देश के अंदर ही जब सुरक्षा बलों को आने-जाने में सोचना पड़ा, तो स्थिति की भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है। आजकल, ऐसे ही हालातों से गुजर रहा है छत्तीसगढ़। नक्सलियों को खोजने के लिए ऐसा लग रहा है कि सारी रणनीतियां फिर से बनानी होंगी। देश आजाद होने के बाद अभी तक इन क्षेत्रों में रेवेन्यू सर्वे नहीं हुआ इसके पीछे कारण यह है कि सर्वे करने वालों के लिए यह जंगल ब्लैक होल जैसी बन गई थी।
एक ओर प्रदेश के मुख्यमंत्री पूरे जोर-शोर से छत्तीसगढ़ से नक्सलवाद के सफाए की बात दोहराते हैं तो दूसरी ओर नक्सली अपने प्रभाव क्षेत्र में उन्हें मुंह चिढ़ाते नजर आते हैं। आम आदमी की बात कौन करें, सुरक्षा बलों को भी नक्सल प्रभावित इलाकों में जाने से पहले कई बार सोचना पड़ता है। जैसे उन्हें विदेशी धरती पर जाना हो।
सच तो यही है कि छत्तीसगढ़ में तैनात सुरक्षाबलों के लिए मौजूदा समय में 4000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला नक्सलियों का अभेद्य गढ़ जंगल अब अबूझ पहली बन गया है। नक्सलियों का सामना कर रहे अलग-अलग सुरक्षाबलों जैसे सीआरपीएफ, कोब्रा, बीएसएफ, आईटीबीपी के पास नक्लियों के इस गढ़ राज्य सरकार द्वारा दिया गया कोई अधिकृत नक्शा मौजूद नहीं है। सुरक्षाबलों के सूत्रों के अनुसार, नक्सलियों को खोजने के लिए ऐसा लग रहा है कि सारी रणनीतियां फिर से बनानी होंगी। देश आजाद होने के बाद अभी तक इन क्षेत्रों में रेवेन्यू सर्वे नहीं हुआ इसके पीछे कारण यह है कि सर्वे करने वालों के लिए यह जंगल ब्लैक होल जैसी बन गई थी। बस्तर के पास आने वाली इंद्रावती नदी की खाड़ी में बने नक्सिलयों के गढ़ तक पहुंचने का साहस कोई पुलिस कर्मचारी आज तक नहीं कर सका है। इस क्षेत्र को यहां के लोग और पुलिस पाकिस्तान जैसे देखते हैं। यहां पर प्रवेश के लिए नक्सिलयों के पास से वीजा लेना जरूरी है। एक पुलिस अधिकारी के अनुसार इन जंगलों में प्रवेश के लिए किसी की हिम्मत नहीं पड़ती। साग, शीशम के वृक्षों के साथ-साथ यहां महुआ के काफी सारे पेड़ हैं। महुआ से यहां देशी दारू बनाई जाती है।
दूसरी ओर, अपने दूसरे शासनकाल में एक वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में मुख्यमंत्री रमन सिंह कहते हैं कि छत्तीसगढ़ से नक्सलवाद का सफाया होकर रहेगा। छत् तीसगढ़ की धरती में नक्सलवाद और आतंकवाद के लिए कोई स्थान नहीं है। छथीसगढ़ राज्य का निर्माण जनता के त्याग एवं बलिदानों का परिणाम है। राज्य को विकास के पथ पर आगे बढ़ाने के लिए सभी को एक साथ मिलकर प्रयास करना होगा। छत्तीसगढ़ का विकास राज्य के सभी नागरिकों को साथ मिलकर एकता, सहयोग के साथ करना होगा। अपनी बात को दोहराते हुए कहते हैं कि मुझे विश्वास है कि छत्तीसगढ़ की संपदा और युवा, राज्य को विकसित राज्य बनाने में अहम भूमिका निभाऐंगे तथा राज्य में नक्सलवाद, हिंसा और आतंकवाद का स्थान नहीं रहेगा।
इसके उलट कहा यह जा रहा है कि नेपाल, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडि़सा, आंध्रप्रदेश, महाराष्टï्र और मध्यप्रदेश से होकर छत्तीसगढ़ तक एक गलियारा बन गया है जिससे नक्सली तत्व आ जा रहे होंगे। नक्सलवाद का रिश्ता सघन वनों से होता है। यह अलग बात है कि जंगलों में आदिवासी संस्कृति विकसित हुई है। इसलिए नक्सलवाद का आदिवासी जीवन से रिश्ता ढूंढ़ लिया जाता है। भारत में अकूत वन संपदा आज भी है। यह उसका अर्थशास्त्र है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यह उसका राजनीतिशास्त्र है। जब किसी को दीवार तक धकेल दिया जाएगा तब हमला करके ही बचाव किया जा सकता है-साम्यवाद का यह मानक पाठ बस्तर के आदिवासियों को भी पढ़ाया गया।
छत्तीसगढ़ सघन नक्सली हिंसा का प्रदेश हो गया है। अनुमानत: केवल बस्तर संभाग में एक लाख से अधिक नक्सली हो गए हैं। सरगुजा क्षेत्र में भी नक्सली घुसपैठ की स्थितियां जस की तस हैं, यद्यपि वहां स्थिति अपेक्षाकृत नियंत्रण में है। नक्सल समस्या का लगभग तीन दशकों का चिन्तनीय इतिहास हो गया है। प्रशासनिक उपेक्षाओं और पूंजीपतियों, ठेकेदारों और उद्योगपतियों (जिनमें सार्वजनिक क्षेत्र भी शामिल है) के द्वारा किए गए उत्तरोत्तर प्रकृति और परिमाण के शोषण ने छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचलों में प्रतिक्रिया के रूप में नक्सलवाद को सक्रिय होने का अवसर जुटाया है।
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