झारखंड राज्य की जनता ने अपनी परंपरा को बरकरार रखते हुए एक बार फिर किसी भी राजनीतिक दल में अपना विश्वास नहीं दिखाया है। विधानसभा चुनाव के परिणाम अप्रत्याशित नहीं आए। पिछले कुछ वर्षों से प्रदेश का जो चाल-चरित्र बन गया है, उसके अनुरूप ही जनादेश आया। किसी प्रकार की कोई बदलाव की बयार नहीं। जबकि, इसके उलट बात होने लगी थी प्रदेश के पुनरूद्घार की। प्रदेश के बाहर के लोगों की अपेक्षा थी कि जो राज्य, जो फ़ेल्ड स्टेट या कोलैपस्ड स्टेट (विफ़ल-ध्वस्त राज्य) का विशेषण अर्जित कर चुका है, किसी चमत्कारी सरकार की प्रतीक्षा में है। सच तो यही है न कि चुनाव में काफ़ी श्रम हुआ, पीड़ा भी। पांच फ़ेज में चुनाव संपन्न हुए।
लेकिन नतीजा। वही गठबंधन, वही बंदरवाट। सवाल मौजू था कि दो माह के प्रसव पीड़ा के बाद एक असरदार सरकार अस्तित्व में आएगी? लेकिन नहीं आया। भाजपा-कांग्रेस बेशक संख्या में आगे रहे हों लेकिन जादुई चाबी गुरूजी के पास रही। उस पर गुरूजी का बयान, ''मुझे सीएम बनाओ, तो मैं समर्थन दूँगा।ÓÓ
ध्यान से देखें। बयान को। अमूमन परिपाटी यह रही है कि मुख्यमंत्री बनने वाला व्यक्ति अपने लिए और दलों से समर्थन माँगता है। लेकिन नहीं, अपने दसोम गुरू की बात ही निराली है। जुझारू हैं। प्रदेश के गठन में उनकी भूमिका को इतिहास हमेशा याद रहेगा। लेकिन लोकतांत्रिक प्रणाली में जिस प्रकार से पिछले शासनकाल में उन्होंने सत्तारोहण किया और अपने लिए एक अदद सीट भी नहीं जीत पाए, वह भी भुलाया नहीं जा सकता।
अब, एक बार फिर, मुख्यमंत्री पद की लालसा? कहाँ जाएगा प्रदेश? कौन करेगा विकास? आंदोलन करनी एक बात है और सरकार चलाना दूसरी। कौन देगा जबाव। माजशास्त्र का एक बुनियादी सिद्धांत है, अगर सोसाइटी फ्रैक्चर्ड (समाज बंटा) है, तो उसके बीच के परिणाम या जनमत भी फ्रैक्चर्ड ही निकलेंगे.
4 टिप्पणियां:
achhi aur twarit tipani hai
achha hai
Shabdsah sahmat hun....
Sach yahi hai ki aaj jhaarkhand ki aam janta ka raajnetaon par se vishwaas pooree tarah uth gaya hai...
Aaj yadi yahan nakaratmak mat ki suvidha hotee to janta bata deti ki wah yahan ke tathakathit rajnetaon ke baare me kya sochti hai...
सही कहना है आपका .. सचमुच इस चुनाव परिणाम से बहुत निराशा हुई है !!
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