सोमवार, 5 दिसंबर 2011

अपने-अपने थप्पड़

दरबार में सन्नाटा पसरा हुआ। हर कोई एक-दूसरे का मुंह निहार रहा है। बोलने की हिम्मत नहीं हो रही। आखिर क्या और कैसे बोला जाए? हर कोई महारानी के आने की प्रतीक्षा में...
तभी दरबारियों की जैसे तंद्रा टूटती है। पिछले दरवाजे से महारानी आकर कुर्सी पर बैठ जाती है और उनके पीछे-पीछे दबे पांव चलकर आ रहे प्रधानमंत्री जी भी मौन मुद्रा में हैं। प्रधानमंत्री जी हर ओर निगाहें डालते हैं और चश्मे के ऊपर से मराठी क्षत्रप को तलाशते हैं। कहीं नजर नहीं आते। तब एक संतरी से बुलावा भेजा जाता है।
कुछ ही देर में मुंह लटकाए, मुरझाए से, लाल गाल के संग शेर-ए-मराठा दाखिल होते हैं। हर कोई उनकी गाल को तिरछी नजरों से देख रहा है। उसमें कुछ संवेदना के संग तो कुछ शरारत भरी नजरों से। पर दिक्कत यह कि जब सामे महारानी हों तो शोक भी नहीं प्रगट कर सकते, उनकी तौहीन हो जाएगी। शोक भी प्रगट करने का अधिकार तो पहले मल्लिका-ए-दरबार का ही होता है न... वहीं कुछेक दरबारी के चेहरे पर कुटिल मुस्कान भी तैर रही थी। हालांकि वह अपनी ओर से छिपाने का भरसक कोशिश कर रहा था।
महारानी की मंशा जानकर वजीर-ए-आजम ने मराठा छत्रप से मुखातिब होते हुए पहले उन्हें एक अदना-सा आदमी द्वारा तमाचा रसीदे जाने पर दुख और संवेदना प्रकट किया। लगे हाथ यह भी पूछा कि कहें तो आपकी सुरक्षा की खातिर एसपीजी की टुकड़ी लगा दूं? एसपीजी के सामने किसी की क्या मजाल जो मेरे- आप तक बिना पूछे घुस जाए? आप कहें तो सही? दरबार आपकी सुरक्षा और सम्मान का पूरा ख्याल रखेगी। उसी के लिए तो आज महारानी भी हमलोगों के सामने है।
मराठा छत्रप ने कहा, आपने जो सम्मान दिया है और जो भावनाएं व्यक्त की है, उसके लिए हम शुक्रगुजार हैं। महरानी का तो हम पर कई ऋण पहले से ही है। जो होना था हो गया। अब कर ही क्या सकते हैं।
तभी दरबारियों में फुसफुसाहट सुनाई पड़ी। कुछ आपस में बतिया रहे थे। बचपन में थप्पड़ किसी को सुधारने के लिए और बड़े होकर किसी को थप्पड़ लगाना विरोध का प्रतीक है। कम से कम मराठा क्षत्रप के मामले में तो यही लगता है। बड़े शेर बनते थे। महारानी को भी कई बार नीचा दिखाने का प्रपंच रचा था। जो काम महारानी ने दिया था, उस पर ध्यान देते नहीं और विदेश दौरे-क्रिकेट पर ज्यादा जोर था। एक अदना सा इंसान ने ऐसा झन्नाटेदार थप्पड़ लगाया कि किसी को मुंह दिखाने का साहस नहीं जुटा रहे थे। बनते थे शेर, चूहा बनकर दुबक गए अपनी बेटी के घर। वह तो प्रधानमंत्री ही थे जो फोन करके ढांढस बंधाया। और कोई होता तो पूछता भी नहीं...
तभी दूसरे दरबारी ने कहा यह तो विरोधियों की साजिश है। विरोधी भगवाइयों ने ही बयानबाजी कर-करके लोगों को उकसा दिया है। उकसाने में तो उन्हें महारत हासिल है। राजकाज कुछ दिन क्या चला लिया, समझते हैं कि राजकाज के हर दांव-पेंच उन्हें पता है।
उत्तरप्रदेश से ताल्लुक रखने वाले एक दरबारी ने महारानी और प्रधानमंत्री की ओर मुंह करके बोलना श्ुारू किया। उसने कहा, महारानी यह विरोधियों की साजिश का परिणाम है। महंगाई तो आज बढ़ी नहीं है। यह हमारी सरकार की विफलता भी नहीं है। यह तो वैश्विक समस्या है। लेकिन भगवाई बार-बार हमारी भोली-भाली जनता को उकसा रहे हैं। दो दिन पहले ही तो एक भगवाई ने
कहा था कि अगर सरकार का यही रवैया रहा तो हम तो नाउम्मीद होंगे ही, देश की जनता भी पूरी तरह नाउम्मीद हो जाएगी। सरकार महंगाई पर कुछ नहीं करेगी। यदि ऐसा होता है तो लोगों का गुस्सा कहीं न कहीं फूटेगा। बड़ी चिंता आम आदमी की स्थिति को लेकर है जो इसे अब ज्यादा बर्दाश्त नहीं करेगा। और हमें कोई आश्चर्य नहीं होगा यदि महंगाई इस देश में हिंसा का कारण बन जाए। अब प्रधानमंत्री जी ही तय करें क्या कोई इस प्रकार की बात सरेआम कहता है क्या?
तभी दूसरे दरबारी ने कहा, महारानी इतना ही नहीं, कुछ लोग तो इसे युवराज वाली घटना से भी जोड़ रहे हैं।
युवराज वाली घटना? हर दरबारी का दिमाग सन्न रह गया। इसमें युवराज कहां से आ गए? युवराज को लेकर यदि कहीं तीन-पांच हो भी गया तो महारानी के सामने क्यों कहा जाए। मगर तभी महारानी ने कहा, बोलो दरबारी क्या चर्चा हो रही है अवाम में...
जी महारानी, यदि आप बुरा न मानें तो कहूं?
बोलो...
जी...कुछ ही दिन हुए हैं जब युवराज देश के सबसे बड़े प्रदेश के दौरे पर थे। रैली होनी थी। आपकी दुआ से सब व्यवस्था चाक-चौक चौबंद थी। मगर... विरोधियों ने युवराज के दौरे में खलल डालने की कोशिश की। सो, हमारे ही दो वरिष्ठ दरबारियों ने जिन्हें आपने ने कुछ महकमों का दायित्व भी दिया हुआ है, एक आम आदमी पर लात-घूंसा बरसाने लगा।
अचानक प्रधानमंत्री बीच में कूद पड़े। हाथ जोड़कर बड़े विनम्र भाव से बोले, महारानी इस घटना की पूरी तस्दीक मैंने कराई। युवराज की कोई गलती नहीं थी। दोनों दरबारियों को कारण-बताओ नोटिस भी जारी किया हुआ है। बस, कुछ ही देर में उसका जबाव भी आता होगा।
लेकिन, महारानी को लगा जैसे किसी दरबारी की घटना में युवराज का नाम घसीटकर उनके गाल पर भी थप्पड़ लगाया गया है। महारानी मन ही मन सोचने लगी। चूंकि थप्पड़ एक आदमी की तरफ से आया है और इसकी लाइव टेलिकास्ट तमाम संचार माध्यमों पर अगले ही पल हो गई, लिहाजा अदना-सा इंसान से दरबारियों की बयानबाजी हो रही है। वह सोच रही थी यह मराठा छत्रप पर नहीं बल्कि आम आदमी की ओर से 'उनकी पावरÓ पर लगाया गया है। महरानी को गुन-धुन की मुद्रा में देखकर प्रधानमंत्री ने फौरन दरबार की कार्रवाई को अगले आदेश तक के लिए बर्खाश्त कर दिया। पर हर दरबारी यही सोचने लगा कि कहीं युवराज का नाम ले-कर उन्होंने महारानी को ही तो थप्पड़ नहीं लगा दिया।

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