दिन में हम जागते हैं और रात होते ही नींद आने लगती है. रात में कुछ देर तक तो हम जागते हैं लेकिन फिर नींद हम पर भारी होने लगती है और अंतत: हम सो जाते हैं. एकदम निष्क्रीय. हम हमारी जिंदगी का एक तिहाई हिस्सा तो सोने में ही बिता देते हैं. तो क्या हमारा इतना समय यूँ ही बरबाद जाता है? क्या नींद यह प्रकृति की एक बड़ी भूल है?
दुनिया भर के वैज्ञानिक इस सवाल का जवाब देने में लगभग असफल रहे हैं. नींद एक सामान्य प्रक्रिया है लेकिन वह असामान्य लगती है. हम आजतक इस सवाल का सटीक जवाब नहीं दे पाए कि आखिर हमें नींद लेने की आवश्यकता ही क्या है?
इसके अलावा और भी कई सवाल हैं – क्यों जीराफ मात्र 5 घंटे सोता है और शिकार शेर 15 घंटे, जबकि शेर के लिए वह भोजन बन सकता है? क्यों प्रवासी पक्षी कई दिनों के प्रवास के बाद अंत में ‘सो” जाते हैं? क्यों बच्चे अधिक देर तक नींद लेते हैं लेकिन बुजुर्ग कम देर तक? वैज्ञानिकों ने आजतक नींद से संबंधित कई व्याख्याएँ दी हैं और हर व्याख्या पर सवाल खड़े किए गए हैं. हर प्राणी और हर प्राणी की उपजातियों और यहाँ तक कि हर उपजाति के हर सदस्य की नींद की आदत अलग अलग होती है और यही एक चुनौती है. चुनौती इसलिए क्योंकि नींद की जरूरत हर किसी के लिए अलग होती है और इसका कोई निश्चित पेटर्न नहीं होता.
वी.ए. ग्रेटर लॉस एंजिलिस हैल्थकेर सिस्टम के डॉ. सीगल मानते हैं कि नींद प्रकृति की गलती नहीं है. उनके हिसाब से नींद लेना भूल हो सकती है लेकिन बिना वजह जागना उससे भी बड़ी भूल है. जर्नल नेचर रिव्यू न्यूरोसाइंस के अगस्त अंक में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के जेरोम सीगल के विचार छपे हैं. जेरोम का मानना है कि नींद प्रकृति का दिया हुआ समय प्रबंधन टूल है. जेरोम के अनुसार नींद जानवरों को खतरों से बचाती है क्योंकि सोया हुआ प्राणी खाने के लिए बाहर नहीं आता और शिकारी जानवरों का शिकार नहीं बनता.
लेकिन जैसा कि हमेशा से होता आया है, नींद से संबंधित हर व्याख्या को चुनौती मिलती है और जेरोम सीगल की व्याख्या भी इससे अपवाद नहीं है. कई वैज्ञानिकों ने जेरोम की व्याख्या को खारिज करते हुए कहा है कि सोया हुआ प्राणी काफी कम सचेत होता है इसलिए उसके लिए खतरा भी काफी अधिक होता है. कई वैज्ञानिकों का मानना है कि नींद लेकर हमारा दिमाग दिन भर की यादों को संग्रह करता है. एक दूसरी व्याख्या यह है कि नींद लेकर हमारा शरीर खुद को पहुँचे प्राकृतिक नुकसान को ठीक करता है. छोटे बच्चे अधिक सोते हैं क्योंकि उनके दिमाग को विकसित होना होता है, जबकि बुजुर्ग व्यक्ति कम सोते हैं क्योंकि उनके दिमाग के लिए विकास प्रक्रिया समाप्त हो चुकी होती है. इस तरह से हमने देखा कि नींद के ऊपर आधारित कई व्याख्याएँ वैज्ञानिक समुदाय में प्रचलित है, लेकिन आजतक कोई भी इस सवाल का सटीक जवाब नहीं दे पाया कि आखिर हमें सोने की जरूरत ही क्या है? या फिर क्या नींद प्रकृति की भूल है?
साभार
गुरुवार, 6 मई 2010
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4 टिप्पणियां:
bahut achhi jaankari ke liye dhanyavaad
जानकारी के लिए आभार
bahut acchi jaanakaari.bahut achha lagaa aapka lekh padhakar.
bahut achhi jaankari thanks
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