अखबार का पन्ना
लूट, अपहरण और हत्या से
भरा पड़ा था
शब्द-शब्द
किसी मासूम अबला के
स्याह हो रहे रक्त से
रंगा पटा था
पृष्ठ दर पृष्ठ उघेड़ा गया था
बुद्घिजीवी समाज के शरफात का नकाब
दिल के कोने में
उभर रहा था अक्स
बहशी का
माँ के आँखों की वेदना
गोद में लेटे हुए पुत्र
के दिमाग में भी अंकित हो रहा था
ओफ्फ
हर पन्ना आगजनी, तोड़-फोड़ से भरा है
माँ ... माँ
मेरा भविष्य किधर छिपा खड़ा है
टूटी तंद्रा माँ की
सोचा,
जिस देश का बचपन असुरिक्षत हो
उसके भटकी जवानी का हश्र क्या हेागा?
सहसा वह चीख पड़ी
अपने भविष्य को आग लगानेवाले दरिंदों
इसका असर दूसरे पर भी देखा है?
- बिपिन बादल
गुरुवार, 26 अगस्त 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
1 टिप्पणी:
अच्छा सवाल उठाया है आपने.
उस देश की जवानी का हश्र क्या होगा.
एक टिप्पणी भेजें