चुनावों में नेताओं की जुबां कैसे फिसलती है, इसे जनता ने बार-बार देखा है। एआर अंतुले, सोनिया गांधी सरीखे लोग भले ही कुछ पुराने पड़ गए हों पर वरूण गांधी, लालू प्रसाद, सु”ामा स्वराज अािद के मामले अभी मौजूं हैं। इन नेताओं को बोलते वक्त शब्दों के अर्थ का ज्ञान नहीं होता है और न ही शब्द की व्यापकता का। तभी तो उनके वाणी पर वाणों की बौछार होती है। हो-हल्ला मचाया जाता है। मामला पुलिस और चुनाव आयोग से होते हुए अदालत तक पहुंच जाता है। मगर अफसोस कि जब इन नेताओं के पास जनता की समस्याओं पर बोलने का मौका-ओ-दस्तूर होता है, तब ये फिसड्डी साबित हेाते हैं। 14वीं लोकसभा का इतिहास तो यही बताता है, जिसमें पंाच सालों में 56 नेताओं ने जुबान तक खोलने की जहमत नहीं उठाई।
दरअसल, चुनावी बिसात पर वोटरों को बिछाने की गरज से सियासी दल हर तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। कहीं जाति-बिरादरी के फतवे जारी हो रहे हैं तो कहीं हिंदुत्व की आत्मा जगाई जा रही है। कहीं अल्पसंख्यकों के उत्थान का दर्द साल रहा है। और तो और महिला आरक्षण पर दशकों से बात हो रही है, पर संसद में उसे पास नहीं किया जा रहा है। भला हो भी तो कैसे ? जब पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा, तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्षा ममता बनर्जी, रालोद के नेता अजित सिंह, जम्मू-क’मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुला, पूर्व भाजपा नेता कल्याण सिंह, कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर, अभिनेता-राजनीतिज्ञ धर्मेंद्र, गोविंदा सहित 56 सांसदों ने अपने पांच साल के कार्यकाल में एक प्र’न भी नहीं किया हो। जबकि लोकसभा के आंकड़े बताते हैं कि पांच सालों में विभिन्न मंत्रालयों से संबंधित 60255 प्र’न पूछे गए। हैरत तो तब होती है, जब लोकसभा सचिवालयों के कागजों में दर्ज है कि पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी और कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी सदन की कुल कार्यवाही में दस फीसदी ही उपस्थित रहे हों। इतना ही नहीं, 67 सांसद ऐसे रहे जिन्होंने पांच साल में दस से कम प्र’न पूछे। इसका अर्थ यह नहीं कि बचे हुए सांसद भी इनके मार्ग का अनुसरण करें। इसके ठीक उलट ’िावसेना सांसद आनंदराव बिठोवा अडसूल ने पांच साल में 1255 सवाल किए जो कि 14वंीं लोकसभा में किसी भी सदस्य के पूछे सवालों में सर्वाधिक है। 1251 सवालों के साथस दूसरे स्थान पर शिावसेना के अधरराव पाटिल हैं।
ऐसा भी नहीं है कि सांसद अपनी अशिाक्षा अथवा जानकारी के अभाव के कारण सदन में मुंह खोलने से हिचकिचाते हों। लोकसभा का रिकार्ड बताता है कि 543 में से 428 सांसद या तो स्नातक हैं या इससे अधिक शिाक्षित हैं। 157 संासद स्नातकोतर हैं जबकि 22 के पास डाॅक्टरेट की उपाधि है। लोकसभा सचिवालय के आंकड़े बताते हैं कि पहली लोकसभा में 192 संासद मैट्रिक से भी कम ’िाक्षित थे, जबकि 14वीं लोकसभा में ऐसे सांसदों की संख्या घटकर 19 ही रह गई। पहली लोकसभा में 85 सांसद स्नातकोतर थे जबकि अब ऐसे सांसदों की संख्या बढाते हैं। इनमें राहुल गांधी, जतिन प्रसाद, नवीन जिंदल, ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट शामिल हैं।
इसे विडंबना ही कह सकते हैं कि इतने शिाक्षित होने के बाद भी जनप्रतिनिधि संसद में मुंह तक नहीं खोलते हैं, जबकि चुनावों में बेसिर-पैर की बातें करके सांप्रदायिक सौहार्द्र और सामाजिक व्यवस्थताओं को चोट करने पर आमादा रहते हैं।
शनिवार, 18 अप्रैल 2009
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3 टिप्पणियां:
वोट मिले कैसे इन्हें इसका रखते ध्यान।
सच्चा नेता है वही बदले रोज बयान।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
जनता ही मूर्ख हैं जो सच्चे झूठे में फर्क नहीं कर पाती ... अब इसका फायदा भला कौन नहीं उठाना चाहेगा ?
प्रिय बन्धु
खुशामदीद
स्वागतम
हमारी बिरादरी में शामिल होने पर बधाई
मेरी सबसे बड़ी चिंता ये है कि आज हमारे समाज का शैक्षिक पतन उरूज पर है पढना तो जैसे लोग भूल चुके हैं और जब तक आप पढेंगे नहीं, आप अच्छा लिख भी नहीं पाएंगे अतः सिर्फ एक निवेदन --अगर आप एक घंटा ब्लॉग पर लिखाई करिए तो दो घंटे ब्लागों कि पढाई भी करिए .शुभकामनाये
जय हिंद
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