अयोध्या एक बार फिर सुलगने को तैयार है। तारीख मुकर्रर तो नहीं हुई है, लेकिन इंतजाम शुरू हो चुके हैं। मध्य जुलाई में हिंदुवादी संगठनों ने अयोध्या में एकत्र होकर काफी कुछ तैयारी करनी शुरू कर दी। हालांकि, इसे इन संगठनों का चिंतन शिविर भी बताने की कोशिश की गई। पर वास्तविकता तो यह है कि विश्व हिंदू परिषद के बैनर तले एकत्र हुए साधु-संतों ने आगामी रणनीति को लेकर विचार विमर्श किया।
जैसे ही इलाहाबाद हाईकोर्ट में अयोध्या के विवादित बाबरी मजिस्द-राम जन्मभूमि मामले की सुनवाई पूरी हुई और फैसला आने की गुंजाइश दिखी पड़ी, ये संगठन हरकत में आ गए। बाबरी विध्वंस के बाद नेपथ्य में चले गए कई लोग अचानक मुखर होने लगे। ये लोग बड़ी साफगाई के साथ कहने लगे हैं कि बाबरी विध्वंस प्रकरण को लेकर भाजपा ने सत्ता हासिल की, लेकिन राम मंदिर पर कोई ठोस निर्णय नहीं लियास। सो, इस बार अपने दम पर ही राममंदिर का निर्माण करेंगे। किसी राजनीतिक दल की बैशाखी की जरूरत नहीं है।
यह अनायास नहीं था कि विश्व हिंदू परिषद के शीर्ष नेता बीस वर्ष बाद अयोध्या में इक_े हुए । दिसंबर 1992 में बाबरी ढांचा ध्वस्त होने के बाद पहली बार मंदिर आंदोलन के अगुआ आयोध्या में आयोजित विहिप की केंद्रीय प्रबंध समिति की बैठक में शामिल हुए। दो दिन की बैठक के बाद हिंदुवादी संगठनों के नेता सहित साधु-संतों ने फैसला लिया कि एक बार फिर राम मंदिर मुद्दे पर अगस्त से देश भर में अभियान शुरू करने की तैयारी है। ये लोग अपनी तैयारियों को लेकर इस कदर आश्वस्त हैं कि कहते हैं कि इसके लिए केंद्र सरकार को का कड़ा फैसला लेने पर मजबूर होना पड़ेगा। काबिलेगौर है कि जिला इस मामले को अदालत में 40 साल लगे, हाईकोर्ट में 20 साल बीत गए, इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में अटका तो? लेकिन विहिप के शीर्ष नेताओं का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट तक मामला जा नहीं पाएगा। हम संसद में फैसले के लिए सरकार को मजबूर कर देंगे। जब शाहबानो के लिए कानून बदल सकता है तो यह करोड़ों लोगों की आस्था का प्रश्न है। देश में ताकत का ऐतिहासिक प्रदर्शन होगा।
बेशक, इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एक विशेष खंडपीठ में अयोध्या में एक विवादित भूमि के मालिकाना हक से संबंधित मामले की सुनवाई पूरी हो गई है। इस भूमि पर हिंदुओं और मुसलमानों की ओर से एक सदी से भी अधिक समय से दावा किया जा रहा है। स्थानीय निवासियों को इस बात का अंदेशा हो चला है कि फैसला चाहे जो हो, चाहे जिसके हक में हो, मगर जिस दिन फैसला आएगा उस दिन देश के इतिहास का एक और बड़ा दंगा भड़क सकता है। लोगों के मन में यह भय घर कर रही है कि जिस प्रकार अयोध्या के संत महात्मा और विहिप के लोग गर्भगृह पर ही मंदिर बनाने की बात कह रहे हैं उससे स्पष्ट है आने वाले समय में इस पर राजनीति एक बार फिर गरमाएगी। लगातार हिंदुवादी संगठनों के नेता अयोध्या का भ्रमण कर रहे हैं। मंदिरों के शहर के रूप में विख्यात अयोध्या के विभिन्न मंदिरों में लोगों की बैठकें देखी जा सकती हैं।
राजनीतिक हलकों की बात करें तो विहिप के अंतर्राष्टï्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी से खार खाए बैठे हैं, लेकिन बीते दिनों वह भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी से मुलाकात कर चुके हैं। वह भी अयोध्या में सम्मेलन करने से पूर्व। परिषद के इस अभियान में भाजपा भी सक्रिय रही , लेकिन परदे के पीछे। तय योजना के अनुसार 16 अगस्त से चार महीने तक देश भर के गांवों-कस्बों में अभियान चलाया जाएगा। बीस वर्ष पहले के मंदिर आंदोलन की तरह इसमें कोई बड़ी सभाएं नहीं होंगी, लेकिन नवंबर-दिसंबर में कुछ कार्यक्रम बड़े स्तर पर हो सकते हैं। इसका मकसद दो दशक पुराने आंदोलन के बाद बड़ी हुई और विहिप के इरादों से बेखबर युवा पीढ़ी को मंदिर मुद्दे से वाकिफ कराना है। माना जा रहा है कि अगर विहिप माहौल बनाने में सफल होती दिखती है तो भाजपा के नेता अभियान में खुलकर सक्रिय हो सकते हैं। भाजपा का रूख भी विहिप नेताओं को लेकर कुछ नरम हुआ है। तभी तो भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता तरुण विजय कहतेे हैं, पार्टी के लिए मंदिर भूलने वाला विषय हो ही नहीं सकता। लेकिन विहिप के इस अभियान को लेकर अभी पार्टी स्तर पर कोई फैसला नहीं लिया गया है।
बेशक, भाजपा अभी दुविधा में है किन्तु विहिप व आरएसएस के एजेंडे में मंदिर मुद्दा सबसे ऊपर आ गया है। संघ इस मुद्दे पर 1991 की भांति संतों को आगे करके आंदोलन करने के मूड में है। संघ के सरकार्यवाह सुरेश जोशी भैया ने इसकी पुष्टिï कर दी है। कहा जा रहा है कि अटल युग के अवसान के बाद भाजपा भी एक बड़ा मुद्दा चाह रही है, जिससे वह आम लोगों की नजर में आए। विपक्ष की भूमिका में वह सक्षम नहीं दिखाई पड़ रही है। ऐसे में भाजपा के रणनीतिकार भी अयोध्या को सुलगाने की बात सोच रहे हैं। आखिर, यही तो वह मुद्दा है जिसने भाजपा को दिल्ली की कुर्सी पर बिठाया।
यादगार वर्ष
1528 : अयोध्या में एक ऐसे स्थल पर मस्जिद का निर्माण किया गया जिसे हिंदू भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं। समझा जाता है कि मुग़ल सम्राट बाबर ने ये मस्जिद बनवाई थी जिस कारण इसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता था।
1853 : पहली बार अयोध्या के पास सांप्रदायिक दंगे हुए।
1859 : ब्रिटिश सरकार ने विवादित जगह पर बाड़ लगा दी और परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों को और बाहरी हिस्से में हिंदुओं को पूजा पाठ करने की इजाजत दे दी।
1949 : मस्जिद के भीतर भगवान राम की मूर्तियां पाई गयीं। मुसलमानों ने इसका विरोध किया और दोनों पक्षों ने अदालत में मुकदमा दायर कर दिया। सरकार ने इस जगह को विवादित घोषित करके ताला लगा दिया।
1984 : कुछ हिंदुओं के नेतृत्व में भगवान राम के जन्म स्थल को मुक्त करने और वहां राम मंदिर का निर्माण करने के लिए एक समिति का गठन किया।
1986 : जिला मजिस्ट्रेट ने हिंदुओं के लिए विवादित मस्जिद के दरवाजे पर से ताला खोलने का आदेश दिया। मुसलमानों ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन किया।
1989 : विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर निर्माण के लिए अभियान तेज किया और विवादित स्थल के नजदीक राम मंदिर की नींव रखी।
1990 : विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं ने बाबरी मस्जिद को कुछ नुकसान पहुंचाया। तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने बातचीत के जरिए विवाद सुलझाने की कोशिश की मगर अगले साल बातचीत फेल हो गई।
1992 : शिव सेना और विहिप के कार्यकर्ताओं ने 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद को गिरा दिया। इसके बाद देश भर में हिंदू और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे जिसमें 2000 से ज़्यादा लोग मारे गए।
बुधवार, 4 अगस्त 2010
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