सोमवार, 21 सितंबर 2009

प्रासंगिक है रामलीला का मंचन

र्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के आदर्शोंं को जन-जन तक पहुंचाने के लिए रामलीलाओं का मंचन प्राचीन समय से हमारे देश में होता आया है, जो कि आज भ्ी किया जा रहा है। लेकिन आज रामलीलाएं देखने जाने से जनता की रुचि निरंतर घट रही है। एक समय था जब दर्शकों की भीड़ से रामलीला स्थलों पर जगह की कमी हो जाया करती थी। जिसकी वजह से दर्शकों को मैदान के बाहर से ही रामलीला देखने के लिए मकानों की ऊंची छतों पर या फिर लाउडस्पीकरों से आ रही आवाज सुनकर ही संतोष करना पड़ता था। इतनी रुचि थी लोगों में। वहीं आज रामलीला कमेटियों को लीला स्थल तक लोगों की संख्या जुटाने में खासी मेहनत करनी पड़ रही है। आखिर क्या वजह है, जो सैंकड़ों वर्षों से चली आ रही रामलीलाओं के इस शिक्षाप्रद मंच से लोगों का मोह भंग सा हो रहा है?
रामायण भारतीय समाज एवं विश्व के लिए एक धार्मिक एवं संपूर्ण पे्ररणादायक ग्रंथ है, जिसमें मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के द्वारा रचित लीला का वर्णन बेहद सरल ढंग से किया गया है। रामायण से हमें अनेक प्रकार की शिक्षाएं मिलती हैं। जिसमें सर्वप्रथम राजपाठ अथवा सत्ता पाने के मोह को त्याग कर हमें अपना ध्यान देशहित में लगाना एवं अपने माता-पिता का आज्ञाकारी होना चाहिए, अर्थात जिस प्रकार श्रीराम ने अपने पिता दशरथ के द्वारा माता कैकई को दिए गए वचनों की लाज रखने के खातिर चौदह वर्षों तक वन में जाना स्वीकार किया। 'रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाई पर वचन जाएÓ। इसी प्रकार पतिव्रता नारी का धर्म निभाते हुए सीताजी ने और भाई का फर्ज निभाते हुए लक्ष्मणजी ने अपने बड़े भ्राता श्री रामचंद्र जी के संग चौदह वर्षोंं तक साथ रहने के वास्ते वन के लिए प्रस्थान किया। इसके अलावा हमें रामायण से और भी अनेक शिक्षाएं मिलती हैं। एक आदर्श भाई का फर्ज निभाते हुए भरतजी ने स्वयं को मिले राजपाट को किस प्रकार ठुकरा दिया। इसके अलावा हमें जातिवाद का भेदभाव नहीं रखना चाहिए। छोटे-बड़े निर्धन-धनी सबसे हमें प्रेम करना चाहिए, जिस प्रकार श्रीराम ने भीलों को अपनाया तथा सबरी के जूठे बैर खाए। इसके अलावा अहंकार हमें कभी भी नहीं करना चाहिए, क्योंकि अहंकार का अंत बुरा होता है। जिस प्रकार अहंकारी रावण ने सीताजी का हरण अपने अहंकार वश अपने परिवार सहित समस्त सेना की जान श्रीराम चंद्र जी के हाथों गंवाई, और भी अनेक शिक्षाएं और संस्कार हमें रामायण से मिलते हैं। आज हमें आवश्यकता है रामराज्य के उस युग की जिसमें सच्चाई, भलाई, भक्ति, समर्पण, सम्मान, त्याग एवं भावना की ताकि हमारे देश में रामराज्य के समान युग पुन: आ जाए। इन्हीं उपदेशों को ध्यान में रखते हुए जन-जन तक राम के आदर्शों को पहुंचाने के लिए रामलीलाओं की शुरुआत प्राचीनकाल से हमारे देश में आरंभ हुई। जो आज भी शहरों, कस्बों एवं गांवों में परंपरागत ढंग से चल रही है।
लेकिन पहले की भांति आज होने वाली रामलीलाओं के प्रस्तुतीकरण में अनेक प्रकार के बदलाव हो रहे हैं। पुराने समय बिजली के नहीं होने के कारण लालटेन, और गैसबत्ती की रोशनी में रामलीला हुआ करती थी। रामलीला कमेटियां अपने में से ही कलाकारों का चयन करके रामलीलाएं प्रारंभ होने के महीनों पहले से उन्हें प्रशिक्षण देना आरंभ कर देती थीं। जिसके फलस्वरूप मंच पर प्रस्तुति के दौरान प्रशिक्षित कलाकारों द्वारा उम्दा अदाकारी के साथ लीला में गीत और संवाद बोले जाते थे। छोटी-छोटी रामलीलाएं भी हर गली-कूचों में हुआ करती थीं। साथ ही बड़ी रामलीलाएं भी कई स्थानों पर हुआ करती थी एवं रामलीला के स्थलों पर भी शांत वातावरण होता था। जिसे देखने के लिए लोग वर्ष भर इंतजार करते थे और उत्साह के साथ अपने परिवार व बच्चों के साथ जाया करते थे।
लेकिन आज रामलीलाओं की संख्या में लगातर गिरावट हो रही है। बढ़ती व्यस्तता के कारण रामलीला के मंचन का जिम्मा नाटक के नये कलाकारों को सौंपा जा रहा है। गली-मोहल्लों में होने वाली छोटी रामलीलाएं तो लगभग विलुप्त ही हो गई हैं। इसकी एक वजह बढ़ती हुई मंहगाई और लोगों का केबल टीवी और फिल्मों के प्रति बढ़ता रुझान भी है। रामानंद सागर द्वारा निर्देशित रामायण धारावाहिक ने तो रामलीला को आधुनिक दौरे में प्रवेश करा दिया, जिसमें श्रीराम एवं रावण के युद्ध में कंप्यूटर तकनीक का काफी उपयोग किया गया था और इसने दूरदर्शन प्रसारण के दौरान नये कीर्तिमान भी बनाए थे। इसके बाद तो अनेक रामलीला स्थलों पर बड़े पर्दे पर डिजिटल तकनीक द्वारा रामायण दिखाई जा रही है। लेकिन एक बड़े वर्ग का मानना है कि मंच पर दिखाई जाने वाली लीला की अपनी ही बात होती है। आज बदलते युग में बढ़ते आधुनिकीकरण और प्रतिस्पर्धा के चलते हालांकि कई बड़ी रामलीलाएं भी अब भव्य और हाईटेक हो गई हैं। दिल्ली की एक रामलीला में तो हनुमान जी को हेलिकॉप्टर की सहायता से संजीवनी बूटी पर्वत लेकर उड़ते हुए दिखाया। इसके अलावा आज रामलीला के मंच आधुनिक लाईटों की चकाचौंध रोशनी और डिजिटल साउंड सिस्टम से लैस हो गए हैं। साथ ही दर्शकों को जुटाने के लिए फिल्मी सितारों का भी सहारा लिया जा रहा है।
इसके बावजूद भी दर्शकों की संख्या में बढोतरी की बजाय गिरावट हो रही है जो कि चिंता का विषय है। रामलीला हमारी संस्कृति एवं समाज के सुधार के लिए एक उचित विकल्प है। राम के आदर्शों को हमारे बच्चे भी अपने जीवन में उतारें इसी बात को ध्यान में रखते हुए सभी सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों में रामलीलाओं के दिनों में स्कूलों की छुटिट्ïयां रखी जाती हैं। फिर भी आज हम इस पावन लीला की उपयोगिता नहीं समझ पा रहे हैं। आज अधिकतर महिलाएं टीवी पर दिखाए जा रहे सास-बहू के नाटकों में अधिक व्यस्त हैं। इसके साथ ही रामलीला कमेटियों को भी कुछ सुधारों की आवश्यकता है। रामलीला स्थलों पर लगे मेलों में अत्यधिक ऊंची आवाज में बजते लाउडस्पीकर लीला देखने व सुनने में बाधा डालते हैं। इस बात पर ध्यान देना होगा। अन्य बाहरी सजावट में किए गए अनाप-शनाप खर्चोंं के बजाय रामलीला के मंचन पर विशेष ध्यान देना होगा। साथ ही इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि रामलीला का मंच नेताओं के प्रचार का अड्ïडा न बनने पाए।
अत: आज के झूठ, फरेब, स्वार्थ और अपराध प्रवृत्ति के बदलते परिवेश में राम के आदर्शोंं को अपना कर जीवन में सुधार लाने के लिए रामलीला स्थलों पर जाकर लीला का आनंद उठाना चाहिए। इससे हमें प्रभु श्रीराम के आर्शीवाद के साथ हमारे सामाजिक ज्ञान में वृद्धि होगी बच्चों में अच्छे संस्कार आएंगे और रामलीला कमेटियों का मनोबल भी बना रहेगा।

4 टिप्‍पणियां:

Dipti ने कहा…

आपकी बात से मैं बिल्कुल सहमत हूँ।

Aman Tripathi ने कहा…

रामलीला के बदलते आयाम पर आपका लेख सराहनीय है. वैसे कुछ दस एक साल पहले रामलीला का सन्दर्भ कहीं ना कहीं किसी ना किसी रूप में लगभग सभी लेखकों ने किया है. पर शायद उसके बाद कहीं कुछ थोडा सा परिवर्तन आया है - कारण अनेक हैं. आधुनिक युग में इसे प्रासंगिक बनाने के लिए आप जैसे लेखकों का प्रयास अच्छा लगा.

sanjay swadesh ने कहा…

aapki chinta jayaj hain. par karen to kya karen aap hame sujhaye.

arvind ने कहा…

raamleela ki prasangikta per uchit lekh--badhai.