मंगलवार, 26 जुलाई 2011

भाजपा-कांग्रेस के लिए मुश्किल हैं येदयुरप्पा

पिछले काफी दिनों से कर्णाटक और विशेषकर येदयुरप्पा सरकार चर्चा का विषय बना हुआ है। ऐसा नहीं है कि इस प्रदेश में इस सरकार ने कोई मील का पत्थर स्थापित किया है, बल्कि अवैध खनन और तत्संबंधी भ्रष्टïाचार के कारण यह सरकार केंद्र सरकार और कांग्रेस के निशाने पर है। कहा जा रहा है क केवल 14 महीनों (अप्रैल 2009 से मई 2010) तक अवैध खनन के जरिए 1827 करोड़ रुपये का घपला हुआ है। जबकि भारतीय जनता पार्टी कर्नाटक की राजनीति में इस तरह फंस गई है कि भ्रष्टाचार के मसले पर वह कांग्रेस के खिलाफ उसकी आलोचना की धार कमजोर दिखाई पड़ती है। देश की वह सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है। जाहिर है सरकार की कमियों को उजागर करने और उसे जनता के सामने जिम्मेदार पार्टी के रूप में पेश आने के लिए विवश करने की मुख्य जिम्मेदारी भी उसी पर है। वह कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा भी संभाले हुए है, लेकिन कनार्टक में उसके अपने ही मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के बड़े मामलों का सामना कर रहे हैं और उनसे जुड़े सवालों का उसके पास कोई जवाब नहीं है।
इस प्रकरण में जब कर्णाटक के मुख्यमंत्री बी.एस. येदयुरप्पा पर निशाना साधा जा रहा है तो साथ में रेड्डी बंधुओं का भी जिक्र आता है। नेपथ्य में लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज और भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी को भी कांग्रेसी निशाना बना रहे हैं तो भाजपा की ओर से पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने मोर्चा संभाला। मामला कुछ दिनों के लिए शांत जरूर दिखा, मगर हुआ नहीं। हालिया घटनाक्रम में अवैध खनन पर कर्नाटक के लोकायुक्त एन. संतोष हेगड़े की लीक हुई रिपोर्ट से एक बार फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बी. एस. येदयुरप्पा की मुश्किलें बढ़ गई हैं। लोकायुक्त ने रिपोर्ट में येदयुरप्पा और रेड्डी बंधुओं समते 4 मंत्रियों के खिलाफ जांच की सिफारिश की है। लोकायुक्त हेंगड़े ने भी स्वीकर किया है कि मेरा फोन टैप किया गया है। इस खुलासे के बाद कांग्रेस ने मुख्यमंत्री येदयुरप्पा से इस्तीफा मांगा है। भाजपा ने इस इस मुद्दे पर कुछ कहने से बचते हुए कहा कि औपचारिक रूप से इसके पेश होने के बाद वह अपनी प्रतिक्रिया देगी। यूपीए सरकार भ्रष्टाचार के मुद्दों से जनता का ध्यान बांटने के लिए इसे बेवजह तूल दे रही है। मगर भाजपा सच यह भी है कि भाजपा इस मुद्दे पर अपने गिरेबां में नहीं झांक रही। बहुत अधिक दिन नहीं हुए हैं जब महाराष्टï्र के आदर्श हाउसिंग सोसायटी घोटाला में नाम आने मात्र से मुख्यमंत्री अशोक चाह्वïाण के खिलाफ भाजपाइयों ने महाराष्टï्र से लेकर नई दिल्ली तक जमकर बावेला काटा था। जांच कमेटी बनने से पूर्व ही अशोक चाह्वïाण ने अपना इस्तीफा सौंप दिया था और भाजपा शांत हुई थी। मगर कर्णाटक प्रकरण में वह नैतिकता को मानो ताक पर रखकर जांच होने की बात कह रही है। यह केवल इसलिए कि कर्णाटक में उसकी अपनी सरकार है?
बहुत जल्द सार्वजनिक होने वाली इस रिपोर्ट में पूर्व मुख्यमंत्री और जेडी (एस) नेता एच. डी. कुमार स्वामी और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद अनिल लाड की भूमिका की भी जांच करने की पैरवी की गई है। जिन 4 मंत्रियों के इस रिपोर्ट में नाम हैं, वे हैं जी. जनार्दन रेड्डी, जी. करुणाकर रेड्डी, बी. श्रीरामुलू (तीनों बेल्लारी जिले का प्रतिनिधित्व करते हैं) और वी. सोमन्ना। पर्यटन मंत्री जी. जनार्दन रेड्डी के बारे में कहा जा रहा है कि उन्होंने बेल्लारी जिले को निजी जागीर के रूप में बदल दिया और अवैध खनन के जरिए 40-45 फीसदी तक लाभ कमाया। लोकायुक्त के रिपोर्ट में कहा गया है कि ऊपर से नीचे तक सारे अधिकारी रेड्डी के हाथों बिके हुए हैं। जो रेड्डी के हाथों बिकते नहीं है उनमें मुख्यरूप से व्यावसायिक प्रतिद्वंद्वी हैं। उन्हें भी अपनी जमीन और लाइसेंस रेड्डी को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद निश्चित रूप से येदयुरप्पा पर लगे कम से कम दो आरोपों की आगे की जांच करने की जरूरत है। येदयुरप्पा के बेटे और उनके दामाद की कंपनी की जमीन एक खनन कंपनी को मार्केट की कीमत से 20 गुना ज्यादा कीमत पर बेची गई और उस कंपनी ने 10 करोड़ रुपये मुख्यमंत्री के पारवारिक ट्रस्ट में जमा कराया। येदयुरप्पा पर दूसरा आरोप है कि रेड्डी बंधुओं पर आरोप लगने और उसके सबूत होने के बावजूद उन्होंने उनका साथ दिया। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के खिलाफ कहा गया है कि उन्होंने दो खनन कंपनियों को नियमों को ताक पर रखकर लाइसेंस दिया।
इस सबके बीच सवाल यह भी मन में कौंधता है कि आखिर भ्रष्टïाचार के आकंठ में डूबी कांग्रेस कर्णाटक पर इसकदर क्यों विशेष निगरानी करती दिख रही है? जबाव मिलता है कि असल में आज़ादी के बाद कांग्रेस को यह घमंड था कि कांग्रेस इस देश में अजेय है उसे कोई भी पार्टी कभी हरा नहीं सकती और कांग्रेस सदियो तक इस देश में राज करेगी। इसलिए कांग्रेस ने देश को लूटने के लिए एक संवैधानिक तरीका निकला। वो है मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोटा। इतिहास बताता है कि डॉ. श्यामा प्रशाद मुखर्जी इस कानून का बहुत विरोध किया लेकिन नेहरु ने इस पास कर दिया था। अब तक इस देश के सभी राज्यों में कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे सभी ने इस कोटे से जम कर लाभ लिया। अहमदाबाद में चिमन भाई पटेल इंस्टिट्यूट जिसकी जमीन अरबो रूपये की है इस कोटे के द्वारा चिमन भाई को मिली।जब नरहरी अमिन उप मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने हीरामणि स्कूल के लिए अरबो की जमीन इसी कोटे से ली। अब तक कांग्रेस को बहुत मजा आ रहा था। इसी प्रकार हर राज्य में एक मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष भी होता है जिसके तहत कोई भी राज्य का मुख्यमंत्री अपने मनमर्जी से रूपये किसी को भी दे सकता है। लोगों को स्मरण है कि जब उत्तरप्रदेश में मुलायम सिंह मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने सारे पत्रकारों और संपादको को 150 करोड़ रूपये बाटें थे इस पर काफी हंगामा हुआ था अदालत में भी चुनौती दी गयी। इस कानून को ‘विवेकाधीन’ नाम दिया गया है। यानी विवेक के अधीन। इस पर कोई भी सवाल नहीं उठा सकता।
पिछले कुछ समय से इस देश कि जनता 18 राज्यों में कांग्रेस को नकार चुकी है। अब कांग्रेस ने नेता जिनको सरकरी कोटे की जमीन पचाने की लत लग गयी है तो वे तड़प रहे हैं। येदयुरप्पा ने मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोटे की जमीन अपने बेटे को एलाट की ये नैतिक रूप से गलत हो सकता है लेकिन क़ानूनी रूप से नहीं। अब तक कांग्रेस सत्ता में थी तो ये कानून का खूब फायदा उठाया। आज भ्रष्टाचार के कारण कांग्रेस के 5 नेता और ए. राजा तथा कोनिमोजी जेल में है जबकि कांग्रेस की ही सत्ता है तो क्या कांग्रेस येदयुरप्पा पर मेहरबान है ? यदि येदयुरप्पा ने गलत किया है तो आज येदयुरप्पा जेल में क्यों नहीं है ? अगर अमित शाह जेल में है तो येदयुरप्पा क्यों नहीं ? बहुत कम को पता होगा कि कांग्रेस ने इस देश के खजाने से 300 करोड़ से उपर की रकम सिर्फ येदयुरप्पा के खिलाफ सुबूत खोजने में खर्च कर चुकी है। यह बात कैग कह रहा है। सवाल यह भी है कि क्यों इस देश में अटार्नी जनरल 3 महीनो तक बंैगलोर में रहे?
नैतिकता और अनुशासन की शेखी बघारने वाली भाजपा को अपने मुख्यमंत्री से यह कहना चाहिए कि वह इस्तीफा दें दे। बेशक, वह अभी विदेश दौरे पर हैं, मगर आते ही तत्क्षण उन्हें नैतिकता के नाम पर ही सही इस्तीफा दे देना चाहिए। होना तो यह बहुत पहले ही चाहिए था जब वहां के राज्यपाल हंसराज भारद्वाज ने मुख्यमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में मुकदमे की इजाजत भी दे दी थी और उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज भी हो गया था। उस समय अदालत से मुख्यमंत्री को भले ही राहत मिल गई हो, मगर इस बार फिर वही मामला गर्म हो चुका है। एक मुख्यमंत्री के रूप में अदालत में अपनी जमानत की गुजारिश करना किसी के लिए भी ठीक नहीं माना जाता है। यही कारण है कि जब उमा भारती को कर्णाटक के की एक कोर्ट में जमानत के लिए हाजिर होना पड़ा था, तो उन्होंने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के पद से पहले इस्तीफा दे दिया था। लालू यादव ने भी बिहार के मुख्यमंत्री के पद से उस समय इस्तीफा दे दिया था, जब उन्हें चारा घोटाले के एक मुकदमे में अदालत में जमानत के लिए हाजिर होना था।
भाजपा के पास अरुण जेटली जैसे नेता भी हैं, जो कानूनी दांवपेच जानते हैं और अदालत के सामने जमानत के लिए जाने के दिन को ज्यादा से ज्यादा दूर कैसे रखा जाए, इसकी कोई न कोई तरकीब निकाल ही लेेंगे। पर यदि येदयुरप्पा के खिलाफ भाजपा का मोह बना रहा, तो केन्द्र सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुद्दे पर चल रहा उसका अभियान अपनी धार खो देगा। सच कहा जाए, तो भाजपा की धार पहले से ही कमजोर हो चुकी है। चूंकि भ्रष्टाचार के मसले पर भाजपा ही नहीं, बल्कि अन्य विपक्षी पार्टियां भी अभियान चला रही है, इसलिए कांग्रेस का काम कठिन हो रहा है। यदि यह भाजपा और कांग्रेस का ही मामला होता, तो फिर केन्द्र सरकार के सामने कोई समस्या ही नहीं थी।
जाहिर है येदयुरप्पा भाजपा के गले की हड्डी बन गए हैं। पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री के पद से हटा नहीं पा रही है और उन्हें मुख्यमंत्री के पद पर बनाए रखकर केन्द्र सरकार के खिलाफ अपने अभियान के पैनापन को कम कर रही है। सवाल उठता है कि भाजपा के यदुरप्पा मोह के पीछे का राज क्या है? सच कहा जाए, तो इसे मोह कहना उचित नहीं होगा, बल्कि यह उसकी विवशता भी है। येदयुरप्पा खुद मुख्यमंत्री का पद छोडऩे के लिए तैयार नहीं हैं। पार्टी राज्य में सत्ता में उनके कारण ही आई है। उनके कारण ही उसने विधानसभा में किसी तरह बहुमत का जुगाड़ किया। जब पार्टी के विधायकों ने बगावत की और कुछ निर्दलीय विधायकों ने समर्थन वापस लिया, तो उस समय भी पार्टी की सरकार यदुरप्पा के कारण ही बची। वहां राजनीति पर धनबल का जबर्दस्त असर है। कुछ लोग तो कहते हैं कि कर्णाटक की राजनीति धनबल से जितना प्रभावित है, उतना किसी और भी राज्य की राजनीति नहीं। जाहिर है यदुरप्पा ने अपनी सरकार के गठन में धन का भी अच्छा निवेश कर रखा होगा और भ्रष्टाचार के उनके मामले धन की उगाही से ही जुड़े हुए हैं। इसलिए वे इन मामलों के बावजूद मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा नहीं देना चाहते और भाजपा उनके महत्व का देखते हुए उन्हें उनकी इच्छा के खिलाफ उनके पद से हटाना नहीं चाहती।

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