शुक्रवार, 14 मई 2010

बेगाने होंगे ऑस्ट्रेलियाई

अगले 15 वर्ष में ऑस्ट्रेलियाई मूल के लोग अपने ही देश में बेगाने अल्पसंख्यक हो जाएंगे। खास बात यह कि भारतीयों की भूमिका पहले से कहीं दमदार होगी। विश्व के मानचित्र पर छोटा सा देश है ऑस्ट्रेलिया, जो पिछले कुछ समय से भारतीयों के खिलाफ आने से चर्चा में रहा। आने वाले समय में भारतीय ही इस देश को प्रभावित करेंगे और मूल निवासी अल्पसंख्यक हो जाएंगे। वर्तमान की स्थिति तो यही है कि ऑस्ट्रेलिया में आबादी के बदलते समीकरण से जुड़ा नया आंकड़ा वहां के स्थानीय लोगों के लिए चिंता का सबब बनता जा रहा है।
विभिन्न रिपोर्ट बता रहे हैं कि अगले 15 वर्षों में ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों से ज्यादा आबादी दूसरे देशों के प्रवासियों की हो जाएगी। खास बात यह है भारतीय प्रवासी ऑस्ट्रेलिया के सबसे बड़े समुदायों में एक होंगे। मैक्रोप्लान ऑस्ट्रेलिया के आंकड़ों के हवाले से कहा गया है कि यूरोप और एशिया, खासकर भारत और चीन से भारी तादाद में आने वाले प्रवासियों की तादाद के कारण 15 वर्ष के अंदर ऑस्ट्रेलियाई अपने ही देश में अल्पसंख्यक समूह बनकर रह जाएंगे। इसमें कहा गया है कि ऑस्ट्रेलिया में सबसे अधिक प्रवासी ब्रिटेन (14.2 प्रतिशत), न्यूजीलैंड (11.4 प्रतिशत), भारत (11.2 प्रतिशत), चीन (10.5 प्रतिशत), दक्षिण अफ्रीका (5.3 प्रतिशत) और फिलिपीन (4.1 प्रतिशत) से आते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, मैक्रोप्लान के आंकड़े दिखाते हैं कि दूसरे देशों से रेकॉर्ड तादाद में प्रवासी ऑस्ट्रेलिया आ रहे हैं, जबकि यहां के लोग उम्रदराज हो रहे हैं। इसका मतलब है कि 2025 तक प्रवासी परिवार स्थानीय निवासियों को संख्या में मात दे देंगे। यह उससे कहीं पहले होगा, जितना पहले सोचा गया था।
काबिलेगौर यह भी है कि ऑस्ट्रेलिया के वित्त मंत्रालय द्वारा जारी किए गए एक रिपोर्ट के अनुसार अगले चालीस वर्ष के भीतर ऑस्ट्रेलिया की आबादी दो-तिहाई बढ़ जाएगी। कुल जनसंख्या बढ़कर तीन करोड़ साठ लाख हो जाएगी। वित्त मंत्रालय ने तीन वर्ष पहले यह अनुमान लगाया था कि देश की आबादी में अगले चार दशकों में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो जाएगी। वर्तमान अनुमान, पिछले अनुमान की तुलना में कहीं ज्यादा है। आर्थिक विकास दर के ज्यादा रहने से उत्साहित होकर ऑस्ट्रेलिया में जन्म दर बढऩे लगी है। लेकिन इससे भी कहीं अधिक खतरा यहां आप्रवासियों की संख्या में तेजी से हो रही बढ़ोतरी से है। पिछले वर्ष तक ऑस्ट्रेलिया में प्रति वर्ष दो लाख 44 हजार लोग दूसरे मुल्कों से आते रहे हैं। जनसंख्या वृद्धि की दर के बीच बुजुर्गे की संख्या में कमी दर्ज की जा रही है। दूसरे देशों से यहां आ रहे 90 प्रतिशत लोग 40 वर्ष से कम उम्र के हैं। ऑस्ट्रेलिया की कुल जनसंख्या में मात्र 55 प्रतिशत ही युवा वर्ग है। रिपोर्ट पर गौर करें तो एक खतरनाक पहलू यह सामने उभरकर आता है कि वर्ष 2050 तक 65-84 वर्ष के आयु वाले बुजुगरें के औसत में बढ़ोतरी हो सकेगी। पचासी वर्ष से ज्यादा उम्र वालों की जनसंख्या में चार गुना बढ़ोतरी हो जाएगी। बुजुर्गे की जनसंख्या में बढ़ोतरी का मतलब यह है कि सरकारी खचरें में आधे से ज्यादा बजट उनके हेल्थ केयर और उन्हें किसी-न-किसी तरह लाभान्वित करने पर जाएगा। जबकि इसका स्याह पहलू तो यह है कि नौकरी पेशा और कर का भुगतान करने वालों की जनसंख्या घटकर आधी रह जाएगी।
हालांकि, इस समस्या के निपटान के लिए ऑस्ट्रेलिया सरकार की आबादी बढाऩे की नीति काम तो कर रही है लेकिन सरकार को लगता है कि अगर देश की विकास दर को बढऩा होगा तो उसे बड़े पैमाने पर युवा आबादी की जरूरत होगी। ऑस्ट्रेलिया सरकार के एक शीर्ष अधिकारी पीटर केस्टेलो की माने तो ऑस्ट्रेलिया सरकार ने देश में घटती युवा आबादी को ध्यान में रखकर एक बच्चा मम्मी के लिए, एक बच्चा पापा के लिए और एक बच्चा देश के लिए का नारा दिया था। सरकार की इस योजना के कुछ सकारात्मक परिणाम सामने आए भी। लेकिन अब सरकार को लगता है कि घटती युवा आबादी से देश का विकास प्रभावित हो सकता है।
जानकारों का मानना है कि वर्ष 2047 तक मौजूदा रूझानों के मुताबिक 65 साल की उम्र के लोगों की संख्या कुल जनसंख्या का एक चौथाई हो जाएगी। वहीं कामगार युवा आबादी में बड़े पैमाने पर कमी आने की आशंका है। ऑस्ट्रेलिया में इस समय मां और बच्चे का अनुपात 1.8 है जबकि पांच साल पहले यह 1.7 था। वहीं प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद अगले 40 वर्षों में 1.6 प्रतिशत के औसत के साथ बढ़ेगा जबकि पिछले 40 सालों में यह औसत 2.1 था। उम्रदराज आबादी का असर देश के चिकित्सा तंत्र पर भी पड़ेगा।
सच तो यह भी है कि देश के जनसंख्या आंकड़ों के अनुसार, ऑस्ट्रेलियाई आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा या तो खुद विदेशों में पैदा हुआ है या फिर उनके माता-पिता में से कोई एक विदेश में पैदा हुए हैं। मौजूदा ट्रेंड जारी रहा तो 2025 तक यह अनुपात बढ़कर 50 फीसदी हो जाएगा। प्रवासियों के मौजूदा स्तर को देखते हुए 2025 तक उनकी संख्या 2.2 करोड़ से बढ़कर 3.6 करोड़ होने की उम्मीद है।

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