रविवार, 14 जून 2009

गंगा के घाट पर 'जल' नहीं


जिस भू-भाग में 'सदानीराÓ प्रवाहित होती हो, जहां लोग मोक्ष की कामना लिए आते हों, वहां लोगों को बोतलबंद पानी के सहारे अपना गल तर करना पड़ता है। गंगा के घाट पर 'बाजारÓ इस कदर हावी है कि तीर्थयात्रियों को पीने के लिए पानी खरीदना पड़ता है। प्लास्टिक की बोतलों में बंद। वह भी निर्धारित मूल्य से अधिक पर और स्थानीय प्रशाासन है कि पेयजल की व्यवस्था नहीं करता।

अमूमन 30 से 35 हजार तीर्थयात्री रोजाना हरिद्वार आते हैं। यहां की प्रसिद्घ घाट 'हर की पौड़ीÓ पर आकर स्नानादि करते हैं। अवकाश के दिनों और विशेष तिथियों में इनकी संख्या में बढ़ोत्तरी होती है। इस घाट पर पेयजल की व्यवस्था नहीं के बराबर है। पेयजल के लिए गंगा सभा द्वारा घाट के शुरू और अंत में दो जगहों पर नल लगाए गए हैं, जो लोगों की संख्या के अनुपात में नहीं के बराबर हैं। ऐसी स्थिति में लोगों को अपनी प्यास बुझाने के लिए बोतलबंद पानी खरीदनी पड़ती है। अव्वल तो यह कि जो पानी की बोतलें दूसरे जगहों पर 10-12 रुपए में मिलती है वह हरिद्वार के घाटों पर 15 रुपए में लोगों को नसीब होती है। विकल्पहीनता के कारण लोग इसे खरीदने को मजबूर होते हैं। बताया जाता है कि एक दिन में हरिद्वार के घाट और अन्यत्र मंदिरों के आस-पास 50-60 हजार पानी की बोतलें बिकती हैं, यानी इस तीर्थनगरी में बोतलबंद पानी का कारोबार साढ़े सात से नौ लाख रुपए प्रतिदिन है।

पेयजल की समस्या के निदान के लिए घाट की जिम्मेदारी संभालने वाला 'गंगा सभाÓ अपने हाथ खड़ा करता है तो स्थानीय प्रशासन लाचार लगता है। स्थानीय प्रशासन का कहना है कि घाटों पर दुकानदारों की मनमानी चलती है और उन्हें कुछेक साधु मण्डली का संरक्षण भी प्राप्त है। जब भी कोई कार्रवाई करने को स्थानीय प्रशासन प्रस्तुत होता है उसे धार्मिक आड़ में रोक दिया जाता है। काबिलेगौर है कि हरिद्वार में अगले साल होने वाले अर्द्धकुंभ की तैयारी के सिलसिले में हर की पैड़ी स्थित कुछ दुकानों को हटाने के स्थानीय प्रशासन के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। न्यायमूर्ति मार्कन्डेय काटजू और न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की पीठ ने सड़क के किनारे छोटी-छोटी दुकान चलाने वालों को राहत प्रदान की। सुप्रीम कोर्ट ने 1990 में ही हरिद्वार नगरपालिका को निर्देश दिया था कि वैकल्पिक सुविधा दिए बिना दुकानें न हटाई जाएं। 64 दुकानदारों ने अदालत में दायर अवमानना याचिका में कहा कि नगरपालिका ने वैकल्पिक दुकानों का कई बार नक्शा तैयार किया, लेकिन आवंटन अभी तक नहीं हुआ। अर्द्धकुंभ बसंत पंचमी के दिन 10 फरवरी, 2010 से शुरू होगा और 15 अप्रैल, 2010 तक चलेगा। श्रद्धालुओं के आवागमन को सुगम बनाने के लिए पवित्र स्नान के सात दिनों के दौरान दुकानदारों ने अपनी दुकानें बंद करने का आश्वासन दिया, लेकिन मेला अधिकारी, जिलाधिकार और नगरपालिका ने उन्हें तीन जून, 2009 तक दुकानें हटाने का अल्टीमेटम दिया था। याचिका में कहा गया था कि हर की पौड़ी के अलावा प्रशासन लालतारो पुल की दुकानों को भी तोडऩा चाहता है। फूल, हार, प्रसाद, धार्मिक पुस्तक और पूजा सामग्री बेचने वाले दुकानदारों ने कहाकि 1990 के बाद भी सुप्रीम कोर्ट कई बार दुकानों को हटाने का प्रयास विफल कर चुका है। ऐसी स्थिति में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि जब धर्म और बाजार का गठजोड़ मजबूत हो तो भला आम आदमी को कैसे राहत मिल सकती है।


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