लालकृष्ण आडवाणी ने आपातकाल की आशंका खत्म न होने की बात कहकर नई बहस छेड़ दी है। अब विपक्ष इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ हथियार बनाकर इस्तेमाल कर रहा है। यह पहला मौका नहीं है, जब आडवाणी ने अपने बयान से पार्टी को असहज स्थिति में डाला हो, इससे पहले भी कई मौकों पर आडवाणी ने पार्टी को मुश्किल में डाला। खास तौर पर मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद।
भारतीय जनता पार्टी के लौह पुरूष कहे जाने वाले वयोवृद्ध नेता लालकृष्ण आडवाणी बार-बार अपनी ही पार्टी को असहज कर रहे हैं। ऐसा एक बार नहीं, बीते एक साल में प्रमुख रूप से वे कई बार पार्टी को बैकफुट पर ला चुके हैं। पार्टी के रणनीतिकारों के लिए न तो इसे स्वीकरते हुए बनता है और न ही वे इसे सार्वजनिक रूप से खारिज कर सकते हैं।
एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि भारत की राजनीतिक व्यवस्था अब भी आपातकाल के हालात से निपटने के लिए तैयार नहीं है। भविष्य में भी नागरिक अधिकारों के निलंबन की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है। वर्तमान समय में ताकतें संवैधानिक और कानूनी कवच होने के बावजूद लोकतंत्र को कुचल सकती हैं। आडवाणी ने कहा कि 1975-77 में आपातकाल के बाद के वर्षों में मैं नहीं सोचता कि ऐसा कुछ भी किया गया है, जिससे मैं आश्वस्त रहूं कि नागरिक अधिकार फिर से निलंबित या नष्ट नहीं किए जाएंगे। यह पूछे जाने पर कि ऐसा क्या नहीं दिख रहा है, जिससे हम समझें कि भारत में फिर आपातकाल थोपने की स्थिति आ सकती है? उन्होंने कहा कि अपनी राज्य व्यवस्था में मैं ऐसा कोई संकेत नहीं देख रहा, जिससे आश्वस्त रहूं। नेतृत्व से भी वैसा कोई उत्कृष्ट संकेत नहीं मिल रहा। इंदिरा गांधी और उनकी सरकार ने इसे बढ़ावा दिया था। उन्होंने कहा कि ऐसा संवैधानिक कवच होने के बावजूद देश में हुआ था। 2015 के भारत में पर्याप्त सुरक्षा कवच नहीं हैं।
आम आदमी पार्टी नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर कहा कि आडवाणी जी की आशंका सही है। भविष्य में इमरजेंसी की आशंका नकार नहीं सकते। क्या दिल्ली इसका पहला प्रयोग है? वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कहना है कि भाजपा की हालत खराब है, अब ये चला नहीं पा रहे हैं। जनता सब देख रही है कि कैसे अपने चहेतों की मदद कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी के सांसद नरेश अग्रवाल कहते हैं कि अगर आडवाणी जी ने चिंता व्यक्त की है, तो चिंता की बात है। भाजपा को भी चिंता करनी चाहिए कि पार्टी में क्या हो रहा है?
हालांकि, लालकृष्ण आडवाणी के आपातकाल की आशंका को संघ ने नकारा है। संघ ने कहा है कि इस समय भारत में आपातकाल जैसी स्थिति नहीं है। राष्ट्रीय स्वंय संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ मनमोहन वैद्य ने ट्वीट कर देश में इमरजेंसी जैसी हालात को नकारते हुए लिखा है कि वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए आपातकाल लागू करने जैसी स्थिति भारत में है, ऐसा नही लगता है। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में 25-26 जून 1975 को देश में आंतरिक आपातकाल लगाया गया था। यह आपातकाल 19 महीनों तक जारी रहा था।
असल में, आडवानी जी हर साल 25 जून के आसपास आपातकाल के बारे में कुछ लिखते हैं। आपातकाल उनका भोगा हुआ यथार्थ है, इसलिए उनकी बातें आमतौर पर विश्वसनीय होती हैं। उनके राजनीतिक जीवन में आपातकाल ऐसा मंच है जिसके बाद उनको राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली, आपातकाल के दौरान वे अपनी पार्टी, भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष बने और उसके खिलाफ जब जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में संघर्ष हुआ तो उसमें एक घटक के नेता के रूप में शामिल हुए। 1977 में जनता पार्टी बनी और वे सूचना एवं प्रसारण मंत्री बने। इस तरह से आपातकाल के पहले लालकृष्ण आडवानी अपनी पार्टी के अध्यक्ष तो बन चुके थे, लेकिन तब तक पार्टी की पहचान शहरी वर्ग की पार्टी के रूप में ही होती थी। लालकृष्ण आडवानी की अपनी पहचान भी उन दिनों दिल्ली के नेता की ही थी। ऐसा इसलिए था कि राजस्थान में पार्टी का काम करते हुए जब उनका तबादला दिल्ली हुआ तो उनका परिचय सुन्दर सिंह भंडारी के निजी सचिव, केआर मलकानी के सहायक, दिल्ली नगर की मेट्रोपोलिटन काउन्सिल के सदस्य, भारतीय जनसंघ की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष और दिल्ली के कोटे से 1970 में चुने गए राज्यसभा के सदस्य के रूप में ही दिया जाता था। 1973 में वे भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और उसके बाद उनका राजनीतिक जन्म राष्ट्रीय मंच पर हुआ। उन दिनों जनसंघ पार्टी में भारी बिखराव था। पार्टी के संस्थापक सदस्य और अध्यक्ष रह चुके बलराज मधोक और पार्टी के अन्य बड़े नेताओं के बीच भारी मतभेद था। बलराज मधोक को लालकृष्ण आडवानी ने ही पार्टी से निकाला था। मधोक के जाने के बाद जनसंघ के तीन बड़े नेता नानाजी देशमुख, अटलबिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवानी माने जाते थे। इमरजेंसी में बहुत सारे नेताओं ने माफी आदि मांगी, लम्बे-लम्बे समय के लिए पैरोल की याचना करते रहे, लेकिन आडवानी जेल में ही रहे और कुछ लिखते-पढ़ते रहे। आपातकाल के बाद जेल से बाहर आने के बाद वे सूचना प्रसारण मंत्री बने और अपनी पार्टी की राजनीति में हमेशा ही महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में बने रहे, आज भी पार्टी के शीर्ष संगठन, मार्गदर्शक मंडल के सदस्य हैं।
जाहिर सी बात है कि लालकृष्ण आडवाणी ने आपातकाल को लेकर जिस प्रकार की टिप्पणी की है, उसका विपक्षी दल माइलेज लेना चाहते हैं। विपक्ष इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ हथियार बनाकर इस्तेमाल कर रहा है। हालांकि, यह पहला मौका नहीं है, जब आडवाणी ने अपने बयान से पार्टी को असहज स्थिति में डाला हो, इससे पहले भी कई मौकों पर आडवाणी ने पार्टी को मुश्किल में डाला। खास तौर पर मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद।
इससे पूर्व लालकृष्ण आडवाणी ने मध्य प्रदेश के ग्वालियर में सभी भाजपा मुख्यमंत्रियों की तुलना करते हुए शिवराज सिंह चैहान को नरेंद्र मोदी से बेहतर बता दिया। आडवाणी ने कहा था कि गुजरात तो पहले ही स्वस्थ था, उसको आपने (नरेंद्र मोदी ने) उत्कृष्ट बना दिया है। उसके लिए आपका अभिनंदन। लेकिन छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश तो बीमारू प्रदेश थे, उनको स्वस्थ बनाना...ये उपलब्धि है। आडवाणी के इस बयान को उस वक्त के पीएम पद के उम्मीदवार मोदी को डिसमिस करने के बराबर माना गया।
लालकृष्ण आडवाणी ने चुनाव प्रचार समिति की कमान पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी को सौंपने की वकालत की थी। हालांकि नितिन गडकरी ने यह पद संभालने से इंकार कर दिया था। गडकरी ने कहा था कि पार्टी ने पहले ही इसके लिए मोदी का नाम तय कर दिया है। राजनीतिक हलकों में इस पूरे मामले को लालकृष्ण आडवाणी और मोदी के बीच बढ़ती दूरियों के तौर पर देखा गया। इस मामले पर भी भारतीय जनता पार्टी को सफाई देनी पड़ी थी।
याद कीजिए, अगस्त 2013 का समय। लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान 15 अगस्त 2013 को नरेंद्र मोदी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर जमकर हमला बोला था। तब मोदी के बयान की परोक्ष तौर पर आडवाणी ने आलोचना की थी। आडवाणी ने कहा था कि स्वतंत्रता दिवस जैसे मौके पर नेताओं को एक-दूसरे की आलोचना नहीं करनी चाहिए। इसके बाद भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने बगैर किसी का नाम लिए कहा था कि मैं प्रधानमंत्री और उनके पूरे मंत्रिमंडल को इस अवसर पर शुभकामनाएं देता हूं। मैं चाहता हूं कि ये भावना विकसित हो। एक-दूसरे की आलोचना किए बगैर लोगों को इस दिन यह याद रखना चाहिए कि भारत में असीम संभावनाएं हैं। 15 अगस्त के मौके पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के लालकिले से दिए भाषण की तीखी आलोचना की थी। इसे लेकर भाजपा असहज स्थिति में आ गई और सफाई का दौर चल पड़ा।
डसके बाद मई 2014 का वक्त। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जबरदस्त जीत हासिल करते हुए अपने दम पर बहुमत हासिल किया। हर किसी ने इसका श्रेय मोदी को दिया। लेकिन आडवाणी ने कहा कि जीत का श्रेय सिर्फ नरेंद्र मोदी को ही नहीं, कांग्रेस को भी जाता है। जिसके शासन में जनता के बीच असंतोष फैला और जनता ने उसे सबक सिखाया। आडवाणी का ये बयान मोदी से श्रेय छीनने की कोशिश माना गया। 27 फरवरी 2014 को हुई पार्टी की बैठक में आडवाणी ने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की बात से सहमति जताई। आडवाणी ने मोदी के चुनाव अभियान की आलोचना करते हुए कहा कि इससे भाजपा ‘वन मैन पार्टी’ बन गई है। आडवाणी ने भाजपा नेताओं को अपनी शिकायत दर्ज कराते हुए कहा कि वह कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के भाजपा को एक आदमी द्वारा संचालित पार्टी कहने के बयान से सहमत हैं। बैठक में नरेंद्र मोदी, लालकृष्ण आडवाणी और राजनाथ सिंह मौजूद थे। राहुल गांधी ने हरियाणा में 24 फरवरी,2014 को मोदी पर निशाना साधते हुए बयान दिया था कि भाजपा वन मैन पार्टी बन गई है।
अब सवाल उठता है कि आखिर लालकृष्ण आडवाणी ऐसा क्यों करते हैं ? सार्वजनिक रूप से भाजपा का कोई भी नेता-रणनीतिकार या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े कोई भी पदाधिकारी इसका जवाब नहीं देता है। हां, आपसी बातचीत में पार्टी के कई नेता इतना कह देते हैं कि लालकृष्ण आडवाणी ने भाजपा के लिए अपनी पूरी जीवन लगा दी। फिर भी वह प्रधानमंत्री पद तक नहीं पहुंच सके। उनकी प्रबल राजनीतिक इच्छा यही थी कि वे भारत के प्रधानमंत्री बने। गाहे-बगाहे दिल की कसक जुबां तक आ ही जाती है।
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