अब जिन्दगी के मायने बदल गये हंै।
अब सम्बन्धों के आइने बदल गये हंै।।
दर्पण मंे दिखती है तस्वीर जमाने की।
अब निगाहों के पैमाने बदल गये हैंे।।
अंधी मोड़ पे ठहर गई है दुनिया।
अब रौशनी कंे ठिकाने बदल गये हैं।।
न खुशी न गम न गिला-शिकवा।
अब हम भी बहुत बदल गये हैं।
सर पे रही धूप जेठ की सदा।
सावन के ’बादल’ भी बदल गये है।।
२
जिन्दगी यूँ ही खफा हो गई।
अपनी राहें भी जुदा हो गई।।
दिल पर दंश है रिशतों के।
कस्में-वादे सारी हवा हो गई।।
मिलने की खुशी न बिछुडने की गम।
जज्बातें जीवन की फना हो गई।।
कदम-कदम पर टोकती है दुनिया।
अपनी नाकाबिलयत भी गवाह हो गई।।
मासूम चेहरे हैं मेरे कातिलों के।
बदसूरती ही अपनी खता हो गई।।
हर नजर पूछती है सैकडो़ सवाल।
’बादल’ की खामोशी गुनाह हो गई।।
- बिपिन बादल
बुधवार, 29 अप्रैल 2009
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2 टिप्पणियां:
sach me jindagi ke mayne badal gaye hain bahut sunder bhavaviyakti hai badhai
sach me jindagi ke mayne badal gaye hain bahut sunder bhavaviyakti hai badhai
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