अब लगभग यह तय हो गया है कि दिल्ली नगर निगम को तीन निकायों में बांट दिया जाएगा, लेकिन जनता में पूरी स्थिति को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। हाल ही में दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने पहले कैबिनेट में इस प्रस्ताव को पास कराया और फिर केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम से मुलाकात की। इससे इतना तो तय है कि इस बंटवारे को अब कोई नहीं रोकेगा। मगर बंटवारें के बाद की स्थिति कैसी होगी, इसको लेकर लोगों के मन में तरह-तरह के सवाल घुमड़ रहे हैं। मसलन, वार्डों की स्थिति कैसी होगी? मेयर कितने होंगे? मुख्यालय एक ही होगा या अलग-अलग? अभी दिल्ली नगर निगम का वार्षिक घाटा करीब 1700 करोड़ के करीब है, तो प्रस्तावित बंटवारें के बाद इसमें इजाफा होगा क्या? ऐस ही कई सवाल हैं।
हालांकि, मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कैबिनेट की बैठक में दिल्ली नगर निगम को तीन निकायों में बांटने का फैसला करने के बाद इतना कह दिया कि वार्डो की संख्या यथावत 272 ही रहेगी। मुख्यमंत्री का कहना है कि नगर निगम का कुशल संचालन सुनिश्चित करने के लिए यह फैसला लिया है। निगम को बांटने के निर्णय से पहले हमने पार्टी के कई शीर्ष नेताओं से इस मसले पर राय ली है। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से शीला दीक्षित की हुई मुलाकात के बाद दिल्ली सरकार ने यह फैसला किया।
बताया जाता है कि दिल्ली नगर निगम को उत्तर, दक्षिण और पूर्वी हिस्से में बांटने का प्रस्ताव तैयार किया गया है। पश्चिमी दिल्ली में रहने वाले लोग दक्षिणी जोन में आएंगे। उत्तर, पूर्वी और दक्षिणी दिल्ली के अलग-अलग नगर प्राधिकरण होंगे। सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि इससे नगर निकाय अधिक कारगर तरीके से अपनी सेवाएं मुहैया करा पाएंगे। नगर निगम के नए ढांचे के तहत महिलाओं के लिए 50 फीसद सीट सुरक्षित रखने का फैसला लिया है। दिल्ली में महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में सरकार इसे ऐतिहासिक कदम मान रही है। गौरतलब है कि शीला दीक्षित पिछले चार महीनों से निगम को बांटने की मुहिम में जुटी हुई थीं। कैबिनेट के इस फैसले से सरकार को विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों के साथ ही कांग्रेस के ही नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
दिल्ली नगर निगम को तीन निकायों में बांटने के दिल्ली सरकार के फैसले को शहर की महापौर रजनी अब्बी ने राजनीतिक चाल बताया और प्रस्ताव का विरोध किया है। महापौर रजनी अब्बी का कहना है कि लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। हम एमसीडी को बांटने के प्रस्ताव का विरोध करते रहेंगे। हम इसकी इजाजत नहीं देंगे और यह नगर निगम को कमजोर बनाने की पूरी तरह से राजनीतिक चाल है। हमने गृहमंत्री से नगर निगम के सदस्यों से इस मसले पर विचार-विमर्श करने का आग्रह किया था। उन्होंने मुझसे कहा था कि उन्हें अभी तक इस सिलसिले में कोई औपचारिक प्रस्ताव नहीं मिला है। दिल्ली सरकार के कैबिनेट का फैसला आने के बाद उन्होंने नगर निगम के सदस्यों के साथ इस विषय पर चर्चा करने का आश्वासन दिया था। महापौर का यह भी कहना है कि नगर निगम को को बांटने का फैसला संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के बुनियादी उद्देश्य के खिलाफ है जिसमें स्थानीय एजेंसियों को मजबूत बनाने पर जोर दिया गया है। निगम को तीन हिस्सों में बांटने का दिल्ली सरकार का फैसला वित्तीय और न ही भौगोलिक लिहाज से सही है।
भाजपा के दूसरे पार्षदों का भी मानना है कि बंटवारे से नगर निमग कमजोर होगा। दफ्तर सहित बुनियादी ढांचा बढ़ाने पर अतिरिक्त रूप से 1,000 करोड़ रुपये का भार बढ़ेगा। साथ ही नए पदों के लिए अधिकारियों की नियुक्ति पर 1,000 करोड़ रुपये खर्च होंगे। यह खर्च आखिर कहां से पूरा होगा, निश्चित रूप से जनता की जेबों पर ही किसी न किसी रूप से बोझ पड़ेगा।
इसी संदर्भ में जब भाजपा दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष विजेन्द्र गुप्ता से बात की गई तो उन्होंने सीधे तौर पर कहा कि दिल्ली नगर निगम को नाकाम बताकर मुख्यमंत्री शीला दीक्षित अपनी घटिया राजनीति और सोच का परिचय दे रही हैं। ऐसा कह कर वे दिल्ली सरकार की नाकामी, तानाशाही और भ्रष्टाचार को ढक़ने की कोशिश कर रही हैं। कांग्रेसियों की फितरत है कि जब भी फंसो जनता को भ्रमित करने के लिए नये राग छेड़ दो।
गौर करने योग्य यह भी है कि कुछ ही समय पूर्व में त्रिनगर में एक जनसभा में मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कहा था कि दिल्ली नगर निगम में दिल्ली का 97 प्रतिशत हिस्सा आता है। इतने बड़े हिस्से की देखरेख एक ही नगर निगम द्वारा करना मुश्किल है इसीलिए सरकार निगम को बांटना चाहती है। इसके जवाब में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का कहना है कि मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता, हैदराबाद, अहमदाबाद, बेंगलुरू, पुणे जैसे बड़े शहरों में एक ही नगर निगम कार्यरत हैं। वहां के नगर निगमों के पास कार्य भी ज्यादा है और उनके कार्य में सरकार का कोई हस्तक्षेप भी नहीं होता है, इसीलिए वहां शिकायतें न के बराबर हैं। दिल्ली नगर निगम में जबसे भाजपा सत्ता में आई है तभी से उसे कमजोर करने, वित्तीय रूप से जर्जर बनाने, अधिकार छीनने, कई भागों में बांट कर अक्षम बनाने की कोशिश दिल्ली सरकार बराबर कर रही है। श्री गुप्ता का यह भी कहना है कि जब से दिल्ली सरकार राष्टï्रमंडल खेलों के घोटालों में आरोपित हुई है तभी से उसने निगम विभाजन की मांग करके जनता का ध्यान अन्यत्र बंटाने की साजिश रची है। श्री गुप्ता ने मुख्यमंत्री से सवाल किया कि अपने तीन विधानसभा घोषणापत्रों में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का वायदा करने वाली कांग्रेस ने आज तक दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा क्यों नहीं दिया है जबकि केन्द्र और दिल्ली में कांग्रेस की ही सरकार कायम है। यदि निगम को हड़बड़ी में राजनीतिक साजिश के तहत बांटा गया तो दिल्ली में जनसमस्याएं और बढ़ेंगी तथा जनता पर करों का बोझ कांग्रेस बढ़ायेगी।
बुधवार, 27 जुलाई 2011
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