मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

प्रेम ही तो है

आज मैं वो करने जा रहा हूं, जो काफी पहले करना चाहिए। मन में कोई बात दबी रह जाए तो अच्छा नहीं होता। आज मैं अपनी भावनाओं को कोरे कागज पर उकेरने जा रहा हूं जिसको मैंने भोगा। महसूस कियास और जिया। जिसकी प्रेरणा भी तुम ही रही हो। तो शुरूआत कर दिया जाए न... शायद तुम सामने होती तब भी मुझे मना नहीं करती। आखिर इतना वि’वास तो तुम पर आज भी है। चाहे आज तुम किसी और की हो गई हो... क्या हुआ अगर मुझे मनचाहा मुकाम नहीं मिल पाया। इस बात की खुशी और भी ज्यादा है कि तुम्हारी मुराद पूरी हो गई।
मुझे आज भी याद है, वो पहला दिन जब तुम मेरे पास आई थी। हाथों में खनकती चूड़ियां, माथे पर बड़ी-सी बिंदी, कानों में इठलाती झुमकियां और होठों पर आया हुआ हल्का-सा तबस्सुम। मेरे आस-पास का हर कण तो उस समय इनके मिति प्रभाव से जैसे खिल ही उठा था। मैं नहीं जानता वो एक पल मेरे मानसपटल पर इतनी गहरी छाप छोड़ जाएगा। न जाने कितनी ही युवतियों और महिलाओं से रोज वास्ता पड़ता था। सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक दर्जनों से मुलाकात होती और कुछेक से हंसी-ठिठोली भी। लेकिन तुममें न जाने क्या बात थी ? आज भी नहीं समझ पा रहा हूं कि किस तरह तुमसे एक पल की मुलाकात काफिला बनकर मेरे वजूद से जुड़ गया। तुम्हारा अस्तित्व मुझसे, मेरे जीवन से, मेरे हल पल से, मेरे होने न होने से, हर एक वस्तु से जो मुझसे जुड़ी है, इस तरह से जुड़ जाएगा कि मुझे उसमें स्वयं को ढूढने में उम्र निकल जाएगी। मैं आज भी तुम्हारी एक झलक को अपनी आंखों में बसाकर पूरा दिन गुजार लेता हूं, अपनी रातों को समझाता हूं और सुबह तुम्हारे दीदार का इंतजार करता रहता हूं। यदि इस तरह भी उम्र गुजर जाए तब भी रंज नहीं होगा। तुमतो जानती हो कि इनते पर भी कभी तुम्हें स्पर्श करने को मन लालालियत न हुआ। आज भी लगता है कि तुम्हें छूं लूंगा तो सारा सपना टूट जाएगा। क्या हुआ मैं तुम्हारे सपनों में नहीं आता, आजादी केवल इतनी चाहिए कि मैं जब चाहूं तुम्हें सपने में बुला सकूं। और इस पर केवल और केवल मेरा अधिकार है।
मुझे इससे कोई वास्ता नहीं कि आज तुम मेरे बारे में क्या सोचती हो तथा दूसरे लोग क्या सोचते और बोलते हैं ? मैं यह भी नहीं जानता कि तुम मुझे कितना जान पाई हो। मैं तुमसे कुछ नहीं मांगता। प्रेम कुछ पाने का नाम नहीं है, मेरे लिए प्रेम का अर्थ है समर्पण। ओशा ने भी कहा है , ’प्रेम: एक ही मंत्र है समर्पण, समग्र समर्पण। जरा सा भी बचाया खुद को कि खोया सबकुछ। बस, खो दो खुद को। पूरा का पूरा। बिना शर्त। और फिर, पा लोग वह सबकुछ, जिसे पाए बिना जीवन एक लंबी मृत्यु के अलावा और कुछ भी नहीं है। और समझकर करने के लिए मत रूके रहने क्योंकि किए बिना समझने का कोई उपाय नहीं है।’
आज मैं तुमसे बिना कुछ मांगे अपना सबकुछ समर्पित करता हूं। वैसे भी मेरे पास स्वयं का कुछ बचा ही क्या है ? जो कुछ भी है उस पर अब केवल तुम्हारा ही अधिकार है, सो तुम्हें अर्पित कर रहा हूं। मन में कोई दुराव मत रखना। तुम को तुम्हारा ही सबकुछ दे रहा हूं। जीवन में जितने पल बचे हैं, उनमें तुम्हें महसूस करता रहूंगा, कोई हर्ज तो नहीं...
तुम ही तो कहा करती थी कि हम चाहे कितने भी माॅडर्न हो जाएं लेकिन हमारा मांजी हमेशा अपनी ओर खींचता है। शायद यही वजह है कि तमाम माॅडर्न हिट हाॅप इंस्ट्रूमेंट से सजे गानों पर हमारा जिस्म कितना ही थिरक ले, पर मन थिरकता है आज भी पुराने सिनेमाई गीतों की धुन पर। इसी के कारण हर दूसरे दिन नए रिमिक्स एलबम बाजार में आ रहे हैं, यानी पुरानी मिठाई नई चाशनी के तड़के के संग। तुम्हारा यही अंदाज संभवतः मुझे भा गया और मैं आजतक तुम्हारे इंतजार में हूं। उसी जगह आज भी तुमको ताक रहा हूं, जहां हम दोनों पहली बार एकनजर हुए थे। अधिकतर लोगों का मानना है कि फनकार को किसी खास मौजूं की जरूरत नहीं होती, वह अपने आसपास की चीजों से ही तरगीब हासिल कर लेता है। हम दोनों जिस फन में थे, उसकी नियति भी तो यही थी। तभी तो खूब से खूबतर की तलाश में हम सरगर्दा रहते थे। नहीं तो क्या जरूरत है लोगों को महानगर की सड़कों की धूल और गलियों की खाक छानने की ?

क्रमश:

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