विकास पर क्षेत्रीयता किस कदर हावी होता है इसका मुजाहिरा झारखण्ड से बेहतर शायद ही कहीं मिले। तभी तो विकास की बात करने के बजाए प्रदेश के नेता क्षेत्रीयता की बात कर रहे हैं, वह भी गरीब और आदिवासियों के नाम पर। कभी झारखण्ड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने जिस तरह से 'डोमिसाइलÓ की नीति से यहाँ का ताना-बाना नष्ट किया और समूचे प्रदेश को हिंसा की आग में झोंक दिया था, जिसका खामियाजा यहाँ के निरीह लोग आज भी भुगत रहे हैं। तो कुछ उसी राह पर चलते हुए गठबंधन की अर्जुन मुंडा सरकार भी छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट को हवा देने की कवायद कर रही है।
वर्तमान का सच यही है कि मुंडा सरकार के एक मंत्री मथुरा महतो छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट को मुद्दा बनाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट झारखंड के ओदवासियों-मूलवासियों के लिए जीवन रेखा है। यह तो कानून बना हुआ है ही। और सरकार ने यह कभी नहीं कहा कि इस कानून में संशोधन करेंगे, तो फिर बार-बार इसी मुद्दे को उछालने के पीछे मंशा क्या है? जिस ताकत को झारखंड के विकास में लगाना चाहिए, वह कहीं और लग रही है।
सच तो यह है कि राजनीतिक अस्थिरता के साथ ही लोगों के लिए चावल-दाल, चाय-चीनी, सब्जी सब महंगी। राज्य में रोज बिगड़ रही है कानून-व्यवस्था, खुद डीजीपी स्वीकारते हैं। भ्रष्टाचार चरम पर है। सरकार दावा करती है कि वह काम करना चाहती है, लेकिन काम दिखता नहीं। नियुक्ति की घोषणा की जाती है लेकिन नियुक्तियां हो नहीं पाती। सरकार खुद स्वीकारती है कि कई महकमों में मैन पावर की कमी है। राज्य के लगभग हर दल के दिग्गज यह कहते रहे हैं कि राज्य में अफसरशाही हावी है। मगर, कोई भी राजनीतिक दल इसको मुद्दा नहीं बनाती। वह तो पीछे पड़ी है सीएनटी एक्ट की, जो क्षेत्रीयता के नाम पर उनकी राजनीतिक दुकान को चमका सके।
सूत्रों का कहना है कि एक बड़े कॉरपोरेट गुप की मदद से मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के राज्य में सीएनटी एक्ट को परिभाषित करते हुए जमीन खरीद-बिक्री को लेकर पिछले कुछ दिनों तक जो नौटंकी चला है और जिसका अभी स्थाई पटाक्षेप नहीं हुआ है, वह केवल एक माह के लिये स्थगित हुआ है। माना जा रहा है कि यह एक्ट प्रदेश को निश्चित तौर पर रसातल की ओर ले जायेगा और तीन-चौथाई आबादी के बीच आपसी भय-तनाव का माहौल जारी रखेगा। बताया जाता है कि इसी क्रम में सरकारी अधिकारी ने अचानक सभी जिला मुख्यालयों में अवस्थित भूमि निबंधन कार्यालय को यह लिखित नोटिस भेज दिया कि आदिवासीयों के साथ-साथ पिछड़े वर्ग के लोगों के किसी भी प्रकार के जमीन की खरीद-बिक्री अगड़े जाति के लोग नहीं कर सकते। इसका नतीजा यह हुआ कि राजधानी रांची से लेकर रामगढ़,हजारीबाग,धनबाद,बोकारो से लेकर जमशेदपुर कोडरमा तक निबंधन कार्य रुक गये। हर जगह धरना,प्रदर्शन,आगजनी,तोड़-फोड़ व हिंसा की घटनाएं होने लगी और 72 घंटों तक ये निर्बाध जारी रहे। गौरतलब यह है कि यह सब उस दौरान हुआ जब प्रदेश में पंचायत चुनाव हो रहा था। समूचा झाररखण्ड पेसा क़ानून के तहत हो रहे चुनाव के बीच नक्सली हिंसा की दंश झेल रहा है। तभी तो मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने उत्पन्न भीषण समस्या की नजाकत को समझते हुए अपने सचिव के आदेश को एक महीने के लिये स्थगित कर दिया है और कहा कि इसके भीतर समाधान ढूंढ लिया जायेगा।
सवाल यह भी उठता है कि वर्ष 1908 यानि 102 वर्ष पूर्व बने सीएनटी एक्ट की आज आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी क्या प्रासिंगता है ,यह समझ से परे है। यदि है भी तो आज इसका मूल्यांकन नये सिरे से करना जरूरी है। अब यहाँ के पिछडों की तो दूर आदिवासियों की हालत भी 102 वर्ष पहले जैसा नहीं है। वे सब सामाजिक व शैक्षणिक दृष्टिकोण से काफी परिपक्व हो गये हैं। वे भलीभांति समझने लगे हैं कि सीएनटी एक्ट उनके सर्वांगीण विकास में बाधक हैं। मगर दुर्भाग्य कि यहाँ के लूटेरे नेता वोट की राजनीति के चक्कर में ये नहीं समझ रहे है। जानकार बताते हैं कि मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के इशारे पर ही सचिव ने जनमानस को नापने के ख्याल एक तरफ नोटिश जारी करवाये और राजनीतिक नज़रिया अपनाते हुये बाद में एक महीने का फौरी स्थगन आदेश दे दिया है।
काबिलेगौर यह भी है कि झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के ओबीसी विभाग के अध्यक्ष वीरेंद्र कुमार जायसवाल ने सीएनटी एक्ट के प्रावधानों को कड़ाई से लागू करने की मांग राज्य सरकार से की है। श्री जायसवाल का कहना है कि पिछड़े वर्ग के हितों को देखते हुए सीएनटी एक्ट में किसी तरह की छेड़-छाड़ नहीं करनी चाहिए। राज्य सरकार का दायित्व बनता है कि सीएनटी एक्ट की रक्षा करे। सीएनटी एक्ट में पिछड़ा वर्ग भी शामिल है तो दस साल पहले अलग राज्य बनने के बाद पिछली सरकारों को इसकी जानकारी जनता को देनी चाहिए थी। जनता को जानकारी नहीं देकर पिछड़े वर्ग को अंधेरे में रखा गया। राज्य सरकार के भूमि सुधार मंत्री मधुरा प्रसाद महतो ने सीएनटी एक्ट को लागू करने की मांग की है लेकिन राज्य सरकार उनकी मांगों को अनदेखी कर रही है।
गुरुवार, 6 जनवरी 2011
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