मंगलवार, 26 जुलाई 2011

करोड़ों का है पेंटिंग बाज़ार


पेंटिंग की ऊंची कीमतें कला बाजार के ऐसे पक्ष से हमें रू-ब-रू कराती हैं, जिसे लेकर भारतीय समाज में एक अनभिज्ञता की स्थिति व्याप्त है। भारतीय कलाकारों का एक बड़ा वर्ग है, जिसकी अंतरराष्ट्रीय कला बाज़ार में धाक है और जिनकी बनाई पेंटिंग्स करोड़ों रुपए में बिकती है।
लोगों की आम मानसिकता है कि बच्चों को पढ़ाई-लिखाई पर ही अधिक ध्यान दिया जाए जिससे उन्हीं अच्छी नौकरी मिल सके और वह सम्मानजनक ढंग से जीवनयापन कर सकें। कोई भी माता-पिता अपने बच्चों को जल्दी कला के क्षेत्र में विशेषकर पेंटिंग्स आदि के फील्ड में भेजना चाहता है। मगर, जब से पेंटिग्स की कीमतें करोड़ों रुपए को पार कर रही हैं और इसके अंतर्राष्टï्रीय बाजार की धमक लोगों तक पहुंची है, सोच में परिवर्तन आया है। एक अनुमान के मुताबिक़, भारत का कला बाज़ार लगभग दो हज़ार करोड़ रुपये का है। अब तो यह शेयर बाजार से भी संबद्घ होता दिखता है। आर्थिक मंदी के दौरान भी जब इस क्षेत्र को कोई नुकसान नहीं हुआ बल्कि पेंटिग्स ऊंची कीमतों पर बिकी तो शेयर बाजार इस ओर निहार रहा था। क्योंकि मंदी के बावजूद राष्टï्रीय और अंतरराष्ट्रीय कला बाज़ार में मशहूर पेंटरों की कलाकृतियों को भारी-भरकम मूल्य पर खऱीदने वाले रईस निवेशकों की कोई कमी नहीं देखी गई। बाजार के जानकारों का तर्क है कि शेयर बाज़ार से कमाए गए पैसे लोग कला बाज़ार में निवेश करते हैं जो कि एक बेहद सुरक्षित विकल्प माना जाता हैे।
एम.एफ. हुसैन की तीन पेंटिंगों ने हाल में लंदन के बोनहाम नीलामी में 2.32 करोड़ रुपए की रकम के साथ सर्वाधिक राशि हासिल की। उनका शीर्षक रहित एक तेल चित्र 1.23 करोड़ रुपए में बिका जिसमें उन्होंने अपनी जानी पहचानी विषय वस्तु घोड़े और महिला को आधार बनाया। यूं तो मकबूल फिदा हुसैन की पेंटिंग्स के कद्रदान तो सदा रहे ही हैं और उनकी पेंटिंग्स करोड़ों में बिकी हैं, मगर उनके अलावे कई नामचीन भारतीय पेंटर हैं, जिनकी कलाकृतियां हमेशा से करोड़ों रुपये में बिकती हैं और वे सुखिऱ्यां बटोरती हैं। ऐसा नहीं है कि केवल एमएफ हुसैन, रजा, तैयब मेहता जैसे महान चित्रकारों को ही करोड़ों रुपये के खऱीददार मिलते हैं। इन समकालीन चित्रकारों के अलावा कई आधुनिक चित्रकार भी हैं, जिनकी कलाकृतियां करोड़ों रुपये में बिकती हैं, लेकिन इनके बारे में कम लिखा जाता है और इनका काम चर्चित नहीं हो पाता है।
आंकड़े बताते हैं कि 2007 में सॉदबी ने रॉकिब शॉ की पेंटिंग गॉर्डन ऑफ अर्थली डिलाइट्स को इक्कीस करोड़ में बेचकर इतिहास रच दिया था। अनीश कपूर की एक पेंटिंग को अ_ाइस लाख डॉलर, टी.वी. संतोष की कलाकृति ‘टेस्ट टू’ को डेढ़ लाख डॉलर और रॉकिब शॉ की पेंटिंग को इक्यानवे हज़ार डॉलर मिले थे, जो कि नीलामीकर्ता की उम्मीदों से कहीं ज़्यादा थे। चिंतन उपाध्याय की पेंटिंग को तिहत्तर हज़ार डॉलर, रियास कोमू की पेंटिंग सिस्टमेटिक सिटीजऩ फोर्टीन को उनासी हज़ार डॉलर और बोस कृष्णामचारी की पेंटिंग को चालीस हज़ार डॉलर मिले थे। इसी सूची में अपर्णा कौर, युसूफ अरक्कमल, अतुल डोडिया और सुरेंद्र नायर को भी स्थान दिया जा सकता है कि जिनकी पेंटिंग्स विदेशों के अलावा भारत में भी ख़ासी कमाई करती हैं।
कुछ समय पहले लंदन में नीलामी करने वाली कंपनी सॉदबी ने जोगेन चौधरी की कलाकृति ‘डे ड्रीमिंग’ को तीन करोड़ रुपये में बेचा। जोगेन चौधरी की यह पेंटिंग इंक और पेस्टल वर्क का बेहतरीन काम था। तो अकबर पद्मसी की एक पेंटिंग एक करोड़ सत्तासी लाख रुपये में बिकी। एफ.एम. सूजा की ‘ओल्ड सिटी लैंडस्केप’ पौने दो करोड़ रुपये से ज़्यादा में नीलाम हुई। इसके अतिरिक्त अलावा सुबोध गुप्ता और वी.एम. गायतोंडे की पेंटिंग्स को भी एक करोड़ रुपये से ज़्यादा में खऱीदने वाले ग्राहक मिले। इस नीलामी से पहले भी सुबोध गुप्ता की पेंटिंग ‘सात समंदर पार सेवन’ के लिए लगभग पौने चार करोड़ रुपये की बोली लगी थी। सुबोध ने अपनी इस कलाकृति में मौजूदा समाज में इंसान के अहसास को अभिव्यक्त किया था। सुबोध के अलावा अनीश कपूर, टी.वी. संतोष, चिंतन उपाध्याय, रियास कोमू, रॉकिब शॉ और बोस कृष्णामचारी की कलाकृतियों को भी उम्मीद से ज़्यादा क़ीमत मिली थी।
सच तो यही है कि आधुनिक समय में कला के कद्रदान बढ़ रहे हैं और साथ ही बढ़ रहा है इसका कारोबार। इसके बावजूद, इस क्षेत्र में ऊपरी पायदानों पर कुछ गिने-चुने आर्टिस्ट ही काबिज हैं। भारतीय कलाकारों को ध्यान में रखते हुए अगर बीते साल और इस साल अब तक के कला के कारोबार पर निगाह डालें, तो पता चलता है कि चार भारतीय पेंटर इस फेहरिस्त के टॉप नामों में शामिल हैं। इनकी पेंटिंग्स लाखों डॉलर में बिक चुकी हैं। कला के कारोबार में बेशक सबसे अहम उपलब्धि रही तैयब मेहता की महिषासुर। यह पेंटिंग पिछले साल सितंबर में क्रिस्टीज में 1.584 मिलियन डॉलर (करीब 7 करोड़ 70 लाख रुपये) में बिकी। आज तक की यह सबसे महंगी पेंटिंग है। सॉदबीज में 1.472 मिलियन डॉलर (करीब 6.5 करोड़ रुपये) में बिकी एस. एच. रजा की तपोवन इस फेहरिस्त में दूसरे नंबर पर है। इस साल सितंबर में सॉदबीज में न्यूयॉर्क में एफ. एन. सूजा की पेंटिंग मैन विद मॉन्सट्रेंस के लिए 1.36 मिलियन डॉलर (करीब 6 करोड़ रुपये) मिले। सितंबर में ही सॉदबीज द्वारा लगाई गई बोली में वी. एस. गायतोंडे की एक ऑयल पेंटिंग 1.108 मिलियन डॉलर (करीब 50 करोड़ रुपये) में बिकी। एक बार फिर सॉदबीज में तैयब मेहता की एक अनाम कृति ने 1.248 मिलियन डॉलर बटोरे। सितंबर में ही क्रिस्टीज में लगाई गई बोली में भी मेहता की पेंटिंग ने बाजी मारी। सांड के सिर वाली यह अनाम पेंटिंग 1.136 मिलियन डॉलर में बिकी। इन आंकड़ों से पता चलता है कि यूं तो इस साल कई नामी कलाकार अपनी कमाई का रेकॉर्ड सुधार रहे हैं लेकिन एफ. एन. सूजा इसमें अव्वल हैं। इस मरहूम कलाकार की कई पेंटिंग्स लाखों डॉलर में बिकी हैं। क्रिस्टीज में सूजा की मैन एंड वूमन 1.36 मिलियन डॉलर में बिकी। इसके अलावा उनकी न्यासा नेग्रेस विद फ्लावर्स एंड थॉर्न्स 8,36,000 डॉलर में और अनाम स्पेनिश लैंडस्केप 6,88,000 डॉलर में बिकी। सूजा की दो और अनाम पेंटिंग्स के लिए 6,88,000 और 6,32,000 डॉलर की बोली लगी। इस साल कला के क्षेत्र में अच्छी कमाई करने वालों में रामकुमार और एम. एफ. हुसैन का नाम भी शामिल है। रामकुमार की पेंटिंग 4,52,800 डॉलर (करीब दो करोड़) में बिकी, जबकि हुसैन की 5,76,000 डॉलर (करीब 2.5 करोड़ रुपये) में।


कला बाज़ार में इस तेजी के लिए जानकार कलाप्रेमी और शौकीनों की जमकर खऱीददारी को जि़म्मेदार ठहरा रहे हैं, लेकिन साथ ही वे चेतावनी के लहज़े में नब्बे के दशक में कला बाज़ार की तेजी और फिर भारी गिरावट की याद दिलाते हैं। उस समय जापानी खरीददारों की सक्रियता ने कला बाज़ार को काफ़ी ऊपर उठा दिया था, जो कि कृत्रिम था और थोड़े ही दिनों में वह मुंह के बल आ गिरा। लेकिन कला का जो बाज़ार है, उसमें ग्राहकों का मनोविज्ञान एक अहम भूमिका अदा करता है। जानकार यह भी कहते हैं कि यदि देश में राजनैतिक हालात बेहतर रहते हैं तो रईसों का विश्वास मज़बूत रहता है और वे ब़ेफिक्र होकर निवेश करते हैं। कला बाजार के जानकारों की मानें तो कला में निवेश करने वालों की तादाद बढ़ रही है और आने वाले समय में इस बाज़ार में बढ़ोतरी और स्थिरता अधिक देखने को मिल सकती है। घरेलू कला बाज़ार और सोना दो निवेश ऐसे हैं, जिनमें निवेशकों का विश्वास लगातार बना हुआ है। यदि यूरोप की कला बाज़ार में हाल की नीलामियों और प्रदर्शनियों का विश्लेषण किया जाए तो यह निष्कर्ष निकलता है कि वहां भी कला को लेकर खऱीददारों और निवेशकों का विश्वास मज़बूत हुआ है।

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