गुरुवार, 3 सितंबर 2009

देसी करेंसी विदेशी स्याही


भारतीय नोटों की छपाई के लिए कागज ब्रिटेन, नीदरलैंड, जर्मनी, इटली और फ्रांस जैसे यूपरोपीय देशों की छह कंपनियों से मंगाती है। इसके लिए कंपनियों से समझौता किया गया है कि वे किसी अन्य देश या संगठन को वह कागज नहीं बेचेंगी जिस पर भारतीय नोट छापे जा रहे हैं। हालांकि अभी तक ऐसा कोई उदाहरण नहीं दिया गया है जिससे इस कागज के दुरूपयोग की बात सामने आए।

आजाद हुए हिंदुस्तान को बेशक छह दशक से अधिक का समय हो चुका है लेकिन अभी तक भारतीय मुद्रा के लिए सरकार कागज और स्याही का निर्माण नहीं कर पा रही है। दशकों पुराने ढर्रे पर चल रही है और विदेशों से इसका आयात कर रही है। जो कंपनी हमें कागजों की आपूर्ति करती है और वह वही कागज और स्याही दूसरे देशों और अवांछित संगठनों को भी कर रही है। नतीजा, हमारी अर्थव्यवस्था को खतरा। सच तो यही है। असली जैसे दिखने वाले नकली भारतीय नोटों के बढ़ते चलन की बढ़ती समस्या से निपटने के लिए मनमोहन सरकार ने फैसला लिया है कि वह उन कंपनियों से कागज और इंक नहीं खरीदेगी, जो पाकिस्तान को भी इसकी आपूर्ति कर रहे हैं। हाल के दिनों में जिस प्रकार से खुफिया एजेंसियों को जानकारी मिली है, वह विदेशी कंपनियों की साख और भारत की चिंता को और बलवती कर रही है। जिस लेन-देन को विशेष गोपनीयता के साथ किया जाता रहा है वह अब भंग हो चुकी है। विशेषज्ञों ने भी माना है कि समान कागज और स्याही के इस्तेमाल के कारण नकली नोटों को पहचानना मुश्किल हो रहा है। यहां तक कि बैंकों को भी इन नकली नोटों को पकडऩे में दिक्कत हो रही है।

दरअसल, भारत और पाकिस्तान नोट छापने के लिए समान कंपनियों से कागज और इंक खरीद रहे हैं। समान गुणवत्ता के कागज और इंक मिलने से पाकिस्तान बड़े पैमाने पर नकली भारतीय नोट छापकर भारत भेजने में सफल हो रहा है। सरकार ने अब सिर्फ उन कंपनियों से कागज और इंक खरीदने का फैसला किया है जो पाकिस्तान को इसकी आपूर्ति नहीं करेगी। इसके लिए एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल जल्द ही यूरोप जाएगा। गौरतलब है कि भारत को नोट की छपाई के लिए विशेष इंक की आपूर्ति स्विटजरलैंड की एक कंपनी करती है और कागज की सप्लाई छह यूरोपीय कंपनियां करती है। उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार यह प्रतिनिधिमंडल यूरोपीय संघ के अधिकारियों को इस समस्या की जानकारी देगा और इससे निपटने के लिए भारत द्वारा उठाए जा रहे कदमों पर बातचीत करेगा। साथ ही प्रतिनिधिमंडल उन देशों की सरकार से भी बातचीत करेगा जहां ये कंपनियां स्थित हैं। प्रतिनिधिमंडल को नोट बनाने वाले उच्च गुणवत्ता के कागज और इंक सप्लाई करने वाली उन नई कंपनियों से बातचीत करने को भी कहा गया है, जो सिर्फ भारत को ऐसे कागज और इंक की सप्लाई कर सके। सुरक्षा एजेंसियों ने सीधी चेतावनी दे दी कि जब तक पाकिस्तान से इन नकली नोटों की सप्लाई नहीं रोकी जाती तब तक इस समस्या से प्रभावी तरीके से निपटा नहीं जा सकता है। सुरक्षा एजेंसियों का कहना था कि इस समस्या से निपटने की लंबी रणनीति के तहत भारत को खुद ही इतनी गुणवत्ता के कागज और इंक बनाने की तकनीक विकसित करने का प्रयास शुरू करना चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह की कोई समस्या नहीं आए।

जहां एक ओर श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश नकली भारतीय मुद्रा के मामले की जांच में सहयोग कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इसके तार लंदन से जुड़े होने का पता चला है। जांच में इस बात का खुलासा हुआ है कि पाकिस्तान की खुफिया एजंसी आईएसआई नकली भारतीय नोटों को बनाने के लिए लंदन से कागज मंगा रही है। नकली नोटों के मामले में आईएसआई का जुड़ाव पहले ही सामने आ चुका है। लेकिन अब पता चला है कि पाक खुफिया एजंसी अपने देश की सरकार पर दबाव बनाकर लंदन की एक कंपनी से खास कागज मंगा रही है, जिससे भारतीय डिजाइन के नोट आसानी से बनाए जा सकते हैं। श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश के साथ हालिया जांच के नतीजों का ब्योरा देते हुए अधिकारी बताते हैं कि पाकिस्तान लंदन में मौजूद कंपनियों से काफी बड़ी संख्या में कागज मंगा रहा है जो उसके अपने नोटों के लिए जरूरी मात्रा से काफी कम है। आईएसआई इस अतिरिक्त कागज का इस्तेमाल नकली भारतीय नोट बनाने के लिए करती है। माना जा रहा है कि पाकिस्तान नकली भारतीय नोटों का जाल फैलाने के लिए अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहीम के नेटवर्क का सहारा ले रहा है। जांच एजंसियों के सूत्रों के मुताबिक, आईएसआई नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका में पाकिस्तान इंटरनैशनल एयरलाइंस के विमानों के जरिए नकली करंसी को भेज रहा है।

कहा तो यहां तक जा रहा है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने भारत की अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाने की हरचंद कोशिशेां में जुटी है। पिछले कुछ वर्षो में नकली नोटों के एकदम असली जैसे दिखने के बाद से ही खुफिया एजेंसियों ने इस बारे में संबंधित विभागों को सतर्क किया था। सूत्रों का मानना है कि नोट छपाई में उपयोग आने वाली विशेष स्याही और कागज आाईएसआई को उपलब्ध है। अनुमान तो यह भी है कि भारतीय बाजार में उपलब्ध मुद्रा में 10 से 15 फीसदी नकली हो सकती है। साल 2007-08 के दौरान जाली नोटों की जांच के बाद उनकी कीमत में 137 फीसदी की वृद्घि दर्ज की गई। पिछले वित्तीय वर्ष के 2।4 करोड़ रुपए के मुकाबले इस साल उनका मूल्य बढ़कर 5.5 बढ़कर रुपए हो गया। वित्त मंत्रालय संबंधी की स्थायी समिति ने इस बात पर नाराजगी जताई है कि कई दशक बाद भी नोट का कागज बनाने और छपाई से जुड़ा पूरा काम अपने देश में नहीं होता। उसने सरकार से पूछा है कि हम अब तक क्यों विदेशी कंपनियों पर निर्भर है। नोट का कागज बनाने के लिए अब तक संयुक्त उद्यम पेपर मिल क्यों नहीं बना। सुरक्षा पेपर और इंक के लिए विदेशों के भरोसे रहने से देश पर नकली मुद्रा के प्रचार का खतरा मंडरा रहा है। वित्त मंत्रालय के मुताबिक नोट छपने वाला कागज देश में नहीं बनता। सरकार इसे ब्रिटेन, नीदरलैंड, जर्मनी, इटली और फ्रांस जैसे यूपरोपीय देशों की छह कंपनियों से मंगाती है। इसके लिए कंपनियों से समझौता किया गया है कि वे किसी अन्य देश या संगठन को वह कागज नहीं बेचेंगी जिस पर भारतीय नोट छापे जा रहे हैं। समिति की रिपोर्ट में हालांकि ऐसा कोई उदाहरण नहीं दिया गया है जिससे इस कागज के दुरूपयोग की बात सामने आए।


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