भारतीय लोकतंत्र का चुनावी महापर्व शुरू हो गया। लाखों लोगों ने प्रथम स्नान का आनंद लिया। कयास लगाए जा रहे है। बहस-मुहाबिसे होंगे; पहले भी होते रहे हैं। सो, इस दफा भी होंगे। कोई हैरत की बात नहीं है। जैसे-जैसे मीडिया सयाना होता जा रहा है, यह सिलसिला भी प्रौढ़ता की ओर बढ़ता जा रहा है। इस सबके बीच आम मतदाता यह देखकर हतप्रभ है कि इस महापर्व से अघ्र्य रूपी मुद्दे गायब हो रहे हैं। राष्ट्रीयता पर क्षेत्रीयता का लबादा इस कदर चढ चुका है कि कोई भी राजनीतिक दल बहुमत की आस में नहीं है। क्या होगा परिणाम ? हम भी जानते हैं, आप भी।ऐसे में सवाल उठता है कि यह घटाटेप क्यों ? जबाव के रूप में सामने आता है कि जब एक हजार के करीब राजनीतिक दल अपनी-अपनी दुकान सजा कर बैठे हों तो कैसे होगा पटाक्षेप। दरअसल, लोकसभा की 543 सीटों पर कब्जा जमाने के लिए एक हजार से अधिक राजनीतिक दल संसदीय चुनावों में शामिल हो रहे हैं। वर्ष 2004 में हुए लोकसभा चुनावों के बाद राजनीतिक दलों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है अगर चुनाव आयोग ने 1027 राजनीतिक दलों के नाम पंजीकृत किए हैं। सूची में अधिकतर नाम गैरमान्यता प्राप्त दलों का है। ऐसी पार्टियों की संख्या 2004 में जहां 173 थी इस बार वह बढ़कर 980 हो गई है। इसके अतिरिक्त राज्यस्तरीय पार्टियों अगर राष्ट्रीय पार्टी की संख्या में भी वृद्धि हुई है। राज्यस्तरीय पार्टियों की संख्या 36 से बढ़कर 40 हो गई है वहीं लालू प्रसाद के राष्ट्रीय जनता दल को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल गया है। चुनाव आयोग के अनुसार अब कांग्रेस अगर भाजपा के अलावा बसपा, भाकपा, माकपा, राकांपा अगर राजद राष्ट्रीय पार्टियां हैं। चुनाव आयोग के प्रावधानों के अनुसार उस पार्टी को राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता दी जाती है जिसके उम्मीदवारों को पिछले आम चुनावों में चार या अधिक राज्यों में कुल वैध मतदान का कम से कम छह प्रतिशत मत प्राप्त होता है। राष्ट्रीय दल की मान्यता के लिए अन्य प्रावधान भी हैं लेकिन राज्यस्तरीय पार्टी का दर्जा हासिल करने के लिए उसके उम्मीदवारों को संसदीय या विधानसभा चुनावों में राज्य में कुल मतदान का कम से कम छह प्रतिशत मत मिलना चाहिए। अन्य पार्टियां जो इन प्रावधानों को पूरा करने में विफल रहती हैं उन्हें पंजीकृत गैरमान्यता प्राप्त दल का दर्जा दिया जाता है। इन सब दलों के अलावा मैदान में उतरने वाले उम्मीदवारों को निर्दलीय माना जाएगा। इस राजनीतिक विद्रूपता के बीच सहसा ही स्मरण हो आता है नागार्जुन की कुछ पंक्तियां -
'स्वेत-स्याम-रतनार ’ अंखिया निहार के
सिण्डकेटी प्रभुओं की पग-धूर झार के
लौटे हैं दिल्ली से कल टिकट मार के
खिले हैं दांत ज्यों दाने अनार के
आए दिन बहार के,
बन गया निजी कम
दिलाएंगे ओर अन्न दान के, उधार के
टल गए टिकट मार के
आए दिन बहार के
सपने दिखे कार के
गगन विहार के
सीखेंगे नखरे, समुन्दर पार के
लौटे टिकट मार के
आए दिन बहार के ।
सिण्डकेटी प्रभुओं की पग-धूर झार के
लौटे हैं दिल्ली से कल टिकट मार के
खिले हैं दांत ज्यों दाने अनार के
आए दिन बहार के,
बन गया निजी कम
दिलाएंगे ओर अन्न दान के, उधार के
टल गए टिकट मार के
आए दिन बहार के
सपने दिखे कार के
गगन विहार के
सीखेंगे नखरे, समुन्दर पार के
लौटे टिकट मार के
आए दिन बहार के ।
बेशक, यह कविता बरसों पहले लिखी गई हो, मगर इसका प्रासंगिकता पर कोई सवालिया निशान नहीं लगाया जा सकता।
6 टिप्पणियां:
बहुत उम्दा है। ऐसे ही चालू रहें और कलम घिस्सुओं के बीच धाक जमाते रहें।
badhiya hai.bhavisya me vicharotejak post ki ummid ki ja sakti hai.
आपका और आपके इस ब्लॉग का स्वागत है ...
आप यूँ ही अच्छा अच्छा लिखते रहिए
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
narayan....narayan...narayan
lekh achhi hai... sath mein Nagarjuna ki chand line aur prasangik banati hai.. hindi blog ki dunia mein padarpan ke liye badhai..
aapkee pehlee post jo maine padhee hai usse itnaa to spasht hai ki bahut jald aap apnee ek dhaak jama denge, likhte rahein..
swagat hai hamare parivaar mein.
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