज देना
अनमोल बड़ा है प्रेम आपका सानिध्य रतन रज देना।
आज भी तुम्हें भी गर याद हो
शुरू में बातचीत का क्रम एकतरफा रहा हो
तुम बोलते रहे और मैं सुनती रही
जब ये सिलसिला दोतरफा हुआ
न जाने किसकी नजर लगी...
एक जलजला आया और बिखर गई सपनों की माला
बिखर गए वो मोती, जिन्हें हमने बड़े जतन से चुने थे...
आज भी उन्हें पिरो रही हूं इस आस में
काश !
लौट आएंगे वो पल ...
क्या भरोसा, कांच का घट है, किसी दिन फूट जाए
एक मामूली कहानी है, अधूरी छूट जाए
एक समझौता हुआ था रोशनी से टूट जाए...
फिर भी मन में अरदास है,
जो सोचा है तुमने वो सब पा लो।
जानती हूं तुम्हारी मुझसे नफरत है अदद
शायद वजहें भी मैं ही हूं
पर जो था, जैसा था रख दिया तुम्हारे समक्ष
अपना हाल-ए-दिल, बिना किसी दुराव-छिपाव के
फिर भी कहूंगी लौटा दो वो पलछिन
रुठना-मनाना तो दुनिया की रीत है
मनुहार बड़ी नहीं, बड़ी आपकी प्रीत है।
अबके भी पधारियेगा यह दिल की पुकार है
केवल अनुग्रह की बात नहीं,
मन का अरदास है,
जो सोचा है तुमने वो सब पा लो।
आज भी अंगुलियों में जुम्बिश होती हैं, पर सहम जाती हैं
शायद, तुम्हारी नफरतों का यह आभास है
डरती हूं कि कहीं तुम ये अधिकार भी न छीन लो...
पर इस दिन स्वीकारता है हर कोई
दुश्मनों से भी दुआएं
दुश्मन ही समझ स्वीकार लो मेरी अरदास भी
आज के दिन
जो सोचा है तुमने वो सब पा लो।
तुम मानो या ना मानो
यह दिन मेरे लिए यादगार रहेगा सदा
जिसने मुझे हंसना सिखाया
उस पल संभाला जब लगता था जिंदगी थम सी गई है,
आकर मेरे जीवन को था तुमने संवारा
जिस दिन उसका इस धरती पर हुआ पादुर्भाव
वह दिन मेरे वजूद से जुड़ गया है
तभी तो मन में यह अरदास है ,
जो सोचा है तुमने वो सब पा लो।
दुआएं तो बहुत मिलीं होगी इस दिन
तुम सफलता के उच्चतम शिखर तक पहुंच जाओ,
सफलता के परचम लहराओ....
पर मैं दुआ करुंगी इतनी
जो सोचा है तुमने वो सब पा लो।
न जाने आज क्यूं दिल फिर से कहता है
अब भी हाथ में कुछ वक्त बाकी है
बस एक लम्हा जीना चाहती हूं
समय के इस शामियाने में फिर एक
नए ख्वाबों का घरौंदा बना जी लें हम
लौटा दो वो पल...लौटा दो वो पल...
- दीप्ति अंगरीश
मंगलवार, 25 जनवरी 2011
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2 टिप्पणियां:
पहली बात-
क्या भरोसा, कांच का घट है, किसी दिन फूट जाए,
एक मामूली कहानी है, अधूरी छूट जाए,
एक समझौता हुआ था रौशनी से, टूट जाए....
ये दिनकर की पंक्तियाँ हैं और उस कविता का शीर्षक है- 'अब तो पथ यही है'
दूसरी बात-
' Love is not one way traffic'... फिर भी प्रेमी के लिए सर्वस्व सफलता का अरदास इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि प्रेम पर पश्चिम की थ्योरी हिन्दुस्तान में लागू नहीं होती... वैसे एक हकीक़त ये भी है की 'मिलता नहीं दोबारा गुज़रा हुआ ज़माना'
Bahut achha ...Lazbab...Atulniya...
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